अनुवाद : डाक्टर ओमप्रकाश सिंह
पेशे से चिकित्सक और अंजोरिया के संपादक डाक्टर ओमप्रकाश सिंह न सिर्फ़ भोजपुरी के समर्पित विद्वान हैं बल्कि भोजपुरी को ही ओढ़ते-बिछाते हैं। भोजपुरी के ऐसे मूर्धन्य विद्वान द्वारा वर्ष 2012 में प्रकाशित बांसगांव की मुनमुन का अविकल अनुवाद अब भोजपुरी में किया जाना मेरे लिए सौभाग्य का विषय है। डाक्टर ओमप्रकाश सिंह ने कुछ साल पहले लोक कवि अब गाते नहीं का अनुवाद भी भोजपुरी में किया था। पाठकों द्वारा बहुत पसंद किया गया था। अब बांसगांव की मुनमुन का अनुवाद भी आप को पसंद आएगा , ऐसा विश्वास है। अंजोरिया पर बांसगांव की मुनमुन के भोजपुरी अनुवाद का धारावाहिक प्रकाशन हो चुका है। अब सरोकारनामा पर बांसगांव की मुनमुन का भोजपुरी अनुवाद का प्रकाशन पुलकित कर रहा है।
(दयानंद पांडेय के बहुचर्चित उपन्यास बांसगांव की मुनमुन का भोजपुरी अनुवाद)
‘भतार छोड़ि देब बाकिर नौकरी ना. ’बांसगांव के मुनमुन के ई आवाज आजु गांव आ क़स्बने में ना, बलुक सगरी निम्न मध्यवर्गीय परिवारन में बदलत औरत के एगो नया साँच हो गइल बा. पति परमेश्वर के छवि अब खंडित हो गइल बा. अइसन बदकत, खदबदात अउर बदलत औरत के क़स्बा भा गांव के मरद अबहीं बरदाश्त नइखन कर पावत. ओकर आपन सगा भाईओ ना. पइसा अउर सफलता अब परिवारो में राक्षस बन गइल बा. साँप बन चुकल सफलता अब कइसे एगो परिवार के डंसत जात बावे, 'बांसगांव के मुनमुन' के एगो धाह इहो बा कि लोग अकेला होत जा रहल बा. अपना-अपना चक्रव्यूह में हर केहु अभिमन्यु हो गइल बा. लालच कइसे भाईयन का बीच बाप के लाशो के आरी से काट के बांटे वाला लोगन के निर्लज्जता अपना हद ले जा चुकल बावे. 'बांसगांव के मुनमुन' में ई दंशो खदबदात मिलत बा. जज, अफसर, बैंक मैनेजर अउऱ एन.आर.आई. जइसन चार बेटन के महतारी-बाप एगो तहसीलनुमा क़स्बा में कवना तरह उपेक्षित, अभावग्रस्त अउर तनाव भरल जीवन जिए ला अभिशप्त बाड़ें, एह लाचारगी के इबारत पूरा उपन्यास में अइसहीं नइखे रचि-बसि गइल. 'बांसगांव के मुनमुन' का बहाने भारतीय क़स्बन में कुलबुलात, खदबदात एगो नए तरह के जिनिगी, एगो नए तरह के समाज हमनी का सोझा उजियार होखत बा. बहुते तफ़सील में ना जाके अंजुम रहबर के एगो शेर में बताईं त, ‘आइने पे इल्ज़ाम लगाना फिजूल है, सच मान लीजिए चेहरे पे धूल है. ’'बांसगांव के मुनमुन' इहे बतावत बावे.
बहुते टूटि गइल रहलन मुनक्का राय. पांच गो बेटा आ तीन गो बेटियन वाला एह बाप का जिनिगी में पहिलहूं कई एक मोड़ आइल रहल, परेशानियन आ झंझटन के अनेके घाव, कई गरमी बरसात आ चक्रवात ऊ झेल चुकल रहलें, बाकिर कबो टूटल ना रहलें. बाकिर आज त ऊ टूटि गइल रहलन. उनुकर छोटका बेटा राहुल बोलत रहल, ‘अइसना माई बाप के त चौराहा पर खड़ा क के गोली मार देबे के चाहीं.’ एह वाक्य में ओकर ज़ोर बाप पर अधिका रहल. सतहत्तर-अठहत्तर साल का उमिर में का इहे सुनल अब बाक़ी रह गइल रहुवे? ऊ अपना दुआर पर ठाढ़ सोचत रहलन आ दरवाज़ा पर लागल अपने नाम के नेम प्लेट घूरत रहलें; 'मुनक्का राय, एडवोकेट'! ग़नीमत अतने रहुवे कि बेटा घर का अङने में तड़कत रहुवे आ ऊ बाहर दुआर पर चल आइल रहलन. बेटा में जोशो बा, जवानिओ आ पइसा के गुरूरो. एनआरआई हवे. इहे सोचि के ऊ ओकरा से अझूराए भा ओकरा के कुछ कहला का बजाय अङना से निकल के दुआर पर आ गइलन. बेटा राहुल चिग्घाड़त रहल, ‘एह आदमी के इहे पलायनवादिता पूरा परिवार के ले डूबल.’ ऊ चिचियात रहल, ‘ई आदमी सीधा कवनो बात के फे़से ना कर सके. बात के टाल देबे आ घरो का मसलन पर कचहरी का तरह तारीख़ ले लीहल एह आदमी के फ़ितरत हो गइल बा.’
ज़हर के घूंट पी के रहि गइलन, मुनक्का राय. बाकिर चुपे रहलन.
बेटा राहुल ज़िदियाइल रहल कि बहिन के विदाई अबहीं आ एही बेरा हो जाए के चाहीं. आ मुनक्का राय के राय रहल कि, ‘बेटी के एह तरह मर जाएला ऊ ओकरा के ओकरा ससुराल ना भेज सकसु. ’
‘त एहिजे अपना छाती पर बइठा के ओकरा के आवारगी करे ला छुट्टा छोड़ देबऽ? रंडी बनइबऽ?’ बेटा बोलत रहल, ‘सगरी बांसगांव में एकरा आवारगी के चरचा बा. अतना कि केहू के दुकान, केहू का दुआरी पर बइठल मुश्किल हो गइल बा. इहां ले कि अपनो दरवाज़ा पर बइठे में लाज लागत बा.’
बाकिर मुनक्का राय अड़ गइल बाड़न त अड़ गइल बाड़न. बेटा के बता दीहलन कि, ‘बांसगांव में हम रहीलें तूं ना. हमरा कवनो दिक्क़त नइखे होखत. ना अपना दरवाज़ा पर बइठे में, ना केहू दोसरा के दरवाजा भा दुकान पर. कचहरी में हम रोज़ बइठबे करिलें.’ आ कि, ‘हमार बेटी रंडी ना हीय, आवारा ना हीय.’
‘रउरा बुजुर्गियत के, रउरा वकालत के लोग लिहाज़ करेला, एह चलते रउरा से केहू कुछ बोले ना. बाकिर पीठ पीछे सभे बतियात बा.’ कहत ऊ बहिन के झोंटा खींचत कोठरी में से ले के बाहर अङना आ जात बा, ‘अब ई एहिजा ना रही.’ महतारी रोकत बाड़ीं त ऊ महतारिओ के झटक देत बा, ‘एकर कपड़ा-लत्ता, गहना-गुड़िया सब बान्हऽ. एकरा के हम अबहिंए एकरा ससुरारी छोड़ के आवत बानी.’
‘हम ना जाएब भइया, अब बस करीं.’ ऊ जोर लगा के भाई से आपन झोंटा छोड़ा लेत बिया. पलटि के बोलतिया, ‘हमरा मरे के नइखे, जिए के बा. आ अपना तरीका से.’
‘त का एहिला आठ-दस लाख रुपिया खरचि के तोर शादी कइल रहुवे?’
‘रउरा लोग हमार शादी ना करवले रहीं आठ-दस लाख ख़रचा करि के.’ ऊ बोलल, ‘आपन बोझ उतारि के हमार जिनिगी बरबाद क दिहनी सभे.’
‘का बोलत बाड़े?’
‘ठीक बोलत बानी.’ ऊ लपकि के एगो फ़ोटो अलबम उठा के देखावत बोलल, ‘देखीं एह घर के एगो दामाद ई हउवन, दोसरका दामाद ई आ ई रहलन तिसरका! का इहो एह घर के दामाद होखे लायक़ रहलन? रउरा देख लीं धेयान से अपना तीनों बहनोइयन के, आ तब कुछ बोलीं.’
‘तोर ई अनाप शनाप हमरा नइखे सुने के.’ ऊ बोलल, ‘तूं त बस चल.’
ऊ अङना में से झटका से उठल आ अपना कोठरी में चलि गइल. भीतर से दरवाज़ा धड़ाम से बंद करत बोललसि, ‘भइया अब रउरा जाईं एहिजा से, हम कतहीं ना जाएब.’
‘मुनमुन सुन त!’ ऊ दरवाज़ा पीटत दोहरवलसि, ‘सुन त!’
बाकिर मुनमुन ना त सुनलसि. ना कुछ बोललसि.
‘त तूं एहिजा से जइबू ना?’ राहुल फेरु आपन बात दोहरवलसि. बाकिर मुनमुन तबो कुछ ना बोललसि. थोड़िका देर चुप रहि के राहुल फेरु बोलल, ‘बाबूजी के त नाक रहल ना. तोरा में आपन नाक उहाँ के कटवा लिहले बानी. बाकिर सोच मुनमुन कि तोरा भाइयन के नाक अबहीं बा.’
मुनमुन तबहिंयो चुपे रहल.
‘अतना बड़-बड़ जज, अफ़सर, बैंक मैनेजर अउर एनआरआई के बहिन एह तरहा आवारा फिरे ई हमनी भाइयन के मंज़ूर नइखे.’ राहुल बोलत रहल, ‘मत कटवाव हमनी भाइयन के नाक!’
मुनमुन चुपाइले रहल.
‘लऽ. त जब तूं नइखू जात त हमहीं जात बानी.’ राहुल बोललसि, ‘माई तेहूं सुनि ले अब हम फेर कबो लवटि के बांसगांव ना आएब.’
माईओ चुपाइले रहली.
‘तोहरा लोग के चिता के आगो देबे ना आएब.’ राहुल जइसे चिचियात सरापत रहल अपना माई के. आ माई बाबूजी के बिना गोड़ लगले ऊ घर से बहरि आइल आ बाहर खड़ा कार में बइठि के छोड़ गइल बांसगांव. एकरा पहिले त ना बाकिर अब मुनमुन राय एगो ख़बर बन गइल रहलन. ख़बर पसरल रहुवे बांसगांव के सड़कन पर. गलियारन, चौराहन से चौबारन आ बाज़ारन ले.
मुनमुन जब जनमल रहुवे तब इहे राहुल ओकरा के गोदी में ले के खियावत-पुचकारत घूमल करे आ गावल करे – 'मेरे घर आई एक नन्हीं परी!' आ राहुले काहे, बड़का भइया रमेश, मझिला भइया धीरज आ छोटका भइया तरुणो गावसु. माई-बाबूजी त ख़ैर भाव विभोर होके गावसु – 'मेरे घर आई एक नन्हीं परी! साथ में बड़की दीदी विनीता अउर रीतो सुर में सुर मिलावल करसु; 'चांदनी के हसीन रथ पे सवार मेरे घर आई एक नन्हीं परी!' सचमुचे पूरा घर चांदनी में नहा गइल रहुवे. घर के लोग जइसे समृद्धि के सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़े लागल रहुवे. ओही दिने एगो फुआ आइल रहली. माई से कहे लगली, ‘ई पेट पोंछनी त बड़ क़िस्मत वाली बिया. आवते देखऽ रमेश के हाई स्कूल फ़र्स्ट डिविज़न पास करवा दिहलसि. बाप के कचहरी के ढिमिलाइल प्रैक्टिस फेर से चमका दिहलसि.’
‘ई त बा दीदी!’ मुनमुन के माई कहसु. मुनमुन नाम के ई नन्हकी परी जइसे-जइसे बड़ होत गइल, परिवार के खुशियो बड़ होत गइली सँ. एही बीच घर में पट्टीदारी के नागफनिओ उगे लागल. पट्टीदारी के ई नागफनिए मुनमुन के घर परिवार के आजु एह राह पर ला पटकले रहुवे.
मुनक्का राय के एगो चचेरा बड़ भाई रहलन गिरधारी राय. गिरधारी आ मुनक्का के एक समय ख़ूब पटत रहल. बचपन में त बहुते. संयुक्त परिवार रहुवे. मुनक्का राय के बाबूजी दू भाई रहलन. बड़का भाई रामबली राय ओह घरी वकील रहलें आ छोटका भाई श्यामबली राय प्राइमरी स्कूल में मुदर्रिस. माने कि मास्टर. दुनु भाइयन में ख़ूब बने. बड़ भाई ख़ूब स्नेह करे त छोटका भाई ख़ूब आदर. मुनक्का के जनमला का कुछ दिन बादे मुनक्का के माई टी.बी. के बीमारी से चल बसली. त बड़ भाई रामबली छोटका भाई श्यामबली के दोसरकी शादी करवा दिहलन. अब मुनक्का मयभावत महतारी का हाथे पड़ गइलन. ममत्व अउर दुलार त ऊ ना मिला उनुका बाकिर खाए पिए ला मयभावत महतारी कबो उनुका के तरसवली ना. एही बीच रामबली राय के वकालत चल पड़ल रहुवे. आ सगरी तहसील में उनुका मुक़ाबले केहू दोसर वकील खड़ा ना हो पावे. नाम अउर नामा दुनु उनुका पर बरसत रहुवे. अतना कि अब ऊ गांव में खेत पर खेत ख़रीदे लागल रहलें, पक्का मकान बनवावत रहलें. बाकिर सब कुछ संयुक्त. मतलब छोटका भाई श्यामबली के घर मकान सब में बराबरी के हिस्सा. एह एका के देखि गांव में ईर्ष्या उपजहीं के रहल. बहुत लगावे-बझावे के कोशिशो भइल बाकिर दुनु भाइयन में जियते जिनिगी कबो कवनो दरार ना पड़ल. लेकिन परिवार बढ़ल, लईका बढ़लें, लईकनो के लईका बढ़लें त त थोड़ बहुत रगड़ो-झगड़ा बढ़ल. त रामबली राय एडवोकेट अकलमंदी से काम लिहलन. एगो बड़हन मकान बांसगांव तहसीलो में बनवा लिहलन. आ गँवे-गँवे अपना बीवी बच्चा आ पोता-पोतियन के बांसेगांव में शिफ़्ट करा दिहलन. बेर-बेर गांवे आवहूं-जाए से फ़ुरसत हो गइल. आ गांव के मुसल्लम राजपाट, खेती बारी सब कुछ छोटका भाई के सुपुर्द कर दिहलें.
अब गांव के पट्टीदारी में कवनो शादी-बियाह होखे तबहिंए रामबली राय गांव आवसु. ना ता बांसेगांव में डेरा जमवले राखसु. एही बीच ऊ शहरो में एगो तिमंज़िला मकान बनवा लिहलें. ई सोच के कि लईकन के पढ़ावे लिखावे में आसानी रही. उनुका ई बड़हल साध रहल कि उनुकर कवनो बेटो वकील बन के उनुकर तख़ता संभाल लेव. बाकिर उनुकर दुनू बेटा उनुकर साध पूरा ना होखे दिहलें. बड़का बेटा गिरधारी राय के त ऊ बड़ा अरमान से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी भेजलें. पढ़े ला. बाकिर गिरधारी राय दस-बारह बरीस बिताइओ के बमुश्किल बी.ए. त क लिहलें बाकिर ओकरा बाद एल.एल.बी. कंपलीट ना कर पवलन. लवटि अइलन बांसगांव. कबो कवनो नौकरी ना कइलन आ भर जिनिगी बाप के कमाई उड़ावत ऐश करत रहलन. छोटका बेटा गंगा राय त कई साल लगाईओ के इण्टर पास ना कर पवलसि. बाकिर बाप के पइसा से व्यापार करे लागल. किसिम-किसिम के व्यापार में घाटा उठावत उहो बाप के कमाई उड़ावल रहल. अब रामबली राय के दुनु बेटा भलहीं एल.एल.बी. ना कर पवलें बाकिर उनुका छोटका भाई श्यामबली राय के बेटा मुनक्का राय एम.ए. ओ कइलन आ एल.एल.बी. ओ. भलहीं एक-एक क्लास में दू-दू साल मरजाद रहलन त का भइल. रामबली राय के सपना त पूरा क दिहलन. आखि़र कचहरी में उनुकर तख़ता संभाले वाला उनुकर कवनो वारिस त मिलल. भतीजा का साथे लाग के ऊ अपना वकालत के परचम अउर ऊंचा फहरा दिहलन.
गिरधारी राय के ई सब फूटले आंखि ना सुहावे. हार मानिके ऊ राजनीति में हाथ पैर मारे के कोशिश कइलन. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ऊ एल.एल.बी. भलहीं पास ना कर पवलन बाकिर उनुका साथे पढ़ल कुछ लोग अफ़सर आ नेता त होइए गइल रहुवे. फेर तब ले ज़माना आ लोग ना त आजु अतना बेशर्म हो पावल रहलें ना एहसान फ़रामोश! गिरधारी राय के उनुकर साथी अफ़सरो भाव दिहलें आ राजनीतिक नेतो लोग. बाकिर शायद गिरधारी राय के नसीब में सफलता ना लिखल रहुवे. राजनीतिओ में ऊ लगातार झटका खात रहलें. ज़िला लेबिल के कांग्रेस कमेटिओ में उनुका जगहा ना मिल पावल. ऊ लोगन के खिया-पिया के खादी के सिल्क, मटका भा कटिया सिल्क के कुरता जाकिट पहिर के नेता जी वाला वेशे भूषा धरि के नेतागिरी करे ले रह गइलन. हालांकि टोपिओ ऊ बड़ सलीका से कलफ़ लगावल पहिनत रहलन बाकिर बात में ऊ वज़न ना रख पावसु. विचारो से दरिद्र रहलन से भाषण आ बातचीतो के स्तर पर ऊ कटा जात रहलन. तीन तिकड़मो पारिवारिके स्तर ले कर पावत रहलन. धीरज त बिलकुले ना रहल आ बात-बात पर जिज्ञासा भाव में मुंह बा देसु. से वेशभूषो के असर उतर जाव. हार मान के ऊ ग्राम प्रधानी के चुनाव में कूदलन. ई कहत कि ग्रास रूट से शुरू कइल राजनीति अधिका प्रभावी होखेला. बाकिर एहिजो उनुका हिस्सा हारे आइल. पिता के रसूख़ो कामे ना आइल. गिरधारी राय से अब आपन हार हज़म ना हो पावत रहुवे.
ओने मुनक्का राय के तख़ता अब रामबली राय से अलगा हो गइल रहुवे. अब ऊ जूनियर ना सीनियर वकील हो चलल रहलन. चकबंदी के ज़माना रहल. मुक़दमन के बाढ़ रहुवे. अतना कि वकील कम पड़त रहलें. बाकिर मुनक्का राय किहाँ जइसे पइसा क बरखी होत रहुवे. मूसलाधार. गिरधारी राय मन मसोस के रह जासु. ई सोचि के कि उनुके बाप का पइसा से पढ़ल ई मुनक्का मलाई काटत बा, नाम-नामा दुनु कमा रहल बा जबकि उनुकर हालत धोबी के कुकुर वाला हो गइल बा. ना घर के रहि गइल बाड़न ऊ, ना घाट के. अवसाद के अइसने कमज़ोर लमहन में ऊ तय कइलन कि ऊ भलहीं खुद वकील ना बन पवलन त का. अब अपना बेटा के ज़रूरे वकील बनइहें. जेहसे कि उनुका बाप के तख़ता के वारिस कम से कम ई मुनक्का राय त नाहिए बने. रामबली राय के बेटा गिरधारी राय के इहे दमित कुंठा हंसत-खेलत परिवार के दरकावे का बुनियाद के पहिलका बीज, पहिलका पत्थर बन गइल.
गिरधारी राय के लड़िका सभ अबहीं छोटहने रहलें बाकिर छोटका भाई अब सयान हो गइल रहुवे. इंटरमीडिएट के इम्तिहान भलही पास ना कर पवलसि ऊ बाकिर पिता का रसूख़ क बल ओकर बिआह एगो भल परिवार में तय हो गइल. तब के दिना शादी में बारात तीन दिन के होखल करे. पहिला दिने बिआह, दोसरका दिने मरजाद, आ तिसरका दिने विदाई होखल करे. रामबली राय क छोटका बेटा गंगा रायो के बिआह तीन दिने वाला रहल. मरजाद का दिन के दृश्य गांव के पुरनियन का आंख आ मन में आजुओ जस के तस बसल बा. लोग जब-तब आजुओ ओह बिआह के ज़िक्र चला बइठेलें अकसरहां. बारात के तंबू (शामियाना) बहुते बड़हन रहल. आम के बड़हन आ घन बगइचा में ऊ शामियाना गड़ाइल रहुवे. ओकरा पछिमारा बीचो-बीच कालीन आ ओहपर मसनद लगवले रामबली राय बइठल रहलें. सामने संदूक़ वगैरह सजावल रहल, जइसन कि ओह घरी के बारातन के चलन रहल. रामबली राय दुलहा का साथे अइसे अकड़ के बइठल रहलें जइसे कबो अकबर आपन दरबार लगा के बइठत होखी. आ जब घर के मुखिया कवनो शहंशाह का तरह पेश आवत होखसु त राजकुमार लोग भला कइसे पीछे रहि जासु?
गिरधारी राय शमियाना के दखिनी कोना धइले रहलन त मुनक्का राय उत्तरी कोना. दुनू नहा धो के मूंगा सिल्क क कुरता पहिरले अपना-अपना तख़त पर मसनद लगा-लगा के विराजमान हो गइलें. दुनू का साथे आस-पास बिछावल खटियन पर उनुकर दरबारिओ बइठ गइलें. अब बारात से कवनो रिश्तेदार विदा मांगे जाव भा बारात में आवे त रामबली राय के गोड़ छू के पारा-पारी एहू दुनू जने का लगे अभिवादन करे जाइल करे. अगर केहू पहिले गिरधारी राय का लगे आवे त ऊ बइठले-बइठल मूड़ी नवावत हाथ जोड़ के पूछसु, ‘अच्छा त जात बानीं? प्रणाम!’ आ जे कहीं जाए वाला रामबली राय का बाद पहिले मुनक्का राय का लगे चल जाव आ ओकरा बाद गिरधारी राय का लगे आवे त उनुक भौंह तना जाव. बोले के लहजा बदलि जाव. बलुक कहीं त तीख हो जाव. बहुते लापरवाही से कहसु, ‘जात बानीं ? प्रणाम !’ आ ऊ प्रणाम अइसन बोलसु जइसे जाए वाला के ऊ प्रणाम ना कइले होखसु, बलुक जूता मरले होखसु. ठीक अइसने दृश्य मुनक्को राय ओरि घटल करे. उनुको तरफ जे केहू पहिले आवे त ऊ प्रणाम अइसन अंदाज में करसु कि जइसे प्रणाम ना करत होखसु फूलन के बरखा करत होखसु. आ जे कहीं केहू पहिले गिरधारी राय ओर से हो के उनुका लगे चहुँपे त प्रणाम अइसे करसु मानो भाला घोंपत होखसु. बाकिर ई दृश्य ढेर देर ले ना चलल.
कुछ मुंहलगा लोग मुनक्का राय का लगे बिटोरा गइल रहलें आ उनुका से मुग़ले आज़म फिलिम के डायलाग्स सुनावे के निहोरा करे लगलें. थोड़ ना-नुकुर का बाद उहो शुरु क दिहलें डायलाग्स सुनावल. कबो ऊ सलीम बन जासु त कबो अकबर त कबो अनारकली के हिस्सा के ब्यौरा बतावे लागसु. आ फेरु ‘सलीम तुझे मरने नहीं देगा और अनारकली हम तुम्हें जीने नहीं देंगे’ सुनावे लागसु. बाकिर जल्दिए ऊ डायलागबाज़ी बंद कर दिहलन. फेरु तरह-तरह के चरचा आ क़यास लगावल शुरू हो गइल मुनक्का राय के ले के.
मुनक्का राय के कई गो बाति जवन कबो उनुका बखरा के अवगुण कहात रहुवे, अब उनुकर गुण बनिके ओह शेर के फलितार्थ करत रहल कि, ‘जिन के आंगन में अमीरी का शजर लगता है/उन का हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है.’ मुनक्का राय अब एहिजा मुनक्का बाबू हो चलल रहलें. लोग बतियात रहल कि अइसहीं थोड़े, मुनक्का बाबू जब छोटे रहलन, मिडिल में पढ़त रहलन तबे से रात-रात भर घर से भागल रहसु, नौटंकी देखे ख़ातिर. आ जब शहर में पढ़े गइलन त भलहीं एक-एक क्लास में दू साल, तीन साल लाग जाव बाकिर फिलिम त हमेशा ऊ फर्स्ट-डे फर्स्ट-शो ए देखल करसु. आ ई मुग़ले आज़म के त ऊ लगातार तीन महीना बिना नागा रोजे देखलन. रिकार्डे रहल भइया. वइसहीं थोड़े आजुओ उनुका ओकर एक-एक डायलाग याद बा. एक बेर त भइया इनकर साला शहर गइल अपना बीवी के इलाज करवावे. डाक्टर-वाक्टर के दिखवलसि. दवाई ले आवे के बाति भइल त मुनक्का बाबू के रुपिया दिहलन ई सोचि के कि पढ़ल-लिखल हउवें, दुकानदार घपला ना कर पाई. भेजलन मुनक्का बाबू के दवाई ले आवे. बाकिर मुनक्का बाबू त रुपिया लिहलन आ चलि गइलन मुग़ले आज़म देखे. अइसन नशा रहल मुनक्का बाबू के मुग़ले आज़म क. साला इंतज़ारे करत रह गइलन बीवी के दवाई के. खैनी ठोंकत.
मुनक्का बाबू के मुग़ले आज़म गाथा के तंद्रा तब टूटल जब एगो नवही लईका टोकलसि आ मुनक्का बाबू से पूछलसि कि, ‘अइसन का रहल मुग़ले आज़म में जे तीन महीना लगातार देखे जात रहलऽ ?’ पहिले त ऊ ओह नवही के बात अनसुना कइलन बाकिर ऊ दू तीन बेर इहे सवाल दोहरवलसि त ऊ खिझिया गइलन. बाकिर गँवही से बोललन, ‘अरे मूरख सिरिफ देखहीं ना, समुझे जाता रहनी ओकर डायलाग्स! हिंदी में त रहल ना. उर्दू अउर फ़ारसी में रहल डायलाग्स.’ फेरु बइठले-बइठल बइठे के दिशा बदललन, पदलन आ फेरु ताली पीटत बोललन, ‘त डायलाग्स समुझे जात रहनी. आ जब डायलाग्स बुझाए लागल त ओहमें मुहब्बत के जवन जादू, जवन नशा रहल आ मुहब्बत के जवन इंक़लाब रहल ओकरा में, ऊ मज़ा देबे लागल.’ कहत ऊ उपर आम के पेड़ निहारे लगलन. फेरु मुग़ले आज़मे के एगो गाना गँवे से बुदबुदइलन, ‘पायल के ग़मों का इल्म नहीं, झंकार की बातें करते हैं. ’
एने मुनक्का बाबू के कैंप में मुग़ले आज़म आ मुहब्बत के दास्तान ख़तमो ना भइल रहल कि ओने गिरधारी राय का कैंप में तू-तड़ाक शुरू हो गइल रहुवे. बुझाइल कि मारपीट हो जाई. गिरधारी राय फुल वैल्यूम में आग बबूला रहल, ‘बताईं ई दू कौड़ी के आदमी के औक़ात बा जे हमरा के झूठा कहे!’
‘झूठ?’ ऊ आदमी चिल्लाइल, ‘सरासर झूठ बोलत बानीं रउआ. जवना के सफ़ेद झूठ कहल जाला.’
‘देखीं फेरु… फेरु हमरा के झूठा कहत बा.’ गिरधारी राय अब लगभग ओह आदमी के पीट दीहल चाहत रहलन. ऊ आदमी कवनो डिग्री कालेज में लेक्चरर रहल आ घराती पक्ष का ओर से रहुवे. बरात में बस अइसहीं औपचारिक रूप से पूछे आइल रहल कि, ‘बारातियन के कवनो दिक्क़त-विक्क़त त नइखे?’ फेरु बइठ गइल गपियावे ला. भेंटा गइलन गिरधारी राय. पहिले त सब कुछ औपचारिके रहल. बाकिर जब गिरधारी राय देखलन कि ई डिग्री कालेज के मास्टर उनुका पर कुछ अधिके रौब गांठत बा त ऊ बहुते सुघराई से ओकरा के बतवलन कि उहो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ल हउवें. बाते का रौ में पहिले ऊ झोंकलन कि, ‘ऊहो एल.एल.बी हउवन.’
‘त वकालत कहां करीलें?’ ऊ पूछलन.
‘वकालत?’ गिरधारी राय बतवलन कि, ‘समय कहां बा वकालत करे के?’
‘तब अउर का करीलें ?’ लेक्चरर के उत्सुकुता बढ़ गइल रहल.
‘घर के ज़िम्मेदारी बाड़ी सँ. राजनीति के व्यस्तता बा.’ फेरु एही रौ में ऊ अउरी झोंक दिहलन कि, ‘पी.सी.सी. के मेंबरो हईं.’
‘पी.सी.सी.?’
‘प्रदेश कांग्रेस कमेटी.’ गिरधारी राय ओकरा के रौब में लीहल चहलन, ‘अतनो ना जानीं मास्टर साहब!’
‘हम कवनो प्राइमरी स्कूल के मास्टर ना हईं , डिग्री कालेज के लेक्चरर हईं. ’ तकलिफाह होखत ऊ बोलल.
‘हँ-हँ, उहे-उहे. जवने होखे.’ गिरधारी राय उनुका के बातचीत के निचला पायदाने पर रखलन.
‘मगर बइठल ठाले पी.सी.सी. के मेंबर होखल त अतना आसान ना होखे राय साहब!’ ऊ अपना राजनीतिक समुझ अउर सूचना के तफ़सील में जात कहलन.
‘काहें आसान नइखे?’ गिरधारी राय बोललन, ‘रउआ मालूम बा हेमवती नंदन बहुगुणा अउऱ नारायण दत्त तिवारी जइसन नेता लोग हमार क्लासफे़लो रहल बा?’
‘अब राय साहब रउरा कुछ अधिके बोलत बानी.’
‘का ?’ गिरधारी राय बमकलन.
‘रउरा सरासर झूठ बोलत बानी.’ ऊ लेक्चररो भड़क गइलन.
‘तोहार ई हिम्मत कि हमरा के झूठा बतावत बाड़ ?’
‘हम बतावत नइखीं.’ ऊ अउरी भड़कलन, ‘रउरा सरासर झूठ बोलत बानी आ बदतमीज़िओ करत बानी.’
‘अब तूं चुपा जा आ फूटऽ एहिजा से.’ गिरधारी राय चिल्लइलन.
भीड़ बिटोरा चुकल रही एह चिचिआहट से. सगरी बराती जुट गइलें. कुछ अउरी घरातिओ आ गइलें. मामिला बढ़त देख बारात में आइल एगो वकील खरे साहब बीच बचाव कइलन. गिरधारी राय आ ओह लेक्चरर के बीच क दूरी बढ़वलन आ गते से पूछलन ओह लेक्चरर से कि, ‘आखि़र बाति का बा?’
‘बाति ई बा कि ई दू कौड़ी के मास्टर हमरा के झूठा बोलत बा.’ गिरधारी राय बीचे में कूद पड़लन.
‘अब रउरा बताईं कि काहें इनका के झूठा कहऽतानी?’ हाथ जोड़ के खरे साहब ओह लेक्चरर साहब से पूछलन.
‘बताईं, ई कहत बाड़न कि हेमवती नंदन बहुगुणा अउऱ नारायण दत्त तिवारी दुनू इनकर क्लासफे़लो रहलन.’
‘ठीक कहत बानी.’ गिरधारी राय किचकिचइलें.
‘का एह सभ का तरह हमरो के रउरा जाहिले बूझत बानी?’ लेक्चरर डपटल, ‘ई संभवे नइखे. दुनू के उमिर के फ़ासला रउरा मालूमो बा ? नाहिओ त दस साल से अधिका के गैप होखी. आ ई कहत बाड़न कि दुनू इनकर क्लसाफ़ेलो रहलें. ई भला कइसे संभव बा?’
‘हम समुझ गइनी, हम बूझ गइनी.’ खरे साहब दुनू हाथ जोड़त ओह लेक्चरर से कहलन, ‘देखीं राउरो दुविधा सही बा, आ इनकरो कहनाम सही बा.’
‘मतलब?’ लेक्चरर अचकचइलन, ‘दुनू कइसे सही हो सकीलें?’
‘बानीं नू ?’ खरे साहब हाथ जोड़त कहलन, ‘देखीं गिरधारी राय जी जब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी गइनी त बहुगुणा जी इनिकर क्लासफे़लो रहलें. बहुगुणा जी पढ़ के चल गइलें बाकिर गिरधारी राय जी पढ़ते रह गइलीं. पढ़ते रह गइलें. पढ़तहीं रहलन कि नारायणो दत्त तिवारी जी पढ़े आ गइलन. तब नारायणो दत्त तिवारी इनिकर क्लासफे़लो हो गइलन !’
‘फेरु नारायणो दत्त तिवारिओ पढ़िके चल गइलन आ ई पढ़ते रहलन.’ लेक्चरर बाति पूरा करत मुंह गोल क के मुसुकात कहलन, ‘त ई बाति बा !’
‘तब?’ खरे साहब जइसे समाधान के क़िला जीतत कहलन, ‘मतलब ई कि गिरधारी राय जी झूठ नइखीं बोलत.’ फेरु ऊ तनिका रुक के अंगरेज़ी में उनुका से पूछलन, ‘इज़ इट क्लीयर?’
‘एब्सल्यूटली क्लीयर!’ लेक्चरर मुसुकात बोललन, ‘इनिका सच पर त केहू चाहे त रिसर्च पेपर तइयार कर सकेला.’
‘मतलब गिरधारी चाचा फ़ुल फ़ेलियर हईं !’ एगो नवही टिहिकल.
‘भाग सार एहिजा से !’ खरे साहब नवही के भगवलन.
बाद में मुनक्का बाबू एह पूरा प्रसंग के फुल मज़ा लिहलें. आ गिरधारी राय बहुते सूंघलें कि कहीं एह सब का पीछे मुनक्का के साज़िश त ना रहुवे ? काहें कि उनुका लागत रहुवे कि एह पूरा प्रसंग में उनुकर अपमान हो गइल बा. बाद के दिनन में ऊ मुनक्का बाबू आ उनुका परिवार के कई पारिवारिक खु़राफ़ातन से तंग क दीहलन. फेरु त उनुकर खु़राफ़ात गांवो का स्तर पर शुरू हो गइल. गांव हर साल बाढ़ में डूब जात रहुवे. बंधा बनावे के योजना बनल, बजट आइल. बाकिर बंधा ना बने के रहल ना बनल. जेकर-जेकर खेत बंधा में पड़त रहुवे ओहमें से कुछ लोगन के ऊ अइसे कनविंस कइलें कि तोहार खेत त बंधा में जइबे करी, गांवो में विनाश आ जाई. तीन चार गो मुक़दमो हो गइल. बहुत बाद में गांव वालन के गिरधारी राय के खु़राफ़ात अउर साज़िश लउकल त उनुको के समुझा-बुझा दिहलें. सब कुछ सुन समुझ के गिरधारी राय बोललन, ‘दू शर्तन पर बंधा बन सकेला. एक त हमरा के प्रधान बनवा द लोग निर्विरोध, आ दोसर कि बांध के पेटी ठेकेदारो हमही रहब केहू अउर ना.’
गांव के लोग उनुकर दुनू शर्त नकार दिहलें. उलुटे कुछ नवही उनुका के एक रात राह में घेर लिहले सँ. उनुका साथे बदतमीज़ी से पेश आवत धमकवलें सँ कि, ‘आपन शैतानी दिमाग़ अपने लगे राख ऽ. ना त कवनो दिने मार के नदिए में गाड़ देब सँ. पंचनामो ला लाश ना मिली.’
गिरधारी राय डेरा गइलन. गांव छोड़ि के बांसगांव में रहे लगलन. बांसगांव में उनुकरो परिवार रहल आ मुनक्को राय के. अब ऊ मुनक्का राय से खटर-पटर करे लगलन, बाप समुझवलन गिरधारी राय के कि, ‘मुनक्का के परेशान मत करऽ.’
बाकिर गिरधारी राय कहां माने वाला रहलन. मुनक्का परेशान हो गइलें. रामबली राय का लगे गइलन फ़रियाद ले के आ कहलन कि, ‘हम अब फरका रहे के चाहत बानी आ राउर इजाजत चाहत बानी.’
‘देखऽ मुनक्का, तख़ता त तोहार हम पहिलहीं अलग क दिहनी ई सोचि के कि अब तूं लायक़ वकील हो गइल बाड़ऽ. कब ले हमार जूनियर बनि के हमरा के ढोअबऽ ?’ ऊ बोललें, ‘बाकिर अबहीं अतनो लायक़ नइखऽ हो गइल कि घरहूं से अलग कर दीं. कम से कम जबले हमनी दुनू भाई ज़िंदा बानीं तबले त फरका होखे के कबो सोचबो मत करीहऽ. सोचऽ कि लोग का कही ? हँ, रहल बाति गिरधारी से तोहार मतभिन्नता के त ओकरो कवनो काट सोचे द. आ फेरु तू त जानते बाड़ऽ कि ख़ाली दिमाग शैतान के घर होला.’
मुनक्का मन मसोस के रह गइलें लेकिन बीच के रास्ता ऊ ई निकललन कि साँझ बेरा कचहरी का बाद ज़्यादातर दिने गांवे जाए लगलें. फेरु त गते-गते ऊ गांवही से आए-जाए लगलें. आए-जाए के दिक्क़त अलगा रहल, मुवक्किलन के अलगा. प्रैक्टिस गड़बड़ाए लागल. एही बीच एगो नया तहसील बन गइल गोला. रामबली राय मुनक्का के बोलवले आ कहलें कि, ‘देखत बानी कि तोहार दिक्क़त एहिजा बढ़ले जात बा. तूं गोला काहें नइखऽ चलि जात?’
मुनक्का बांसगांव छोड़ल ना चाहत रहलन. बाकिर अब चूंकि रामबली राय के संकेत भरल आदेश हो गइल रहे त ऊ बेमन से गोला चलि गइलन. बाकिर गोला में उनुकर प्रैक्टिस ठीक से चलल ना. लड़िका बड़ होखत रहलें सँ आ खरचो. दू अढ़ाई बरीस में ऊ फेरु बांसगांव लवटि अइलें. रामबली रायो अब बूढ़ात रहलें. बाकिर मुनक्का के प्रैक्टिस चल निकलल. ओही घरी मुनमुन जनमल.
मुनमुन जइसे लक्ष्मी बनि के आइल रहे मुनक्का आ उनुका परिवार ला. घर गिरहस्थी के गाड़ी चलल का, दउड़ पड़ल. गिरधारी राय खातिर ई सब बहुते दुखदायी रहल. ख़ास क के एहू चलते कि भलहीं ऊ वकील ना बन पवलें बाकिर सोचले रहलन कि लइकन के वकील बना के एह कमी के भरपाई कर लीहें. जेहसे उनुका बाबूजी के वकालत के विरासत मुनक्का का हाथे ना लागे. बाकिर उनुकर बड़का बेटा शहर में चाचा गंगा राय का सोहबत में पड़िके घनघोर पियक्क्ड़ अउर औरतबाज़ निकल गइल. ओकरा ला त बी.ए. ओ पास कइल मुश्किल हो गइल. गिरधारी राय में झूठ बोले, दिखावा करे अउर तमाम खुराफात आ साज़िश करे के बीमारी भलही रहल बाकिर शराब-औरत वग़ैरह के अय्याशी ऊ कबहूं ना कइलन. ना ऊ, ना मुनक्का राय.
अब भइल ई कि जब बड़का बेटा गिरधारी राय के सपना तूड़ दिहलसि त उनुका अपना दूसरका नंबर के बेटा से उम्मीद बढ़ल. उहो पढ़े लिखे में बहुते तेज़ ना, औसते रहल. दू चार बेर फेल भइला का बादो ऊ एल.एल.बी. त पूरा कइए लिहलसि. गिरधारी राय के खु़शी के ठिकाना ना रहल. बाकिर गिरधारी राय के ऊ दूसरका बेटा तहसील में ना, ज़िला अदालत में प्रैक्टिस कइल चाहत रहुवे. रामबलिओ राय इहे चाहत रहलें. ऊ समुझावे के कोशिश में तर्को दिहलन कि, ‘तेली के बेटा तेलिए बने आजु का दौर में ई ज़रूरी नइखे.’ आ इहो कि, ‘तहसील में अब कुछ नइखे राखल.’ ऊ त चाहत रहलन कि पोता ज़िला अदालत भा हाई कोर्ट में वकालत करे जाव. बाकिर ना त रामबली राय के चलल, ना पोता के. ज़िद चलल गिरधारी राय के.
गिरधारी राय का जिनिगी में ई उनुकर पहिलका फ़तह रहल. अपना दूसरका नंबर के बेटा से ऊ मुनक्का राय के शह दे दीहलन. बाकिर मुनक्का राय एहसे बेख़बर रहलन. प्रैक्टिस उनुकर चटक रहुवे, ई सब देखे सुने के उनुका फुरसत कहां रहल? ऊ त फ़राख़दिली देखावत भतीजा के कचहरी में स्वागत करत कहलन कि, ‘चलऽ कचहरी में हमनिके परिवार के ताक़त अउर बढ़ि गइल. दू से हम तीन जने हो गइनीं सँ.’
‘बाकिर तीन टिकट महाविकट !’ एगो वकील चुटकिअवलें
‘शुभ-शुभ बोलीं वकील साहब!’ मुनक्का राय आंख तरेरत कहलन त ऊ वकील सटपटा गइल. बाकिर गिरधारी राय के ई लड़िका ओम जेकरा के घर में सभे ओमई कहल करे, बहुते तेज़ी से मुनक्का राय के घेराबंदी में लाग गइल. ऊ वकालत के पेंच कसल कम सीखे, मुनक्का राय के कहां-कहां आ कइसे-कइसे मात दीहल जा सकेला, एकर पेंच बेसी खोजल करे. पहिलका दौर में ऊ मुनक्का राय के कुछ होशियार जूनियर तुड़लसि. फेरु मुंशी तुड़लसि. बाकिर एहनी के ओमई तुड़लसि एकर भनक मुनक्का राय के ना लागल. मुनक्का राय त अपना प्रैक्टिस, लड़िकन के नीमन पढ़ाई आ सुखी पारिवारिक जीवन में मस्त रहलन. ओने रामबली राय के स्वास्थ्य साथ दीहल छोड़ले जात रहुवे. आखो से लाचार हो गइल रहलन. लउकल कम करे. अब अधिका मामिला ऊ अपना पोता के राय दे देके निपटावे लगलन. कबो कवनो बहुते ख़ास मुक़दमा होखे तबहीं ऊ कोर्ट जासु. कोर्ट में उनुकर खड़ा भइले मुक़दमा जीते के गारंटी हो जाव. लोग उनुका के चलत-फिरत कोर्ट कहे लागल. ओमई उनुका एह गुडविल के जतना भँजा सकत रहल, भँजावे लागल.
मुनक्का राय के ज़मीन अब उनुका नीचे से खिसकत रहुवे, उनुकर पुरानो मुवक्किल अब ओमई का लगे जाए लागल रहलें, नया मुक़दमन के आवग कम हो गइल. मुनक्का राय के बड़का बेटा रमेश तब एम.एस.सी. के पढ़ाई करत रहुवे आ सिविल सर्विस के तइयारिओ. बाकिर मुनक्का राय ओकरा से कहलन कि, ‘अब तूँ एल.एल.बी. करऽ.’
‘बाकिर हम त सर्विसेज़ के तइयारी करत बानी.’
‘सर्विसेज़ छोड़ऽ.’ मुनक्का राय साफ आदेश दे दीहलन, ‘जवन हम कहत बानी, तवने करऽ.’
‘बाकिर बाबू जी…….!’
‘कुछ ना सुनब !’ मुनक्का राय बोललन, ‘बाप हम हईं कि तूं ?’
‘बाकिर बाबू जी पहिले ई एम.एस.सी. त कंपलीट करलीं ?’
‘हँ, ई कर लऽ !’
बाकिर बाप के एह बेवहार से मुनक्का राय के ई बड़का बेटा हक्काबक्का रहल. काहें कि अबहीं तक का जिनिगी में बाबूजी ओकरा से अइसे आ एह तरह से कबो ना बतियवले रहलन. ख़ैर, रमेश एम.एस.सी. मैथ के इम्तहान डिस्टिंक्शन ले के पास कइलसि आ अगिला सेशन में एल.एल.बी. में एडमिशन ले लिहलसि. एही बीचे ओकर सेलेक्शन एगो बैंको में हो गइल बाकिर मुनक्का राय मना कर दिहलन. कहलन कि, ‘जवन बाति वकालत में बा, ऊ बैंक में कहां?’ मुनक्का राय के त गिरधारी के बेटा के शिकस्त देबे का सिवाय कुछ लउकते ना रहल ओह घरी. उनुका लेगो कि उनुकर बेटा रमेश त ओमई से पढ़े लिखे आ तमाम अउरिओ मामिलन में अव्वल बावे, ऊ कचहरी में आई आ आवतहीं ओमई के पस्त करि के मुनक्का राय के झंडा फेरु से लहरा दी.
एही बीच गिरधारी के छोटका भाई गंगो राय मर गइलन. उनुका मौत के ले के बहुते सवाल उठल. कुछ लोग संदेह जतावल कि प्रापर्टी हड़पे का फेर में गिरधारी राय गंगा राय के शराब में ज़हर दिअवा के मरवा दिहलें. बाद में लोगन के ई शक अउरि पोढ़ हो गइल जब खेती बारी अउर दोसर पुश्तैनी जायदाद में गिरधारी अपना भाई गंगा राय के परिवार के अधिया हिस्सा देबे का जगहा कुल छह गो बखरा लगववलन, ऊ एह हिसाब से कि गिरधारी राय के चार बेटा रहलें आ गंगा राय के दू बेटा. सभनी के मिला के छह बखरा लगववलन. बाप रामबली राय का जिनिगिए में. रामबली राय एह घरी खटिया ध लिहले रहलन. आ गिरधारी राय जवने चाहसु उनुका से करवा लेसु. अतने ना गिरधारी राय अब अपना बाबूजी का साथे ज़ुल्मो सितमो करे लगलन. अइसन बाति लोग दबल ज़बान में कहल करे. छोटका भाई गंगा राय के बीवी मारे डर के अपना दुनु बेटन के ले के नइहरा चलि गइल. ओकरा बराबर डर बनल रहत रहे कि गिरधारी राय ओकरा मरद का तरह कहीं उनुका बेटवनो के ना मरवा देसु. एही बीच रामबलिओ राय के निधन हो गइल.
अब गिरधारी राय रहलन, आ उनुका साथे रहल उनुकर झूठ, उनुकर लालच आ बाति बेबाति मुनक्का राय के नीचा देखावे के, बेइज्जति करे के अदम्य लालसा. बाप का मरते गांव के जायदादो बंटवा लिहलन ऊ. मुनक्का राय के मयभावत महतारी के ऊ मोहरा बनवलें. मुनक्का राय के एगो सौतेला भाईओ रहल. उहो वकील रहुवे. बाकिर गुमनामी में जीयत रहुवे, ओकरो के धो पोंछि के खड़ा कइलन गिरधारी राय मुनक्का राय का खि़लाफ़. खेती-बारी के बंटवारा में त पर्ची पड़ गइल. जेकरा जवने बखरा मिलल उहे ले के संतोष कर गइल. हालां कि अबहियो गिरधारी राय किचकिचा के कहल करसु कि, ‘सब कइल धइल रहल हमरा बाप रामबली राय के बाकिर भोगत बाड़ें श्यामबली राय के बेटा लोग.आ ई मुनक्कवा !’ ऊ जोड़सु, ‘लागेला जइसे इहे रामबली राय के असली वारिस हउवे, हम ना.’ ख़ैर घर के बंटवारा में बहुते कोहराम मचल. गिरधारी के त एहिजा रहहीं के ना रहुवे. उनुकर पूरा परिवार त बांसगांव में रहुवे. दुनु बेटा शहर वाला घर में. शहर वाला आ बांसगांव वाला घर में मुनक्का राय के कवनो बखरा बनते ना रहल कि बनीत. काहें कि दुनु घर रामबली राय अपना मेहरारु का नामे बनववले रहलन. समस्या आइल गांव वाला घर में. पहिले ओकर अधवा लिहलन गिरधारी राय. फेरु मुनक्का के अधवा हिस्सा के दू बखरा करा दिहलन मुनक्का के सौतेला भाई के खड़ा करा के. अब मुनक्का का बखरे घर के चौथाई हिस्सा आइल. जवन परिवार पूरा घर में रहत रहुवे, अब ऊ चौथाई हिस्सा में समेटा गइल. एहू पर संतोष ना भइल गिरधारी राय के त दालान से होत अपना बखरा में एगो दरवाज़ा भर के जगहो फोड़ लिहलन. मुनक्का राय आ उनुकर परिवार समुझइबो कइल कि घर के जवन मुख्य दरवाज़ा बा, ऊ सबहीं का साझा रहे त नीमन कहाई, आ उनुका लोगन के एहपर कवनो ऐतराज़ ना होखी. जब जे चाहे आए जाए. बाकिर गिरधारी राय नाहिए मनलन. कहलन, ‘ऐतराज़ त हमरा बा. दरवाज़ा जब हमरा बखरे अइबे ना कइल ता हम ओकर इस्तेमालो ना करब.’ आ ऊ दरवाज़ा भर के जगहा फोड़ लिहलन बाकिर ओहिजा दरवाज़ा ना लगवलन.
अब दुआरे से अङना साफ़े लउके. हर आए जाए वाला के निगाह बरबस अङना में चलि जाव. मुनक्का के एगो बेटी विनीता जवान होत रहल. दू गो बेटी अउरी रहली सँ. मेहरारुओ रहली. घर के लाज अउर सुरक्षा दुनु ख़तरा में आ गइल. मुनक्का राय आपन सगरी इगो ताक़ पर राखत सीधे गिरधारी राय से बतियवलें. गिरधारी राय कहलन, ‘अबहीं पइसा नइखे. पइसा होखते दरवाज़ा लगवा देब.’
‘रुपिया हमरा से ले लीं.’ मुनक्का राय हाथ जोड़त कहलनि, ‘भा कहीं त हमहीं दरवाज़ा लगवा देत बानी.’
‘अतने रुपिया बा त अङना के अपना हिस्सा में बाउंड्री लगवा लीं.’
‘सुरक्षा अउर लाज त तबहियो ख़तरे में रही.’ मुनक्का बोललन, ‘छरदिवालि त केहू फान ली.’
‘त पुलिस में रपट करऽ !’ गिरधारी राय बोललन, ‘आखि़र बड़का वकील हईं रउरा !’
‘देखी घर के लाज हमरे ना राउरो त हऽ. विनीता अउर रीता राउरो त बेटी हईं स. हमार मेहरारुओ त राउरे बहू हीय. हमनी के ख़ानदान एके ह. कतहीं कुछ ऊंच-नीच हो गइल त राउरो मूड़ी नव जाई.’
‘अइसन कुछऊ नइखे.’ गिरधारी राय अड़ले रहलन, ‘ गांव में केहू के अतना बेंवत नइखे कि हमरा ख़ानदान ओरि आंखो उठा के देखे. आँखे नोच लेब. मूड़ी काट देब.’
‘बाकिर दरवाज़ा ना लगवाएब !’
‘कहनी नू कि रुपिया आवते लगवा देब.’
‘त रुपिया अइले पर दरवाज़ा फोड़तीं.’
‘रउरा हमार एडवाइज़र त हईं ना कि हर बात पर हम रउरा से सलाह लेइए के कुछ करीं. ना हमार बाप हईं रउरा !’
बाद में मुनक्का राय कुछ पट्टीदारन रिश्तेदारनो के बिचवनिया बनवलें. सभे समुझावल. बाकिर गिरधारी राय सभका के एके जवाब देसु, ‘रुपिया जुटते लगवा देब दरवाज़ा !’ आ रुपिया ऊ केहू से लेबे के तइयारो ना होखसु. हार मानि के मुनक्का राय अङना में खपरैलो से ऊंच बाउंड्री करववलन. बाकिर एकाध कुकुर तबहियो बाउंड्री फान आवऽ सँ. एक बेर दू गो चोरो कूदले सँ. थाक हारि के मुनक्का राय बाँसगांव में एगो मकान किराया पर ले लीहलन. आ परिवार के शिफ़्ट कइलन. चटक प्रैक्टिस पुटुक गइल रहे. लड़िको पढ़त रहले सँ. ख़रचो बढ़ गइल रहुवे. जब प्रैक्टिस चटक रहुवे तब त कवनो बचत कइलन ना. दुनु हाथे कमासु आ चार हाथे खरचल करसु. हँ, मुनक्का के मेहरारुओ पइसा के पानिए बुझली आ मान लिहले रहली कि नदी में जवन बाढ़ आइल बा तवन कबो लवटि ना. बाकिर बाढ़ त लवटि गइल. एक-एक पइसा के दिक्कत होखे लागल. जवन जूनियर आ मुंशी ओमई तूड़ ले गइल रहुवे ऊ जूनियरो आ मुंशी पुरनका मुवक्किलनो के तूड़त रहले सँ. ख़ैर, एही आपाधापी में बड़का बेटा रमेश एल.एल.बी. पूरा क लिहलसि. आ बाप से मनसा जाहिर कइलसु कि अबहिंयो ऊ सिविल सर्विस के आस नइखे छोड़ले. दू बेर प्रिलिमनरी में आइओ गइल रहुवे ऊ एह बीच. बाकिर मुनक्का राय कहलन कि, ‘अब जवन होखे के रहल तवन हो गइल. प्रैक्टिस शुरू करऽ आ हमार बोझा कम करऽ.’
‘त हम इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कइल चाहब, अगर रउरा इजाज़त दे दीं त.’ रमेश बाप से निहोरा कइलसि.
‘हाई कोर्ट?’ मुनक्का राय भड़क गइलन, ‘पांच बरीस ले त भूँजो ना खरीद पईबऽ दू रुपिया के. उलटे हमरे से ख़र्चा मँगबऽ ओहिजा रहे- खाए ला.’
‘त चलीं शहर में. कम से कम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में त ई दिक्क़त ना होखी ?’
‘ओहिजो कम से कम दू-तीन बरीस ले एक-एक पइसा ला तरसऽब.’
‘त ?’
‘हमरे संगे एहिजे बांसगांव तहसीले में डटऽ आ एह ओमई सारे के छुट्टी करावऽ !’ ऊ बोललन, ‘अब ई हमार ना तोहार लड़ाई हवे. ओकरा से बेसी पढ़ल लिखल बाड़ऽ, ओकरा से बेसी होशियार हउव !’
‘कहां हमार जिनिगी बरबाद कइल चाहत बानी बाबू जी?’
‘कवनो इफ़-बट मत करऽ.’ मुनक्का राय रमेश के पुचकारत कहलन, ‘अब हम तय कर चुकल बानी.’
एने रमेश प्रैक्टिस शुरू कइलन आ ओने मुनक्का राय ओकर बिआह तय कर दिहलें. रमेश अबहीं ना, अबहीं ना करते रहि गइल बाकिर मुनक्का ओकर बिआह कराइए के मनलन. दुसरका बेटा धीरजो अब एम.एस.सी. में आ गइल रहल. मुनक्का राय चाहत रहलें कि उहो एल.एल.बी. कर लेव अउऱ बांसगांव कचहरी में उहो आ जाव. बाकिर ऊ रमेश का तरह बाप का बात में ना आइल. एम.एस.सी. पूरा करि के ऊ एगो कालेज में लेक्चरर हो गइल. एने रमेश बांसगांव में बाप के बोझा बांटे भलही उनुका कहला से आ गइल रहुवे बाकिर ऊ कारगर साबित ना होखत रहुवे. तहसील के वकालत करे खातिर जवन थेथरई, जवन कुटिलता आ कमीनापन के जरुरत होला, ऊ ओकरा में रत्तिओ भर निपुण ना रहल. ना ही ऊ एकरा के सीखल चाहत रहुवे. कचहरी में तारीख़-वारीख़ लेबे के काम ऊ करत ना रहे. केस हारो भा जीतो ऊ मेरिटे पर मुकदमा लड़ल करे. नतीजा होखे कि केस हार जाव. ऊ शेख़ी मारत बोलबो करे कि, ‘हम त वन डे मैच खेलिलें, हारीं भा जीतीं एकर परवाह ना करीं.’ ऊ कचहरियों में अपनावल जाए वाला चालबाजियन से नफ़रत करे. मुनक्का राय ओकरा के एकाध बार समुझइबो कइलन कि, ‘ई कचहरी ह; कवनो क्रिकेट के मैदान ना. एहिजा दुर्योधन, अर्जुन, युधिष्ठिर-शकुनी सगरी चाल चले के पड़ेला. साम, दाम, दंड भेद के सगरी हथकंडा अजमाइए के केहू सिद्ध अउऱ सफल वकील बन पावेला. होत होखी तोहरा गणित में दू दुनी चार. एहिजा त दू दुनी पांचो हो सकेला आ आठो भा दसो. सिफरो हो सकेला. कुछुओ हो सकेला.’ ऊ बतावसु कि, ‘कचहरी में बात मेरिट से ना, क़ानून से ना, जुगाड़ आ तिकड़म से तय होखल करेला.’
बाकिर रमेश के अपना बाबू जी के कहलका सोहावे ना. बाप बेटा दुनु के प्रैक्टिस खटाई में रहुवे. ओमई दुनु के वकालत पर भारी रहुवे. कचहरी में ओमई, समाज में गिरधारी राय. बाप बेटा दुनु मिल के मुनक्का बाप-बेटा के जीयल हराम कइले राखसु. गिरधारी राय के उकसवला से मुनक्का राय के मकान मालिको घर ख़ाली करे के कहल करे. तीन साल में चार मकान बदलत मुनक्का राय परेशान चलते रहलन कि एगो मुवक्किल के भड़का के ओमई मुनक्का राय अउर रमेश राय दुनु के पिटवा दिहलसि. विरोध में वकील एसोसिएशन आइल. दू दिन कचहरी में हड़ताल रहल. पिटाई करे वाला मुवक्किल गिरफ़्तार भइल त हड़ताल टूटल, अख़बारन में ख़बर छपल. जेकरा ना जाने के रहल उहो जान गइल कि मुनक्का बाप बेटा पिटा गइलें.
मुनक्का के घरो में खटपट शुरू हो गइल रहुवे. रमेश के माई आ मेहरारु में अनबन रोज़ के बाति हो चलल रहुवे. आखिर अँउजा के मुनक्का राय रमेश के गोला तहसील शिफ़्ट होखे के कह दिहलन. जइसे कबो रामबली राय मुनक्का के शिफ़्ट कइले रहलन. बांसगांव में त मुनक्का राय के छांह में रमेश के रोटी-दाल के चिंता करे के ना पड़त रहुवे. गोला में रोटिओ-दाल के दिक्क़त हो गइल. हार-पाछ के रमेश के मेहरारु, जवन सोशियालाजी से एम.ए. रहल, एगो नर्सरी स्कूल में पढ़ावल शुरू कइलसि त कवनो तरह खींचतान क के गिरहस्थी चल जाव. अब रमेश के एगो बेटो हो गइल रहुवे बाकिर रमेश ना त बेटा के देख पावे ना अपने के. गोला कचहरिओ में ओकर क्रांति मशहूर हो चलल रहुवे, ऊ विद्रोही वकील मान लिहल गइल रहुवे. लोग ओकरा से कहल करे कि, ‘यार ई तहसील ह !’ त ई जबाब देव, ‘का तहसील में क़ानून अउर संविधान काम ना करे?’ ऊ पूछे, ‘अगर अइसने बा त हमहन के क़ानून पढ़ि के एहिजा अइला के जरुरते का रहल ? कवनो मुंसिफ़ भा एस.डी.एमो. के एहिजा आवे के के ज़रूरत रहुवे? ई वकीलन के मुंशी आ कचहरियन के पेशकारे जब कचहरी चला लेलें.’ बाकिर ओकर सुने वाला केहू ना रहल. गँवे-गँवे ऊ क्रांतिकारी से विद्रोही आ फेरु पागल अउर सनकी वकील मान लीहल गइल रहुवे.
रमेश अब डिप्रेशन के शिकार हो चलल रहुवे. रमेश के एही डिप्रेशन का दौरान मुनक्का राय बांसगांव में एगो ज़मीन ख़रीदलन. उहो एगो खटिक से. ग़लती भइल कि रजिस्ट्री तुरंते ना करववलन. गिरधारी राय एह मौका के फ़ायदा उठवलन. खटिक के भड़कवलन. खटिक हरिजन एक्ट के धउँस दिहलसि आ फेरु दुगुना दाम ले के रजिस्ट्री कइलसि. इहो ज़मीन ख़रीदे खातिर पइसा मुनक्का राय के लेक्चरर बेटा धीरज दिहलसि. उहे फेरु ओह जमीन पर दू गो कोठरिओ बनववलसि. आ गँवे-गँवे पूरा घरो बनवा दिहलसि. घर के खरचा त ऊ उठावते रहुवे. अब मुनक्का राय ओकरो बिआह तय कर दिहलन. बिआह भइल, कनिया घरे आइल. बाकिर उहो सास संगे लमहर दिन ला रहे के तइयार ना भइल. ढेरे दहेज ले के आइल रहुवे एहसे केहू से ऊ दबबो ना करे, ऊ धीरजो के बतला दिहलसि कि, ‘हम बांसगांव में ना रहब.’
धीरज ओकरा के शहर ले आइल. भाई तरुण आ राहुल पहिलहीं से ओकरा साथे रहलें पढ़ाई करे ला, मेहरारु के अइला का बाद धीरज बांसगांव पइसा भेजे में कताही करे लागल. जब कि पहिले ऊ पिता के नियमित कुछ पइसा भेज दिहल करत रहुवे. अतना कि मुनक्का राय मारे ख़ुशी के ओकरा के कबो नियमित प्रसाद कहसु त कबो सुनिश्चित प्रसाद. मुनक्का राय एह बात के भरपूर नोटिस लिहलन कि धीरज अब ना त सुनिश्चित रह गइल बा ना नियमित! बाकिर तरुण आ राहुल के पढ़ाई के ज़िम्मा ऊ उठावते रहल, ई सोचि के ऊ संतोष कर लिहलें. फेरु एक दिन ऊ शहर गइलन आ धीरज के बतवलन कि विनीतवो बी.ए. क के बइठल बिया. ओकर अब बिआह हो जाए के चाहीं ! धीरज हामी भर दिहलन. बिआह तयो हो गइल. बिआह के अधिका खरचा धीरज उठवलन बाकिर एकरा ला गांव के एगो ज़मीन बेच के.
बिआह धूमधाम से भइल. बिआह के तइयारी, बारात के अगुआनी, विदाई, सभे के आइल गइल, सगरी के कमान धीरजे सम्हरलन, मुनक्को राय धीरज के साथ दिहलन. सबले खराब गति रमेश के रहल. बड़ भाई होखला का बावजूद रमेश के हैसियत कवनो नौकरो से गइल गुज़रल रहल. अपना हीनता में क़ैद रमेश आ ओकर मेहरारु डेराइले-सहमल सभका लउकलन. रिश्तेदार, पट्टीदार भलही रमेश से बातचीत कइलें बाकिर घर के लोग ओकरा से अइसे बेवहार कइल जइसे ओकर कवनो अस्तित्वे नइखे. आ धीरज त जइसे किरिए खा लिहले रहुवे रमेश के बेइज्जत करे के. एगो पट्टीदार टीपबो कइलन कि, ‘एगो होनहार आ हुनरमंद आदमी पट्टीदारी का आग में कइसे त होम हो गइल!’
