दयानंद पांडेय से जयश्री बसवेश्वर होदाडे की बातचीत
- आप को बचपन में किस नाम से जाना जाता था?
- मुझे दयानंद , इसी नाम से बुलाते थे। बचपन में टिन एज में मैं कविता लिखता था। इस कारण कवि बाबू, कवि भाई नाम से पुकारते थे। पत्रकार हुआ तब से ‘पत्रकार’ कह कर भी बुलाते हैं।
- आप का बचपन किस तरह बीता है।
- बचपन बहुत मजे से बीता है। अम्मा हमारी गाँव में रहती थीं। बड़की माई गोरखपुर शहर में। इया यानि दादी एक दूसरे गांव शिवराजपुर में रहती थीं। मैं पहली कक्षा से शिक्षा के लिए गोरखपुर बड़की माई के साथ रहता था। छुट्टियों में गोरखपुर से बैदौली जाते, या कभी शिवराजपुर जाते। छुट्टियों में ननिहाल जैती गाँव भी जाते। वहाँ से मौसी के गाँव भी जाते। बचपन बड़े लाड़, प्यार से गुजरा है। माँ डाँटती नहीं थी। खुशियों भरा बचपन था। अपनापन, स्नेह मिला। मैंने शादी में दहेज नहीं लिया है। बिना दहेज लिए शादी की है। पारिवारिक जीवन बहुत अच्छा, खुशियों भरा है। झगड़े भी होते हैं तो पत्नी कभी-कभी बोलती नहीं। पर ये झगड़े जो पति-पत्नी के बीच होते हैं, ज्यादा दिन नहीं चलते। दोन तीन दिन में सबकुछ ठीक हो जाता है।
- आपके साहित्य सृजन के लिए आपको प्रेरणा कहाँ से, किस से मिली?
- मैं प्रेमचंद को पढ़ते बड़ा हुआ हूँ। मुझे हजारी प्रसाद द्विवेदी, अज्ञेय, मोहन राकेश, निर्मल वर्मा और मनोहर श्याम जोशी की भाषा बहुत पसंद है। कबीर, तुलसीदास, अमीर खुसरो, दुष्यंत कुमार, फैज़ , रवींद्रनाथ टैगोर आदि सभी महान साहित्यकारों के साहित्य से प्रभावित हूं। मैं मानता हूँ कि ये साहित्यकार ही राजा थे क्यों कि इन्हीं लोगों ने लोगों के दिलों पर राज किया है। मेरी अनुभव भूमि बैदौली गाँव है तथा गोरखपुर , दिल्ली और लखनऊ रचना भूमि है। गोरखपुर में रह कर ही मैंने यथार्थ को विश्लेषणात्मक दृष्टि से समझने का प्रयास किया। यहीं रह कर मैंने आंदोलन से जुड़ कर अपनी राजनीतिक समझ को परिपक्व किया। दिल्ली में अरविंद जी जैसे महान संपादक से परिचय हुआ।
- आप के कहानी, उपन्यासों में उपेक्षित, दलितों एवं पीड़ित मजदूरों और नारियों के प्रति सहानुभूति, प्रेम है तो सेठ, जमींदार, नेता आदि के प्रति द्वेष दिखाई देता है, ऐसा क्यों है?
- लेखक समाज की चेतना के लिए लिखता है। वह समाज को दर्शाना चाहता है कि हम कहाँ हैं। साहित्य समाज का दर्पण है। साहित्यकार अपनी रचनाओं द्वारा समाज को अपने अधिकारों के प्रति सचेत करना चाहता है। द्वेष किसी से नहीं है। जो जैसा है, वह वैसा है। राम कौन है? रावण कौन है? यह सब जानते हैं। मैं जो अनुभव करता हूँ उसे लिखता हूँ। लिखना मेरे लिए लिखना नहीं एक प्रतिबद्धता है। प्रतिबद्धता है पीड़ा को स्वर देने की। चाहे वह खुद की पीड़ा हो या किसी अन्य की पीड़ा हो। गांधी में भी बहुत कमियां थीं पर उनका सत्य, अहिंसा, का पाठ महत्त्वपूर्ण है। लोग केवल जाति, वर्ग ही देखते हैं। यही नहीं देखते की लोग कितना काम करते हैं। जो मैं देखता हूँ, महसूस करता हूँ उसे ही लिखता हूँ।
- आपने देश-विदेश की कहाँ-कहाँ यात्राएँ की हैं?
- घूमना , फिरना, यात्राएँ करना अत्यधिक पसंद है क्यों कि पर्यटन से मन प्रफुल्लित होता है, ज्ञान बढ़ता है। मैंने व्यक्तिगत और सपरिवार यात्राएँ की हैं। जैसे गोहाटी, आसाम, मेघालय, सिक्किम, केरल, हैदराबाद , शिमला, चंडीगढ़ , हिमालय, जम्मू-कश्मीर। मुझे जम्मू कश्मीर विशेष पसंद है। विदेश यात्राओं में पत्रकार प्रतिनिधी मंडल के साथ श्रीलंका गया था और अब उन्हीं के साथ ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया भी जाने वाला था । साहित्य अकादमी’ की ओर से लेखकों के प्रतिनिधी मंडल में चीन जाने की योजना थी। अब सब रद्द हो गया है।
- आपने कौन-सी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया है?
