Thursday, 10 July 2014

जनता की आंख में धूल झोंकने वाली यह सरकारें सिरे से जनता की दुश्मन हैं !

यह सरकारें सिरे से जनता की दुश्मन होती हैं । चाहे वह किसी भी की हों । सब जनता की आंख में धूल झोंकने का नायाब काम करती हैं। एक शब्द है सब्सिडी । जिस को कम करने का धौंस देना इन का प्रिय काम है । मैं कहता हूं कि कल करना हो तो आज क्या अभी कर दो ।  पेट्रोल से , डीजल से हर किसी चीज़ से । एक पैसे की सब्सिडी मत दीजिए ।  लेकिन साथ ही यह जो पेट्रोल और डीजल  पर अनाप-शनाप टैक्स लगा रखा है वह भी खत्म कर दीजिए । बताइए कि वाहन खरीदते समय एकमुश्त  रोड टैक्स भी लेंगे, पेट्रोल और डीजल पर भी किसिम-किसिम के टैक्स सेंट्रल टैक्स , स्टेट टैक्स, सेज टैक्स , सर्विस टैक्स, हैं टैक्स , तेन टैक्स अलाना-फलाना   के अलावा  रोड टैक्स भी  लेंगे तिस पर करेला और नीम चढ़ा टोल टैक्स भी लेंगे । मनो जनता न हो गई गाय हो गई कि सुई लगा-लगा कर दूध निकालेंगे , खून पिएंगे । एक ही टैक्स कितनी बार लेंगे?

है कोई यह  पूछने वाला किसी से ?

हां लेकिन  कार्पोरेट सेक्टर का सत्कार आप दामाद की तरह करेंगे । इन को टैक्स में  ही क्या और  तमाम-तमाम  रियायत भी  देंगे । ज़रूरत पडी तो बेल आउट पैकेज भी । लेकिन रोटी-दाल , आलू-प्याज का दाम काम नहीं कर पाएंगे,  किसानों को उन की  फसल का उचित मूल्य नहीं  दे पाएंगे । सारा ठीकरा बिचौलियों पर फोड़ देंगे , जमाखोरों पर सारा लांछन लगा कर सो जाएंगे । बताइए कि ये सरकारें इतने सालों में बिचौलियों , जमाखोरों पर भी लगाम नहीं लगा पाई हैं तिस पर भी दावा है और कि हरदम है कि विकास करेंगे ! खांसी जुकाम, बुखार पेचिस तक नहीं ठीक कर सकते और दावा है कि  कैंसर और एड्स को भी ठीक कर देंगे । कैसे डाक्टर हैं ये और कि कैसा अस्पताल है यह । बताइए कि तमाम-तमाम प्रोडक्ट्स बिकते है मैक्सिमम प्राइस पर । यानी अधिकतम मूल्य पर । लेकिन किसान का प्रोडक्ट ? मिनिमम प्राइस पर । हर साल सरकार उस के न्यूनतम समर्थन  मूल्य निर्धारित करती है। उस पर भी गन्ना मिलें उन्हें समय पर भुगतान नहीं देतीं । सालों-साल बकाया रखती हैं ।  जलौनी लकड़ी के दाम से भी काम दाम पर गन्ना  नहीं बिक पाता । और चीनी के दाम देखिए आकाश पर सवार हैं ! प्याज और चीनी में बहुत फर्क नहीं है । गेहूं और धान लिए किसान भिखारियों की तरह घूमते रहते हैं खरीद केंद्रों  पर । न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी अपना अनाज बेचने के लिए उन्हें रिश्वत तो देनी ही पड़ती है , अपमान भी भुगतना होता है । जो प्याज आज मंडी में तीस-चालीस रुपए किलो बिक रहा है किसान वही प्याज पांच रुपए, आठ रुपए पर बेच रहा है । बिचौलिए खरीद रहे हैं । सालों साल एक सड़क का गड्ढा तो भर नहीं सकते पर कार्पोरेट सेक्टर को सर पर ज़रूर बिठा सकते हैं । आखिर हज़ार पर्सेंट उन की सालाना ग्रोथ बहुत ज़रूरी है देश के विकास के लिए । और यह सरकार तो दिव्य जनादेश ले कर आई है । पर  जैसे कोई बोए हुए खेत को फिर से जोत दे ! दुर्भाग्य से मोदी सरकार के जेटली बजट ने इस दिव्य जनादेश के साथ यही कर दिया है। आंकड़ों और लफ़्फ़ाजों के बयान, प्रति-बयान और उन के आकलन को लात मारिए। जो बजट खाने-पीने की चीज़ों के दाम न कम कर पाए , गरीब गुरबों की तकलीफ को मोबाइल और कम्प्यूटर के सस्ते होने से जोड़ कर वाहवाही लूटे, जो सरकार खाद और बीज के दाम करने के लिए सांस भी न ले , आप उस को सर पर बिठाएं तो बिठाएं यह आप की सुविधा है, मेरी हरगिज नहीं । इतनी उम्मीद , इतने सपने पाल कर छले जा कर भी आप निश्चिंत सोने की तैयारी कर सकते हैं तो आप को यह नींद मुबारक ! हम तो हमेशा की तरह इस बार भी छला हुआ ही पा रहे हैं अपने आप को भी , हर किसी को भी ।

