पेंटिंग : डाक्टर लाल रत्नाकर |
ग़ज़ल
सब सब का रास्ता रोके खड़े हैं
तुम नहीं , वह नहीं , हम सब से बड़े हैं
भ्रष्ट कहो , बेशर्म कहो , अराजक कहो
जो भी कहो , कहते रहो हम चिकने घड़े हैं
सड़क हो , संसद हो , या हो विधान सभा
हम तो हर फटे में टांग डाले ही खड़े हैं
नैतिकता , सिद्धांत आदि हर किसी की ऐसी तैसी
हम तो हर ऐसी खोपड़ी पर खूंटा गाड़े खड़े हैं
एक दिन आया था सूरज भी रौशनी की आस में
तुम क्या जानो कि हम कितने बड़े रणबांकुरे हैं
अब तो इंटरनेट पर भी सारी कहानी अपनी है
चैनल , अख़बार सब हमारी अगुवानी में खड़े हैं
वह देखो हाथ जोड़े खड़े हैं समय के सारे सूर्य
सब की छाती पर पांव रखे , मूंग दलते हम खड़े हैं
[ 19 दिसंबर , 2015 ]
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