कुछ और फेसबुकिया नोट्स
छन्दों के मणिदीप सजाएँ
तमस भूल, उत्सव को गाएँ।
- राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे के तुलनात्मक अध्ययन में कौन बीस पड़ेगा ? एक सूत्र तो मैं आप की सुविधा के लिए थमाए देता हूं। कि मुंह में चांदी की चम्मच लिए दोनों ही पैदा हुए हैं, राजसी अकड़ में ध्वस्त और ज़मीनी सचाई से पस्त रहना दोनों ही का दुर्लभ अंदाज़ है।
- हमारे प्रिय कवि बुद्धिनाथ मिश्र के इस मणिदीप गीत के साथ आप सभी मित्रों को दीपावली की हार्दिक बधाई ! कोटिश: बधाई !
छन्दों के मणिदीप सजाएँ
तमस भूल, उत्सव को गाएँ।
चौमुख दीप धरें नवयुग की
पावन लिपी-पुती देहरी पर
और आरती-दीप धरें
भारत माँ की गंगा-लहरी पर
जन-जन की दन्तुल मुस्कानें
मावस की कालिमा मिटाएँ ।
टूट रही है एक-एक कर
मन के अन्ध-बन्ध की कारा
जिस नभ में घनघोर घटा थी
उस नभ में छिटका उजियारा
पहनें नील कुसुम की माला
क्यों हम गले भुजग लिपटाएँ?
यह उत्सव है सदियों से जाग्रत
सुषुप्त पार्थिव दीपों का
यह उत्सव है समय-सिन्धु में
उभरे नये-नये द्वीपों का
कर लें वन्दन मंगलमय का
अपशकुनों को धता बताएँ।
हमारे मित्र बालेश्वर कभी गाते थे यह गाना जब झूम कर और ललकार कर कहते थे कि सोनरा दुकनिया भीड़ लगी है को कहता मंहगाई है ! अब वह नहीं हैं पर उन का गाया यह गाना आज भी समय के सच को उसी तल्खी के साथ उपस्थित करता है। तब के दिनों मंहगाई की मद्देनज़र वह कई बार यह गाते हुए मुझ से ठिठोली भी करते थे , ' पड़ाइन पाड़े से बोलें , भूल गई ठकुराई है !' तो सचमुच इस मंहगाई के आगे बड़ों-बड़ों की ठकुराई भूल गई है । खून भी सस्ता , नून भी सस्ता , अब किस की कठिनाई है ! सच , बालेश्वर आज भी कितने प्रासंगिक हैं । वह गाते ही थे , कठिनाई और मंहगाई से तो कौन मिटाने वाला है / कठिनाई और मंहगाई जीवन का कंठी - माला है , मंहगाई से बालेश्वर की सूख गई रोसनाई है ! मन करे तो इस लिंक पर आप भी सुनिए बालेश्वर की मिसरी जैसी मीठी और फोफर आवाज़ में यह गीत :
https://www.youtube.com/watch?v=v5_Yk6kKSJo
पावन लिपी-पुती देहरी पर
और आरती-दीप धरें
भारत माँ की गंगा-लहरी पर
जन-जन की दन्तुल मुस्कानें
मावस की कालिमा मिटाएँ ।
टूट रही है एक-एक कर
मन के अन्ध-बन्ध की कारा
जिस नभ में घनघोर घटा थी
उस नभ में छिटका उजियारा
पहनें नील कुसुम की माला
क्यों हम गले भुजग लिपटाएँ?
