Saturday, 25 October 2014

लोकतंत्र क्या ऐसे ही चलेगा या कायम रहेगा , इस बेरीढ़ और बेजुबान प्रेस के भरोसे ?

 कुछ फेसबुकिया नोट्स


  • कार्ल मार्क्स ने बहुत पहले ही कहा था कि प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब व्यवसाय की स्वतंत्रता है। और कार्ल मार्क्स ने यह बात कोई भारत के प्रसंग में नहीं , समूची दुनिया के मद्देनज़र कही थी। रही बात अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तो यह सिर्फ़ एक झुनझुना भर है जिसे मित्र लोग अपनी सुविधा से बजाते रहते हैं । कभी तसलीमा नसरीन के लिए तो कभी सलमान रश्दी तो कभी हुसेन के लिए। कभी किसी फ़िल्म-विल्म के लिए। या ऐसे ही किसी खांसी-जुकाम के लिए। और प्रेस ? अब तो प्रेस मतलब चारण और भाट ही है। कुत्ता आदि विशेषण भी बुरा नहीं है । नरेंद्र मोदी की आज की चाय पार्टी में यह रंग और चटक हुआ है। सोचिए कि किसी एक पत्रकार ने कोई एक सवाल भी क्यों नहीं पूछा ? सब के सब हिहियाते हुए सेल्फी लेते रहे , तमाम कैमरों और उन की रोशनी के बावजूद। मोदी ने सिर्फ़ इतना भर कह दिया कि कभी हम यहां आप लोगों के लिए कुर्सी लगाते थे ! बस सब के सब झूम गए। गलगल हो गए । काला धन , मंहगाई , भ्रष्टाचार ,महाराष्ट्र का मुख्य मंत्री , दिल्ली में चुनाव की जगह उपचुनाव क्यों , मुख्य सूचना आयुक्त और सतर्कता निदेशक की खाली कुर्सियां , लोकपाल , चीन , पाकिस्तान, अमरीका, जापान , भूटान, नेपाल की यात्रा आदि के तमाम मसले जैसे चाय की प्याली और सेल्फी में ऐसे गुम हो गए गोया ये लोग पत्रकार नहीं स्कूली बच्चे हों और स्कूल में कोई सिने कलाकार आ गया हो ! मोदी की डिप्लोमेसी और प्रबंधन अपनी जगह था और इन पत्रकारों का बेरीढ़ और बेजुबान होना, अपनी जगह। लोकतंत्र क्या ऐसे ही चलेगा या कायम रहेगा , इस बेरीढ़ और बेजुबान प्रेस के भरोसे ? 





दयानंद पाण्डेय सर का ब्लॉग सरोकारनामा मेरा पसंदीदा बलॉग है...
इनको पढ़ने के बाद सबसे पहली बात जो मेरे दिमाग में आती है कि काश मैं भी ऐसा लिख पाता... मैं खुद को बड़ा खुशनसीब मानता हूँ कि आज लखनऊ में उनके आवास पर उनसे मिलना हुआ... एक बात जो इनके बारे में मुझे सबसे ज्यादा हैरान करती है कि अखबार की पक्की नौकरी, ब्लॉग, फेसबुक पर लगातार लेखन, कई सेमिनारों में सक्रिय रहने के बावजूद दो दर्जन से भी ज्यादा किताबें लिखने का समय इन्होंने कैसे निकाला होगा? ढेरों बाते हुई...मीडिया से लेकर राजनीति तक...फेसबुक के कुछ गप्पबाजों से लेकर जांबाजो तक... बहुत कुछ सीखा...जाना... ये खुराक जरूरी है आज के दौर में जीने के लिए... शुक्रिया सर....




  • न मैं मोदी भक्त हूं , न कांग्रेसी न किसी और से मेरी कोई राजनीतिक संबद्धता है, न किसी का समर्थक़ हूं , न किसी का विरोधी । तटस्थ प्रेक्षक हूं । कह सकते हैं कि दर्शक दीर्घा में हूं । लेकिन सियाचिन में मोदी को आज सैनिकों से सहजता और उत्सुकता से मिलते देख कर, बड़ी ललक से हाथ मिलाते देख कर जाने क्यों राजीव गांधी की याद आ गई।


  • नरेंद्र मोदी की सियाचिन दौरे को भी राजनीतिक़ पार्टियों ने सियासी क्यों बना दिया ? यहां भला कौन वोट देगा ? कश्मीरी लोगों के दिलों में दिवाली के दिये जले तो हैं मोदी के इस दौरे से लेकिन सियासी लोगों के दिल ज़्यादा जल रहे हैं ।

  • भई वाह ! आप तो नरेंद्र मोदी से भी बड़े सौदागर निकले ! वो तो सिर्फ़ सपने बेचता है आप तो सपने बुनने के साथ ही बेचने भी लगे ! सरदी अभी दूर है लेकिन स्वेटर अभी से बुनने लगे ! देखिएगा आप के इस सपने जोड़ने से बहुतेरे भोले-भाले लोगों को कहीं हार्ट अटैक न हो जाए ! आप का विनोद दूसरों के लिए छाबड़ा बन कर टूट पड़ा तो बहुत मुश्किल हो जाएगी। मुकेश के गाए उस गाने की ही तरह कि तू अगर मुझ को न चाहे तो कोई बात नहीं , किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी !


सुना है काला धन बहुत जल्द भारत आ रहा है। इसमें हर नागरिक की हिस्सा बांट होगी। सबको तीन -तीन लाख मिलेंगे। बिलकुल नगद। लेकिन सिर्फ उनको जिनके बैंक में खाते हैं। पैसा सीधा उनके खाते में ट्रांसफर होगा।
बहुत अच्छी खबर है।
लेकिन इस रकम के बारे में कुछ क्लैरिफिकेशन चाहिए।
१) ये हर खाताधारक को मिलेगी। यानी एक परिवार में चार सदस्य हैं और उनके अलग अलग खाते हैं। चारों को इसका लाभ अलग अलग मिलेगा?
२) एक आदमी के अलग बैंकों में चार खाते हैं तो हर खाते में रकम जायगी। यानी उसके पास १६ लाख हो जायेंगे?
३) ये टैक्स फ्री होगी?
४) सीनियर सिटिज़न को भी विकास में उसके दीर्घकालीन योगदान को देखते हुए कल आये लड़के के बराबर रक़म मिलेगी?
५) महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष मिलेगी?
६) इसमें कोई कोटा सिस्टम भी लागू होगा?
७) गारंटी होगी कि इसे सरकार वापस नहीं लेगी, माननीय न्यायालय के अन्यथा आदेश के बावजूद?
इसके अतिरिक्त भी किसी के मन में कोई संशय है तो कृपया इंगित कर दें।



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