कुछ फेसबुकिया नोट्स
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- कृपया यह नौटंकी बंद करें माननीय लोग !
- राजदीप सर देसाई को शहीद बता कर उन को सर चढ़ा लेने वाले मित्र एक बार इस लिंक को ज़रूर देखें । उलटा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात समझ में आ जाएगी । राजदीप ने कितने दिनों तक अंबानी की दलाली की है आई बी एन 7 में और कितनों के पेट पर लात मारा है क्या यह भी लोग भूल गए हैं ? खैर उन की ताज़ा गुंडई के दीदार करें !
- काश कि सुब्रमण्यम स्वामी की नज़र मायावती की आय से अधिक सम्पत्ति पर भी पड़ जाती !
- जयललिता को जेल पर लोग इतना चुप क्यों हैं ?
- सुब्रमण्यम स्वामी को आप चाहे जो कहिए लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ उन की मुहिम को एक बड़ा सा सैल्यूट तो बनता ही है । अदालती लड़ाई लड़ कर भ्रष्टाचारियों को उन की औकात में ले आना इतना आसान भी नहीं है । टू जी के भ्रष्टाचारी ए राजा से लगायत जयललिता तक को जेल तक पहुंचाना सुब्रमण्यम स्वामी की अनथक लड़ाई का ही सुफल है।
- लीजिए जयललिता को चार साल की सज़ा हो गई। अब विधायकी और मुख्यमंत्री का पद तो गया ही , जेल भी आज ही जाना होगा। हां हेकड़ी लेकिन नहीं जाएगी । जातीय और भ्रष्ट राजनीति की यह भी एक कमाई है ।
- जातीय राजनीति और भ्रष्टाचार क्या एक दूसरे के पर्याय हो चले हैं ? क्या लालू , क्या ए राजा , क्या मुलायम , क्या मायावती और क्या करुणानिधि और क्या जयललिता सब के सब जातीय राजनीति के अलमबरदार, ठेकेदार और सब के सब भ्रष्टाचार की गंगोत्री में आकंठ डूबे हुए । नाबदान में कीड़ों की तरह बजबजाते हुए । फिर बेशर्मी का भी बैंडबाजा यह बजाएंगे ही , बजाते ही हैं । गाल बजाना इसी को कहते हैं । जेल को गुरुद्वारा भी बताने की बेहयाई अपनी जगह है ।
- नेपाल , भूटान , जापान और अब अमरीका , बीच में चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा को भी जोड़ लीजिए , अंध मोदी विरोध अब खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे में तब्दील दिखता है । पकिस्तान तो मांगे पानी नहीं पा रहा है। कम से कम विदेश नीति पर तो यह हो ही गया है। यह मोदी की नहीं भारत की कूटनीतिक विजय है , इसे खुले मन से स्वीकार कर लेने में कोई नुकसान नहीं है ।
- उद्धव ठाकरे ने अपने पांव में बड़े ज़ोर से कुल्हाड़ी मार ली है | भाजपा ने भी अपना गुरुर और गाढ़ा कर लिया है तो शरद पवार ने भी अपना पावर लूज ही किया है | कांग्रेस तो पहले ही से बड़ी लूजर है | तो क्या महाराष्ट्र विधान सभा के हंग होने की बुनियाद खुद गई है ? जय हो !
- कुछ दिनों के लिए लिखना बंद कर देने से भी क्या शैली बदल जाती है ? दिनकर तो यहां यही बता रहे हैं । वह कविता में रोमांस को दबाने की भी बात करते हैं ।
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- मित्रो , एक दुविधा में आ गया हूं । फेसबुक पर दोस्तों की शाख पर पांच हज़ार की संख्या छू गई है । बहुत इधर उधर कर के भी छंटनी करनी कठिन लग रही है । जुड़ना तो अच्छा लगता है , बिछड़ना बाऊर लगता है । तो भी कुछ बिना चेहरे वाले साथियों से छुट्टी ले ली है । फिर भी बात बन नहीं पा रही । बहुत सारे मित्रों का निवेदन लंबित हैं । मित्रों , निवेदन है कि फालो का विकल्प चुन सकें तो खुशी होगी ।
- यह संदेश उन मित्रों के लिए लिखा है जिन की रिक्वेस्ट अभी पेंडिंग है । और ऐसे मित्रों की संख्या जब बहुत लंबी हो गई तो यह उन की सहूलियत के लिए यह लिखा है । जो पुराने मित्र हैं , उन से बिछड़ने के लिए यह संदेश नहीं है ।
- हमारे प्रिय मित्र और गीतकार धनंजय सिंह आज संध्या सिंह के कविता संग्रह आखरों के शगुन पंछी के लोकार्पण कार्यक्रम में लखनऊ आए तो हमारे घर भी आए । तैतीस साल पुरानी हमारी दोस्ती आज फिर से ताज़ा हुई । हम जब दिल्ली में थे तब हमारे संघर्ष में साथ देने वाले, हमारे दुःख सुख के साथी धनंजय सिंह तब कादम्बिनी में थे और हम सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट में । बाद में मैं जनसत्ता में आ गया । फिर लखनऊ आ गया । पर हमारी मित्रता और संपर्क कभी टूटा नहीं । मेरी कई किताबों की समीक्षा भी कादम्बिनी में धनंजय जी ने छपवाई और सहर्ष । बिना किसी इफ बट, बिना किसी नाज़-नखरे के । अब वे कादम्बिनी से अवकाश ले चुके हैं लेकिन अपने गीतों और मित्रों से नहीं सो आज हम लोगों ने बहुत सारी नई पुरानी यादें ताज़ा कीं और आनंद से भर गए ।
- तो दिलीप मंडल ने पोस्ट डिलीट कर दी !
