Thursday, 24 July 2014

अगर दलालों और भडुओं को हम मीडिया के हीरो या नायक कह कर उन की पूजा करेंगे तो इस मीडिया समाज का क्या होगा भला ?

कुछ और फेसबुकिया नोट्स 

  • मीडिया विमर्श का अंक कल शाम मिला । इस में हिंदी पत्रकारिता के 51 हीरो की चर्चा है । चर्चा क्या पूजा है 51 लोगों की । और दुर्भाग्य देखिए कि इन 51 में से भी आधे से अधिक लोगों की कुख्याति दलाली , लायजनिंग आदि कामों के लिए है । अब अगर दलालों और भडुओं को हम मीडिया के हीरो या नायक कह कर उन की पूजा करेंगे तो इस मीडिया समाज का क्या होगा भला ? मीडिया विमर्श के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी को कल फोन कर के मैं ने अपनी यह आपत्ति दर्ज भी की और कि मीडिया में दलाली के लिए कुख्यात लोगों के नाम ले-ले कर उन से पूछा कि आखिर यह दल्ले नायक कैसे हो गए हिंदी पत्रकारिता के ? मैं ने उन्हें बताया कि उन की सारी मेहनत बेकार गई है इन दलालों को हीरो बना कर । वह जी , जी कहते रहे । कुछ नाम को ले कर वह चकित हुए और बोले इन के बारे में यह सब मुझे मालूम नहीं था । लेकिन जो नाम बाकायदा दर्ज हैं हिंदी पत्रकारिता में बतौर दलाल और लायजनर उन नामों से भी संजय द्विवेदी क्यों नहीं बच पाए ? क्या किसी चैनल या अखबार में सर्वशक्तिमान हो जाना या किसी बड़ी कही जाने वाली कुर्सी पर बैठ कर या संपादक बन कर ही कोई हिंदी पत्रकारिता का हीरो बन जाने की योग्यता हासिल कर लेता है ? और जो यही सच है इस हिंदी पत्रकारिता का तो हमारे सचमुच के हीरो कहां जाएंगे ? महाराणा प्रताप और जयचंद का फर्क लेकिन समाज तो जानता ही है, क्या यह भी कोई बताने की बात है ? ये पब्लिक है सब जानती है !

  •  लखनऊ में कुछ लेखक चारण हो गए हैं । एक अध्यापक लेखक तो चंदरबरदाई को भी मात दे बैठे हैं । जनवाद में आशा के फूल इस कदर खिले हैं कि पूछिए मत । और सपने तो जनवाद में नोबल के फूल में बसे हैं । एक माफिया संपादक के नए अपठनीय उपन्यास को ले कर वह इस कदर व्याकुल और उत्साहित हैं कि एक ही सांस में साहित्य अकादमी , यश भारती , भारत भारती , ज्ञानपीठ , नोबल और कि हेन-तेन सारे पुरस्कार उन की झोली में एक साथ डाल बैठे हैं । अध्यापक हैं सो लगता है कि सौ में एक लाख या करोडो नंबर देने का अभ्यास पुराना है । और फिर शिष्य - मंडली भी आरती उतारने में लग गई है पूरी ताकत से । जितनी किसिम की आरती उपलब्ध हैं सब गाई जा रही हैं। गोया आरती नहीं सोहर, लचारी, कजरी हो । आखिर लखनऊ है । और तिस पर सावन भी । सावन के अंधों की बात भी निराली है । यहां के तो डाक्टर भी एक किडनी में दो किडनी देख लेते हैं । तो किबला यहां तो चारण हैं सो जो भी कहें कम है । भक्तिकाल का स्वर्णयुग है । साहित्य और पठनीयता निर्वासित है तो उन की बला से । बतर्ज मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों ! मैया मैं तो नोबल , साहित्य अकादमी , ज्ञानपीठ , भारत भारती एट्सेक्ट्रा सब एक साथ लैहों , हमार कोई का करिहै !