- मैंने रिपोर्टर से एडिटर तक कई पदों पर कई साल , कई जगह काम किया है।
- आप को किस प्रकार का लेखन ज्यादा पसंद है?
- सभी प्रकार का लेखन पसंद है पर ‘उपन्यास’ लिखना मुश्किल है। उपन्यास लिखना साधना है। कविता लिखना भी साधना है। मैं अपने आप को खुश करने के लिए लिखता हूँ।
- अब आप की आगामी रचना किस विषय से संबंधित है?
- लिखना कब शुरू होगा पता नहीं किंतु दो उपन्यास लिखने की योजना बना ली है। लिखने से मुझे अपार आनंद की अनुभूति होती है। एक उत्कृष्ट रचना के सृजन से आत्मसंतुष्टि मिलती है।
- रचनाकार के जीवन की परिस्थितियों और व्यक्तित्व का रचना पर किस हद तक प्रभाव पड़ता है?
- रचनाकार के जीवन की परिस्थितियों का और व्यक्तित्व का रचना पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। रचनाकार अपने अनुभवों को अपनी पीड़ा को अपने लेखनी के माध्यम से वाणी देता है। बिना करूणा के साहित्य-सृजन नहीं हो सकता। गहरे दुख के बिना साहित्य खुलता नहीं, ठेस लगी तो मनुष्य भुलता नहीं। वह दर्द साहित्य की निर्झरी के माध्यम से दुनिया के सामने प्रकट हो ही जाता है।
- आप ने बचपन से ले कर कहानी-लेखन के प्रारंभिक जीवन की चर्चा अकसर की है। उस के बाद की जीवन परिस्थितियाँ, समस्याएँ और संघर्ष कैसे रहे?
- बचपन तो बहुत सुखमय था पर कहते हैं न ‘सब दिन होत न एक समान।’ जीवन में बहुत संघर्ष कराना पड़ा। शिक्षा, नौकरी प्राप्त करने के लिए। और स्वाभिमान से नौकरी में बने रहने के लिए कठिन प्रसंगों का सामना करना पड़ा। आदमी बेरोजगार कैसे होता है, बेरोजगार होने पर क्या भुगतना पड़ा है। इसका अनुभव किया है। दिल्ली में तीन बार और लखनऊ में तीन बार दाल आटे का भाव पता चला। मैं हमेशा सच बोलता हूं। सच लिखता हूं। इस कारण बहुत बार आलोचकों द्वारा विरोध हुआ, मुकदमे दायर हुए। इस प्रकार हमेशा संघर्ष का सामना करना पड़ा है लेकिन मैंने सच का साथ नहीं छोडा़ न छोडूंगा। संघर्ष ही मेरा जीवन है। ये संघर्ष ही है जिसने मेरा हौसला बुलंद किया और लिखने की प्रेरणा दी।
- ऐसा माना जाता है कि ‘सफल व्यक्ति के पीछे उस की अर्धांगिनी , उस के सफलता का आधार बनी होती हैं।’ आपकी पत्नी ने आपके जीवन और रचनाकार्य को किस तरह प्रभावित किया?
- मेरी पत्नी, मेरी मेरे परिवार का आधार है। उनका जीवन में अच्छा सहयोग है। उन्हों ने जीवन भर हर सुख-दुख में साथ निभाया है। मेरी पत्नी मेरी कहानी की पाठक हैं , पर उन्हें साहित्य में बहुत रूचि नहीं है।
- कहानियों के माध्यम से क्या संदेश देना चाहते हैं?
- कहानी के पात्र, उनकी मुश्किलें , संघर्ष, पीड़ा को कहानी के माध्यम से उजागर करना चाहता हूं । आज मनुष्य के जीवन में पग-पग पर संघर्ष है। हमें सच्चाई से, ईमानदारी से जीना है तो कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। मैं अपनी कहानी, उपन्यास के पात्रों के दुख को सामने रखना चाहता हूं । जिस से लोग सीख जाएं। मेरे लेखन का यही मकसद है कि लोगों की तकलीफ सामने आए। इतिहास भी इस लिए लिखा जाता है।
- आपके आदर्श पुरूष कौन हैं?
- तमाम अंतर्विरोध के बावजूद महात्मा गांधी मेरे आदर्श पुरूष हैं।
- अपने जीवन में आप आदर्श नारी किसे मानते हैं।
- मेरी अम्मा मेरे जीवन की ‘आदर्श’ नारी है। उन का जीवन मेरे लिए सदैव प्रेरणादायी रहेगा। अम्मा ही मेरी ‘मार्गदर्शक’ हैं। अम्मा ने जीवन में बहुत मेहनत की है, बहुत कष्ट उठाए हैं।
- आप एक स्पष्टवादी व्यक्ति हैं, इसके चलते आपको हानि तो नहीं पहुंची ?
- खूब हानि पहुंची। मैं चोर को चोर कहता हूं । सामने कहता हूं । स्पष्टवादी हूं इस लिए लोगों को मेरा स्पष्ट कहना चुभता है। बहुत बार कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। हानि तो होती है। सच कड़वा होता है।यह तो मैं जानता था लेकिन सच बोलने या लिखने का परिणाम कड़वा होता है। यह मैंने आलोचकों से जाना। बहुत विरोध हुआ पर मैं इन सब से हतोत्साहित नहीं हुआ। लेखन मेरी प्राण, ऊर्जा है। उस के बिना मैं असहज, घुटता हुआ महसूस करता हूँ।

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