- मनीषा जी , लगता है आप पृथ्वी पर नहीं रहतीं । इसी लिए आप को सदभाव की बात में भी फाईट दिख रही है । अंध ब्राह्मण विरोध की थियरी की बीमारी आप चलाती रहिए , पालती रहिए , यह आप की भावना और आप की सुविधा है , आप का व्यक्तिगत है , इस अंतहीन बहस में मुझे पड़ना भी नहीं है । आप अपने पूर्व सम्पादक की पैरवी भी डट कर कीजिए मुझे इस से भी गुरेज नहीं पर भाषाओं को घृणा के चौराहे पर खड़ा कर उन का तमाशा बनाने में शरीक मत होइए । दुनिया की सारी भाषाएं हम सब की साझी हैं , मनुष्यता की नदी हैं । कृपया इन्हें बख्शिए ।
- मनीषा जी , आप पहले तय कर लीजिए कि आप कहना क्या चाहती हैं ? या कि अंगरेजी की लाल कालीन में कुछ छुपाने - धमकाने के यत्न कर रही हैं ?
- मित्रों , कोई भी टिप्पणी करने में संयम ज़रूर बरतें । किसी भी के लिए असंसदीय शब्द नहीं लिखें । दिलीप मंडल जी से या अन्य किसी भी से आप या हम किसी बात पर , किसी विचार पर असहमत हो सकते हैं लेकिन इतना जान लें कि वह पढ़े - लिखे व्यक्ति हैं । सो कृपया किसी अपशब्द का इस्तेमाल उन के लिए नहीं करें । अपशब्द इस्तेमाल करने से आप की वैचारिक विपन्नता तो जाहिर होती ही है मेरी वाल का और मेरा भी अपमान होता है । सो मित्रों , निवेदन है कि असहमति और सहमति आप ज़रूर जाहिर करें लेकिन शालीनता और संयम के साथ ।
- सौ ग्राम सच में कुंटल भर गप्प मिला कर लिखने की कला अगर किसी को सीखनी हो तो हमारे फ़ेसबुकिया मित्र संजय सिनहा से सीखिए। कल्पना की उड़ान इतनी कि सारे कवि और रवि आदि सब के सब शर्मा जाएं ! अद्भुत ! कहां की ईंट कहां का रोड़ा वह कब और कैसे मिला दें और भानुमति का कुनबा जोड़ कर एक अनूठा गप्प खिला दें यह शायद वह भी नहीं जानते। ऐसा विशुद्ध गपोड़ी मैं ने आज तक नहीं देखा ! आगे भी देखने को क्या मिलेगा भला ?
- आज हमारे जानेमन यशवंत सिंह का शुभ जन्म-दिन है । मैं उन को उन की फकीरी, फ़क्कड़ई और बहादुरी के लिए जानता हूं । मीडिया के थके-हारे, पराजित लोगों , को जिस तरह सुस्ताने के लिए , रोने के लिए , साहस और भरोसा देने के लिए अपना अनमोल कंधा वह सर्वदा उपस्थित कर देते हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है । मीडिया के असंख्य स्पीचलेस लोगों के लिए जिस तरह वह भड़ास 4 मीडिया के मंच के मार्फत स्पीच आफ स्पीचलेस बन जाते हैं , वह बहुत ही सैल्यूटिंग है । आज वह 41 साल के हो गए हैं । अभी कुछ समय पहले वह जेल गए थे , मीडिया घरानों के खिलाफ लड़ते हुए । कई सारे मीडिया हाऊस मिल कर उन के खिलाफ पिल पड़े थे । कि वह जेल से बाहर ही न आ पाएं । पर वह आए और एक दिलचस्प किताब जानेमन जेल भी लिखी । लेकिन जब वह जेल में थे तभी मैं ने उन की बहादुरी और संघर्ष को रेखांकित करते हुए एक लेख लिखा था । उन के इस जुझारू जज़्बे को सैल्यूट करते हुए उन के पुण्य जन्म-दिन को इस लेख के साथ ही आज मैं सेलीब्रेट कर रहा हूं। लव यू जानेमन यशवंत सिंह , लव यू !
- गांधी जैसी सर्वकालिक और प्रामाणिक फिल्म बनाना रिचर्ड एटनबरो के ही वश की बात थी । उन का महाप्रयाण बहुत दुःख देने वाला है । उन्हें नमन !
- अभी - अभी मर्दानी फिल्म देख कर उठा हूं ।आज कल के बिगड़े माहौल में यह एक ज़रूरी फिल्म बन कर सामने आई है। इसे तो समूचे देश में तुरंत टैक्स फ्री कर देना चाहिए।
- यशवंत सिंह को कुछ लोग अराजक और जाने क्या-क्या कहते हैं । लेकिन मैं उन को उन की फकीरी, फ़क्कड़ई और बहादुरी के लिए जानता हूं । मीडिया के थके-हारे, पराजित लोगों , को जिस तरह सुस्ताने के लिए , रोने के लिए , साहस और भरोसा देने के लिए अपना अनमोल कंधा वह सर्वदा उपस्थित कर देते हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है । मीडिया के असंख्य स्पीचलेस लोगों के लिए जिस तरह वह भड़ास 4 मीडिया के मंच के मार्फत स्पीच आफ स्पीचलेस बन जाते हैं , वह बहुत ही सैल्यूटिंग है । यही यशवंत सिंह तीन दिन लखनऊ में थे । कल की शाम हम भी उन के साथ हमप्याला-हम निवाला बने ।
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