संसद में 16 वीं लोकसभा के आज सदन के आख़िरी दिन नरेंद्र मोदी का भाषण भावभीना था , मर्यादित , तथ्यात्मक और तार्किक था। बिना नाम लिए राहुल गांधी को बार-बार निशाना बनाया । सोनिया गांधी बैठी खिसियाती रहीं । लेकिन मोदी के इस बढ़िया भाषण के बावजूद आज लोकसभा में नंबर और सुर्खियां ले गए मुलायम सिंह यादव । मुलायम सिंह यादव ने सोनिया गांधी के बगल में खड़े हो कर कहा कि मैं चाहता हूं , मेरी कामना है कि इस सदन के सभी सदस्य दुबारा भी जीत कर आएं । हाथ जोड़ कर नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए कहा कि हम सब लोग तो इतना बहुमत कभी ला नहीं सकते तो मैं चाहता हूं कि प्रधान मंत्री जी , आप फिर बनें प्रधान मंत्री । इस के पहले मुलायम मोदीमय होते हुए बोले कि आप सब को साथ ले कर चले , सब का काम किया । सब से मिलजुल कर सब का काम किया है । मैं ने जब भी कोई काम कहा , आप ने तुरंत आदेश किया । नरेंद्र मोदी ने हाथ जोड़ कर मुलायम की यह बात सुनी और फिर अपने भाषण में मुलायम के आशीर्वाद का ज़िक्र भी किया ।
तो यह क्या था ?
ध्यान रहे कि भाजपाइयों की राय में मुल्ला मुलायम सिंह यादव , मुलायम मुल्ला हैं । तो उस मुल्ला मुलायम ने अपनी यह कामना सी बी आई के डर से की , लालू यादव का हश्र देखते हुए । या औरंगज़ेब सरीखे पुत्र अखिलेश यादव द्वारा अपनी पीठ में छुरा घोंपने , या मायावती से अखिलेश के समझौते का मलाल धोया । या कांग्रेस को ध्वस्त करने का , गैर कांग्रेसवाद का लोहिया का सपना मोदी द्वारा पूरा किए जाने की खुशी मुलायम के भीतर खिलखिला रही थी । या यह पहलवानी का कोई दांव था , खीझ थी , या कुछ और था। क्या था आख़िर यह। मुझे लगता है अब मुलायम सिंह यादव भी यह नहीं बता सकते । वैसे भी बीते साढ़े तीन दशक में इतना गदगद हो कर बोलते हुए मैं ने मुलायम सिंह यादव को कम ही देखा है । राज कपूर की एक महत्वपूर्ण फिल्म प्रेम रोग में संतोष आनंद का लिखा एक गीत याद आ गया है :
न तो अपना तुझ को बना सके
न ही दूर तुझ से जा सके
कहीं कुछ न कुछ तो ज़ुरूर था
न तुझे पता न मुझे पता
ये प्यार था या कुछ और था
न तुझे पता न मुझे पता
ये निगाहों का ही क़ुसूर था
न तेरी ख़ता न मेरी ख़ता
ये प्यार था या कुछ और था
लोकलेखा समिति की ही वह रिपोर्ट थी जिस को ले कर विश्वनाथ प्रताप सिंह तब बोफोर्स को मुद्दा बना कर जनता के बीच कूद पड़े थे । राजीव गांधी और उन की कांग्रेस की ईंट से ईंट बजा दी थी । राजीव गांधी सरकार का पतन हो गया था । तब के लोकलेखा समिति के टी एन चतुर्वेदी तब कांग्रेस विरोधियों के लिए देवता बन गए थे । चतुर्वेदी जी भी जोश में आ कर कन्नौज से चुनाव लड़े थे और मुलायम सिंह यादव ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि उन की ज़मानत जब्त हो गई । बाद के समय में अटल जी के प्रयास से वह राज्य सभा सदस्य बने । कुछ समय बाद मंत्री बनाने के बजाय अटल जी ने उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया। टी एन चतुर्वेदी कन्नौज के रहने वाले ज़रूर थे पर राजस्थान कैडर के आई ए एस अफसर थे । बेहद ईमानदार छवि वाले टी एन चतुर्वेदी कांग्रेसी मुख्य मंत्री सुखाड़िया के दस बरस तक सचिव रहे थे । राजीव गांधी के प्रधान मंत्री रहते समय केंद्रीय गृह सचिव भी रहे थे और लोंगोवाल समझौते के वह नायक बने थे।
आज आलम यह है कि राफेल पर लोकलेखा समिति की रिपोर्ट पेश करने वाले राजीव महर्षि का नाम भी बहुत से लोग नहीं जानते। कपिल सिब्बल ने एक झूठा आरोप भी लगाया है कि राफेल डील के समय राजीव महर्षि वित्त सचिव थे , वह यह रिपोर्ट पेश कैसे कर सकते हैं ? अरुण जेटली ने कपिल सिब्बल के इस झूठ का पर्दाफाश करते हुए कहा कि तब वह वित्त सचिव नहीं थे । जेटली ने इस बाबत बहुत से डिटेल दिए । कपिल सिब्बल अब चुप हैं ।
सुप्रीम कोर्ट , चुनाव आयोग , सी ए जी आदि सभी संस्थाओं और चौकीदार को चोर बता कर दलदल में निरंतर धंसते रहने के बजाय , राफेल की घिनौनी राजनीति से छुट्टी ले कर प्रतिपक्ष को कोई और मुद्दा खोजना चाहिए। एक तो राफेल में कोई घोटाला नहीं है । दूसरे , राफेल का मुद्दा , एक खास पाकेट को छोड़ कर आम जनता के बीच सर्जिकल स्ट्राइक की तरह अस्मिता का विषय बन चुका है । जनता से कटे प्रतिपक्ष को इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है ।
सही विश्लेषण
ReplyDeleteमुलायम सा धक्का, हरेक रह गया हक्का-बक्का
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-02-2019) को “प्रेम सप्ताह का अंत" (चर्चा अंक-3248) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
👌
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