विनीता के मरद थाइलैंड में नौकरी करत रहुवे आ ओकर सगरी परिवारो ओहिजे रहत रहुवे. दू पुस्त से. विनीता के दस दिन बाद थाइलैंड उड़ जाए के रहल. धीरज के ससुर ई बिआह तय करवले रहलें. ई बाति कमे लोग जानत रहल. बाकिर दामाद, डाल अउर बारात के तारीफ करे में सभे मगन रहल. मुनमुनो अपना मझली दीदी रीता का साथे जीजा जी के इंप्रेस करे में लागल रहल. मुनमुन अब टीन एजर हो गइल रहे आ भारी मेकअप में ओकर जवानी कवनो जवानो लड़की से बेसी छलकत रहुवे, इहो बाति लोग नोट कइल. ऊ अपना जीजा से इठलात चुहुलो करत रहुवे, ‘हमरो के अपना संगही उड़ा ले चलीं ना!’
जीजा लजा के रह गइलन. रमेशो चोरी छुपे अपना छोट बहनोई के ख़ुशामद में लागल रहुवे. एगो रिश्तेदार से रमेश खुसफुसा के कहबो कइलसि कि, ‘अब विनीता हमनी के परिवार के क़िस्मत बदल दिही. दस दिन बाद अपनहुं थाईलैंड जात बिया. का पता पीछे-पीछे हमनियो के बोला लेव !’
‘का रमेश !’ ओकर एगो फुफेरा भाई दीपक अफ़सोस जतावत कहलसि, ‘अब तोहार ई दिल आ गइल !’ ऊ आगे जोड़लसि कि, ‘सोचऽ कि तू कतना तेज रहलऽ. पट्टीदारी-रिश्तेदारी के लड़िका तोहरा के आपन आदर्श मानत रहलें. आ अब तू बहिन के पैरासाइट बनल चाहत बाड़ ? चचच्च!’
रमेश झेंप गइल रहुवे, इहो लोग नोट कइल. आ हँ इहो कि गिरधारी राय आ उनुकर परिवार एह बिआह में गैरहाजिर रहुवे. मुनक्का राय से केहू पूछल त जवाब धीरज दिहलसि, ‘नागपंचमी त रहे ना कि दूध पिआवे खातिर बोलावल जाइत.’
विनीता सचहुँ दस दिन बाद थाइलैंड खातिर उड़ गइल. अब अलगा बाति बा कि ओकर संघर्ष ओहिजा जा के नया सिरा से शुरू हो गइल. ऊ अम्मा के एगो चिट्ठी में संकेते में लिखबो कइलसि, ‘दूर के ढोल सुहावने होला.’ अम्मा त ओतना ना बाकिर बाबू जी ठीक से समुझ गइलें. ओकरा के भेजल जवाबी चिट्ठी में मुनक्का राय दांपत्य के धीरज से निबाहे के सीख देत मनुहार कइलन कि हमार लाज बचा लीहऽ, हमार मूड़ी मत नीचा करवइहऽ. थोड़िका त्याग, तपस्या अउर सबुर से रहबू त सब ठीक हो जाई. खयाल रखीह कि अबहीं तोहरा पीछे तोहार दू गो बहिनो बाड़ी सँ – रीता अउर मुनमुन. विनीता बाबू जी के सीख मान लिहलसि आ अपना दांपत्य के गँवे-गँवे सम्हार ले गइल बाकिर बाकिर सास का घर से अलगा होके. बाद में जब ऊ वापिस सास ससुर का घरे आइल त अपना अम्मा के चिट्ठी में लिखलसि कि, ‘अब ऊ ना, हम उनुकर सास हईं.’
मुनक्का राय फेरु बेटी के चिट्ठी में लिखलन कि, ‘सास के सासे रहे द आ तू बहूए बन के रहबू त सुखी रहबू. ना त बाद का जिनिगी में कांट अउर रोड़ा बहुते मिली.’ विनीता बाबू जी के इहो बाति मान गइल. एने मुनक्का राय के जिनिगी जइसन खुशियन के लमहर राह तिकवत रहल ऊ अचके में अइसन पूरा भइल कि सगरी बांसगांव आ उनुकर गांवो उछाह में आ गइल. धीरज पी.सी.एस. मेन में चुना गइल. अख़बारन में ओकर फोटो छपल. चारो दिशाईं खुशियन के पुरवैया बह गइल. बाकिर एह पुरवैया का झोंका से केहू पीरातो रहुवे. ऊ रहलन गिरधारी राय आ उनुकर बेटा ओमई. तबहियों गिरधारी राय जाने रस्म अदायगी में, आ कि भय से भा ना जाने कवना भावे ख़ुदही चलि के आ गइलन मुनक्का राय के घरे बधाई देबे. ई ख़बर जब कचहरी में दउड़ल त एगो वकील कहलन कि एगो कविता ह, ‘भय भी शक्ति देता है!’ बहरहाल कचहरिओ में मिठाई बंटाइल अउर एस.डी.एम. आ मुंसिफ़ मजिस्ट्रेट दुनु मुनक्का राय के घरे आके उनुका के बधाई दिहलें. बांसगांव का साथही मुनक्को राय झूम उठलन.
रमेश आई.ए.एस. प्रिलिमनरिए ले आ के रह गइल रहुवे. बाकिर धीरज पी.सी.एस. हो गइल. मुनक्का राय अब रमेश खातिर तनिका दयालु हो गइलन. उनुका अपना पर अफ़सोसो भइल आ ऊ अपना के रमेश के अपराधी माने लगलन. उनुका लागल कि अगर ज़िद क के ऊ रमेश के एल.एल.बी. ना करवइले रहतन आ कइला का बाद बांसगांव तहसीले में ओमई से निपटे ला ओकरा के ना भिड़ववले रहतन त शायद उहो एह बेरा कवनो निकहा जगहा होखीत. ऊ बुदबुदिबो कइलन, ‘दूध के हम नाबदान में डाल दिहनी !’
रमेशो के ख़ुशी भइल भाई धीरज के पी.सी.एस. हो गइला पर. बाकिर छने भर ला. रमेश के मेहरारु से केहू एकर चरचा कइल त ऊ बोललसि, ‘कोई नृप होए हमें का हानि!’ काहें कि जइसे धीरज रमेश के विनीता का बिआह में बेइज्जत करत रहल वइसहीं घर में धीरज के मेहरारु ओकरा के करत रहल. जेठानी होखो के मान त ऊ छनो भर ला ना दिहलसि. हँ, बाकिर रमेश धीरज के फ़ोन करि के बधाई जरूर दिहलन. त धीरज भावुक हो गइल. बोलल, ‘भइया ई सब राउरे पढ़वला-समुझवला का चलते भइल. रउरे हाई स्कूल अउर इंटर में हमार अइसन रगड़ाई करवा दिहले रहीं कि हमरा आगे चलि के बहुत आसानी हो गइल.’ ऊ बोललसि, ‘रउरे छोड़ल आई.ए.एस. के तइयारी वाला किताब आ नोट्सो हमरा एह सफलता में कामे आइल. भइया रउऱा ना रहतीं त हम पी.सी.एस. ना होखतीं.’
‘चलऽ ख़ुश रहऽ आ ख़ूब तरक्क़ी करऽ !’ रमेश फ़ोन राख दिहलसि ओकरा लागल कि ऊ त मरिए गइल रहुवे, आजु फेरु जिन्दा हो गइल बा. धीरज के बातन से, ओकर दीहल मान से, ओकरा भावुकता से रमेश रो दिहलन. बेटा रंजीव पूछबो कइलसि कि, ‘का भइल पापा?’
‘कुछ ना बेटा नया-पुरान खुशी याद आ गइल.’ रंजीव त रमेश के एह बाति के ना बुझलसि बाकिर रमेश पुरान बातन का याद में डूबे-उतराए लागल. ओकरा याद आइल कि कइसे ऊ धीरज के हाई स्कूल में केमेस्ट्री के एगो फार्मूला ना याद कइला पर ओकर जम के पिटाई कइले रहल. कई बेर ऊ अपना पढ़ाई से अधिका धीरज के पढ़ाई पर ज़ोर दिहल करत रहुवे. हाई स्कूल, इंटर का. बी.एस.सी. तकले ऊ ओकर मंजाई करत गइल रहलन. छोट होखला का बावजूद ऊ ओकरा से कवनो काम ना करवावत रहलें. कइसे त ऊ एगो भाड़ा का कोठरी में रहत रहुवे. खाना ख़ुदही बनावे, बरतनो धोवे. आ धीरजे काहें तरुणो के का ऊ इहे नेह दिहलन. इहे सब आ अइसने तमाम छोट-मोट वाकया याद क-क के ऊ मेहरारु के बतावत रहलन. बतावते बतावत सुबुकतो रहलन. फेरु अचके में मेहरारु से कहलन, ‘ढेर दिना हो गइल हमनी का सरयू जी में नहइले. चलऽ आजु डुबकी मार आवल जाव.’
मरद का एह ख़ुशी में मेहरारुओ शरीक हो गइल. दुनु बेटन के ले के ऊ घाट पर गइल. लड़िकनो से डुबकी लगववला का बाद ऊ मेहरारु का साथे अपनहूं कई डुबकी लगवलन आ जम के पवँड़लन. अतवार के दिन रहल से घाट पर भीड़ो अधिका रहल. वकील साहब के एह तरह पवँड़त देखि कुछ लोग कौतुक जतावल त एगो आदमी सभकर जिज्ञासा शांत कइलसि, ‘अरे छोटका भाई पी.सी.एस. में चुना गइल बा. अख़बारनों में फ़ोटो छपल बा भाई!’
‘अच्छा!’
फेरु त वकील साहब के बधाई मिले के तांता लाग गइल. बांसगांव का साथही अब गोलो झूमत रहुवे. छोट जगहन पर मामूली ख़ुशिओ बहुते बड़ हो जाले. गोला में एस.डी.एम. प्रमोटी रहुवे, ऊ तहसीलदार से पी.सी.एस.भइल रहल, उहो कचहरी में रमेश के हाथ पकड़ के बधाई दीहलन. मुनक्का राय के गांवो में ई सिलसिला चलल. भर गांव के छाती फूला गइल.
जिनिगी फेरु अपना पुरनका ढर्रा पर लवटिए ना आइल, बलुक कहीं त मुनक्का राय के मुश्किल तनिका अउरी बढ़ गइल. धीरज ट्रेनिंग पर चल गइल आ ओकर मेहरारु अपना लईका के लेके नइहर चलि गइल. धीरज से मिलत नियमित अउर सुनिश्चित प्रसाद त पहिलहीं खतम हो गइल रहुवे. अब तरुण अउर राहुल के शहर में पढ़ाई, रहे-खाए आ किराया के खरचो भेजे के पड़त रहुवे. एहसे सब कुछ का बादो मुनक्का राय गँवे-गँवे करज में डूबल जात रहलें. गिरधारी राय ई सब देखत रहलन आ लोगन से खुसफुसाइलो करसु, ‘घर में भूजल भांग ना, दुअरा हरि कीर्तन !’
अब अलगा बात इहो रहुवे कि गिरधारिओ राय किहां के हालात अइसने होखल जात रहुवे. ओमई के प्रैक्टिस लड़खड़ा गइल रहुवे. बाप रामबली राय के राखल पइसा कतना दिन ले चलीत. आधा मकान किराया पर उठा दिहल गइल रहुवे. शहरो वाला मकान के दू तिहाई हिस्सा भाड़ा लगा दीहल गइल रहे. किराया ना आवत रहीत त घर के खरचो चलावल मुश्किले रहुवे. बड़का बेटा पियक्कड़ निकलइए गइल रहुवे. आ तिसरको बेटा बिना बिआहे कइले एगो लड़की का साथे रहत रहुवे. जवन जाति के तेली रहल. एगो बेटी बे-बिआहल बाकी पड़ल रहुवे परिवार में.
ओने धीरज के ट्रेनिंग पूरा हो गइल त ओकरा एस.डी.एम. के तैनाती मिल गइल त एने तिसरका भाई तरुणो एगो बैंक में पी.ओ. हो गइल. मुनक्का राय के घर एक बेरु फेरु खुशियन से छलछलाए लागल रहुवे. एक दिन रमेश के मेहरारू रमेश से पूछलसि, ‘रउरो त एक बेर बैंक में चुनाइल रहुवीं ?’
‘चुनाइल त रहनी, बाकिर बाबूजी जाए कहाँ दिहलन ?’ ऊ लाचार भावे बोललसि, ‘चल गइल रहतींं त ई गोला के गलीज कइसे देखतीं ?’
‘अतना पितृभक्तिओ ठीक ना रहल.’ ऊ बोललसि, ‘नरक में डाल दिहनी हमनी के.’
‘ई ओमई के पट्टीदारी में सब हो गइल. बाबू जी हमरा के वकील बनववलन ओमई के रगड़े ला, हमहीं रगड़ा गइनी.’
‘रउरा अब फेरु इम्तिहान ना दे सकीं ?’
‘कवना के ?’
‘पी.सी.एस. के, बैंक के?’
‘एह उमिर मेें ?’ रमेश बोलललसि, ‘अरे, अब हम ओवर एज हो गइल बानी. तूं त पढ़ल-लिखल हऊ, अतना त समुझिए सकेलू.’
रमेश के मेहरारु चुपा गइल. बाकिर रमेश का मन मेंं मेहरारु के सवाल घुमड़त रह गइल. ऊ सोचलसि कि हो सकेला कि हम घर अउर नौकरी दूनू नइखीं साध पावत. पत्नी अब एगो जूनियर हाई स्कूल में पढ़ावे लागल रहुवी. गोला से तनिका दूर जाए के पड़त रहुवे. पढ़वला से बेसी ऊ आवे-जाए में थाक जात रहली. आ रमेश घरो में मांगिए के पानी पिए, अपना से गिलासो ना उठावत रहुवे. से घरो के बोझ ऊपर से रहल, ऊ दिन पर दिन दुबराइलो जात रही. रमेश के प्रैक्टिसो अब लगभग पेनी ध लिहले रहुवे. कई बेर त ऊ कचहरी जाहूं से कतरा जाव. मेहरारु का साथे सूतलो में ऊ हारिए जाव. चाहियो के ऊ कुछ कर ना पावे. एक दिन ऊ लेटले-लेटल मेहरारु से कहबो कइलसि, ‘लागत बा हम अब नपुंसक हो गइल बानी.’
मेहरारू कसमसा के रहि गइल बाकिर आँखिन का इशारा से कहलसि, ‘अइसन मत कहीं.’ बाकिर थोड़ देर बाद जब ऊ फेरु इहे बाति दोहरवलसि त मेहरारु तोस देत कहलसि, ‘अइसन मत कहीं,’ ऊ फुसफुसाइल, ‘अब त हमरो मन ना करेला.’
का पइसा के तंगी आ बेकारी आदमी के अइसन बना देले ? नपुंसक बना देले ? रमेश मन ही मन अपने से पूछत रहुवे.
दिन बीतत रहल. अब घर में सभका कपार पर रीता के बिआह के चिंता सवार रहुवे. हालां कि रीता घर में कहबो कइलसि कि, ‘हमहूं भइए लोग का तरह नौकरी वाला इम्तिहान दीहल चाहत बानी.’ ऊ जोड़बो कइलसि, ‘अम्मां, हमहूं पी.सी.एस. बनल चाहत बानी.’ धीरज भइया के मान सम्मान देखि के ओकरो मन में ई इच्छा जागल रहुवे, बाकिर माई ओकर मनसा पर पानी फेरत कहलसि, ‘जहां जइबू ओहिजे जा के पी.सी.एस. बनीह. एहिजा अब समय कहाँ बा. अबहीं मुनमुनवो बिया. पता ना तब का होखी ? समय हरमेश एके जइसन ना रहे.’
रीता चुपा गइल, ओने रमेशो चुपाइले रहुवे. बाकिर ओकर मन अपना नपुंसकता से आजिज आ गइल रहुवे. लगातार तरकीब पर तरकीब सोचल करे. आखिर एक दिन मेहरारु से कहलसि, ‘तूं ठीके कहत रहलू.’
‘का ?’
‘कि हमरा इम्तिहान देबे के चाहीं फेरु.’
‘बाकिर रउआ त कहत रहनी कि ओवर एज हो गइल बानी.’
‘ना. अबहीं जुडिशियरी के इम्तिहान देबे के उमिर बाँचल बा.’
‘ओह!’ ऊ रमेश का गरदन पर लटकि के झूम गइल. बोललसि, ‘एहले नीमन बाति का होखी. आ हम बताईं रउआ करिओ लेब.’ अतना कहि के ऊ लपक के रमेश का गोड़ पर गिर गइल. बोलल, ‘हम त हमेशा से रउरा साथे रहल बानी, आ हमेशा रहबो करब. रउरा अब घर समाज सभकर चिंता हमरा पर छोड़ीं आ इम्तिहान के तइयारी में लाग जाईं.’
‘दू तीन बरीस लाग सकेला. पढ़ाई-लिखाई से नाता छूटल जमाना हो गइल बा. दोहरावहीं में साल बीत जाई.’ ऊ बोलल, ‘आ पइसो लागी कापी, किताब, कोचिंग में से अलगा !’
‘हमार सगरी गहना बेच दीं बाकिर रउआ तइयारी करीं!’ ऊ सुबुकत कहलसि, ‘ई अपमान आ तंगी अब अउर बरदाश्त नइखे होखत !’
‘ठीक बा. हमरो से अब भड़ुवागिरी अउर दलाली वाली एह वकालत के तमाशा अउर नइखे हो पावत. भर जिनिगी निठल्ला बनल रहला से नीक रही कि एक आग में कूदिए जाईं. देखीं का होखत बा !’
इहे बाति ऊ बांसगांव जा के बाबू जी के बतवलन त ऊ कहलन, मुश्किल त बहुते बा रमेश, बाकिर आजमा लेबे में कवनो हरजा नइखे.’ कहलन, ‘कहबऽ त खेत-बारी बेचियो के तोहरा के फेर से पढ़ाएब.’
‘ना, एकर जरुरत शायद ना पड़ी.’ कहिके ऊ बाबू जी के गोड़ छुवलन आ शहर चल गइलन. पुरनका साथी-संगतियन के खोजलन. एकाध गो कोचिंगो सेंटर पर गइलन. फारम-वारम के पता लगवलन. कुछ किताब आ नोट्स जुगड़लन आ प्राण-प्रण से ऊ पढाई में जुट गइलन. फेर मुंसिफ़ी अउर एच.जे.एस दुनु के फारम भर दिहलन. यू.पी., एम.पी., बिहार, राजस्थान तमाम जगहन से. बहुते पईसा खरच हो गइल. कोचिंगो में पइसा खरच भइल. बाकिर ऊ एकर फिकिर ना कइलन. बाबू जी के आशीर्वाद अउर मेहरारु के समर्पण भरल प्यार रंग देखवलसि. ऊ दू जगहा से मुंसिफ़ी आ एक जगहा से एच.जे.एस. के रिटेन में आ गइलन. बाकिर एह बाति के केहू के बतवलन ना. सोचलन कि चुनइला का बादे केहू के बतइहें ना त बिना वजह छीछालेदर होखे के अनेसा रही. रमेश के मेहरारू छोड़ ई बाति केहू ना जानल. आ दुर्भाग्य देखीं कि ऊ तीनो जगहा छँटा गइलन. ऊ तनिका हताश त भइलन बाकिर टूटलन ना. कहलन, ‘एक-दू बेर अउर ट्राई करऽतानी. कानफिडेंस गेन करे में त तनिका समय लागहीं के बा.’
‘हँ. रउरा त कहलहीं रहीं कि दू-तीन बरीस लाग जाई.’
‘हँ.’
एहि बीच रीता के बिआहो एगो इंजीनियर से तय हो गइल. धीरज आ तरुण दुनु मिल के खरचा-वरचा कइलन. विनीतो थाईलैंड से आइल शादी में शामिल होखे. आ बाबू जी से कहलसि, ‘अब तरुणो के बिआह करिए दीं. जेहसे ऊ बाद में ना कहे कि हमरा बिआह में ना अइलू. बेर-बेर आवे-जाए में खरचो बहुत होखेला.’
‘अरे अबहीं रितवा के त हो जाए द.’ बाबू जी कहलन, ‘फेर तरुणो के सोचल जाई.’
रीता के बिआहो में लोग देखल कि रमेश आ उनुका मेहरारु के घर परिवार अनठियाहीं के रखलसि. एगो पट्टीदार खुसफुसइबो कइलसि, ‘एह घर में जेकरा लगे पइसा नइखे, ओकर कवनो इज़्ज़त नइखे.’ तबहियों रमेश के चेहरा विनीता के बिआह लेखा धुआं-धुआं ना लउकल. तनिका कानफिडेंस झलकल. रमेश के ई कानफिडेंसो लोग के रास ना आइल.
एक जने कहलन, ‘थेथर हो गइल बा आ बेशर्मो !’
रमेश के मेहरारू ई बात सुनियो के अनसुन कर दिहली. बहिनो सब रमेश आ उनुका मेहरारू के बहुत भाव ना दीहल. हालां कि रमेश कोशिश कइलसि कि जल्दी केहू का सोझा ना पड़े से ऊ अनजानल बरातियने का देख-रेख में लागल रहल. आ बारात विदा भइला का संगही गोला लवटि गइल. सपरिवार.
दोसरका बेर ऊ फेरु तमाम जगहन के फारम भरलसि. बाकिर अबकी के इम्तिहान में ऊ कतहीं रिटेनो में ना आइल. अब ओकर टूटे के बारी रहुवे. मेहरारु के पकड़ि के ऊ खूब रोवलसि. बाकिर मेहरारू उनुका के ढाढस बंधवलसि. आ रमेश फेरु तइयारी में लाग गइलन.
हालां कि आर्थिक स्थिति पूरा डांवांडोल हो चुकल रहुवे. छुटपुट कर्जो केहू ना देव. मेहरारू के सगरी गहनो बिका गइल रहुवे. बाकिर रमेश के मनोबल ठाढ़ रहुवे. बाबू जी के प्रैक्टिसो डांवांडोले रहुवे. ओने ओमई अब कवनो मंत्री से सिफ़ारिश लगवा के सरकारी वकील बन गइल रहल. बाबू जी के अउरी परेशान करे लागल रहुवे. घर के खरचा धीरज आ तरुण के मदद से चलल रहे. राहुलो तरुण का साथही रह के पढ़े लागल. बांसगांव में अब बाबू जी, अम्मा अउर मुनमुन रहि गइलें. मुनमुन अब इंटर में रहुवे. रमेश के मन में आइल कि धीरज आ तरुण से उहो कुछ दिन ला खरचा मांग लेव बाकिर ओकरा ज़मीर के गवारा ना भइल. आखिरकार मेहरारुवे नइहर गइल आ मायका अउर भाइयन से थोड़-थोड़ क के कुछ पइसा ले आइल. कुछ किताबन आ कोचिंग के खरचा के काम हो गइल.
रमेश तय क लिहलसि कि अब की जे अगर ना सेलेक्ट भइल त सपरिवार ज़हर खा के सूत जाई. अइसन खबर ऊ जब-तब अख़बारन में पढ़त रहुवे. गिरधारी राय कबो-कभार भटकत-फिरत गोला चलि आवसु. रमेश के ज़ख़्मन पर नून छिटे. एक बेर अइलन त रमेश से कहलन, ‘सुनऽतानी जे आजु-काल्हु तू कचहरिओ नइखऽ जात ? मेहरी का कमाई पर खटिया तूड़त रहेलऽ. अइसे कब ले चली ?’
रमेश चुपे रहल. कुछ बोललसि ना. बोलल ऊ तहिये जहिया एच.जे.एस. में ऊ फाइनली सेलेक्ट हो गइल. सब से पहिले ऊ मेहरारू का संगे मंदिर गइल. फेर बांसगांव गइल आ अम्मा बाबू जी के गोड़ छू के कहलसि कि, ‘आशीर्वाद दिहीं. एच.जे.एस. में चुना गइल बानी.’ मुनक्का राय लपकि के रमेश के अंकवारी बान्ह लिहलन. कहलन, ‘आजु हम तोहरा संगे कइल अपराध से मुक्त हो गइनी.’ अम्मा एच.जे.एस. के माने ना बूझलसि आ तब मुनक्का राय आपन छाती चौड़ा करत बतवलन कि, ‘अरे जज के नौकरी पा गइल बा.’ त ऊ मारे ख़ुशी के रोवे लगली. कहली, ‘एहू उमिर में जज के नौकरी मिल जाले ?’
रमेश के मेहरारू हँकारी भरत मूड़ी हिलवलसि. त ऊ रमेश के मेहरारू के अंकवारी में भरत रोवे लगली. मुनक्का राय कहलन, ‘ई भरत मिलाप बंदो करऽ आ आस-पड़ोस में मिठाई बँटवावे के बंदोबस्त करऽ.’
कह त दिहलनि मुनक्का राय, फेर ध्यान आइल कि अतना पइसा होखबो कहां करी ? बाकिर रमेश के अम्मा कोठरी में जा के संदूक खोलली आ आपन चोरउका में राखल पईसा मुनमुन के देत कहली कि, ‘पांच किलो लड्डू ले आवऽ.’
लड्डू बंटतहीं बांसगांव में सभका ख़बर हो गइल कि मुनक्का राय के बड़को बेटा जज हो गइल. जब केहू ई सूचना गिरधारी राय के दीहल कि रमेशवो एच.जे.एस. में सेलेक्ट हो गइल त ऊ उनुकर मुंह बवा गइल. कहलन, ‘एच.जे.एस. मतलब?’
‘हायर ज्यूडिशियल सर्विस!’
‘त हाई कोर्ट में जज?’ ऊ करीब बौखला गइल.
‘अरे ना भाई, रउरा त एल.एल.बी. पढ़ल हईं, अतनो ना जानीं ?’
‘ना भाई, बतावऽ त ?’
‘अरे सीधे एडिशनल जज होखी, मुंसिफ़-वुंसिफ़ ना.’
‘अच्छा-अच्छा.’ उनुका तनिका संतोष मिलल, ‘हाई कोर्ट में ना नू !’
‘ना.’
जइसे धीरज के पी.सी.एस. होखला पर बांसगांव झूम गइल रहल, अख़बारन में ख़बर छपल रहुवे, वइसन कुछ त रमेश के एच.जे.एस. होखला पर ना भइल बाकिर मुंसिफ़ मजिस्ट्रेट जरूर मुनक्का राय का घरे अइलें, बधाई देबे. रमेश से ऊ ‘सर-सर’ कहत मिलले आ कहलें, ‘का मालूम सर, कहियो रउरा संगे काम करे के मौका मिल जाव हमरो.’
‘बिलकुल-बिलकुल. ’ रमेशो उनुका से मन से मिलल. भाइयन के जब पता चलल त सभे फ़ोन क के रमेश के बधाई दीहल. विनीतो थाईलैंड से फ़ोन कइलसि. भाई सब बाद में बांसोगांव आइलें. फेर एकदिन रमेश अपना मेहरारू से कहलसि, ‘चलऽ अब गोला चलल जाव.’
‘अबहियों गोले?’मेहरारू जइसे मना कर दिहलसि.
‘चले के त पड़बे करी.’ रमेश बोलल, ‘अबहीं सेलेक्शन भइल बा बाकिर हमार अगिन-परीक्षा खतम नइखे भइल.’
‘मतलब?’
‘अबहीं ट्रेनिंग के बोलावा आइल बाकी बा, पता ना जाने कहिया आई. हो सकेला कुछ महीना लागि जाव. का पता कहीं बरीसो लागि जाव. फेर ट्रेनिंग होखी, तब कतहीं पोस्टिंग !’ ऊ कहलसि, ‘तबले एहिजा का कइल जाई?’
रमेश गोला पहुंचल तबले भाया बांसगांव ओहिजा के वकीलन में ई ख़बर पसर चुकल रहुवे. छोट जगहन के इहे त सुख होला कि तनिको अच्छा ख़बर मिलते एक-एक आदमी जान जाला. ओकरा देखे के नज़रिया बदलि जाला. अब रमेश गोला में वकील साहब से जज साहब बन चलल रहुवे, अइसन जज जेकरा के केहुओ छू के देखि सकत रहे. ना त, छोट का, बड़को जगहन पर आम लोग जजन के परछाईहों ना देखि पावे. ओने रमेश के मेहरारू का स्कूलो में उनुकर इज़्ज़त बढ़ गइल रहुवे. उनुकर प्रमोशनो हो गइल. ऊ अब मस्टराइन भा वकीलाइन से जजाइन बन गइल रहुवी. लोग खुद ही कहे, ‘हँ भई जजाइन त अब एहिजा कुछ ही दिन के मेहमान बाड़ी.स’
बाकिर दिल्ली रहल कि दूरे होत जात रहल. ट्रेनिंग में बोलावा के इंतज़ार लमहर होत जात रहुवे. एने माली हालत निरंतर बिगड़ल जात रहुवे. जज बनला के उछाह पइसा के अभाव में टूटल जात रहुवे. ख़ैर, कुछ महीना बाद ट्रेनिंग के लेटर आइए गइल. ट्रेनिंग का बाद पोस्टिंगो हो गइल. रमेश परिवार अउर सामान ले जाए गोला गइलन. गाढ़ समय में दीहल मदद ला सभका के धन्यवाद दिहलें. मेहरारू के स्कूल वालन के मन राखे खातिर ऊ उनुका स्कूलो में गइलन. एगो छोट-मोट अभिनंदन समारोहो हो गइल उनुकर. अपना संबोधन में ऊ अपना सफलता खातिर एह स्कूलो के योगदान रेघरियवलन. कहलन कि, ‘हमार प्रैक्टिस त कुछ ख़ास चलत ना रहुवे. बाद का दिने त हम कचहरिओ ना जात रहीं. त एह स्कूल में इनिका नौकरिए से हमार गृहस्थी, हमार रोटी-दाल चलत रहुवे. एह स्कूले का कारण हम सीना तान के जी पइनी आ एहिजा ले आ पइनी. एह स्कूल के हम भर जिनिगी ना भूलाएब. रउरो सभे, जबे याद करब, बोलाएब त हम हमेशा-हमेशा रउरा सभ का लगे आएब, रउरा साथे रहब.’ बोलत घरी ऊ मंच पर बइठल अपना मेहरारू के देखलनि, त उनुकर आंख डबडबाइल रहुवे. शायद मारे ख़ुशी के. स्कूल से चलत बेरा मेहरारू प्रिंसिपल के आपन इस्तीफ़ा सउँप दिहली.
उनुका उम्मीद रहल कि गोला अउर बांसगांव कचहरी के वकीलो शायद बार एसोसिएशन का तरफ से उनुका के शायद स्वागत करे ला बोलइहें बाकिर केहू नोटिस ना लीहल. बोलावल त फरदवला रहल. सामान कुछ ख़ास रहुवे ना. एगो पिकअप वैन में सामान भरि के जब ऊ चललन त कहलन, ‘चलऽ. एहिजा से आबोदाना उठ गइल. देखऽ अब जिनिगी कहां-कहां ले जात बिया.’ मेहरारू मुसुका के रहि गइल.
‘हम ना जानत रहुवीं कि आदमी के अपमानो ओकरा के तरक्क़ी का रास्ता पर ले जा सकेले. अब इहो जान गइनीं.’ रमेश बोललन, ‘बतावऽ ई हमहन के घर वाला, ई समाज, रिश्तेदार, पट्टीदार अउर ख़ास क के धीरज हमरा के अतना अपमानित ना कइले रहतन त का हम आजु जज साहब कहल जइतीं ?’ ऊ अपना मेहरारू के बांह में भरत कहलन, ‘आ तोहार प्यार, तोहार समर्पण, अउर तोहार संघर्ष जे हमार साथ ना दिहले रहीत तबहियों ना. बलुक हम त मर गइल रहतीं.’ ऊ तनिका थथमल आ बोलल, ‘एक बेर त हम तए क लिहले रहीं कि अबकी जे सेलेक्ट ना भइनी त माहुर खाके सपरिवार जीवन खतम कर लेब. ई अपराध तोहरा के हम आजु बताव बानीं.’
‘अब त अइसन मत बोलीं.’ कहत मेहरारू रमेश का मुंह पर हाथ रख दिहलसि.
बाहुबली ठाकुरन के एह गांव बांसगांव, जवन तहसीलो रहल, में अब मुनक्का राय के धाक जम गइल रहल. बीच में जे लोग उनुका से कतराए लागल रहुवे उहो अब उनुका के प्रणाम करे लगलें. कचहरी में ओमईओ अब बुताइल रहे लागल. पहिले ऊ मुनक्का राय के देखते सीना उतान क के चले लागत रहुवे, अब मूड़ी नवा लेव आ ‘चाचा जी प्रणाम!’ कहि के गोड़ो छूवे लागल रहल.
बाकिर गिरधारी राय ?
उनुकर हेकड़ी अबहियों बरक़रार रहुवे. अतना सब होखला का बादो ऊ मुनक्का राय के नीचा देखावे के कवनो मौका बाँव ना जाए देसु. सिल्क के कुर्ता-जाकेट अउर टोपी लगवले ऊ अब नेता कहाए लागल रहलें. बाकिर पता ना का घरे, का बहरे लोग उनुका के नेताजी ना, सिर्फ़ नेता कहल करसु. आ नेतो के एह पर कवनो खास उजूर ना रहुवे. बहुते बेर लोग उनुका के नेता बाबा, नेता भइया भा नेता चाचा कहियो के बोलावल करे. आ ऊ खैनी मलत, फटकत, फूंकत, खात, थूकत मगन रहसु. जब-तब तेज़ आवाज़ में हवा ख़ारिज करत घूमत रहसु. कई बेर त ऊ जइसे कपड़ा फाड़े पर चरचरचइला के आवाज होला वइसने आवाज लगातार निकालल करसु. दिन गुज़रत जात रहल आ बांसगांव के सांस में दुनू चचेरा भाइयन के पट्टीदारी राणा प्रताप बनल चेतक पर चढ़ल करे. ई इबारत केहुओ साफ़ पढ़ सकत रहुवे.
पढ़ाई खतमे कइले रहल राहुल कि ओकरा बिआहो के दिन आ गइल. बिआह विनीता तय करववले रहुवे. होखे वाली दुलहिन रहुवे त एही जिला के बाकिर थाईलैंड में रहल रहुवे. ओकर माई बाबूजी दू पीढ़ियन से ओहिजे बस गइल रहलें. से ओकर जनम ओहिजे भइल रहल आ एह नाते ऊ ओहिजे के नागरिक रहुवे. राहुल के फ़ायदा ई होखे वाला रहल कि थाईलैंड के एह लइकी से बिआह कइला का बाद उनुको ओहिजा के नागरिकता मिल जाई आ नौकरिओ आरामे से भेंटा जाई. बाक़ी भाइयन का तरह कंपटीशन वग़ैरह देबे के मूड में ना रहुवे ऊ. सबकुछ ऊ फटाफटे हासिल क लीहल चाहत रहल. रमेश आ धीरज दुनू उनुका के समुझवलें कि, ‘वइसे शादी कइल चाहत बाड़ऽ त कवनो हरज नइखे बाकिर अगर एह लालच में करत बाड़ऽ कि थाईलैंड के नागरिकता भेंटा जाई आ ओहिजा नौकरी लाग जाई त अइसन मत करऽ.’ बाकिर राहुल के विनीता अतना कनविंस क लिहले रहल कि ऊ केहू के सुने के तइयार ना रहल. मुनक्को राय इशारे में सही बाकिर कहलन कि, ‘टैलेंटेड बाड़ऽ, कैरियर नीमन बा. भाइयने का तरह कम्पटीशन में बइठऽ. कहीं ना कहीं चुनाइए जइबऽ.’ ऊ जोड़बो कइलन कि, ‘अगर रमेश बुढ़ौतिओ में सफलता हासिल कर सकेला त तूं त अबहीं गबरू जवान बाड़ऽ. आपन एम.एस.सी. गारत मत करऽ एह तरह !’
बाकिर राहुल पर विनीता के जादू चल गइल रहुवे.
आ आखिरकार लड़की वाला थाईलैंड से अइलें आ राहुल के बिआह ले गइलें. जी हँ, जइसे लड़िका वाला लड़की बिआह के ले जालें वइसहीं राहुल के ससुरारी वाला राहुल के बिआह ले गइलें. बस बिआह का बाद दू महीना इंडिए में रहे के प्रोग्राम दुलहिन के पहिले से बना के आइल रहलें. कोर्ट मैरिज अउर वीज़ा वोगैरह के फार्मेलिटीज़ पुरावे ला. पासपोर्ट त राहुल पहिलहीं से बनवा रखले रहल.
ख़ैर, एह बिआह में बाजार भाव से अधिके तिलक-दहेज मिलल मुनक्का राय के अपना बेटा खातिर. आखि़र लड़िका ए.डी.जी., ए.डी.एम. अउर बैंक मैनेजर के भाई रहुवे. लड़िकी वालन का लगे थाईलैंड के कमाई रहल आ ओकरा के देखावे के ललको रहल. बिआह धूमधाम से भइल. बारात बांसगांव से शहर गइल. बारात में द्वारपूजा का बाद जज साहब, आ उनुका चाचा के खोज भइल त दुनू जने गायब रहलन. दू-तीन घंटा ले दुनू जने के एहिजा-ओहिजा खोजाईओ भइल. बाकिर कहीं पता ना पागल. बारात में गुपचुप सन्नाटा पसर गइल. नौबत अब पुलिस में रिपोर्ट करावे के आ गइल. बाकिर एगो वकील साहब कहलन कि ‘जल्दबाज़ी ना करे के चाहीं. तनिका देर अउर देख लीहल जाव. रिपोर्ट त बादो में लिखावल जा सकेला.’ बारात में सन्नाटा पसरले जात रहुवे. बारात के सगरी ख़ुशी मातम में बदले लागल रहुवे. द्वारपूजा का बाद के रस्मो रोक दीहल गइल रहुवे. लोग कहत रहे कि बांसगांव से त दुनू जने चलबे कइलें. फेर गायब कब आ कहाँ हो गइलें. फेर राय बनल कि बांसगांव घरे फ़ोन कर के पूछ लीहल जाव. बाकिर मुनक्का राय ई कहि के रोक दिहलें कि, ‘घरे बस मेहरारू बाड़ी सँ आ रो-गा के पूरा बांसगांव बटोर लिहें सँ. बदनामिओ होखी आ भद्दो पिटाई.’
खाना-पीना हो चुकल रहुवे आ घराती बेर-बेर आ के बारात में आगा के रस्म करावे ला ज़ोर डालत रहलें. अगिला रस्म ताग-पात के रहुवे जवना के पंडित जी लोग कन्या निरीक्षणो कहेला. एह रस्म में दुलहा के बड़का भाई सब विधि करावेला. आ एहिजा बड़के भइया, माने जज साहब, ग़ायब रहलन. से जनवासा के मुर्दनी छपले पड़ल रहुवे. एक जने सलाह दिहलन कि ए.डी.एम. साहब भा बैंक मैनेजर साहबे से ई रस्म करवा लीहल जाव. बाकिर ए.डी.एम. साहब, माने कि धीरज गँवे से बोलल, ‘ना जज साहब के आ जाए दीहल जाव.’
जज साहब आ चाचा जी अधरतिया के करीब बारह बजे आइल लोग. सभका जान में जान आइल. पता चलल कि चाचा जी आपन कुरता सिआवे ला उर्दू बाज़ार के एगो ख़ास दर्जी मटका टेलर्स के दिहले रहलन. ख़ास एही बारात ला. दुकान पर चहुंपलन त पता चलल कि जवन दर्जी ओह कुरता के सीयत बा ऊ ओह दिन आइले ना रहुवे. आ चूंकि कुरता हाथ से सिए के रहल से ऊ घरहीं लेले गइल रहुवे. आ घर ओकर शहर का बहरी एगो गांव में रहुवे. चाचा जी अब ओकरा गांवे गइलें. जज साहब के कार साथे रहबे कइल. दर्जी का गांवे गइलन त कुरता के कुछ काम बाकिए रहल. काम करवलन. कुरता पहिरलें आ बारात खातिर चलल लोग. रहता में जाम मिल गइल. जाम से निकललें त गाड़ी ख़राब हो गइल. फेर रिक्शा लिहलें आ बारात में चहुंपले. मुनक्का राय ई सब सुन के बहुते नाराज़ भइलन बाकिर मौक़ा के नज़ाकत देखत कुछ बोललन ना. ओने दुलहा राहुलो जज साहब पर कुपित रहुवे. उनुके वजह से ओकरा बिआह में खरमंडल हो गइल. ई बात ऊ आगहूं का दिनन में ना भुलाइल कबो.
ख़ैर, बिआह के कार्यक्रम पूरा भइल. औपचारिकतन के पुरावल गइल. बाद में कोर्टो मैरिज भइल आ ओकरा बादे वीज़ा मिलल. राहुल के ले के उनुकर दुलहिन थाईलैंड उड़ गइल. अब बांसगांव में रह गइलन मुनक्का राय, उनुकर पत्नी आ बेटी मुनमुन राय.
इहो एगो संजोगे रहल कि जइसे-जइसे मुनक्का राय के परिवार में बेकत कम होखल गइलें, ठीक वइसहींं बांसगांव तहसीलो ढहल जात रहुवे. आस पास के क़स्बा बढ़त जात रहलें, विस्तार के पाँख लगवले. बाकिर बांसगांव ठिठुरत रहुवे, सिकुड़त रहुवे. देश के जनसंख्या बढ़त रहल, बाकिर बांसगांव के सिर्फ जनसंख्ये ना तहसील के रक़बो घटत जात रहुवे. 1885 में बनल एह तहसील में पहिले करीब बाइस सौ गांव रहुवे. 1987 में दु गो नया तहसील – गोला अउर खजनी – बन गइला से अब बांसगांव में महज सवा चारे सौ गांव रह गइल रहुवे. कहां त तमाम तहसील ज़िला बनत जात रहली सँ, कहां बांसगांव तहसीले बनल रहे खातिर हांफत रहल.
1904 में बनल तहसील के बिल्डिंग ख़स्ताहाल हो चलल रहुवे. बाकिर बांसगांव के बाबू साहबान के दबंगई आ गुंडई अबहियों अपना शान आ रफ़्तार पर रहली सँ. आ ई शान अउर रफ़्तार अइसना वेग में रहली सँ कि बांसगांव बसला का बदले उजड़ल जात रहल. कवनो व्यवसायी एहिजा फरत-फुलात ना लउकत रहल. कवनो उद्योग भा रोज़गार के ठेकाने ना रहल. ले दे के एगो कचहरी, एस.डी.एम. के दफ़्तर अउर कोतवाली रहल. पोस्ट आफ़िस, ब्लाक के दफ़्तर आ प्राथमिक चिकित्सालयो रहुवे. एगो कालेज लड़िकन के आ दोसरका लड़िकियन के इंटर कालेज रहली सँ आ एगो प्राइवेट डिग्री कालेजो रहल. बाकिर एह सभ का भरोसे भला कतहीं आबादी बसेले ? सड़कन में एक-एक फ़ीट के गड़ही. दोसरे, बाबू साहबान के दबंगई, उनुकर रंगदारी. चाय पी लिहें, पान खा लिहें, पइसा ना दिहें. ग़लती से अगर दुकानदार पइसा मांग लिहलसि त ओकरा के लात-जूता से धुन दिहें. बाबू साहबान एहिजा के पहिला दर्जा के नागरिक रहलें. बाकी लोग दुसरका-तीसरका दर्जा के नागरिक. तेहू पर कब गोली-बंदूक़ चल जाई केहू ना जानत रहुवे.
शहर के यूनिवर्सिटी में ओह दिनन में अइसन वाक़या अकसरहाँ घटल करे. एक त बाबू साहब लोग पढ़ाई करे यूनिवर्सिटी ले अइबे ना करसु. आइओ जासु त पूरा दबंगई का साथे. बग़ल का ज़िलन में दू गो गांव कईन आ पैना बाबूए साहबान के रहुवे. यूनिवर्सिटी में दबंगई चलल करे आ सामने वाला बतावे कि हमार गाँव कइन ह त लोग चुप लगा जाव. बाकिर अगर कवनो दूसर दबंग आ जाव आ ओकरा के कहे कि, ‘तूं कईन के हउवऽ नू ? त हमार घर पैना हवे.’ त कईन वाला चुपा जाव आ कहीं तिसरका आ के बता देव कि ‘हमारा घर बांसगांव ह !’ त पैनो वाला चुपा जाव. त ई रहुवे बांसगांव के तासीर !
वइसहूँ अगल-बगल का गांवन में एगो बात बड़ मशहूर रहुवे कि अगर सुबह-सबेरे केहू बांसगांव के नाम ले ली त ओह दिन ओकरा दिन भर पानी ना भेंटाई, खाना त दूर के बात रही. बांसगांव मतलब बिपत. बलुक बिपत के पिटारा. मुनक्का राय के गांव में त एगो बुढ़ऊ बहुते ठसक से कहसु कि, ‘हम बांसगांव नइखीं देखले. आजु ले गइलो नइखीं.’ कवनो नवही पूछ लेव त खिसिया जासु. कहसु, ‘कवनो चोर चकार हईं का जे बांसगांव जाईं ?’ मुख़्तसर में बांसगांव का रहल, पूरा तालिबान रहल.
आ अइसनका बांसगांव में मुनमुन जवान होखत गइल. अब ‘हम कइसे चलीं डगरिया लोगवा नज़र लड़ावेला’ गाना जे ऊ लईकाईं में सुनले रहल, ओकरा जवानी में छलके लागल रहुवे. ओकर शेख़ी भरल शोख़ी बांसगांव में एगो नया सनसनी परोसत रहुवे. कवनो रोक-छेंक रहुवे ना. सखी-सहेलिन टोकऽ सँ त ऊ कहल करे – ‘ख़ुदा जब हुस्न देता है, नज़ाकत आ ही जाती है !’
मुनक्का राय आ उनुकर अफ़सरान बेटा लोग मुनमुन के एह हुस्न अउर नज़ाकत से बेख़बर रहलें. राहुल के बिआह का बाद भाइयन में ना-जाने बारात में कुर्ता वाली घटना से भा कवनो दोसरा कारण से मनमुटाव के बीया पड़ गइल रहल. भा उनहन के व्यस्तता अउर शहरन के दूरी उनहन के अउर दूर करत रहुवे, ई समुझल कठिन रहल. बाकिर ई फ़रक मुनक्का राय साफ़े महसूस करत रहलें. अब जज साहब, ए.डी.एम. साहब, बैंक मैनेजर साहब के फ़ोने आइल कम ना हो गइल रहुवे, बलुक घर कइसे चलत बा एकरो सुधि केहू ना लेत रहुवे. अलबत्ता थाईलैंड से राहुल के फ़ोन हफ़्ता में एक दू बेर ज़रूर आ जात रहल. बाद के दिन में जब अम्मा घर ख़रचा अउर बीमारी आ दवा के दिक्क़त बतवली त राहुल रेगुलर त ना बाकिर गाहे-बगाहे कुछ रुपिया भेज देत रहुवे – हवाला का ज़रिए. बाकिर जइसे बांसगांव के हालात बिगड़ल जात रहुवे, ओही तरह मुनक्का राय के घर के आर्थिक हालातो बद से बदतर होखल जात रहुवे. आ अइसे में जब फ़ोन के बिल चार हज़ार रुपिया से अधिका के आ गइल त मुनक्का राय के माथा ठनकल.
ऊ टेलीफ़ोन आफ़िस जा के भिड़ गइलन आ बतवलन कि, ‘फ़ोन आवेला अधिका, कइल कम जाला.’ बाकिर एस.डी.ओ. कुछ सुने के तइयार ना रहलन. उनुकर कहना रहल कि, ‘कम्प्यूटराइज़ बिल हवे, एहमें कुछ ना कइल जा सके. आगे से अपना किहाँ से होखे वाला काल पर कंट्रोल करीं.’ एह पर मुनक्का राय कहलन, ‘बाकिर एह बिल के जमा कहाँ से करीं ?’
‘अरे राउर बेटा लोग अतना बड़हन-बड़हन ओहदा पर बाड़ें, से दिक्क़त का बा ?’
‘अब का दिक्क़त बताईं हम रउरा के ? आ रउरा समुझब का ?’ मुनक्का राय तिलमिलइलन.
‘बूझनी ना.’ एस.डी.ओ. कहलन.
‘अरे, अब कवना बेटा का आगा हाथ पसारी कि ऊ टेलीफ़ोन के बिल जमा करवा देव. ?’
‘ओह!’ एस.डी.ओ. समुझ गइलन मुनक्का राय के मुश्किल. कहलन, ‘लीं हम एकरा के दू पार्ट में कर देत बानी. दू बेर में जमा करा दीं. बाकिर फ़ोन पर या त डायनमिक लाक ले लीं भा बाज़ार वाला ताला लगा लीं. ना त ई दिक्क़त हर बेर आई.’
‘काहें आई ?’
‘एहसे कि फ़ोन त हो रहल बा. चाहे घर वाला करत होखसु भा बाहर वाला.’
‘ठीक बा.’
घरे आ के ऊ समस्या बतवलन त मुनमुन भड़क गईल. कहलसि, ‘हम कहीं फ़ोन-सोन ना करीं.’
‘हम करीलें ना, तोहार माई करीले ना, तूं करेलू ना त फोन करत के बा ? का भूत करत बा ?’
‘अब हमरा का मालूम ?’ मुनमुन फेरु भड़क गइल.
मुनक्का राय बेटी के एह भड़कला से दुखित हो गइलन. डायनमिक लॉक के कोड वग़ैरह उनुका बुझाव ना से ऊ बाज़ार से ताला ले आ के फ़ोन में लगा दिहलन. अगिला बेर बिल डेढ़ हजार रुपिया के आइल. मुनक्का राय फेरु घर में झांय-झांय कइलन आ धिरवलन कि, ‘अगर अगिला बेर फेरु बढ़ल बिल आइल त फोनवे कटवा देब.’ टेलीफ़ोन के बिल चनरमा का तरह घटत-बढ़त रहल बाकिर एवरेज बिल कबहूं ना आइल. दिक्क़त ई रहल कि फ़ोन कटवावलो व्यावहारिक ना रहल. लईकन से संपर्क के इहे एगो पुल रहल. ख़ास क के थाईलैंड में राहुल से संपर्क के. बाकिर मुनमुन रहल कि मानते ना रहल. एने मुनक्का राय नोट कइलन कि राहुल के एगो पुरनका दोस्त के उनुका घरे आइल-गइल कुछ अधिके बढ़ गइल रहल. ऊ मुनमुन के माई से पूछबो कइलनकि, ‘ई हमरा घरे काहें आवल करेला !’
‘राहुल के दोस्त हवे. हालचाल लेबे आ जाला.’ ऊ बतवली.
‘बाकिर राहुल के रहत घरी त अतना ना आवत रहुवे, अब काहें आवत बा?’ ऊ पूछलन कि, ‘हमरा घर के हालचाल से एकरा का ?’
‘रउरा त बिना वजह शक करत बानीं. ‘
‘शक नइखीं करत. बाकिर घर में एगो जवान बेटी बिया. फ़िकिर त करहीं के पड़ी.’
एने मुनक्का राय के फ़िकिर आ ओने बांसगांव के सड़कन पर मुनमुन राय के ज़िकिर. दुनू के ग्राफ़ बढ़ते जात रहुवे. होखे के त विनीता आ रीतवो एही बांसगांव में जवान भइली सँ. बाकिर मुनक्का राय के कबो ओहनी के चिंता ना करे के पड़ल रहुवे. भाइयन के लगातार बांसगांव आवत-जात रहला आ जब-तब बांसगांवे में रुक गइलो एगो बड़हन फ़ैक्टर रहल. ओह दुनू बहिनन के एह तरह बहकत-चहकत ना देखलसि बांसगांव. ओहनी के जिकिरो बांसगाव के सड़कन पर ना सुनाइल. अंकुश में रहुवे ओहनी के जवानी अउर जवानी के धड़कन. बाकिर मुनमुन राय?
एक त जज, अफ़सर, अउर बैंक मैनेजर के बहिन होखला के ग़ुरूर. दोसरे, बूढ़ माई-बाप के ढील अंकुश. तिसरे, जवानी के जादू. जवना में केहू दोसरा के रोक-टोक सिरिफ आ सिरिफ माहूरे लागेला. मुनमुनो के लागत रहुवे. अब ऊ बी.ए. फ़ाइनल में पढ़त रहुवे आ बांसगांव के सरहद लांघते राहुल के ओह दोस्त का बाइक पर लउकल करे. कबो कवनो मकई के खेत में त कबो ऊँख भा रहर के खेत में ओकरा साथे बइठल बतियावत लउकल करे. आ जे कहीं अकेलहूं रहे तबो गावत चले, ‘सइयां जी दिलवा मांगे लैं अंगोछा बिछाई के !’ ऊ गावत जाव, ‘हम दिल दे चुके सनम!’ आ अब ऊ मेक-अपो ख़ूब करे लागल रहुवे. बांसगांव में जब ओकरा के कवनो नया मनई देखे आ केहू से ओकरा बारे में जानल चाहे कि, ‘कवन हियऽ ई भइया !’ त सामने वाला जवाब देव, ‘अरे अफ़सर आ जज के बहिन हियऽ.’ फेरु जोड़े, ‘मत देखीह ओने, ना त आंख निकाल लिहें सँ सभ.’
बाकिर बात जब हद से ज्यादा बढ़ल त मुनक्का राय एक दिन घर में ओकर जम के क्लास लीहलन. मुनमुन जवाब में कुछ कहला का जगहा सीधे उनुका गरदन पर दुनू हाथ डाल के झूल गइल. एकदम से कवनो नान्ह गुड़िया जइसन. आ कहलसि, ‘लोगन के बात में काहें जाइले बाबू जी ! का हमरा पर रउरा भरोसा नइखे.’ ऊ कहलसि, ‘केहू का साथे बाइक पर बइठ गइला से भा कतहीं बईठ के बतियवला भर से का कवनो लईकी आवारा हो जाले ? सोसाइटी बदलत बावे बाबू जी, रउरो बदलीं. ई सड़ल-गलल दक़ियानूसी ख़याल दिमाग़ से निकाल फेंकीं. आ हमरा पर भरोसा करीं.’
मुनक्का राय मान गइलन. रीझ गइलन बेटी के एह आधुनिक ख़याल पर. पोल्हा गइलन ओकरा एह भोलापन पर. बाप के वात्सल्य प्रेम के चश्मा उनुका आंखिन पर चढ़ गइल. ऊ अबले जइसे बाकी लईकन पर भरोसा कइले रहलन, आंख मूंद के, मुनमुनो पर कर लीहलन. ओही घरी एक दिन ऊ अपना गाँवे गइलन. घर त गिर-गिरा के घूर बन गइल रहल बाकिर बटाई पर दीहल खेती के हिसाब किताब करे. ओहिजे पता चलल कि गांव के प्राइमरी स्कूल में शिक्षा मित्र के भरती होखे वाला बा आ कि गिरधारी राय अपना एगो पतोह के शिक्षा मित्र बनवावे जात बाड़न. मुनक्का राय के कान खड़ा हो गइल ऊ ओहिजे तय कर लीहलन कि गिरधारी के पटकनी देबे के बा. आ चाहे जवन कुछ हो जाव उनुका पतोह के शिक्षा मित्र नइखे बने के देव. मुनक्का राय के आर्थिक हालात त अबहीं बिगड़ते रहल बाकिर गिरधारी रायो के आर्थिक स्थिति चरमरा गइल रहुवे. मुनक्का राय का लगे बेटन के एगो परदेदारिओ रहल, आ वक्त-बेवक्त बेटा कामे आ सकत रहलें. आइबे करसु. बाकिर गिरधारी राय के सगरी बेटा निकम्मा हो चुकल रहले सँ, एगो ओमई के छोड़ के. आ ओमईओ किहां कवनो पइसा बरसत ना रहुवे, उहो जइसे-तइसे आपन गाड़ी खींचत रहल.
बहरहाल, मुनक्का राय निचला स्तर पर ग्राम प्रधान वग़ैरह का बजाय शहर जा के सीधे बेसिक शिक्षा अधिकारी से मिले के सोचलन. हालां कि एह घरी अइसन हो गइल रहल कि आदमी ज़िलाधिकारी से त तबहियों भेंट कर सकत रहुवे. बाकिर बेसिक शिक्षा अधिकारी त गूलर के फूल रहलन, ईद के चांद रहलन. उनुका से मिलल भगवान से मिलल रहल. ख़ैर, बहुते कोशिश का बाद बेसिक शिक्षा अधिकारी मुनक्का राय के मिल गइलन. मुनक्का राय अपना जज अउर ए.डी.एम. बेटन के हवाला दीहलन आ अपना बेटी मुनमुन के शिक्षा मित्र बनावे के प्रस्ताव रखलन. बेसिक शिक्षा अधिकारी मुनक्का राय के पी.सी.एस. बेटा धीरज के जानत रहल. कवनो जिला में कबो दुनू एके साथ रहलें. से ऊ मुनक्का राय के भरपूर आदर दीहलन आ कहलन कि, ‘अइसन भाइयन के बहिन के शिक्षा मित्र बनल शोभा ना दी.’
‘बाकिर हमार सगरी बच्चा स्वाभिमानी हउवें सँ. संघर्षे कर के आगा बढ़ल बाड़े सँ, इहो जगह पा जाई त आगा बढ़ी. आ फेर ई शिक्षा मित्र के नौकरिए त आखिरी पड़ाव नइखे होखे जा रहल. ऊ कंपटीशनन में बइठी, मेहनत करी आ जरुरे कहीं ना कहीं चुना जाई.’ मुनक्का राय बेसिक शिक्षा अधिकारी के झांसा दीहलन आ ऊ मान लीहलन. बाकिर एने मुनमुन तइयार ना रहुवे. उहो इहे तर्क दिहलसि कि जज आ अफ़सर के बहिन हो के अतना छोट नौकरी ! शिक्षा मित्र के नौकरी ? मुनक्का राय समुझवलन कि अपना गोड़े खड़ा हो जइबू आ इहो कि कवनो काम छोटा भा बड़ा ना होखे. आखिरकार मुनमुनो मान गइल.
मुनक्का राय अप्लीकेशन तइयार करववलन, सर्टिफ़िकेटन के फ़ोटो कापी नत्थी कइलन आ दे अइलन बेसिक शिक्षा अधिकारी के. मुनमुन राय अब अपने गांव के स्कूल के शिक्षा मित्र हो गइली. गिरधारी राय जब ई सुनलन त अकबका गइलन. एगो नज़दीकी से बोलबो कइलन कि, ‘ई मुनक्का हमरा के पटकनी दीहले बा. ना त ओकरा का जरुरत रहुवे अपना बेटी के शिक्षा मित्र बनवावे के.’ खैनी बगल में कोना देख के थूकत ऊ जइसे जोड़लन कि, ‘ज़रूरत त हमरा रहुवे.’
मुनमुन राय शिक्षा मित्र भलही हो गइल रहली बाकिर गिरधारी राय के उम्मीद रहुवे कि ऊ ई नौकरी ढेर दिन ले ना खींच पाई. दू गो कारण से. एगो त बांसगांव से गांवे आवते-जात में ओकर पाउडर छूट जाई. आ तबो ना मानी त बिआह का बाद त छोड़िए दी. वइसे ऊ एही बहाने मुनक्का के घर में भेद डाले के एगो चालो चल दीहलन. धीरज के गांवे का एगो आदमी से फ़ोन करवा के ई ख़बर परोसवइलन ई पूछत कि, ‘का तोहरा लोग के कमाई कम पड़त रहुवे जे अपना फूल जइसन बहिन के शिक्षा मित्र बनवा दीहलऽ लोग ?’
धीरज ई ख़बर सुनते भड़क गइल. पलटते बांसगांव फ़ोन कइलसि. बाबू जी भेंटइलन ना, ना ही मुनमुनवे. भेंटइली अम्मा त उनुके से आपन विरोध दर्ज कइलसि. बाकिर अम्मो एगो सवाल क के ओकर बोलती बन्द करा दिहली, ‘बाबू तोहरा बाबू जी के प्रैक्टिसे अब कतना के रहि गइल बा. तू अब भलही ना जानऽ, सगरी बाँसगांव के मालूम बा. तू जब मास्टर रहलऽ त घर के ख़रचा चलावत रहल. अब अफ़सर बनला का बाद जनलऽ भा जाने के कोशिशो कइलऽ कि घर के ख़रचा कइसे चलत बा ?’
‘हम सोचनी कि जज साहब बाड़न, तरुण बाड़न आ अब त राहुलो बा.’ दबले जबान में धीरज बोलल.
‘आ ऊ सब सोचत बाड़ें कि तू बाड़ऽ.’ – अम्मा बोलली, ‘बाबू एगो राजा रहलन. सोचलन कि ऊ दूध से भरल एगो तालाब बनावसु. तालाब खुदवइलन आ प्रजा से कहलन कि फला दिन सुबह-सुबह राज्य के सगरी प्रजा एक-एक लोटा दूध एह तालाब में डाली. ई सभका ला जरुरी क दीहलन. प्रजा तोहरा लोग जइसन रहुवे. एगो मनई सोचलसि कि सभ लोग त दूध डलबे करी तालाब में, हम अगर एक लोटा पानिए डाल देब त केकरा पता चली ? से ऊ पानी डाल दिहलसि. दिन में राजा साहब देखलन कि पूरा तालाब पानी से भर गइल बा. दूध के त कतहीं नामोनिशान नइखे. त बाबू तोहरा लोग के बाबू जी अपना परिवार के उहे राजा हउवन. सोचत रहलन कि सब बेटा लायक़ हो गइल बाड़े सँ. तनिको-तनिको भेजत रहिहें त बुढ़ापा सुखी-सुखी गुज़र जाई. बाकिर जब उनुकर आंख खुलल त ऊ देखलन कि उनुका तालाब में त पानियो नइखे. ई कइसन तालाब खोदलन तोहरा लोग के बाबू जी. बेटा हम आजु ले एकरा ना समुझ पवनी.’ – कह के अम्मा रोवे लगली.
धीरज फ़ोन रख दिहलसि. साँझ बेरा जब मुनक्का राय कचहरी से लवटलन त चाय पानी का बाद पत्नी बतवली कि, ‘धीरज के फ़ोन आइल रहुवे. मुनमुन के नौकरी से बहुते नाराज़ बा.’ बाकिर मुनक्का राय पत्नी के बात अनसुना कर दीहलन. देखावे ला त मुनक्का राय मुनमुन के शिक्षा मित्र बनवा के गिरधारी के पटकनी भलही दिहले रहलन बाकिर अचल में त ऊ घुमा-फिरा के एगो नियमित आमदनी के सोता खोलले बाड़न. इहो एगो निर्मम सचाई रहुवे. सचाई इहो रहुवे कि मुनमुन राय छोट होइओ के, लड़की होइओ के उनुका बुढ़ापा के लाठी बन गइल रहुवे. गँवे-गँवे मुनमुनो राय के एह आर्थिक वास्तविकता से वास्ता पड़े लागल. शिक्षा मित्र के वेतन मुनमुन पहिले त जेब ख़रचा मान के उड़ावे लगली. फेर कबो-कबो मिठाई आ फलो ले आवे लगली घर में. बाद में सब्जिओ ले आवे के पड़े लागल, पहिले कबो-कबो आ बाद में नियमित. आ अब त सब्जिए ना साबुन-सर्फ़ अउर बाबू जी के दवाईओ ले आवे लगली. पहिले का दिनन में ऊ सोचल करे कि कइसे खरचे ई तनखाह. आ अब सोचे के पड़त रहुवे कि अतने से घर के ख़रचा कइसे चलावे.
फ़र्क़ आ गइल रहुवे मुनमुन राय के ख़रचा में, सोच में, आ चाल में. बांसगांव के सड़क ई दर्ज करत रहुवे. कवनो जमीन के खसरा, खतियौनी, चौहद्दी अउर रक़बा का तरह. ऊ अब गावत रहल, ‘ज़माने ने मारे हैं जवां कैसे-कैसे!’ ऊ अब जिअतो रहल आ मुअतो रहल. ओकरा लागत रहल कि बाबू जी अउर अम्मा का तरह उहो अब बूढ़ाए लागल बिया. बाबू जी आ अम्मा के आर्थिक संघर्ष अब ओकर संघर्ष बन गइल रहल. ओकर शेखी भरल शोख़ी के संघर्ष के साँप जइसे डसले जात रहुवे. एक दिन रात के खाना खइला का बाद ऊ बाबू जी का लगे आ के बइठ गइल. पुछलसि, ‘बाबू जी हम एल.एल.बी. कर लीं ?’ बाबू जी हंस के बोलले, ‘तूं एल.एल.बी. क के का करबू ?’
