Friday, 25 December 2015

अम्मा ने बुढ़ौती में पिता से खुल कर बग़ावत कर दी है

पेंटिंग : डाक्टर लाल रत्नाकर

ग़ज़ल 

अब और वह सह नहीं  सकती  यह मुनादी कर दी है
अम्मा ने बुढ़ौती में पिता से खुल कर बग़ावत कर दी है

चंद्रमुखी थी , सूरजमुखी हुई उपेक्षा की आग में जल कर
अब ज्वालामुखी बन कर  पिता की हालत ख़राब कर दी है

जैसे दबी-दबी स्प्रिंग कोई मौक़ा मिलते ही बहुत ऊंचा उछल जाए
सहमी सकुचाई अम्मा ने अचानक उछल कर वही ऊंची कूद कर दी है
 
पिता एकदम से ख़ामोश हैं अम्मा का भाषण मुसलसल जारी है
इस तेजाबी भाषण ने घर की बाऊंड्री में बारूदी हवा भर दी है

घर बचे या जल कर भस्म हो जाए परवाह नहीं किसी बात की उस को
यह वही अम्मा है जिस ने इस घर के लिए अपनी ज़िंदगी होम कर दी है

अब वह सिर्फ़ घर नहीं , बच्चे नहीं ,अपनी अस्मिता भी मांगती है
पिता जो कभी सोच सकते नहीं थे वह मांग उस ने आगे कर दी है

पुरुष सत्ता जैसे झुक गई है स्त्री की इस आग और अंदाज़ के आगे
जो झुकती नहीं थी कभी उस ने चुप रहने की विसात आगे कर दी है

पिता की तानाशाही उम्र भर चुपचाप भुगती कभी कुछ नहीं बोली
अब बोली है तो जैसे अन्याय के उस सूर्य की ही फ़ज़ीहत कर दी है

बच्चे ख़ामोश हैं , हैरान भी , न्यूट्रल भी माता पिता की इस इगो वार में
जवानी में जो करना था बुढ़ौती में अम्मा ने वह झंझट खुले आम कर दी है

अम्मा रोज भजन गाती थी तो घर खुशबू से भर जाता था , हम लोग महकते थे
घर में कर्फ्यू है , कोहरा है , इमरजेंसी से हालात ने सब की ऐसी-तैसी कर दी है

गंगा में जैसे बाढ़ आई हो , बांध और बैराज तोड़ कर शहर में घुस आई हो
अम्मा ऐसे ही कहर बन कर टूटी है पिता पर और जीना मुहाल कर दी है 

हवा गुम है इस परवाज के आगे , चांद गुमसुम है , सूरज सनका हुआ सा 
सीता वनवास से लौट आई है जैसे और राम की शेखी  खंडित कर दी है

 [ 26  दिसंबर , 2015  ]

इस कविता का मराठी अनुवाद 


🍁अम्मा ने म्हातारपणी पित्याशी
बंडखोरी केली🍁

आता अजून ती साहू शकत नाही ही तिने घोषणा केली आहे
अम्मा ने म्हातारपणी पित्याशी खुलेआम बंडखोरी केली आहे...

चंद्रमुखी होती झाली सूर्यमुखी उपेक्षेच्या अग्नित पोळली
आता ज्वालामुखी बनून तिने पित्याची हालत खराब केली...

जशी दाब,दाबलेली स्प्रिंग संधि मिळताच ऊंच ,ऊंच उसळली
सहमत,संकोची अम्मा ने अचानक तशीच ऊंची आहे गाठली...

पिता एकदम च मौन तरअम्माचे
भाषण निरंतर जारी आहे
ह्या आम्लारी भाष्या ने घराच्या बाउंडरीत हवा बारूदी भरली
आहे...

घर वाचेल की जळून भस्म होईल कश्याची तिला पर्वा नाही
ही तिच अम्मा आहे जिने ह्या घरासाठी सर्वस्वाचा होम केला आहे...

आता ती फक्त घर नाही ,मुले नाही
मागते ती स्वतः ची अस्मिता
पिता जे कधी विचार ही करू शकले नाही
अशी मागणी पुढे करतेय ती आता....

पुरुषी सत्ता जशी झुकली आहे स्त्री च्या आगीत आणि ज्वलंत संघर्षात
जी झुकत नव्हती कधी च तिने मौनाची चादर पसरली आहे...

पित्याची तानाशाही जीवनभर मुक्याने साहिली ना कधी वदली
आता बोलली तर अशी की त्या
अन्यायी सूर्याची दुर्दशाच केली...

मुले अबोल, हैराण ,झाले न्यूट्रल
माता,पित्या चा वॉर ईगो चा झाला
तारुण्यात जो करायचा,म्हातारपणी
अम्माने तो झगडा खुलेआम केला..

अम्मा रोज भजन गायची तेव्हा घर सुरभित होत होते आम्ही ही व्हायचो परिमलित
घरात कर्फ्यू , धुके दाटले, आणिबाणीजन्य स्थिति ने केली सगळ्यांची ऐशी तैशी ..

गंगेला जसा पूर आल्यावर, धरण, बंधारे तोडून पाणी शहरात शिरले
अम्मा ने असेच कहर बनून
पित्याचे जीवन मुश्किल केले ...

हवा ही लोपली ह्या पक्षिणीपुढे,
चंद्रमा स्तब्ध आहे अन भडकलेला मार्तण्ड

सीता वनवासातून परतली जशी अन केला श्रीरामाच्या गर्वाचा खंडन खंड.....

अनुवाद : प्रिया जलतारे 

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