यह उत्सव है सदियों से जाग्रत
सुषुप्त पार्थिव दीपों का
यह उत्सव है समय-सिन्धु में
उभरे नये-नये द्वीपों का
कर लें वन्दन मंगलमय का
अपशकुनों को धता बताएँ।
- बहुत दिन बाद आज लखनऊ में विक्रमादित्य मार्ग पर स्थित नेता जी मुलायम सिंह यादव के घर पर उन से मुलाक़ात हुई। मेरी भी और मेरी अभी-अभी आई नई किताब मुलायम के मायने की भी। किताब पा कर वह ख़ूब खुश हो गए। उन से फिर जल्दी ही मुलाक़ात होगी ।
- काले धन के मसले पर कांग्रेस नेता अजय माकन बहुत तल्ख़ हो कर कह रहे हैं कि अरुण जेटली कांग्रेस को ब्लैकमेल नहीं करें ! चलिए एक बार मान लेते हैं कि अरुण जेटली कांग्रेस को ब्लैकमेल कर रहे हैं । लेकिन अब अजय माकन से जाने कोई यह क्यों नहीं पूछ रहा कि भैया , आप ब्लैकमेल हो क्यों रहे हैं ? ज़िक्र जरूरी है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट को काले धन वालों के नाम ज़रूर बताएगी, जिस से कांग्रेस के लोग परेशान हो सकते हैं। कांग्रेस को शर्मिंदगी हो सकती है । कांग्रेस ने इस के पहले भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा था कि भाजपा सरकार काला धन वालों का नाम छुपा क्यों रही है ? नाम क्यों नहीं लेती ? खबर है कि काला धन वाला सूची में मनमोहन सरकार के कुछ मंत्रियों के नाम भी हैं। अब अलग बात है कि अभिषेक मनु सिंधवी राम जेठमलानी की तर्ज़ पर मोदी सरकार से सवालों की झड़ी लगा बैठे हैं। और सुब्रमण्यम स्वामी खुले तौर पर कह रहे हैं कि ज्यूरिख के बैंक में सोनिया गांधी के नाम पैसा जमा है। जय हो !
- तो क्या केंद्र सरकार और हरियाणा , महाराष्ट्र के बाद अब नरेंद्र मोदी का अगला चुनावी पड़ाव कहिए, विजय पताका फहराना कहिए, जम्मू और कश्मीर है ? दीपावली के दिन चार घंटे की उन की कश्मीर यात्रा को ले कर हुर्रियत और कांग्रेस से लगायत महबूबा मुफ़्ती, पैंथर्स पार्टी के भीम सिंह तक बौखलाए हुए हैं , यह देख कर तो यही लगता है कि कश्मीर की डोर भी उन के हाथ से खिसक चुकी है। हुर्रियत ने तो बंद का ऐलान ही कर दिया है । मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बात और है। उन की मजबूरी है, केंद्र से पैकेज उन्हें चाहिए ही। लेकिन मोदी का डर सता तो उन्हें भी रहा है । इधर भाजपा कांग्रेस से पूछ रही है कि मोदी को कश्मीर जाने के लिए क्या कांग्रेस से वीजा लेना पड़ेगा ? अजब राजनीति है यह मरहम लगाने और मरहम उतारने की भी ! तो क्या मान लिया जाए कि कांग्रेस की आंख का काजल कश्मीर की जनता भी निकाल लेना चाहती है ? अगले हफ़्ते जम्मू और कश्मीर तथा झारखंड के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा चुनाव आयोग करने वाला है ।
- फेसबुक पर लिखी बात भी लोग सुनते तो हैं। जैसे कि यह देखिए कि बीते 18 अक्टूबर को लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति निमसे को संबोधित बी एड के रिजल्ट से संबंधित एक पोस्ट लिखी थी मैं ने । कल यानी 21 अक्टूबर को न सिर्फ़ बी एड का रिजल्ट आ गया, आज बच्चों को उस की मार्कशीट भी मिल गई , जैसा कि कुलपति निमसे ने कहा ही था कि दीपावली के पहले मार्कशीट मिल जाएगी , और बच्चे, शिक्षक भर्ती का फ़ार्म समय रहते भर सकते हैं । शिक्षक भर्ती में 30 अक्टूबर आख़िरी तारीख़ है फार्म भर कर जमा करने की । सो अफरातफरी में थोड़ी दिक्कत तो हुई है बच्चों को पर कुलपति निमसे ने अपनी कही बात को ज़रा देर से सही, न सिर्फ़ सच साबित किया बल्कि कल यानी 22 अक्टूबर को दिन में खुद फ़ोन कर मुझे इस बाबत सूचना भी दी और कहा कि कल हर हाल में मार्कशीट भी मिल जाएगी । बहुत शुक्रिया एस बी निमसे। हज़ारों बच्चे और उन के अभिभावक आप के शुक्रगुज़ार हैं । आप की दीपावली मंगलमय हो निमसे जी !