‘राउर हाथ बटाएब !’
‘त शिक्षा मित्र के नौकरी छोड़ देबू ?’ डेराइल मुनक्का राय पूछलन.
‘ना-ना’ ऊ बोलल, ‘हम इवनिंग क्लास ज्वाइन कइल चाहत बानी आ क्लास में कमे जाएब, घरे में ज़्यादा पढ़ब. आ जे कुछ फंसी त रउरा त बड़ले बानी बतावे खातिर.’
‘से त बा. बाकिर शहर गइल, फेरु राति खाँ लवटल. ई सब मुश्किल लागत बा. आ फेर ई बांसगांव ह, लोग का कही ?’’
‘लोग के त कामे ह कहल !’ ऊ ठनकत फ़िल्मी गाना पर आ गइल, ‘कुछ त लोग कहेंगे!’
‘ई तू अपना बाप से कहत बाड़ू कि फ़िल्मी डायलाग मारत बाड़ू.’
‘रउरा से बतियावत बानी.’ ऊ बोलल, ‘फ़िल्मी गाना के भाव डालत बानी आ रउरा के बतावत बानी कि केहू के कुछ कहे सुने के हमरा पर कवनो असर नइखे पड़े वाला.’
‘ठीक बा’ मुनक्का राय बोललन, ‘बेटी तोहरा जवन करे के बा करऽ. बाकिर अब बांसगांव में वकालत के कवनो भविष्य नइखे. मुक़दमा घटत जात बाड़ी सँ आ वकील बढ़ल जात बाड़ें.’ ऊ बोललें, ‘फेर एहिजा कवनो महिला वकील नइखे आ शायद बांसगांव के आबोहवा महिलन ला ठीक नइखे.’
‘महिलन ला त सगरी समाजे के आबोहवा ठीक नइखे. आ बांसोगांव ओही समाज के हिस्सा हउवे.’ मुनमुन बोलल.
मुनक्का राय बेटी के ई बाति सुन के ओकरा के टुकटुकात देखत रह गइलन. मुनमुन जवन पहिले ब्यूटीफुल रहल अब बोल्डो होखल जात रहुवे. राहुल के ऊ दोस्त जवना के नाम विवेक सिंह रहल, जवना के बाइक पर ऊ अकसरे देखल जात रहुवे, उहो कहे लागल रहुवे मुनमुन के बोल्ड एंड ब्यूटीफुल. ऊ खुश हो जात रहुवे.
संयोगे रहल कि विवेको के बड़का भाई थाईलैंडे में रहुवे. विवेक आ मुनमुन के दोस्ती के ख़बर जब ओकरा ले चहुँपल त ओकर माथा ठनकल. ऊ राहुल से बतियवलसि आ कहलसि कि, ‘भई अपना बहिन के समुझावऽ. हमहूं अपना भाई के समुझावत बानी. ना त जे कहीं कवनो ऊंच-नीच हो गइल त दुनु परिवारन के बदनामी होखी.’ राहुल विवेक के भाई के बात सुनते बौखला गइल. ऊ पहिलका फोन विवेके के कइलसि आ जतना नीक-बाउर ओकरा के कह सकत रहुवे ओतना कह दिहलसि. आ बोलल, ‘तोरा हमरे बहिन मिलल दोस्ती करे ला. बाइक पर बइठा के घुमावे ला ? काहें हमरा पीठ में छूरा घोंपत बाड़ऽ?’
‘बात त सुनऽ !’ विवेक कुछ कहे के कोशिश कइलसि.
‘हमरा अब कुछऊ नइखे सुने के.’ राहुल बोलल, ‘जवन सुने के रहल तवन तोहरा भइया से सुन लिहनी. दोस्ती तहरा हमरा से रहुवे. अब हम ओहिजा बानी ना से तोहरा हमरा घरे जाए के कवनो दरकार नइखे. आगे से जे तू हमरा घरे गइलऽ, हमरा बहिन से मिललऽ त हमरा ले बाउर केहू ना रही. अबहीं ले तूं हमार दोस्ती देखलऽ, अब दुश्मनी देखीहऽ. ओहिजे आ के तोहरा के काट डालब.’ कह के राहुल फ़ोन काट दिहलसि. बांसगांव अपना घरे फ़ोन मिलवलसि त पता चलल कि फ़ोन नान पेमेंट में कट गइल बा. पड़ोस का फ़ोन पर फ़ोन क के अम्मा के बोलववलसि आ पुछलसि कि, ‘ कब से फ़ोन कटल बा ?’
‘बिल जमा ना भइल होखी त कट गइल होखी.’ अम्मा डिटेल में ना गइली. फेर राहुल संक्षेपे में मुनमुन-विवेक कथा बतावत अम्मा से कहलसि कि, ‘मुनमुन से कह द कि आपन आदत सुधार लेव. ना त ओहिजे आ के काट डालब. कह द कि बाप भाई के इज़्ज़त के खयाल राखे.’ ऊ इहो बतवलसि कि, ‘विवेकवो के ख़ूब हड़का दिहले बानी. भरसक त ऊ आई ना आ जे आवे त कूकूर लेखा दुआरी पर से भगा दीहऽ़.’ अम्मा कुछ कहे का बजाय, ‘हूं-हां’ करत गइली. काहें कि पड़ोसी के घर में रहली. बात पसरे आ बदनामी के डर रहल.
मुनक्का राय जब कचहरी से साँझ बेरा लवटलें त मुनमुन के अम्मा राहुल के फ़ोन के ज़िक्र करत सगरी वाकया बतवली त मुनक्का के होशे उड़ गइल. कहलन, ‘बात थाईलैंड ले चहुँप गइल आ हमरा भनक तक ना लागल.’ फेर अचके पूछलन कि, ‘फ़ोन त काम करत नइखे त फेर बात कइसे भइल ?’
‘पड़ोसी गुप्ता जी का फ़ोन पर फ़ोन आइल रहुवे.’ पत्नी संक्षेपे मे बतवली.
‘फेर त उहो सब जान गइल होखिहें.’ ऊ आपन माथ रगड़त कहलन, ‘आ अब मुसल्लम बांसगांव जान जाई !’
‘जान जाई ?’ पत्नी कहली, ‘जान चुकल बा. आखि़र बात थाईलैंड ले चहुँपल बा त बिना केहू के जनले त पहुँचल ना होखी.’
‘हँ, हमहने के आंखि पर पट्टी बन्हाइल बा. बेटी का दुलार में हमहन अन्हरा गइल बानी जा.’ फेर ऊ भड़कले, ‘कहां बिया ऊ ?’
‘अबहीं आइल नइखे पढ़ा के.’
‘गदबेरा हो गइल बा आ अबहीं ले लवटल नइखे.’
थोड़ देर बाद मुनमुन आइल त घर में कोहराम मच गइल. मुनमुन कवनो अछरंग माने ला तइयार ना रहुवे ना मुनक्का राय ओकर कवनो दलील सुने ला. आखिरकार कवनो जज का तरह ऊ फैसला सुना दीहलन, ‘कवनो बहस, कवनो जिरह, कवनो गवाही ना. सगरी मामिला एहिजे खतम. अब तोहरा काल्हु से घर से बाहर नइखे जाए के. पढ़ावहूं ना. ‘
ओह रात मुनक्का राय का घरे चूल्हा ना जरल. सभे लोग पानिेए पी के सूत गइल. अगिला दिने मुनक्का राय कचहरिओ ना गइलन. उनकर ब्लड प्रेशर, शुगर अउर दमा तीनो बढ़ के उनका के तबाह कइले रहल. आ मुनमुन सगरी गिला-शिकवा भुला के उनुका सेवा में लागल रहुवे. मुनक्का राय के एगो समस्या इहो रहल कि अतना सगरी बेमारी पोसला का बादो ऊ एलोपैथिक दवाई गलतिओ से ना लेत रहलन. भलही जान चल जाव पर आयुर्वेदिक दवाईयने पर उनुका यक़ीन रहल. आयुर्वेदिक दवाईअन का साथे दू गो दिक्कत रहुवे. एक त ऊ तुरते आराम ना दीहल करऽ सँ. दोसरे जल्दी भेंटाव ना. आ तिसरे महँगो रहली सँ. तबहिंओ आयुर्वेदिक दवाइयन के असर आ मुनमुन के अनथक सेवा मुनक्का राय के हफ़्ते भर में फिट कर दिहलें. ऊ कचहरी जाए जोग हो गइलन. एने ऊ कचहरी गइलें ओने मुनमुन पढ़ावे निकल गइल. जात बेरा अम्मा रोकबो कइली कि, ‘तोहार बाबूजी मना कइले बाड़न त कुछ सोचिए के मना कइले होखिहें.’
‘कुछ ना अम्मा. ऊ खीस में रहलन से मना कर दीहलन. अइसन कवनो बात नइखे.’ मुनमुन बोलल, ‘ऊ बात अब खतम हो गइल बा.’ आ निकल गइल. ऊ जानत रहल कि शिक्षा मित्र के नौकरी छोड़ला के मतलब रहुवे रूटीन खरचन के तंगी. भाई लोग अफ़सर, जज भलही हो गइल रहुवे बाकिर घर खरचा के, अम्मा-बाबू जी के स्वास्थ्य के सुधि केकरो ना रहल. सबहीं अपने-अपना में सिमट के रह गइल रहलें. ऊ त गांव से बटाई पर दीहल खेतन से अनाज मिल जात रहुवे. खाए भर के राख के बाकी अनाज बेचा जात रहुवे. कुछ ओकरा से, कुछ बाबूजी के प्रैक्टिस से आ कुछ ओकरा शिक्षा मित्र वाला तनख़्वाह से घर ख़रचा जइसे-तइसे पार लागत रहुवे. बाबू जी त पैदले कचहरी जात रहलन बाकिर ओकर गांव बांसगांव से पंद्रह किलोमीटर फरदवला रहुवे. सोझ सवारी ना रहुवे. दू तीन बेर सवारी बदले के पड़त रहल. कुछ दूर पैदलो चले के पड़े. कबो-कभार रिक्शो से. त आवे-जाए के खरचो रहल. आ एहू सबले बड़ बात इ रहल कि ऊ खाली ना रहल अपना बाकी सखी-सहेलियन का तरह जवन शादी का इंतज़ार में घर में पड़ल खटिया तूड़त रहली सँ. खरचा चलावल तनिका मुश्किल जरुर रहल बाकिर अपना खरचा ला केहू का आगा हाथ पसारे के ना पड़त रहल, एही में ऊ वह ख़ुश रहल. बस ओकरा तनिका अपराधबोध ज़रूर रहुवे के एह दौड़-धूप आ आपाधापी में ऊ विवेक का नियरा चल गइल रहुवे. पहिले त अइसहीं, फेर भावनात्मक आ अब देहो जिए लागल रहुवे ऊ. ई सब कब अचके में हो गइल ऊ बुझिए ना पवलसि. बाकिर आज रास्ता में ना त आवते, ना जाते विवेक लउकल त ओकरा खटकबो कइल आ अखरबो कइल.
साँझ बेरा घरे आइल त देखलसि कि बाबू जी के कचहरी वाला करिया कोट त खूंटी पर टंगाइल बा बाकिर ऊ नइखन. तबहियोंं ऊ अम्मा से कुछ पुछलसि ना. ना ही अम्मा ओकरा से कुछ कहली-सुनली. तनिका देर बाद बाबूओ जी आ गइलन. ऊ बाबू जी का लगे चाय ले के गइल. ऊ चाय पी लिहलन बाकिर मुनमुन से कुछ कहलन ना. ज़िनिगी रूटीन पर आ गइल लागल. बाकिर का सचहूं ?
एने राहुल विवेक-मुनमुन कथा अपना तीनो बड़ भाईयन – रमेश, धीरज, अउर तरुण – के फ़ोन से परोस दिहले रहल. तीनो बौखलइलें. बाकिर घर के फ़ोन कटल होखला का चलते भड़ास ना निकाल पवलें. पड़ोस में केहू राहुल का तरह फ़ोन कइलसि ना. तय भइल कि केहू बांसगांव जा के मामिला रफ़ा-दफ़ा करे. रमेश आ धीरज के लागल कि जजी अउर अफ़सरी का रुतबा में बांसगांव जा के केहू से तू-तू, मैं-मैं कइल ठीक ना रही. प्रोटोकाल टूटी तवन अलगा, बदनामी होखि तवन ऊपर से. आखिरकार तय भइल कि तरुण जासु आ समुझा-बुझा के मामिला शांत करा देसु. तरुण गइबो कइलन. बाकिर केहू से अझूरइल ना. मुनमुने के जतना डांट-डपट सकत रहलन डंटले-डपटले. बाबू जी का तरह उहो आदेश सुनवलें कि – ‘घर से बाहर निकलल बंद करऽ, ना त टांगे तूड़ देब.’ साथ ही इहो कहलन कि, ‘शिक्षा मित्र के नौकरी से तोर दिमाग ख़राब हो गइल बा. एकरो के छोड़. कवनो जरूरत नइखे एह नौकरी करे के. इहे हमनी सभ के फ़ैसला बा.’
‘बाकिर बाबू हमनिओ के ख़रचा-वरचा पर कबो सोचेलऽ तू लोग ?’ अम्मा पूछली.
‘त रउरे लोग एकरा के पुलका रखले बानी. माथ पर चढ़ा लिहले बानी.’ तरुण भड़कल, ‘एकर तनखाहे कतना बा ? आ का एह तनखाहे से आजु ले घर चलल बा ?’
‘पहिले त ना बाकिर अब त थोड़-बहुत मदद करते बिया.’ अम्मा शांते स्वर में कहली.
तरुण चुपा गइल. साँझ बेरा बाबू जी से एह बाबत बाति कइलसि. बाकिर बाबूओ जी हूं-हां का अलावा कुछ बोलबे ना कइलन. तरुण बांसगांव से वापस लवटि आइल. लवटि के दुनु भाईयन के पूरा रिपोर्ट दिहलसि. दुनु भाइयो हूं-हां करिए के अपना कर्त्तव्यन के इतिश्री कर लिहलें. राहुलो तरुण के फ़ोन क के सारा हाल चाल लिहलसि. राहुल के फोन कर के तरुण साफ़ बता दिहलसि कि, ‘मुनमुन जवने कर रहल बिया भा बिगड़ रहल बिया, ओकरा पाछा बाबू जी अउर अम्मा के शहे बा. उहे लोग ओकरा के अतना माथा चढ़ा के रखले बाड़न आ एहू ले बेसी ओकर दिमाग शिक्षा मित्र के नौकरी से ख़राब हो गइल बा. अतने ना, अम्मा के त कहना बा कि मुनमुनवे घर के ख़रचा चला रहल बिया.’
‘ई त हद हो गइल !’ राहुल कहलसि आ फ़ोन राख दिहलसि. एह पूरा मसला पर ऊ थाईलैंड में विनीता से राय विचार कइलसि आ तय भइल कि रीता के निहोरा कर के बांसगांव भेजल जाय. उहे जा के मुनमुन के समुझावे. राहुल रीता के फ़ोन प सगरी समस्या बतवलसि आ कहलसि कि, ‘तुंही जा के समुझवतू मुनमुन के त शायद ऊ मान जाइत.’ रीता एह पर आपने पारिवारिक समस्या आ प्राथमिकता गिनावे लगलसि आ कहलसि ‘हमाार गइल त अबहीं मुश्किल बा.” फेर तनिका रुक के कहलसि कि, ‘भाभिए लोग के काहे नइखे भेज देत लोग ?’
‘रीता तुहूं !’ राहुल बोल;, ‘भइया लोगन का लगे समय नइखे बहिन ला आ तू भउजाइयन के बात करत बाड़ू. अरे भउजी लोग के त ई सब सुनला का बाद ख़ुद ही बात संभारे चाहत रहुवे. बाकिर केहू सांस तक ना लीहल. हम अतना दूर बानी एहिसे तोहरा पर ई ज़िम्मेदारी डालत बानी. ‘
‘चलऽ अबहीं त ना बाकिर जल्दिए जाएब बांसगांव. ‘ रीता बोललसि.
‘ठीक बा. ‘ राहुल आश्वस्त हो गइल.
कुछ दिन बाद रीता बांसगांव आल. अम्मा, बाबू जी के दशा देखि के ऊ विचलित हो गइल. माी त सूख के कांट हो चुकल रहुवे. बुझाव कि जइसे हैंगर पर टांग दीहल गइल होखे. मुनमुनवो बेमार रहुवे. डाक्टरन के कहना रहल कि ओकरा टी.बी. हो गइल बा. अब अइसना में ऊ मुनमुन के का त कइसे आ का समुझाइत ? आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास वाला गति हो गइल ओकर. बाकिर तबहियों मौका देखि के ऊ अम्मा, बाबू जी, आ मुनमुन तीनों के उपस्थिति में मुनमुन-विवेक कथा के ज़िक्र कइलसि. आ मुनमुन के समुझवलसि कि, ‘परिवार के इज़्ज़त अब तिहरा हाथे बा. एकरा पर बट्टा जनि लगावऽ. ‘
‘हम त समुझले रहीं कि तूं हमहन के हालचाल लेबे आइल बाड़ू रीता दीदी. ‘ मुनमुन बोलल, ‘बाकिर अब पता चलल कि तूं त दूत बन के आइल बाड़ू. ‘
‘ना, ना मुनमुन, अइसन कवनो बाति नइखे. ‘
‘अरे दूत बनहीं के बा त विभीषण जइसन राम के बनऽ, विदुर अउर कृष्ण का तरह पांडवन के बनऽ. ‘ मुनमुन बोललसि, ‘दूते बने के बा त ओह भाईयन का लगे जा जे जज अउर अफ़सर बन के बइठल बाड़ें. ओह लोग के घर के विपन्नता, दरिद्रता अउर मुश्किलात का बारे में बतावऽ. बतावऽ कि ओह लोग के बूढ़ माई-बाप आ छोटकी बहिन बेमारी, भूख आ मुश्किलात का बीच कइसे तिल-तिल क के रोज़-रोज़ जीयत मरत बा लोग. बतावऽ कि ओह लोग के के फूल जइसन छोट बहिन माई-बाप का साथ ही बूढ़ात बिया. ‘
रीता का लगे मुनमुन के एह सवालन के कवनो जवाब ना रहल. बाकिर मुनमुन धनकत रहुवे, ‘पूरा बांसेगांव का, सगरी जवार के लागेला कि ई घर जज आ अफसरन के घर ह. समृद्धि जइसे एहिजा सलमा-सितारा टांकत बिया. बाकिर ई सभ ऊपरी आ दिखावा के, घर का बहरी दरवाज़ा आ दुआर के बात हउवे. घर का भीतर आंगन अउर दालान के बात ना हउवे. आंगन, दालान अउर कोठरी में बूढ़ माई-बाप सिसकत बाड़ें.केहू से कुछ कहसु ना. ब्लड प्रेशर, शुगर अउर दमा के बेमारी बा बाबू जी के. बिना दवाईयनो के कबो-कबो कइसे ऊ आपन दिन गुजारेलें जानेलऊ ? माई के कपड़ा लत्ता देखत बाड़ू ?’ ऊ बोलत-बोलत बाबू जी के कचहरी वाला करिया कोट खूंटी पर से उतार के ले आइल आ देखावत कहलसि, ‘इहे फटलके आ गंदा हो चुकल कोट पहिर के जब बाबू जी इजलास में मुंसिफ़ मजिस्ट्रेट से कवनो बात पर बहुते नाज़ से कहेलें कि, हुज़ूर हमार बेटो न्यायाधीश हउवे त लोग हँस पड़ेला. बाकिर का ओह न्यायाधीश के एकरो चिंता बा कि ओकर बाप फाटल कोट पहिर के कचहरी जात बा.’ मुनमुन बोलत गइल, ‘एस.डी.एम. मिलेला त बाबू जी बहुते ताव से बतावेलें कि हमरो बेटा ए.डी.एम. हउवे त ऊ सुन के चिहुँकेला आ फेर इनकर हुलिया देखि के मुसुका के चल देला. बैंक में जालें त बतावेलें कि हमरो बेटा बैंक मैनेजर हउवे. लोग काम त कर देला बाकिर एगो फीका मुससकुराहटो छोड़ देला. लोगन से बतावत फिरेलें कि हमार एक बेटा थाईलैंडो में रहेला. एन.आर.आई हउवे. बाकिर उहे लोग जब देखेला कि उनुकरे एगो बेटी शिक्षा मित्र हियऽ त लोग घर के हक़ीक़तो के अंदाज़ा लगा लेबेलें. ‘ ऊ बोलत रहुवे, ‘ रीता दीदी अब जब दूत बन के आइले बाड़ू त जा के भइयो लोग के इहो सभ बतइहऽ. आ जे हमरा बात के यकीन ना होखे त बांसगांव त तोहरो जानल-पहिचानल हवे. दू चार गो गलियन, घरन में जा आ देखऽ कि लोग के व्यंग्य भरल नजर तोहरा के देखत-मुसुकात ना मिले त आ के हमरो के बतावऽ. ‘
रीता मुनमुन के अँकवारी बान्हि लिहलसि आ फफक पड़ल. सभका के समुझा बुझा के रीता दू दिन बाद बांसगांव से लवट गइल. फेर जब राहुल के फ़ोन आइल त रीता घर के विपन्नता आ समस्यन के पिटारा खोल दिहलसि. आ साफ बता दिहलसि कि, ‘दोष भइया तोहरे लोगन के बा. जेकर माई-बाप के चार-चार गो सफल, संपन्न अउर जमल बेटा होखऽ सँ जवनन के अफ़सरी आ जजी के क़िस्सा पूरा जवार जानत होखे ऊ अइसन हालात में जीयत बा लोग त तोहरा लोगन के जियला के धिक्कार बा. ‘
‘अरे हम पूछत बानी कि मुनमुन के कुछ समुझवलू कि ना? ‘ रीता के सगरी बातन के अनसुना करत राहुल बोललसि.
‘समुझवनी के मुनमुनो के. ‘ रीता बोलल, ‘पता बा तोहरा कि मुनमुनवो के टी.बी. हो गइल बा. बाबू जी के दवाईयन के खरचा जवन पहिलहीं से बावे, ऊ त अबहियों बावे. ‘
‘पहिले ई बतावऽ कि मुनमुन मनलसि कि ना ?’ राहुल अपने लकीर धइले रहल.
‘हम अम्मा बाबू जी आ मुनमुन के हालात बतावत बानी आ तूं आपने रिकार्ड बजवले जात बाड़ऽ. ‘ रीता बोलल, ‘तूं चारो भाई मिल के अम्मा बाबू जी के ख़रचा के जिम्मा ल लोग. आ हो सके त मुनमुन के बिआहो तय करा द लोग. जबले शादी तय नइखे होखत तबले मुनमुन के बांसगांव से कवनो भइये ओकरा के अपना लगे बिला लेसु, आ ओकरा टी.बी, के इलाज करा देसु. हमरा राय में सगरी समस्यन के इहे इलाज बा. अइसहीं मुनमुनो के सुधारल जा सकी . अरे नीमन त ई होखीत कि अब अम्मो-बाबू जी के केहू अपने लगे राखीत. उहो लोग अब अकेले रहे जोग नइखन रह गइल. ‘
‘त भइया लोगन के इहे बात समुझाव !’ राहुल बोलल, ‘हम त अतना दूर बानी कि का बताईं ?’
‘देखऽ तूं पुछलऽ त बता दिहनी. भइयो लोग पूछी त ओहू लोग के बता देब. बाकिर अपने से बतावे ना जाएब.’ रीता साफ़-साफ़ बता दिहलसि. फेर राहुल भइया लोगन से एह पूरा मामिला पर डिसकस कइलसि. बाकिर सभे बस खयाली पुलाव पकावत मिलल. आ मुनमुन के भा अम्मो-बाबू जी के केहू अपना किहां ले जाए ला तइयार ना लउकल. सभका लगे आपन-आपन दिक्क़तन के गाथा रहल. राहुल हार गइल.
ओकरा बुझाते ना रहल कि का करे ऊ ? बीबी से बतियावे त ऊ कहे, ‘तूं पगला गइल बाड़ऽ. ‘ सुन के ऊ खौल जाव. बीबि कहल करे कि, ‘तोहार भइया लोग ओहिजे बा. ऊ लोग कुछ करत नइखे त तूंही काहें जान दिहले बाड़ ? बेमतलब आपन ख़ून जरावत बाड़ऽ आ फ़ोन पर पइसा बरबाद करत बाड़ऽ ‘
बाकिर राहुल बीबी के बात में ना आइल. विनीता दीदी का लगे गइल आ कहलसि कि, ‘रउरे भइया लोगन के समुझाईं. ‘
‘भइया लोग भाभियन का राय से चलेला. ऊ लो समुझबे ना करी. ‘ विनीता बोललसि, ‘बदनामी ज़्यादा पसरे ओकरा से पहिले बेहतर रही कि ओकर बिआह करा द लोग. ‘
‘बिआह ला त भइया लोगन से बतियाइए सकीलें रउरा ?’
‘हँ, पहिले तूं बतियाव फेर हमहूं बतियाएब. ‘
मुनमुन के शादी करावे का बात पर सभे सहमत लउकल. बाकिर दुविधा फेर खड़ा भइल कि तय के करे आ फेर ख़रचो-वरचा आड़े आ जाव. आखिरकार तय भइल लो चारों भाई चन्दा करसु, एहुमें रमेश हाथ बटोर लिहलसि ई कहि के हम बेटा के इंजीनियरिंग करवावे जात बानी. ओकरा एडमिशन वग़ैरहे में ऊ परेशान बा. धीरज कहलसि कि दू लाख रुपिया ऊ दे दी. तरुणो कहलसि कि दू लाख रुपिया उहो दे दी. बाकी खरचा के बात उठल त राहुल कहलसि, ‘जवने लागी हम दे देब. बाकिर रउरा लोग ओहिजा बानीं. पहिले बिआह त तय करवाईं. ‘ बाकिर केहू खुल के तइयार ना भइल. थाक-हार के राहुल बाबूए जी से कहलसि कि, ‘रउरा बिआह तय करवाईं, बाकी जिम्मा हमार रही. ‘
मुनक्का राय बेटी मुनमुन के शादी जोग रिश्ता खोजे लगलन. बाकिर जेही उनुका के शादी के रिश्ता खोजे ला एने-ओने जात देखे से कहे लागे कि, ‘राउर चार-चार गो बेटा आ सगरी अइसन निकहा ओहदा पर बाड़ें बाकिर एह उमिर में रउरा काहे अतना दौड़-धूप करत बानी वकील साहब ?’ उहो एगो थाकल हँसी परोसत कह देसु कि, ‘बेटन का लगे टाइम कहाँ बा ? सगरी व्यस्त बाड़ें अपना-अपना काम में.’ एने मुनक्का राय शादी खोजत रहलें आ ओने गिरधारिओ राय सक्रिय हो गइल रहलन. उनुका लागल कि इहे अइसन मौका बा मुनक्का के शेखी के हवा निकाले के. मुनमुन-विवेक कथा के सुगबुगाहट उनुको लगे ले चहुँप चुकल रहुवे. से मुनक्का राय लईका देख के निकलसि तले ले गिरधारी राय कवनो ना कवनो दूत से चोखा-चटनी लगावत मुनमुन-विवेक कथा ओहिजो परोसवा देसु. ऊपर से ई सुनते कि लइकी के भाई जज, अफसर हउवें लोग आपन मुँह दहेज खातिर ढाका भर फइला देसु. ओह पर से मुनमुन-विवेक कथा मिले त बनतो बात बिगड़ जाव. मुनक्का राय परेशान हो गइलन, भा कहीं त तार-तार हो गइलन.
बुढ़ौती में जनमल ई बेटी उनुका के सुखो देत रहुवे आ दुखो. ऊ हलकान रहलेंं बेटन के असहयोग से, बेमारी आ आर्थिक लाचारी से. एक बेर राहुल के फोन आइल त ऊ शादी के बाबत रिपोर्ट चहलसि. ‘रिपोर्ट’ सुनते ऊ भड़क गइलन. कहलन, ‘ई कवनो प्रशासनिक भा अदालती कार्रवाई ना हवे जे एकर रिपोर्ट पेश करीं तोहरा लगे ?’ कहलन, ‘शादी बिआह के मामिल हवे. परचून के सामान त खरीदे के नइखे कि दुकान पर गइनी आ तउलवा के ले अइनी. बूढ़ आदमी हईं. पइसा-कौड़ी बावे ना. केहू संगे-साथे बावे ना. केहू के कतहीं लेइओ जाईं त किराया भाड़ा लागेला. अपने आइल-गइल दूभर बा. बेमारी बा, हाड़ बुढ़ाए लागल बा आ तूंं बाड़ऽ कि रिपोर्ट पूछत बाड़ऽ ?’
बाबूजी अबहीं राउर मूड ठीक नइखे. बाद में बतियावत बानी.’ कह के राहुल फोन काट दिहलसि. बाबू जी के कठिनाइओ ऊ बूझलसि आ हवाला का जरिए पचीस हजार रुपिया दुसरके दिने बाबू जी का लगे भेजवा दिहलसि. साथ ही मामा, मौसा, फूफा जइसन कुछ रिश्तेदारन के फोन करि के निहोरो कइलसि कि, ‘मुमनुन के शादी ठीक करावे में बाबूजी के सपोर्ट करीं.’ सभे मानियो गइल.
बाकिर बिआह के जवन बाजार सजल रहल तवना में मुनमुन फिटे ना हो पावत रहुवे. इंजीनियर लड़िका ला इंजीनियरे लड़की चाहत रहे. डाक्टर ला डाक्टरे लड़की के मांग होखे. केहू एम.सी.ए. लड़की मांगे त केहू एम.बी.ए.. आ इंगलिश मीडियम त सभका चाहते रहे. आ एने मुनमुन में एहमें से कुछऊ ना रहल. दहेजो विकराले मंगाव. लागे कि केहू धरती से आसमान के दूरी नापत होखो, दहेज के मपना अइसने रहल. मुनक्का राय कहसु ‘जस-जस सुरसा बदन बढ़ावा तास दुगुन कपि रूप दिखावा/सोरह योजन मुख ते थयऊ तुरत पवनसुत बत्तीस भयऊ.’ ऊ कहसु, ‘हे गोस्वामी जी रउरा त सोरह योजन के सुरसा का आगा पवन सुत के तुरते बत्तीस के बना दिहनी बाकिज हम एह दहेज के सुरसा का आगे कहां से दुगुन रूप देखाईं ? आ कहां से ले आईं इंगलिश मीडियम, इंजीनियर, डाक्टर, एम.सी.ए., एम.बी.ए.?’
एहिजा त मुनमुन शिक्षा मित्र रहुवे. आ शिक्षा मित्र सुनते लोग बिदक जाव. कहे, ‘भाई अफ़सर, जज, बैंक मैनेजर, एन.आर.आई. आ बहिन शिक्षा मित्र !’ कई लोग त शिक्षा मित्रे ना जानत रहे. जब ऊ बतावसु त लोग कहे,’त कवनो प्राइमरी स्कूल के मास्टर भा क्लर्के-फ्लर्क काहें नइखीं खोजत ?’ फेर उपर से अउर जोड़ देव, ‘माथा फोड़ लेला भर से लिलार त चाकर ना हो जाई ?’ अब लोग जोड़ चाहत रहे. जइसे साड़ी पर ब्लाऊज, जइसे सूट पर टाई, जइसे सोना पर सुहागा. मुनमुन ला सुहाग खोजल अब मुनक्का राय खातिर कठिन होत जात रहुवे. उनुका इयाद आवे अमीर ख़ुसरो आ ऊ गुनगुना देसु, 'बहुत कठिन है डगर पनघट की, कइसे मैं भर लाऊं मधुआ से मटकी, बहुत कठिन है डगर पनघट की!'
आ डगर कठिने रहल उनुके ससुरारिओ के. उनुका बड़का साला के निधन हो गइल. ऊ पत्नी आ मुनमुन के साथे ले जात रहलन आ भुनभुनात रहलन कि, ‘इनिको अबहियें जाए के रहल !’ ऊ पहिले दू बेर डोली में ससुरारी गइल रहलन – बिआह आ गवना में. तब सवारी का नाम पर बैलगाड़ी, डोली, घोड़ा अउर साइकिल के ज़माना रहल. कहीं-कहीं जीप आ बसो लउक जाव. दोआबा में बसल उनुका ससुरारी में गइल ओहू घरी कठिन रहल आ कठिन रहल अबहियों. कुआनो अउर सरयू का बीच उनुकर ससुरारि वाला गांव दू पाटन का बीचे फंसल लउके. अइसे कि कबीर याद आ जासु, ‘चलती चक्की देख कर दिया कबीरा रोय, दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय.’ अइसने हाल उनुका बड़का सालो के भइल रहुवे. दू गो छोटका भाइयन का बीच ऊ पिसा के रह गइल रहलन. मुनक्का राय के ससुर तब कलकत्ता में मारवाड़ियन का नौकरी में रहलन. मारवाड़ियने का तरह उहो पइसा खूब कमइलन. ख़ूब खेत ख़रीदलन. घर बनववलन. बग़इचा लगववलन, ईनार खोनववलन. घर के समृद्धि ला सगरी जतन जवन ऊ कर सकत रहलन कइलन.बाकिर एगो काम जवन सबले जरूरी रहल – लइकन के पढ़ावल लिखावल – तवने ऊ ठीक से ना कइलन. बड़का बेटा राम निहोर राय त थोड़ बहुत मिडिल ले पढ़ लिख गइल आ बाद में कलकत्ता जा के उहो बाप के काम में लाग गइल. हालां कि बाप जतना पइसा त ना पीट पवलसि बाकिर घर सम्हार लिहलसि. बाक़ी दुनू भाईयन में से मझिला राम किशोर राय प्राइमरी का बाद स्कूले ना गइल त सबले छोटका राम अजोर राय दर्जा एके का बाद स्कूल ना गइल.
मुनमुन राय के नाना के ओह घरी का समय में केहू समुझा दिहले रहल कि लइकन के ढेर पढ़ावे लिखावे के ना चाहीं. ढेर पढ़ लिख के ऊ सभ अपने त आगा बढ़ जालें बाकिर बाप महतारी के सेवा ना करसु. माई बाप के सुनबो ना करसु. एही सिखवला में पड़ि के ऊ बेटन के पढ़ाई लेके बहुत उत्सुक ना रहलन. अलगा बात बा कि बड़का बेटा जवन थोड़ बहुत पढ़ लिख गइल रहल उहे सिर्फ़ उनुकर विरासते ना सम्हरलसि बलुक उनुकर सेवो-टहल अंतिमे समय का, भर जिनिगी कइलसि. बाक़ी दुनू बेटा त जब-तब लड़ते-झगड़त उनुका जी के जंजाल बन गइलन स. बात-बात पर लाठी भाला निकाल ल सँ. ओहनी के उलट बड़का बेटा राम निहोर राय विवेकवान अउर धैर्यवान दुनू रहल. भाइयनो के हरदम समुझा-बुझा के राखे. बस एकेगो दिक्क़त रहल राम निहोर राय के कि उनुकर कवनो संतान ना रहल. ई दुख बड़हन रहल बाकिर कबो राम निहोर राय केहू से एह दुख के ज़ाहिर ना कइलन.
हँ, मझिला भाई राम किशोर राय ज़रूरे उनुका एह कमज़ोर नस के फ़ायदा उठवलसि. अपना बड़का बेटा के बचपने में कलकत्ता ले जा के उनुका के सँउप के भावुक बना दिहलसि आ कहलसि कि, ‘आजु से ई हमार ना, राउर बेटा भइल. प्रकृति आ भगवान से त हम कुछ कह-कर नइखीं सकत बाकिर अपना तईं अतना त करिए सकिलें.’ आ बेटा उनुका गोदी में डाल के उनुका कदम में पटा गइल. राम निहोर भाव-विभोर हो गइलन आ राम किशोर राय के बेटा के छाती से लगा के फफक-फफक के रोवे लगलें. ओकरा बाद से ऊ त जइसे राम किशोर राय का हाथे बिका गइलन. सरयू-कुआनो में पानी बहत गइल आ राम किशोर, राम निहोर के लगातार भावनात्मक रुप से दूहे लागल. ओने राम किशोर के बेटा बड़ भइल त अपना के सन आफ़ राम निहोर राय लिखे लागल. राम अजोर के जब ई बाति एगो रिश्तेदार से पता चलल त चउँकल लाजमी रहल. काहें कि राम किशोर राय के दू गो बेटा रहलन स आ राम अजोर राय के एगो. राम निहोर राय चूंकि निसंतान रहलन से उनुकर जायदाद दुनू भाईयन का बीच आधा-आधा बंटाइत. तब एह हिसाब से राम अजोर राय के बेटा राम किशोर के बेटन से दुगुना जायदाद के मालिक होखीत. बाकिर राम किशोर राय के एह शकुनि चाल में राम अजोर के बेटो के हिस्सा दुनू के बराबर हो जाइत. राम अजोर राय एहकर कवनो काट निकाले के भरपूर सोचलसि बाकिर कवनो काट मिलल ना.
चूंकि राम निहोर राय खातिर ई भावनात्मक मामला रहुवे से सीधे उनुके से बतियावे के हिम्मत ना भइल राम अजोर राय के. तबहियों ऊ देखत रहलन कि राम निहोर भइया सगरी विवेक, सगरी धीरज ताखा पर राखत तरज़ूई के एक पलड़ा पूरा के पूरा राम किशोर का ओर झुकवले पड़ल रहलन. हालां कि ऊ सगरी उपक्रम एह तरह से करसु मानो दुनू भाई उनुका ला बराबर होखसु. दुनू के परिवारन के ऊ पूरा-पूरा ख़याल राखसु. कलकत्ता से जब आवसु त कपड़ा लत्ता दुनू परिवारन ला ले आवसु. आ जवन कहल जाला संयुक्त परिवार ओकरो भावना के ऊ पूरा मान देसु. तबहियों देखे वालन के उनुकर पक्षपात लउक जाइल करे. कुछ रिश्तेदार त उनुका के एही चलते धर्मराज युधिष्ठिर ले कहे लागल रहलें. बतर्ज़ 'अश्वत्थामा मरो नरो वा कुंजरो!' बाकिर उनुका तराज़ू के पलड़ा राम किशोर का ओर निहुरल त निहुरले रह गइल. बाप मुनीश्वर राय कई बेर इशारा से समुझावल चहलें बाकिर राम निहोर मानो सब कुछ समझियो के कुछऊ समुझल ना चाहत रहसु.
बाप के मरला का बाद उनुकर जायदाद तीनों भाईयन में बंटा गइल बाकिर राम निहोर के बखरा वाला खेती-बारी, घर-दुआर सभ पर व्यावहारिक कब्जा राम किशोरे के बनल रहल. काहें कि राम निहोर अपने त कलकत्ता में रहसु. गरमिये का छुट्टी में कुछ दिन ला आवसु भा जब जब शादी बिआह के समय होखे. ऊ आवसु त राम किशोर राय उनुका ला पलक पांवड़ा बिछवले मिलसु. राम निहोरो भावुक हो के अतना मेहरबान हो जासु कि बुझाव ना कि राम किशोर के का का दे दीं. राम अजोर आ उनुकर परिवार ई सभ देख के छटपटा के रहि जासु. एके गो घर रहल तीनो भाइयन का बीच. चुहानी भलहीं अलगा हो गइल रहल बाकिर अंगना-दालान-ओसारा-दुआर एके रहल. केहू से कुछ अनदेख ना रहि जाव. बाद का दिनन में खपरैल के ई घर धसके लागल. आ देखीं कि राम किशोर के नया घर बने लागल. ज़ाहिर रहे कि पइसा त राम निहोरे के खरचा होखत रहल. कुछ दिन में राम किशोर के पक्का घर बन के तइयार हो गइल. घर भोज का बाद राम किशोर के परिवार अपना नयका पक्कान में रहे चलि गइल.
बाकिर राम अजोर? नाम भलहीं राम अजोर रहल, उनुका आंगन में अंजोर ना भइल. ओही टुटही धसकत घर में रह गइलन. बाद में एक-एक कोठरी बनवा के आ आगे-पीछे मँड़ई डाल के लाज बचवलन आ धसकत घर से जान छुड़वलन. बाद में गँवे-गँवे क के कई बरीस में पूरा मकान बना पवलन.
अबले राम निहोरो राय रिटायर हो के गांवे आ गइल रहलन. मेहरारू के निधन हो चुकल रहुवे. से ऊ नितांत अकेला रह गइल रहलें आ पूजा पाठ में रम गइल रहलन. उनुकर समय गांव के मंदिर का पुजारियेजी का साथे अधिका गुज़रे लागल. ऊ देखे लागल रहलें कि राम किशोर आ उनुका परिवार के भाव उनुका ला पुरनके भावुकता आ समर्पण के ना रहि गइल रहुवे. उनुकर सगरी जायदाद, सगरी कमाई, ग्रेच्युटी, फंड सभकुछ राम किशोर के हवाले हो चुकल रहुवे. परिवार के उपेक्षा से पीड़ित हो के ऊ मंदिर, पुजारी आ पूजे-पाठ में समय बितावल करसु. एही बीच एगो अउर ठनका गिर गइल उनुका पर.
उमिर के एह पड़ाव पर चर्म रोग उनुका देह पर दस्तक दे दिहलसि. राम किशोर का परिवार में ऊ अब वी.आई.पी. से अचके में अछूत हो गइलें. उनुकर थरिया, लोटा, गिलास, कटोरी, बिस्तर, चारपाई सब कुछ अलग कर दीहल गइल. एगो कोठरी में ऊ अछूत बना के राख दीहल गइलन. अपने पइसा से बनवावल घर में ऊ बेगाना अउर शरणार्थी हो गइलें. सभका के शरण देबे वाला राम निहोर खुदे अनाथ हो के, शरणागत हो गइल रहलन. राम किशोर के ई अभद्रता, अमानवीयता देखि के ऊ अवाक रहलन. ऊ चाहसु अपना एह चर्म रोग के दवा करवावे के बाकिर पइसा अब उनुका हाथ में ना रहल. कुछ लोग बतावल कि अगर तुरते इलाज शुरु हो जाव त ई ठीको हो सकेला. आ जे नाहियो ठीक हो पावो त कम से कम बाकी देह में अउरी पसरल त रुकिये जाई. ना त ई सगरी देह में पसर जाई. बाकिर राम किशोर सभ कुछ अनसुन कइले रहलन. आ राम किशोर के जवन बड़का बेटा राकेश अपना के सन आफ़ राम निहोर राय लिखत रहुवे, उहो खुल के राम निहोर राय के मुख़ालफत करे लागल रहुवे. गाली-गलौज करे लागल रहुवे. निरवंसिया, निःसंतान, नपुंसक ना जाने का – का बोलल करे. आ बात गरियावहीं ले सीमित ना राखि के ऊ अब अपना छोटका भाई मुकेश के साथे मिल के जब-तब उनुका के मारहूं-पीटे लागल. राम निहोर जब कबो राम किशोर से रोवत गोहार करसु कि,’बतावऽ एही लात मार खाए खातिर बूढ़इनी? सगरी जायदाद, सगरी कमाई का एही दिन ला तोहरा के सँउपले रहीं?’
‘का करीं. अब ई लइका त हमरो नइखन सुनत सँ.’ राम किशोर कहते, ‘बेसी तू तड़ाक करब त ससुरा हमरो पिटाई करे लगिहें सँ.’
हालां कि राम निहोरे के सगरी गाँव जानत रहल कि राम किशोर के बेटा ओकरे शह पर ई सभ करत बाड़ें सँ. बाद का दिनन में त राम निहोर भरपेट भोजनो ला तरसे लगलन. गांव में अगर केहू उनुका पर तरस खा के कुछ खाए के दे देसु त राम किशोर के बेटा जा के ओकरा के गरिया आव स. अपमान अउर उपेक्षा से आखिरकार राम निहोर टूट गइलन. एक रात नींद से उठि के राम किशोर का लगे गइलन, जगवलन आ छोटे भाई के गोड़ पकड़ के फफक पड़लन. बाकिर राम किशोर पसीजल ना. आखिर राम निहोर कहलनि, ‘हमरा के मुआइए काहे नइखऽ देत? एह नरकाह जिनिगी से नीमन त इहे होखी कि तू हमरा के मुआ दऽ.’
‘रउरा अपना नखरा के खेत-बारी हमरा बड़का बेटा का नांवे लिख दीं!’
‘अरे ऊ त ओकर हइये हवे. हमरा मुअला का बाद ऊ अपने-आप ओकर हो जाई.’
‘कइसे हो जाई?’
‘अपना सगरी सर्टिफ़िकेट्स में त ऊ हमरा के आपन बापे लिखल करेला. से ऊ हमार बेटा साबित हो जाई. अपने आप हमार वारिस हो जाई.’
‘अतना बुड़बक समुझत बानीं?’ राम किशोर बोलल, ‘ब्लाक के कुटुंब रजिस्टर में ऊ हमार बेटा दर्ज बा. सर्टिफ़िकेट में लिखल कवनो कामे ना आई.’
‘ठीक बा. लिखवा ल बाकिर हमार सांसत बंद कर दऽ.’
‘ठीक बा.’ राम किशोर बोलल, ‘जाईं. सूत जाईं.’
दोसरके दिन से राम निहोर के दशा में सचहूं सुधार आ गइल. अछूताह भलहीं रह गइलन बाकिर भोजन-पानी, बोली बर्ताव में राम किशोर आ ओकरा परिवार में बदलाव आ गइल. बाकिर राम निहोर मन ही मन दुखित रहलन. ई सोच-सोच के कि का ई अतना पापी हउवें जे एह स्वार्थी भाई से चिपकल पड़ल बाड़ें ? जवना भाई ला सगरी कमाई, सगरी जीवन न्यौछावर कर दिहलन उहे अइसन नीच आ स्वार्थी निकलल ? फेरु ऊ सोचलन कि अगर खेतो-बारी लिखियो देत बानी का गारंटी बा कि ऊ फेर उनुका साथे दुर्व्यवहार ना करी ? ऊ बहुते सोचलन बाकिर कवनो साफ फैसला ना ले पवलन.
हफ्ते दस दिन के आवभगत कइला का बाद राम किशोर आ उनुकर बेटन के दबाव अतना बढ़ गइल कि जल्दी से जल्दी बैनामा लिख दीं. आ ऊ आजु काल्हु पर टारत जासु. आखिरकार राम किशोर के बेटा उनुका के पीटल शुरु कर दिहलन सँ. पीट-पीट के दबाव बनावे लगलन सँ. आखिरकार ऊ ठेहुना रोप दिहलन. गइलन रजिस्ट्री आफ़िस. लिखत पढ़त के कार्रवाई शुरू भइल. ऐन समय पर ऊ बोललन, ‘बैनामा ना लिखब. बैनामा के वसीयत लिख देब.’ लवटानी में बीचे रास्ता में उनुकर जम के धुनाई भइल. राम किशोर के बड़का बेटा एक बेर उनुकर गरदन दबा के मारहूं के कोशिश कइलसि. हाथ पैर जोड़ के राम निहोर जान बचवलन. कहलन, ‘छोड़ द सँ हमरा केे ! बैनमे लिख देब.’
हताश मने घरे अइलन. बेमन से खाना खइलन. सूते गइलन बाकिर नीन रहुवे कहाँ आँखिन में ? अधरतिया जब सगरी गाँव सूतल रहल, ऊ उठलन आ घर-गांव छोड़ गइलन. सबेरे उठला पर जब राम किशोर के पता चलल कि राम निहोर भइया ग़ायब बाड़न त ओकर माथा ठनकल. हरान भइल बाकिर आपन हरानी केहू से जतवलसि ना. तबो गांव में गुपचुप ख़बर पसरिये गइल कि राम निहोर घर छोड़ के रातों-रात ग़ायब हो गइल बाड़न. दू तीन दिन बीतलो पर जब राम निहोर के पता ना लागल त राम किशोर अपना बेटन के भेज के सगरी हितइयन में छनवा मरलन. बाकिर राम निहोर ना भेंटइलन. पुलिस में उनुका गुमशुदगी के रिपोर्टो दर्ज करा दीहल गइल. ऊ तबो ना मिललन.
कुछ पन्दरह दिन बाद राम निहोर भेंटइलन बनारस में. गंगा नदी में डूबत घरी जल पुलिस के. नाव से ऊ बीचहीं में कूद गइल रहलन. हाय तौबा मचल, हल्ला हो गइल. जल पुलिस दउड़ल आ गोताख़ोर जवान उनुका के बचा लिहलन सँ. पुलिस उनुका के घाट पर ले आइल. भीड़ बिटोरा गइल. एक आदमी उनुका के चीन्ह गइल. कलकत्ता में ऊ राम निहोर का साथे नौकरी कर चुकल रहुवे. आ ओकरो गाँव राम निहोर के गांव का लगहीं रहल. राम निहोर का नियरा जब ऊ गइल त राम निहोर ओकरा के चिन्हतो अनचीन्ह बता दिहलन. बाकिर राम निहोर के जाने वाला ऊ आदमी ना हार मनलसि ना राम निहोर के छोड़ के गइल. निहोरा करि करि के ऊ राम निहोर के मनवा लिहलस. राम निहोर पिघलन आ ओकरा के अँकवारी में लेत फफक पड़लन. बोललन, ‘एह बुढ़ौती में आत्महत्या कवनो खुशी से त करत ना रहीं. बाकिर करीं का ? एह अभागा के त गंगो माई अपना गोदी में लेबे से मना कर दिहली. ‘ ऊ मानो पूछलन, ‘निःसंतान होखल का अतना बड़ पाप होला ? बाकिर एकरो में हमार कवन दोष ?’
राम निहोर के ऊ साथी उनुका के मना लिहलन आ भरोसा दिया दिहलन. बहुते समुझवलन-बुझवलन. बाकिर राम निहोर अपना घरे भा गांवे लवटे ला कवनो कीमत पर तइयार ना भइलन. हार पाछ के ऊ उनुका के अपना घरे ले आइल. कुछ पन्दरह बीस दिन ओकरा साथे रहला का बाद राम निहोर तनिका थिरइलन आ अपना एगो बहिन का घरे जाए के मनसा जतवलन. साथी राम निहोर के उनुका बहिन का घरे चहुँपा दिहलसि. भाई के देखते बहिन फफक पड़ल. राम निहोरो रोवलें आ फफक-फफक के रोवलन. सगरी व्यथा-कथा आदि से अंत ले बतवलन आ कहलन कि अब ऊ अपना घरे आ गाँवे ना जइहें. बहिनो मान लिहलसि आ कहलसि, ‘अइसन पापियन का लगे गइला के ज़रूरतो नइखे. एहिजे रहीं आ जइसे हमहन का गुजर-बसर करत बानीं जा, रउओ रहीं, खाईं पिहीं.’
राम निहोर गदगद हो गइलन. बाकिर कुछ दिन बाद बहिन अपना छोट भाई राम अजोर के बेटा जगदीश के सनेसा भेज के अपना घरे बोलवली. ऊ आइल त राम निहोर के देखते, ‘बड़का बाबू जी, बड़का बाबू जी’ कहत उनुका से लिपट के फफके लागल. राम निहोरो फफक पड़लन. दू दिन रहला का दौरान जगदीश बड़का बाबू जी के सगरी कथा, अंतर्कथा, पीड़ा-व्यथा-अपमान-उपेक्षा आ लांछन के सगरी उपकथा सुन गइल. आ बोलल, ‘बड़का बाबू जी, रउरा ई सब कुछ भूला दीं आ हमरा साथे चलीं. हमरा किहां रहीं. हम भर ताकत राउर सेवा करब. हमरा कुछऊ ना चाहीं रउरा से. जवन खाएब, तवने खियाएब बाकिर रउरा मान सम्मान में इचिको रेघारी ना पड़े देब. आ जे रउरा मान सम्मान ओरि केहू फूटलो आंखि देखलस त ओकरो आँख फोड़ देब हम.
बहुत मुश्किल से राम निहोर राय गांवे आवे ला तइयार भइलन. आ पूरा गाँव में राम निहोर के वापसी के ख़ुशी पसर गइल. आ साथही राम किशोर आ ओकरा परिवार के थू-थूओ. जगदीश जवना भरोसा से राम निहोर के ले आइल रहल ओही निष्ठा से उनुका सेवो टहल में लाग गइल. उनुका चर्मो रोग के परवाह ना कइलसि, ना त उनुका ला बरतन बासन अलगा कइलसि, ना ओढ़ना-बिछवना. उनुका ला नया एक जोड़ी धोती कुर्ता, अंगोछा, बंडी आ जंघियो ख़रीद दिहलसि. राम निहोर ई प्यार आ सम्मान पा के पुलकित हो गइलन. पुलकितो भइलन आ लजाइयो गइलन. कि जवना भाई के ऊ अपना कमाई आ जायदाद के शतांशो ना दिहलन ओही छोट भाई के बेटा बेटा निःस्वार्थ उनुकर सेवा करत बा. जगदीश के पिता राम अजोरो अपना बड़का भाई के सहजे भाव से लिहलन. राम निहोर के जिनिगी में अब सुखे-सुख रहल. ऊ फेरु गांव के मंदिर में पुजारी जी का साथे पूजा-पाठ में रम गइलन. एक दिन दुपहरिया में राम निहोर छोटका भाई राम अजोर आ भतीजा जगदीश के अपना लगे बईठवलन आ कहलन कि, ‘आपन सगरी खेती बारी जगदीश के नांवे लिखल चाहत बानीं.’
‘ना बड़का बाबू जी अइसन मत करीं.’ जगदीश बोलल.
'काहें ?’ राम निहोर बोललन, ‘काहें ना करीं ?’
‘एहसे कि ई उचित ना होखी.’ जगदीश बोलल, ‘रउरा लिखहीं के बा त दुनु भाइयन के आधा-आधा लिख दीं. इहे न्याय होखी.’
‘ना ई त अन्याय हो जाई.’ राम निहोर बोललन, ‘राम किशोर आ ओकर बेटा सब जवन हमरा साथे कइले बाड़न से ओकरा के हम अगिला सात जनम का सउवो जनम में भुला ना पाएब. हम त ओहनी के धूरो नइखीं देबे वाला चाहे जवन हो जाव.’
‘चलीं एह पर फेरु ठंडा दिमाग़ से सोच के फ़ैसला करब. अबहीं रउरा परेशान बानीं.’ रामो अजोर कहलन.
‘फै़सला त हो चुकल बा. अब कुछ सोचे-समुझे के नइखे.’
‘बाकिर लोग का कही बड़का बाबू जी!’ जगदीश बोलल, ‘लोग त इहे कही कि हमनी का रउरा के फुसला लिहनी स.’
'हम कवनो दूध पीता बच्चा त हईं ना. कि तू लोग हमरा के फुसला लेबऽ. अरे फुसला लिहले त ऊ सभ रहलन सँ.’ ऊ बोललन, ‘फेर ई फै़सला त हमार आपन ह. तू लोग त हमरा से कबो कुछ कहलऽ ना.’
‘तबहियों लोक लाज त बड़ले बा. लोग हमनिऐ के बेईमान कहे लागी.’
‘कईसे बेईमान कहे लागी?’ राम निहोर बोललन, ‘जीवन भर के कमाई ओहनी के सँउप दिहनी. मकान बनवा दिहनी. अब खेत बधार तोहरा लोग के देत बानी. हिसाब बराबर.’
‘बाकिर राउर खेतो त अबहीं उहे लोग जोतत बा. ओही लोग के कब्जा बा.’
‘खेत पहिले बैनामा कर देब, फेरु क़ब्ज़ो ले लेब.’ ऊ कहलन, ‘अबहीं ऊ सब जोतले-बोवले बाड़न स. काट लेबे द, फेरु अगिला बेर से तू लोग जोतीहऽ बोईहऽ.’
आ सचहूं राम निहोर अपना हिस्सा के सगरी खेत-बधार जगदीश का नामे लिख दिहलन. आ फसल कटला का बाद खेतो ले लिहलन राम किशोर से. बाकिर अबहीं ले राम किशोर भा केहू के पता ना भइल रहे कि राम निहोर सब कुछ जगदीश का नामे लिख दिहले बाड़न. हँ, ई अंदाज़ा ज़रूर लगा लिहले रहे लोग कि अब राम निहोर भइया खेत बारी जगदीश का नामे लिख सकेलें. एकरा के रोके खातिर राम किशोर के परिवार एगो वकील से सलाहो लिहल लोग किे कइसे रोकल जा सकेला. वकील बतवलन कि अगर पुश्तैनी जायदाद ह, माने कि पैतृक ह त मुक़दमा कर के रोकल जा सकेला. खसरा, खतौनी आ ज़रूरी काग़ज़ात मंगववलन. तब पता चलल कि राम निहोर त बैनामा करियो दिहले बाड़न. राम किशोर धक से रह गइलन. वकील कहलन कि मुक़दमा त अबहियों हो सकेला अगर दाखि़ल ख़ारिज ना भइल होखे. मालूम कइल गइल त पता चलल कि दाखि़ल ख़ारिज अबहीं ले नइखे भइल. फेर त ढेरहन मनगढ़ंत बात जोड़त दाखि़ल ख़ारिज रोके ला मुक़दमा कर दिहलन राम किशोर. अब राम किशोर आ राम अजोर जानी दुश्मन हो गइलन. दुनू के घरन का बीचे छत बराबर बाउंड्री खड़ा हो गइल. ओह लोग का बेटन का बीच बात-बात पर लाठी भाला निकले लागल.
एक दिन राम निहोर आ राम किशोर आमना-सामन पड़ गइलन. राम किशोर के देखते राम निहोर कहलन कि, ‘पापी तोरा नरको में जगहा ना मिली.’
‘नरक त रउरा अबहियें झेलत बानी कोढ़ी हो के.’ राम निहोर के चर्म रोग इंगित करत राम किशोर दांत किचकिचात कह दिहलसि.
बात बढ़ गइल. हमेशा शांत रहे वाला राम निहोर राम किशोर के मारे लपकलन. रामो किशोर राम निहोर का ओरि मारे ला लपकल. अबहीं बात हाथापाईए ले आइल रहल कि गांव के कुछ लोग आ गइल आ बीच बचाव करत छोड़वा दिहलसि. एक आदमी बोलल, ‘राम निहोर चाचा रउरो एह उमिर में एह पापी का मुंहे लागत बानीं ?’
त राम किशोर ओकरो पर किचकिचा गइल. राम निहोर मूड़ी झुकावत घरे आ गइलन. घर में सगरी हाल बतवलन. जगदीश कहलसि कि, ‘बड़का बाबू जी अब से रउरा घर से कतहूं अकेले मत जाइल करीं. ‘
राम निहोर मान गइलन बाकिर राम किशोर ना मानल. राम निहोर के सगरी खेती-बधार अपना हाथ से निकलल जात देखल ओकरा बरदाश्त ना होखत रहे. कहां त ऊ सोचले रहल कि ओकरा दुनू बेटन का नामे जगदीशे का बराबर खेती होखी. आ एहिजा जगदीश का लगे ओकरा बेटन से चार गुना खेत हो गइल. ऊ चिंता में गलल जात रहुवे. हफ़्ते भर में ओकर ब्लड प्रेशर ज़्यादा अतना बढ़ गइल कि ओकरा लकवा मार दिहलसि. दहिना हिस्सा पूरा के पूरा लकवाग्रस्त. डाक्टर बहुते इलाज कइलन बाकिर कवनो ख़ास सुधार ना भइल. अब राम किशोर बिछवना पर पड़ल रहलन गाँव के लोग कहे लागल कि ओकरा पाप के सजा जियते जिनिगी मिल गइल राम किशोर के. राम निहोर के साथ ओकर दुर्व्यवहार, ओकर बेइमानी लोगन का ज़बान पर रहे लागल. ओकरा साथे इक्का-दुक्का छोड़ केहू के सहानुभूति ना भइल.
बाकिर राम निहोर के भइल आखिर छोट भाई रहल राम किशोर. से राम निहोर गइबो कइलन ओकरा के देखे. ओकरा माथ पर हाथ फेरत ओकरा के तोस दिहलन आ हाथ ऊपर उठा के कहलन कि, ‘भगवान जी सब ठीक करिहेंं.’
‘बड़का भइया!’ कहत रामो किशोर फफके लागल. बाकिर आवाज साफ ना निकलत रहुवे. आवाज़ लटपटा गइल रहल. चिंतित राम निहोर घरे लवटलें. राम अजोर से बोललें, ‘हमरा घर के सुख पर कवनो के नज़र लाग गइल. थाना, मुक़दमा हो गइल. हमरा ई बेमारी हो गइल, राम किशोर बिछवना धर लिहलसि.’ राम अजोर उनुका बात पर ग़ौर ना कइलन त राम निहोर तड़प कर बोललें, ‘आखि़र हमनी का हईं सँ त एके ख़ून! मुनीश्वर राय के संतान !’
राम अजोर समझ गइलन कि बड़का भइया भावुक हो गइल बाड़न. दिन बीतत गइल आ मुक़दमा चलत गइल. घर का बीचे के देवारो से बड़हन देवार दिलन में बनत गइल. इहाँ ले कि ख़ुशी, त्यौहार आ शादिओ बिआह में राम किशोर आ राम अजोर के परिवार में आना जाना बातचीत सब बंद हो गइल. लोगन के लागे लागल कि कि कहियो ना कहियो राम किशोर के लड़िका राम अजोर के लड़िका जगदीश के ख़ून कर दिहें सँ. कुछ लोग जगदीश के समुझइबो कइल कि, ‘अब से राम निहोर के हिस्सा के खेत बारी आधा-आधा कर लऽ ना त कवनो दिन ख़ूनी लड़ाई छिड़ जाई.’ जगदीश त मन मार के तइयारो होखे लागल बाकिर राम निहोर एको पइसा एह से सहमत ना भइलन. ऊ जगदीश के गीता के कुछ सुभाषित सुनावत कहलन कि, ‘डेरा के मत रहल करऽ.’
‘जी बड़का बाबू जी!’ जगदीशो मान गइल.
मुनक्का राय जब ससुराल चहुंपले तबले दुपहरिया हो गइल रहुवे. बाकिर ओहिजा के जवन नजारा ऊ देखलन त उनुका पछतावा होखे लागल कि अइलन काहे. सगरी शोक झगड़ा में बिला गइल रहल. सगरी गाँव बटोराइल रहल, हित-नात आ परिचित सभे आइल रहल आ राम किशोर के दुनू बेटन के दावा रहल बड़का बाबूजी के संपति पर. दुनू के कहना इहे रहल कि, ‘बड़का बाबू जी दुनू भाइयन के बड़ भाई रहलन. एहसे उनुकर सगरी संपति आधा-आधा बँटाई. उनुकर लाशो.’ दुनू छटक-छटक के कहत रहले सँ कि, ‘आधा लाश हमार, आधा लाश तोहार.’
‘कहीं लाशो के बंटवारा होला?’ गांवे के एक जने अफ़सोस जतावत कहलन. सुनते राम किशोर के बेटा मुकेश लपक के उनुकर नरेटी दुनू हाथे दबावे लागल आ कहलसि, ‘चुप साला! तें के हईस रे !’
बवाल बढ़ चुकल रहुवे. आरी मँगावल जा चुकल रहल राम निहोर के लाश के आधा-आधा करे खातीर. फ़ोटोग्राफ़रो बोलवा लीहल रहुवे फ़ोटो खींचे खातीर. राम किशोर के दुनू बेटा छटक-छटक के राम निहोर के लाश का साथे फ़ोटो खिंचवावत रहलन स. कबो एह दिसाईं से त कबो ओह दिसाईं से. कबो एह कोना से त कबो ओह कोना से. राम अजोर आ जगदीश आपन-आपन कपार पकड़ले चुप-चाप बइठल ई अभिशप्त नजारा तिकवत रहलन. एही बीच आजिज़ आ के केहू थाना पर फ़ोन कर के पुलिसो के ख़बर क दीहल, पुलिस आइल तब कहीं जा के मामिला सलटल. राम निहोर के लाश दू टुक्का होखे से बाचल. राम किशोर के एगो बेटा अबहियों जिदियाइल रहल कि ‘बड़का बाबू जी के आग हमहीं देब.’ आखिरकार पुलिस पूछलसि कि, ‘आखिरी समय में राम निहोर राय केकरा संगे रहलन आ के उनुकर सेवा-टहल करत रहुवे?’ गांव वाला साफ कर दीहलन कि,’राम अजोर राय आ उनुकर बेटा जगदीशे रामनिहोर के सेवा कइलें आ ऊ इनही लोगन साथे रहत रहलन. सगरी जायदादो ई एही लोगन के लिख दिहले बाड़न.’
