Monday, 11 July 2016

मनुष्यता कम सेक्यूलरिज़्म ज़्यादा समझते हैं

फ़ोटो : दिव्या शुक्ला

ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

लोग लिखा हुआ कम फ़ोटो ज़्यादा समझते हैं
मनुष्यता कम सेक्यूलरिज़्म ज़्यादा समझते हैं 

कहते तो थे कि छुआछूत है बहुत बड़ा अभिशाप 
लेकिन कट्टर हो गए इतने अब छुआछूत बरतते हैं

अख़बारों के पास अब ख़बरिया तेवर भी कहां है
वहां तो कारपोरेटऔर सरकार के बयान छपते हैं

अपना अपना इस्लाम है अपनी अपनी कुरआन 
वह रोजा को कम इफ़्तार को ज़्यादा समझते हैं

पढ़े लिखे लोग भी अब होते जा रहे हैं प्रौढ़ साक्षर
किताब नहीं अख़बार नहीं स्लोगन समझते हैं

हैं कुछ लोग हर खेमे में अपने अपने कुएं में कैद
तथ्य और सत्य कम विचारधारा ज़्यादा समझते हैं 

[ 11 जुलाई , 2016 ]

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