हम तो सीधा-सीधा यह जानते हैं कि अभी तक बुनियादी बातें , बुनियादी अधिकार और कि  न्यूनतम ज़रूरत रोटी , कपड़ा और मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि किसी भी ज़रूरत को पूरा करने की और यह बजट भी नहीं ले जाता दिखता है । हम तो यह जानते हैं कि सारी सरकारी योजनाएं और उपक्रम जनता को अपमानित करने के लिए ही , जनता को छलने और कि लूटने के लिए ही चलाए जा रहे हैं । हम यह जानते हैं कि किसी भी सरकारी अस्पताल में अब इलाज नहीं होता , किसी भी सरकारी स्कूल में अब  पढ़ाई नहीं होती । अब बचे प्राइवेट अस्पताल और प्राइवेट स्कूल तो यहां खुलेआम लूट होती है । लूट के बहुत बड़े अड्डे हैं यह प्राइवेट स्कूल और अस्पताल । यह हेल्थ इंश्योरेंश कंपनियां लूट का बहुत बड़ा औजार हैं । इन लूट के अड्डों पर कोई वित्त मंत्री , कोई सरकार आखिर कब रोक लगाएगी ? सरकारी एजेंसियों पर आखिर लोग कब भरोसा करंगे , कैसे करेंगे ? आखिर यह आलू प्याज और दाल आदि क्या बाटा का जूता चप्पल है , कोई ब्रांडेड आइटम है जो पूरे देश में एक ही दाम बिकने लगा है ? जहां पैदावार इस की होती है वहां भी वही दाम और जहां नहीं होती है वहां भी वही दाम ? बताइए कि  बीते चंद  सालों में भूसा गेहूं के दाम बिकने लगा , गेहूं दाल के दाम,  दाल काजू बादाम के दाम और काजू बादाम सोने के दाम बिकने लगा  !

तो यह क्या है ?

वायदा कारोबार बंद क्यों नहीं कर देते ? मनमोहन सिंह सरकार ने मंहगाई रोकने के लिए नरेंद मोदी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी । मोदी ने आप अपनी संस्तुति में साफ कहा था की वायदा कारोबार बंद कर दीजिए । मंहगाई पर लगाम लग जाएगी । मनमोहन सिंह  इस संस्तुति पर कुंडली मार कर बैठ गए थे । और अब नरेंद मोदी भी इस बाबत सरकार में आने के बाद सांस नहीं ले रहे हैं । मनमोहन सिंह तो अपनी सरकार में एक साझेदार सटोरिए शरद पवार से डरते थे इस लिए नहीं वायदा कारोबार पर लगाम नहीं लगा सके । पर परवरदिगार आप किस सटोरिए से भयभीत हुए बैठे हैं ! जो वायदा कारोबार पर लगाम लगाना तो दूर उस पर सांस भी नहीं ले रहे । अपनी ही संस्तुति भूल गए ?

तो क्यों ?