‘बाकिर एकर मुक़दमा त अबहीं चलते बा.’ मुकेश तमतमा के बोललसि, ‘दाखि़ल ख़ारिज अबहीं ले नइखे भइल.’
'त अब हमहीं तोहरा के दाखिल कर देब अबहियें थाना मेंं.’ दरोग़ा जब डपटलसि त मुकेश ओहिजे भीड़ में सँसर गइल.
‘राम नाम सत्य है’ के उद्घोष का साथे राम निहोर के मजल निकलल, पुलिस का पहरा में. गांव से भीड़ उमड़ पड़ल. अगलो-बगल के गाँव से लोग एह मजल में जुड़त गइल एह आसरे कि शायद कही शमशानो पर कुछ ना कुछ बवाल होखबे करी. राम निहोर राय के लाश के दू टुकड़े करे वाला बात सगरी जवार में पसर चुकल रहुवे. अइसन पहिले ना त कतहीँ सुनाइल रहल ना देखल गइल रहल. से एही लालसा में सभे सरयू नदी के शमशान घाट ले चहुँप गइल. मुनक्को राय के अबहीं ले ठकुआ मरले रहल. ज़िंदगी भर के वकालत में ऊ किसिम-किसिम के झगड़ा, प्रपंच आ पेंच देखले रहलन बाकिर अइसन त ‘न भूतो, न भविष्यति!’ ऊ बुदबुदइन.
शमशान घाट पर मुकेश एक बेर फेर कुलबुलाइल, ‘मुखाग्नि हमहीं देब.’
बाकिर दरोगा जसहीं ओकरा के घूरलन ऊ फेरु भीड़ में सँसर गइल. फेर कवनो विवाद ना भइल. ज़्यादातर भीड़ के पछतावा रहल कि अरे कवनो तमाशा त भइबे ना कइल ! मुनक्को राय शमशान घाट से लवटि के अइलन. कुछ देर अनमनाइले बइठलन, राम अजोर से संवेदना जतवलें आ पत्नी अउर मुनमुन के ले के देर रात बांसगांव लवट अइलन. घरे अइला पर पत्नी से बोललन, ‘तोहार ई मँझिला भाई राम किशोर शुरूए के दुष्ट हवे. तोहरा मालूम बा कि जब हमनी के शादी से पहिले हमरा के देखे ला आइल रहुवे त तरह तरह के खुरपेंची सवाल पूछत रहुवे. अतने ना सबेरे-सबेरे जब लोटा ले के दिशा मैदान करे निकलल त बाते बात में हमरा के ललकार के कोस भर दउड़ा दिहलसि कि देखीं के जीतत बा? हम बूझ गइल रहनी कि ई हमार दउड़ल नइखे देखे चाहत, हमार परीक्षा लीहल चाहत बा. ई दम-खम चेक कइल चाहत बा हमरा के दउड़ा के. हम दउड़ त गइनी आ भगवान के दया से हमार साँसो ना उखड़ल आ ई बेवकूफ हमरा के अपना परीक्षा में हमरा के पास क गइल. हमनी के शादी हो गइल. बेवक़ूफ़ कहीं का, बड़ा होशियार समुझेला अपना के.’ कहत मुनक्का राय एह गम का घड़ियो में पत्नी ओरि देखत मुसुका दिहलन.
ऊ जानत रहलन कि पत्नी के मँझिलके भाई से बेसी पटेला. मंझिला भइया मतलब राम किशोर भइया. उनुका नीक ना लागत रहुवे तबहियों बतावत रहलन कि, ‘एक बेर त ससुरा हदे कर दीहलसि. अचके में कचहरी आ गइल भरल दुपहरिया में. ओह घरी कोका-कोला नया नया आइल रहल देश में. हम सोचनी कि साला साहब के स्वागत कोका-कोला से कर दीं. मुंशी के कह के कोका-कोला मंगववनी. आठ-दस लोग अउरिओ बइठल रहल तखता पर ओह बेरा. से एह चक्कर में सभका ला मँगवा दिहनी. सभे कोका-कोला पीयल बाकिर ई ना. हाथ जोड़ लिहलसि. आ देहाती भुच्च सगरी हितई-नतई में हमरा के पियक्कड़ डिक्लेयर करवा दिहलसि. सभे के पूरा विस्तार देत बतावल करे कि बताईं, बोतल चलत बा. खुल्लम खुल्ला. उहो दिनदहाड़े. हम गइनी त बेशरम हमरो के पियावे लागल. केहू तरह हाथ जोड़ के छुट्टी लिहनी. हम सफ़ाई देत-देत हार गइनी बाकिर केहू मानबे ना करे. तब के बेरा में कोका-कोला के अतना चलनो ना रहल. बहुते लोग त बूझबे ना करे कोका-कोला. बोतल समुझ लेव. आ बोतल मतलब शराब!’ ऊ भड़कल रहलन, ‘अब पड़ल बा अपना पापन के गठरी लिहले बिछवना पर हगत-मूतत. नालायक़ अपना धर्मात्मा भाई, राम निहोर भाई साहबो के ना छोड़लसि. भर जिनिगी त डसते रहल, मुअला का बादो अपना संपोलन के भेज दिहलस आधा लाश काटे ला. नालायक़ के नरको में यमराज महराज जगह ने दिहें.’
मुनक्का राय के एकालाप चालूए रहल कि मुनमुन आ के उनुका के टोकलसि, ‘बाबू जी कुछ खइबो-पियबो करब कि मामाजी के सरापिए के पेट भर लेब?’
‘हां, कुछ रूखा-सूखा बना दऽ.’
‘सब्जी बना दिहले बानी. नहा धो लीं त रोटी सेकीं.’
‘ठीक बा.’
‘आ हँ, अम्मा तुहूं कुछ खा लऽ.’
‘हम कुछ ना खाएब आजु. इनहीं के खिया दऽ.’
खा पी के सूत गइलन मुनक्का राय. अगिला दिन से फेरु उहे कचहरी, उहे खिचखिच, उहे मुनमुन, उहे बिआह खोजे के रामायण फेर से शुरू हो गइल आ शादी काटे में गिरधारी राय के मेहनतो. राम निहोर राय के लाश आधा-आधा काटे वाले त्रासद तमाशा के रिपोर्टो गिरधारी राय के मिल चुकल रहल. से ऊ विवेक-मुनमुन कथा में खइला का बाद वाला स्वीट डिश का तरह एही कथा के परोसे-परोसवावे लगलन. कहसु, ‘जवना लड़की के ममहर अतना गिरल, अतना बवाली होखो ओह लड़की के कवनो परिवार में आइल कतना भयावह होखी? आखि़र आधा ख़ून त ओही ममहरे के बा ओकरा में.’
आ जब ऊ देखलन कि मुनक्का राय अब शादी खोजत-खोजत फ़ुल पस्त हो गइल बाड़न आ कतहीं बात बनत नइखे त बाहर से देखे में चकाचक बाकिर भीतर से पूरा तरह खोंखर एगो परिवार से रिश्ता करे के तजवीज़ एगो वकील साहब का मार्फ़त परोसवा दीहलन. ऊ परिवार कबो रमेश के मुवक्क़िलो रहुवे आ गिरधारी राय के ससुराल पक्ष से दूर के रिश्तो में रहल. लड़िका गिरधारी राय का तरहे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के बेस्ट फेलियर रहुवे. संगहीं सिजोफ्रेनिया के मरीजो आ फ़ुल पियक्कड़ो. गिरधारी राय के हिसाब से मुनक्का राय के निपटावे ला एकदम फ़िट केस रहुवे. जब कि लड़िका के बाप घनश्याम राय एगो इंटर कालेज में लेक्चरर रहलन आ आपन एगो हाई स्कूलो चलावत रहलन. दबंगईओ में उनुकर कमोबेश दखल रहल. ब्लाक प्रमुख रह चुकल रहलन, घर में ट्रैक्टर, जीप सहित खेतो-मकान रहल. मुनक्का राय जब उनुका हियां चहुँपले त उनुकर खूब आव-भगत भइल. ख़ूब सम्मान दिहलन. मुनक्का राय गदगद हो गइलन बाकिर जब उनुका पता चलल कि लड़िका राधेश्याम राय अबहियों इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एम.ए. में पढ़िए रहल बा त ऊ बिदकलन. बाकिर लड़िका के बाप झूठ बोलत कहलन कि, ‘होनहार हवे आ पी.सी.एस. क तइयारिओ करत बा.’ त उनुका जान में जान आइल. फेर लड़िका के पिता घनश्याम राय कहलन, ‘राउर बेटा सब बढ़िया पद पर प्रतिष्ठित बाड़े सँ त एकरो के अपने तरह कहीं ना कहीं खींचिये लिहें सँ. आ अगर तबहियों कुछ ना भइल त आपन हाई स्कूल त बड़ले बा. दुनू मियां-बीवी एही में पढ़इहें. रउरा बेटी के शिक्षा मित्र रहला के अनुभवो कामे आ जाई.’
‘हं-हं, काहें ना?’
एह रिश्ता में मुनक्का राय के एगो सुविधा लउकल कि एहिजा इंगलिश मीडियम, इंजीनियर, एम.बी.ए., एम.सी.ए. वग़ैरह के चरचा भा फ़रमाईश ना कइलन लड़िका के पिता. बाकिर जब बात लेन-देन के चलल त ओहमें ऊ कवनो रियायत ना कइलन. दस लाख रुपए सीधे नगद मांग लिहलन. मुनक्का राय तनिका भिनभिनइलन त ऊ कहलन, ‘राउर बेटा सब अतना प्रतिष्ठित पदन पर बाड़े सँ. त रउरा ला कवन मुश्किल. रउरा त हाथ के मइल हवे दस लाख रुपिया.’
‘बाकिर रउरा माँगत बहुत बेसी बानी.’ मुनक्का राय तनिका टहकार होके बोललन, ‘ई रेट त नौकरी वाला लड़िकनों के नइखे. आ राउर लड़िका त अबहीं पढ़ते बा.’
‘पढ़तहीं नइखे, पी.सी.एस. के तइयारिओ करत बा.’ ऊ कहलन, ‘जे कहीँ पी.सी.एस. में सेलेक्ट हो गइल त रउरा पचासो लाख में ना भेंटाई. उड़ जाई’ ओकर बोली मुनक्को राय से टहकारे रहल, ‘पकड़ लीं अबहीं ना त जब उड़ जाई तब ना पकड़ पाएब.’
‘तबहियों!’ मुनक्का राय मेहराइल आवाज में बोललन.
'अरे मुनक्का बाबू इहो त हम एहले करत बानी कि राउर सगरी बेटा कवनो ना कवनो प्रतिष्ठित पद पर बाड़न स, नीमन परिवार बा, कुलीन बा से हम आंख मूंद के हामी भरत बानी.’
एकरा बाद ही-हा का बीच पंडित जी के बोलावल गइल. कुंडलियन के मिलान कइल गइल. पंडित जी बतवलन कि, ‘शादी बाइस गुण से बन रहल बा.’
फेर त दुनू फरीक एक दोसरा के बधाई दिहलें. गले मिललें. मुनक्का राय वापस बांसगांव ला चल दिहलें बिलकुल गदगद भाव में. ऊ राह में एक बेर अपना कटिया सिल्क के कुर्ता आ जाकेट पर नज़र डललन. उनुका नीमन लागल. फेर सोचलन कि कहीें एह कुरते जाकिट के फ़ोकसबाज़िए त बात ना बना दिहलसि? फेर ऊ इहो सोचलन कि कहीँ एह जम रहल कुर्ता जाकिटे के भौकाल में त लड़िका के बाप दहेज ला अतना बड़ मुँह त ना बा दिहलन?
तबहियों उनुका ई रिश्ता ना पता काहे पहिला नजर में बहुते ठीक लागल. अब उनका का पता रहल ऊ त गिरधारी राय के बिछावल बिसात पर प्यादा बन के रह गइल बाड़न. राहुल के फ़ोन अइला पर ऊ बता दिहलन कि, ‘तमाम देखल रिश्तन में ई शादी हमरा जम गइल बा. ऊ घनश्याम राय के बेटा राधेश्याम राय ह. लड़िका होनहार बा. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़त बा आ पी.सी.एस. के तइयारिओ कर रहल बा.’
‘माने कि रउरा पूरा तरह पसंद बा.’
‘हँ, पसंद त बा बाकिर ऊ दहेज तनिका बेसी माँगत बाड़न.’
‘कतना?’
‘दस लाख रुपिया नगद.’
‘हं, ई त तनिका ना बहुते बेसी बा.’ राहुल बोलल, ‘रउरा भइयो लोगन के बता दीं. का पता बातचीत से कुछ कम कर दे.’
‘ठीक बा.’ मुनक्का राय आश्वस्त हो गइलन.
रमेश से बात भइल त ऊ कहलन कि, ‘बाबू जी घनश्याम राय त हमार मुवक्किल रहल बा. ओकर फ़ोन नंबर दीं, एक बेर बतिया लेत बानी. कुछ का, अधिके कम करवा लेब.’
‘फ़ोन नंबर अबहीं त नइखे. बाकिर पता कर के बता देब.’
‘आ हँ, लड़िको का बारे में तनी ठीक से जांच पड़ताल कर लिहीं. वइसहूं घनश्याम राय तनी दबंग आ काइयां टाइप के आदमी हवे. इहो देख लेब.’
'ठीक बा.’
बाद में जब रमेश फोन कइलन घनश्याम राय के त ऊ ‘जज साहब, जज साहब!’ कह-कह के विभोर हो गइल. कहे लागल, ‘धन्यभाग हमार कि रउरा हमरा के फ़ोन कइनी. हमरा त विश्वासे नइखे होखत.’
'ऊ सब त ठीक बा बाकिर रउरा जे दस लाख रुपिया मांगत बानी ओकर का कइल जाव?’ रमेश बोललन, ‘एगो बेरोज़गार लड़िका के अतना दहेज त सोचलो ना जा सके. आ रउरा अइसे मांग लेत बानी.’
‘रउरा जइसन कहीं हुज़ूर. हम त अपने के पुरान मुवक्किल हईं’ कह के ऊ घिघियाए लागल.
‘नक़द, दरवाज़ा, सामान वग़ैरह कुल मिला के पांच लाख रुपए में तय रहल. अब रउरा तय कर लीं कि का सामान लेबे के बा आ का नकद. ई सब पिता जी के बता दीं.’ रमेश लगभग फ़ैसला सुना दिहलें.
‘अरे जज साहब अतना मत दबाईं’ घनश्याम राय फेर घिघियाइल.
‘घनश्याम जी, हमरा जवन कहे के रहल से कह दिहनी. बाक़ी रउरा तय कर लीं आ पिता जी के बता दीं. प्रणाम!’ कह के रमेश फ़ोन काट दिहलन. फेर बाबू जी के ई सगरी बातचीत बतावत कहलन कि, ‘बाक़ी उत्तम मद्धिम रउरा अपना स्तर से देख लेब. ख़ास कर के लड़िका आ ओकर स्वभाव वगैरह. चाल-चलन, सूरत-सीरत. इहो सब जानल जरुरी बा.’
‘बिलकुल बेटा.’ मुनक्का राय बोललन, ‘बस एक बेर तू सब भाईओ आ के देख लेतऽ त नीक रहीत.’
‘अब ओकरा घरे हमरा के मत ले चलीं.’ रमेश बोला, ‘धीरज, तरुण से बतिया लीं.’
बाकिर धीरज आ तरुणो टार दिहलें. कहलें कि, ‘बाबू जी, रउरा देख लिहले बानी, रउरा पसन्द आ गइल बा. रउरा अनुभवी बानी. राउरे फ़ैसला अंतिम फ़ैसला रही.’
बेटन के एह बात से मुनक्का राय गदगद हो गइलन. आखिरकार चार लाख रुपिया नगद, मोटरसाइकिल आ तमाम घरेलू सामान, घड़ी, चेन, टीवी, फ्रि़ज, फ़र्नीचर सहित तय हो गइल. बियाह के दिन आ तिलक के दिनो बेटन का राय से दू तीन दिन के गैपे में रखाइल जेहसे ओहलोग के अधिका समय बरबाद ना होखे. आ सब कुछ एकही बेर के अइला में निपटा लीहल जाव. अब दिक्क़त ई आइल कि धीरज आ तरुण जे दू-दू लाख रुपिया देबे के कहले रहलें, घट के एक-एक लाख रुपिया पर आ गइलें. मुनक्का राय राहुल के बतवलन. राहुल थाईलैंडे में अपना ससुर का लगे गइल. समस्या बतवलसि. ससुर ओकरा के आश्वस्त कइलन आ कहलन कि, ‘ख़रच-वरच के चिंता मत करऽ. जवने खरचा होखे बतावऽ, हम सब दे देब. बस इहे ध्यान रखीह कि शादी में कवनो कमी ना रहे. पूरा धूम धाम से होखे.’ ससुर कहलन, ‘दू गो बेटी बिअहले बानी. मान लेत बानी कि इहो हमार तिसरकी बेटी हिय.’
‘ना. हम एक-एक पाई बाद में वापस कर देब.’
‘हम जानत बानी. बाकिर एकर ज़रूरत नइखे.’ राहुल के ससुर दरअसल राहुल के एही ख़ुद्दारी के क़ायल रहलन. राहुल के सिंसियरिटी, ओकर मेहनत आ क़ाबिलियत पर ओकर ससुर मोहित रहलन. ऊ सबका से कहतो रहलन कि, ‘हम बड़ भाग्यशाली बानी जे अइसन दामाद मिलल.’
मुनमुन के बिआह के सगरी खरचा राहुल ओढ़ लिहलन. हवाला का जरिए पांच लाख रुपिया बाबू जी के भेज दिहलन आ कहलन कि, ‘बाक़ी ख़रचो जवन होखो तवन बताएब.’
कार्ड वार्ड छपा गइल हलवाई वग़ैरह के साटो हो गइल. मुनक्का राय कहसु कि, ‘पइसा होखो त कवनो काम रुके ना.’ तरुण तिलका से तीन दिन पहिले सपरिवार आ गइल. मुनमुन ओकर गोड़ ध लिहलसि आ बोलल, ‘भइया एक बेर लड़िका देख आईं कि कइसन बा? बात-बेवहार कइसन बा? चाल-चलन कइसन बा?’
‘बाबू जी त देखले बानी नू?’
‘देखले कहां बानी?’ ऊ बोलल, ‘बाबू जी त सिर्फ़ लड़िका के घर आ उनुका पिता के देखले बानी. ऊ बाबूजी के जवने बता दिहलन उहां के उहे मान लिहले बानी. एको बेर अपना ओर से कुछ दरियाफ़्त नइखीं कइले.’
‘बाकिर मुनमुन कार्ड छपा के बंटाइओ गइल बा.’ तरुण बोललन, ‘अब का कइल जा सकेला?’
'काहें? बारात त दुआरी पर सेे लवट जाले जे अगर कवनो गड़बड़ होखेला, एहिजा त सिर्फ़ कार्ड बंटाइल बा.’
‘अरे अब दिनो कतना बाचल बा?’
‘भइया रउरा लोग हमार बलि मत चढ़ाईं.’ ऊ फेरु हाथ जोड़त बोलल.
‘मुनमुन अब कुछ ना हो सके.’ तरुण सख़्त भाव में बोलल.
अगिला दिने धीरज आइल त मुनमुन ओकरो गोड़ ध के चिरौरी कइलसि कि, ‘भइया रउरा त प्रशासन चलाइलें. एक बेर अपना होखे वाला बहनोई के जा के देख त आईं. ओकरा बारे में कुछ पता करवा लीं!’
‘का बेवकूफी के बात करत बाड़ीस?’ धीरजो डपट दीहलन.
रमेशो भइया से मुनमुन हाथ जोड़लसि त ऊ बोललें, ‘हम जानत बानी ओह परिवार के.’
‘अपना होखे वाला बहनोईओ के जानत बानीं?’
‘अब शादी हो रहल बा, ओकरो के जान लेब.’
तिलक का दिने राहुल आइल थाईलैंड से त मुनमुन ओकरो से कहलसि, ‘भइया रउरा अतना खरचा कर रहल बानी हमरा बिआह में, एक बेर अपना होखे वाला बहनोई के त देख आईं, कुछ अता-पता लगा लीं.’
‘अब आज का दिने?’
‘आदमी कपड़ो ख़रीदेला त देख समुझ के आ रउआ लोग हमरा होखे वाला जीवनो साथी के देखल समुझल नइखीं चाहत?’
‘आज तिलक चढ़ावे जात बानीं स.’ राहुल बोलल, ‘फेर बाबू जी त देखिए समुझ लेले बानी. उहाँ के कवनो दुश्मन त ना हईं तोहार?’
‘बाकिर गिरधारी चाचा त हउवें नू?’
‘का?’
‘उनुका ससुरारी के रिश्ता के हउवें ई लोग.’
‘का?’
‘हँ.’
‘तोहरा कइसे मालूम?’
‘बाबूए जी का बातन से पता चलल.’
‘ओह त बाबू जी ई सब जानत बानीं नू?’ राहुल बोलल, ‘फेर घबरइला के कवनो बात नइखे.’
‘बाबू जी त अपना होखे वाला दामाद के अबले देखलहूं नइखीं कि लूला हवे कि लांगड़. बस ओकरा बाप के देखले बानी आ ओकर फ़ोटो भर देखले बानी!’
‘चलऽ. अगर तिलका में लूल-लांगड़, आन्हर काना भा अइसन वइसन लउकल त शादी कैंसिल कर देब. बस!’ राहुल बोलल, ‘तूं अतना शक काहे करत बाड़ू बाबू जी का फ़ैसला पर?’
‘एहले कि ई हमार जिनगी ह, हमरा भविष्य के सवाल ह. ज़माना बदल गइल बा. बाकिर बाबू जी नइखीं बदलल. उहां के त अबहियों पुरनके पैटर्न पर चलत बानी जब बाल विवाह के ज़माना रहल आ लोग माई-बाप, घर दुआर देख के शादी कर देत रहुवे.’
‘ओह अतनी बात?’ राहुल बोलल, ‘बाबू जी पर अतना अविश्वास कइल ठीक नइखे. ख़ुशी-ख़ुशी शादी करऽ, सब ठीक होखी. ’ कह के राहुल अपना ओर से बात खतम करे के चहलसि.
‘रउआ लोग दीदीयन का बिआह में त अतना निफिकिर ना रहनी. एक-एक चीज़ खोद-खोद के ठोंक-पीट के तय करत रहनीं.’
‘तब मुनमुन समय अफरात रहल.’ राहुल बोला, ‘तब के बात अउर रहे. हमनी का तब कमज़ोर रहनी सँ. आज नइखीं सॅ. आजु केहू हमहन का ओर सपनो में आंख उठा के ने देख सके.’
‘अतना अहंकार ठीक नइखे राहुल भइया!’ मुनमुन बोलल, ‘रावण एही में डूब गइल रहल आ बरबाद हो गइल.’
‘का बेवक़ूफी बतियावत बाड़ू?’ राहुल बोलल, ‘तोहार बिआह होखे जा रहल बा, शुभ-शुभ बोलऽ!’
‘शुभे-शुभ आगहूं रहे भइया एही ले त इ सब कहत बानी कि एक बेर अपना होखे वाला बहनोई के शादी से पहिले ठीक से जांच पड़ताल लीं.’ मुनमुन बोलल, ‘आखि़र हम कवनो दुश्मन त हईं ना रउरा सभन के जे एह तरह बिना जंचले-समुझले हमरा के एगो अनजाना खूंटा पर बान्हे जात बानी. आखिर हमरा जिनिगी के सवाल बा.’
‘बाबू जी पर तोहरा भरोसा नइखे?’ राहुल अउँजा के बोलल.
‘पूरा भरोसा बा. बाकिर अब उहां के वइसन शार्प नइखीं रह गइल. उमिर हो गइल बा. दोसरे अबहीं ले उहां के सिर्फ़ घर आ लड़िका के बाप के देखले बानी. लड़िका के ना.’
‘काहें, बरिच्छा में त देखलहीं होखब?’
‘कहां?’ मुनमुन अकुला के बोलल, ‘ओकर छोटे भाई बरिच्छा लिहलसि. ऊ त इलाहाबाद से आइले ना रहल बरिच्छा में.’
‘का?’
‘हँ, बाबू जी सिरिफ फ़ोटवे से काम चलावत बानी.’
‘चलऽ अब आज तिलक त कैंसिल हो ना सके.’ राहुल बोलल, ‘बाकिर हम कोशिश करब कि ओकरा के आजु निकहा से देख-समुझ लीं. कहीं कवनो दिक्क़त बुझाइल त कैंसिल कर देब ई बिआह.’
‘सच राहुल भइया!’ ऊ राहुल के गोड़ धर के बइठ गइल, ‘भुलाएब जन.’
‘बिलकुल!’
धूमधाम से तिलक गइल आ चढल. लवटला पर सभे तिलक में ख़ातिरदारी आ इंतज़ाम के बड़ाई के पुल बान्हे लागल. फेर एह फिकिरे पड़ गइल कि एहिजा के इंतज़ाम में कवनो कोर कसर मत रह जाव. सगरी बात होखत रहल, बाकिर जवना के बात ना होखत रहल ऊ रहल दुलहा के बात. केहू दुलहा के जिकिरो ना करत रहुवे, भुलाइलो से ना.सुबेरे से साँझ हो गइल. मुनमुन कान लगवले-लगवले थाक गइल. सभे इंतज़ाम में डूबल रहुवे. आखिर मौक़ा देख के मुनमुन फेरु राहुल के पकड़लसि. पूछलसि, ‘हमार काम कइनीं?’
‘कवन काम?’
‘दुलहा देखनी?’ ऊ खुसफुसाइल.
‘हँ, भई हँ. दुलहा देखनी!’ राहुल तनिका तेजे आवाज में बोलल.
‘धीरे से नइखे बोलात?’ मुनमुन फेरु खुसफुसाइल.
‘हँ, भई देखनी.’ राहुला मुनमुने का तरह खुसफुसाइल.
घर में सब लोग ई सब देख के खिलखिला के हंस पड़ल. मुनमुन लजा के अपना कमरा में भाग गइल. बाकिर थोड़हीं देर बाद फेरु ऊ मौक़ा ताक के राहुल के पकड़लसि आ ओकर हाथ पकड़ के ओकरा के छत पर ले गइल. बोलल, ‘हमार मज़ाक उड़ावे के समय नइखे ई. हमरा जिनिगी आ मौत के सवाल बा ई.’
‘अच्छा?’ राहुल आंख फैला के मज़ा लेत बोलल.
‘त तूं ना मनबऽ? ना बतईबऽ?’
‘देखऽ सांच बात त ई बा कि तोहार होखे वाला दुलहा एक आंख आ एक गोड़ से लाचार बा.’ राहुल मज़ा लेत बोलत रहल, ‘एही चलते हम ओहिजा सब का सोझा कुछ बतावे से हिचकत रहनी. अब तूं पुछबू कि तब हमरा के ओकरा से बिआहल काहे जा रहल बा? त देखऽ, हम बस अतने कहल चाहब कि ई बाबू जी के फ़ैसला हवे आ हमनी भाइयन में से केहू बाबू जी के फ़ैसला चैलेंज करे का स्थिति में नइखे. ठीक?’ राहुल बात ख़तम करत पूछलसि, ‘अब हम जाईं? ढेरे काम पड़ल बा.’
‘ओफ़्फ़ राहुल भइया ई मज़ाक के बात नइखे.’
‘तोहरा अब हमरा बातो पर भरोसा नइखे त हम का कर सकिलें?’ कह के राहुल हंसत छत से सीढ़ी उतरत भाग गइल. आ जे फेर तिसरकी बेर मुनमुन राहुल के घेरलसि त राहुल साँच बता दीहलन, ‘देख मुनमुन, तोहार दुलहा देखे में औसत बा. ठीक ठाक कहल जा सकेला. अगर अमिताभ बच्चन ना ह त मुकरी भा जगदीप भा जानी लीवरो जइसन नइखे. क़द तोहरा से बेसी आ रंगो तोहरे जइसन बा.’
‘आ बात बेवहार?’ मुदित होत मुनमुन पूछलसि.
‘अब तूं जे अतना पीछे पड़ल बाड़ू त सांच कहीं हमार बहिन, तनिका समय में केहू केहू के बात-बेवहार कइसे जान सकेला? आ अइसना मौका पर वइसहूं सभे ज़रूरत से अधिका फ़ार्मल हो जाला. हैलो हाय आ एक दोसरा के परिचय का अलावा कुछ ख़ास बात भइबे ना कइल.’
‘चलऽ राहुल भइया अतना बतावे आ ओकरा पहिले ख़ूब सतावे ला शुक्रिया.’ ऊ हाथ जोड़त विनयवत बोलल.
‘आ हँ जे बेसी डिटेल जाने के होखे त रमेश भइया से पूछ लऽ. उहेंका ओकरा से बेसी देर ले बतियवनी. आखि़र उहाँके पुरान मुवक्किल के बेटा हवे. आ फेरु जे साँच पूछऽ त पूरा तिलक समारोह में उहें के भौकालो रहुवे. वी.वी.आई.पी. उहें का रहनी. सभे जज साहब, जजे साहब के धुन लगवले रहुवे. धीरज भइया के कलफ़ लागल अफ़सरिओ उनुका जज साहबियत का आगे नरम पड़ गइल रहल.’
‘रमेश भइया!’ मुनमुन अइसे बोलल जइसे ओकरा मुंह में कवनो तिखाह चीझ आ गइल होखे, ‘हमार औक़ात नइखे उहां से ई सब पूछे के.’
‘त अब हमरा आधा-अधकचरी सूचने से काम चला लऽ.’
‘देखल जाव!’
बाकिर अगिला दिने कोहराम मच गइल. चुपेचुपे. कुछ अइसन जइसे कि 'खामोश! अदालत जारी है'. घनश्याम राय के फ़ोन आइल रहल. उनुका मुताबिक कवनो विवेक सिंह उनुके के फोन कर के उनुका बेटा राधेश्याम के धमकवले बा कि, ‘बारात ले के बांसगांव मत अइहऽ. ना त पूरा बारात आ तहरो हाथ-गोड़ तूड़ के बांसेगांव में गाड़ देब. मुनमुन हमार हिय आ हमरे रही.’ घनश्याम राय ई डिटेल देत पूछतो रहलन कि, ‘ई विवेक सिंह हवे के?’
जानत त सभे रहुवे कि विवेक सिंह के ह बाकिर सभे अनजान बनल रहल आ कहल कि, ‘चिंता मत करीं कवनो सिरफिरा होखी आ ओकर पता लगवा के इंतज़ाम कर दीहल जाई. रउरा निफिकिर खुशी खुशी बारात ले के आईं.’ यह आश्वासन धीरज अपना ज़िम्मेदारी पर दीहलन. बाकिर घनश्याम राय कहलन, ‘बारात अइसे ना आ पाई. ’
‘तब?’
‘हम पहिले अपना होखे वाली बहू से सीधे बतियाइब आ ओकरा बादे कवनो फ़ैसला करब.’
‘सुनत त रहनी सँ कि रउरा बड़हन दबंग हईं, ब्लाक प्रमुख रहल बानी. बाकिर रउरा त कायरता वाली बात करत बानी?’ धीरज कहलन.
‘रउरा जे समुझीं बाकिर हम बिना लड़िकी से बतियवले कवनो फ़ैसला नइखीं लेबे वाला.’
‘रुकीं, हम अबहियें बात करवा देत बानी.’
‘ना फ़ोन पर ना. मिल के आमने-सामने बात करब आ आजुवे.’
‘त कब आवत बानी?’
'बस दू-तीन घंटा भितरे.’
‘आ जाईं!’ धीरजो कड़ेर हो के बोलल.
फेर धीरज राहुल के बोलवलन. राहुल के आवते धीरज बउरा गइल. लागल जइसे ऊ राहुले के मार डाली. राहुल कहबो कइलसि कि, ‘भइया हम सम्हारत बानी.’
‘कवनो ज़रूरत नइखे.’ धीरज सख़्ती से कहलन, ‘तूं अबहीं मुनमुन के सम्हारऽ आ समुझावऽ. घनश्याम राय अबहीं थोड़ही देर में आवे वाला बाड़न. ऊ मुनमुन से खुदे बात करिहें. तब फ़ैसला करिहें कि बारात आई कि ना.’ कह के धीरज अम्मा का लगे गइलन आ कहलन कि, ‘अम्मा तूंही समुझावऽ मुनमुन के कि अबहीं त शादी कर लेव. बाद में चाहे जवन करे. एह तरह भरल सभा में हमहन के पगड़ी मत उछाले. मूड़ी मत नवावे.’ फेर धीरज अपना पत्निओ के समुझवलन कि उहो मुनमुन के समुझावे. आ रमेशो के पत्नी का लगे गइल कि, ‘भाभी रउरो समुझाईं.’ एकरा बाद ऊ एस.डी.एम. के फ़ोन कर के बोलववलन आ एस.डी.एम. से अकेले में बात करि के बतवलन कि, ‘विवेक सिंह नाम के लाखैरा शादी में अड़चन बन रहल बा. ओकरा के संजीदगी से बांसगांव का बजाय कवनो दोसरा थाना के पुलिस से तुरते गिरफ़्तार करवा के, हाथ गोड़ तुड़वा के हफ़्ता भर ला बुक करवा द.’ ऊ जोड़लन, ‘हमरा इज़्ज़त के सवाल बा.’
'सर!’ कहि के एस.डी.एम. चल गइलन. आ धीरज के कहले मुताबिक़ दोसरा थाना के पुलिस से विवेक सिंह के आर्म्स एक्ट में अरेस्ट करवा के निकहा से पिटाई-कुटाई करवा दीहलन. आ मामिला का बा एकर गंधो ना लागे दीहलन. आखिर सीनियर के घर के इज़्ज़त के सवाल रहुवे.
एने मुनमुन एह सब से बेख़बर रहल. बाकिर जब एके साथे अम्मा आ भाभी लोग ओकरा के समुझावे लागल त ऊ बेबस हो के रो पड़ल. बाद में बहिनो सब ओकरा के समुझवलीं. बाकिर मुनमुन जवना तरह पूरा मामिले से अनजान होखे के बात जतवलसि आ पूरा तरह निर्दोष लागल त धीरज समुझ गइलन कि दाल में कुछ करिया बा. आ फ़ौरन ओकरा लागल कि कहीं ई सब गिरधारी चाचा के लगावल आग मत होखे. ऊ फ़ौरन घनश्याम राय से कहलसि कि या त ऊ कालर आई डी फ़ोन लगवा लेसु भा फ़ोन पर आवे वाला काल्स के एक्सचेंज का थ्रू जचँवा लेस, जेहसे कि ई शरारत करे वाला के दबोचल जा सके. घनश्याम राय बतवलन कि ऊ पहिलहीं कालर आई डी फ़ोन लगवले बाड़न. आ नंबर चेक करवा लिहले बाड़न. ई नंबर एही बांसेगांव के कवनो पी.सी.ओ. के हवे. फेरू ऊ ई नंबरो दे दीहलन. ओह नंबर वाला पी.सी.ओ. पर धीरज जांच पड़ताल करववलन. तबो कवनो ठोस जानकारी ना हीं मिल सकल कि के फोन कइले रहल. धीरज के मन भइल कि एक बेर गिरधारिओ चाचा के शेख़ी निकलवा देव. करवा दे उनुकरो कुटाई एह बुढ़उतीमें. बाकिर कहीं लेबे का बदले देेबे के मत पड़ जाव आ आपने छिछालेदर हो जाव. से ऊ ज़ब्त कर गइल.
ख़ैर, घनश्याम राय बांसगांव अइलन. गुपचुप उनुका के मुनमुन से मिलवाइओ दीहल गइल. दीहल ट्रेनिंग मुताबिक़ ऊ पल्लू कइले उनुका से मिलल, मिलते गोड़ छूअलसि आ हर सवाल के पूरा शिष्टता से सकारात्मक जवाब दिहलसि आ इहो कहलसि पूरा ताक़त आ विनम्रता से कि, ‘हम कवनो विवेक सिंह के नइखीं जानत.’ घनश्याम राय पूरा तरह संतुष्ट हो के बांसगांव से गइलन. असुविधा करे खातिर क्षमा मंगलन आ कहलन कि, ‘निश्चिंत रहीं कवनो शरारती तत्व का बहकावे में अब हम नइखीं आवे वाला. बारात निश्चित समय से आ जाई.’
धीरज झुक के उनुकर गोड़ छू के उनुकर आभार जतवलन. अतना सब हो गइल बाकिर मुनक्का राय के एह सब के कवनो आहट ना लागे दीहल गइल. जानत-बूझत. कि अइसन मत होखो कि ई सब जान-सुन के उनुकर स्वास्थ्य मत बिगड़ जाव. अम्मो के धीरज समुझा दीहलन कि, ‘बाबू जी के ई सब बतवला के जरुरत नइखे. ना त कहीं उनुकर तबियत बिगड़ गइल त अलगे मुसीबत हो जाई.’
अम्मा मान गइली. फेर धीरज सोचलन कि काहे ना शादी का दिने फ़ोर्सो के व्यवस्था करा लेव. एस.डी.एम. से कहि के सादा कपड़न में पुलिसो लगवावे के व्यवस्था हो गइल आ एस.एस.पी. से कहि के घुड़सवार पुलिसो बारात के स्वागत ला दरवाज़ा पर तैनात करवाने के व्यवस्था करा लीहलन. फेर ओह घड़ी के कोसलन जब बाबू जी बांसेगांव में रहे के तय कइलन. अपनो के कोसलसि कि काहे ई घर बांसगांव जइसन लीचड़ जगह में बनववलसि जहां के गुंडई के खबर पहिले चहुँपेला, आदमी बाद में. एह से नीमन त ई रहीत कि ऊ ई घर गांवे बनववले रहीतन. ख़ैर, अब त जवन होखे वाला रहल, हो गइल, अब आगे के सुधि लेबे के रहल. फ़िलहाल त घर में रौनक़ रहल. लागते ना रहल कि ई उहे घर ह जवना में मुनक्का राय, मुनमुन आ उनुकर अम्मा आपन संघर्ष भरल दिन गुज़ारत रहल बा. एक-एक पइसा जोड़त आ तिल-तिल मरत. कबो दवाई ला त कबो रोजमर्रा के चीझन ला.
अबहीं त घर गुलज़ार रहल आ चकाचक पुताई अउर सजावट से सराबोर. चहकत आ महकत लोगन से भरल ई घर यक़ीन दिआवत रहल कि हँ, एही घर में जज अउर अफ़सरन के बसेरा बावे. चिकना-चुपड़ा बचवो सभ एह बात के तसदीक़ करत रहले सँ. गिरधारीओ राय ले एह घर के ख़ुशी में खनकत सजावट आ चहक के रिपोर्ट मुसलसल चहुँपत रहल. कुछ पट्टीदार अउर रिश्तेदार कबूतर बनल रहलें. बाकिर गिरधारी राय पल-पल बेचैन रहलन. घर के ख़ुशियन आ ओकरा खनक से ना बलुक जवन बबूल ऊ फ़ोन पर घनश्याम राय आ उनुका बेटन के परोसवा चुकल रहलन, ओकरा से आम के फसल कइसे मिलत रहुवे, एह से! उनुका त उमेद रहल कि अबहीं ले त कोहराम मचल होखी. बाकिर एहिजा त सब गुडे-गुड न्यूज़ बरसत रहुवे. एगो रिश्तेदार महिला जे प्रौढ़ा से आगा बूढ़ात रहली. शादी के तइयारियन, इंतज़ामन, ज़ेवरात वग़ैरह के ब्यौरा परोसत रही आ गिरधारी राय का दिमाग़ में माछी भिनभिनात रहली स. जब बहुत हो गइल त ऊ बुदबुदइलन, ‘चार दिन के चांदनी फेर अंधेरी रात!’
‘शुभ-शुभ बोलऽ भइया. अइसन काहें बोलत बाड़ऽ!’ रिश्तेदार महिला बोलल.
‘अरे ना, हम त दोसरा बात पर बोलत रहीं.’ कहि के गिरधारी राय बात बदल दीहलन.
खै़र, तय समय पर बारात आइल. बाकिर द्वारपूजा के ठीक पहिले झमाझम बरखा होखे लागल. सगरी व्यवस्था थोड़िका देर ला हेन-बेना हो गइल. गिरधारी राय के ख़ुशी के ठिकाना ना रहल. केहू मुनक्का राय से कहलसि कि, ‘बरखा त रुकते नइखे? का होई?’
‘कुछ ना. हमार बेटा सब बाड़न स नू! सब सम्हार लिहें सँँ!’
‘ई बरखो?’ पूछे वाला बिदकल.
‘अरे ना, ऊ त भगवान जी सम्हरिहें. हम त इन्तजाम के बात करत रहीं.’
‘अच्छा-अच्छा!’
मुनक्का राय मुदित रहलन. मुदित रहलन; व्यवस्था पर, ताम झाम पर, बेटन के सक्रियता पर.
ख़ैर बरखा रूकल आ द्वारपूजा के तइयारी शुरू भइल. ज़मीन गील हो गइल रहल से चार गो तख़ता बिछा के ओकरे पर द्वारपूजा के तइयारी कइल गइल. द्वारपूजा पर दामाद के गोड़ पूजत मुनक्का के आंख भर अइली सँ. भर अइली सँ ई सोचि के कि अब मुनमुनवो कुछ दिन बाद चल जाई आ ऊ अकेले रहि जइहें, मुनमुन के अम्मा का साथे. छत से पड़ रहल द्वारचार के अक्षतन का बीच, जवन औरत फेंकत रहली सँ, मुनक्का के ख़ुशी के ठिकान ना रहल. तवना पर बैंड बाजा पर बाजत छपरहिया धुन उनुका के एह बुढ़ौतिओ मेंं मस्त कर दिहलसि. अतना कि द्वारपूजा का बाद तख़त पर से छटक के कूदलन आ अपना पाछे बाजत बैंड का बीचे घुस के नचनिया के नाच देखे लगलन. उनुकर एगो नात बुदबुदा के पूछबो कइलसि आंख मटकावत कि, ‘का हो मुनक्का बाबू?’
‘अरे बड़ा नीमन नाचत बा!’ ऊ बुदबुदइलन आ लजात शरमात ओहिजा से सँसर गइलन.
बरातियन के जलपान वगै़रह हो गइला का बाद बराती इंटर कालेज परिसर में बनावल जनवासा में लवट अइलें. बिआह के बाकी तइयारी आ खाए पीए के व्यवस्था चलत रहल. दरवाजा पर रमेश कुछ लोगन का साथे बइठल रहलन. लोग रमेश जज साहब का लगे आवे आ प्रणाम कहि के भा गोड़ छू के आवत जात रहल. तबहियें मुनक्का राय के एगो सहयोगी वकील दू लोगन का साथे आ गइलन. कुर्सी कम पड़ गइल रहे. तबो एगो खाली कुर्सी देख के वकील साहब ओह पर जम गइलन आ बहुते बेफ़िक्री से बोललन, ‘ऐ रमेश तनी आवऽ ओने से दू तीन गो कुर्सी उठा ली आवऽ.’ ओहिजा मौजूद लोग भौंचकिया के ओह वकील साहब के देखे लागल. बाकिर जतना बेफ़िक्री से वकील साहब रमेश से कुर्सी ले आवे के कहलन, ओही फुर्ती से रमेशो उठलन आ कुर्सी ले आवे चल दीहलन. कुर्सी ले आ के ऊ रखते रहलन तब ले एगो दोसर वकील ओह वकील साहब से बहुते संजीदगी से कहलन, ‘रउरा पता बा वकील साहब, रउरा एगो न्यायाधीश से कुर्सी मंगववनी ह.’
‘अरे, का बोलत बानी?’ शर्मिंदा होत ऊ कहलन, ‘बेटा माफ़ करीहऽ हमरा इयाद ना रहल.’
‘अरे कवनो बाति ना चाचा जी!’ रमेश पूरा विनम्रता से बोललन, ‘रउरा कहीं त दू चार गो कुर्सी अउरी ले आईं?’
‘अरे ना बेटा, बस!’ वकील साहब हाथ जोड़त कहलन.
‘अब ई हाथ जोड़ के हमरा के लजवाईं मत.’ रमेश ख़ुदे हाथ जोड़ के कहलन.
अइसने कुछ न कुछ चलत-घटत रहल. फेर भसुर ताग-पाट आ कन्या निरीक्षण पूरवलन, जयमाल भइल, लोग जम के भोजन कइल. सभे खाना के आ इंतज़ाम के डट के तारीफ़ कइल. का घराती, का बराती सबहीं. ज़्यादातर बाराती चल गइलें. घराती, आ पड़ोसिओ चल गइलें. रिमझिम बारिश का बीचे बिआह के रस्म शुरू भइली सँ. तब ले अधरतियो हो चुकल रहे. कतहीं कुछ अप्रिय ना घटल. सब लोग चैन का सांस लीहल. लावा परिछाई भइल, पांव पुजाई भइल, कन्यादान भइल. सबेर हो गइल बाकिर बारिश के रिमझिम ना थमल. रिमझिम का बीचही नाश्ता कइला का बाद कोहबर में दुल्हा-दुल्हन पासा खेललें. माथ ढंकाई भइल आ मड़वा अस्थिल के रस्म भइल. दुलहा दुलहिन के सखियन आ घर के मेहरारुवन से मिललन. बचल खुचल बारातो जब विदा हो गइल तबहिओं ले बरखा थमल ना रहे. दुलहिन के विेदाई ना भइल काहें कि घनश्याम राय किहां बिआह का साथे विदाई सहत ना रहल से तय भइल रहल गवना एक बरीस भितरे करावे के.
ख़ैर, बिआह ठीक से निपट गइल. ई सोच के सबहीं संतोष कइल. पूरा शादी में हित-नात-परिजन इहो नोट कइल कि रमेश के बड़का भाई होखला के सम्मानो मिल गइल. ना त बाकी बहिन न के बिआह में उनकर हैसियत नौकरो-चाकरन से गइल-बीतल वाली रहल. बाकिर अबकी ना. रमेशो मूड़ी नववले ना, मूड़ी उठवले घूमत रहलन. मुनक्को राय खुशी में रहलन.
आ जइसन कि अमूमन सगरी शादियन में होखेला कि बारात का विदाई का बाद जेकरे जहँवे जगह मिल जाव, ओहिजे ओंघट जाला आ जवन नातेदार रात में नींद ले लेले रहेला ऊ विदाई के तइयारी में लागल रहेला. एहिजो उहे मंज़र रहल बाकिर तनिका फरको रहल. दुपहरिया होखत-होखत रमेश, धीरज, आ तरुणो अपना सपरिवार बांसगांव से विदाई मेंं लागल रहलें. अम्मा टोकबो कइलसि कि, ‘अबहीं कइ गो रस्म बाकी बा. फूलसेरऊवा हो गइला का बाद जइतऽ लोग त नीमन रहीत. बाकिर एह सब ला केहू का लगे समय ना रहल. सभे के आपन-आपन व्यस्तता रहल. फेर भइल ई कि घर में रिश्तेदार रह गइलें, घर वाला चल गइलें. मुनक्का राय के सगरी हर्ष विषाद में बदल गइल. बीच रिमझिमे में तीनो बेटा सपरिवार चल गइलें. सभ का लगे आपन-आपन गाड़ी रहल. गाड़ी स्टार्ट होखत गइली सँ बारी-बारी. अब रह गइलन राहुल आ उनुकर परिवार. विनीता आ रीता दुनू बहिन , ओहनी के पति आ बाल-बच्चा. छिटपुट कुछ अउर रिश्तेदार. राहुल के अबहीं सगरी बचल खुचल हिसाब-किताब करे के रहल. सभकर विदाई करे के रहल. सबले छोटका भाई होखला का बावजूद उनुके बड़कन के ज़िम्मेदारी निभावे पड़ल. ख़रच-वरच के प्लानिंग त ख़ैर ऊ थाईलैंडे से कर के आइल रहलन बाकिर इहो जिम्मेदारी उनुके निभावे पड़ी, ई ना सोचले रहलन. बड़ भाइयन पर ऊ कुछ क्रोधितो भइलन. अम्मा से कहबो कइलन कि, ‘मत कुछ करीत लोग बस घर में बनल रहीत त नीमन लागीत.’
‘हँ बेटा, बारात जातहीं घर सून हो गइल. हमरो नीक नइखे लागत.’ अम्मा कहली.
दू दिन बाद राहुलो चले के तइयार हो गइलन त अम्मा टोकली कि, ‘तहरा त बेटा अगिला हफ़्ता जहाज़ पकड़े के रहल?’
‘हँ अम्मा, बा त अगलहीं हफ्ता के जहाज़ बाकिर दिल्ली में कुछ ज़रूरी काम करे के बा.’ ऊ बोला, ‘फेर सगरी काम-धाम त होईए गइल बा. कुछऊ त बाकी नइखे रहि गइल अब?’
‘हँ, ऊ त बा बाकिर दू चार दिन अउर ठहर जइतऽ त नीमन लागीत.’
‘ना अम्मा, अब जाए दऽ!’
‘त अब फेरु कब अइबऽ?’ अम्मा बोलली, ‘एकरा गवना में त अइबऽ नू?’
‘कहां अम्मा?’ राहुल बोलल, ‘अतना जल्दी फेरु छुट्टी आ अतना ख़रचा आवे-जाए के. कहां आ पाएब.’
‘हँ, ख़रचा त तोहार ढेरे हो गइल.’ अम्मा बोलली, ‘बाकिर जबे मौक़ा मिले जल्दी अइहऽ.’
‘ठीक अम्मा.’ कह के ऊ बाबूओ जी के गोड़ छूअलन. मुनक्का राय के आंखिन में लोर भर गइल. ऊ फफक के रो दीहलन आ राहुल से लिपट गइलन. रोवते-रोवते बोललन, ‘बुढ़ापा में तूं हमार लाठी बनि के हमार लाज बचा लीहलऽ. अउर का कहीं? तूं बहुते कइलऽ’
‘कुछ ना बाबू जी, ई त हमार धरम रहल.’ कहि के राहुल चले लगलन त मुनमुन ओकरा से लिपट के फफके लागल.
‘अरे अबहीं त तोहर विदाई नइखे होखत, तूं अबहियें से काहें रोवत बाड़ू.’ राहुल हंसत पूछलन. बाकिर ऊ चुपचाप लोर बहावत रहि गइल. कृतज्ञता के आंसू. फेर राहुले ओकर चेहरा हाथ में ले के बोलल, ‘अब घर के लाज तोहरा हाथन में बा. अब कुछ अइसन-वइसन सुने के ना मिले त नीमन रही.’
मुनमुन स्वीकृति में मूड़ी हिला दिहलसि. राहुल का गइला का बाद बाक़ी रिश्तेदारो दू तीन दिन में चल भइलन. रह गइलन त उहे तीन जने – मुनक्का राय, मुनमुन अउर अम्मा. फेर उहे कचहरी, उहे स्कूल, उहे बेमारी, उहे दवाई आ उहे रोज़मर्रा के संघर्ष.
मुनक्का राय एक दिन मुनमुन के अम्मा से बोललन, ‘कइसन सांय-सांय करत बा घर!’
‘हँ, ऐने कुछ दिन त कइसन गुलजार हो गइल रहल घर. सभे जुटल रहल त रौनक़ बढ़ गइल रहल.’ मुनमुन के अम्मा बोलली.
‘लागऽता जइसे ई घर, घर ना कवनो गेस्ट हाऊस हो गइल रहल. कि मुसाफ़िर अइलें, खइले-पियले, रहले आ चल गइलें.’ घर के छत निहारत ऊ कहलन, ‘जइसे कवनो पेड़ पर पतझड़ बरप हो गइल होखे.’
बाकिर मुनमुन के अम्मा चुपे रह गइली. मुनक्का राय के दुख के अपना दुख में मिला के ऊ अउर बड़ ना कइल चहली.
एने मुनमुनो शादी का बाद से विवेक के ख़बर ना लिहली, ना ही विवेके लिहलसि मुनमुन के. राहे-पेड़ा ऊ कतहीं लउकबो ना कइल मुनमुन के. विवेक ना मिलल. लउकबो कइसे करीत? ऊ त ज़मानत का बाद घर में घायल पड़ल दवाई खात रहल. ओकरा बुझाते ना रहल कि ओकर कसूर का रहल? जे पुलिस ओकरा के फ़र्ज़ी तरीका से आर्म्स एक्ट मेंं गिरफ़्तार करि के पिटाई करि के जेल भेज दिहलसि. बाइक चलावल, पान खाइल आ थोड़-बहुत सिटियाबाजी बस इहे तीन गो शौक़ रहल ओकर. कट्टा वग़ैरह के शौक़ कबो ना रहल ओकरा. ई बाति ओकरा घरो के लोग जानत-मानत रहल. बाकिर पुलिस ओकरा लगे से कट्टा मिलल देखा के गिरफ़्तार कर लिहलसि. उहो बांसगांव के ना, गगहा के पुलिस. ई सब ओकरा आ ओकरा परिवार का समझ से बाहर रहल.
ख़ैर, बिआह का बाद मुनमुन संयमित जीवन जीयल शुरू कर दिहलसि. ओकर शेख़ी भरल शोख़ी ना जाने कहां बिला गइल. ओकर चालो बदल गइल. अब ऊ पहिले के चपलता, चंचलता आ मादकता जइसे भूला गइल रहल. मांग में ख़ूब चटक सिंदूर लगवले जब ऊ धीर गंभीर चाल में चले त लोगो ताज्ज़ुब करे आ कहे कि. ‘अरे का ई उहे मुनमुन हियऽ? उहे मुनमुन बहिन ?’
हँ, अब मुनमुन बदल गइल रहुवे. ई मुनमुन ई पहिले वाली मुनमुन ना रहल. बांसगांव के सड़को इहे दर्ज करत रहे, ओकरा गांव के प्राइमरी स्कूलो आ लोगो. आंख उठा के लप-लप देखे वाली मुनमुन के आंख अब नीचे होके आपन राहे भर देखल करे. ऊ ख़ुदहूं कबो अपना बारे में सोचल करे कि का बिआह एगो लड़िकी के अतना बदल देला? चुटकी भर सेनूर के वज़न का अतना भारी होला कि एगो चंचल शोख़ो लड़िकी गंभीर औरत में बदल जाले? हैरत होखल करे ओकरा अपना आप पर. कि ओकर बाडी लैंगवेज अतना कइसे बदल गइल?
बाकिर बदल त गइले रहल.
सब कुछ बदल गइल रहल बाकिर गिरधारी राय ना बदललें. ऊ मुनमुन के बदनाम कइल चाहत रहलन. ठीक वइसहीं जइसे केहू सड़क का किनारे-किनारे चलल जात होखो आ ओकरा पाछे से आवत कवनो मोटरसाइकिल, कवनो कार, कवनो जीप, कवनो बस तेज़ रफ़्तार से आवे आ सड़क किनारे पड़ल कादो-कींचड़ के छींटा अनायास ओकरा पर मारत निकल जाव. बाकिर मुनमुन में अचानके आइल बदलाव उनकर शकुनी बुद्धि हेरा दिहले रहल, तबहियों उनुकर बूढ़ाइल आंख कीचड़ के छींटा कहां से कइसे मारल जाव, एही उधेड़-बुन में व्यस्त रहल.
गिरधारी राय के फ़ितरत रहल कि ऊ आपन इच्छा पूरा करे ला हमेशा दोसरा के, दोसरा के औजारन के इस्तेमाल कइल करसु. जइसे कि अगर केहू के मारे के होखो त ऊ इहे चाहसु कि बंदूक़ो दोसरा के होखे, कान्हो केहू अउर के, आ ट्रिगरो केहू तेसर दबावे. बस निशाना उनुकर लगावल होखो. आ आदमी मार दीहल जात रहल. बांसगांव में लंढन आ बूड़बक-बताहन के जमात बहुतायत में रहल. जे गिरधारी राय भा गिरधारी राय जइसना के हाथों इस्तेमाल होखहीं ला जनमल होखो. ठाकुर बहुल बांसगांव में गिरधारी राय ख़ुराफ़ाती जीनियस अइसहीं ना कहात रहलन. खैनी बनावत, खात, थूकत गांधी टोपी लगाात-उतारत बइठले-बइठल, बइठे के दिशा बदलि के ज़ोर से हवा ख़ारिज करत गिरधारी राय बड़हनन के निपटा देत रहलन. हालां कि उनुकर बाबूजी रामबली राय जब जीयत रहलें त उनुका ला कहल करसु कि खाली दिनाग शैतान के घर होला! बाकिर गिरधारी राय कहत फिरसु कि, ‘इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ल हईं. आ कवनो कोदो देके नइखीं पढ़ले.’
एक बेर एगो पूर्व विधायक गिरधारी राय से अझुरा गइलन. दबंगो रहलन आ ठाकुरो. हमेशा गोली बंदूक़ लिहले चार लोगन का घेरा में घूमल करसु. देशी शराब के कईएक भट्टी रहली सँ, ईंट के भट्ठो रहल, आ कट्टो बनवावल करसु अपना शोहदन ला. ठेको-पट्टा लीहल करसुु आ सब कुछ खुलेआम. कवनो परदेदारी ना. उलटे स्थानीय प्रशासनो उनुका भौकाल में रहुवे. काहें कि ओहघरी के ठाकुर मुख्यमंत्री से उनुकर बिरादराना संबंध रहल. बड़हन संकट में पड़ गइल रहलन तब गिरधारी राय. तबहियों ओह पूर्व विधायक महोदय के अपना बेंवत भर हिदायत दीहलन आ कहलन कि, ‘हमरा से जन अझुराईं बाबू साहब! नाहीं त जब सरे बाज़ार राउर पगड़ी उछली त पछताए लागब!’
‘जवन उखाड़े के होखे उखाड़ लीहऽ गिरधारी राय!’ पूर्व विधायक आपन मूछ अईंठत कहले रहलन.
गिरधारी राय तब त चुपा गइल रहलन बाकिर ई घाव ऊ कवनो घवाहिल नागिन का तरह अपना सीना में दफ़न क के बईठल रहलन. कुछ दिन बाद एगो नया एस.डी.एम. आइल. ऊ ना त प्रमोटी रहल, ना पी.सी.एस.. बलुक आई.ए.एस. रहल. बिहार के रहे वाला एह अधिकारी के ई पहिलका पोस्टिंग रहल. कद काठी से मजगर, ईमानदारी आ बहादुरी के जज़्बा से भरपूर. बस गिरधारी राय ओकरा के कैच क लिहलन. फ़ोन पर ओह एस.डी.एम. के पूर्व विधायक बाबू साहब के ग्रास रूट लेवल के सगरी कुंडली सऊँप दिहलन. आ ओकरा के चढ़ावत कहलन, ‘अबहीं ले के सगरी एस.डी.एम. सब कुछ जानतो एह बाहुबली का सोझा सरेंडर क देसु. बाकिर सुने में आवऽता कि रउरा नौजवान हईं, बहादुर हईं अउऱ ईमानदारो. से रउरे से उमेद बा!’
‘आप चिंता मत करीं!’ कह के एस.डी.एम. फ़ोन काट दिहलें.
आ सचहूं दू तीन दिन बादे से एस.डी.एम. ओह पूर्व विधायक के देशी शराब के भट्टियन, कट्टा के फैक्टरियन, ईंट भट्टन पर पर छापेमारी शुरू कर दिहलें. हफ़्ते भर में पूर्व विधायक के ग्रास रूट लेबिल के सगरी ताना बाना छितरा गइल. एक रात ऊ पूर्व विधायक एस.डी.एम. के फ़ोन लगा के पहिले त ओकरा के चेतवलन, फेर महतारी बहिन के गाली से नवाज़ दीहलन. आ कहलन कि, ‘नौकरी करे के बा त सुधर जा ना त कटवा के फेंकवा देब.’ ओने से एस.डी.एम. कुछ कहतन ओकरा पहिलहीं फ़ोन काट दीहलन. एकरा बाद एक दिन ऊ पूर्व विधायक महोदय अपना पूरा दल-बल का साथे बांसगांव बाज़ार से गुज़रत रहलन तबहियें एस.डी.एमो. सी.ओ. पुलिस अउर एस.ओ. बांसगांव संगे बाज़ार से गुज़रत रहलन. एक साथ अतना हथियार बंद लोगन के देख एस.डी.एम. भड़कलन आ सी.ओ. से पूछलन, ‘ई कवन हऽ, केकर कारवां हऽ?’ सी.ओ. फुसफुसा के ओह पूर्व विधायक के नाम बतवलन. त एस.डी.एम. अउरी भड़क गइलन. सी.ओ. के बोला, ‘तुरते इसके अरेस्ट करवाइए!’ सी.ओ. प्रमोटिओ रहल आ उमिरदराजो. अचकचात पूछलसि, ‘सर, एह तरह बाज़ार में?’ आगे जोड़लसि, ‘ठीक ना लागी.’
‘इहे ठीक रही.’ कह के एस.डी.एम. आपन जीप पूर्व विधायक का सोझा ले जा के रोकवा दिहलें. आ ड्राइवर से पूछलन, ‘एहनी में से ऊ कवन हऽ?’ ड्राइवर धीरे से इशारा से बता दिहलसि. एस.डी.एम. जीप से उतर के सीधे ओह बाहुबली पूर्व विधायक का लगे चहुँप गइलन. पीछे-पीछे पूरा फोर्स मय सी.ओ. अउर एस.ओ. के.
‘रउरे पूर्व विधायक मिस्टर चंद हईं?’
‘हँ त, तूं के?’
‘हम एहिजा के एस.डी.एम. हईं.’
‘ओह त तोहार दिमाग अतना खराब काहें बा?’
‘ऊ त बाद में बताएब.’ एस.डी.एम. बोललन, ‘पहिले ई बताईं औह रात हमरा के गरियावत काहें रहनी?’
‘कहऽ कि गरियाइए के तोहरा के बखश दीहनी. ना त मन करत रहे कि तोहार गरदन कटवा दीं.’ कहत पूर्व विधायक फेरू एस.डी.एम. पर माई बहिन के गारी के बौछार कर दिहलन.
एस.डी.एम. फेरू सी.ओ. का तरफ़ घूर के देखलन बाकिर सी.ओ. इशारे-इशारा में संकेत दिहलसि कि एहिजा से निकल लीहल जाव. बाकिर एस.डी.एम. बुदबुदईलन, ‘तूं सब डेरापूत हऊव.’ आ ख़ुदही पूर्व विधायक पर झपट पड़लन . तड़ातड़ तीन चार थप्पड़ मरलन आ गरेबान पकड़त नीचे ज़मीन पर ढकेल दीहलन. ज़मीन पर गिरावतो एस.डी.एम. तीन चार लातो लगा दीहलन. आ कहलन, ‘बहुत बड़ गुंडा हउवऽ, बहुते बड़ ताक़त समुझेले अपना के?’
‘आइंदा से गरिआवे के हिमाकत मत करीहऽ आ आपन सगरी नाजायज़ धंधा बंद कर दऽ ना त हम बंद करवा देब. आ अइसन अइसन धारा लगाएब कि हाईओकोर्ट से जमानत ना ले पइबऽ!’
‘तोर त नौकरी खा जाएब!’ बाहुबली पूर्व विधायक ज़मीन पर पटाइले गुर्राइल, ‘तोरा मालूमे नइखे कि तूं केकरा पर हाथ उठवले बाड़ऽ.’