  • सब्जी के सिंदूर की सिसकी
हमारे घर में पत्नी की पसंद है कि बिना टमाटर के कोई सब्जी, सब्जी नहीं। हम जहां से सब्जी लाते हैं उस सब्जी वाले से एक बार बात ही बात में मैं कह बैठा कि टमाटर तो सब्जी का सिंदूर है ! सुन कर वह हंसने लगा। सब्जी लाएं और कि पर्याप्त मात्रा में टमाटर न लाएं यह संभव ही नहीं होता। सारी सब्जी एक तरफ़ और टमाटर एक तरफ। पर आज लखनऊ में यह टमाटर सौ रुपए किलो हो गया। सब्जी का सिंदूर यह टमाटर पहले भी मंहगा होता था सवा सौ रुपए किलो तक भी मिला है। पर बीते तीन चार सालों में तो सौ रुपए तक नहीं ही पहुंचा था। पर मोदी सरकार में सब्जी का यह सिंदूर सैकड़ा छू गया आज। अदरक पहले ही से एक सौ साठ रुपए किलो पर, लहसुन सौ रुपए किलो पर दम लगाए बैठे हैं। प्याज का तड़का अलग तीस रुपए और चालीस रुपए की धौंस दिए हुए है । कोई भी सब्जी एक ज़माने से बीस रुपए से नीचे नहीं है। जब हम सब्जी के इस तरह बढ़ते दाम पर सिसक रहे हैं तो बिचारे मामूली वेतन वाले लोग, दिहाड़ी कमाने वाले लोग कैसे और कौन सी सब्जी कितना और कैसे खाते होंगे, जानना और समझना बहुत कठिन नहीं है । वह बिचारे तो पुक्का फाड़ कर रोते होंगे। सब्जी की यह सिसकी और सब्जी के सिंदूर का यह भाव मोदी के अच्छे दिनों को जल्दी ही मजा देगा यह निश्चित है । बाकी खाने-पीने की चीज़ों के भी हाल यही और ऐसे ही हैं। समय की करवट को देखना अब दिलचस्प है ।

  • जयशंकर शुक्ल जी, बेटे को खूब प्यार कीजिए , उस की खूब तारीफ़ भी कीजिए , अच्छी बात है। अपनी ईमानदारी के कसीदे भी खूब पढ़िए , कोई हर्ज नहीं है । पर इतना मत फेंकिए, इतना मत झोंकिए कि हजम करना मुश्किल हो जाए। सात साल का आप का बेटा इस तरह कैसे सोच लेता है और कि इतना तार्किक भी सोच लेता है ? भगवान के लिए कुछ तो उस बच्चे पर रहम कीजिए। उसे बच्चा ही बना रहने दीजिए । पिता जी मत बना दीजिए ।
  इस साल मेरा सात वर्षीय बेटा दूसरी कक्षा मैं प्रवेश पा गया ....क्लास मैं हमेशा से अव्वल आता रहा है !

पिछले दिनों तनख्वाह मिली तो मैं उसे नयी स्कूल ड्रेस और जूते दिलवाने के लिए बाज़ार ले गया !

बेटे ने जूते लेने से ये कह कर मना कर दिया की पुराने जूतों को बस थोड़ी-सी मरम्मत की जरुरत है वो अभी इस साल काम दे सकते हैं!

अपने जूतों की बजाये उसने मुझे अपने दादा की कमजोर हो चुकी नज़र के लिए नया चश्मा बनवाने को कहा !

मैंने सोचा बेटा अपने दादा से शायद बहुत प्यार करता है इसलिए अपने जूतों की बजाय उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी समझ रहा है !

खैर मैंने कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और उसे लेकर ड्रेस की दुकान पर पहुंचा.....दुकानदार ने बेटे के साइज़ की सफ़ेद शर्ट निकाली ...डाल कर देखने पर शर्ट एक दम फिट थी.....फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी शर्ट दिखाने को कहा !!!!

मैंने बेटे से कहा :बेटा ये शर्ट तुम्हें बिल्कुल सही है तो फिर और लम्बी क्यों ?

बेटे ने कहा :पिता जी मुझे शर्ट निक्कर के अंदर ही डालनी होती है इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.......लेकिन यही शर्ट मुझे अगली क्लास में भी काम आ जाएगी ......पिछली वाली शर्ट भी अभी नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन छोटी होने की वजह से मैं उसे पहन नहीं पा रहा !

मैं खामोश रहा !!

घर आते वक़्त मैंने बेटे से पूछा :तुम्हे ये सब बातें कौन सिखाता है बेटा ?

बेटे ने कहा: पिता जी मैं अक्सर देखता था कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर तो कभी आप अपने जूतों को छोडकर हमेशा मेरी किताबों और कपड़ो पैर पैसे खर्च कर दिया करते हैं !