सच यह है कि  इस एक बिंदु पर क्या ऐसे तमाम और सारे बिंदु पर भी पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों एक साथ हैं इस लिए ही यह अंधेरगर्दी मची हुई है । और यह अर्थशास्त्री सारे के सारे भाड़े के हैं । जब जो सरकार होती है उस के पक्ष में बोलने लगते हैं । अर्थशास्त्रियों और इतिहासकारों में सरकारी जुबान बोलने की जैसे होड़ सी लग जाती है । तो कुछ अतिरेक में आ कर देश छोड़ने की अहमकाना बातें कर लोगों को बरगलाते फिरते हैं । मीडिया का तो और बुरा हाल है । मीडिया का तो जैसे सारा आक्सीजन कार्पोरेट सेक्टर ने पी लिया है । सो तिजोरी और दलाली का यह दुभाषिया अब  वेंटिलेटर पर है । ढेर सारा जहरीला कार्बन छोड़ता हुआ । और यह मध्यमवर्गीय जनता जैसे अपना कुछ खुद तो सोचती ही नहीं।  जैसे यह टी वी के तोते बोलते हैं उसी तरह उसी दिशा में बह जाती है । अच्छा अन्ना ! वह तो बहुत क्रांतिकारी आदमी था  ! रामदेव बहुत बड़ा योगी था ! ओह तो अरविंद केजरीवाल ! न भूतो न भविष्यति !  अच्छा अपना मोदी ! यह तो अच्छे दिन लाएगा ! अद्भुत है यह खेल भी । कहां हैं इन दिनों अन्ना ? यह तोते नहीं बता रहे । क्यों कि  यह हिज मास्टर्स वायस के रिकार्ड हैं और इन के रिकार्ड में अभी इस बाबत कुछ भरा नहीं गया  है । अभी तो मोदी और मोदी के अच्छे दिन का रिकार्ड भरा गया है, वही बजेगा ।

जैसे कि  यह अब सर्वदा के लिए निश्चित हो चला है कि यह मीडिया , यह पुलिस , यह नौकरशाह जनता के साथ नहीं सत्ता के साथ ही रहेंगे । यह सब सत्ता के बंदर हैं । और पता नहीं क्यों मित्रों मुझे बाजदफा लगता है कि  अपना यह संविधान भी जनता के साथ एक  गहरा छल  है। यह भी सर्वदा सत्ता के ही हित  में खड़ा मिलता है । वह सत्ता चाहे साधू की हो या डाकू की । और अभी तक का तो अनुभव यही है कि  सत्ता सर्वदा डाकू के ही हाथ आती रही है । बस चेहरे बदल जाते हैं । चाल और चरित्र सभी सत्ता के एक ही मिलते  है । सब के रंग ढंग एक हैं । कोई सांपनाथ तो कोई नागनाथ । बस नाम का फर्क है । हवा सब की   एक है, मकसद  और मुद्दा एक है । कि  जनता को सूई लगा-लगा क गाय की तरह दूहो ! और फिर जब दुधारू न रहे तो कसाई के हवाले कर दो। और जब तक काम चलता है तब तक प्याज और पेट्रोल के दाम में उलझाए रहो , इनकम टैक्स के स्लैब और डी ए  जोड़ने में फंसाए रहो । 

कारपोरेट इन सरकारों का मदारी है और यह सरकारें उन की बंदर । और अभी तक मैं ने कहीं कभी पढ़ा नहीं , सुना नहीं कि कोई बंदर कभी किसी मदारी  पर आक्रामक हुआ हो ! सो मित्रों यह बजट भी एक प्रहसन है सरकार के नाचने का और जनता को सूई लगा-लगा कर दूहने का । कुछ और नहीं । इन बजट के प्रहसनों में कभी किसी कार्पोरेट का बाल बांका हुआ हो तो बताइए । कभी इन पर लगे किसी टैक्स की कोई चर्चा हुई हो तो बताइए । फिर भी हज़ार प्रतिशत सालाना ग्रोथ की इन की रिपोर्ट पढ़ते रहिए ! आप इसी के लिए अभिशप्त हैं । तो बोलो कारपोरेटपति श्री सरकार की जय !

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