‘देख, हम जवना जगहा से आ जवना झा परिवार से आइलें ओहिजा दूइए तरह के लोग होला. या त आई.ए.एस. ना त नचनिया. आ हम हईं आई.ए.एस. जवन बिगाड़े के होखो बिगाड़ लीहे.’ कहत एस.डी.एम. ओकरा के अउर एक बेर लतिया दीहलन. बाहुबली के सगरी हथियार बंद साथी आ बाज़ार के लोग टुकुर-टुकुर देखत रह गइल. आ एस.डी.एम. मय फ़ोर्स के ओहिजा से चल गइल. भीड़ में गिरधारिओ राय रहलन. एस.डी.एम. के जाते ऊ मूंछे में मुसकइलन आ बहुते फुरती से गिरल पड़ल बाहुबली पूर्व विधायक के उठवलन ज़मीन से आ उनुकर गरदा झाड़त कहलन, ‘का बाबू साहब केकरा से अझुरा गइनी रउरो! सब का के गिरधारी राय समझ लिहिलें रउरो! हरदम ठकुराई ठोंकला से नुक़सानो हो जाला कबो-कबो.’
बाहुबली अचकचात गिरधारी राय क देखलसि आ अगियाइल आँखिन घूरलसि. गिरधारी राय फेर बुदबुदइलन, ‘रसरी जर गइल बाकिर अईंठन ना गइल.’ कह के गिरधारी राय सरक लीहलन. बाहुबलिओ एह अपमान से आहत रहलो पर अकड़त अपना लाव-लश्कर समेत चल गइल. चहुँपल लखनऊ. मुख्यमंत्री से भेंट कइलसि आ जवना के कहल जाला पुक्का फाड़ के रोवल, वइसहीं पुक्का फाड़ के रोवलसि. आ जब लवटल त एस.डी.एम. के बदली करवाइए के. फेर जे ऊ एस.डी.एम. कहले रहल कि हमरा किहां या त आई.ए.एस. बनेला लोग ना त नचनिया. त ऊ बाहुबली उनुका के नचवा दिहलसि आ भरपूर. हर तीन महीना, चार महीना पर ओकर ट्रांसफर करावत गइल. आ उहो दुर्गम से दुर्गम जगहन पर. तब उत्तराखंड उत्तरे प्रदेश में रहल से सगरी पहाड़ नचवा दिहलसि. गिरधारी से केहू एह बात के चरचा कइल त ऊ साफ़ कह दीहलन कि, ‘अब ऊ नचनिया बने चाहे पदनिया, हमरा का?’ ऊ कहलन,‘हमार काम त हो गइल नू?’
आ सचहूं ओह दिन का बाद ऊ बाहुबली पूर्व विधायक अपमान के मारल दुबारा बांसगांव के ज़मीन पर डेग ना धइलसि. से गिरधारी राय बाते बात में जेकरा-तेकरा से शेख़ी बघारत कहसु, ‘बड़हन-बड़हन चंद के चांद बना दिहनी त तू कवन चीझू हउवऽ?’ चंद के चांद बनवला का बाद अब ऊ मुनमुनो के मून बनावल चाहत रहलन. चाहत त रहलन बाकिर कवनो तरकीब निकलते ना रहुवे. उनुका विवेको लउके ना. से सोचलन कि काहें ना एक बेर विवेक सिंह का घरे जा के ओकर हालचाल ले लीहल जाव. बाकिर फेर सोचसु के कहीं उनुकर पोल-पट्टी मत खुल जाव आ फेर लेबे का जगहा देबे के पड़ जाव. एक त घर आ पट्टीदारी के मसला रहल, दोसरे मुनमुन के भाई जज आ अफ़सरान रहलें. से ऊ डेरा जासु आ मन मसोस के रह जासु. वइसहूं अब ऊ बूढ़ा गइल रहलन. बाप के कमाइल सगरी धन बिलवा चुकल रहलन आ बेटा नाकारा हो गइल रहलन स. आपनो परेशानी कुछ कम ना रहल उनुकर बाकिर दोसरा के परेशान करे में उनुका जवन सुख मिलल करे ओकर ऊ का करसु?
विवश रहलन. अवश रहलन. एह सुख का आगा, मुनमुन के मून बनावे का तड़प में ऊ एगो विज्ञापन के स्लोगन गुनगुनाइल करसु – 'ये दिल मांगे मोर!' बिलकुल कवनो बचवा का तरह. ओने मुनमुन के, मुनक्का के, मुनमुन के अम्मा के तकलीफ-बेमारी बढ़ल जात रहल. खरचो बढ़ गइल रहल आ बेमारिओ. ख़ास क के मुनमुन के टी.बी. ओकरा के हलकान क दिहले रहल. अब कब-कबो ओकरा खाँसी का साथे खूनो आवे लागल रहल. हालां कि टी.बी. अब कवनो असाध्य बीमारी ना रह गइल रहल. बाकिर कहीं नियमित इलाज अउर दवाई ना हो पावत रहुवे. डाक्टर कहसु कि एको दिन दवाई नागा हो जाई त सगरी इलाज अकारथ हो जाई. दवाई के पूरा कोर्स बिना नागा पूरा करे के रहल. बाकिर आर्थिक थपेड़न का चलते गाहे-बगाहे भा कबो लापरवाही का चलते नागा होइए जाव. मामला बिगड़ जाव. बाबू जी समझवलो करसु कि, ‘सब कुछ छोड़ दवाई लग के करऽ.’ फेर पत्नी से भनभनासु, ‘मुनमुन के मनमानी बढ़ गइल बा. ओकरा के रोकऽ ना त कवनो दिन ऊ आपन जान ले ली.’
‘हमरो कहल अब ऊ कहांँ मानेले?’ मुनमुन के अम्मो भनभनासु.
धीरे-धीरे दिन बीतल. दिन, हफ्ता. महीनन में बीता. मुनमुन के ससुराल से गवना के दिन आ गइल. मुनमुन तनिका मुनमुनाईल कि, ‘अबहीं ना. हमार बेमारी ठीक हो जाव पहिले.’ बाकिर मुनक्का राय ना मनलन. गवना के दिन सकार लीहलन. एक महीना बाद के दिन. बेटनो के खबर दे दीहलन. राहुल हमेशा का तरह फेरू हवाला से बीस हज़ार रुपिया भेज दिहलसि आ बता दिहलसि कि, ‘अबहीं हम ना आ पाएब.’ तरुण कहलन, ‘मुश्किल त बा, बाकिर कोशिश करब.’ धीरज कुछ साफ ना कहलन बाकिर रमेश कहलन कि, ‘आएब. बाकिर कुछेके घंटा ला. सिर्फ़ विदाई का बेरा.’
से सगरी तइयारी मुनक्का अकेले कइलन. ख़रीददारी से ले कर मिठाई-सिठाई तक के. बाकिर पहिला काम ऊ ई कइलन कि राहुल के भेजल रुपिया से मुनमुन के टी.बी. के दवाई डेढ़ साल ला इकट्ठे ख़रीद दीहलन. आ ओकरा के हिदायत दे दीहलन कि बिना नागा दवा खा लिहऽ. आधा अधूरा तइयारियन का बीच गवना हो गइल. ऐन विदाई के आधा घंटा पहिले रमेश बांसगांव सुबह-सुबह पहुंचलन आ मुनमुन के विदाई करवा के, अम्मा, बाबू जी के बिलखत छोड़ चल गइलन. अम्मा कहबो कइली कि, ‘बाबू तूं पहिले त अइसन निष्ठुर ना रहलऽ?’ जवाब में ऊ चुपे रहलन. बाद में चउठो के दउड़ा-दउड़ी ले के मुनक्का राय अकेलही गइलन. बाकिर उनुका मुनमुन ससुराल में ख़ुश ना लागल. ऊ चिंतित भइलन. भारी मन से बांसगांव लवटि अइलन. गवना का पंद्रह दिन भितरे मुनमुन के फ़ोन आइल कि, ‘बाबू जी, अगर हमरा के जिन्दा देखल चाहत बानी त तुरते आ के हमरा के लिवा जाईं.’ अतने कह के मुनमुन फ़ोन काट दिहलसि.
मुनक्का राय केहू से रायो मशविरा ना कइलन आ सरपट भगलन मुनमुन के ससुराल. लवटलें त मुनमुन के लिवाईए के. मुनमुन के अम्मा मुनमुन के अचानक देखते हकबका गइली. कहली, ‘ई का भइल?’ मुनमुन अम्मा से लिपट गइल आ दहाड़ मार-मार के रोवे लागल. रोवते-रोवत अपना दुख के गाथा बतावे लागल. रोवल-धोवल सुनि के आस-पड़ोस के औरतो जुट गइली सॅ. साँझ ले सगरी बांसगांव के मुनमुन के ससुराल से बैरंग वापस अइला के ख़बर मालूम हो गइल. मुनमुन का घरे ओह रात चूल्हा ना जलल. मुनक्का राय पर त एह बुढ़ौती में जइसा ठनका गिर पड़ल रहुवे. ठकुआ मार दिहले रहुवे उनुका के. भर रात नींदो ना आइल. सबेरे एगो पड़ोसिने चाय नाश्ता ले के अइली. कुछ शुभचिंतक, हित-चिंतक, आ मज़ा लेबे वाला लोग आ चहुँपल. केहू से ना त मुनक्का कुछ बोलले, ना मुनमुन, ना मुनमुन के अम्मे. मुनमुन आ मुनमुन के अम्मा हर सवाल पर जवाब में बस रोवते रहली. आ जब बहुते हो गइल त मुनक्का राय एगो शुभचिंतक के बार-बार पूछला पर कि, ‘आखि़र भइल का?’ का जवाब में बस अतना बुदबुदइलन, ‘अब का बताईं कि का हो गइल?’ आ मूड़ी गोत लीहलन.
कई लोग पीठ पीछे कहल, ‘जवने होखो, अतना जल्दी बेटी के वापिस ना ले आवे के चाहत रहल मुनक्का के.’ केहू कहल, ‘रायो मशविरा त ना कइलन केहू से’ ते केहू अंदाज़ा लगावल, ‘लागत बा कि बेटवनो के अबहीं नइखन बतवले.’ तरह-तरह के बात, तरह-तरह के लोग. ‘वकील हउवन भइया. ख़ुद समझदार बाड़न. दोसरा के सलाह देलें बाकिर ख़ुद ना लेलें.’ एगो एक्सपर्ट कमेंट मुनक्को राय के कान ले चहुँपल. पलट के ऊ सिर्फ़ घूर के देखलन एह टिप्पणीकार के, त ऊ गँवे सरक लिहलसि कि कहीं वकील साहब के सगरी खीस ओकरे पर मत बरस जाव! ख़ैर, लोगन के आवाजाही कम भइल आ बात धीरे-धीरे खुलल. खुलल आ खुलत चल गइल. तिल के ताड़ बन के बांसगांव में मेहराइल गोईंठा का तरह सुलगत धुंआ का तरह पसरत गइल. बात विवेको ले चहुँपल. बाकिर ऊ चाहियो के आइल ना. मारे डर के कि कहीं फेरू पिट-पिटा गइल तब?
ह़फ्ता भर बाद घनश्याम राय दू लोग का साथे अइलन आ मुनक्का राय से बोललन, ‘वकील साहब, रउरा ओह बेरा खिसी आग रहनी से ओह दिन रउरा से कुछ ना कहनीं आ रउरा बेटी के विदा क दिहनी. अब खीस शांत करीं आ निहोरा बा कि हमरा बहू के विदा कर दीं!’ बाकिर मुनक्का राय शांत रहलन कुछ बोललन ना. बोलली मुनमुन के अम्मा आ दरवाज़ा का अलोता से ख़ूब बोलली, ‘राउर लड़िका जब लुक्कड़-पियक्कड़ रहल त रउरा झूठ काहे बोलनी कि पी.सी.एस. के तइयारी करत बा? राउर लड़का जब पगलाइल बताह का तरह घूमत फिेरेला एहिजा-ओहिजा त रउरा कहनी कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़त बा? आ अतना बड़का का घर में हमरा बेटी के उपवास कर के रहे पड़ल. रउरा घर में भरपेट खाना ला तरस के रहि गइल हमार बेटी. राउर बेटा त अबहीं ले हमरा बेटी के मुँहो नइखे देखले. ई सब का ह? राउर पत्नी आ बेटी हमरा बेटी के सतवली सँ आ ताना मारत रहली सँ? नया नवेली बहू से कइसन-कइसन काम करवनी सभे? आ चाहत बानी कि अपना बेटी के फेरू ओही नरक में भेज दीं. मरे खातिर? लांछन आ अपमान भुगते ला?’
‘देखीं समधिन जी, रउरा बेकारे खिसियात बानी. बाति अतना बड़ नइखे जतना रउरा समुझत बानी.’
‘हम सब समुझत बानी.’ मुनमुन के अम्मा दरवाज़ा का अलोते से बोललौ, ‘हमार बेटी अइसे ना जाई, बस कह दिहनी.’
‘चलीं, जब राउर अइसने राय बा त समधिन जी हम का कर सकत बानी?’ घनश्याम राय मुनक्का राय से मुख़ातिब होखत कहलन, ‘वकील साहब रउरे कुछ विचार करीं आ समधिन जी के समुझाईं.’
बाकिर मुनक्का राय चुपे रहलन. बोलली उनुकर पत्निए, ‘समुझाईं रउरा पहिले घर के लोगन के आ अपना बेटा के सुधारीं पहिले. तब आईं.’
‘हमरा घर में त वकील साहब मेहरारु मरदन से एह तरह से ना बतियाली सँ.’ घनश्याम राय बोललन, ‘का रउरा घरे मेहरारुए बोलेली सँ, मरद ना?’
‘ख़ैर, मनाईं कि मरद हमरा घर के अबहीं ले राउर करतूत नइखन जनले सँ.’ मुनमुन के अम्मा दरवाज़ा का अलोते से बोलली, ‘जवना दिने हमार बेटा जान गइले सँ रउरा करतूतन के, त कच्चे चबा जइहें सँ. रउरा अबहीं जानत नइखीं कि कवना परिवार से राउर पाला पड़ल बा?’
‘जानत बानी समधिन जी, जानत बानी. रउरा घर में सब लाट गवर्नरे भरल बाड़ें. अतना बड़ लाट गवर्नर कि एगो बहिन के सम्हार ना पइले सँ. बहिन आवारा हो गइल. बूढ़ महतारी-बाप के देख ना पावऽ सँ कि ऊ मरत बाड़ें कि जीयत बाड़ें.’ घनश्याम राय बोललन, ‘हमहूं जानत बानी रउरा परिवार के लाट गवर्नरी!’
‘अब रउरा कृपा कर के चलीं आ विदा होखीं!’ मुनक्का राय बिलकुल शांत स्वर में हाथ जोड़त घनश्याम राय से कहलन, ‘रउरा कुछ अधिके बोलत बानीं.’
‘अब रउरा अपना दरवाज़ा पर हमार अपमान करत बानीं वकील साहब!’ घनश्याम राय अउर भड़कलन.
‘जी ना. हम पूरा सम्मान सहित रउरा से निहोरा करत बानीं कि कृपया आप विदा होखीं आ तुरते प्रस्थान करीं.’ मुनक्का राय फेरू हाथ जोड़लहीं शांत स्वर में घनश्याम राय से कहलन.
‘चलीं. जात त बानी बाकिर रउरा दरवाजा पर भइल एह अपमान के कबहियों ना भुलाएब.’
‘मत भूलाएब आ फेर अइबो मत करब.’ पूरी सख़्ती से बाकिर पूरा शांति से मुनक्का राय कहलन.
‘त ई आखिरी बा हमरा ओर से?’ घनश्याम राय तड़कलें.
‘जी हँ, ईश्वर करसु कि ई आखिरिए होखे.’ मुनक्का राय के धीरज अब जबाब देत रहल.
‘आखि़र परेशानी का हो गइल वकील साहब?’ घनश्याम राय हथियार डालत बोललन, ‘आखि़र हम लड़िका वाला हईं!’
‘लड़िका वाला हईं त हमरा मूड़ी पर मूतब का?’ मुनक्का राय बोललन, ‘हम अपना के असुविधा का बारे में बतियवनी आ रउरा हमरा बेटी के आवारा घोषित कर दिहनी. हमरा रतन जइसन बेटन पर जिनका पर हमरे ना पूरा बांसगांव आ सगरी गांव जवार के गुमान बा. ओहनी पर छिछला टिप्पणी कर दिहनीं. एह कारण कि रउरा बेटहा हईं आ हम बेटिहा? आ पूछत बानी कि परेशानी का बा? हम बात टाले खातिर चुप बानी त रउरा कहत बानी कि हमरा घर में मरद ना मेहरारुए बोलेली सँ? राउर बेटा पी.सी.एस. का होखेला त छोड़ीं ऊ ए.बी.सी.डी. ले ना जाने आ रउरा झूठहूँ ओकरा पी.सी.एस. के तइयारी के ड्रामा रचि के हमरा फूल जइसन बेटी के जिनिगी तहस नहस कर दिहनी. आ मरद बनत बानीं? ई कहां के मर्दानगी ह?’ मुनक्का राय अतना कहतो आपन संजीदगी मेनटेन रखलन आ हाथ जोड़त फेरू कहलन, ‘कृपया विदा होखीं सभे.’ उनुका एह विदा होखे के संबोधन में ध्वनि पूरा के पूरा इहे रहल कि जूता खा लिहनी सभे आ अब त जाईं. घनश्याम राय आ उनुका साथे आइल दुनू परिजनो के चेहरा के भाव जात घरी अइसने लागत रहल मानो सौ जूता खइले होखे लोग. घनश्याम राय का समधियान में अइसना स्वागत के उम्मीद ना रहल. ऊ हकबक रहलन.
उनुका साथे आइल हितो-नात अपना के कोसत रहलें कि ऊ घनश्याम राय का साथे एहिजा एह तरह अपमानित होखे काहें आ गइलें? एक जने घनश्याम राय के रास्ता में कोसत कहतो रहलन कि, ‘बांसगांव के लोग वइसहीं दबंग आ सरकश होखेला. तेह पर इनकर बेटा जज आ अफ़सर. करेला आ नीम चढ़ल! के कहले रहल कि बेटा के शादी बांसगांव में करीं?’ दोसरो एगो परिजन पहिलका के सुर में सुर मिलावत बोलल, ‘बांसगांव थाना कचहरी, मार-झगड़ा के जगहा ह. रिश्तेदारी करे के जगहा ना!’
‘अब रउरा सभे चुपो होखब कि ना? कि अइसहीं बांसगांव के सांप से डसवावत रहब?’ घनश्याम राय आजिज़ आ के बोललन, ‘वइसहीं ससुर हमार दिमाग भन्नाइल बा.’
घनश्याम राय सचहूँ होश में ना रहलन. दू दिन बाद ऊ रमेश के फ़ोन लगवलन आ रोवे लगलन, ‘जज साहब हमार इज़्ज़त बचाईं! हमार इज़्ज़त अब रउरे हाथ में बा!’
‘अरे भइल का घनश्याम जी? कुछ बतइबो करब कि औरतन का तरह रोवते रहब?’
‘रउरा कुछ मालूम नइखे?’ घनश्याम राय बुझक्कड़ी कइलन.
‘अरे बतइबो करब कि बुझउवले बुझावत रहब?’ रमेश खीझिया के बोललन.
‘अरे राउर बाबू जी नाराज हो के हमरा बहू के पंद्रहे दिन बाद लिवा ले गइलन आ अब बातो करे ला तइयार नइखन. हम बांसोगांव गइनी, बेटहा होखला का बावजूद. छटाको भरके हमार इज़्ज़त ना कइलन.’ घड़ियाली आंसू बहावत घनश्याम राय कहलन, ‘आ देखीं ना रउरा जनतब में कुछऊ नइखे.’
‘पता त नइखे बाकिर हमार बाबू जी एह स्वभाव के त हईं ना, जइसन रउरा बतावत बानी.’ रमेश बोललन, ‘तबहियों अगर अइसन कुछ भइल बा त रउरो किहां से कुछ ना कूछ भूल-चूक जरुरे भइल होखी. तबो हम पता करत बानी पहिले कि आखिर बात का बा? तबे कुछ कह पाएब.’
‘हँ, जज साहब अब रउरे हमार आस, हमार माई-बाप बानीं.’
‘अइसन मत कहीं आ धीरज राखीं.’ कह के रमेश फ़ोन काट दिहलन.
कुछ देर ले त ऊ भकुआइल बइठल रहलें. दुनिया भर के पेंचदार मामिला निपटावे आ फ़ैसला सुनावे वाला रमेश अपने घर का मामिला में घबरा गइलन. पत्नी के बोला के बइठवलन आ घनश्याम राय के फ़ोन वाली बात बतवलन. रमेश के पत्निओ चिंतित भइली आ कहली, ‘पहिले रउरा बांसगांव फ़ोन क के सगरी बात जान लीं फेर कुछ करीं.’
‘ऊ त करबे करब बाकिर एह तरह रिश्ता में खटास आवे से डर लागत बा कि कहीं रिश्ता टूट मत जाव.’
‘मुनमुन बहिनी शादी के पहिलहीं से कुछ संदेह में रहली ई रिश्ता ले के. बाकिर उनुकर बात पर केहू धेयाने ना दीहल. सभ लोग मजाक में टारत चल गइल.’
‘त तूं हमरा के काहे ना बतवलू?’ रमेश पूछलन.
‘का बतवतीं जब सब कुछ तय हो गइल रहल. ऐन तिलक में का बतवतीं?’
‘हँ, चूक त भइल बा.’ रमेश बोललन, ‘चलऽ देखल जाव.’ फेर ऊ बांसगांव फ़ोन मिलवलन. फ़ोन पर अम्मा मिलली. रोवे लगली, कहली, ‘अब जब सब कुछ बिगड़ गइल तब तोहरा सुधि आइल बा?’
‘अम्मा आखिर भइल का बा?’
‘सब कुछ का फ़ोने पर जान लीहल चाहत बाड़ऽ?’ अम्मा पूछली, ‘का मुक़दमो के फ़ैसला फ़ोने पर लिखवा देलऽ?’
‘ना अम्मा, तबहियों?’
‘कुछ ना बाबू. अगर बहिन के इचिको फिकिर बा त दू दिन ला आ जा. मिल बइठ के मामिला सलटावऽ.’
‘ठीक बा अम्मा!’ कह के रमेश फ़ोन कटलन आ धीरज के मिलवलन आ मामिला बतावत कहलन कि, ‘अम्मा चाहत बाड़ी कि बासंगांव पहुंच के मिल बईठ के मामिला निपटावल जाव.’
‘त भइया हमरा लगे त अबहीँ समय बा ना. घनश्याम राय राउर पुरान मुवक्किल हवे. समुझा-बुझा के मामला निपटवा दीं.’ धीरज बोलल, ‘आ हमरा बुझात बा कि मुनमुन के उहे नासमझी होखी, शादी के पहिले वाली. बातचीत क के ख़त्म करवा दीं विवाद.’
‘चलऽ देखत बानी.’ कह के रमेश अब तरुण के फ़ोन मिलवलन आ सगरी मसला बतवलन. कहलन कि, ‘तुहूं साथे रहीतऽ त बातचीत में आसानी रहीत. काहें कि सगरी बात हमहीं करीं त मामिला के गंभीरता टूटी. तू-तू-मैं-मैं से हमहूं बचल चाहत बानी. धीरज आ ना पइहन आ राहुल अतना दूर बा, केहू अउर के घर का मामिला में डालल ठीक ना होखी.’
‘ठीक बा भइया. कवनो लगातार दू दिन के छुट्टी देखि के दिन तय कर लीं आ बता दीं हमरा के, पहुंच जाएब.’
रमेश दिन तय करि के तरुण के बता दीहलन आ घनश्यामो राय के. आ साफ़-साफ़ कह दीहलन कि, ‘बातचीत में रउरा आ राउर बेटा इहे दुनू रहब, तेसर केहू ना.’
‘त पंचायत के प्रोग्राम बनवले बानी का जज साहब, कि इजलास लगवाएब?’ घनश्याम राय बिदक के बोललन.
‘देखीं घनश्याम जी, अगर मामिला निपटावल चाहत बानी त एह तरह मत बतियाईं. ना त फेर हमार आइल मुश्किल होखी. आईं कि आइल कैंसिल करीं?’
‘अरे ना-ना जज साहब. रउरा त तनिका मज़ाक पर नाराज़ हो गइनी!’ घनश्याम राय जी-हुज़ूरी पर आ गइलन.
‘रउरो जानत बानी कि हमार राउर रिश्ता मजाक वाला ना हवे.’ रमेश पूरा सख़्ती से बोललन, ‘आइंदा एह बात के ख़याल राखब. आ हँ, अबहीं हमरा ई मालूम नइखे कि भइल का बा. हमरा तनिको नइखे मालूम. बासंगांव आइए के बात जानब, समुझब आ तब कुछ कहब. एगो बात फेरु जान लीं कि बातचीत में रउरा आ राउर बेटे रहिहें. तेसर केहू ना. हँ अगर रउरा चाहीँ त राधेश्याम के माता जी के ले आ सकिलें. बस. आ इहो बता दीं कि हमरो तरफ से हमार बहिन , हमार एगो भाई, अम्मा आ बाबूजी रहिहें. दोसर केहू ना.’
‘जी जज साहब!’
‘आ हँ, बातचीत करे खुला मन से आएब. पेशबंदी वग़ैरह हमरा पसंद ना होखी पारिवारिक मामिला में.’
‘जी, जज साहब!’
घनश्याम राय कह त दीहलन बाकिर घबराइओ गइलन. ई सोच के कि अपना बेटा के नालायकियत के कइसे तोपिहें? तवना पर जज साहब कह दीहलन कि कवनो पेशबंदी ना. जज के निगाह ह, ताड़ त लीहि पेशबंदी! तबहियों ऊ पेशबंदी में लाग गइलन. एकरा बिना दोसर कवनो उपाय रहे का? पहिला पेशबंदी ऊ ई कइलन कि अकेलहीँ बांसगांव जाए के सोचलन. आ तय कइलन कि बहुते जरुरी भइल त बेटा से फ़ोन पर बात करवा दिहें. ज़रूरत होखी त पत्निओ से फ़ोने पर बातचीत करवा दीहन. बाकिर जइहन अकेलही. जवने इज़्ज़त-बेइज़्ज़त लिखल होखी, अकेलही झेलीहन. फ़ोन पर संभावित सवालन के जवाबो पत्नी आ बेटा के रट्टा लगवा दिहलें आ समुझा दिहलें कि बातचीत में पूरा विनम्रता बनवले राखे के पड़ी. बस एक बेर जज के बहिन आ जाव घर में फेर ओकरा जजी के सगरी परखचा उड़ा दिहें. बस आ त जाव एक बेर.
तय कार्यक्रम का मुताबिक़ रमेश बांसगांव एक दिन पहिलहीं पहुंच गइलन. तरुणो आ गइल सपत्नीक. ई ऊ बढ़िया कइलसि. मुनमुन के समुझावे में आसानी रही. इहे ऊ सोचले रहल. बाकिर जब मुनमुन के ससुराल आ ओकरा मरद के तफ़सील अम्मा रोवत बिलखत बतवली त ओकरा गोड़ का नीचे के जमीन खिसक गइल. ऊ हिल गइल. सोचलसि कि दुनिया भर के न्याय के पाठ पढ़ावे वाला ऊ कइसे अपना बहिने का साथे अन्याय कर बइठल. तनिका असकत, तनिके अहंकार आ तनिकहीं व्यस्तता ओकरा के घनश्याम राय के परिवार के थाह ना लेबे दिहलसि. बहिन के होखे वाला घर के जांच पड़ताल ना करे दिहलसि. बूढ़ बाबूजी का भरोसे सब छोड़ दिहलसि आ एह चार सौ बीस घनश्याम राय के झांसा में सभे आ गइल. सगरे भाई बेंवतगर होखला का बावजूद अपने बहिन के अबला बना बइठलें ? सोच के ऊ अपना के धिक्करलसि. बाकिर अब का हो सकेला एह पर सोचल शुरु कइलसि. आख़िर कवनो ना कवनो राह त खोजहीें के रहल. दोसर कवनो चारा ना रहल. रात भर ऊ ठीक से सूत ना पावल. सबेरे उठ के सोचलसि कि काहें ना घनश्याम राय के अबहीं आवे से मना कर देव आ कह देव कि मौजूदा हालात में बातचीत मुमकिन नइखे. फिर कुछ सोच के टार गइल. बाबू जी से एह बारे में बतियवलसि त ऊ फफक पड़लन. बोललें, ‘बेटा हमार बुद्धि कुछ काम नइखे करत. बूढ़ा गइल बानी. ग़लती हो गइल कि मुनमुन के ओह नरक में बिआह दिहनी. ओह घरी बिआह तय कर लेबे के दबाव में आंख पर जल्दी के पट्टी बन्हा गइल रहल. कुछ जांचो-पड़ताल ना कर पवलन. लड़िका अतना नाकारा निकलल. हम घनश्याम राय के चिकना-चुपड़ा बातन में आ गइनी. तोहरा लोगन से तबहियें कह दिहले रहतीं कि हमरा वश के नइखे शादी-बियाह खोजल त शायद आजु ई दिन देखे के ना पड़ल रहीत. हमहूं बेटन का साथे अहंकार के तकरार में ज़िद में आ गइनी. भूला गइनी कि परिवार में आ उहो बेटन का साथे अहंकार के गठरी बन्हला से का फायदा फ़ायदा? छोट थोड़हीं हो जइतीं ? बाकिर मति मरा गइल, आजु त छोट होइये गइनी नू. फूल जइसन बेटी के जिनिगी नरक बना के.’ ऊ बिलखत कहलन, ‘अरे नरको में हमरा जगह ना मिली!’
‘अइसन मत कहीं बाबू जी!’ कह के रमेशो के आंख गील हो गइल, ‘हमनी का सबहीं एह पाप के भागीदार बानी जा.’ ऊ बोलल, ‘रउरा अनुभवी बानीं. कवनो रास्ता त निकलबे करीं.’
‘हमरा त कुछऊ नइखे सूझत. ना सोच पावत बानी ना सुनाईए देत बा. तूं बड़का बेटा हउवऽ तूहीं कुछ सोचऽ.’
‘चलीं आजु घनश्याम राय के बोलावले गइल बा. बातचीत करत बानी. शायद कवनो राह निकल जाव!’
‘अरे ओह नालायक, चार सौ बीस के बोलवला के का ज़रूरत रहल?’ मुनक्का राय बोललन, ‘ओह पापी के त हम दुबारा हमरा घरे अवले से मना कर दिहले रहीं. ऊ भला का आई चोर कहीं का!’
‘आई, आई !’ रमेश बोलल, ‘ऊ हमरा के फ़ोन कइले रहल आ गिड़गिड़ात रहल. त हमहूं बातचीत करे ला ओकरा के आ राधेश्याम के बोला लिहनी. बाप बेटा दुनू के.’
‘चलऽ अब तूं बोला लिहले बाड़ऽ त अलग बाति बा. ना त पिछला बेर आइल रहुवे त हम ओकरा के दुबारा आवे से मना कर दिहले रहीं.’ रमेश फेर अम्मा आ मुनमुनो के समुझवलसि कि, ‘रास्ता त कुछ ना कुछ निकालहीं के पड़ी.’ फेर बतवलसि कि, ‘घनश्याम राय आ राधेश्याम राय के बातचीत करे ला बोलवले बानी. तनिके देर में दुनू आवते होखिहें सँ.’
मुनमुन आ अम्मा दुनू चुपे रहली. कुछ बोलली ना. घनश्याम राय तय समय पर आ गइलन आ अपना योजना का मुताबिक़ अकेलहीं अइलन. बेटा के ना ले अइलन. रमेश पूछबो कइलसि कि, ‘राधेश्याम कहां रह गइलन?’
‘असल में ओकर तबीयत ख़राब हो गइल बा.’ घनश्याम राय बहानेबाज़ी कइलन.
‘फेर त बाते ना हो पाई घनश्याम जी!’ रमेश बोलल, ‘मूल समस्या त राधेश्याम से बा, उहे नइखे त बात का होखी?’
‘रउरा जवन पूछे के होखे ऊ फ़ोने से पूछ लेब ओकरा से.’ घनश्याम राय चिरौरी कइलन.
‘फ़ोने से बात हो जाए वाला रहीत त हम बांसगांव काहें अइतीं?’ रमेश तल्ख़ हो के कहलसि.
‘अब का करीँ. अचके में ओकर तबियत खराब हो गइल.’ घनश्याम रिरियइलन, ‘रउरा बस बहू के विदा कर दीं. अब कवनो समस्या ना आई. हम वचन देत बानी.’
‘रउरा वचन के कवनो मोलो बा? कवनो मतलबो बा?’ रमेश पूछलसि, ‘रउरा त बतवले रहलीं कि ऊ पी.सी.एस. के तइयारी करत बा? कइसे यक़ीन करीं रउरा वचन पर?’
‘देखीं जज साहब, जवन बात बीत गइल ओकरा का बेर बेर दोहरवला से कवनो फायदा त अब बावे ना. आगे के सुधि लीहल जाव.’ घनश्याम राय फेर मनुहार कइलन. बातचीत शुरू भइल. तय भइल कि घनश्याम राय मुनमुन पर भइल ज़्यादतियन पर सफ़ाई देसु आ मुनमुन से जवनो शिकायत होखो उबहो बतावसु. पहिले त घनश्याम राय कहलन कि, ‘एह सगरी विवादन के सिरे से भूला के नया से बात शुरु कइल जाव आ हमरा बहू के हमरा साथे विदा कर दीं. आगे कवनो तकलीफ़ ना होखी, ना ही कवनो शिकायत.’
‘ना. अइसन त ना हो सकी घनश्याम जी!’ रमेश ने कहा, ‘रउरा बिंदुवार जवाब देबहीं के होखी.’
‘देखीं ई कवनो अदालत नइखे बइठल जज साहब कि गवाही, जिरह आ बहस होखो. पारिवारिक मसला हऽ आ एकरा के पारिवारिके तरीका से सलटावे के चाहीं.’
‘हम कब कहनी हँ कि अदालत हऽ?’ रमेश कहलन, ‘अगर राउर बेटा लुक्कड़ आ पियक्कड़ ह, रउरा घर में हमरा बहिन के भरपेट भोजन ना मिल सके, राउर पत्नी आ बेटी हमरा बहिन से उचित व्यवहार कइला का जगहा ओकरा के तंग करिहें, ताना मरिहें त अइसना में एह समस्यन के कवनो हल निकलला बिना रउरा साथे अपना बहिन के हम विदा नइखीं कर सकत.’
‘देखीं जज साहब रउरा सभे बेर बेर भोजन-भोजन के पहाड़ा पढ़त बानीं त इहो बताईं कि रउरा सगा पट्टीदारी में कवनो गमी हो जाव त रउरा किहां दुनू बेर भोजन बनी का? ना नू?’ घनश्याम राय बोललन, ‘त दुर्भाग्य से ओह घरी गवना का दू दिन बादे हमरा चाचा के मौत हो गइल रहुवे. ओही चलते ई दिक्क़त आइल.’
‘चलीँ मान लिहनी बाकिर फलाहार वगैरह के त कुछ व्यवस्था कइल चाहत रहुवे?’
‘ऊ त भइले रहल.’
‘आ राधेश्याम के लुक्कड़ई-पियक्कड़ई?’
‘ई एगो ऐब ओकरा में आ गइल बा. ओकरा के हमनी का सुधारत बानी जा.’ घनश्याम राय बोललन, ‘कहीं ओकरा के रोज़ी रोज़गार दिलवा देतीं रउरा सभे त थोड़िका आसानी हो जाइत.’
‘आ रउरा घर के औरतन के बेवहार?’
‘हम ओकनिओ के समुझाएब.’ घनश्याम राय बोललन, ‘आ रउरो सभे तनिका हमरा बहूओ के समुझा दीं.’
‘जइसे?’ रमेश पूछलन.
‘कि अब ओहिजा से शिक्षा मित्र के नौकरी ना हो पाई.’ घनश्याम राय बोललन, ‘ऊ चाहेले कि रोज हमरा गाँव से रउरा गाँवे पढ़ावे आइल करे. माने कि रोजे रोज ससुरारी नइहर करत रहे. ई शोभा दीही भला?’
‘अउर?’
‘हमरा परिवार के औरतन के धउँसावल बन्द करे कि हमार भईया लोग त ई, हमार भईया लोग त ऊ. हम ई करवा देब, हम ऊ करवा देब.?!’
‘आ?’
‘इहो बता दीं सभे कि हमरा बहू के कवन बेमारी बा जे ई संदूक़ भर के दवाई राखेले?’
‘अउर?’
‘अउर बस विदा कर दीं!’ घनश्याम राय हाथ जोड़ के कहलन, ‘बहुते बदनामी हो रहल बा, पट्टीदारी, नातेदारी में. मूड़ी उठा के चलल मुश्किल हो गइल बा. जेकरे जवन मन करे सवाल पूछ लेत बा बहू का बारे में त जवाब देत नइखे बनत.’
‘अच्छा, तनिका राधेश्याम से फ़ोन पर बात करवाई.’ रमेश घनश्याम राय से कहलन, ‘आ हँ, मोबाइल के स्पीकर आन कर लीं जेहसे के बातचीत सभे बढ़िया से सुन पावे.’
‘जी जज साहब!’ घनश्याम राय बोललन. हालां कि मोबाइल के स्पीकर आन करे का बात पर ऊ तनिका सकपकइलन. बाकिर मोबाइल से राधेश्याम के फ़ोन मिलवलन, स्पीकर आन क दिहलन. ओने से फ़ोन घनश्याम राय के पत्नी उठवली. घनश्याम राय कहलन कि, ‘राधेश्याम से तनी बात करवावऽ. जज साहब बतियइहें.. ’
‘बाकिर ओकर तबियत खराब बा नू?’
‘हँ, बावे. बाकिर बात करावऽ!’
‘रउऱा त जानते बानी कि ……. ’ घनश्याम राय के पत्नी तनिका लटपटइली.
‘हम कहत बानी कि बात करावऽ!’ डपटत घनश्याम राय बोललें.
‘जी करावत बानी.’ कह के ऊ फ़ोन राधेश्याम के दे दिहली. ऊ बोलल, ‘हलो, के?’
‘हँ, बेटा तोहार बाबूजी बोलत बानी. लऽ. जज साहब तोहरा से बतियावल चाहत बानी?’ कहिके मोबाइल ऊ जज साहब के थमा दिहलन.
‘कवन जज?’ ओने से राधेश्याम पूछत रहुवे.
‘अरे भइया राधेश्याम जी. हम बांसगांव से रमेश बोलत बानी.’
‘अच्छा-अच्छा हमार साला जज!’ ओने से बहकल-बहकल आवाज़ में राधेश्याम बोलल, ‘आई लव यू जज साहब! आई लव यू!’
‘का?’ रमेश बिदकल.
‘आई लव यू. आई लव मुनमुन. आई लव बांसगांव. आल आफ़ बांसगाव. लव-लव-लव!’
‘का बकत बाड़ऽ?’ रमेश फेरु बिदकल.
‘चोप्प साले!’ राधेश्याम लड़खड़ाईल आवाज़ में माई बहिन के गारी उच्चारे लागल. आ बोलल, ‘लव यू आल मादर….’
‘लीं घनश्याम जी अब रउरे बात करीं!’ कह के रमेश मोबाइल घनश्याम राय के देत हाथ जोड़ लिहलन.
राधेश्याम ओने से लगातार लड़खड़ात आवाज़ में गरियावे आ लव यू के प्रलाप जारी रखले रहल. घनश्याम राय हड़बड़ा के फ़ोन काट दिहलन आ कपार धर के बइठ गइलन.
‘कुछ अउऱ बाक़ी रह गइल होखो त बता दीं घनश्याम जी!’ रमेश तल्ख़ अंदाज में नफ़रत देखावत पूछलन.
‘कुछ ना जज साहब.’ घनश्याम राय अपना कपार पर हाथ फेरत बोललन, ‘जब अपने सिक्का खोटा बा त का कहीं?’
‘त फेर?’
‘अब आज्ञा दीं !’ घनश्याम राय हाथ जोड़त बोललन, ‘अब जब ओकरा के पूरा से सुधार लेब तबहिये बात करब.’ कहि के घनश्याम राय घर से बाहर निकल गइलन. बाकिर घर के एकहू बेकत उनुका के विदा करे बाहर ना आइल. ना ही चलत घरी केहू उनुका के नमस्कार कइल. अपमानित घनश्याम राय मुनक्का राय का घर से बाहर निकलि के अपना जीप में बइठले आ ड्राइवर के चले के कहि के अपना घरे फ़ोन मिलवलन. ओने से उनुकर श्रीमती जी रहली. पहिले त ऊ उनुकर माई-बहिन कइलन आ तब कहलन कि, ‘अतना समुझा के आइल रहीं. बात पटरी पर आवत-आवत गुड़ गोबर हो गइल.’
‘अब हम का बोलीं ?’
‘ई कब शराब पी लिहलसि दिन दहाड़े?
‘पता ना.’ पत्नी बोलली, ‘हम देखुईं ना.’
‘त जब शराब पी के अनाप-शनाप बकत रहल तब फोन ना काट सकत रहू ?’
‘ऊ एकदम नशा में रहुवे, हम मना करतीं आ हमरे पर हाथ उठा दीत त का करतीं.?’
‘मना करे के का रहुवे. चुपचाप फोन काट दिहले रहतू.’
‘ऊ त रउओ काट सकत रहीं.’
‘बेवकूफ़ औरत, फ़ोन हमरा हाथ में ना जज साहब का हाथ में रहुवे.’ ऊ बोललन, ‘आ फेर स्पीकर आन रहुवे. सभे ओकर ऊटपटांग बात सुनत रहुवे. अतना बेइज्जती भइल कि का बताई ?’
पत्नी कुछ बोलला का बजाय चुपे रह गइली.
‘अब कहाँ बा ?’ घनश्याम राय भड़कत पूछलन.
‘के?’
‘नालायक़ अभागा राधेश्याम अउर के?’
‘मोटरसाइकिल ले के कहीं निकलल बा.’
‘कहां?’
‘पता ना.’
‘अतना पियले रहल. अइसना में ओकरा के मोटरसाइकिल ले के जाए कइसे दिहलू ?’ घनश्याम राय तड़कलन.
‘हमरा मान के ना रहल ओकरा के रोकल.’ पत्नी बिलबिलइली.
‘चलऽ आवत बानी त देखत बानी.’ कहि के घनश्याम राय फ़ोन काट दिहलन.
ओने रमेश आ घनश्याम राय के बातचीत का बीच मोबाइल के स्पीकर पर राधेश्याम के बातचीत दरवाज़ा का अलोता से मुनमुन आ उनकर अम्मो सुनली. मुनमुन के रो-रो के बुरा हाल रहुवे. घनश्याम राय के गइला का बाद रमेश मुनमुन का लगे गइलन. ओकरा के चुप करावत दुखी मन से बोललन, ‘माफ़ करऽ मुनमुन हमन के रहतो तोहरा साथे भारी अन्याय हो गइल. शायद करम में इहे लिखल रहुवे.’ रमेश बोललन, ‘बाकिर घबरा मत. कुछ सोचत बानी आ देखत बानी कि का कइल जा सकेला.’ मुनमुन अउरियो रोवे लागल आ मुनमुन के अम्मो. अतना कि रोवाई सुनि के अड़ोस-पड़ोस के औरत जुट गइली सँ. एने मुनक्को राय सुबकत रहलन. निःशब्द. औरतन के आवत देखि ऊ आपन आँख पोछलन आ चादर ओढ़ के, मुंह तोप के पटा गइलन.
तरुण आ तरुण के बीवी कुछ समुझिये ना पावत रहुवे कि का कहे, का करे ? तरुण के बीवी मुनमुन के पति आ ससुर ला बढ़िया नाश्ता बनवले रहली. भोजनो के तइयारी क के रखले रहली. बाकिर सब धइले रहि गइल. तरुण के बीवी अब पछतात रहली कि अइली काहे. आ आंखिने-आंखिन में तरुण के इशारा करत रहली कि अब बांसगांव से निकलल जाव. बहुत हो गइल. बाकिर तरुण ओकरा के खुसफुसा के बता दिहलसि, ‘आजु ना. माहौल नइखू देखत ?’
‘बाकिर माहौल त काल्हुवो इहे रहे वाला बा?’ तरुण के बीवीओ खुसफुसइली.
‘तबो आजु ना.’ तरुण पूरी सख़्ती से कहलसि.
बाकिर रमेश जाए के तइयारी कर लिहलन. अम्मा कहली कि, ‘बाबू खाना खा लीतऽ तब जइतऽ !’
‘अब अम्मा खाना नीक ना लागी.’
‘तबो हम बिना खइले जाए ना देब.’ अम्मा बोलली, ‘ख़ाली पेट जाइल ठीक ना रहे.’
‘चलऽ ठीक बा.’ कहि के रमेश थोड़िका देर ला रुक गइलन. फेर धीरज के फ़ोन क के सगरी डिटेल बतवलन आ कहलन कि, ‘हमार त अकिले काम नइखे करत. तूं ही कुछ सोचऽ.’ इहे बाति ऊ राहुलो के फ़ोन क के कहलन. तरुणो के बोला के पूछलन, ‘तूं का सोचल बाड़ऽ ? का कइल जाव आखि़र?’
‘का बताईं भइया कुछ समुझिये नइखीं पावत.’ तरुण हताश हो के बोलल.
‘तबहियों कुछ त सोचऽ.’ रमेश बोललन, ‘अकिल त हमरो काम नइखे करत.’ कहि के रमेश सोफे़ पर बइठले-बइठल पसर गइल. थोड़िका देर में खाना बन गइल त तरुण आ के पूछलसि कि, ‘भइया खाना बन गइल बा, ले आईं ?’
‘हँ ले आवऽ बाकिर थोड़िके ले अइहऽ’ रमेश बोललन, ‘नामे भर के.’
खाना खा के रमेश चले लगलन त फेरु मुनमुन के समुझवलन, ‘घबरा मत, कुछ ना कुछ उपाय सोचत बानी.’ मुनमुन फेरु रो पड़ल. अम्मो. बाबू जी आ अम्मा के गोड़ छूवत रमेशो के आंख लोरिया गइल, बाकिर बिना कुछ कहले ऊ घर से बाहर आ गइलन. पीछे-पीछे तरुणो. रमेश के गोड़ छू के लवटि गइलन. कार बांसगांव पार करते रहल कि रमेश के ड्राइवर गाना बजा दिहलसि, ‘मेरे घर आई एक नन्हीं परी!’ सुन के रमेश के अच्छा लागल. कुछ देर ला ऊ एह गाना से जुड़ल मीठी यादन में गोता लगावे लगलन. याद पड़ल कि मुनमुन जब छोट रहल, तब ऊ ओकरा के गोदी में ले के खियावल करसु आ गावल करसु, ‘मेरे घर आई एक नन्हीं परी, चांदनी के हसीन रथ पे सवार…... ’ आ खाली उहे काहें, घर के लगभग सगरे लोग मुनमुन के खेलावल करे आ ईहे गाना गावल करे. बाकिर चांदनी के रथ पर सवार एह नन्हीं परी के अइसन खराब दिन आई तब ई केहू ना जात रहल. अब अचानके ई गाना उनुका खराब लागे लागल. तनी तल्खी से ड्राइवर के कहलन, ‘गाना बंद करऽ.’
ड्राइवर सकपका के गाना बंद कर दिहलसि. ओकरा बुझइबे ना कइल कि ग़लती का हो गइल ? दोसरका देिने तरुण आ उनुकर पत्नीओ चल गइल गइल लोग. हालांकि चलत बेरा अम्मा तरुण के पत्नी से कहली कि, ‘हो सके त कुछ दिन ला मुनमुनो के अपना संगे लेले जइतू. कुछ ओकरो मन बदल जाइत. एहिजा बांसगांव में त तानेबाज़ी से ओकर करेजा फाट जाई. ’
‘कहां अम्मा जी, रउरा त जानते बानी कि हमार मकान छोटहन बा. दोसरे बचवन के पढ़ाई. तीसरे, इनकर ट्रांसफरो के टाइम हो चलल बा. पता ना कब कहां जाए के पड़ जाव.’ तरुण के पत्नी बोलली, ‘ना होखे त बड़का भइया भा छोटका भइया किहां भेज दीं.
‘ठीक बा, देखत बानी.’ अम्मा बात ख़तम कर दिहली.
जब तरुण अपना पत्नी का साथ चल गइलन त मुनमुन अम्मा से कहलसि, ‘अम्मा एगो बात कहीं ?’
‘कहऽ?’
‘आगे से कबो कवनो भइया भा भाभी से हमरा के साथे ले जाए ला मत कहीहऽ. काहे कि मुनमुन ला सभकर घर छोट बा. ओकरा ला केहू किहां ठाँव नइखे. आ तू त जानते बाड़ू कि हमरा टी.बी. बा. फेर केहू काहें अपना घरे ले जाई ?’ मुनमुन बोलल, ‘जवन भाई लोग पट्टीदारी आ अहंकार में, अपना पद आ पइसा का मद में चूर हो के एगो बहिन ला रिश्ता खोजल गवारा ना कइल, उनुकर होखे वाला बहनोई कइसन बा, शादी से पहिले जाने के कोशिश ना कइल ओह भाईयन से तूं आस लगावत बाड़ू कि ऊ लोग हमरा के ले जाई अपना साथे आ अपना घर में राखी ?’
‘ते बेटी आखि़र केकरा से आस करीं ?’ अम्मा बोलली.
‘केकरो से ना. सिर्फ़ अपना से उम्मीद राखीं.’ मुनमुन तनिका कसक के बोलल, ‘सोचऽ अम्मा, जे हम भाईयन के बहिन ना बेटी रहतीं त का तबहियों ई लोग अइसने करीत हमरा बिआह में ? अइसने लापरवाही कइले रहीत?’
अम्मा कुछ बोल ना पवली.
‘ना नूं?’ मुनमुन बोलल, ‘फेर अइसन जल्लाद आ कसाई भाइयन का सोझा कबो कवनो मदद भा भीख के कटोरा मत पसरिहऽ’
‘त अब हम का करीं फेर ?’
‘चलऽ हम त बहिन हईं. तूं आ बाबूजीओ का भइया लोगन के ज़िम्मेदारी ना हऊ ? अतना बड़का जज हउवें, अफ़सर हउवें, बैंक मैनेजर हउवें. एन.आर.आई. हउवें. थाईलैंड में बाड़ें. चार-चार गो खात-कमात ऐश करता बेटा बाड़ें. का माई बाप ला एक एक हजार भा दू दू हजार रुपिया हर महीना रुटीन ख़रच ला ना भेज सके ? भा अपना साथे ना राख सके ? त हम त वइसहूं अभागी हईं. हमार का?’
अम्मा रोवे लगली. चुपचाप. बाकिर मुनमुन ना रोवल. ऊ अम्मा से बस इहे कहलसि, ‘अम्मा अब मत रोवऽ. हमहूं ना रोवब. आपन हालात हमनी का अब खुद बदलन हा. खुद के भरोसे, दोसरा के भरोसे ना.’
अम्मा तबहियों रोवते रहली. उनुकर देह पहिलहीं हैंगर पर टंगाइल कपड़ा लेखा कृशकाय हो चलल रहुवे आ अब ऊ मनो से थाक गइल रहली. बेटी के दुख उनुका बुढ़ापा पर ठनका जइसन टूट पड़ल रहुवे. मुनमुन फेरु गांव के स्कूल में अपना शिक्षामित्र के नौकरी पर जाए लगली. मुनक्का राय कचहरी जाए लगलन. दुनू के दिन त कट जात रहल बाकिर अम्मा का करसु ? उनुकर दिन कटल मुश्किल हो गइल रहल. ऊपर से आस-पड़ोस के औरत दुपहरिया में आवऽ सँ. बाते बात में पहिले त छोह देखावऽ सॅ मुनमुन के हालात पर. आ फेर ताना मारत पूछ सँ कि, ‘जवना जहान बेटी के अइसे कब ले घरे बइठवले रहब बहिन जी ?’
अब बहिन जी जवाब देती त का से चुपे रह जात रहली. एक दिन एगो पड़ोसन दोसरा पड़ोसन से बतियात रहुवे. मुनमुन के अम्मा के सुनावत बोललसि, ‘बेटा त कुछ भेजऽ सँ ना, वकील साहब के प्रैक्टिस चलत नइखे, हँ बेटी के रोज़गार ज़रूर चलत बा जवना से घर के खरचा पानी निकलत बा.’ ‘रोज़गार’ शब्द पर ओह पड़ोसन के जोर तनिका अधिके रहल. अइसे जइसे सचहूं मुनमुन नौकरी कर के ना, देह के धंधा कर के घर चलावत होखे. एह पर दोसरकी पड़ोसन बोलल, ‘बहिन जी, हमरा हियां त बेटी के कमाई खाइल हराम होखेला, पाप पड़ेला. हम त बेटी के कमाई के पानियो ना छूईं !’
मुनमुन के अम्मा के करेजा छलनी हो गइल. अब मुनमुन के अम्मा के करेजा भलहीं छलनी होखत रहल बाकिर मुनमुन के करेजा गँवे-गँवे टाँठ होखल जात रहुवे. ऊ जान गइल रहल कि अब ओकरा जमाना से लड़े के बा. आ एह लड़ाई ला पहिले अपना आप के बरियार करे के, बेंवतगर करे के होखी. लड़ाई से पहिले अपना के लड़ाई ला तइयार करे के होखी. तबहियें एह पुरुष प्रधान समाज से, एकर बनावल पाखंड से ऊ लड़ पाई. जवन चुटकी भर सेनूर से ओकर चाल, ओकर बॉडी लैंगवेज बदल गइल रहल, सबसे पहिले ऊ एही सेनूर के तज दिहलसि. चूड़ी छोड़ कंगन पहिरे लागल. एह पर सबले पहिले अम्मे टोकली, ‘बेटी सुहाग के निशानी अइसे ना छोड़ल जाव. लोग का कही ?’ आ ओकर हाथ अपना हाथ में लेत बोलली, ‘ई डंडा जइसन हाथ नीक नइखे लागत. चलऽ पहिले चूड़ी पहिरऽ, सेनूर लगावऽ.’
‘ना अम्मा ना!’ कहत मुनमुन पूरा सख़्ती से बोललसि, ‘जब हमार सुहागे हमार ना रहल त ई सुहाग-फुहाग के निशानी आ सेनूर चूड़ी हमरा कवना काम के ? हम अब नइखी पहिरे जात ई बेव़कूफ़ी के चीझु.’
‘ना बेटी! राम-राम!’ मुनमुन के अम्मा मुंह बा के, मुंह पर हाथ राखत बोलली, ‘अइसन अशुभ बात मत बोलऽ अपना मुंह से.’
‘अच्छा अम्मा ई बताव ऊ गांव वाला घर त गिर गइल बा बाकिर ऊ जगहा त बा नू ? हमनी का काहें ना ओहिजे चल के रहल जाव?’ मुनमुन बेधड़क बोलल, ‘आखि़र हमहन के पुरखन के घर रहल ओहिजा !’
‘अब ओहिजा कइसे रहल जाई?’ मुनमुन के अम्मा बोलली, ‘ना छांह, ना सुरक्षा. ना देवाल, ना छत.’
‘बिलकुल अम्मा!’ मुनमुन बोलल, ‘इहे बात, बिलकुल इहे बात हमहूं कहत बानी कि एह चूड़ी, एह सेनूर के ना त कवनो छत बा ना देवाल. ना छांह बा ना सुरक्षा. त हम कइसे आ काहें लगाई एकरा के ? कइसे पहिरीं एकरा के ? जब हमार सुहागे हमरा लायक़ भा हमरा ला ना रहल त ई सुहाग के निशानी हमार कइसे रहल ? हमरा ला कवना काम के रहल ?’
‘एह बातन में अइसनका तर्क भा मनमानी ना चले.’
‘मत चलत होखे बाकिर हम जानत बानी कि हमरा ला एह सब के ना त कवनो मतलब बा ना मकसद.’
‘बाकिर लोगबाग का कही ?’
‘हम लोग के ठेका ले के नइखीं बईठल. लोग आपन जाने हम आपन जानत बानी.’
‘बाद में पछतईबू बेटी.’
‘बाद में?’ मुनमुन बोललसि, ‘अरे अम्मा हम त अबहियें से पछतात बानी कि काहें ना हम बिआह का पहिलहीं बिगुल बजवनी. जे भईया लोग के शादी से पहिलही तन के बोल देले रहतीं कि पहिले हमरा दुल्हा के जांच पड़ताल ठीक से कर लीं. तब बिआहीं हमरा के ! बाकिर हम त लोकलाज के मारल राहुल भईया से मनुहार करत रह गइनीं. आ ऊ हमरा बिआह में आपन पइसा रुपिया खरच कइले में अपना पर अतना मुग्ध रहलन कि उनुका हमार कहलका सुनइबे ना कइल. हमार मर्म उनुका समुझे में ना आइल. रुपिया खरच कर के ऊ त अइसे खुश रहल जइसे बहिन के बिआह ना कवनो भिखारी का कटोरे में भीख डालत होखे. नीमन बाउर के परवाह कइला बिना. बस इहे सोचत रहल कि एह पुण्य के लाभ ओकरा अगिला जनम में भेंटाई. आ एह जनम में ओकर वाहवाही होखी कि देखऽ त अकेले दम पर बहिन के बिआह ला कतना खरच करत बा. आ नाता-रिश्तेदारी में, पट्टीदारी में ओकर वाहवाही भइबो कइल. बाकिर राहुल भईया ई ना देखलन कि भिखारी का कटोरा में जवन पइसा ऊ पुण्य ला डालत बाड़न ऊ पइसा मोरी में बहल जात बा, भिखारी का कटोरा में त टिकते नइखे. आन्हर रहल राहुल आ ओकर भिखारी बहिनियो, जे देख ना पवलसि कि कटोरे में छेद बा आ कटोरा मोरी का ऊपर बा!’
‘तोहार भाषण हमरा समुझ का बाहर बा आ हमार बात तोहरा बुझाते नइखे. हे राम हम करीं त का ?’ अम्मा दुनू हाथे आपन कपार पकड़त बोलली.
मुनमुन अब बांसगांव में मशहूर होखे लागल रहुवे. बात-बात में सभका के चुनौती देबे खातिर. ऊ लोग से तर्क पर तर्क करे. लोग कहे ई त बांसगांव के विद्योत्तमा हिय. विद्योत्तमा के विद्वता आ हेकड़ी जवना डाढ़ पर बइठल रहल ओही डाढ़ के काटे वाला मूर्ख कालिदास शास्त्रार्थ में हरा के शादी कर के उतार दिहले रहल. ओही तरह बांसगांव के ई विद्योत्तमा अपना लुक्कड़ आ पियक्कड़ पति का प्रतिरोध में बिआह का बाद अइसे ठाढ़ रहल जइसे कि राधेश्याम आ घनश्यामे ना समूचा पुरुष समाजे ओकर जिनिगी बरबाद कर गइल होखे, सगरी पुरुष समाजे ओकर दुश्मन होखे. मुनमुन अब लगभग पुरुष विरोधी हो चलल रहल. मरदन का तरह बस ऊ माई बहिन के गारी ना दीहल करे बाकिर अउर सबकुछ करे लागल रहुवे.
ओकर संघतियो अब बदल गइल रहल. विवेक का जगह प्रकाश मिश्रा अब ओकर नयका साथी रहल. विवेक अपना मुक़दमा में पइसा-वइसा ख़रच-वरच कर के फ़ाइनल रिपोर्ट लगवा के पासपोर्ट वीजा बनवा के अपना बड़का भाई का लगे थाईलैंड चल गइल रहल. भा कहीं त ओकर बड़का भइये योजनाबना के ओकरा के थाईलैंड बोला लिहले रहलन. एक त मुनमुन का साथे ओकर संबंध, दोसरे, आर्म्स एक्ट में ओकर गिऱफ्तारी, तीसरे बांसगांव के आबोहवा. ओकर भाई सोचलन कि कहींं ओकर जिनिगी मत बरबाद हो जाव से ओकरा के बांसगांव से हटावले श्रेयस्कर लागल रहुवे आ ऊ विवेक के थाईलैंड बोलवा लिहलन.
प्रकाश मिश्रा बांसगांव का लगहीं के एगो गांव के रहुवे. उहो शिक्षा मित्र रहल. शिक्षा मित्र का एगो ट्रेनिंगे में मुनमुन से ओकर परिचय भइल रहुवे. इहे परिचय भेंटघांट के सीढ़ी चढ़त पोढ़ हो गइल रहुवे. हालां कि प्रकाश मिश्रा शादीशुदा रहुवे आ दू गो लइकन के बापो. तबहियों ऊ मुनमुन के हमउमरिये रहल. विवेके का तरह प्रकाश-मुनमुन कथो बांसगांव में लोग जान गइल रहल आ फ़ोन के मार्फ़त मुनमुन के भाइयनो के प्रकाश-मुनमुन के ई कथा के जानकारी मिल गइल रहल, सभ जने कसमसा के रहि गइलन. बाकिर मुनक्का राय आ उनुकर पत्नी एह प्रकाश-मुनमुन कथा के संज्ञान ना लिहलें. लोगन के लाख ज्ञान करवला का बावजूद. बाकिर घनश्याम राय जरुर प्रकाश-मुनमुन कथा के संज्ञान लिहलन आ गंभीरता से लिहलन. ऊ बारी-बारी मुनक्का राय आ मुनमुन राय के फ़ोन क के बाक़ायदा एह पर विरोध जतवलन आ कहलन कि, ‘मुनमुन हमरा घर के इज्ज़त हियऽ, एकरा पर हम कवनो तरह से आंच ना आवे देब !’
मुनक्का राय त चुप रहलन. प्रतिवाद में कुछऊ ना कहलन. त घनश्याम राय उनुका के दुतकारत कहबो कइलन कि, ‘मौनं स्वीकृति लक्षणम्.’ तबहियों मुनक्का राय चुपे रहलन. बाकिर घनश्याम राय जब मुनमुनो से इहे बात दोहरवलन कि, ‘तूं हमरा घर के ईज्जत हऊ आ हम अपना घर के इज्जत पर आंच ना आवे देंब.’ त मुनमुन राय चुप ना रहलसि. ऊ बेलाग जबाब दिहलसि, ‘त आईं एही आंच में झँउसाईं. काहें कि आंच त आ गइल बा.’
घनश्याम राय के मुनमुन से अइसनका जवाब के उम्मीद हरगिज़ ना रहल. ऊ हकबका गइलन आ रमेश के फ़ोन कइलन. सगरी बात बतवलन आ मुनमुन के जवाबो. रमेशो के ई सब सुन के ठकुआ मार दिहलसि. बाकिर बोललन, ‘घनश्याम जी अब हम का कहीं. माथ त नवा गइल ई सब सुन के. बाकिर अब कइले का जा सकेला ? कुछ हो सकेला त बस इहे कि रउरा अपना बेटा के सुधारीं आ हमरा बहिन के अपना घरे ले जाईं. इहे एगो रास्ता बा. दोसर हमरा कुछ लउकत नइखे.’
‘इलाज त हम करवावते बानी बेटा के. डाक्टर के कहना बा कि बहू आ जाव त एकर सुधार जल्दी हो जाई.’
‘देखीं. एह पर हम अबहीं कुछ नइखीं कह सकत.’
‘पर विचार त करिये सकीलेंं !’
‘बिलकुल. ज़रूर.’ रमेश कहलन.
फेर घनश्याम राय के फ़ोन काट के रमेश धीरज के फ़ोन मिलवलन. सगरी हाल बतवलन त धीरज कहलसि कि हँ, ओकरो के बांसगांव से फलनवा के फोन आइल रहल. फेर जब रमेश धीरज कर घनश्याम राय आ मुनमुन के बातचीत, ख़ास क के मुनमुन के जवाब बतवलन कि, ‘त आईं एह आँच में झँउसीं. काहें कि आंच त अब आ गइल बा.’ त धीरज बउखला गइल. बोलल, ‘त भइया अब हमार त बांसगांव से संबंध अब ख़तमे समुझीं आ इहो समुझीं कि मुनमुन अब हमरा ला मर गइल बिया. रउरा जवन कुछ करे के होखो करीं. हम कुछ नइखीं जानत. आखिर एही समाज में रहे के बा. सार्वजनिक जीवन जीए के बा, केकरा-केकरा के का-का सफाई देत फिरब ?’ ऊ बोलल, ‘घनश्याम राउर पुरान मुवक्किल ह, रउरे जानीं. आ भईया हमरा के एह मामिला में कतई माफ कर दीं !’ कह के ऊ फ़ोन काट दिहलसि.