- लखनऊ विश्व विद्यालय के कुलपति डॉ. एसबी निमसे क्या एक निकम्मे कुलपति हैं ? और कि परीक्षा विभाग उन की बिलकुल नहीं सुनता ? बी एड का इम्तहान प्रैक्टिकल सहित जुलाई में खत्म हो गया। लेकिन रिजल्ट का अभी तक अता-पता नहीं है । अखबारों के जिम्मे ऐसी खबरें नहीं होतीं । अखबारों को नेताओं अफसरों के खांसी जुकाम से फुर्सत नहीं है। तो अखबार इन के ठकुर-सुहाती खबरों से लदे रहते हैं । सब जानते हैं कि बरसों बाद शिक्षकों की बंपर भर्ती का वांट निकला है और बिना बी एड के परीक्षा परिणाम के बच्चे फ़ार्म नहीं भर सकते । 30 अक्टूबर फ़ार्म भरने की आख़िरी तारीख़ है । बीच में दीपावली की चार दिन की छुट्टियां हैं। कल इतवार है। कब रिजल्ट निकलेगा, कब मार्कशीट मिलेगी ,कब बच्चे फ़ार्म भरेंगे ,सोचा जा सकता है । विभाग से पता किया तो पता चला कि परीक्षा परिणाम बना कर परीक्षा विभाग को जुलाई में ही भेज दिया गया है। मैं ने कुलपति निमसे से इस बाबत 15 और 16 अक्टूबर को बात किया। कहा कि इतने सारे बच्चों की किस्मत से खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं ? 16 अक्टूबर की रात निमसे ने खुद फोन कर मुझे सूचित किया कि 17 अक्टूबर को रिजल्ट आ जाएगा । लेकिन आज 18 अक्टूबर की शाम हो गई है अभी तक बी एड के रिजल्ट का पता नहीं है। निमसे से अभी फिर बात की तो वह बगलें झांकने लगे । बोले, बात करता हूं कंट्रोलर से । इतना ही नहीं जुलाई में ही हुए एम एड के इंट्रेंस का रिजल्ट अभी तक लापता है ।
- खून भी सस्ता , नून भी सस्ता !
हमारे मित्र बालेश्वर कभी गाते थे यह गाना जब झूम कर और ललकार कर कहते थे कि सोनरा दुकनिया भीड़ लगी है को कहता मंहगाई है ! अब वह नहीं हैं पर उन का गाया यह गाना आज भी समय के सच को उसी तल्खी के साथ उपस्थित करता है। तब के दिनों मंहगाई की मद्देनज़र वह कई बार यह गाते हुए मुझ से ठिठोली भी करते थे , ' पड़ाइन पाड़े से बोलें , भूल गई ठकुराई है !' तो सचमुच इस मंहगाई के आगे बड़ों-बड़ों की ठकुराई भूल गई है । खून भी सस्ता , नून भी सस्ता , अब किस की कठिनाई है ! सच , बालेश्वर आज भी कितने प्रासंगिक हैं । वह गाते ही थे , कठिनाई और मंहगाई से तो कौन मिटाने वाला है / कठिनाई और मंहगाई जीवन का कंठी - माला है , मंहगाई से बालेश्वर की सूख गई रोसनाई है ! मन करे तो इस लिंक पर आप भी सुनिए बालेश्वर की मिसरी जैसी मीठी और फोफर आवाज़ में यह गीत :
https://www.youtube.com/watch?v=v5_Yk6kKSJo
- कुछ लोग फ़ेसबुक पर सिर्फ़ जहर की खेती करते हैं ।
- फेसबुक पर उपस्थित कुछ लोगों के बाबत यह तय कर पाना बहुत कठिन है कि वे जहरीले ज़्यादा हैं कि ढीठ और बेशर्म , कुतर्की ज़्यादा बड़े हैं कि पाखंडी ज़्यादा बड़े ! कि यह सभी कुछ ! शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर घुसाए लेकिन इन मुट्ठी भर लोगों का एकालाप अगर फेसबुक की जगह किसी और सार्वजनिक जगह पर भी इसी तरह जारी रहे तो यह किस हालत में होंगे भला ?
