Friday, 1 February 2019

फ़िलहाल चुनाव की बिसात पर जाति , धर्म और बजट तीनों में ही विपक्ष पर बहुत भारी हैं मोदी


प्रतिपक्ष की राय है कि यह चुनावी बजट है । गुड बात है । लेकिन कोई बताए भी कि कोई बजट चुनाव विरोधी भी होता है क्या ? मतदाताओं के हिसाब से बजट सिर्फ़ और सिर्फ़ आंकड़ों की , वायदों की लफ्फाजी होती है । कुछ और नहीं । बजट सिर्फ और सिर्फ कारपोरेट जगत , शेयर मार्केट , व्यवसाय , उद्योग आदि को लाभ देने , दिलाने के लिए होता है । सरकारी काम-काज के लिए होता है । फिर इस बजट को ले कर मीडिया पर कुछ टुकड़खोर बुद्धिजीवी , इस पक्ष के हों या उस पक्ष के फर्जी टाइप चर्चा , कुचर्चा करने के लिए होता है । पूरी तरह प्रायोजित । जब कि मध्यवर्गीय लोग वोट डालने जाएं या न जाएं पर हर बजट में इनकम टैक्स की टुकड़खोरी के लिए कुत्तों की तरह मुंह बाए रहते हैं । किसान , मज़दूर , गरीब के लिए कुछ झुनझुने भी रहते हैं बजट में । जिस की जमीनी सचाई कभी दिखी नहीं आज तक । चाहे किसी भी सरकार का बजट हो। ऐसे-ऐसे नेता बजट पर आग उगलते या तारीफ़ करते हैं , जो बजट की स्पेलिंग या इस की अवधारणा भी नहीं जानते । सत्ता पक्ष का जवाब सर्वदा विकासोन्मुखी , गरीब , किसान , मजदूर आदि की हिमायत वाला होता है । जब कि प्रतिपक्ष किसान विरोधी , मजदूर विरोधी , देश को गर्त में डालने वाला बता देता है । हर बजट का जैसे यह स्थाई भाव है । वैसे विपक्ष सर्वदा ही बजट के खिलाफ सिर्फ़ और सिर्फ़ आग उगलता रहा है लेकिन इस बार तो वह भारी हताशा में डूबा दिख रहा है । गोया इस एक अंतरिम बजट से उन का क्या छिन गया है । लोकसभा में बजट भाषण के दौरान भी यही हाल दिख रहा था और अब बाहर भी ।

खैर , अब तो तमाम नामी अर्थशास्त्री भी पार्टी की तरह बोलते हैं । कौन सच बोल रहा है , कौन झूठ , और कि किस पक्ष का कुत्ता बन कर बोल रहा है , यह भी साफ़ दिखाई देता है । इस कुत्तागिरी में पत्रकारों की स्थिति अर्थशास्त्रियों से भी ज़्यादा दयनीय है। साफ़ और संतुलित बोलने वाला अब कोई एक नहीं है । वैसे भी बजट और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की भाषा अंगरेजी की होती है । सामान्य आदमी के लिए यह बजट भाषण एक बड़ी सी भूलभुलैया है , जिस में वह अपनी राह , अपनी आंख कभी नहीं देख पाता । जो दिखाया , बताया जाता है , वही देखता , जानता है । याद आता है कि एक बार जब यशवंत सिनहा वित्त मंत्री थे तो ऐन बजट भाषण में उन्हें टोकते हुए लालू यादव ने कहा , भाषण हिंदी में पढ़िए । तो यशवंत सिनहा ने तंज करते हुए लालू को कितना अपमानित किया था और लालू अपनी बेशर्म हंसी में फिस्स कर के , दांत चियार कर रह गए थे । पेट्रोल डीजल अब बजट की पाकेट से बाहर है ही । तो इस पर बात अब होती नहीं ।

वैसे भी यह अंतरिम बजट है । पर सच यह है कि अच्छे बजट या बुरे बजट से , विकास आदि का चुनाव पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। भारत में अभी तक का राजनीतिक इतिहास यही है फ़िलहाल । बजट और विकास आदि के नाम पर आप लाख कलेजा निकाल कर रख दें अपने मतदाता के चरणों में , मतदाता को यह सब कभी नहीं भाता । जातियों का जंगल , धर्म का दंगल इस सब पर भारी पड़ जाता है । कभी-कभार भ्रष्टाचार और मंहगाई भी मतदाताओं को अपनी आंच पर पिघलाती है जैसे कभी राजीव गांधी बोफोर्स में बह गए , जैसे कि मनमोहन सिंह टू जी , कोयला और जीजा जी में बह गए । लेकिन यह कभी कभार का अपवाद है । 

इस बार का चुनाव जाति और धर्म के मुद्दे पर ही विपक्ष लड़ना चाहता है । अब तक की विपक्ष की सारी सक्रियता इसी मोर्चे पर है । अलग बात है , विपक्ष यह भूल गया है कि धर्म और जाति दोनों मामले में मोदी मास्टर हैं । विपक्ष इस मामले में मोदी के पासंग बराबर भी नहीं ठहरता । विपक्ष ने इस बार चुनाव की चाल ही गलत चल दी है। फ़िलहाल मोदी चुनाव की बिसात पर जाति , धर्म और बजट तीनों में ही विपक्ष पर बहुत भारी हैं । विपक्ष सिर्फ चूहों की जमात बन कर रह गया है , जो आए दिन गठबंधन की बैठकें , सभाएं कर-कर मोदी के गले में घंटी बांधने की कवायद में व्यस्त , न्यस्त और त्रस्त है । विपक्ष की नियति अब पत्ता बन कर गठबंधन के चूल्हे में दहक कर बुझ जाना ही रह गया है । वह आग , जिस की राख भी बाद में नहीं मिलती ।

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