गली- मोहल्ले में सब लोग कहते हैं के आप बहुत ईमानदार आदमी हैं और हमारे साथ वाले राजू के पापा को सब लोग चोर, कुत्ता, बे-ईमान, रिश्वतखोर और जाने क्या क्या कहते हैं, जबकि आप दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं.....

जब सब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है.....मम्मी और दादा जी भी आपकी तारीफ करते हैं !

पिता जी मैं चाहता हूँ कि मुझे कभी जीवन में नए कपडे, नए जूते मिले या न मिले
लेकिन कोई आपको चोर, बे-ईमान, रिश्वतखोर या कुत्ता न कहे !!!!!

मैं आपकी ताक़त बनना चाहता हूँ पिता जी, आपकी कमजोरी नहीं !

बेटे की बात सुनकर मैं निरुतर था! आज मुझे पहली बार मुझे मेरी ईमानदारी का इनाम मिला था !!

आज बहुत दिनों बाद आँखों में ख़ुशी, गर्व और सम्मान के आंसू थे...पसन्द आए तो शेयर जरूर करे !!!!
 
 
  • यह मोदी फोबिया भी अद्भुत है । एक पत्रकार ने लेख लिख कर न सिर्फ यह कहा है कि वर्तमान समय पत्रकारों के लिए अघोषित आपातकाल के समान है बल्कि यह भी मोदी सरकार जिस राह पर आगे कदम बढ़ा रही है वह युद्ध की तरफ जाता है। चूंकि भारतीय सेना पहले से ही सहमी है कि 2017 में भारत और चीन का युद्ध होगा। लेकिन जम्मू-काश्मीर में जो हो रहा है उससे देखकर यही लगता है कि इस साल के अंत तक यहां बहुत कुछ हो सकता है। यदि भारत-पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष युद्ध भी हुआ तो देश को 50 हजार करोड़ का नुकसान होगा। और यदि भारत-चीन का युद्ध हुआ तो देश को 2 लाख करोड़ से अधिक का नुकसान होगा। जिसकी भरपाई करने में वर्षों लगेगे। बताइए कि ऐसे अंधे और विवेकहीन पत्रकारों का कोई इलाज है भी क्या ? भैया इतने पर ही नहीं रुके हैं कई अजीबोगरीब खुलासे और भी किए हैं जैसे कि हर साल 60 से 70 हजार छात्र पत्रकारिता करके निकलते है लेकिन मांग सिर्फ 10 हजार की है। बाकी 20 हजार सहयोगी पेशे में चले जाते है। ऐसे पत्रकारों की रतौधी का कोई इलाज हो तो कर दीजिए ।
 
 
  • बूझो तो जानें !
इस चित्र में कौन सेक्यूलर है और कौन कम्यूनल ?
और कि क्या सत्ता सब को गिरगिट बना देती है ?
सुविधा के लिए चित्र परिचय बता देता हूं। बाएं से दाएं पत्रकार रामबहादुर राय , राजकमल प्रकाशन के अशोक माहेश्वरी , केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह , आलोचक प्रवर आचार्य नामवर सिंह , पत्रकार बी जी वर्गीज । बीते इतवार को दिल्ली में प्रभाष जोशी की याद में कार्यक्रम का चित्र है ।
 
 
  • ज़ी न्यूज पर उत्तर प्रदेश में बलात्कार की बहस में समाजवादी पार्टी का एक प्रवक्ता अशोक देव इतना जाहिल है कि वह विकास की बात कर रहा है । दिल्ली में बलात्कार की बात कर रहा है, आंकड़ों में उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर है यह बता रहा है । लेकिन बार-बार कहने पर भी वह बलात्कार की किसी घटना की निंदा नहीं कर पा रहा । उलटे बदायूं में दो बहनों के साथ हुए बलात्कार और फिर हत्या को वह आनर किलिंग कह कर खारिज कर रहा है । हद है कुतर्क के इस पहाड़े की भी ।

2 comments:

  1. sahas se sach kahane ke liye aapko bahut-bahut mubarakvad!
    shailendra

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  2. सब्जी के सिंदूर की सिसकी कहिये या कांग्रेस की गड़बड़ी में आपकी हड़बड़ी द्वारा मोदी शासन पर बड़बड़ी| तथाकथित स्वतंत्रता के बाद देश का सिंदूर नैतिकता को धीरे धीरे दम तोड़ते देख कितने आंसू बहाए थे जो आज टमाटर के बढ़ते दाम लेकर मोदी शासन की निंदा कर रहे हो?

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