एने मुनमुन आ ओकर आँच बढ़ले जात रहल. ओकरा एह बात के इचिको परवाह ना रहल कि के एह आँच में झँउसा रहल बा आ के एह आँच के तापत बा, भा के एह आंच में आपन रोटी सेंक रहल बा. ऊ त कवनो बढ़ियाइल नदी का तरह बहत रहुवे, जीयत रहुवे, जेकरा आवे के होखो ओकरा बहाव में आवे, किनारा ध लेव, भा डूब जाव. मुनमुन पर एकरा से कवनो फरक पड़े वाला ना रहुवे. एही बीच एगो घटना घट गइल. मुनमुन के आंगन में गेहूं धो के सूखे ला पसारल गइल रहुवे. दुपहरिया में पड़ोसी के बाछा आइल आ बहुते गेंहू चट कर गइल. हमेशा का तरह मुनमुन के अम्मा तब अकेलहीं रहली. जब ऊ देखली त बाछा के हांक के अंगना से बहिरवली आ पड़ोसन से जा के ओरहन दिहली त पड़ोसन ओरहन सुने का जगहा मुनमुन के अम्मा से अझूरा गइली आ ताना मारे लगली. बात बेटन के अनदेखी कइला से लगाइत मुनमुन के चरित्र ले आ गइल. मुनमुन के अम्मा एह पर कड़ेर प्रतिरोध कइली. भला-बुरा कहत कहली कि, ‘आइंदा अइसन कहलू त राख लगा के जीभ खेंच लेब. फेर बोलहूं लायक ना रहबू.’ ई सुनते पड़ोसन लहकि गइल आ अम्मा ओरि झपटल, ‘देखीं कइसे ज़बान खींचत बाड़ू ?’ कहि के ऊ मुनमुन के अम्मा के झोंटा पकड़ के खींच लिहलसि आ जमीन पर गिरा के मारे लागल. कहे लागल, ‘बड़का भारी कलक्टर आ जज के महतारी बनल घूमेले. बेटी कवन गुल खिलावत बिया से नइखे लउकत. आँख पर पट्टी बन्हले बइठल बाड़ी जइसे कुछ मालूमे नइखे. आइल बाड़ी हमार बाछा बन्हवावे. आपन बेटी त बँधात नइखे, हमार बाछा बन्हवइहें !’
एह मार पीट में मुनमुन के अम्मा के मुंह फूट गइल. हाथ गोड़ो में चोट आ गइल. सगरी देह छीला गइल. देह में त वइसहीं दम ना रहल, बुढ़ापा अलग से ! तवना पर ताना आ ई मारपीट. अपमान आ अछरंग से लदाइल मुनमुन के अम्मा बिछवना धर लिहली. साँझि बेरा मुनमुन घरे लवटल त कोहराम मच गइल. मुनमुन से माई के घाव आ तकलीफ़ देखल ना गइल. तमतमात ऊ पड़ोसन का घरे चहुँपल आ पड़ोसन के देखतहीं ना आव देखलसि ना ताव, ना कवनो सवाल ना कवनो जवाब. चप्पल निकाल के तड़ातड़ मारल शुरू कर दिहलसि. झोंटा खींचत पड़ोसन के ज़मीन पर पटकलसि आ घसीटत ले अपना घरे ले खींच ले आइल. कहलसि कि, ‘हमरा माई के गोड़ छू के माफ़ी मांग डायन ना त अबहियें मार डालब तोरा के.’ घबराइल पड़ोसन झट से मुनमुन के अम्मा के गोड़ छू के माफ़ी मंगलसि आ कहलसि कि, ‘माफ़ क दीं बहिना !’ फेर मुनमुन ओकरा के एक लात मरलसि आ कहलसि कि, ‘भाग जो डायन आ फेर कबो हमरा घर ओरि आँखो उठा के देखलू त आँखे नोच लेब.’
मुनक्का राय एही बीचे घर अइलन आ सगरी किस्सा सुनलन त घबरा गइलन. कहलन, ‘अबहियें जब ओकरा घर के लड़िका मरद अइहें स त उहो मार पीट करीहें सँ. का ज़रूरत रहुवे ई मार पीट कइला के ?’
‘कुछ ना बाबू जी. रउरा घबराईं मत. अबहियें हम ओकरो इंतजाम करत बानी.’ कहि के ऊ एस.डी.एम. बांसगांव के फ़ोन लगवलसि आ रमेश भइया अउर धीरज भइया के रेफरेंस दे के पड़ोस से झगड़ा के डिटेल देत कहलसि कि. ‘जइसे रमेश भइया, धीरज भइया हमार भइया, वइसहीं रउरो हमार भइया, आ हम राउर छोट बहिन भइनीं. हमार इज़्ज़त बचावल आ हमार सुरक्षा कइल राउर धरम भइल. फेर हमरा घर में सिरिफ हम आ हमार बूढ़ माई बापे भर बाड़ें. काइंडली हमहन के सुरक्षा दीं आ बचाईं. हमनी के सम्मान दाँव पर बा.’ ऊ जोड़लसि, ‘आखि़र राउरो माई बाबूजी रउरा होम टाउन भा गाँवे में नू होखीहें. ओह लोगन पर अइसने कुछ गुजरे त का रउरा ओह लोग के मदद ना करब ?’
एस.डी.एम. मुनमुन के बात से कनविंस होखत कहलसि कि, ‘घबराओ नहीं मैं अभी थाने से कहता हूं. फ़ोर्स पहुंच जाएगी.’
आ सचहूं थोड़िके देर में बांसगांव के थानेदार मय फ़ोर्स के आ गइल. मुनमुन से पूरा बात सुनलसि आ पड़ोसी का घरे जा के उनकर माई बहिन करत पूरा परिवार के टाइट कर दिहलसि आ कहलसि कि फेरू कवनो शिकायत मिलल त पूरा घर के उठा के बंद कर देब !’
पड़ोसी के परिवार सकता में आ गइल. पड़ोसन जवाब में कुछ कहे के चहलसि बाकिर थानेदार ‘चौप्प!’ कहि के भद्दा गाली बकलसि आ कुछऊ सुने ला तइयार ना भइल. कहलसि, ‘कलक्टर आ जज के परिवार हऽ. तोहनी के हिम्मत कइसे भइल ओने आंख उठावे के ?’
‘पर सर….!’ पड़ोसन के लड़िका कुछ बोलल चहलसि त थानेदार ओकरो के ‘चौप्प!’ कहि के गरियवलसि आ डपट दिहलसि.
मुनमुन थानेदार से कहलसि कि, ‘कहीं रात में सब ख़ुराफ़ात करीहें स तब ?’
‘कुछ ना करीहें सॅ. रउरा निश्चिन्त रहीं.’ थानेदार बोलल, ‘रात में दू गो सिपाहियन के एहिजा एहतियातन गश्त लगा देत बानी. थोड़-थोड़ देर में आवत-जात रहीहें सँ. घबराए के कवनो जरुरत नइखे.’
फेर मुनमुन सोचलसि कि अम्मा के ले जा के कवनो डाक्टर से देखा दीं. बाकिर सोचलसि कि जे नाहिंयो देखले-जनले होखी उहो अम्मा के घाव देखी, बात पसरी आ बदनामी होखी. से ऊ लगले हाथ थानेदार से कहलसि कि, ‘भइया एगो फ़ेवर रउरा अउर कर देतीं त नीक होखीत.’
‘हँ-हँ बोलीं.’
‘तनिका अपना जीप से कवनो डाक्टर बोलवा के अम्मा के देखा देतीं. वइसे ले जाए, ले आवे में दिक्कत होखी.’ मुनमुन के ई बात सुन के थानेदार तनिका बिदकल त बाकिर चूंकि एस.डी.एम. साहब के सीधा आदेश रहल, जज आ कलक्टर के परिवार रहल से विवशते में सही ऊ ‘बिलकुल-बिलकुल’ कहत जीप में बइठल आ बोलल, ‘अबहियें ले आवत बानी.’
फेर थोड़ देर में ऊ सचहूं एगो डाक्टर के ले के आइल. डाक्टर मुनमुन के अम्मा के जाँच कइलसि. घाव पर मरहम पट्टी कइलसि. ए.टी.एस. के सुई लगवलसि. दरद के दवाई दिहलसि आ बिना कवनो फीस लिहले हाथ जोड़ के थानेदार का साथही जाएन लागल. मुनक्का राय से बोललसि, ‘आ इहो आपने परिवार ह. का पइसा लेबे के बा ? भइया लोगन से कहि के कबो हमार कवनो काम करवा देब. बस !’
आ सचहूं फेर ऊ पड़ोसी परिवार मुनक्का राय के परिवार का ओरि आंख उठा के ना देखलसि. ओहनी के बछवो बन्हाये लागल. मुनुमन के एकरा से बड़हन ताकत मिलल. ऊ समुझ गइल कि प्रशासन में ताक़त बहुते बा. से काहे ना उहो कवनो ना कवनो प्रशासनिक नौकरी ला तइयारी करे. भइया लोग तइयारी कर सकेला, चुना सकेला त उहो काहे ना हो सके ? ऊ एक रात खाना खइला का बाद बाबूजी के मुड़ी पर तेल लगावत ई बात कहबो कइलसि आ जोड़िये दिहलसि कि, ‘आखि़र राउरे खून हईं.’
‘से त ठीक बा बेटी बाकिर भाइयन के पढ़ाई आ तोहरा पढ़ाई में तनिका फरक बा.’
‘का फरक बा ?’ ऊ उखड़ के बोलल.
‘एक त ऊ लोग साइंस स्टूडेंट रहल, दोसरे ओह लोग के इंगलिशो ठीक रहल. तोहरा लगे ना त साइंस बा ना इंगलिश. हाई स्कूले से तोहार पढ़ाई बिना मैथ, इंगलिश आ साइंस से भइल बा. दोसरे तोहार पढ़ाई के अभ्यासो छूट गइल बा. आ फेर प्रशासनिक नौकरी कवनो हलवा पूरी त ना होला. बहुते मेहनत मगजमारी करे के पड़ेला.’
‘ऊ त हम करबे करब बाबूजी.’ मुनमुन बोलल, ‘इंगलिश, साइंस कवनो बपौती ना होखे प्रशासनिक सेवा के. हिंदीओ मीडियम से ओकर तइयारी हो सकेला. हम पता लगा लिहले बानी. रहल बात अंगरेजी के त ओकरो पढ़ाई फेर से करब. बस रउरा अबकी जब अनाज बेचब त तनिका पइसा ओहमें से हमरो ला निकाल लेब.’
‘ऊ काहें ला ?’
‘उहे कोचिंग आ किताबन खातिर.’ मुनमुन बोलल, ‘जब रमेश भइया ओतना लमहर गैप का बाद कंपटीशन कंपलीट क लिहलन त हमहूं कर सकीलें.’
‘अगर अइसने बा त बेटी तूं तइयारी करऽ. अनाज का होला. हम एकरा खातिर खेतो बेच देब, अपनो के बेच देब. पइसा के कमी ना होखे देब. अगर तोहरा मे जज़्बा बा त कुछऊ कर सकेलू. करऽ हम तोहरा साथे बानीं.’ कहते-कहत मुनक्का राय लेटले-लेटल उठ के बइठ गइलन. बेटी के माथा चूम लिहलन आ कहलन कि, ‘तूं कुछ बन जा त हमार सगरी चिंता बिला जाई !’ कहत ऊ अनायास रोवे लगलन. सिसक-सिसक के.
‘मत रोईं बाबू जी.’ मुनमुन बोलल, ‘अब सूत जाईं. सब ठीक हो जाई.’
मुनक्का राय फेर से लेट गइलें. लेटले-लेटल सुबकत रहलें. बाकिर मुनमुन ना रोवलसि. पहिले बात बे बात रोवे वालौ मुनमुन अब रोवल छोड़ दिहले रहुवे.
एही बीच गिरधारी राय के गंगालाभ हो गइल.
आखिरी समय में उनुकर बहुते दुर्दशा भइल. बेटा सब दवाई, भोजनो का बारे में ना पूछले सँ. बिछवनो साफ करेवाला, बदले वाला ना रहुवे. कवनो नात-रिश्तेदार ग़लती से उनुका के देखे चहुँपियो जाव त तुरते भाग परात रहुवे. उनुका देह में कीड़ा पड़ गइल रहले सँ. दूरे से बदबू मारत रहले स. केहू लाजे लिहाजे नाक दबा के बइठियो जाव त गिरधारी ओकरा से दस-पांच रुपिया मांगे लागसु. रुपिया मांगे के त उनुकर पुरान आदत रहुवे. बिना संकोच ऊ केहू का सोझा हाथ पसार देसु. पट्टीदार, रिश्तेदार, परिचित, अपरिचित जे ही केहू भेंटा जाव. केहू दे देव त केहू नाहियो देत रहल. तबहियों उनुकर मांगल ना रुकल करे. अब जब उनुकर गंगालाभ हो गइल त मजिल (शव यात्रा) में बहुते कम लोग शामिल भउवे. बाकिर मुनक्का राय शामिल रहलें. लाश जरा दीहल गइल बाकिर आग ठीक से लागल ना. एक त बेमारी वाला देह, दोसरे लकड़ी गील. शमशान में बइठल लोग उनुकर अच्छाई-बुराई बतियात रहलें. आ उनुकर लाश बा कि लाख कोशिश का बादो ठीक से जरत ना रहुवे. डोम, पंडित, परिजन सभे परेशान. परेशान रहलें मुनक्को राय. एगो पट्टीदार से बतियावत रहलन, ‘चल त गइलन गिरधारी भाई बाकिर हमरा के लाचार बना के. हमरा के बरबाद करे में ऊ अपना ओर से कवनो कोर-कसर ना छोड़लन.’
‘त भुगतबो त कइलन.’ पट्टीदार बोलल, ‘देखीं मरला का बादो जर नइखन पावत. देह में कीड़ा पड़ गइल. दाना-दाना खातिर तरसत मुअलें. भगवान सगरी स्वर्ग-नरक एहिजे देखा देत बाड़न. जस करनी तस भोगहू ताता, नरक जात फिर क्यों पछताता! का वइसही कहल गइल बा?’
‘से त बा!’ मुनक्का राय कहत जम्हाई लेबे लागल रहलन. ऊ कहल चाहत रहलन कि गिरधारी भाई का साथे एगो युग पूरा हो गइल का तर्ज पर कि गिरधारी भाई का साथे एगो दुष्ट समाप्त हो गइल. बाकिर सोचिये के रह गइलन बोललन ना. काहें कि ई सही मौका ना रहल अइसन कुछ कहे के. बाकिर अपना मन के चुभन आ टीस के ऊ करसु? एकनी के कहां दफनावसु? कवना चिता में जरावसु एहनी के? आ मुनमुन? मुनमुन के चिंता उनुका के चितो से बेसी जरावत रहल. ऊ करसु का?
ऊ का करसु? भकुचाइल एगो बूढ़ बाप करिये का सकत रहुवे सिवाय अफ़सोस, मलाल अउर चिंता कइला के? लोग समुझत रहल कि उनुकर परिवार प्रगति का पथ पर बा. बाकिर उनुकर आत्मा जानत रहल कि उनुकर परिवार पतन के गहिराई में बा. ऊ सोचसु आ अपना आपे से बतियावसु कि भगवान संतान के अइसनो लायक मत बना देसु कि ऊ बाप-महतारी परिवार से अतना फरका चल जा सँ. अपना आप में अतना मशगूल हो जा सँ कि बाकी दुनिया ओहनी के लउकबे ना करे. अख़बारन में ऊ पढ़सु कि अब दुनिया ग्लोबलाइज़ हो गइल बा. मानो सगरी दुनिया एगो गाँव बन गइल ना. बाकिर उनुका लागे कि अख़बार वाला ग़लत छापत बाड़न सँ.
बेटियन से त कवनो उम्मेद ना रहल बाकिर उनुकर चारो बेटा कवना ग्रह पर रहत रहले सँ कि उनुकर दुख, उनुकर यातना ओहनी के लउकते ना रहल. बेटन के एह उपेक्षा अउर अपमान का बाबत ऊ केहू से कुछ कहियो ना सकत रहलन. लोक लाज का मारे कि लोग का कही? ऊ ईहे सब सोचत अपना आपे से पूछल करसु कि, ‘का एकरे के ग्लोबलाइजे़शन कहल जाला?’
सवाल त उनुका लगे अनगिन रहल, बाकिर जवाब कवनो के ना रहल उनुका लगे. कहल जाला कि दिल पर जब बोझ बहुत हो जाव त केहू से साझा कर लेबे के चाहीं. एहसे दुख के बोझ कुछ कम हो जाला. बाकिर मुनक्का राय इहे सोचसु कि ऊ अपने बेटन के शिकायत केकरा से करसु? अनका से अपना बेटन के शिकायत करत में ऊ मर ना जइहें. एहसे जब कबो बेटन के जिक्र होखे त कहल करसु कि, ‘हमार बेटा सब त रतन हउवें स!’
बाकिर बेटा सब ना जाने कवना राजा के रतन बन गइल रहले सँ कि माता पिता के दुख देखले बिना उनहन के बिसार बइठल रहले सँ. एक बेर धीरज से फ़ोन पर ऊ कहलहूं रहलन कि, ‘बेटा जब तूं अध्यापक रहल त बेसी नीक रहलऽ. हमहन के दुख-सुख अधिका समुझत रहलऽ. तोहरा इयाद होखी कि ओह दिना तोहरा से मिलत नियमित मदद का वशीभूत हम तोहार नाम कबो नियमित प्रसाद त कबो सुनिश्चित प्रसाद रख देत रहीं आ कहल करीं.” बाकिर एह पर ऊ कुछ बोलल ना उलुटे आपने व्यस्तता आ खरचा गिनवावे लागल रहुवे.
चुप रह गइल रहलन मुनक्का राय. ओही दिनन में टी.वी. पर आवत एगो कवि सम्मेलन पर एगो कवि कविता सुनवले रहलन, ‘कुत्ते को घुमाना याद रहा पर गाय की रोटी भूल गए/साली का जनम दिन याद रहा पर मां की दवाई भूल गए.’ सुन के ऊ फेरु अपने आप से बोललन, ‘हँ, ज़माना त बदल गइल बा.’ बाद में पता चलल कि धीरज के दू दू गो साली ओकरे किहाँ नियमित रहत रहली सँ. आ ऊ अपना ससुराल पर खासा मेहरबान बावे. एगो बड़हन कुकुरो पोस लिहले बा. शायद एही सब का चलते ऊ आपन नियमित प्रसाद आ सुनिश्चित प्रसाद के भूला गइल रहुवे. भूला गइल रहल कि अम्मा बाबू जी खानो खाला लोग आ दवाईओ. बाकी ज़रूरतो बाड़ी सँ एकरा ऊपर. नातेदारी, रिश्तेदारी, न्यौता हकारी. सब भूला गइल रहलन नियमित प्रसाद उर्फ सुनिश्चित प्रसाद उर्फ धीरज राय.
का डिप्टी कलक्टरी अइसने होखेले?
अइसने होखेलें न्यायाधीश?
अइसने होखेलें बैंक मैनेजर?
आ अइसने होखेलें एन.आर.आई?
का एन.आर.आई. राहुलो कबो गावत होखी, ‘हम त हैं परदेस में देस में निकला होगा चांद.’ आ ऊ पंकज उधास के गाना सुनत होखी कि, ‘चिट्ठी आई है, वतन से चिट्ठी आई है! सात समंदर पार गया तू हम को जिंदा मार गया तू!’ सुनत होखी का, ‘मैं तो बाप हूं मेरा क्या है/तेरी मां का हाल बुरा है. ’ सुनत होखी एह गाना के तासीर, ‘कम खाते हैं, कम सोते हैं बहुत ज़ियादा हम रोते हैं.’ का जाने सुनतो होखी? सुनत होखिहें बाकिओ सब. न्यायाधीशो, डिप्टी कलक्टरो आ बैंक मैनेजरो. भा इहो होखत होखे कि ई गाना सुनते ऊ सब बंद कर देत होखिहें सँ. सुनले ना चाहत होखिहें सँ. जइसे कि धीरज अब फ़ोनो ना सुने. मोबाइल या त उठे ना भा स्विच आफ़ राखेला. लैंड लाइन फ़ोन कवनो कर्मचारी उठावेला आ कवनो मीटिंग में होखे के भा बाथरूम में बता देला. केतनो जरुरी बात होखो ऊ सुनले ना चाहे. का ऊ अपना इलाका के जनतो के अइसने अनसुनी करत होखी? सोचिये के मुनक्का राय कांप जालें.
कांप गइल रहुवे मुनमुनो जब एक दिन अचके ओकर पति राधेश्याम बांसगांव ओकरा घरे आ धमकल रहुवे. मुनमुन आ अम्मा दुनू दुआरे पर ओसारा में बइठल एगो पड़ोसन से बतियावत रहली. मुनमुन के बोखार रहल से ऊ स्कूल ना गइल रहल. राधेश्याम आइल. मोटरसाइकिल दरवाजा पर खड़ा क के ओसारा में आइल. एगो ख़ाली कुर्सी पर धप्प से बइठ गइल आ मुनमुन से बोलल, ‘चल, हमरा साथे आ अबहियें!’
‘कहां?’ मुनमुन अचकचा गइल. पूछलसि, ‘रउरा के?’
‘त अब अपना भतारो के नइखू चीन्हत?’ राधेश्याम महतारी के गारी देत बोलल, ‘चीन्ह ले आजु से, हम तोहार भतार हईं.’
‘अरे?’ कहत ऊ घर में भागल. राधेश्याम शराब का नशा में टुन्न रहल. आवाज़ लड़खड़ात रहल बाकिर ऊ लपक के, झपट्टा मार के मुनमुन के पकड़ लिहलसि. बोलल, ‘चल कुतिया अबहियें हमरा साथे चल!’
अम्मा हस्तक्षेप कइली आ हाथ जोड़त कहली, ‘भइया पहिले चाय पानी त कर लीं.’
‘हट बुढ़िया!’ अम्मा के ढकेलत राधेश्याम बोलल, ‘चाय पीने ना, आजु एकरा के ‘लेबे’ आइल बानी.’
अम्मा के कपरा देवारी से टकरा के फूट गइल आ ऊ गिर के रोवे लगली, ‘हे राम केहू बचावऽ हमरा बेटी के.’ मुनमुन प्रतिरोध कइलसि त राधेश्याम ओकरो के झोंटा पकड़ि के पीटल शुरु कर दिहलसि. ओहिजा बइठल पड़ोसन बचाव में आइल त ओकरो महतारी-बहिन करत लात जूता से पीट दिहलसि. चूंकि ई मार पीट घर का बहरिये होखत रहल से कुछ राहगीरो दखल दिहलें आ राधेश्याम से तीनों औरतन के छोड़वलें. राधेश्याम के दू तीन लोग कस के पकड़ल आ ओरतन से कहल कि,‘रउरा सभे भितरी जाईं.’
मुनमुन आ ओकर अम्मा त घर में जा के भीतर से दरवाज़ा बंद कर लिहली. पड़ोसन अपना घरे भगली. फेर राहगीर लोग राधेश्याम के छोड़ल. राधेश्याम राहगीरनो के महतारी-बहिन कइलसि आ बहुते देर ले मुनमुन के घर के दरवाज़ा पीटलसि-गरियवलसि. फेर ऊ चल गइल. घर का दरवाज़ा साँझ बेरा तबहियें खुलल जब मुनक्का राय कचहरी से घरे आइलन. ऊ जब ई सगरी वृतान्त सुनलन त कपार ध के बइठ गइलन. बोललन, ‘अब इहे सब देखल बाकी रह गइल बा एह बुढ़ौती में? हे भगवान कवन पाप कइले रहीं जे ई दुर्गति हो रहल बा. ?’
थोड़िका देर बाद ऊ गइलन आ एगो डाक्टर के बोला ले अइलन. महतारी बेटी के सुई, दवाई, मरहम पट्टी क के ऊ चल गइल. देह के घाव त दू चार दिन में सूख जाई बाकिर मन पर लागल घाव?
शायद कबहियों ना. देह के घाव अबहीं ठीक से भरलो ना रहल कि अगिला हफ्ता राधेश्याम फेर आ धमकल. अबकी ऊ मोटरसाइकिल दरवाज़ा पर ठाड़ करते रहल कि महतारी-बेटी भाग के घर में घुस गइली आ भीतर से दरवाज़ा बंद कर लिहली. बाकिर राधेश्याम मानल ना आ दरवाज़ा पीटत गारी बकत रहल आ कहत रहल कि,‘खोल-खोल. आजु लेइए के जाएब.’
बाकिर मुनमुन दरवाज़ा नाहियें खोललसि. फेर राधेश्याम बगल का एगो घर में गइल. ओहिजे गारी-गुफ्ता कइलसि. ऊ लोग जानत रहल कि ई मुनक्का राय के दामाद ह से हाथ जोड़ के ओकरा के जाए ला कहल. ऊ फेर मोटरसाइकिल ले के गिरधारी राय का घरे चहुँपल. जब ओकरा मालूम चलल कि गिरधारी राय मर गइलन त भगवानो के गरियवलसि आ चाय पीयत-पीयत एगो पतोहु के पकड़ लिहलसि आ बोलल, ‘मुनमुन नइखे चलत त तूंहीं चलऽ. तोहरो पर त हमार हक बनेला.’
गिरधारी राय के बेटवो पियक्कड़ रहले सँ से ओहनी के बहूओ जानत रहली सँ कि पियक्कड़न से कइसे निपटल जाला. से बोलल, ‘हँ-हँ काहे ना. पहिले कपड़ा त बदल लीं. रउरा तब ले बहरी बइठीं.’ कहि के ऊ राधेश्याम क बहरी बइठा के भीतर से दरवाज़ा बंद कर लिहलसि. राधेश्याम फेर एहिजो तांडव कइलसि. दरवाज़ा पीट-पीट के गारी के बरसात करत रहल. फेर त आए दिन के बाति हो गइल राधेश्याम ला. ऊ पी-पा के आवे आ ओकरा के देखते औरत सब घर के भीतर हो के दरवाज़ा बंद कर लेत रहली सँ. मुनमुन का घरे ऊ दरवाज़ा पीट-पीट के गरियइबे करे, पड़ोसियनों का घरे आ गिरधारीओ राय का घरे. जइसे ई सब ओकर रूटीन हो गइल रहुवे. मुनमुन का घरे त ऊ पलट-पलट के आवे, कई-कई बार. मुनमुन का घरे गारीगुफ्ता क के पड़ोसी का घरे जाव. फेर पलट के मुनमुन का घरे. फेर गिरधारी राय किहां. फेर मुनमुन किहां. फेर कवनो पड़ोसी, फेर मुनमुन, जब ले ओकरा पर नशा सवार रहे ऊ आइल-गइल जारी राखे.
एक दिन राधेश्याम गाली गलौज के दू राउंड क के जा चुकल रहुवे जब मुनमुन के फुफेरा भाई दीपक आइल रहुवे. ई फुफेरा भाई दिल्ली में रहेला आ दिल्ली यूनिवर्सिटी के कवनो कालेज में पढ़ावेला. दीपक बहुते दिन का बाद दिल्ली से अपना घरे आइल रहुवे त सोचलसि कि चलि के मामा-मामी से भेंट कर आईं. काहें कि ऊ लईकाई में अकसर मामा-मामी किहाँ आवत रहुवे आ मामी बहुते चाव से किसिम-किसिम के पकवान बना-बना के ओकरा के खियावल करसु. ऊ मामी किहां हफ्तन रह जात रहुवे गरमियन का छुट्टी का दौरान. मामी ओकरा के बहुते मानतो रहली. तब मामी ख़ूब भरल-पुरल आ ख़ूब सुंदर लउकस. हमेशा फिल्मी हीरोइनन का तरह सजल सँवरल रहल करस. मामो सभका सोझे उनुका से हंसी ठिठोली कइल करसु. मुनमुन तब छोटहन नटखट रहुवे. ओह घरी मामा के प्रैक्टिसो खूब चटकल रहल करे. फ़ौजदारी आ दीवानी दुनू तरह के मुकदमन में उनुकर चांदी कटल करे. लक्ष्मी जी के अगाध कृपा रहल ओह घरी मामा-मामी पर. कहे वाला कहसु कि मुनमुन बड़ भाग्यशाली बिया. बड़ भाग लेके आइल बिया. साक्षात लक्ष्मी बन के आईल बिया. अइसन लोग कहल करे. जिला में तब बाह्मण-ठाकुर बाहुबलियन के बोलबाला रहल करे आ बांसगांव के पास सरे बाज़ार एगो गुट के सात लोग जीप से उतार के मार दीहल गइल रहले. अगिले हफ्ता दोसरका गुट अपना विरोधी ग्रुप के नौ लोगन के बाजार में घेर लिहलस. पांच जने खेत हो गइलन आ चार जने केहू तरह नदी में फान के पँवड़त जान बचा पवले. एक बेर जब सरे राह एगो छात्र नेता के हत्या मुख्य बाज़ार में हो गइल त अगिले दिना एगो विधायक के हत्या सुबहे-सुबह रेलवे स्टेशन पर क दीहल गइल. ई सगरी ताबड़तोड़ हत्या बांसगांव के लोगे करवावत करे.
बांसगांव तब तहसील ना, अपराध के भट्ठी बन गइल रहल. धर पकड़ के जइसे महामारी मचल रहल. आ एही दिनन में मुनक्का राय के प्रैक्टिस जमल रहुवे. ज़मानत करवावे में ऊ माहिर रहलन. कोर्ट में उनुकर खड़ा होखला के मतलब होखल करे कि ज़मानत पक्की! बाकिर तब के दिन आ आजु के दिन ! अब त मामा के प्रैक्टिस चरमरा गइल रहुवे आ ऊ हीरोइन जइसन लउके वाली मामी के भरल-पुरल देह हैंगर पर टंगाइल कपड़ा जइसन हो गइल रहल. देह का बस हड्डियन के ढांचा रह गइल रहली मामी. एगो बेटा के मुअला का बाद जब उनुकर देह गिरल शुरु भइल त फिर रुकल ना. मामी के आज चार गो बेटा बाड़ें, पहिले ई पांच गो रहलें. तरुण आ राहुल के बीच के शेखर. हाई स्कूल विथ डिस्टिंक्शन पास कइला का बादे से शेखर के तबियत खराब रहे लागल. बांसगांव के डाक्टर इलाज कर-कर के थाक गइलें त शहर के डाक्टरनो के देखावल गइल शेखर के. दुनिया भर के जांच पड़ताल का बाद पता चलल कि शेखर के दुनू किडनी खराब हो गइल बा. डायलिसिस वग़ैरह शुरू भइल आ आखिर में तय भइल कि बनारस जा के बी.एच.यू. में किडनी ट्रांसप्लांट करवावल जाय.
मुनक्का राय ख़ुद आपन एगो किडनी देबे ला तइयार हो गइलन. कहलन कि, ‘बेटा ला कुछऊ करे के तइयार बानी.’ ऊ शेखर के कहल करसु, ‘बाबू शेखर जवने मन होखे खा लऽ, जवने पहिरे के मन करे पहिर लऽ. का जाने बाद में का होखे वाला बा ? तोहार कवनो मनसा बाकी ना रहे के चाहीं. सगरी मनसा पूरा लऽ.’ बाकिर शेखर अम्मा-बाबू जी के परेशानी देखत कहे, ‘ना बाबू जी, हमरा कुछऊ ना चाहीं.’ फेर ऊ जोड़ देव कि, ‘बाबू जी मत करवाईं हमार आपरेशन. बहुते खरचा हो जाई.’ दरअसल ऊ देखत रहुवे कि बाबू जी के लगभग सगरी कमाई ओकरा आपरेशन में दांव पर लागे जात रहुवे. ओहपर से कर्जो के नौबत रहल. से ऊ कहे, ‘आपरेशन का बादो का जाने हम ठीक होखब कि ना. रहे दीं.’
तबहियों मुनक्का राय शेखर के किडनी ट्रांसप्लांट में होखे वाला सगरी खरचा के पूरा व्यवस्था जब कर लीहलन त एक दिन ऊ शहर गइलन शेखर के ले के. एगो हार्ट स्पेशलिस्ट रहलन सरकारी डाक्टर. उहो बी.एच.यू. ए से पढ़ल रहलन. उनुकरे एगो परिचित डाक्टर बी.एच.यू. में किडनी ट्रांसप्लांट करत रहलें. उनुका ला सिफ़ारिशी चिट्ठी ओह सरकारी डाक्टर से लिखवावे ला मुनक्का राय आइल रहलन उनुका लगे. डाक्टर का सोझा ऊ शेखर का साथे बइठल रहलन. बातचीत का बाद जब डाक्टर सिफारिशी चिट्ठी लिखते रहलन जब अचके में शेखर का छाती में ज़ोर से दर्द उठ गइल. ऊ छटपटाए लागल. डाक्टर चिट्ठी लिखल छोड. ओकरा के अटेंड कइलन. उनुकर पूरा अमला लाग गइल शेखर के बचावे ला. बाकिर सोरह बरीस के शेखर जे किडनी के पेशेंट रहल, हार्ट स्पेशलिस्ट का सोझे हार्ट अटैक के शिकार हो गइल. आ ऊ हार्ट स्पेशलिस्ट लाख कोशिश का बावजूद ओकरा के बचा ना पवलन. शेखर जब मरल तब मुनक्का राय का बाँहे में रहल. ऊ रोवत-बिलखत शेखर के पार्थिव देह लिहले बांसगांव अइलें. शेखर के महतारी पछाड़ खा के गिर पड़ली. कई दिन ले ऊ बेसुध रहली. जवान बेटा के मौत उनुका के तूड़ दिहलसि. मुनक्का राय अपनहूं कहसु, ‘जवना बाप के कान्ह पर जवान बेटा के लाश आ जाव ओकरा से बड़ अभागा दोसर केहू ना हो सके.’ टूटल फूटल मुनक्का राय बहुते दिन ले कचहरी ना गइलन.
फेर ऊ गँवे-गँवे सम्हरले आ कचहरी जाए लगलन बाकिर शेखर के अम्मा ना सम्हरली. शेखर का याद में, शेखर का ग़म में ऊ गलत गइली. ओकरा बाद पारिवारिको समस्या एक-एक क के आवत गइल आ ऊ कवनो मकान के कच्चा देवाल जइसन धीरे धीरे भहरात गइली. गलत गइली. फेर उनुकर देहरष्टि जइसे बिसरे लागल, रुस गइल. ऊ बेमार रहे लगली. रहल सहल कसर मुनमुन के तकलीफ़, बेटन के उपेक्षा आ अचके में आ गइल दरिद्रता पूरा कर दीहलसि. ऊ कवनो हैंगर पर टंगाइल कमीज का तरह चलत फिरत कंकाल हो गइली. जइसे ऊ ना उनुकर ढांचा चले. उनुकर मांसलता, उनुकर सुंदरता, उनुकर बांकपन उनुका से विदा हो गइल. उनकर लहरत चाल, उनुका गाल पर पड़े वाला गड्ढा आ उनुका आंखिन के शोख़ी जइसे कवनो डायन सोख लीहलसि. तबहियों दीपक एह मामी के दुलार ना भुलाइल रहुवे. उनुकर ऊ नीकहा दिन याद रहल करे ओकरा आ जबो कभी ऊ गाँवे आवे त मामी के गोड़ छुए जरुर आ जाइल करे बांसगांव.
त अबकियो आइल रहल दीपक बांसगांव. बहुते देर ले केंवाड़ी पीटला का बाद धीरे से मुनमुन के मिमियाइल हुई आवाज़ आई, ‘के ?’
‘अरे हम हईं, दीपक!’
‘अच्छा-अच्छा. ’ मुनमुन पूछलसि, ‘केहू अउर त नइखे रउरा साथे ?’
‘ना. हम त अकेलहीं बानी.’
‘अच्छा-अच्छा!’ कहत मुनमुन कसहूं केंवाड़ी खोललसि. बोलल, ‘भइया भीतर आ जाईं.’
दीपक के भीतर आवते ऊ तुरते केंवाड़ी बन्द कर दिहलसि. मुनमुन आ मामी दुनू का चेहरा पर दहशत देखत दीपक पूछलसि, ‘आखि़र बात का बा ?’
‘बात अब एगो होखे त बतइबो करीं, भइया.’
मामिओ फफक के बोलली, ‘बस इहे जान जा कि मुनमुन के करम फूट गइल. अउर का बताईं ?’ फेर मामी आ मुनमुन बारी-बारी आपन यातना अउर अपमान कथा के रेशा-रेशा उधेड़ के रख दीहली. सब कुछ सुन के दीपक के ठकुआ लाग गइल. ऊ मुनमुन से कहलसि, ‘अगर अइसन रहुवे त तूं हमरा के बतवले रहतू. हम चल गइल रहतीं बिआह का पहिले जांच पड़ताल कर आइल रहतीं.’
‘कहां भइया, रउरा त दिल्ली में रहनी. आ हम एहिजा जितेंद्र भइया से कहबो कइनी त उहो टार गइलन.’ जितेंद्र दीपक के छोटका भाई हवे आ एहिजे शहर में रहेला. रेलवे में नौकरी करेला.
‘अच्छा!’ दीपक बोलल, ‘अइसन त ना करे के चाहत रहुवे ओकरा. तबहियों तूं एक बेर फोन भा चिट्ठी पर हमरा के बता त सकते रहलू. भा जब हम शादी में आइल रहीें तबो बता सकत रहलू.’
‘अब शादी का समय रउरा करियो का सकत रहीं ?’
‘खै़र, रमेश, धीरज, भा तरुण के इ सब जवन हो रहल बा तवन बतवले बाड़ू ?’
‘ओह लोग के हमार ख़याल रहीत त ओह पियक्कड़ के हिम्मत रहुवे जे हमनि का साथे ई सब करीत ?’ दीपक का सोझा चाय के कप राखत मुनमुन बोलल, ‘आ फेर जे ई लोग हमार खयाल रखलहीं रहीत त ई पियक्कड़ पागल हमरा जिनिगी में आइले काहे रहीत ?’
‘ई त बा!’ दीपक गँवे से बोलल.
‘जानत बानी भइया, एह पियक्कड़ के चेहरा शादी में जयमाल का बाद फेर पिटईला का बादे हम एहिजा देखनी. लगभग पनरहिया दिन ओहिजा ससुराल में रहनी त कबो गलतियो से एकर शकल देखे के ना मिलल रहुवे. दू तीन दिन बाद हार थाक के एकरा बहिन आ भाइयन से पता कइल शुरु कइनी कि तोहार भईया सूतेलें कहवां ? त पता चलल कबो बगइचा में, त कबो टयूबवेल पर, कबो कहीं त कबो कहीं. ओहिजे एह गंजेड़ियन अफीमचियन आ चरसियन के महफ़िल जुटेला. त लत का फेरा में एह आदमी के अपना बीबी के सुधे ना रहुवे. अब भइल बा त आ के मार-पिटाई करे ला.’
‘बतावऽ तमाम नातेदारी, रिश्तेदारी में एह परिवार के लोग रश्क से देखेला. भाइयन के गुणगान करत ना थाके लोग.’
‘कुछ ना भइया चिराग़ तर अन्हेरा कहावत वइसहीं त नइखे बनल.’
‘से त बा.’
ई सब जान सुन के दीपक के मन ख़राब हो गइल. सोचले रहल कि एक रात बांसगांव ठहर के जाई. मामा-मामी से ख़ूब बतियाई. बाकिर एहिजा के माहौल देखि के ऊ तुरते लवटे के तइयार हो गइल. मामी कहली, ‘अरे आज त रुक जा. साँझ ले मामो आ जइहन. बिना उनुका से मिललहीं चल जइबऽ ?’
‘मामा से त अबहीं कचहरी जा के भेंट कर लेब.’ दीपक बहाना बनवलसि, ‘शहर में कुछ ज़रूरी काम निपटावे के बा एहसे जाए के त पड़बे करी.’
‘अच्छा भइया थोड़िका देर त अउर रुक जाईं. अम्मा कहऽतिया त मान जाईं.’
‘चलऽ ठीक बा. तनिका देर रुक जात बानी.’ कहि के ऊ रुक गइल. देखत रहल कि घर के समृद्धि, दरिद्रता में तब्दील हो रहल बा. विपन्नता देह आ देह के कपड़ा-लत्तन, घर के सामान, भोजने आदि में ना बातोचीत में छितराइल पड़ल बा. बाते-बात में ऊ मुनमुन से रमेश, धीरज अउर तरुण के फ़ोन नंबर ले लिहलसि आ कहलसि कि, ‘देखऽ हम बतियावत बानी, फेर बताएब. आ हँ, राहुल के फोन आवे त हमार नंबर ओकरा के दे दीहऽ आ कहीहऽ कि हमरा से बात कर लेव. आ आपनो नंबर दऽ आ अपना ससुरारो के. ताकि हम पूछीं कि ऊ अइसन हरकत काहे करत बा ?’
मुनमुन सभकर नंबर दे के दीपक के नंबर अपनहूं ले लिहलसि आ बतवलसि कि, ‘धीरज भइया के फ़ोन लगावले बहुत मुश्किल होला. अव्वल ते उठे ना. आ उठबो करेला त कवनो कर्मचारी उठावेला आ उनुका के बाथरूम भा मीटिंग में होखला के बात कर के काट देबे ला. बाते ना करावे.’
‘चलऽ तबहियों देखत बानी.’
‘आ हँ, अगर जे हमरा ससुरारी में फ़ोन करब त हाथ गोड़ जोड़ के ओहनी के दिमाग अउर खराब मत करब. जवने बात करे के होखे सख्ती से करब.’
‘ना-ना. ई बात त हम सख़्ती से करबे करब कि ऊ एहिजा शराब पी के मत आइल करे. ई त कहहीं के पड़ी.’
‘करे के होखे त अबहियें बतिया लीं.’ मुनमुन उत्साहित होखत बोलल.
‘ना अबहीं ना.’ दीपक बोलल, ‘पहिले थोड़ प्लानिंग कर लीं. रमेश, धीरज वगै़रहो से राय मशविरा कर लीं. तब. जल्दबाजी में ई सब ठीक ना रही.’
‘चलीं. रउरा जवन ठीक समुझीँ.’ मुनमुन बोलल, ‘बाकिर भइया लोग रउरा के हमरा मसला पर शायदे कवनो राय मशविरा दी.’
‘काहें ?’
‘अरे कवनो राय मशविरा होखीत त ऊ लोग खुदे आ के कवनो उपाय ना कइले रहीत ?’ ऊ बोलल, ‘एक बेर घनश्याम राय का कहला पर रमेश भइया अइलन ज़रूर बाकिर समस्या के कवनो हल निकलववले बिना चल गइलन. फेर पलट के एक बेर फोनो पर ना पूछलन कि तूं लोग जिन्दा बाड़ू कि मर गइलू ? हमार त छोड़ीं, अम्मा बाबूओ जी के कबो कवनो खैर खबर ना लेबे लोग. घर के खरचा वरचा कइसे चलत बा, दवाई वग़ैरह के ख़रचा से कवनो भाइयन के कवनो मतलब नइखे रहल.’ कहत मुनमुन एकदम से अगिया गइल. आ ओकर अम्मा, माने दीपक के मामी बिना कुछ बोलले रोवे लगली. दीपको चुपे रह गइल.
माहौल ग़मगीन हो गइल रहुवे. फेर थोड़िका देर में मुनमुने सन्नाटा तूड़त बोलल, ‘जाने कवना जनम के दुश्मनी रहल जे बाबू जी आ भइया लोग मिलजुल के हमरा से निकलले बा. जीते जिनिगी हमरा के नरक का हवाले कर दिहले बा. दोसरे, ई आए दिन के मारपीट, बेइज़्ज़ती. अब त ऊ जब-तब हमरा स्कूलो पर आ धमकेला आ गारी गुफ्ता कर के चल जाला. आगे हमरा जिनिगी के का होखी, ई केहू नइखे सोचत.’ कवनो बढ़ियाइल नदी का तरह मुनमुन बोलते जात रहुवे.
‘एह मार-पीट के रिपोर्ट तूं पुलिस में काहे नइखू करत ?’
‘कइसे करीं ?’ मुनमुन बोलल, ‘एहू में त आपने बेइज़्ज़ती बा. अबहीं दू चारे घर के लोग जानत बा. फेर पूरा बांसगांव, गाँव-जवार सभे जान जाई. केकरा केकरा के सफ़ाई देत रहब? फेर अख़बार आ समाज हमरा के एकदमे जिये ना दीहें.’
‘से त बा.’
‘आ फेर संबंधन के झगड़ा पुलिस त निपटा ना सके. छिंछालेदर होखी से अलगा से.’ ऊ बोलल, ‘बाबू जी का लगे अइसन मामिला आवते रहेला, हमहूं देखते रहीलेंं. ’
‘ई त बा!’ दीपक बोलल, ‘बहुत समझदार हो गइल बाड़ू.’
‘हालात सभका के समझा देले भइया.’ मुनमुन बोलल, ‘हमरा ऊपर गुज़रत बा. हम ना समुझब त भला अउर के समुझी ?’
‘चलऽ तोहार हौसला अइसनो में बनल बा ई नीक बा.’ दीपक बोलल, ‘ई बहुते बड़ बात बा.’
‘अब रउरा जे कहीं.’ मुनमुन बोलल, ‘हमार नामे त नरक के पट्टा लिखवाइए दिहले बाड़न बाबू जी आ भइया लोग मिल के.’
‘अइसे मन छोट मत करऽ.’ ऊ बोलल, ‘कवनो कवनो उपाय निकलबे करी. बस ऊपर वाला पर भरोसा राखऽ.’
‘अच्छा ई सब बिना ऊपर वाला के मर्ज़िए से होखत बा का कि हम ओकरा पर भरोसा राखीं?’
दीपक चुपा गइल. थोड़का देर बाद साँझ हो गइल. मुनक्का राय कचहरी से अइलन त घर पर दीपक के देख के ख़ुश हो गइलन. बहुते ख़ुश. दीपक उनुकर गोड़ छूवलसि त ढेरहन आशीष देत ओकरा के अँकवारी बान्ह लीहलन. कहलन, ‘तब हो दीपक बाबू अउर का हाल चाल बा? घर दुआर कइसन बा ? बाल बच्चा सभ ठीक बाड़े सँ नू ? आ हमार दीदिया कइसन बिया ? जीजा जी कइसन बाड़न ?’
‘रउरा आशीर्वाद से सभे ठीक बा.’ दीपक बोलल, ‘आ रउरा कइसन बानी ?’
‘हम त दीपक बाबू बस जाही विधि राखे राम ताही विधि रहिए पर बानी.’ ऊ बइठले बइठल छत निहारत बोललन, ‘बस राम जी तनिका नज़र फेर लिहले बाड़न आजुकाल्ह हमरा से. अउर का कहीं !’ मुनक्का राय हताश होखत बोललन, ‘बाक़ी हालचाल मिलिए गइल होखी अबले !’ ऊ मुनमुन का ओर आंख से इशारा करत कहलन. दीपक उदास होखत मुंह बिचकावत सकारत में मूड़ी हिला दिहलसि.
‘बड़-बड़ मुक़दमा निपटवनी. जिरह बहस कइनी. दुनिया भर के झमेला देखनी. मयभावत महतारी देखनी आ जाने कतना गरमी बरसात देखनी. सबका के फेस कइनी. बहादुरी से फेस कइनी. ओह अभागा नालायक गिरधारी भाई के फे़स कइनी. बाकिर बाबू दीपक, जिनिगी के एह मोड़ पर एहिजा आ के हम पटकनी खा गइनी. पटका गइनी. एकर कवनो काट नइखे मिलत हमरा.’ कहत मुनक्का राय के गला रुंध गइल, आंख बहे लगली सँ. आगे ऊ अउर कुछ बोल ना पवलन.
दीपक फेरु चुपे रहल. मामा का घरे आइल प्रलय के आंच अब ऊ अउरी घन भाव से महसूस करत रहल. अइसन विपत्ति में ऊ अबहीं ले पारिवारिक स्तर पर केहू अउर के नइखे देखले. मामा के घर पसरल सन्नाटा टूटत ना रहुवे. गदबेर होखल जात रहुवे, साथे साथ सूरज के लालिओ कि अचके में बिजली आ गइल.
दीपक उठ खड़ा भइल. बोलल, ‘मामा जी रउरो से भेंट हो गइल अब आज्ञा दीं.’
‘अरे दीपक बाबू आज रहऽ. काल्हु जइहऽ.’ मुनक्का राय ओकरा के रोकत कहलन, ‘कुछ दुख-सुख बतियाएब.’
‘ना मामा जी कुछ ज़रूरी काम बा शहर में. गइल ज़रूरी बा.’
‘ज़रूरी काम बा त फेर कइसे रोक सकीलें. जाईं.’ ईचिका खिझियात बोललन मुनक्का राय.
दीपक मामा मामी के गोड़ छुवलसि आ मुनमुन दीपक के. चलत-चलत दीपक फेरु मुनमुन से कहलसि, ‘घबरा मत, कवनो राह निकालत बानी.’
हालां कि दीपक चलल त रहुवे शहर जाए खातिर बाकिर शहर गइला का बजाय ऊ अपना गाँवे लवटि आइल. घरे चहुँप के दीपक अपना अम्मा बाबू जी के मामा-मामी अउर मुनमुन के व्यथा-कथा बतवलसि. दीपक के अम्मा आ बाबू जी एह पर अफसोस त जतवलन बाकिर अम्मा गँवे से बोलली – ‘बाकिर मुनमुनवो कम ना हियऽ.’
दीपक एहपर कवनो प्रतिवाद ना कइलसि. बाकिर मामा-मामी अउर मुनमुन के दुख ओकरा के परेशान कइले रहुवे. बाद में ऊ अपना छोट भाई जितेंद्रो से एह बारे में बतियवलसि. त जितेंद्रो मनलसि कि, ‘मुनमुन के शादी ग़लत हो गइल बा.’
‘बाकिर जब मुनमुन तोहरा से कहलसि कि एक बेर बिआह से पहिले लड़िका त देख लऽ त तोहरा चाहत रहुवे कि लड़िका देख के असलियत बता देतऽ.’
‘का बतइतीं ?’
‘काहें? का दिक्क़त रहुवे?’
‘दिक्क़त ई रहल कि हम बियहकटवा डिक्लेयर हो जइतीं.’
‘का बेवकूफी बतियावत बाड़ऽ?’ दीपक कहलसि, ‘ई बिआह होखला से नीमन रहीत कि भलहीं तूं बियहकटवा डिक्लेयर हो जइतऽ, ई बिअहवा त रद्द हो जाइत.’
‘हम मामा से बतियवले रहनी मुनमुन के कहला पर कि एक बेर हमहूं चलल चाहत बानी लड़िका के देखे. बाकिर मामा कहलन कि सब ठीक बा. तिलका में चल के लड़िका देख लीहऽ. फेर हम धीरज भइया से बतियवनी त उनुकर कहना रहल कि रमेश भइया के पुरान मुवक्क़िल हवे. सब जानल पहिचानल बा, घबराए के कवनो बात नइखे. त हम का करतीं?’ जितेंद्र बोलल, ‘जब सगरी घर तइयारे रहल त हम अकेले का करतीं?’
‘तूँ रमेश से बतियवलऽ?’
‘ना. उनुका से बतियावे के हिम्मत ना पड़ल हमार.’
‘त एक बेर हमरा से कहले रहतऽ.’ दीपक बोलल, ‘तहरा का लागत बा कि ई सब जवन हो रहल बा मुनमुन का साथे ओकरा में हमहनो के बेईज्जति नइखे होखत? आखिर ममहर ह हमनी के. हमहन के देहि में ओहिजो के खून बा. ओह दूध के करजा बा हमनी पर. ई बाति तू भुला कइसे गइलऽ? हमहनो के कुछ जिम्मेदारी बनत रहल’
‘हँ, ई गलती त हो गइल भइया.’ जितेंद्र मूड़ी गोत के गँवे से कहलसि.
ओह रात दीपक के खाना नीक ना लागल. दिल्ली लवटलो पर बहुते दिन ले ऊ अनसाइल रहल. एक दिन ऊ अपना पत्नी से मुनमुन के समस्या बतियवलसि आ कहलसि कि, ‘तूंही बतावऽ का रास्ता निकालल जाव?’
‘उनुका घर में एक से एक जज, कलक्टर बइठल बाड़ें. ऊ लोग जब राह नइखे निकाल पावत त रउरा निकालब?’ ऊ कहलसि, ‘हमनी के अपने समस्याएं कम बा का?’
‘से त ठीक बा, बाकिर हमनियो के त कोशिश करिये सकीलें.’
‘चलीं सोचत बानी.’ कहि के दीपक के पत्नी सूत गइल.
बाकिर दीपक के नींद ना आइल. ऊ रमेश के फोन लगवलसि आ बतवलसि कि,‘पिछला दिने बांसगांव गइल रहीं. मुनमुन का बारे में जान के दुख भइल. तूं लोग आखिर सोचत का बाड़ऽ?’
‘हम त भइया कुछ सोचिये नइखीं पावत.’ रमेश बोलल, ‘हमनी में रउरा सबले बड़ हईं. रउए कुछ सोचीं आ रास्ता निकालीं. रउआ जवन आ जइसन कहब हम तईयार बानी.’
‘बाकिर तूं लोग अइसन बेवकूफी वाला बिआह कइसे करा दीहलऽ आँख मूंद के?’
‘अब त भइया ग़लती हो गइल.’
‘तहरा लोगन के पता बा कि मुनमुन के हसबैंड पी पा के जब-तब बांसगांव आ जाला आ मुनमुन अउर मामी के पीट-पिटाई क के, गाली गुफ्ता क के लवट जाला. जीयल मुश्किल क दिहले बा ओहिजा ओह लोगन के.’
‘अरे ई का बतावत बानी रउरा? ई त मालूमे ना भइल.’
‘अब सोचऽ कि तूं अब अपना घर के ख़बरो से बेख़बर बाड़ऽ. बूढ़ माई-बाप आ जवान बहिन कइसे रहत बावे लोग, एहसे तोहरा सगरी भाइयन के कवनो सरोकारे नइखे रहि गइल?’ दीपक बोलल, ‘भई ई त ठीक बात नइखे.’
‘का बताईं भइया.’ रमेश सकुचाइल बोलल, ‘देखत बानी.’
‘कम से कम तू त घर में सबका ले बड़ हउवऽ, तोहरा त ई सब सोचहीं के चाहीं.’ दीपक बोलल, ‘चलऽ मुनमुन के समस्या त बड़ बा, दू चार दिन में सलटावल संभव नइखे. बाकिर मामा-मामी के वेलफ़ेयर के इंतज़ाम त तोहरा लोगन के करहीं के चाहीं. समुझऽ कि ऊ लोग साक्षात नरक में जी रहल बावे. आ तोहरा लोगन के जियते जिनिगी में! कम से कम हमरा त ई बात ठीक नइखे लागत.’
बाकिर ओने से रमेश चुपे रहल. दीपके ओकरा के कउँचलन, ‘चुप काहे हो गइलऽ, बोलत काहे नइखऽ?’
‘जी भइया.’ रमेश धीरे से बोलल.
‘ना, हमार बात अगर नीक नइखे लागत त फोन राखत बानी.’
‘ना-ना. अइसन बात नइखे.’
‘त ठीक बा. सोचीहऽ एह बातन पर. आ हँ, मुनमुनो का बारे में.’
‘ठीक भइया. प्रणाम.’
‘ख़ुश रहऽ.’ कहि के दीपक फ़ोन रख दिहलन.
ऊ रमेश के एह सर्द बातचीत से बहुत उदास हो गइलसि. बाद का दिनन में दीपक धीरज आ तरुणो से एह बारे में बतियवलन. एहू दुनू के बातचीत में उहे बेरुखी आ ठंडापन देखत दीपक समुझ गइल कि अब मुनमुन के समस्या के समाधान सचहूं बहुत कठिन बा. एक दिन ऊ मुनमुन के फ़ोन कइलसि आ राहुल के फ़ोन नंबर मांग लिहलसि.
‘का एह तीनो भाइयन से राउर बात हो गइल बा राउर?’
‘हँ, हो गइल बा.’ दीपक टारत बतवलसि.
‘का बोलल ई लोग?’ मुनमुन जाने चहलसि.
‘ऊ सब बाद में बताएब, तू पहिले राहुल के नंबर दऽ.’ दीपक खीझिया के बोलल. .
‘लीं, लिखीं.’ कह के ऊ राहुल के नंबर आई.एस.डी. कोड समेत लिखवा दिहलसि. फेर दीपक राहुल के फ़ोन लगवलसि. राहुल कहलसि, ‘भइया प्रणाम. अबहीं गाड़ी ड्राइव कर रहल बानी. थोड़िका देर बाद हम खुद रउरा के फोन करत बानी.’ कहि के राहुल फोन काट दिहलसि.
दीपक परेशान हो गइल. बावजूद एह परेशानियन के ऊ मुनमुन के समस्या के समाधान चाहत रहुवे. ई समस्या ओकरा दिल पर बोझा बनि गइल रहल. ऊ जइसे एगो घुटन में जीयत रहल. ओकरा आँखिन का सोझा गहिराह धुंध रहुवे आ एही धुंध का बीचे में से ओकरा कवनो राह निकाले के रहल. दिल्ली के बेकार के भागदौड़ भरल जिनिगी आ एहिजा के आपाधापी से ऊ वइसहूं तनावे मे रहल. तवना पर से मुनमुन ओकरा दिलो-दिमाग़ पर सांघातिक तनाव बन के सवार हो गइल रहुवे. ओकरा बुझाए कि ओकरा दिमाग के नस फाट जाई. जब-तब तिल-तिल मरत मुनमुनो ओकरा सोझा ठाढ़ हो जाव आ पूछल करे, ‘भइया कुछ सोचनी हमरा बारे में?’
आ हर बार ओकरा लगे एकर कवनो जवाब ना रहत रहे.
ई का रहुवे?
बचपन में मामी के खिआवल पकवानन के कर्ज़?
आ कि ममहर के नेह आ माई के दूध के वेदना?
भा मुनमुनवा का साथे भइल अन्याय के प्रतिकार के जुनून?
आ कि ई सब कुछ एके साथ सतमेझरा हो गइल रहल? जवनो होखो ओकर जिनिगी गडमड हो गइल रहल. कुछ देर बाद राहुल के फोन आइल त ऊ राहत के सांस लिहलसि. राहुल बतावत रहुवे, ‘भइया राउर फोन पा के त हम भउँचक हो गइनी. पहिला बेर एहिजा राउर फोन आइल आ माफ करींं ओह बेरा हम रउरासे बतिया ना पवनी.’
‘कवनो बात ना, कवनो बात ना.’ दीपक कहलन.
‘आ भइया सब ठीक बा नू!’
‘राहुल अगर सब ठीके रहीत त तोहरा के फोन काहे करतीं भला?’
‘हँ, भइया बताईं का हो गइल?’
‘हम पिछला महीने बांसगांव गइल रहनी’
‘अच्छा-अच्छा.’ राहुल पूछलसि, ‘का हालचाल बा ओहिजा के?’
‘त तहरा कुछऊ नइखे मालूम?’
‘ना एतना ते मालूमे बा कि बाबू जी मुनमुन के विदा करवा के ले आइल बानी.’
‘बस!’
‘का कुछ अउर गड़बड़ हो गइल का?”
‘हो त गइल बा.’ कहि के दीपक ऊ सगरी बात राहुलो से कहलसि जवन ऊ रमेश, धीरज आ तरुण से कहले रहल.
राहुल पूरा बात सुनलसि आ परेशान हो गइल. बाकी तीनों भाइयन का तरह बेरुखी ना देखवलसि जबकि आई.एस.डी. काल के ख़र्चा रहल. तबहियों ऊ बोलल, ‘भइया मामला त बहुते गंभीर हो गइल बा. अगर राधेश्याम घरे आ के अम्मा अउर मुनमुन के पिटाई आ गाली गलौज करत बावे तब त बात अउर गंभीर हो गइल बा. रहल बात अम्मा-बाबू जी के वेलफ़ेयर के त ओने त हम जब तब रुपिया पठावते रहलीं. रउरा त जानते होखब कि मुनमुन के शादी में पूरा ख़रच लगभग हमरे करे के पड़ल रहुवे. उहे करजा उतारे में लागल बानी. आ हम सोचत रहीं कि भइया लोग ख़याल राखत होखी.’
‘देखऽ तोहार बहुत पइसा खरच हो रहल होखी फोन पर.’ राहुल के उत्सुकता देखत दीपक बोलल, ‘तू आपन मेल आई.डी. बतावऽ. हमनी का ओही पर बतियावल जाव भा तू याहू मैसेंजरो पर आके बतिया सकेलऽ. तब हमनी का सीधा आ इत्मीनान से बतिया पाएब सँ.’
‘हँ, भइया रउरा ठीके कहत बानी.’ कह कि ऊ आपन याहू आई.डी. लिखवा दिहलसि आ दीपको के आई.डी. लिख लिहलसि. आ कहलसि कि, ‘हमनी का अब नेटे पर बतियावल जाव.’
‘हँ, काहे कि बात लमहर बा आ मामिला गंभीर!’
‘ठीक भइया. प्रणाम!’ कह के ऊ फ़ोन काट दिहलसि.
राहुल से बतियवला का बाद दीपक, जे गहिरा डिप्रेशन में जात रहुवे, उबर गइल. ओकरा लागल कि अब कवनो ना कवनो रास्ता जरुरे निकल जाई. घुप्प अन्हार में कवनो रोशनी त लउकल. आ सचहूं दुसरके दिने राहुल के लमहर ईमेल दीपक के मिलल. राहुल विस्तार से सगरी बात बतवले रहुवे आ घर के प्लस-माइनस बतवले रहल. मनले रहल कि मुनमुन के साथ पूरा घर मिल के अनजानहीं में सही बाकिर अन्याय कर दिहले रहल, जवना में सबले बड़का दोषी ऊ खुद बा. ओकरा लागल कि पइसा खरचले ओकर जिम्मेदारी बा. घर बार आ वर देखहूं के ज़िम्मेदारी ओकरा निभावे के चाहत रहल जवन ऊ समय का कमी आ बाकी घरवालन पर भरोसा का चलते निभा ना पवलसि. फेर ऊ मुनमुन के दीहल एगो तर्को जोड़लसि कि बिआह से पहिले आदमी एगो कपड़ो खरीदेला त दस बीस कपड़ा देखला का बादे आ ठोक बजा के. आ हमनी का त मुनमुन के लाइफ़ पार्टनर तय करत रहनी सँ. आ तबहियों ना देखनी जा. जबकि मुनमुन लगातार अनेसा जतावत रहुवे आ सभका से चिरौरी करत रहुवे कि लड़िका के ठीक से देख-जांच लीहल जाव. बाकिर सभे एक दोसरा पर टार दिहलसि. आ मान लिहलसि कि बाबूजी देख लिहले बानी त सब ठीके होखी. शायद अति विश्वास आ संयुक्त परिवार में ज़िम्मेदारियन के एक दोसरा पर टार देबे के त्रासदी हउवे ई. फेर एगो लड़िका से मुनमुन के बढ़त मेल जोल एगो बड़हन दबाव रहल सभका पर जे ओकरा शादी में जल्दबाज़ी के कारण बन गइल आ सभे एगो ड्यूटी का तरह शादी शायद ना करावल, बस शादी के कार्रवाई निपटवलसि. ई केहू ना सोचल कि कहीं मुनमुन का साथे कवनो बेजाँय मत हो जाव. आ उहे हो गइल. त ऊ एही परिवार के ज़िम्मेदारी होखी आ जवन दाग लागी तवब सभका दामन पर लागी.
फेर राहुल अपना चिट्ठी में दीपक से एह बात पर बेहद ख़ुशी आ संतोष जतवले रहल कि हमनी का परिवार आ एह पीढ़ी में रउरा सभका से बड़ हईं आ रउरा एह तरह शिद्दत से जुड़ाव महसूस करत बानी त एह समस्या के कवनो सम्मानजनक समाधानो निकलबे करी. फेर ऊ सुझवले रहल कि ओकरा राय में मुनमुन के ससुराल में बातचीत क के ओकर सम्मानजनक ढंग से विदाई करवाईए के एह समस्या के सझूरावल ठीक रही. मुनमुन ओहिजा जा के अपना बिगड़ैल पति के सुधारियो सकेले. अइसन कई बेर देखलो गइल बा कि पत्नी का प्यार में बहुत सारा बिगड़ल लोगो सुधर गइल बा. बस कोशिश सकारात्मक होख के चाहीं.
