दयानंद पांडेय
तथ्य मत बदला करें l उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने श्री नारायण चतुर्वेदी को एक लाख रुपए का भारत भारती सम्मान देने का ऐलान किया था l कांग्रेस के नारायणदत्त तिवारी तब मुख्य मंत्री थे l प्रधान मंत्री राजीव गांधी के निर्देश पर उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने का ऐलान तिवारी जी ने किया था l
उर्दू राजभाषा के विरोध में श्रीनारायण चतुर्वेदी ने हिंदी संस्थान से जी पी ओ तक पैदल मार्च किया l भाषण में कहा कि इतने पैसे एक साथ कभी नहीं देखे पर यह भारत भारती सम्मान ठुकरा रहा हूं l जी पी ओ से जिलाधिकारी त्रिवेदी उन्हें मुख्य मंत्री के एनेक्सी आफिस ले गए l एनेक्सी के पांचवीं मंजिल पर मुख्य मंत्री का कार्यालय था पर नारायणदत्त तिवारी नीचे पोर्टिको में उन्हें रिसीव करने के लिए उपस्थित थे l
चतुर्वेदी जी के आते ही तिवारी जी ने झुक कर दोनों हाथ से उन के चरण स्पर्श किए l चतुर्वेदी जी ने पीठ ठोंक कर आशीर्वाद दिया l तिवारी जी सम्मान सहित उन्हें अपने कार्यालय में ले गए l चाय पिलाई l हाथ जोड़ कर निवेदन किया कि सम्मान स्वीकार करें l पर चतुर्वेदी जी ने मना कर दिया l कहा कि उर्दू को दूसरी राजभाषा का आदेश वापस लें l तिवारी जी ने हाथ जोड़ कर कहा , यह मेरे हाथ में नहीं है l
श्रीनारायण चतुर्वेदी चले गए l तिवारी जी वापस उन्हें नीचे पोर्टिको में छोड़ने आए l फिर चरण स्पर्श किया और जिलाधिकारी त्रिवेदी जी से कहा कि सम्मान सहित उन्हें घर छोड़ कर आएं l बतौर रिपोर्टर इन सारी घटनाओं का साक्षी रहा हूं l इस लिए दावे के साथ कह रहा हूं l
बाद में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ के लोगों से एक-एक रुपया चंदा मांग कर चतुर्वेदी जी को एक लाख एक सौ एक रुपए ले कर उन के घर जा कर उन्हें सम्मानित किया l विद्यानिवास मिश्र जी ने नहीं l श्रीनारायण चतुर्वेदी बड़े शिक्षा अधिकारी रहे थे और कि बाद में सरस्वती के संपादक हुए थे l
अब तो लोग जुगाड़ कर सम्मान लेते हैं l और लेने नहीं जाते हैं l घर पर डाक से मंगवा लेते हैं l जयप्रकाश कर्दम ने इसी हिंदी संस्थान से चार लाख का लोहिया सम्मान का जुगाड़ किया और डाक से मंगवा लिया l योगी सरकार से विरोध भी दर्ज करवा लिया और पैसा भी ले लिया l इतना ही विरोध था तो पैसा भी ठुकरा देते l समारोह का ही बहिष्कार क्यों ? बीमारी की सूचना दी थी और दो दिन बाद ही लखनऊ के कथाक्रम के कार्यक्रम में उपस्थित दिखे l बिलकुल स्वस्थ थे l
ऐसे अनेक किस्से हैं लखटकिया पुरस्कारों के चोचलों के l विरोध करने के नाम पर यह कायर और नपुंसक लोग हैं l और अपने को लेखक भी बताते हैं l धिक्कार है l
[ एक मित्र की पोस्ट पर मेरा यह एक कमेंट। ]
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