Tuesday, 8 December 2015

दो लाईन की बकलोल कविता और सौ-पचास लाईन की फटीचर फ़ोटो




फ़ेसबुक पर उपस्थित एक से एक सती सावित्री लुक होती रहती हैं। एक दिन में दस ठो फ़ोटो चिपका कर उकसाती फिरती हैं। मूर्ख और लिबलिब मर्दों को। हर किसी से अपने नख-शिख वर्णन करवाती हुई। एक से एक लंपट और उचक्के भी हैं जो दीदी-दीदी करते हुए उन के सौंदर्य की उपासना करते फिरते हैं। कुछ शाकाहारी टाईप के मांसाहारी भी बहुत उम्दा मनोरंजन करते फिरते हैं , ' सौम्य छवि '  टाईप हिंदी में  ' ग्रेसफुल ' टाईप अंग्रेजी में लार टपकाते हुए , अलंकृत करते हुए। कुछ तो अपनी बीस साल पुरानी फ़ोटो लगा कर लुभाती फिरती हैं तो कुछ फोटोशाप की फ़रियाद में डूबी हुई सी। बूढ़ी घोड़ी , लाल लगाम की याद दिलाती हुई । ज़रा सा भाव दे दो तो मारे गुस्से के टहकने लगती हैं ।


दो लाईन की बकलोल कविता और सौ-पचास लाईन की फटीचर फ़ोटो । उन को लगता है कि ऊ बड़ी उत्तेजक लग रही हैं । फिर ई लोफ़र उचक्का टाईप विद्वान् भी फ़ोटो पर आसक्त हो कर लाईक रूपी लाईन मारते हैं और ई सती सावित्री लोग बूझती हैं कि महादेवी वर्मा की माता जी अब वही हैं। ई सब आपस में भी लड़ती-मरती रहती हैं । और विजेता होने के नशे में इहां-ऊहां मटकती फिरती हैं। साठ-सत्तर पार वाले कुछ कवि-लेखक भी अहो-अहा करते हुए इन के महीयसी होने पर मुहर मारते फिरते हैं। कुछ इन के साथ मुहर के तौर पर फ़ोटो भी हिंचवा लेते हैं । तो यह सब मेढकी नियर फुदकने लगती हैं । नाल ठुंकवाने लगती हैं । फ़ेसबुक पर फ़ोटो-सोटो साट कर ई लोग कुछ क्रांति-फ्रांति भी करती-धरती हैं। करें न करें पर इलहाम तो है ही कि भगत सिंह की अम्मा यही लोग थीं कि हैं । जो भी हो पर यह लोग फील यही वाला करवाती हैं। और रसिक बुढ़वे इन की इस फील को निरंतर गुड करवाते रहते हैं । फील गुड के नशे में मस्त फ़ोटो दर फ़ोटो बदलती रहती हैं यह हीरोइनें । मस्ती जब ज़्यादा हो जाती है तो इन बुढ़ऊ लोगों को भी लात मार कर झलकारी , झांसी तो खैर ई सब खुदै मानने लगती हैं । आप मानिए चाहे भाड़ में जाइए , इन की बला से । 


नतीज़े में बिचारे नए लवंडे इन से नित नए ढंग से अपमानित होते रहते हैं । पब्लिकली । और ऐसा नहीं है कि कविता लिखने वाली माताएं-बहनें ही ऐसा करती रहती हैं । सती-सावित्री हर फील्ड में हैं जिन को अपनी मनमोहिनी छवि पर गुमान बहुत है । कविता वाली तो मुफ़्त में ही बदनाम हैं । इन के आगे जहां और भी है ! और बहुत विस्तृत , बहुत गहरी । लुच्चेपन की पतवार भी बहुत है। अफसरों , नेताओं , कलाकारों आदि के साथ भी सट-सट कर , चिपक-चिपक कर फ़ोटो खिंचवा कर लंतरानी फेकने वाली भी बहुतेरी सती-सावित्रियां फ़ेसबुक पर डोलती , मेढकी की तरह नाल ठुंकवाती लुक होती रहती हैं । अज्ञेय जी की कविता याद आती है - कितनी नावों में , कितनी बार ।


1 comment:

  1. हम तो सोच के आये रहे की पोस्ट से कुछ अधिक मिलेगा हियाँ !!��

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