राहुल के एह साफ़गोई, सुझाव आ परिपक्वता के कायल हो गइल दीपक आ रमेश के फोन कइलसि कि, ‘तनिका समय निकालऽ त बांसगांव चलि के मुनमुन के ससुराल वालन का साथे मिल बइठ के कवनो रास्ता निकालल जाव.’ रमेश सहमत हो गइल आ बोलल, ‘हम रउरा के बतावत बानी आ हम खुदही फोन करब.’
दीपक के लागल कि अब त बात बनिए जाई. कुछ दिन बादे रमेश के फोन आइल कि, ‘भइया हम मुनमुन के विदाई के दिन तय करवा दिहले बानी. रउरो फलां तारीख के चहुँपी आ विदाई संपन्न करवा दीं.’
‘चलऽ ई त बहुते नीक कइलऽ.’ दीपक बोलल, ‘बाकिर हमार चहुँपल त कवनो जरूरी बा ना. आ जब विदाई के दिन तये हो गइल बा त विदाई होइये जाई. हमरा अइला ना अइला से कवन फरक पड़े वाला बा ?’
‘फरक पड़ जाई भइया.’ रमेश बोलल, ‘हम मुनमुन के ससुराल वालन के विदाई ला राजी करवा लिहले बानी, अपना घरवालन के ना.’
‘त ओहू लोग के राजी करवा लऽ.’
‘कइसे राज़ी करवाईं?’ रमेश चिढ़ के बोलल, ‘मुनमुन कवनो हालत में जाए ला तइयार नइखे आ अम्मा ओकरा के शह देत बाड़ी. आ बाबूजी हमेशा का तरह तटस्थ हो गइल बानीं.’
‘ते फेर विदाई होखी कइसे?’ दीपक चिंतित होके बोलल.
‘कुछ ना भइया, रउरा आ जाएब त सब ठीक हो जाई.’
‘कइसे भला?’ दीपक आश्चर्य से पूछलसि, ‘हमरा लगे कवनो जादू के छड़ी बा का?’
‘हँ बा नू!’
‘का बेवक़ूफ़ी के बात करत बाड़ऽ?’
‘अरे भइया रउरा नइखीं जानत बाकिर हम जानत बानी कि राउर बात ना त मुनमुन टारी, ना अम्मा, ना बाबू जी. रउरा शायद नइखे मालूम कि हमरा घर में जतना स्वीकार्यता राउर बा शायद केहू दोसरा के नइखे. भगवान झूठ मत बोलवावसु आ माफ़ करसु त हम कहब कि शायद ओतना भगवानो के ना होखी.’ ऊ बोलल, ‘बस रउरा तय दिने चहुँप भर जाईं.’
‘भई हमरा त ई बात सही नइखे लागत.’ दीपक बोलल, ‘अगर मुनमुन के सहमति नइखे त हम नइखीं समुझत कि विदाई होखे के चाहीं.’
‘फेर?’ रमेश हताश हो के बोलल.
‘फेर का?’ दीपक बोलल, ‘पहिले त मुनमुनवे के समुझावल जरुरी बा. ऊ छोट हियऽ आ हमनी का बड़. ओकरा के समुझावल बतावल हमहन के धरम हवे. आ फेर ऊ वयस्क बिया, पड़ल-लिखल हियऽ, आपन नीक-बाउर बूझ सकेले. ओकर आपन जिनिगी आ आपन स्वाभिमान बा. तुहूं पढ़ल लिखल हउवऽ. एगो ज़िम्मेदार पद पर बाड़ऽ. केहू का साथे एह तरह के जोर-जबरदस्ती! भई हमरा त समुझ में नइखे आवत ना ही तोहरा के शोभा देत बा.’ ऊ बोलल, 'आ फेर ई मसला अतना नाजुक बा कि बहुत जल्दबाजिओ कइल हमरा ठीक नइखे लागत.’
‘कुछ ना भइया रउरा चहुँपी.’
‘अच्छा चलऽ हम चहुँप जाईं आ मुनमुन अउर मामी वग़ैरह हमरो बात ना मानल तब?’
‘तब का?’
राहुल के जबाब ओही दिन आ गइल. ऊ रमेश के गाली गलौज वाली भाषा पर हैरत जतवलसि आ अफ़सोस कइलसि. लिखलसि कि ओह लोग के मुनमुन का साथे एह तरह से पेश ना आवे के चाहीं. बाकिर अब ऊ लोग बड़ हवे से कुछ कहतो नइखे बनत. अम्मा बाबूजी के हाल सुन के ऊ दुखी भइल. बाकिर मुनमुन के फ़ोन हरदम स्विच आफ़ रहला का चलते ऊ बांसगांव बतियाइए ना पावत रहुवे. रहल बात मुनमुन के ससुराल से बतियावे के त एहसे नीमन का होखी? ऊ लिखलसि कि रउरा लगे कवनो पूर्वाग्रह नइखे, कवनो गांठ भा कवनो इगो नइखे रउरा लगे. रउरा बात करीं दुनु फरीक से. हमार मतलब बा कि मुनमुनो से आ मुनमुन के ससुरारियनो से. का मालूम कवन बात बन जावऽ, कवनो राह निकल जाव. दीपक दू एक दिन ले लगातार राहुल के चिट्ठी पर सोचत रहल. सोचत रहल कि ऊ करे त का? आखिरकार ऊ मुनमुन के ससुरारी फ़ोन कइलसि. मुनमुन के ससुर घनश्याम राय फ़ोन पर भेंटइलें. ऊ बहुत खुश भइलें कि, ‘अतना लमहर गैप का बाद केहू त बतियावे ला आगे आइल.’ कहलन, ‘ना त, हमहीं दू बेर गइनी आ बेइज़्ज़त हो के लवट अइनी.’
‘अइसन त नइखे.’ दीपक बोलल, ‘रमेश एह बीच त रउरा से विदाई के बाबत बतियवलहीं बा.’
‘हं-हं. फ़ोन आइल त रहुवे जज साहब के. बाकिर उहो भभक के बुता गइलन.’
‘मतलब?’
‘मतलब ई कि विदाई भइल ना आ ऊ कहत रह गइलन कि ई कर देब, ऊ कर देब.’
‘देखीं. बात अचानक विदाई के कइलो ठीक नइखे.’ दीपक बोलल, ‘पहिले जवन राह के रोड़ा बाड़ी सँ ओहनी के साफ कर लीहल जाव आ तब बात आगा बढ़ावल जाव.’
‘समझनी ना हम.’ घनश्याम राय तनिका बिदकत बोललन.
‘मतलब ई कि जवना कारणन से विदाई रुकल पड़ल बा भा रउरा किहां से मुनमुन के लवटे के पड़ल बा, पहिले ओह समस्यन के वाजिब हल ढूंढ लीहल जाव. समाधान हो जाव त फेर विदाई में कवनो समस्ये ना रही.’
‘देखीं दीपक जी, हमार मानना बा कि विदाई हो जाव त बाकी समस्या अपने आप हल होखे लगिहें स.’
‘ना हमरा समुझ से पहिले जवन कोर इशू बाड़ी सँ, जवन रुट कॉज बा पहिले ओकरा के सलटावल जाव.’
‘का बा रूट काज़? का बा कोर इशू?’ घनश्याम राय बिदक के बोललन, ‘रउरा त पाकिस्तानी मुशर्रफ का तरह बोलत बानी कि जइसे ऊ आतंकवाद पर ब्रेक लगावे का बजाय कश्मीर-कश्मीर चिल्लात रहन आ कोर इशू, रूट काज़ कश्मीर बतावत रहलन. रउरो वइसने बोलत बानींं. बताईं राउर कश्मीर, राउर रूट काज़, कोर इशू का बा?’
‘देखीं हमरे ना राउरे हवे कश्मीर, राउरे बावे रूट काज़ अउर कोर इशू. ’
‘मतलब?’
‘राउर बेटा राधेश्याम हवे कश्मीर. राधेश्याम के पियक्कड़ई हवे रूट काज़ आ ओकर बदतमीज़ी हवे कोर इशू. एकरा के निपटा लीं. सगरी समस्या के समाधान भइले समुझीं!’
‘कोशिश त हम करत बानी दीपक बाबू. ’ घनश्याम राय बोललन, ‘पर दोष अकेले हमरा बेटवे के नइखे.’
‘समझनी ना.’
'समझे के ई बा कि पहिले हमार बेटा पियक्कड़ ना रहुवे. बिआह का बाद, बलुक गवना का बाद जब बहू चल गइल त लोग ताना मारे लागल. किसिम किसिम के ताना. हमरे से लोग कहेला कि का घनश्याम बाबू राउर पतोहू भाग गइल का? त हम मुड़ी नवा दिलें. ऊ सुन ना पावे. फ्रस्ट्रेट हो जाला. फ्रस्ट्रेशन में पीए लागेला. बवाल करे लागेला. घरहूं में. बाहरो. त हम एही ले बार बार कहिलें कि विदाई हो जाई त सब ठीक हो जाई.’
‘चलीं. कुछ सोच विचार करत बानी फेर रउरा के फोन करऽतानी.’
‘ठीक बा दीपक बाबू. हम इंतजार करब रउरा फोन के.’ घनश्याम राय बोललन, ‘अरे दीपक बाबू एगो बात अउर कह दीं कि हमरा घर में रहे खातिर मुनमुन के आपन नौकरी छोड़े के पड़ी. आ एहमें कवनो तर्क-वितर्क ना. कवनो इफ़-बट ना. काहे कि हमार मानना बा कि ओकर ई शिक्षा मित्र के टुंटपुंजिया नौकरिए सगरी समस्या के जड़ बावे. इहे ओकर दिमाग खराब क के रखले बा. ना त हमरा घरे रहल रहीत त अबले बाल बच्चा हो गइल रहते सँ. ओही में अझूराइल रहीत. बगावत ना करीत एह तरह से. त कोर इशू इहो बावे.’
‘चलीं देखत बानी.’
‘देखत बानी ना ई फ़ाइनल बा.’
‘बिलकुल.’ कह के दीपक फ़ोन काट दिहलसि.
फेर बांसगांव फ़ोन लगवलसि. जवन हमेशा का तरह स्विच आफ मिलल. आखिरकार ऊ एगो एस.एम.एस. कर दिहलसि मुनमुन के कि बात करे. दोसरा दिने मुनमुन के मिस काल आइल. सुबह-सुबह. दीपक मार्निंग वाक का तइयारी में रहल तब. बाकिर ऊ तुरते मुनमुन के मोबाइल मिलवलसि. ई सोच के कि पता ना फेर कबले बंद मिलो. मुनमुन के घनश्याम राय से भइल सगरी बात बतवलसि आ पूछलसि कि, ‘तोहर राय का बा? आमने सामने एक बेर बतिया लीहल जाव?’
‘रउरो भइया पानी काहे पीटत बानी?’ मुनमुन बोलल, ‘हमरा नइखे लागत कि ऊ सुधरे वाला बा आ कवनो रास्ता निकल पाई.’
‘काहें? अइसन काहे लागत बा?’ दीपक पूछलसि.
‘अबहीं काल्हुए ऊ आइल रहुवे. गारी गुफ्ता कर के दरवाजा पीट के गइल. आ रउरा सुधार के उम्मीद करत बानी!’
‘देखऽ मुनमुन, उम्मीद पर दुनिया क़ायम बा. त हमहूँ एहिजा नाउम्मीद नइखीं.’ दीपक बोलल, ‘अतना सब भइला का बावजूद भारत-पाकिस्तान से बतिया सकेला त हमनियो के ओह लोग से काहे ना बतिया सकीं?’
‘बिलकुल कर सकीलें रउरा कहत बानी त.’ मुनमुन बोलल, ‘बाकिर भइया ई जान लीं कि बातचीत के बाद जवन नतीजा पाकिस्तान भारत के देला उहे नतीजा एहिजो ऊ सब दीहें.’
‘ठीक बा. चलऽ देखत बानी एक बेर बतियाइओ के.’
‘हँ, बाकिर ई बातचीत कवनो तेसर जगरा राखब. ना हमरा घरे बांसगांव में ना ओकरा घरे.’ मुनमुन बोलल, ‘आ हँ, इहो कि ऊ पी के मत आवे.’
‘ठीक बात बा.’ दीपक बोलल, ‘अच्छा एगो बात अउर. ऊ लोग चाहत बा कि तू ई शिक्षा मित्र के नौकरी छोड़ द.’
‘ई नौकरी त भइया हरगिज ना छोड़ब.’ मुनमुन बोलल, ‘इहे त एगो आसरा बा हमरा लगे जिये खातिर. इहे त एगो हथियार बा हमरा लगे आपन जंग लड़े खातिर.आ एकरे के छोड़ दीं?’
‘त एह टुंटपुंजिया नौकरी ला आपन पति आ घर-बार छोड़ देबू?’
‘टुंटपुंजिए सही. हवे त हमार नौकरी!’ मुनमुन बोलल, ‘अइसन अभागा पति खातिर हम आपन ई नौकरी ना छोड़ब. भतार छोड़ देब बाकिर नौकरी ना. हरगिज ना.’ मुनमुन पूरा सख़्ती से बोलल, ‘रउरा सभे चाहत बानी कि हम जीहीं आ आपन पंख काट लीं. जेहसे अपना खाए ला उड़ियो के दानो ना ले आ सकीं. माफ करीं भइया हम अइसन ना कर पाएब. जान दे देब बाकिर नौकरी ना छोड़ब. इहे त हमार स्वाभिमान बा.’
‘ठीक बात बा.’ दीपक बोलल, ‘बाकिर मुनमुन एगो बात बताईं कि तनिका नव गइला में कवनो नुकसन नइखे.’
‘केकरा सोझा?’
‘अपना पति आ ससुराल का सोझा.’
‘रउरो नू भइया!’
‘देखऽ मुनमुन, जवन औरत अपना पति का सोझा ना झुके ओकरा आगे चल के सगरी दुनिया का सोझा झुके के पड़ेला. आ बार बार झुके के पड़ेला.’
‘का भइया!’ ऊ बोलल, ‘चाहे जवन हो जाव हम नइखीं झुके वाला केकरो सोझा.’
‘चलऽ ठीक बा. बाकिर एक बेर हमरा बात पर सोचीहऽ जरुर.’ कह के दीपक फ़ोन काट दिहलन.
मुनमुन के बात पर ऊ चिंता में पड़ गइल. ई एगो नया बदलाव रहुवे. अगिला दिने धीरज के फ़ोन मिलवलसि. संजोग से धीरज फ़ोन उठा लिहलन. दीपक अबले रमेश, राहुल, मुनमुन, घनश्याम राय से भइल बातचीत के डिटेल्स देत ओकरा के बतवलसि कि, ‘एगो फ़ाइनल बातचीत आमने सामने के होखे के बा, आ हम चाहत बानी कि एह मौका पर तुहूँ रहऽ त अच्छा रही.’
‘ठीक बा भइया. हम रह जाएब बाकिर बातचीत के ज़िम्मा रउरे सम्हारब.’
‘ठीक बा. बस तू आ जा.’ कहि के दीपक धीरज के फ़ोन काट के घनश्याम राय के फ़ोन लगवलसि. आ कहलसि कि, ‘भई देखीं. अगिला महीना के दुसरका अतवार का दिने हमनी का बतियावे ला मिलल जाई. बातचीत में मुनमुन आ ओकर अम्मा बाबू जी, धीरज आ हम रहब. आ रउरा अपना तरफ से राधेश्याम आ उनुका मम्मी के ले के आएब. ई बातचीत ना त रउरा किहां होखी ना बांसगांव में. ई होखी कौड़ीराम के डाक बंगला में. आ हँ, राधेश्याम के समुझा लेब कि पी के ना अइहें.’
‘ठीक बा दीपक जी. अइसने होखी बाकिर अबकी बात फाइनल हो जाए के चाहीं. आ जे कहब त एगो वकीलो लेले आएब. फेर जवन फैसला होखी तवना के स्टैम्प पेपर पर दर्ज कर लीहल जाई. जेहसे कि रोज रोज के चिक-चिक ख़तम हो जाव.’ घनश्याम राय बोललन.
‘ई बताईं कि पारिवारिक बातचीत में वकील आ स्टैम्प पेपर के बात कहां से आ गइल भला?’ दीपक बिदक के बोलल.
‘अब बात पारिवारिक कहां रहल?’ घनश्याम राय बोललन, ‘बात पारिवारिक होखीत त अबले विदाई हो गइल रहीत. बात पारिवारिक रहीत त रउरा बीच में ना आवे के पड़ीत.’
‘घनश्याम जी रउरा भूलात बानी कि हमहूं परिवारे के हईं. परिवार से इचिको बहरा के ना हईं. ममहर ह हमार. हमरा देह में दूध आ खून ओहिजो के बा.’
‘ममहर हऽ राउर दीपक बाबू! रिश्तेदारी भइल. घर ना. ओहिजा के विरासत रउरा ना मुनक्का राय के लड़िका सम्हरिहें.’ घनश्याम राय तल्ख़ हो के बोललन, ‘का मुनक्का राय के लड़िका चूड़ी पहिन रखले बाड़ें जे अब रउरा बतियावे के पड़त बा?’
‘घनश्याम जी रउरा बात में मसला सलटावे का जगहा अझुरावे के गंध आ रहल बा. माफ करब अइसे त हम बाते ना कर पाएब. ना ही आ पाएब.’
‘मामला सलटावहीं खातिर ई सब करे के कहत बानी दीपक बाबू.’ घनश्याम राय बोललन, ‘बाकिर रउरा त नाराज हो गइनी. आ जे रउरा एकरा के पारिवारिक मामिला बतावत बानी ऊ सचहूं पारिवारिक मामिल रह कहां गइल बा? समाज में त हमार पगड़ी उछल गइल बा. आ बांसगांव में?’ ऊ तनिका रूक के बोललन, ‘बांसगांव में आदमी-आदमी का ज़बान पर बावे मुनमुन के किस्सा. विश्वास ना होखे त कवनो पान वाला, खोमचा वाला, ठेला वाला से जा के पूछ लीं. आँख मूंद के बता दी. आ रउरा तबहियों कहब कि मामला पारिवारिक बा?’
‘हं, बावे त ई मामला पारिवारिके. आ परिवारे का स्तर पर मामला सलटावल जाई.’ दीपक बोलल, ‘आ अगर रउरा लागत बा कि हम बाहर के हईं त चलीं हम अपना के एह बातचीत से अलग कर लेत बानी. हम ना आएब. सिर्फ धीरजे जइहें.’
‘अरे तब त ग़ज़ब हो जाई!’ घनश्याम राय बोललन, ‘रउरा जरुरे आईं. ना त धीरज बाबू होखसु चाहे रमेश बाबू ई लोग त हरदम अइसे बतियावेला जइसे कवनो आदेश लिखवावत होखो. डिक्टेशन दे देबेलें आ मामला खतम. अगिला पक्ष के बाते ना सुनसु.’
‘बाकिर रउरा हिसाब से त हम बाहरी आदमी हईं.’
‘हईं त बाकिर रउरा आईं परिवारे के बन के जेहसे ई झंझट खतम होखो.’
‘चलीं ठीक बा.’ दीपक खीझियात बोलल, ‘बाकिर कवनो वकील ना, कवनो स्टैम्प पेपर ना.’
‘ए भाई, ई त रउरो डिक्टेशन देबे लगनी.’ घनश्याम राय बोललन, ‘रउरो मास्टर हईं, हमहूं मास्टर हईं. हमनी का त मास्टरे लेखा बतियावल जाव. अधिकारियन लेखां ना.’
'घनश्याम जी हम प्रोफ़ेसर हईं मास्टर ना जइसन कि रउरा समुझत बानी.’
‘चलीं प्रोफ़ेसर साहब अब राउर लेक्चरे सुन लेते बानी डिक्टेशन का जगहा.’ घनश्याम राय बोललन, ‘बाकिर बातचीत में कवनो सुलहनामा त करहीं के पड़ी. भले सादे कागज पर कइल जाव. आ हँ, एक बात अउऱ जे हम पहिलहूं कह चुकल बानी कि हमरा घर में रहे खातिर मुनमुन के आपन नौकरी छोड़े के पड़ी.’
‘चलीं, कवनो रास्ता निकली त इहो देख लीहल जाई.’ दीपक कहलन, ‘त हमनी का ओह दिन, दिन के 11-12 बजे मिलल जाव.’
‘जइसन राउर हुकुम प्रोफ़ेसर साहब!’
‘ओ.के. घनश्याम जी!’ कह कर दीपक फ़ोन काट दिहलन.
फेर मुनमुन आ धीरज के तारीख़, समय अउर जगह के सूचना देत एस.एम.एस. कर दिहलन. धीरज के एगो एस.एम.एस. अउर क दिहलन कि ऊ कौड़ीराम के डाक बंगला ओह दिन ला आरक्षित करवा ले. बाद में धीरज के त कन्फर्मेशन आ गइल बाकिर मुनमुन के कवनो जबाब ना आइल.
मुलाकात के दिन समय जगहा तय हो गइला का बाद जब दीपक अपना पत्नी से ई सब बतावत घनश्याम राय के वकील, स्टैम्प पेपर आ सुलहनामा वाली तफ़सील बतवलन त पत्नी बोलल, ‘तब त ई आदमी बहुते काइयां हवे आ डरपोको.’
‘मतलब?’
‘ऊ एके तीर से दू गो निशाना साधत बा.’
‘का मतलब?’
‘पहिला काम ऊ ई कइल चाहत बा कि विदाई के मामला आन रिकार्ड आ जाव. जेहसे आगे चल के कभी बात बिगड़े त मुनमुन के परिवार दहेज वाला मुकदमा लिखवावे त ओकरा में जमानत के आधार बन जाव कि मामला दहेज के ना विदाई के बा. दूसरे विदाई ना भइल त ऊ एही आधार पर तलाक के केस फाइल कर दी.’
‘बड़ धूर्त बा सार!’ दीपक खीझिया के बोलल.
‘रउरा असल में हर मामला भावुकता में ले लिहिलें. आ ई मामला भावुकता वाला नइखे लागत हमरा. अब ई दांव-पेंच वाला मामला बन गइल बा. अब ऊ दहेज विरोधी मुकदमा से बाचे आ तलाक के आधार बनावे में लाग गइल बा.’ दीपक के पत्नी बोलली, ‘अब ऊ मुनमुन नाम के झंझट से छुटकारा पावल चाहत बा.’
‘त अब का कइल जाव?’ दीपक माथा पकड़ के बोलल.
‘कुछ ना. हमार मानीं त अबहीं जाए-वाए के कार्यक्रम कैंसिल कर दीं. ना त यश मुश्किल से मिलेला आ अपयश बहुते जल्दी.’ दीपक के पत्नी बोलली, ‘कुछ दिन ला मामला अइसहीँ लटकले छोड़ दीं. भुला जाईं सब कुछ. ठीक होखे के होखी त अपने आप सब ठीक हो जाई. समय बहुते कुछ करवा देला. ना त अबहीं हड़बड़ी में ऊ तलाक़ के ग्राउंड बना के तलाक़ के मुक़दमा दायर कर दी आ ठीकरा रउरा कपारे फूटी कि रउरा तलाक करवा दिहनी.’
‘एतना जल्दी तलाक़ मिलेला का कहीं हिंदू विवाह में?’
‘दुनू फरीक तइयार हो जाव त मिलियो जाला.’
‘त?’
‘कुछ ना. सब कुछ भुला के सूत जाईं.’
दीपक की पत्नी बोलली बाकिर दीपक सूतला का बजाय जा के कंप्यूटर पर बइठ गइल. नेट कनेक्ट कइलसि आ राहुल के सगरी बात का मद्देनज़र तफ़सील में एगो चिट्ठी लिखलसि. बतवलसि कि तनी कुछ दिन शांत रह गइले ठीक होखी. दोसरा दिने राहुल के संक्षिप्त आ हताशा भरल चिट्ठी आइल. लिखले रहल कि, ‘जइसन रउरा ठीक समुझीं.’ आ ओही दिने मुनमुन के मिस काल आइल. दीपक तुरते फ़ोन लगवलसि. मुनमुन ओने से एकदम अगिया बैताल बनल रहुवे, ‘भइया रउरा समझौता के बात करत बानी आ ऊ दुष्ट एहिजा रह रह के खुराफात करत बा, आजुओ फेरु आइल रहुवे.’
'के? राधेश्याम?’
‘हँ, हम त रहनी ना. स्कूल गइल रहीं. बाबूजी कचहरी में रहनी. ऊ अम्मा के अइसन पिटाई कइलसि कि मुंह फूट गइल, हाथ में फ्रै़क्चर हो गइल. एगो पड़ोसन बचावे आइल त ओकरो के पीट दिहलसि. उनुकरो गोड़ टूट गइल. बताईं अब का करी?’ ऊ बोलल, ‘मन त करत बा कि जाईँ अबहियें ओकरा के गोली मार दीं!’
‘गोली कइसे मरबू?’
‘अरे भइया बांसगांव में रहिलें. कट्टा खुले आम मिल जाला. जवना के रउरा लोग इंगलिश में कंट्री गन कहीलें.’
‘का बेवक़ूफ़ी बतियावत बाड़ू!’ दीपक बोलल, ‘ई सब कइला के जरुरत नइखे तोहरा.’
‘त?’
‘हमहीं कुछ करत बानी.’
‘चलीं कर लीं रउओ!’
‘कुछ अंट शंट मत करीहे मुनमुन. हम तोरा के बाद में फोन करत बानी. फोन का एस.एम.एस. करत बानी.’
‘ठीक बा भइया, प्रणाम.’
दीपक तुरते घनश्याम राय के फ़ोन लगवलसि. उनकर पत्नी फोन उठवली आ बतवली कि, ‘राय साहब त बहरा गइल बानी. रात ले आएब.’
‘आ राधेश्याम?’
‘हँ, ऊ त बा.’
‘तनिका बात कराईं ना?’
‘रउऱा के बोलत बानी?’
‘हम दिल्ली से दीपक राय हईं.’
‘रुकीं बोलावत बानी.’ कहि के ऊ राधेश्याम के आवाज़ दिहली, ‘देखऽ दिल्ली से कवनो फ़ोन आइल बा.’ थोड़ देर में राधेश्याम आइल. बोलल, ‘हलो के बोलत बा?’
‘हम दिल्ली से दीपक राय बोलत बानी.’
‘के हउवऽ? का काम बा?’
‘मुनमुन हमार ममेरी बहिन हीयऽ.’
‘अच्छा बोलऽ!’ ऊ भड़कत कहलसि, ‘का तुहूं ओकर आशिक हउव?’
'का बेवक़ू़फ़ जस बोलत बाड़ऽ?’ दीपक चिढ़ के बोलल, ‘बतावत त बानी कि हमार बहिन हीय.’
‘अच्छा त बोलऽ.’ कहि के राधेश्याम माई बहिन दुनू गारी दिहलसि.
‘देखऽ गरियाव मत!’
‘चलऽ नइखीं गरियावत. अब बोलऽ.’
'ई बतावऽ कि आए दिन बांसगांव जा के तूं गाली गलौज आ मार पीट काहेें करत बाड़ऽ?’
‘शौक़ ह हमार. हमरा नीमन लागेेला. तोहरा से मतलब?’ कहि केे फेेर ऊ गारीयन केे बौछार कर दिहलसि.
‘तू अबहियों पियले बाड़ऽ का?’
‘तोहरा ओहसेे मतलब?’ गरियावत राधेश्याम बोलल, ‘तोहार बाप पियवलेे बा का?’
‘ओ़फ़ तोहरा सेे त बतियावले मुश्किल बा.’
‘त मत करऽ.’
‘तोहरा मालूम बा कि तोहरा हरकत केे पुलिस मेें रिपोर्ट कइल जा सकेेला. तूं गिरफ्तारो हो सकेेलऽ?’
‘अबहिये कुछ दिन पहिले ऊ तेलिया मुनमुन के महतारी केे पटक के मरलसि आ ओकर जनल ओह तेली के कुछ कर ना पवलेे त सार हमार का कर पइहें!’ ऊ फेर चार गो गारी बकलसि आ बोलल, ‘तोहरो जवन उखाड़े के होखे उखाड़ लऽ.’
‘तूं त सचहूं बहुतेे बदतमीज़ बाड़ऽ.’
‘हँ, बानी आवऽ हमार नोच लऽ.’
‘ओ़फ़!’ कहि के दीपक फ़ोन काट दीहलन. कुछ देर अनमनाइल रहला का बाद फेेरु दुबारा घनश्याम राय का घरे फ़ोन मिलवलन. अबकी उनुकर बेेटी फोन उठवलसि.
‘बेटी तनी अपना मम्मी से बात करा देबू?’
‘हां, अंकल होल्ड कीजिए!’ थोड़ देर बाद मम्मी फ़ोन पर अइली त दीपक आपन परिचय देत कहलन कि, ‘अबहीं राधेश्याम जवन गारी हमरा केे दीहलन सेे त रउरो सुनलहीं होखब.’
‘भइया इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पढ़ल हऽ.तनिका गरियाइए दिहलसि त का भइल?’
'अरे माई होइओ केे रउरा ई का कहत बानी?’
‘ठीक कहत बानी!’
'रउरा मालूम बा कि ऊ बांसगांवो जा के गाली गलौज आ मारपीट करेला?’
‘करत होखी.’ ऊ बोलली, ‘ऊहो लोग त विदाई नइखे करत. कतना बेइज़्ज़ती हो रहल बा हमरा ख़ानदान के.’
‘इज़्ज़त बड़लो बा का राउर आ रउरा खानदान केे?’ दीपक भड़क गइलन.
‘अब एकर जबाब रउरा केे त राधेश्याम आ हमार राय साहबे सकेेलेें. हम त औरत हई. रउरा शोभा नइखे देत ई पूछल हमरा सेे. मरदन सेे पूछीं.’ ऊ तनिका देेर रुकली आ भड़क के बोलली, ‘बोला देत बानी राधेश्याम केे. उहे रउरा केे हमरा खानदान केे इज्जत कतना बा बता दी!’
दीपक फ़ोन काट दीहलन. ऊ बूझ गइलेें कि इनारे में भांग घोराइल बावेे. केेहू से बतियावल दीवार पर सिर मारल बा, तबो ऊ राधेश्याम के गारीयन से बहुतेे आहत हो गइल रहल. ऊ राहुल के एगो लमहर ईमेेल लिखलन आ बता दीहलन कि, ‘एह प्रसंग का बाद हम मुनमुन मामला से अपना केे पूरा सेे अलगा करत बानी.’ साथ ही ऊ राहुल से अफ़सोसो जतवलसि कि, ‘बहुत चहला का बावजूद ई मसला सझुराए का जगहा अउरी अझूरा गइल बा. अफ़सोस कइला का अलावे हम करिए का सकीलेें. तूं छोट हउवऽ तबहियों तोहरा सेे माफी मांगत बानी.’
राहुलो केे लमहर जबाब आइल आ पूरा खदकल. ऊ दीपक से राधेश्याम केेे गारीयन ला माफी मंगलसि आ लिखलसि कि, ‘ई राउरे ना, हमहन सभकर अपमान बा.’ ऊ लिखले रहल कि मेल पढ़ला का बाद पहिला काम ऊ मुनमुन केे ससुराल फ़ोनेे करेे के कइलसि. त राधेश्याम के महतारी ओकरो से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी सेे पढ़ल होखला के गौरव गान गवली त राहुल उनुका से कहलसि, ‘राउर बेेेटा त इलाहाबाद यूनिवर्सिटी केे टुंटपूंजिया आ फ़र्ज़ी पढ़ाई कइले बावेे जवना केे कवनो मतलब नइखेे. हमार दीपक भइया दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाइलें आ प्रोफ़ेसर हईं.’ त राधेश्याम केे माई बोलली कि, ‘इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बड़ त ना नू हवेे दिल्ली यूनिवर्सिटी. ’ राहुलो एह बात केे अख्खड़ जबाब देे दिहलसि. ऊ लिखलसि कि, ‘ऊ जबाब अतना अख्खड़ आ लंठई भरल रहुवेे कि ओकरा केे हम रउरा केे बताईए ना सकी’
एगो छोटहन जबाब मेें दीपक लिखलन कि, ‘जवन बीत गइल, तवन बात गइल. बहुत भावुक होखला के जरुरत नइखे. हँ, मसला कइसे सलटे आ कवन कवन राह निकल सकेेला एह पर सोचला केे जरुरत बा.’ दीपक के अधिका जोर विकल्प पर रहुवे आ ऊ इशारा करत साफ संकेेत दे दीहलन कि मुनमुन केेे दोसर बिआह का बारे मेें सोचे के चाहीं. आ तर्क दिहलेे रहलन कि, ‘ओकर शादी गलत त होइए गइल बा. आ जब हमनी का राधेश्याम आ ओकरा परिवार केे बात फोनो पर बरदाश्त नइखीं कर पावत त ऊ बेचारी ओहिजा जा केे रहबो करे त कइसे भला?’
बाकिर काहें ना काहेे राहुल दीपक के एह मेल केे जबाब ना दिहलसि. पी गइल एह मेेल केे. शायद ओकरा नीक ना लागल मुनमुन के दोसर बिआह करावे केे सलाह. बाकिर दीपक से राधेश्याम के गारी गलौज करे केे बात ऊ रमेश, धीरज, तरुण, मुनमुन, आ अम्मा बाबू जी सभका के जरुर बता दिहलसि. आ सभेे दीपक के फोन करि केे एह बाति पर अफ़सोस जतावल. राहुल घनश्यामो राय के फोन करि केे एहपर सख्त एतराज जतवलसि आ उनुका केे बतवलसि कि, ‘दीपक भइया हमनी सब में सिर्फ़ बड़े ना हमहन के आन आ मानो हईं. राधेश्याम केे हिम्मत कइसेे भइल उनुका सेे गालीगुफ्ता करेे केे? आ फेर जेे इहे रवैया रहल त हमनी के रिश्ता खतमेे समुझीं आ नतीजा भुगते ला तइयार रही.’ ऊ आगा जोड़लसि, ‘ईंट से ईंट बजा देब जा रउरा राधेश्याम के आ रउरा पूरा परिेवार के.’ राहुल के एह धमकी से घनश्याम राय डेेरा गइलन. ऊ राहुल से त माफी मंगबे कइलन दीपको केे खुद फोन करि के राधेश्याम के व्यवहार ला माफ़ी मंगलन. गनीमत रहल कि ऊ फोन पर रहलन, ना त सोझा रहतन त गोड़ पकड़ लेतेें. राहुल घनश्याम राय के डपटत कहलसि कि, ‘राधेश्याम के समुझा लीं. ना त अब अगर ऊ बांसगांव जा केे हमनी केे अम्मा बाबू जी भा मुनमुन से बदतमीज़ी कइलसि त ओकर खैर ना रही.
घनश्याम राय राधेश्याम के गोड़ ध केे समुझवलन, ‘अब मत जइहऽ बांसगांव बवाल काटे, ना त बड़हन बवाल हो जाई.’ राधेश्याम तब त मान गइल, बाकिर कब लेे मानीत भला? ओह दिन मुनमुन अम्मा के हाथ के प्लास्टर कटवा के घरे लेे आइल रहुवेे. आंगन में बइठल अम्मा के हाेथ के सिंकाई करत रहुवेेे जब झूमत झामत चहुँपल रहल. मुनमुन ओकरा के देख के अइसे मुसुकाइल जइसेे ओकरे पेेड़ा जोहत होखे. बोलल, ‘ले जाए आइल बानीं?’
‘हँ, चल तुरते.’ कहत राधेश्याम गारी के बरसात कर दिहलसि.
‘बेेसी इतरइला के जरुरत नइखे.’ मुनमुन राधेश्याम के गारियन के इंगित करत बाकिर इतराइल अंदाज में मुसुका केे बोलल, ‘चलीं. चलतेे बानी अब की. रउरो का कहब!’
‘आ गइले नू लाइन पर.’ कहत राधेश्याम फेर ओकरा केे महतारी के गारी सेे नवाज़ दिहलसि.
‘हँ, का करतीं!’ मुनमुन फेरू इठलात बोलल, ‘आवहीं के पड़ल!’
‘त चल!’
‘कपड़ा त बदल लीं?’ मुनमुन बइठले-बइठल इठलाईल, ‘कि अइसहीं चल दीं?’
‘चल, बदल ले!’ राधेश्याम अकड़ केे बोलल.
‘रउरा बहरी ओसारा मेें बइठीं. हम अबहियें कपड़ा बदलि केे आवत बानी.’
‘बाकिर बेटी!’ मुनमुन के अम्मा तड़पड़इली.
‘कुछ ना अम्मा, अब हम जाएब. जाए द हमरा के.’ मुनमुन फेेर राधेश्याम का तरफ मुड़ के बोलल, ‘रउरा बहरा बइठीं ना!’
‘बइठत बानी. जल्दी आव.’
गरज के राधेश्याम अइसे बोलल जइसे ऊ दिल्ली जीत लिहलेे होखो. फेर बाहर निकल केे ओसारा में बइठ गइल. कवनो गाना गुनगुनावत. ऊ बहरी ओसारा में बइठल गुनगुनावते रहल जब पाछा सेे एगो लाठी लिहलेे मुनमुन आइल आ राधेश्याम के कपार पर निशाना साधत तड़ातड़ लाठी से मारेे लागल. अचकेे मिलल लाठी केे चोट सेे ऊ अकबका गइल. ओकर कपार फूट गइल आ लागल खून बहे. तबहियों ऊ कुर्सी सेे उठत गारी बकत तेजी सेे पलटल आ मुनुमुन ओरी लपकल. बाकिर तब लेे मुनमुन ओकरा गोड़ के साधत लाठी चला दिहलेे रहल. ऊ लेड़खड़ा के गिर पड़ल आ लागल जोर जोर सेे चिचियाए. अतना कि रास्ता सेे जात राहगीर रुक गइलेें. अड़ोसी पड़ोसी जुट गइले. मुनमुन के अम्मा घर में से बाहर आ गइली. बाकिर मुनमुन रुकल ना, ना ही ओकर लाठी बरजल. ऊ मारते रहल. राधेश्याम छटपटात चिचियात रहुवेे, ‘बचावऽ-बचावऽ हमरा के ना त ई हमरा के मुआ दीही.’ दू एक जनेे राहगीर लपकलेें ओकरा के बचावेे ला बाकिर पड़ोसी रोक दिहलेें. मुनमुन मारत गइल लाठी सेे राधेश्याम के आ ऊ हाथ जोड़लेे रहम के भीख मांगत रहल. फ़रियाद करत रहल, ‘तोहार पति हई, तोर सोहाग हईं.’
‘पति ना, तूं पति का नाम पर कलंक हउवऽ.’ हांफत मुनमुन बोलतो रहल आ हीक भर के ओकरा के पीटतो रहल. ऊ चिचियात रहल, ‘तेें धोखा कइलिस हमरा साथ. धोखा सेे पाछा सेे वार कइलिस!’
‘तूं आ तोहार बाप धोखा करेे त ठीक, हम करीं त धोखा!’ मुनमुन हांफत आ ओकरा के मारत बोलल. ऊ तब लेे मारत गइल, जबले ऊ अधमरू ना हो गइल. आखिरकार राधेश्याम मुनमुन के गोड़ छान लिहलसि आ बोलल, ‘माफ़ कर दऽ मुनमुन, हमरा के माफ कर दऽ.’ मुनमुन के दरवाज़ा पर ई उहेे ठाँव रहल जहवां द्वारपूजा में मुनमुन के बाबू जी राधेश्याम के गोड़ धोवलेे रहलन. भलहीं बरसात का चलतेे ताखा पर. आ आजु ओही जगहा खून आ धूरा में सनाइल पिटाई से लथपथ राधेश्याम मुनमुन के गोड़ पकड़ के अपना जान के भीख मांगत रहल. द्वारपूजो बेरा भीड़ रहल, बारात के. आजुओ भीड़ रहल, बांसगांव के. जे जहँवेे सुनल तहँवेे सेे धावत आइल. बाकिर मुनमुन केे रोकल केहू ना. आ मुनमुनवो रहल कि रुकल ना. रुकल तब जब बाबू जी रोकलन. हँ, ई ख़बर जब कचहरीओ में चहुँपल त मुनक्का राय भागत-भागत घरेे अइलन. मुनेमुन के हाथ पकड़ ओकरा केे रोकत बोललन, ‘एह अभागा केे मारिए देबे का?’
‘हँ, बाबू जी, आजु एकरा केे मारिए देबेे दी!’
‘काहेें विधवा हो के जेल जाइल चाहत बाड़ू?’ मुनक्का राय बोललन, ‘आख़िर तोहार सोहाग हऽ!’
‘सोहाग?’ कहत मुनमुन अइसन मुंह बनवलसि जइसे कवनो कड़ुआ चीझु आ गइल होखो मुँह मे. आ राधेश्याम के मुंह पर ‘पिच्च’ से थूकत बोलल, ‘थूकत बानीं अइसन सोहाग पर जवन हमार जिनिगी जहन्नुम बना दीहलस.’ आ फेरु एक लात ऊ राधेश्याम के चूतड़ पर लगा दिहलसि. मुनक्का राय पलट केे भीड़ ओरी देखलन त देखलन कि ख़ामोश खड़ा भीड़ में अधिकांश लोगन का आँखिन में मुनमुन खातिर बड़ाई के भाव रहल. ऊ मन ही मन मंद मंद मुसुकइलन आ बहुतेे गर्व सेे मुनमुन के भर आंख देखलन आ भीड़ का तरफ़ पलटत बोललें, ‘एह नालायक के केहू एहिजा सेे उठा केे लेे जा भाई! कि अइसहीं तमाशा देखत रहब सभेे?’
बाकिर केहू राधेश्याम के उठावेे ला सामने ना आइल. उलुटे सब लोग ओसारा में आ बइठल मुनमुन के घेर लीहल. एगो पड़ोसिन बोलल, ‘वाह मुनमुन बिटिया वाह! ई काम तोहरा बहुतेे पहिलहीं क लीहल चाहत रहुवेे. जीअल हराम क दिहले रहुवेे. जबे मन करेे आ केे दरवाज़ा पीट-पीट के गरिया जात रहल. हमनी का ई सोच के चुपा जात रहीं कि वकील साहब के दामाद ह. बाकिर अइसन पियक्कड़ आ बदतमीज़ आदमी के इहे दवाई ह.’
फेर एक एक कर के सभेे मुनमुन के एह काम के कसीदा पढ़ल. ओनेे राधेश्याम ज़मीन पर पटाइल दरद आ अपमान से छटपटात रह. थोड़ देर बाद ऊ भीड़ में एक आदमी के इशारा सेे बोलवलसि आ कहलसि कि, ‘कवनो रिक्शा भा टैम्पू बोलवा दीं.’
‘हम ना बोलाएब.’ ऊ आदमी मुंह पिचका के बोलल, ‘एहिजे मुअऽ!’ भीड़ गँवेे-गँवेे छंटे लागल. मुनक्का राय, मुनमुन आ ओकर अम्मो घर में जा केे भीतर सेे दरवाज़ा बंद क केे बइठ गइल. थोड़ देर बाद पुलिस मुनक्का राय के घर का दरवाज़ा खटखटवलसि. दरवाज़ा मुनक्का राय खोललन.
पूछलन, ‘का बात बा?’
‘कवनो वारदात भइल बा एहिजा ?’ दारोगा पूछलन.
‘ना त.’
‘सुनात बा कि कवनो मारपीट भइल बा?’
‘हँ, हँ. एगो पियक्कड़ आ गइल रहुवेे.’ मुनक्का राय तनिका रुक के बोललन.
‘अच्छा-अच्छा!’ दारोगा पूछलन, ‘त रिपोर्ट लिखवाएब?’
‘ना. हमरा त नइखेे लिखवावेे केे.’ मुनक्का राय बोललन, ‘ऊ पियक्कड़ लिखवावल चाहे त लिख लीं!’
‘ऊ बा कहा?’
‘केे?’
‘ऊ पियक्कड़?’
‘हमरा का मालूम?’
पुलिस चुपचाप चल गइल. बाकिर बांसगांव चुप ना रहल. बांसगांव के सड़कन पर मुनमुन के चरचा रहल. मुनमुन के बहादुरी के चरचा. पान का दुकान पर, मिठाई का दुकान पर आ कपड़ा केे दुकान पर. परचून के दुकान आ शराब के दुकान पर. चहुं ओर मुनमुन, मुनमुन, मुनमुन! सांझ होखत-होखत एगो पान वाला बाक़ायदा वीर रस में गावत रहल ई मुनमुन कथा, ‘ख़ूब लड़ी मरदानी यह तो बांसगांव की रानी है. ’ फेेर गँवेे-गँवेे जेनिए देेेखीं तेेनिए, ‘ख़ूब लड़ी मरदानी यह तो बांसगांव की रानी है!’ पूरा बांसगांव के जु़बान पर आ गइल. अगिला दिने जब ई स्लोगन केे बात मुनक्का राय ले चहुँपल त ऊ मंद-मंद मुसुका के रह गइलन. वीर रस के ई स्लोगन चहुँपावे वाला लोग रमेश, धीरज आ तरुणो ले ई बात फ़ोन सेे चहुँपा दीहल. आ तिसरका दिने त एगो लोकल अखबार पूरा घटना बिना केहू के नाम लिहलेे, एगो औरत, एगो पति करि के ख़ूब ललकार के छाप दिहलसि. रमेश आ धीरज बाबू जी केे फ़ोन क के एह घटना पर अफ़सोस जतवले आ कहलें कि, ‘एकरा केेे बेसी तूल ना देबेे केे चाही. एहसेे हमनियो केे बदनामी होखी!’
‘जब तोहरा बहिन आ महतारी केे ऊ नालायक पीटत रहल तब बदनामी ना होखत रहुवेे का कि अब बदनामी हो रहल बा?’ कहत मुनक्का राय दुनू बेटन के डपट दीहलन. आ ई देखीं एह घटना केे बीतल अबहीं हफ्तो भर ना भइल रहुवे कि बांसगांव के बस स्टैंड पर चनाजोर गरम बेचे वाला तिवारी जी अब मुनमुन केे नाम पर आपन चनाजोर गरम बेचेे लगलन,
‘मेरा चना बना है चुनमुन
इस को खाती बांसगांव की मुनमुन
सहती एक न अत्याचार
चनाजोर गरम!’
ऊ एकरा मेें आगा जोड़सु,
‘मेरा चना बड़ा बलशाली
मुनमुन एक रोज़ जब खा ली
खोंस के पल्लू निकल के आई
गुंडे भागे छोड़ बांसगांव बाजा़र
चनाजोर गरम!’
जल्दिए ई मुनमुन नाम से बेेचाएवाला चनाजोर गरम कौड़ीराम आ आस पास के कस्बनो मेेें पसर गइल. आ एनेे बांसगांव बस स्टैंड पर तिवारी एहमें अउरो लाइन जोड़त गइलन,
‘मेरा चना बड़ा चितचोर
इस का दूर शहर तक शोर
इस के जलवे चारो ओर
इस ने सब को दिया सुधार
बहे मुनमुन की बयार
चनाजोर गरम!’
ऊ अउरी जोड़सु,
‘मेरा चना सभी पर भारी
मुनमुन खाती हाली-हाली
इस को खाती जो भी नारी
पति के सिर पर करे सवारी
जाने सारा गांव जवार
चना जोर गरम!’
आ देखते देखत मुनमुन के नाम वाला चनाजोर गरम सागरी हद लांघत शहरो में बिकाए लागल. ना सिरिफ बस स्टैंड पर शहर के मुख्य बाज़ार गोलोघर में. लोग चनाजोर गरम खात पूछल करेे, ‘भइया ई मुनमुन हवेे केे?’
‘बांसगांव की रानी है साहब अत्याचारियों के पिछाड़ी में पानी भरने वाली है साहब!’
‘अबहीं ले त बांसगांव के गुंडन के नाम सुनात रहल, अब ई रानी कहाँ सेे आ गइल?’
‘आ गइल साहब, आ गइल. बड़का-बड़का गुंडन केे पानी पिआवे. ’
‘का?’
‘अउर का?’
लागल जइसेे मुनमुन, मुनमुन ना होके पतियन का अत्याचार का खि़लाफ बिकाए वाला ब्रांड होखो! हां, अब मुनमुन ब्रांड हो चलल रहल. कम से कम बांसगांव में त ऊ अत्याचार के खि़लाफ ब्रांड रहबेे कइल. खास कर केे बांसगांव के बस स्टैंड भा टैम्पो स्टैंड पर तिवारी जी जब मुनमुन के देख लेसु त आपन आवाज अउर तेज आ ओज भरल बना लेसु . फेर लगभग पंचम सुर में आ के उचारसु,
‘इस को खाती बांसगांव की मुनमुन
सहती एक न अत्याचार
चनाजोर गरम!’
मुनमुन मंद-मंद मुसुकात धीरे-धीरे चलल छोड़ तेज़-तेज़ चलेे लागेे. मुनमुन के पहचान पहिले एगो वकील के बेटी फेरु अधिकारी आ जज के बहिन के रूप में रहल. लोग ओकरा के सम्मान सेे देेखेे. फेरु ऊ अपना शोख़ी ला जनाए लागल. लोग ओकरा केे ललक सेे देखे लगलेें. बिजली गिरावत इतराइल चलल करे ऊ. आ जल्दिए ऊ एगो सतावल औरत हो गइल रहल. लोग ओकरा के सहानुभूति मिलावल करुणा सेे भा अनठिया केे देखेे लागल रहलें. बाकिर अब ओह अनठिअवला का जगहा ओकरा केे सम्मान से देखे लागल बांसगांव. केेेेहू-केहू त ओकरा के बोल्ड एंड ब्यूटीफुल कहेे, केहू झांसी के रानी, केहू कुछ, केेहू कुछ. सब के आपन-आपन मपना रहल. बाकिर परिवार आ समाज में सतावल, वंचित आ अपमानित औरत मुनमुन में अब आपन मुक्ति तलाशल करे. अइसन औरत अब ओकरा से सलाह लेबेे आवेे लगली सँ. गँवेे-गँवेे ऊ शिक्षामित्रेे ना सतावल औरतनो केे मित्रो बन गइल.. लगभग एगो काउंसलर केे छवि बन गइल रहल मुनमुन के.
बगल का गाँव के एगो औरत रहल सुनीता. पिता मिलेट्री में रहलन. अब रिटायर्ड रहलन. बाकिर सुनीता जब नउवां क्लास में रहल तब सेंट्रल स्कूल में पढ़त रहुवेे. ओकरा कवनो कापी मेें ओकरा महतारी केे मिल गइल कवनो मैगज़ीन से काट के निकालल अमिताभ बच्चन केेे फ़ोटो. ऊ बहुते डँटली. फेेर कुछ दिन बाद उनुका आमिर ख़ान के फ़ोटो मिल गइल ओकरा कवनो कापी में. बस महतारी बवाल क दिहली. बाति बाप लेे चहुँपल. आनन फ़ानन ओकर बिआह क दीहल गइल. जाहिर रहल कि तब लड़िको छोटे रहल आ इंटर में पढ़त रहल. संयोग अइसन बनल कि दुर्भाग्य सेे शादी के दस बरीस बादो ले कवनो बच्चा ना भइल. सास के ताना सुन-सुन केे ऊ आजिज़ आ गइल. ओकर पतिओ जब-तब तलाक़ के धमकी देबे लागल. बाकिर ससुर सरकारी नौकरी में रहलन सेे बच-बचा के रहसु. फेर अचानक जानेे का भइलकि ओकरा पेेट रह गइल, माने कि प्रिगनेंट हो गइल. अब सभकर बेेवहार बदल गइल ओकरा सेे. ऊ वह कुलच्छिनी से लक्ष्मी हो गइल. बाकिर जल्दिए लक्ष्मी होखेे केेे इहो भाव उतर गइल जब ऊ एगो लक्ष्मी के जनम दे दिहलसि. बाकिर बांझ होखे केे कलंक त मेटिए गइल रहेे. जल्दिए ऊ फेर पेेट सेे रह गइल. उम्मीद फेेरु बनल बाकिर अबकियो लक्ष्मी के आ गइला सेे ओकर दुर्दशा बढ़ गइल. मार पीट आ तानन में इज़ाफ़ा हो गइल. ससुर रिटायर हो चुकल रहलन. खरचा बढ़ गइल रहुवेे आ मरद पियक्कड़ आ निकम्मा हो गइल रहुवे. हार थाक केे सुनीता अपना बेटियन केे लेके नइहर आ गइल. प्राइवेट से हाई स्कूल के इम्तहान दिहलसि. पास हो गइल. त दू बरीस बाद इंटर के इम्तहान दिहलसि. फेर पास हो गइल. बी.ए. के प्राइवेट फ़ार्म भरलसि. अब मरद आ के सुनीता के नइहर में मायके में आ कर तंग करे लागल. आजिज आ के सुनीता के पिता ओकरा के ससुराल विदा कर दीहलन.
कुछ दिन बाद सुनीता काे पति एक दिन सुनीता के पिता का लगे चहुँपल. बोलल कि, ‘ठेकेदारी शुरू कइल चाहत बानी.’
‘त शुरू करऽ.’ सुनीता के पिता कहलन.
‘रउरा से मदद चाहीं.’
‘का मदद चाहत बाड़ऽ?’ सुनीता के पिता बिदकलेे.
‘पइसा के मदद. ’
‘ऊ हम कहवां से दीं?’
‘अबहियें अबहीं त रउरा रिटायर भइल बानी. फंड, ग्रेच्युटी मिलल होखी.’
‘त ऊ हमरा बुढ़ापा ला मिलल बा, तोहरा के शराब पिआवेे ला ना.’
‘उधारे समुझ के दे दीं.’ सुनीता के पति बोलल, ‘जल्दिए लवटा देेब.’
शराबी पइसा कहां सेे दी आ कइसे दी सोचत सुनीता के पिता साफ कह दीहलन, ‘हम ना देब. अपना बाप सेे माँग लऽ.’
‘ऊ नइखन देेत, रउरे दे दीं.’ कहि के ऊ ससुर के गोड़ पर गिर पड़ल.
‘चलऽ, जहां ख़रचा लागी बता दीहऽ हम खरच कर देब बाकिर पइसा तोहरा हाथ में ना देब.’
‘ठीक बा रउरे खरच करी. बाकिर कतना एमाउंट देब ई त बता दी.’
‘तोहरा चाहीं कतना?’
‘चाहीं त दस लाख रुपिया.’
‘अतना पइसा त हमरा मिललो नइखेे.’
‘त फेर?’
‘हम बेेसी सेे बेेसी तोहरा केे पचास हज़ार दे सकिलेें. बस!’
‘पचास हज़ार में कइसन ठेकेदारी होखी भला?’ ऊ उदास हो के बोलल.
‘जा पहिलेे कवनो ठेकेदार किहां नौकरी करऽ. ठेकेदारी सीखऽ. फेर ठेकेदारी करीहऽ.’
‘पइसा देबे के होखो त दे दीं.’ सुनीता के पति बोलल, ‘ज्ञान आ उपदेश मत दीं!’
‘चलऽ इहो नइखीं देत.’
घरे जा केे सुनीता के पति सुनीता के ख़ूब मरलसि-पीटलसि. बाद मेे अपना बाप-महतारी से अलगा रहे लागल. सुनीता के साथ शहर में अलग किराया पर घर ले केे. अब सुनीता के उपवास के दिन आ गइल. ससुर का घरे लाख ताना, लाख मुश्किल रहल बाकिर दू जून के रोटी आ बेटियन के पाव भर दूध त मिलिए जाव. एहिजा उहो मयस्सर ना रहल. तवना पर से मार पीट रोज दिन के बात हो गइल. हार पाछ के सुनीता के पिता बाल पुष्टाहार में एगो लिंक खोजलन आ दस हज़ार रुपिया केे रिश्वत दे के बेटी के ओह गाँव केे आंगनवाड़ी कार्यकर्त्री बनवा दीहलन.
रोटी दाल चले लागल. बस दिक्क़त इहेे रहल कि शहर छोड़ के सुनीता केे गांव में आ के रहे पड़ल. बाकिर भूख अउर लाचारी का क़ीमत पर शहर में रहला केे कवनो मतलबो ना रहल. बाकिर सुनीता के मरद एहिजा आंगनवाड़ीओ में ओकरा केे चैन से रहेे ना दिहलसि. आंगनवाड़ी के दलिया बिस्कुट बेच केे शराब पीयल शुरू कर दिहलसि. सुनीता विरोध कइलसि त आंगनवाड़ी कार्यालय में ओकर लिखित शिकायत कर दिहलसि कि ऊ निर्बल आय वर्ग के ना हीय. हम बी ग्रेड के ठेकेदार हईं. घर में खेती बारी बा वगैरह-वगैरह. से सुनीता केे आंगनवाड़ी से बर्खास्त कर दीहल जाव. सुनीता के नोटिस मिल गइल कि उनुकर सेवा समाप्त काहेें ना कर दीहल जाव! ऊ भागल भागल अपना पिता किहां चहुँपल. सब जनला-सुनला का बाद पिता जवना आदमी केे दस हज़ार रुपिया देे के सुनीता के आंगनवाड़ी में भर्ती करववले रहलन ओकरेे केे दू हजार रुपिया अउर देे केे मामला रफ़ा-दफ़ा करवलन.
अब सुनीता के पति कहे लागल कि, ‘तोहरा आंगनवाड़ी में काम कइला सेे हमार बेइज़्ज़ती हो रहल बा. या त आंगनबाड़ी छोड़ दऽ भा हमरा केे छोड़ द.’
सुनीता घबरा गइल. केेहू ओकरा के मुनमुन से मिले के सलाह दीहल. सुनीता बांसगांव आ के मुनमुन से मिलल. सगरी वाक़या बतवलसि आ पूछलसि कि, ‘का करीं? एने खंदक, ओने खाई? पति छोड़ीं कि आंगनवाड़ी?’
‘खाना दे केे रहल बा?’ मुनमुन पूछली, ‘पति कि आंगनवाड़ी?’
‘आंगनवाड़ी!’
‘त पति के छोड़ द.’ मुनमुन बोलली, ‘जवन पति अपना पत्नी के प्यार आ परिवार के भरण पोषण कइला का जगहा ओकरा पर बोझा बन जाव, उलुटेे मारपीट करेे, अइसना मरद केे इहे इलाज होखेेला. अइसनका पति केे कह द कि हवा में बोवेे बावन बीघा पुदीना आ खाए ओकर चटनी. हमरा नइखेे खाए के ई चटनी!’ मुनमुन सुनीता के रघुवीर सहाय के एगो कवितो सुनवलसि, ‘पढ़िए गीता/बनिए सीता/फिर इन सब में लगा पलीता/किसी मूर्ख की हो परिणीता/निज घर-बार बसाइए. ’
कविता सुना केे मुनमुन बोलली, ‘हमहन के नइखे बसावे के अइसन घर-बार, नइखे बने के अइसन सीता, अइसन गीता पढ़ि के. समुझलु हमार बहिन सुनीता. ’
‘हूं.’ कहिके सुनीता संतुष्ट आ निश्चिंत हो गइल. फेर मुनमुन सुनीता के आपन कथा सुना के कहलसि, ‘तोहरा लगे त दू गो बेेटी बाड़ी सँ, एहनी का सहारेे जी लेबू. हमरा लगे त बूढ़ बाप महतारी बाड़ेें जेे हमरेे सहारेे जीयऽता लोग. सोचऽ भला कि हम केेकरा सहारेे जीयब?’ कहि केे मुनमुन उदास हो गइल.
‘हम बानी मुनमुन दीदी रउरा साथ!’ कहिके सुनीता रो पड़ल आ मुनमुन से लिपट गइल. बाकिर मुनमुन ना रोवल. ई सुनीतो गौर कइलसि. मुनमुन समुझ गइल. सुनीता सेे बोलल, ‘तूं सोचत होखबू कि आपन विपदा कथा बता के हम काहेें ना रोवनी? बा नू?’ सुनीता जब सकारत मूड़ी हिलवलसि त मुनमुन बोलल, ‘पहिले हमहूं बात-बेबात रोवल करीं. बहुतेे रोवल करीं. बाकिर समय पत्थर बना दिहलसि. अब हम ना रोईं. रोवला सेे औरत कमज़ोर हो जाले. आ ई समाज कमजोरन केे लात मारेेला. सेे हम ना रोईं. तुहूं मत रोवल करऽ. उलुटेे कमज़ोर औरत के लात मारे वाला समाज के लतियावल करऽ. सब ठीक हो जाई!’
बाकिर सुनीता फेर रो पड़ल. बोलल, ‘सब कइसे ठीक हो जाई भला?’
‘हो जाई, हो जाई. मत रोवऽ. ’ मुनमुन बोलल, ‘भरोसा राखऽ अपना पर आ ई सोचऽ कि अब तूं अबला नइखू. काहेें कि खुद कमालू, खुद खालू. अपना बारे मेें अइसेे सोच केे देखऽ त सब ठीक हो जाई.’
‘जी दीदी!’ कहि केे सुनीता मुसुकाइल आ मुनमुन से विदा मांग के चल गइल बांसगांव से अपना गांवे. आ फेर सुनीतेे काहें? रमावती, उर्मिला, शीला अउर विद्यावती जइसन जाने कतना महिला मुनमुन से जुड़त जात रहली सँ. आ मुनमुन सभका के सबला बने के पाठ पढ़ावत रहल. ऊ बतावल करे, ‘अबला बनल रहबू त पिटाइल करबू, बेेइज्जत होखत रहबू. ख़ुद कमा, ख़ुद खा त सबला बनबू, पिटइबू ना. अपमानित ना होखबू. स्वाभिमान से रहबू.’
मुनमुन शिलांग जइसन जगहन के हवाला दीहल करेे. बतावेे कि उहवाँ मातृ सत्तात्मक समाज बा, मातृ प्रधान समाज बा. प्रापर्टी औरतन का नामे रहेला, मरदन का नामेे ना. मरदन सेे जतना एहिजा के औरत कांपेेली सँ, ओह से बेेसी ओहिजा शिलांग में औरतन से पुरुेष कांपेलेें. जानेलू काहें?’ ऊ साथी औरतन से पूछल करेे. आ जब ऊ ना जानेे का चलते मूड़ी डोलावऽ सँ त मुनमुन ओहनी के बतावेे, ‘काहेें कि ओहिजा सगरी शक्ति, जायदाद औरतन का हाथे होला. अतना कि शादी के बाद ओहिजा औरत पुरुष का घरेे ना जा सँ, पुरुष औरत का घरे जा के रहेला. बड़हन-बड़हन आई.ए.एस. अफ़सरानो बीवी का घरेे जा के रहेलेें आ दब के रहे के पड़ेला. काहेें कि ओहिजा औरत सबला बाड़ी.’ ऊ बतावेे कि, ‘वइसेे ओहिजा अधिकतर लोग क्रिश्चियन हो गइल बा लेकिन ऊ सभे लोग मूल रूप से दरअसल आदिवासी लोग हवे. त जब दबल कुचल आदिवासी औरत सबला बन सकीलें त एहिजा हमहन काहें ना बन सकीं?’ मुनमुन बतावल करे कि, ‘अइसहीं थाईलैंडो में होला. ओहिजो औरत मरदन के कूकूर बना के राखीलेें सँ. ओहिजो मातृ सत्तात्मक परिवार आ समाज बावे. औरत ओहिजो सबला बाड़ी सँ.’
‘रउरा शिलांग आ थाईलैंड गइल रहनी का मुनमुन दीदी?’
‘ना त!’
‘त फेेर कइसे जानीलेें?’
‘तूं लोग दिल्ली का बारे में जानेेलू?’
‘हं, थोड़-बहुत!’
‘त का दिल्ली गइल बाड़ू?’ मुनमुन बोलल, ‘ना नू? अरे कहीं के बारे में जाने ला ओहिजो गइलो जरुरी होला का? पढ़ के, सुनियो के जानल जा सकेला.हम एह दुनू जगहा का बारे मेेें पढ़िए जनले बानी.’ ऊ बोलल, ‘हम त चनरमो पर नइखीं गइल आ अमेरिको नइखीं गइल. त का ओहिजा का बारेे मेें जनबो ना करीं का?’ ऊ पूछलसि आ खुदही जबाबो दिहलसि, ‘बाकिर जानीलेें. पढ़ के, टी.वी. देख के.’
