सी बी आई विवाद में ममता बनर्जी ने पाया कम , खोया ज़्यादा है । अभी तक जो बात ढंकी-छुपी थी अब वह जग जाहिर हो गई है । वह यह कि कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को सी बी आई द्वारा पूछताछ से बचाने के धुन में ममता ने बता दिया है कि वह शारदा चिट फंड घोटाले के घोटालेबाजों के साथ खुल्लमखुल्ला खड़ी हैं । चालीस हज़ार करोड़ के इस घोटाले में जिन लाखों गरीबों का पैसा लुटा है , वह गरीब और उन के परिजन क्या अब भी ममता को वोट देंगे ? दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने तुम्हारी भी जय-जय , हमारी भी जय-जय की राह चलते हुए , राजीव कुमार को गिरफ्तार करने के बजाय , राजीव कुमार को सी बी आई के सामने पेश होने का आदेश दे कर ममता बनर्जी को पानी पिला दिया है । अब राजीव कुमार शिलांग में सी बी आई के दफ्तर में पेश होंगे जहां उन के बचाव के लिए न तो बंगाल पुलिस होगी , न टी एम सी के गुंडे । अब ममता बनर्जी खुद साथ चली जाएं तो बात और है । ममता बनर्जी ने राजनीतिक माइलेज लेने के चक्कर में अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है । वह भले आज अपनी नैतिक जीत का दावा कर रही हैं पर उन के इस अराजक धरने में पहुंचा भी कौन ? एक नैतिक तेजस्वी यादव , दूसरी नैतिक कनु मोझी। बाकी नैतिक लोगों की प्रतीक्षा में अभी भी धरना जारी रखे थीं । अब चंद्रबाबू नायडू पहुंचे हैं और उन का धरना खत्म करवा दिया है । और कि अब यह लड़ाई लड़ने के लिए ममता बनर्जी दिल्ली भी जाएंगी। गुड है । दिलचस्प यह कि बंगाल प्रदेश कांग्रेस की शिकायत पर ही सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत सी बी आई जांच के आदेश दिए। बंगाल प्रदेश कांग्रेस आज भी इस बाबत ममता के खिलाफ खड़ी है पर राहुल ने मोदी मीनिया के चक्कर में मौखिक समर्थन दे रखा है ममता को। इस अंतरविरोध के भी क्या कहने !
सवाल है कि जिस तरह एक भ्रष्ट और अराजक पुलिस अफसर राजीव कुमार को बचाने के लिए सारा प्रोटोकाल तोड़ कर उस के घर पहुंच कर धरना पालिटिक्स कर देश की राजनीति को ममता बनर्जी आखिर क्या संदेश दिया है , समझना कठिन नहीं है । प्रधान मंत्री बनने की तमन्ना बुरी नहीं है , लेकिन इस तमन्ना के लिए देश की राजनीति को इस तरह अराजक दौर में झोंकना बहुत तकलीफदेह है । ममता बनर्जी ने वामपंथियों की गुंडई को खत्म कर , पराजित कर गुंडई का एक नया किला खड़ा कर ममता अपनी अराजकता में , लोकतंत्र का गला घोंट बैठी हैं , यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है ।
इस पूरी उठापटक में सी बी आई की साख को जो क्षति पहुंची है , सो तो पहुंची ही है पर सब से बड़ी क्षति कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार की हुई है । ममता के राजनीतिक टूल बने राजीव कुमार भूल गए हैं कि वह एक आई पी एस अफ़सर हैं , किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता नहीं । वह अपनी सेवा नियमावली को लात मार कर अपना एक पांव जेल में डाल चुके हैं । राजीव कुमार भूल गए हैं कि अयोध्या मामले में भाजपा के टूल बने फैज़ाबाद के तत्कालीन डी एम और एस एस पी भी सेवा से बर्खास्त कर जेल भेज दिए गए थे । तब के एस एस पी डी बी राय बाद में भाजपा के सांसद भी हुए पर कुछ समय बाद एक किताब भी लिखी और उस में लालकृष्ण आडवाणी की कटु निंदा करते हुए लिखा कि वह उन्हें कभी माफ़ नहीं कर सकते । मुझे लगता है राजीव कुमार का भी जल्दी ही मोहभंग होगा और वह भी ममता बनर्जी के खिलाफ जल्दी ही कुछ बोलना , लिखना शुरू करेंगे । गृह मंत्रालय ने धरना में शामिल होने पर नोटिस दी ही है । बस एक प्रशासनिक चोट खा लेने दीजिए , तब देखिए। शारदा चिट फंड का क्या पता कई सारे राज भी वह खोलने के लिए उपस्थित हो जाएं । कुल मिला कर ममता बनर्जी और राजीव कुमार ने बहुत कुछ खोया है । और इस से भी ज्यादा देश और देश की राजनीति ने बहुत कुछ खोया है। देश के संघीय ढांचे को जबर्दस्त आघात है यह प्रकरण ।
सटीक विश्लेषण
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (07-01-2019) को "प्रणय सप्ताह का आरम्भ" (चर्चा अंक-3240) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पाश्चात्य प्रणय सप्ताह की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (07-02-2019) को "प्रणय सप्ताह का आरम्भ" (चर्चा अंक-3240) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पाश्चात्य प्रणय सप्ताह की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
very easy and step to step answer
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