- भाजपा बदल गई, नरेंद्र मोदी बदल गए , निरंतर बदलते जा रहे हैं , देश की राजनीति को भी बदल रहे हैं। पर अफ़सोस कि उन के आलोचक , उन के विरोधी नहीं बदले। और कि यह लोग विरोध और आलोचना के अपने औजार और हथियार भी बदलने को तैयार नहीं हैं । वही तीर , वही धनुष और वही गदा ! वही चरित्र-हनन , वही राजनीतिक छुआछूत ! इतना पूर्वाग्रह और इतना हठ , इतनी ज़िद ! ऐसे भला विरोध होता है , और कि राजनीति भी ऐसे होती है कहीं ?
- आज रावण भी राम के वेश में मिलते हैं , रावण सीता का अपहरण करने भी भिक्षुक के वेश में गया था । लेकिन क्या कीजिएगा राम भी जानते थे कि सोने का हिरन नहीं होता पर गए सीता के कहने पर सोने का हिरन का शिकार करने । आप लोग भी मोदी विरोध के नशे में ऐसी ही मूर्खताएं लगातार कर रहे हैं , करते ही रहेंगे । इस लिए कि आप को गिलास कभी आधी भरी दिखती नहीं , आधी खाली देखने की बीमारी है । किसी का विरोध होता है तर्क से । लेकिन दुर्भाग्य से आप लोग तर्क शब्द से परिचित नहीं हैं । मुंबई आप को भूल जाता है , दाऊद भूल जाता है , २६/११ भूल जाता है , कश्मीर भूल जाता है , याद सिर्फ गुजरात का हत्यारा याद रहता है , गोधरा का ज़ुल्म भूल जाता है । सद्दाम हुसेन के ज़ुल्म भूल जाते हैं पर अमरीका का आतंक याद रहता है । पाकिस्तानी आतंकवाद या आई एस एस का आतंकवाद छाती फुलाने के काम आता है । क़भी कश्मीर में पाकिस्तानी झंडा पहरा दिया जाता है , कभी आई एस एस का । लेकिन तब आप का मुंह नहीं खुलता । क्यों भाई क्यों ? इस एकतरफा नजरिये से दुनिया ,देश और राजनीति नहीं चलती , न टिप्पणियां ऐसे होती हैं । कहा न कि यह सोच और यह नजरिया , यह औज़ार, यह हथियार पुराने पड़ गए हैं , भोंथरे पड़ गए हैं । बदल दीजिए इन्हें , अगर सचमुच लड़ना है । अंगुली कटवा कर यह शहीद होने का नुस्खा अब मुफ़ीद नहीं रहा ।
- आप मित्रों की कुछ बुद्धि से भी कभी मुलाक़ात है ? मेरी इस टिप्पणी में मोदी का समर्थन कहां से दिख गया आप को ? दूसरी बात यह कि जो सवाल पूछे उन का जवाब कहां है ? शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर घुसाए रहेंगे और मोदी विरोध भी करेंगे ? भई वाह ! मोतियाबिंद के मारे रिज़वान और गैंग से बात करना सचमुच दीवार में सर मारना है ! क्यों कि इन मित्रों को तर्कातीत बातें ही पसंद हैं । हकीम लुकमान भी इन का इलाज नहीं कर सकते । और रजनीश जी , आप भी बिना टिप्पणी पर गौर किए कूद गए बहस में ? सिर्फ मोदी विरोध की बिना पर ? मित्रों टिप्पणी में कही बात को फिर से दुहरा रहा हूं कि मोदी विरोध का यह औजार , यह हथियार बदलिए, पुराना पड़ गया है , भोंथरा हो गया है! नए औजार तलाश कीजिए, कुछ अकल का इंतज़ाम कीजिए !
No comments:
Post a Comment