मुनमुन के छवि अब गँवेे-गँवेे मरद विरोधी बनल जात रहुवेे. त का ऊ अपना पति, ससुर आ भाइयन से एकही साथ बदला लेत रहुवे? ई एगो बड़हन सवाल बन गइल रहल बांसगांव का हवा में. बांसगांव का सड़कन पर समाज में. हालां कि ऊ साथी औरतन से कहल करेे, ‘जइसे पुरुष औरत के ग़ुलाम बना के, अत्याचार आ सता केे रखलेे त ई ठीक नइखेे. ठीक वइसहीं औरतो मरद केे कूकूर बना के राखेे इहो ठीक ना कहाई.’ ऊ जइसे जोड़ल करेे, ‘हमनी के संविधान स्त्री आ पुरुष के बराबरी के दर्जा दिहले बा, हमहन के उहे बरोबरी चाहीं. उहेे सम्मान आ उहे स्वाभिमान चाहीं जे कवनो सभ्य समाज में होखल चाहीं.’
त का मुनमुन राय अब राजनीति केे रुख़ करत बाड़ी? बांसगांव केे सड़क एक दोसरा से इहे पूछत रही सँ. मुनमुन राय के लोकप्रियता के ग्राफ़ मजबूर करत रहुवेे लोगन केेे ई सोचे ला. बाकिर एक दिन एगो औरत मुनमुन से कहत रहली कि, ‘का बताईं मुनमुन बहिनी, ई बांसगांव के विधानसभा अउर संसद केे दुनूवो सीट अगर सुरक्षित सीट ना रहीत त तोहरा केे एहिजा सेे निर्दलीय चुनाव लड़वा देतीं आ तू जीतियो जइतू.’
‘अरे का कहत बाड़ू चाची. आपन घर त चला नइखीं पावत राजनीति का खाक करब?’ मुनमुन बोलली, ‘एह बांसगांव में त रह नइखीं पावत त राजनीति त वइसहूं काजल के कोठरी कहल जाला. मरद मानुस लोग त ओकरा के जब तब वेश्या कहतेे रहेलेें.’
‘मरद त हमेशा के हरामी हउवेें.’ ऊ औरत बोलली, ‘ओहनी के बात पर कान काहे देबे केे?’
‘अइसन?’ मुनमुन बोलली, ‘का तुहूं मरेदन के सताइल हऊ चाची? देखेे में त संतुष्ट आ सुखी लउकेलू?’
‘विधाता त शाायद औरतन केे सुखी आ संतुष्ट रहे खातिर एह समाज में भेेजबेे ना कइलन.’ ऊ औरत बोलली, ‘सब बाहरी दिखावा होला. ना त कवन औरत एहिजा सुखी आ संतुष्ट बिया?’
‘सेे त बा चाची!’ मुनमुन बोलली, ‘उपेक्षा आ अपमान जब घरे में लोग देबे लागसु त बाहर के का कहावऽ? हमार कहानी त तोहरा सेे का केहू से अनसुनल नइखे. घरे के लोग एकरा के ना सुने लागे त बाहर वालन के का कहल जाव? हमार कहानी त तोहरा से का केहू से छुपल नइखे. बाकिर वीना शाही के का कइल जाई?’
‘का भइल वीना के? ओकर भाई पुलिस में बड़का अफसर हवेे.’
‘हँ, हवें त! आजकल कहीं एस.पी. बावेे. बाकिर बहिन के पूछे ना. इकलौती बहिन हिय. मरद मार पीट के दू गो बच्चा समेेत छोड़ दिहले बा. तलाक केे मुकदमा लड़त बिया. वीना केे बचवो सभ बाप सेे डेेराइल रहेेलेें. बाप केे नाम सुनते रोवेे लागेलेे सँ – पापा का लगे नइखे जाए केे. बहुत मारेेलन. बेटी बचवन के लेे केे हमरे तरह महतारी-बाप का छाती पर बइठल बिया. इंगलिश मीडियम के पढ़ल बेचारी वीना कहीं के नइखेे रहि गइल.’ मुनमुन हताश भाव मेें बोलली, ‘लागत बा बांसगांव अब गँवे-गँवेे दबंगन के ना बलुक पियक्कड़न आ परित्यकन केे तहसील बनत जात बा.’
जवनेे होखो मुनमुन राय अब ना सिरिफ बांसेेगांव बलुक बांसगांव के अगलो-बगल केे परित्यक्तन, सतावल आ जुलुम केे मारल औरतन केे सहारा बनल जात रहली. एक तरह से धुरी. एहमें अधेड़, बूढ़, जवान हर तरह के औरत रहली सँँ. कवनो पति के सतावल, त कवनो बाप भाई केे. एहमेें सेे अधिकतर मध्य वर्ग भा निम्न मध्य वर्ग केे रहली. मुनमुन कहबो करेे कि हमनी का समाज में शोहदन, पियक्कड़न, नाजायज रिश्तन आ परित्यक्तन के अनुपात लगातार बढ़त आ घन होखल जात बा. एह पर ना जानेे काहेे कवनो समाजशास्त्री के नज़र नइखे जात. नजर जाए के चाहीं आ एकरा कारणन के पता लगा केे कवनो ना कवनो निदानो ज़रूर खोजल जाए के चाहीं.
एक दिन सुबह-सुबह सुनीता के पति मुनमुन का घरे आइल. आवते तू-तड़ाक से बात शुरू क दिहलसि. कहे लागल, ‘तूं हमरा बीवी केे भड़कावल बन्द कर दऽ ना त एक दिन तोहरा चेहरा पर तेजाब फेंक देब. भूला जइबू नेतागिरी कइल.’
शुरू में त मुनमुन चुपचाप सुनत रहल. बाकिर जब पानी मूड़ी का ऊपर जाए लागल त बोलल, ‘बेसी हेकड़ी देखईबऽ त अबहियें पुलिस बोला केेे जेल के हवा खिया देब. सगरी हेकड़ी भुला जइबऽ.’
सुनीता के पति तबहियों बड़बड़ाते रहल. त मुनमुन बोलल, ‘तूं शायद हमरा के ठीक से जानत नइखऽ. हमार भाई सभ जज हउवेें, बड़का अफसर हउवेें.’ ऊ मोबाइल उठावत कहलसि. ‘अबहीं एकेे फोन पर पुलिस एहिजा आ जाई. फेर तोहार का हाल होखी सोच लऽ. आ हमहूं बाकी औरतन का तरह चूड़ी नइखीं पहिरले!’ मुनमुन ई सब बोलल आ अतना सर्द अंदाज में कि सुनीता के पति के अकबक बन्द हो गइल. ऊ जाए लागल त मुनमुन ओकरा केे फेरू डपटलसि, ‘आ जे घरेे जा केे सुनीता केे कुछ कहलऽ भा हाथ लगवल त पुलिस तोहरो घरेे चहुँप सकेेलेेे, अतना जान लऽ.’
सुनीता के पति ओकरा के घूरत, तरेरत चल गइल. मुनक्का राय तब घरहीं रहलन. सुनीता के पति केे चल गइला का बाद ऊ मुनमुन से बोललन, ‘बेटी, आपने बिपत कम रहुवेे का जे दोसरो के बिपत अपना कपारेे लेेेत बाड़ू?’
‘का बाबू जी, रउरो!’
‘ना बेटी तूं समुझ नइखू पावत कि तू का करत बाड़ू?’ मुनक्का राय बोललन, ‘तूं बांसगांव के बदनामी का कवना हद ले चहुंपा दिहले बाड़ू तोहरा अबहीं एकर खबरेे नइखे.’
‘का कहत बानी बाबू जी रउरा?’ मुनमुन चकित होके बोलल, ‘बांसगांव के बाबू साहब लोग मर गइल बाड़न का जे हम बांसगांव के बदनाम करे लाग गइनी?’
‘अरे ना बेटी. बाबू साहब लोगन के दबंगई से ओतना नुकसान ना भइल जवन तोहरा चलते हो रहल बा.’
‘का?’ मुनमुन अवाक रह गइल.
‘हँ, लोगबाग अकसर हमरा केे कचहरी में बतावत रहेेलें कि तोहरा चलतेे बांसगांव के लड़िकियन के शादी कहीं तय नइखे हो पावत. लोग बांसगांव के नाम सुनते बिदक जात बाडेें. कहेेलें कि अरेे ओहिजा केे लड़िकी त मुनमुन जइसन गुंडी होखेलीं सँ. अपना मरद के पीट देली स. ओहनी सेे के बिआह करी? लोग कहेलें कि बांसगांव के लड़िकियन का नाम से चनाजोर गरम बिकाता. अइसनका लड़िकियन सेे शादी ना हो सकेे.’
‘का कहत बानी बाबूजी रउआ?’
‘बेटी जवन सुनत बानी उहे बतावत बानी.’ मुनक्का राय बोललन, ‘बंद कर दऽ अब ई सब. तूं कंपटीशन के तइयारी करे वाली रहलू, उहे करऽ. कुछ नइखे धइल वइल एह बेेवकूफी वाला बातन में. फेर तोहरा सोझा त लमहर जिनिगी पड़ल बा.’
‘कंपटीशन के तइयारी त बाबू जी हम करते बानी.’ मुनमुन बोलल, ‘बाकिर हम जवन करत बानी तवन बेवक़ूफ़ी हऽ, ई रउरा कहत बानी बाबू जी!’
‘हँ, हम कहत बानी.’ मुनक्का राय बोललन, ‘ई बगावत, ई आदर्श सब किताबी आ फिल्मी बात हईं सँ, ओहिजे नीक लागेली सँ, असल जिनिगी में ना.’
‘का बाबू जी!’
‘ठीके त कहत बानी.’ मुनक्का राय उखड़ के बोललन, ‘तोहरे बगावत का चलते तोहार सगरी भाई घर से बिदक गइलें. एह बुढ़ापा में बेऔलाद बना दिहलू तू आ तोहार बगावत हमरा के. हकीकत त इहे बा.’ ऊ तनिका रुकलन आ आगा जोड़लन, ‘हकीकत त ई बा कि तोहरा चलते एह बुढ़ारिओ में हमरा संघर्ष करे के पड़त बा. साबुन, तेल, दवाई तक ला तड़पे के पड़त बा. लायक बेटन के बाप होखला का बावजूद दिक्कत में जिए के पड़त बा. त सिर्फ तोहरा बगावत का चलते. तोहरा बगावत में तोहर साथ दिहला का चलते.’
'त बाबू जी का रउरा चाहत बानी कि हम एह कसाईयन का आगा हार मान लीं? बढ़ा दीं आपन गरदन ओहनी का आगे कि लऽ हमार बलि चढ़ा द लोग?’ मुनमुन बोलल, ‘बोलीं बाबू जी, अगर रउरा इहे चाहत बानी त?’
मुनक्का राय कुछ बोललन ना. चादर ओढ़ के खटिया पर लेट गइलन. मुनमुन बाबू जी का गोड़तरिया आ के खड़ा हो गइल, ‘ज़ाहिर बा रउरा ई नइखी चाहत. आ हम अइसन करबो ना करब. रउरा चाहब तबहियों. हम भलहीं मर जाईं एह तरह बाकिर हथियार डाल के ना मरब. लड़ाई करत मुअल पसन्द करब. सगरी कसाईयन के काट के.’ अचानक ऊ रुकल आ फेर बोलल, 'आ मरब काहें? मुए हमार दुश्मन. हम त शान से जीयब. जेकरा जवन कहे सुने के होखो कहे सुने.’
फेर तइयार हो के बाबू जी के सूतल छोड़ ऊ स्कूल जाए ला बस स्टैंड पर आ गइल. ओने सुनीता के पति घरे जा के सुनीता से त कुछ ना बोलल बाकिर शहर जा के बेसिक शिक्षा अधिकारी किहां मुनमुन का खिलाफ लिखित शिकायत कर आइल. शिकायत में लिखलसि कि मुनमुन शिक्षामित्र के नौकरी कइला का बजाय नेतागिरी करत बिया आ एह नेतागिरी में तमाम औरतन के भड़का-भड़का के ओहनी का परिवार में बगावत करवा के ओह परिवारन के तूड़त बिया. बतौर नजीर ऊ आपने हवाला दिहलसि कि मुनमुन राय के दखलअंदाजी का चलते ओकरो बीवी नेता बने के कोशिश करत बिया आ हमार घर टूट रहल बा. ऊ इहो लिखलसि कि जवना औरत का नाम से चनाजोर गरम बिकात होखो ऊ अपना स्कूल में पढ़इबो का करी? नेतागिरिए करी. एह से बचवन के भविष्य ख़राब होखी.
ऊ अपना लमहर शिकायती पत्र का आखिर में इहो खुलासा कइलसि कि एही नेतागिरी का फेर में मुनमुन आपनो परिवार तूड़ दिहले बिया आ अपना भतार के घर छोड़ के बाप का घरे रहत बिया. इहां ले कि अपना गाँवे रहला का बजाय बांसगांव में रहत बिया आ स्कूल गइला का बजाय इलाका के औरतन के भड़का के नेतागिरी करत बिया. से एह पूरा प्रकरण के उच्च स्तरीय जांच करवा के मुनमुन राय के शिक्षामित्र के नौकरी से तत्काल बर्खास्त कइला के गोहारो लगवले रहल सुनीता के मरद. अपना शिकायती पत्र में ऊ इहो जोड़ले रहल कि मुनमुन राय अपना भाइयन के ऊंच ओहदा पर होखला के धौंस सबके देत रहेले कि हमार भाई जज आ कलक्टर हउवें. वग़ैरह-वग़ैरह. आ इहो कि ऊ एक नंबर के चरित्रहीनो हीय. बाप वकील हउवें से केहू ओकर कुछ बिगाड़ नइखे पावत. बाकिर अगर शिक्षा विभाग ओकरा हरकतन पर अंकुश ना लगाई त बांसगांव इलाक़ा के समाज में एक दिन अइसन भूकंप आ जाई कि सम्हरले ना सम्हरी.
सुनीता के पति के ई शिकायती पत्र रंग देखवलसि आ बेसिक शिक्षा अधिकारी ख़ुद ही एह प्रकरण के जांच करे के सोचलन. चूंकि मुनमुन राय शिक्षामित्र रहल, नियमित शिक्षिका त रहल ना से ओकरा के कवनो नोटिस दिहला का बजाय अपना पी.ए. से फ़ोन करवा के मुनमुन राय के बोलवा लीहलन. मुनमुन आइल त बेसिक शिक्षा अधिकारी ओकरा के एक घंटा बाहरे बइठा रखलन आ तब बोलवलन. तबले इंतजार में बइठल मुनमुन पाक गइल रहुवे. दोसरे घर से खानो खाके ना आइल रहुवे. से भूखो जोर मरले रहल. ऊ भीतर जा के ठाढ़ हो गइल आ बोलल, ‘सर!’
‘त तूहीं मुनमुन राय हऊ?’
‘हँ, त!’
‘गांव में रहला का बजाय बांसगांव में रहेलू?’
‘जी सर, गांव वाला घर गिर गइल बा. बांसगांव में माता-पिता जी का साथे रहीलें.’
‘बिआह हो गइल बा?
‘जी सर!’ ऊ तनिका रुकल आ गँवे से बोलल, ‘बाकिर टूट चुकल बा.’
‘काहें?’
‘सर! ई हमार निजी मामिला हवे, रउरा एह बाबत कुछ नाहिये पूछीँ त उचित होखी.’
‘अच्छा?’ बेसिक शिक्षा अधिकारी ओकरा के तरेरत पूछलन, ‘तोहार व्यक्तिगत व्यक्तिगत हवे, आ दोसरा केहू के व्यक्तिगत व्यक्तिगत ना हो सके?’
‘सर बूझनी ना.’ मुनमुन बोलल, ‘तनी एकरा के साफ कर के बताईं!’
‘तोहरा खि़लाफ शिकायत आइल बा कि तूं स्कूल में पढ़ावे का बजाय नेतागिरी करेलू आ इलाका के औरतन के भड़का के ओहनी के परिवार तोड़त बाड़ू! आपन नेतागिरी चमकावत बाड़ू!’
‘जे ही ई शिकायत कइले बा गलत कइले बा सर! हम नियम से स्कूल जाइलें. हस्ताक्षर पंजिका मंगवा के रउरा देख सकीलें. विद्यार्थियन से, गांव वालन से आ स्टाफ़ से दरिया़फ्त कर सकीलें. हम नियमित आ समय से स्कूल जाइलें आ कतहीं कवनो नेतागिरी ना करीं. केहू के परिवार नइखीं तूड़ले. अगर केहू अइसन कहत बा त ओकरा के पेश कइल जाव.’ मुनमुन राय पूरा सख़्ती से बोलल.
‘सुनऽतानी कि तोहरा नाम से चनाजोर गरम बिकाला.’
‘हम ई व्यवसाय ना करीं सर!’
‘जवन बात पूछल जाव तवना के सीधा जवाब द!’
‘कवना बात के सीधा जवाब दीं?’
‘इहे कि तोहरा नाम से चनाजोर गरम बिकाता?’
‘हम पहिलहीं रउरा के बता दिहले बानी कि हम ई व्यवसाय ना करीं!’ मुनमुन तनिका रुकल आ बेसिक शिक्षा अधिकारी के तरेरत बोलल, ‘अगर रउरा इजाज़त दीं त हम बइठ जाईँ? बइठ के रउरा सवालन के जवाब दीं?'
‘हँ, हँ बइठ जा!’
‘थैंक यू सर!’ कह के मुनमुन बइठ गइल.
ओकरा बइठते बेसिक शिक्षा अधिकारी का फ़ोन पर केहू के फ़ोन आ गइल. ऊ फोन पर बतियावे लगलन. आ एने मुनमुन पशोपेश में रहल कि आखि़र ओकरा खिलाफ शिकायत कइलसि के? कहीं भइए लोगन में से त केहू शिकायत ना कर दिहलसि ओकर? इहे सोच के ऊ शुरु से मारे संकोच अपना भाईयन के नाम ना लेत रहुवे. फोन पर बेसिक शिक्षा अधिकारी के बातचीत थोड़हीं देर चलल. बात खतम करते ऊ मुनमुन का ओर बिलकुल पुलिसिया अंदाज़ में देखलन जइसे मुनमुन कवनो बड़हन चोर होखे आ उनुका पकड़ में आ गइल होखो. ओकरा ओर देखते ऊ पूछलन, ‘त?’
‘जी?’ मुनमुन बोलल, ‘का?’
‘त तोहरा के एह शिकायत के कवन दंड दीहल जाव?’
‘कवना शिकायत के?’
‘जवन हमरा लगे आइल बा!’
‘हमरा मालूम त होखो कि हमरा खिलाफ शिकायत का बा? शिकायत करे वाला के ह?’ ऊ बोलल, ‘फेर जवन आरोप सिद्ध हो जाव त जवने कार्रवाई विधि सम्मत कार्रवाई होखो कर दीं.’
‘क़ानून मत छांटऽ!’ बेसिक शिक्षा अधिकारी गुरेरत बोललन, ‘जानत बानी कि वकील के बेटी हऊ. ’
‘वकील के बेटिए ना, न्यायाधीश के बहिनो हईं. हमार एगो भाई प्रशासनो में बाड़न.’ मुनमुन अब पूरा फ़ार्म में आ गइल रहुवे, ‘रउरा अन्हारे में तीर चला के कार्रवाई कइल चाहत बानी त बेशक करीं.’ ऊ तनिका रुकल आ बेसिक शिक्षा अधिकारी के ओही तरह तरेरत आपन हाथ देखावत बोलल, ‘हई देखीं कि हमहूं कवनो चूड़ी नइखीं पहिरले!’
‘अरे तूं त कपारे चढ़ल जात बाड़ू?’
‘कपारे नइखीं चढ़त, साफ बात करत बानी.’ ऊ बोलल, ‘हमरा खिलाफ जवने शिकायत होखे हमरा के लिखित रूप में दे दीं. हम लिखित जवाब दे देब. फेर रउरा जवने उचित लागे तवन कार्रवाई कर लेब.’
‘त अपना भाईयन के धौंस देत बाड़ू?’
‘जी ना सर!’ ऊ बोलल, ‘हम अपना भाईयन के जिक्र तब कइनी जब रउरा हमरा के वकील के बेटी कहनी. त हम प्रतिवाद में ई कहनी.’
‘अच्छा-अच्छा!’ बेसिक शिक्षा अधिकारी नरम पड़त बोललन, ‘जब तोहार भाई लोग बड़का ओहदन पर बा त तूं शिक्षामित्र के नौकरी काहें करत बाड़ू?’
‘एहसे कि हम स्वाभिमानी हईं.’ तनिका रुकल आ फेर बोलल, ‘रउरा त शिक्षामित्र के नौकरी एह तरह बतावत बानी जइसे कि शिक्षामित्र ना होखे चोर होखे.’
‘ना-ना. अइसन बात त हम ना कहनी.’ ऊ अब बचाव का मुद्रा में रहलन.
‘सर, रउरा के बतावत चलीं कि हमार एगो भाई बैंक में मैनेजर हउवें आ एगो एन.आर.आई ओ हउवें तबहियों हम शिक्षामित्र के नौकरी करत बानी. आ ई कवनो आखिरी नौकरी ना हवे.’ ऊ तनिका रुक के बोलल, ‘हम कंपटीशंसन के तइयारी करत बानी. जल्दिए कवनो नीमना जगहो देख सकीलें रउरा हमरा के.’
‘ई त बहुते नीक बात बा.’ अधिकारी बोलल, ‘ते फेर बेवजह के काम में काहें लागल बाड़ू?’ अधिकारी के सुर अब पूरा से बदल चुकल रहुवे. सुनीता के मरद के शिकायती पत्र देखावत कहलन, ‘कि अइसनका शिकायतन के नौबत आवे!’
‘हम ई शिकायती पत्र देख सकीलें का सर!’
‘हँ-हँ. काहें ना?’ कह के ऊ शिकायती पत्र मुनमुन का तरफ़ बढ़ा दीहलन.
मुनमुन बहुते ध्यान से ऊ पत्र देखलसि. फेर पढ़े लागल, पढ़ला का बाद बोलल, ‘‘रउरो सर, एह पियक्कड़ का बातन में आ गइनी?’
‘आरोप त बा नू!’
‘ख़ाक आरोप बा.’ ऊ बोलल,‘एगो आदमी अपना बीबी का कमाई से शराब पी के ओकर पिटाई करत बा. बीबी ओकरा पर लगाम लगावत बिया त ऊ ऊल जलूल शिकायत करत बा. आ हैरत एह पर बा कि रउरा जइसन अधिकारी ओह शिकायत के सुन लेत बाड़ें!’
‘अब कवनो शिकायत आई त सुनहीं के पड़ी.’
‘त सर सुनीं!’ ऊ बोलल, ‘एक त ई शिकायत हमरा शिक्षण कार्य लेके नइखे, शिक्षणेतर काम ले के बा. आ रउरा के बताईं कि हम शिक्षामित्र हईं. आ कवनो शिक्षक के काम सिर्फ़ ओकरा स्कूले ले बन्हाइल ना रहेला. समाजो का प्रति ओकर कुछ दायित्व बनेला. आ हम एही दायित्व के निभावत बानी. अपना सतावल बहिनन के स्वाभिमान आ सुरक्षा के आवाज दे रहल बानी कि ऊ लोग अन्याय बर्दाश्त कइला का बजाय ओकर प्रतिकार करे, डट के मुक़ाबला करे आ पूरा बेंवत से ओकर विरोध करे. आ एकरा ला एक ना हजार शिकायत आवे हम रुके वाला नइखीं.’
बेसिक शिक्षा अधिकारी हकबक के मुनमुन के देखे लगलन.
‘आ सर, रउरा अगर ई चाहत बानी कि हम स्कूल में विद्यार्थियहन के मिड डे मील पकावे आ बंटवावे में जिनिगी बरबाद करीं, त माफ करीँ सर, हम ई नइखीं करेवाला.’ऊ बोलत गइल, ‘अब त अख़बारनो में स्कूलन में बंटाए वाला मिड डे मील का बारे में ख़बरें छपत बाड़ी सँ कि मिड डे मील घटिया रहल. कि मिड डे मील कवनो दलित महिला बनवलसि से सवर्ण बच्चा ना खइले सँ वग़ैरह-वग़ैरह. ई ख़बर ना छपे कि अब एह स्कूलन में शिक्षक नइखन. कि एह स्कूलन में अब पढ़ाई ना होखे. कि एह स्कूलन में छात्रे नइखन. कि एह स्कूलन में पंद्रह-बीस बच्चन के मिड डे मील खिया के सौ-दू सौ बचवन के मिड डे मील खिआवल कागजन में दर्ज हो जाला. कि शिक्षा विभाग आ प्रशासन के अधिकारी स्कूलन में ई जांचे आवेलें कि मिड डे मील ठीक से बँटात बा कि ना. आ एहमें उनुकर बखरा उनुका तक ठीक से चहुँपत बा कि ना? अधिकारी भूलाइलो ई देखे ना आवसु कि एह स्कूलन में पठन-पाठन के स्तर का बा आ कि एकरा के बेहतर बनावे में उनुकर योगदान का हो सकेला?’
‘अरे तूं त पूरा भाषणे देबे लगली. आ उहो हमरे खिलाफ. हमरे चैंबर में.’ बेसिक शिक्षा अधिकारी अउँजा के बोललन.
‘भाषण नइखीं देत सर, रउरा के वास्तविकता बतावत बानी कि प्राथमिक स्कूलन में अब दूइए गो काम रह गइल बा, मिड डे मील पकवावऽ आ स्कूल के बिल्डिंग बनवावऽ! मतलब येन केन प्रकारेण धन कमाइल! बताई ई काम भला कवनो शिक्षक के होला कि स्कूल बिल्डिंग बनवावे कि कवनो इंजीनियर के? ई त शासन प्रशासन के सोचे समुझे के चाहीं.’ ऊ बोलत रहुवे, ‘ट्रांसफ़र पोस्टिंग के धंधा त रउरो जानते होखब” सर रउए बताईं कि हमनी का अपना नौनिहालन के का सिखावत बानी सँ?’
‘तूं त बोलते जात बाड़ू!’
‘हँ सर, बोलत त बड़ले बानी.’ ऊ बोलत गइल, ‘रउरो ई पुरनका गाना सुनलही होखब कि ‘इंसाफ़ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के, यह देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के!’
‘ओह, अब तूं जा!’
‘जात बानी सर, बाकिर सोचब कबो आ पूछब अपना आप से अकेला में कि एह गाना के का कर दिहले बानी सँ हमहन का, रउरा, हमहन के समाज आ सिस्टम? सोचब जरूर सर!’ कह के मुनमुन राय बेसिक शिक्षा अधिकारी का कमरे से बाहर निकल आइल.
‘रउरो सर, केकरा के बोला लिहले रहीं? पूरा के पूरा बर्रइया के छत्ता हीय ई. अइसहीं एकरा नाम से चनाजोर गरम थोड़हीं बिकाला.’ बड़ा बाबू कुछ फ़ाइल लिहले बेसिक शिक्षा अधिकारी का कमरे में घुसत बोललन.
‘हँ, बाकिर बात कुछ बहुत ग़लतो ना कहत रहुवे.’ बेसिक शिक्षा अधिकारी बोललन, ‘बड़े बाबू ध्यान राखब, ई लईकी बहुत आगे निकल जाई.’
‘से त बा साहब!’
‘हँ, आ ई ढेर दिन ले शिक्षामित्रो नइखे रहे वाला.’ अधिकारी बोललन, ‘अतना निडर लईकी हम पहिले नइखीँ देखले. सोचीं बड़े बाबू कि ओकरा के जांच ला बोलवले रहीं, ओकर नौकरी जा सकत रहुवे आ ऊ हमरे के लेक्चर पिआ गइल.’
‘अरे त अनुशासनहीनता का आरोप में ससुरी के छुट्टी कर दीं. भूला जाई सगरी नेतागिरी!’
‘अरे ना. एकर भाई सब बड़हन ओहदा पर बाड़ें. कहीं लेबे के देबे के ना पड़ जाव. चनाजोर वइसहूं बेचवावते बिया, हमनियो के बिकवा दी.’
‘हँ, साहब, सब एकरा के बांसगांव के मरदानी-रानी ओ कहेलें.’
‘त?’ बेसिक शिक्षा अधिकारी बोलल, ‘जाए द. जवन करत बिया करे द.’
‘जी साहब!’
मुनमुनो बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय से निकल के बस स्टैंड आइल आ बस पकड़ के बांसगांव आ गइल. घरे चहुँपल त पड़ोसी गाँव से आइल एगो बाप-बेटी ओकर इन्तजार करत रहल. बतावल लोग कि बेटी के ओकर पति शादी का ह़फ्ते भर में ओकरा से किनारा कर लिहलसि आ मार पीट, हाय तौबा करिके छहे महीना में घर से बाहर कर दीहल. ओकर क़सूर बस अतने रहल कि ओकरा बँवारा हाथ के दू गो अंगूरी कटल रहुवे. लइकाइऐं में चलत चारा मशीन में खेल-खेल में हाथ डलला से दु गो अंगुरी कट गइल रहल.
‘त शादी का पहिलहीं ई बात लड़िका वालन के बता दीहल चाहत रहुवे.’ मुनमुन लड़िकी के हाथ अपना हाथ में ले के ओकर अंगुरी देखत बोलल, ‘ई लुकावे छिपावे वाली बात त रहल ना.’
‘लुकावलो ना गइल रहुवे.’ लड़िकी के पिता बोललन, ‘शादी का पहिलहीं बता दिहले रहीं. ’
‘तब काहे छोड़ दिहलसि?’
'अब इहे त समुझ नइखे पावत आदमी.’ लड़िकी के पिता बोललन, ‘अब ओह लोग के कहना बा कि बिआह से पहिले अन्हारे में राखल गइल.’
‘त अब का इरादा बा?’
‘इहे त बहिनी रउरा से पूछे आइल बानी सँ कि का कइल जाव?’
‘जे लोग अगुआ रहल ओह लोग के बिचवनिया बनाईं. कुछ नाते रिश्तेदारन के लगाईं. समुझाईं ओह लोगन के. शायद मान जाव लोग.’
‘ई सब करिके हार गइल बानी सँ.’ लड़िकी के पिता बोललन, ‘इहो कहनी सँ कि हमनी का ब्राह्मण हईँ, लड़िकी के दोसर बिआहो ना करा सकीं. लड़िका आ उनुका बाप के गोड़धरियो कइनी सँ. बाकिर सब बेकार रहल.’ ई कह के ऊ बिलखे लगलन.
‘त अब?’
‘हमार त अकिले हेरा गइल बा बहिनी! तबहियें त अब रउरा शरण में आइल बानी सँ.’
‘फेर त थाना पुलिस, कचहरी वकील करे के पड़ी. बोलीं, तइयार बानी?’
‘एह सब का बिना काम ना चली?” ऊ घिघियइलन.
‘देखीं जेकरा आँखि के पानी मर जाव. समाज के लाज हया पी जाव, घर परिवार के मरजादा भूला जाव, अइसन सुकुमार लड़िका का साथे जानवर जस बेवहार करे ओकरा साथे क़ानून के डंडा चलावे से परहेज कइल अपने साथे छल कइल होखी, आत्मघाती होखी.’
‘तबहियों ऊ लोग एकरा के ना राखे तब?’
‘एकरा के अब ओहिजा रखला के कवनो जरुरते नइखे.’ मुनमुन बोलल, ‘ओहनी के सबक़ सिखाईं आ एकर दोसर बिआह करावे के तइयारी करीं.’
‘दोसरी बिआह?’ पिता के ठकुआ मार दिहलसि. ऊ फेरु दोहरियवलन, ‘हमनी का ब्राह्मण हईँ.’ ऊ तनिका थथमलन आ फेरू बुदबुदइलन, ‘के करी बिआह? आ फेर लोग-बाग का कही?’
‘कुछ ना कही.’ मुनमुन बोलल, ‘राउर बेटी जब सुख चैन से रहे लागी त सभकर मुंह सिआ जाई. हँ, अगर रोज अइसने छोड़-पकड़ लागल रही त ज़रूरे सभकर मुंह खुलल रही. अब रउरा सोच लीं कि का करे के बा?’ ऊ बोलल, ‘जल्दबाजी में कवनो फैसला मत करीं. अबहीं घरे जाईं. सोचीं विचारीं. आ घर में पत्नी से, बेटी से, परिजनन से राय-विचार करीं. ठंडा दिमाग़ से. दू-चार-दस दिन में आईं. फेर फ़ैसला कइल जाई कि का कइल जाव?’
‘ठीक बहिनी!’ कहिके ऊ बेटी के लेके चल गइलन.
दू दिन बाद फेर अइलन बेटिओ के साथे लिहले आ मुनमुन से बोललन, ‘हमनी का फ़ैसला कर लिहले बानी सँ. अब जवन रउरा कहब तवन सबकुछ करे के तईयार बानी सँ.’
‘ठीक बा.’ मुनमुन उनुका बेटी ओरि देखत पुछलसि, ‘का तूहूँ तइयार बाड़ू?’
ऊ कुछ बोलल ना. चुपचाप कुर्सी पर बइठल नीचे के ज़मीन गोड़ के अंगूठा से बखोरत रहल. मानो कुछ लिखत होखो गोड़ के अंगूठा से.
‘गोड़ के अंगूठा से ना, हौसला से आपन किस्मत लिखे के पड़ेला.’ मुनमुन बोलल, ‘अगर तूं तइयार होखऽ त साफ-साफ बोलऽ ना त मना कर द. तोहरा मर्जी बिना हम कुछऊ ना करब.’
ऊ अबहियों चुपे रहल. हँ अंगूठे से ज़मीन बखोरल बंद कर दिहले रहल.
‘त तइयार बाड़ू?’ मुनमुन आपन सवाल दोहरवलसि.
‘जी दीदी!’ ऊ गँवे से बोलल.
‘त चलऽ फेर थाना चलल जाव.’ ऊ तनिका रुकल आ बोलल, ‘बाकिर पहिले एगो वकील करे के पड़ी.’
‘ऊ काहे ला?’ लड़िकी के पिता अकबका के पूछलन.
‘एफ़.आई.आर. के ड्रा़फ्ट लिखवावे ला.’
‘त वकील त पइसा ली. ’
‘हँ ली त. बाकिर ढेर ना.’ मुनमुन बोतवलसि.
‘बाकिर अबहीं त हम किराया भाड़ा छोड़ कुछ अधिका ले नइखीं आइल.’
‘कवनो बाति ना.’ मुनमुन बोलल, ‘वकील के पइसा बाद में दे देब. अबहीं सौ पचास रुपिया त होखबे करी, ऊ टाइपिंग ला दे देब.’
‘ठीक बा!’
वकील किहां जा के, पूरा डिटेल बता के, नून मरीचा मिला के एफ़.आई.आर. के तहरीर टाइप करवा के मुनमुन बाप बेटी के ले के थाना चहुँपल. थाना वाला ना नुकुर पर अइलन त मुनमन बोलल, ‘का चाहत बानीं कि सोझे डी.एम., एस.एस.पी भिरी जाईं सँ भा अदालती आदेश ले के आईं सँ?’ ऊ बोलल, ‘एफ़.आई.आर. त रउरा लिखहीं के पड़ी आज लिखीं भा दू चार दिन बाद!’
अब थानेदार तनिका घबराइल आ बोलल, ‘ठीक बा. तहरीर छोड़ दीं. जांच का बाद एफ़.आई.आर. लिख दीहल जाई.’
‘आ जे एफ़.आई.आर. लिखला का बाद जाँच करब सभे त का बेसी दिक्कत बा?’ मुनमुन थानेदार से पूछलसि.
‘देखीं मैडम हमनी के हमहन के काम करे दीँ!’ थानेदार फेर टालमटोल कइलन.
‘रउरा से फेरु बिनती करत बानी सँ कि एफ़.आई.आर. दर्ज कर लीँ. मामला डावरी एक्ट के बा. एहमें रउरा बचे के रास्ता नइखे. आ जे अबहीं ना लिखब त अबहिएं शहर जा के डी.एम. आ एस.एस.पी. से राउर ओरहन करे के पड़ी. राउरो फजीहत होखी. हमनी के बस दौड़-धूप बढ़ जाई!’
थानेदार मान गइलन. रिपोर्ट दर्ज हो गइल. लड़िकी के ससुराल पक्ष के पूरा परिवार फ़रार हो गइल. घर में ताला लगा के ना जाने कहवां चल गइले सँ. रिश्तेदारी, जान-पहचान सहित तमाम संभावित ठिकानन पर पुलिस छापा डललसि बाकिर कतहीं ना भेंटइले सँ. महीना बीत गइल. महीना भर बादे पारिवारिक अदालत में मुनमुन लड़िकी का ओर से गुज़ारा भत्ता खातिरो मुक़दमा दर्ज करवा दिहलसि. अब ससुराल पक्ष का ओर से एगो वकील मिलल बाप बेटी से. वकील लड़िकी के पिता से कहलसि कि, ‘सुलहनामा कर ल आ ऊ लोग तोहरा बेटी के विदा करा ले जाई.’
लड़िकी के पिता मुनमुन से पूछलन, ‘का करीं?’
‘करे के का बा?’ ऊ बोलल, ‘मना कर दीं आ कवनो बात मत करीं. अबहीं जब कुर्की के नौबत आई तब पता चली. देखल जाव, कहिया ले फरार रहत बाड़न स.’
‘बाकिर ऊ लोग बेटी के विदा करावे ला तईयार त हो गइल बा.’
‘कुछ ना. ई मजबूरी के पैंतरेबाज़ी बावे. कुछऊ कर लीं ओहिजा अब राउर बेटी जा के कबहियों खुश ना रहि पाई.’
‘काहें?’
‘काहेंकि गांठ अब बहुत मोट पड़ गइल बा.’ मुनमुन बोलल, ‘तनिका दिन अउरी सबुर कर लीं आ दोसर बिआह ला रिश्ता खोजीं. एहनी के भुला जाईं.’
आ आखिरकार सुलहनामा लिखा गइल. मुनमुन के कहला मुताबिक़ लड़िकी के पिता बतौर मुआवजा दस लाख रुपिया मंगलन. बात पाँच लाख पर तय भइल. दुनू का बीच तलाक हो गइल. लड़िकी के पिता एही पाँच लाख से ओकर दोसर बिआह करवा दिहलें. लड़िकी के बारे में सब कुछ पहिलहीं बता दीहल गइल, कटल अंगूरी से ले के पहिलका बिआह तक ले. कुछऊ लुकावल ना गइल. एक दिन लड़िकी अपना नयका पति का साथे मुनमुन से मिले आइल. लिपट के रो पड़ल. मुनमुनो रोवे लागल. ई खुशी के आंसू रहल. बाद में लड़िकी बोलल, ‘दीदी रउरा त हमरा के नरक से निकाल के सरग में बईठा दिहनी. ई बहुते नीमन हउवन. हमरा के बहुते मानेलन.’ फेर ऊ गँवे से जोड़लसि, ‘दीदी अब रउरो बिआह कर लीं!’
मुनमुन चुप रह गइल. कुछ देर ले दुनु चुप रहली. आ ऊ जे कहल जाला कि इतिहास अपना के दोहरावेला त उहे होखत रहल. मुनमुन कुर्सी पर बइठल-बइठल गोड़ के अंगूठा से नीचे के माटी बखोरत रहली.
‘दीदी बुरा ना मानीं त एगो बात कहीं”‘चुप्पी तूड़त लड़िकी पूछलसि.
‘कहऽ.’ मुनमुन गँवे से बोलल.
‘छोटा मुंह आ बड़ बात!’ लड़िकी बोलल, ‘बाकिर दीदी रउरे एक बेर एहिजे बइठल हमरा से कहले रहनी कि गोड़ के अंगूठा से ना अपना हौसला से आपन किस्मत लिखे के होला!’
‘अच्छा-अच्छा!’ कहि के मुनमुन धीरे से मुसुकाइल.
‘त दीदी रउरो बिआह कर लीं!’ लड़िकी मानो मनुहार कइलसि.
‘अब हमरा नसीब में ना जाने का लिखल बा बहिन !’ कहि के मुनमुन ओह लड़िकी के पकड़ के फफके लागल. ‘समुझावल आसान होला, समुझल मुश्किल!’ कहि के ऊ दुनू हाथ जोड़ले, रोवत घर का भीतर चल गइल. रोना घोषित रूप से छोड़ दिहला का बाद आजु मुनमुन पहिलके बेर रोवले रहल. से खूब रोवलसि. देर तक. तकिया भींज गइल.
जल्दिए मुनमुन फेरु रोवल. चनाजोर गरम बेचे वाला तिवारी जी के गंगा लाभ हो गइल. ऊ पता लगा के उनुका घरे गइल आ तिवारी जी के विधवा बूढ़ पत्नी का विलाप में उहो शामिल हो गइल. फेर बड़ी देर रोवलसि. तिवारी जी ओकरा नाम से चनाजोर गरम बेच के जवन मान सम्मान आन बखसले रहलें, ऊ ओकरा जिनिगी के संबल बन गइल रहुवे. ई बाति ऊ तिवारी जी के निधन का बाद उनुका घरे जा के महसूसलसि. शायद एही चलते ओकर रोवाई तिवारी जी के विधवा का रोवाई से अनायास एक हो गइल. अइसे जइसे छलछलात जमुना गंगा से जा मिलेली. मिल के शांत हो जाली. फेरु साथे साथ बहत एकमेव होके गंगा बन जाली. आ ऊ जे कहल जाला नू कि नदी के पाट जमुना का चलते चाकर होखेला, बाकिर नाम होला गंगा के. त एहिजो बाद में बेसी रोवलसि मुनमुन बाकिर तिवराइन के विलाप लोग अधिका सुनल. गंगा के पाट आ तिवराइन के विलाप के ई एकमेव संजोग ना जाने काहें मुनमुन के रोवल रोक ना पावत रहल. घर में त तकिया भींजल रहल. एहिजा का भीँजल? का ई मुनमुन के ढेर दिन ना रोवला का जिद का चलते भइल? आ कि सावन भादो में सूखा पड़ल आ कुआर कातिक में बाढ़ आ गइल. अतना कि बांध टूट गइल! ई कवन मनोभाव रहल?
समुझावत त रहली मुनमुन के अम्मो कि, 'मुनमुन, या त अपना ससुरारी जाए के मन बनावऽ आ चलि जा. आ जे ओहिजा नइखे जाए के जिद बा त दोसर बिआह खोज लऽ. एकरा ओकरा साथे घुमला से नीक इहे होखी.'
‘का करीं अम्मा!' मुनमुन कहली, 'साथे घूमे फिरे सूते ला त सभे हमेशा तइयारे रहेला! बाकिर बिआह करे खातिर केहू ना. आ एकरा खातिर सभका दहेज चाहीं!'
‘त दोसरा के दहेज बिटोरे के टोटका बता सकेलू, दहेज के मुकदमा लिखवा के, गुजारा भत्ता के मुकदमा करवा के लाखों के मुआवजा पावे के रास्ता बता सकेलू आ ओह मुआवजा से दहेज के खरचा उठावत दोसर बिआह करे के सलाह दे सकेलू त खुद अपना ला इहे राह काहें नइखू खोज लेत?'
‘ई काम हम एह चलते नइखीं कर सकत कि ई सब करिके हम अपना तौर पर ओह शादी के मान्यता दे देब जवना के हम बिआह मनबे ना करीं! एही चलते अम्मा हम ई नइखीँ करे वाला!'
‘लोग बदल गइल, चीझु सब बदल गइल. तोहार भाईं ले बदल गइलें. बाकिर तूं आ तोहार बाबूजी ना बदललन.'
‘अइसे त बदलबो ना करब सऽ अम्मा!' मुनुमन कहलसि, 'कि बेबात सभका सोझा ठेहुनिया जाएब सँ, आपन मान सम्मान गिरवी राख देब सँ? हमनी का अइसे नइखीं बदले वाला अम्मा!'
आखिर मुनमुन बदलत काहे नइखी? आ ओकर बाबूजी! ई सवाल एकाधे लोग ना अनेके लोग ला यक्ष प्रश्न बन गइल रहुवे. घनश्यामो राय के इहे सवाल रहल. भलहीं अब ऊ एह सवाल के जबाब साथे लिहले घूमे लागल बाड़ें. जइसे कि एक बेर बात निकलल कि, 'जब राउर बेटा लुक्कड़, पियक्कड़ आ सनकाह हवे त मुनमुन जइसन लईकी कइसे रहि सकेले ओकरा साथे?' त घनश्याम राय के जबाब रहल कि, 'लड़िका हमार पागल पियक्कड़ ह, हम त ना! हम राखि लेब मुनमुन के. दिक्कत का बा?'
सवाल करे वाला लजा के रहि गइल बाकिर घनश्याम राय ना. सवाल करे वाला टोकबो कइलसि कि,'का कहत बानी राय साहब. पतोहो बेटी जइसन होखेले.'
‘त?’ घनश्याम राय तरेरलन.
घनश्याम राय के ई जवाब बड़ी तेज़ी से सभका लगे ले चहुँप गइल. मुनमुनो का लगे. सुनि के कहलसि कि, 'हम त शुरुए से जानत बानी कि ऊ कुकुर हऽ, अघोड़ी हऽ.'
फेर ऊ घनश्याम राय के फ़ोन करि के उनुकर जतना फजीहत कर सकत रहुवे कइलसि आ कहलसि कि , 'आइन्दा जे अइसन ओइसन बात कहलऽ त जइसे अपना दुआरी तोहरा बेटा के जुतियवले रहीं, वइसहीं तोहरे दुअरा आ के तोहरो के जूतिया देब!’
‘तोर अतना हिम्मत हो गइल बा!' घनश्याम राय हुंकरले त बाकिर डेराइओ गइलन आ फोन काट दिहलन.
फेर एगो वकील से मशविरा लिहलन आ मुनमुन के विदाई ला मुक़दमा दायर करवा दिहलन. मुनमुन के जब एह मुकदमा के सम्मन मिलल त ऊ मुसुका के रहि गइल. वकील के बेटी रहल से तुरते जबाब दिहला का जगहा तारीख पर तारीख लेबे लागल. तारीख आ अछरंगन के मकड़जाला में ऊ घनश्याम राय के अइसन अझूरवलसि कि ऊ हताश हो गइलन. कचहरी में घनश्याम राय आ उनुका बेटा के मुनमुन अइसे तरेर के देखे कि दुनु भाग के अपना वकील का पीछे लुका जासु कि कहीं मुनमुन ओहनी के पीट मत देव. बाकिर मुनमुन के सगरी जोश, सगरी बहादुरी घरे चहुँपते अलोप हो जाव. अम्मा त पहिलहीं कंकाल बनि के रह गइल रहुवी. बाबूओजी अब कंकाल बने लागल रहलन. कान्ह आ कमर उनुको नवे लागल रहल. गाल पिचक गइल रहल. एक त मुनमुन के चिन्ता, ओह पर से बेटन के अनदेखा, तिसरे माली हालत आ बेमारी उनुका के झिंझोड़ के राख दिहले रहल. ई सब देखि के मुनमुनो टूट जाव. अतना कि अब ऊ मीरा बनल चाहे लागल रहुवे. ख़ास क के तब आ जब केहू अम्मा बाबू जी से पूछ देव, ‘जवान बेटी के कहिया ले घरे बइठा के राखब?'
ऊ मीरा बनि के नाचल चाहत बिया. मीरा के नाच में आपन तनाव, आपन घाव,अपना मनोभावन के धोवल चाहत बिया. बाकिर धोआ नइखे पावत ई सभ कुछ. ऊ अम्मा बाबू जी दुनूं के ले के अस्पताल जात बिया. दूनो जने बेमार बाड़ें. डाक्टर भर्ती कर लेत बाड़ें. एक वार्ड में बाबू जी, दोसरा वार्ड में अम्मा. ऊ चाहत बिया कि दुनू जने के एकही वार्ड मिल जाइत त बढ़िया होखीत. डॉक्टरन से कहतो बिया बाकिर डॉक्टर मना कर देत बाड़ें. बतावत बा लोग कि पुरुष वार्ड में पुरुष, स्त्री वार्ड में स्त्री. अब जब ओकर अम्मा बाबू जी पुरुष आ स्त्री में तब्दील हो गइलें त ऊ खुद का हिय? ऊ सोचत बिया, सोचते सोचत सुबुके लागत बिया. हार थाक के रीता दिदिया के फोन क के सब कुछ बतावत बिया. बतावत बिया कि कइसे ऊ अकेले सभ सम्हार नइखे पावत. दोसरे ओकरा लगे पइसो नइखे रहि गइल.
‘भइया लोगन के बतवलू हऽ?’ रीता पूछलसि.
‘हम भईया लोगन के बतावहूँ के नइखीं सोचत दिदिया. पता ना तोहरा के कइसे बता दिहनी. आ अब हमरा फोनो के बैलेंस खतम होखे वाला बा. बाते करत में कबो कट सकेला!'
‘ठीक बा. तूं राखऽ हम मिलावत बानी.' रीता बोलल.
बाकिर रीता के फोन ना आइल. मुनमुने अम्मा बाबू जी को ले के घरे आवत बिया. स्कूल के हेड मास्टर मदद क दिहलन. पइसो से आ अस्पताल से छुट्टी करावहूं में. घरे आ के बाबूजी आँख फइला के मुनमुन से पूछत बाड़न, 'बेटी अइसे कब ले चल पाई भला?'
‘जब ले चल पाई चलाएब. बाकिर अगर जे रउरा चाहत होखब कि हम अन्यायी आ अत्याचारियन का आगा झुक जाईं. त हम ई नइखीं करे वाला चाहे जवन हो जाव!' कहि के मुनमुन किचेन में चल जात बिया. चाय बनावे.
बिजली चल गइल बा. ऊ किचेन से देखत बिया. अङना मे चांदनी उतर आइल बा. ऊ फुदुक के अङना में आ जात बिया. चांदनी में नहाए. अइसे जइसे ऊ मुनमुन ना हो के कवनो गौरैया होखो! ओने किचेन में चाय खदक रहल बा आ ऊ सोचत बिया कि सबेरे सूरज उगी तबो का ऊ अइसहीं नहाई सूरज का रोशनी में, जइसे अबहीं नहा रहल बिया चांदनी में. ओने चांदनी में बइठल अपना बेटी के देखि के अम्मा का मन में ओकर बीतल दिन, बचपन के दिन पँवड़े लागत बा कवनो सपना का तरह आ ऊ गावल चाहत बाड़ी कि, 'मेरे घर आई एक नन्हीं परी, चांदनी के हसीन रथ पे सवार!' बाकिर ऊ गा नइखी पावत. ना त मन साथ देत बा, ना आवाज! से ऊ सूत जात बाड़ी. किचेन में चाय अबहियों खदकत बावे!
आ देखीं सबेरे के सूरज सचहीं मुनमुन खातिर खुशियन के खजाना ले के ऊगल. अखबार में खबर छपल रहुवे कि सगरी शिक्षा मित्रन के ट्रेनिंग दे के नियमित क दीहल जाई. दुपहरिया ले एगो डाकिया एगो चिट्ठी दे गइल. चिट्ठी ना ई पी. सी. एस. परीक्षा के प्रवेश पत्र रहुवे. मुनमुन प्रवेश पत्र चहकि के अम्मा के देखवलसि त अम्मा रोवाइन हो गइली. बोलली, 'त अब तूं अधिकारी बन जइबू?' आ फेर उनुकर मन काँप उठल रहुवे आ बोल दिहली, 'अपना भइया लोगन का तरह!’
मुनमुन अम्मा के डर समुझ गइल. अम्मा के अंकवारी में लेत बोलल, 'ना अम्मा, भईया लोगन का तरह ना, तहरा बेटी का तरह! बाकिर अबहीं त दिल्ली दूर बा. देखऽ का होखत बा?'
पीसीएस के तइयारी त पहिलहीं से थोड़-बहुत करत आइल रहुवे मुनमुन. बाकिर बाबूजी के सलाह मान के ऊ स्कूल से छुट्टी ले लिहलसि. लमहर मेडिकल लीव आ लाग गइल तइयारी में. दिन-रात एक कर दिहलसि. भुला गइल बाकी सभ कुछ. जइसे ओकरा जिनिगी मे पीसीएस के इम्तहान छोड़ कुछ रहिए ना गइल होखो. बाँसगांव के लोग तरस गइल मुनमुन के एक झलक भर पावे खातिर. बांसगांव के धूल भरल सड़क जइसे ओकर राह देखत रह गइल बाकिर ऊ निकलल ना. ऊ भितरे-भीतर अपना के नया तरीका से रचत रहुवे. मानो अपने कोख में होखो, अपनहीं महतारी, अपनहीं कोख. जइसे सिरजन करे वाला आपने सिरजन करत होखो. बिखरल सिरजन में संवरत -बनत अगर देखे के होखो त मुनमुन के देखल जा सकत रहुवे. ऊ कबीर के गुनगुनावे, ‘खुद ही डंडी, खुद ही तराजू, खुद ही बैठा तोलता.’ ऊ अपनहीं के जोखत रहुवे. एगो नया आगि आ एगो नया अगिन परीक्षा से गुजरत मुनमुन जानत रहल कि जे अबकी ना उबरल त फेर कबो ना उबर पाई. जिनिगी जिए के बा कि नरक जिए पड़ी सभ कुछ एही परीक्षा परिणाम पर टिकल बा, ई ऊ जानत रहल. अम्मा कबो टोकसु त बाबूजी रोकत बोलसु, ‘मत रोकऽ, सोना आग में तप रहल बा, तपे दऽ!’
जाने ई संजोगे रहल आ कि मुनमुन ला प्रेम कि मुनमुन के एह तइयारी का दौरान ना त बाबू जी ना अम्मा बेमार पड़लन, ना कवनो आर्थिक समस्या आइल. हँ एह बीच राहुल के भेजल रुपिया आ गइल त मुनमुन के वेतन ना मिलला का बावजूद घर खर्च में बाधा ना आइल. बीच मे दू बेर मुनमुन के स्कूल के हेड मास्टरो अइलन ‘बेमार’ मुनमुन के देखे ला. बाकिर उनुको से ना मिलल मुनमुन. मुनक्के राय से मिल के ऊ लवटि गइलन.
कहल जाला नू कि जइसे सभकर दिन पलटेला वइसहीं मुनमुनो के दिन पलटल. समय जरुर लागल. बाकिर जवन मुनक्का राय कहत रहलन कि, ‘सोना आग में तपत बा, तपे दऽ!' त सचहूं सोना तप गइल. मुनमुन पीसीएस मेन में आ गइल. अखबारन के खबर से बांसगांव जानल. बाकिर अब एह खबर पर आह भरे ला गिरधारी राय ना रहलन. ना ही ललकारत चना जोर गरम बेचे वाला तिवारी जी. मुनमुन तिवारी जी के एह मौका पर बहुते मिस कइलसि. बधाई देबे वाला, लड्डू खाए वाला बहुते लोग आइल बांसगांव में मुनमुन का घरे. बाकिर मुनमुन के भाईयन के फोनो ले ना आइल. ना ही घनश्याम राय भा राधेश्याम राय के फ़ोन. दीपक के फ़ोन करि के मुनमुन जरूर आशीर्वाद मँगलसि. दीपको दिल खोल के आशीर्वाद दिहलें. हँ रीता अइली आ थाईलैंड से विनिता के बधाई वाला फोनो. बहुत बाद में राहुलो फ़ोन क के खुशी जतवलसि.
ट्रेनिंग-व्रेनिंग पूरा भइला का बाद मुनमुन अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एगो तहसील में एसडीएम तैनात हो गइल बिया. बांसगांव से आवत घरी ऊ अम्मा, बाबू जी के अकेले ना छोड़लसि. बाबू जी से बोलल, ‘छोड़ीं एह प्रेक्टिस के मोह आ चलीं अपना रानी बिटिया का साथे!'
‘अब बेटी के कमाई के अन्न खाएब हमनी का?’ अम्मा बोलल, ‘राम-राम, पाप ना लागी!'
बाकिर मुनक्का राय चुपे रहलन. बाकिर जब मुनमुन बहुत रिगिर कइलसि त ऊ गँवे से बोललन, 'त का एह घर में ताला लगा दीं?'
‘अउर का करब?' मुनमुन बोलल, ‘अब हम रउरा लोगन के एह तरह अकेला ना छोड़ब! हँ छुट्टी में आवत रहल जाई!'
‘फेर त ठीक बा!’ मुनक्का राय के जइसे राह भेंटा गइल.
‘बाकिर!’ मुनमुन के अम्मा अबहियों प्रतिवाद कइली.
‘कुछ ना, अब चलऽ!' मुनक्का राय बोललन, ‘एकरो हमनी पर हक बा. अबहीं ले ई हमनी का कहला पर चलल. अब समय आ गइल बा कि हमनी का एकरा कहला पर चलल जाव!' ऊ तनिका रुकलन आ पत्नी के हाथ थाम के बोललन, ‘चलऽ बेटी चलत बानीं सँ. ’
मुकदमन के सगरी फाइल वगैरह मुनक्का राय अपना जूनियरन आ मुंशी का जिम्मा लगवलन. घर के बहरी वाला कोठरी जूनियरन के चैम्बर बनावे ला दे दिहलन आ आपन नेमप्लेट देखावत जूनियरन से कहलन, ‘ई नाम एहिजा आ बांसगांव में बनल रहे के चाहीं. उतरही लोग मत एह नेमप्लेट के आ ना हमरा नाम पर कवनो बट्टा लगइहऽ लोग. आ हँ, घर में दीया-बत्ती करत रहीहऽ लोग. मतलब लाइट जलावत रहीह लोग.’ जूनियरो हँ में हँ मिला दिहलें.
बाक़ी घर में ताला लगावत मुनक्का राय बांसगांव से विदा भइलन सपत्नीक मुनमुन बेटी का साथे. आ बोललन, 'देखत बानी कि आबोदाना अब कहां-कहां ले जात बावे!’ फेर एगो लमहर साँस लिहलें. संजोगे रहल कि पड़ोसी ज़िला में धीरजो अब सीडीओ हो गइल रहल. कभो-कभार कमिश्नर का मीटिंग में धीरज, मुनमुन आमने-सामने पड़ जासु त मुनमुन झुक के धीरज के गोड़ छू लेव आ धीरजो मुनमुन का माथ पर हाथ राखि के आशीष दे देसु. बाकिर कवनो बातचीत ना होखे दुनु का बीचे. ना त व्यक्तिगत रुप से ना सार्वजनिक रुप से.
अइसने कवनो मीटिंग का दिने जब मुनमुन कलफ लागल साड़ी में गॉगल्स लगवले अपना जीप से उतरत रहल त ऊ बीएसए सोझा पड़ गइल जे सुनीता के पति का शिकायत पर ओकरा से जवाब तलब करे ला ओकरा के बोलवले रहल. देखते ऊ चिहुँकल आ अदब से बोलल, ‘मैम आप !’ आ फेर जइसे उछलत बोलल, ‘आप त बांसगांव वाली मुनमुन मैम हैं!’
‘हूं. ’ मुनमुन गॉगल्स तनिका उतारत बोलल, 'आप?’
‘अरे मैम मैं वह बीएसए. ’ ऊ तनिका अदब से बोल, ‘जब आप ....... !’
‘शिक्षा मित्र थी....!’
‘जी मैम, जी.... जी!’
‘तो?’ मुनमुन तनिका तरेरलसि!
‘कुछ नहीं मैम, कुछ नहीं. प्रणाम!’ ऊ जइसे हकला पड़ल.
‘इट्स ओ.के.!’ कहिक मुनमुन एकदम से अफ़सराना अंदाज़ में आगे निकलल. तब ले अपना कार से उतरत धीरजो सोझा पड़ गइल. त हमेशा का तरह ऊ झुक के पगोड़ छुअलसि. आ हमेशा का तरह धीरजो ओकरा माथ पर हाथ धर के आशीष दिहलसि, निःशब्द! एह बीच मुनमुन कानूनी रूप से राधेश्याम के गुपचुप तलाको दे दिहलसि. बहुते खामोशी से. भाइयनो के ई पता ना चलल.
हँ, राधेश्याम अबहियों कभी कभार पी-पा के बांसगांव आ जाला. कबो मुनक्का राय के ताला लागल घर के दरवाज़ा पीटेला त कबो पड़ोसियन के दरवाजा. एह फेर में ऊ अकसरहाँ पिटा जाला बाकिर ओकरा पर कवनो असर ना पड़े. ऊ बुदबुदात रहेला कि, ‘मुनमुन हमार हियऽ' लोग ओकरा के बताइओ देला कि मुनमुन अब एहिजा ना रहे. उहो अपना भाईयन का तरह अफसर बन गइल बिया. राधेश्याम बहकत लड़खड़ात आवाज़ में कहल करेला, ‘त का भइल! हवे त हमरे मुनमुन!’
मुनमुनो कभी कभार अम्मा बाबू जी के ले के बांसगांव आ जाले. का करे, ऊ बेबस हो जाले. ऊ रहे कतहूं बाकिर ओकरा दिल में धड़केला त बांसेगांव. बांसगांव के बेचैनी ओकरा मन से कबो ना जाव. कबो कबो ऊ हेरेले ओह तिवारी जी के बांसगांव का बस स्टैंड पर जे मुनमुन नाम से एक समय चनाजोर गरम बेचत रहलन. ऊ तिवारी जी जिनका बारे में ओकरा मालूम बा कि ऊ अब नइखन. तबहियों. करबो करे त का करे ऊ! सुख-दुख, मान-अपमान, सफलता-असफलता सब कुछ देखवलसि इहे बांसगांव. अल्हड़ जवानिओ बांसेगांव का बांसुरी पर गवलसि, सुनलसि, आ गुनगुनवलसि. आ फेर बांसगांव के बरगद के छांव में ओकर जिनिगी बरबादो भइल. ओह घरी ऊ गावतो रहल, ‘बरबाद कजरवा हो गइलैं !’ त भला कइसे भूला जाव एह आबाद आ बरबाद बांसगांव के ई 'बांसगांव के मुनमुन'. संभवे नइखे. जब ले ऊ जीही, जइसहूं जीही, बांसगांंव त ओकरा सीना में धड़कले करी. लोग जब तब ओकरा बदलल अंदाज भा साहबी ठाट-बाट पर चकित होखेला भा ओकरा से ओकरा संघर्ष पर बतियावेला त ऊ लोगन से कहेले, 'स्थाई त कुछऊ ना होखे. सभ कुछ बदलत रहेला. सुख होखो, दुख होखो भा समय. बदले के त सभका बड़ले बा.'फेर जइसे ऊ बुदबुदाले, ‘हँ, ई बांसगांव नइखे बदलत त ऊ का करो?'
‘उ त सब ठीक बा.’ एगो पड़ोसिन पूछत बिया, ‘मुनमुन बहिनी शादी कब करबू?'
मुनमुन चुप लगा जात बिया. जहँवा मुनमुन एस. डी. एम. बिया ओहिजो के अधिकारी कॉलोनी में ओकर एगो पड़ोसिन ओकरा घर में ठीक मुनक्का राय का सामनहीं पूछ लिहली, ‘दीदी आप ने अब तक शादी क्यों नहीं की?’ ऊ मुनमुन के बिआह भा तलाक का बारे में नइखे जानत. एहिजा केहू नइखे जानत. मुनमुन जनावलो ना चाहे. बाकिर जब ऊ औरत आपन सवाल दोहरावत बिया कि, ‘दीदी आप ने अब तक शादी क्यों नहीं की?’
‘इन्हीं से पूछिए !’ मुनमुन धीरे से बाबू जी का ओर इशारा कर के कहत बिया.
कवनो जबाब दिहला बिना मुनक्का राय आपन छड़ी उठा लेत बाड़न आ टहले निकल जात बाड़न. राह में सोचत जात बाड़न कि का मुनमुन अब आपन दुलहो खुदे ना खोज सके? का ऊ फेरु से खोजल शुरु कर देसु. मुनमुन खातिर कवनो सही वर. का अखबारन में विज्ञापन दे देसु? भा इंटरनेट पर? घर लवटत घरी ऊ तय कर लेत बाड़न कि आजु ऊ एह बारे में मुनमुन से साफ बात करीहें. ऊ अपने से बुदबुदातो बाड़न, 'चाहे जवन होखे शादी त करहीं के बा मुनमुन बिटिया के!’
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