प्रोन्नति में आरक्षण पर अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी.एल.पुनिया ने घड़ियाली आंसू बहाए हैं और कहा है कि बी.जे.पी. ने आंतरिक रूप से यह निर्णय ले लिया था कि इस बिल को यह बिल लोकसभा से पारित नहीं होने देना है। दलितों की एक सभा में यह सवाल उठाया गया था कि लोकसभा में कांग्रेस खाद्य सुरक्षा और तेलंगाना का बिल पास करा सकती थी तो प्रमोशन का बिल पास क्यों नहीं करा पाई ? तो पुनिया ने कहा कि बी.जे.पी. ने आंतरिक रूप से यह निर्णय ले लिया था कि इस बिल को पास नहीं होने देना है पुनिया ने कहा कि बी.जे.पी. ने आंतरिक रूप से यह निर्णय ले लिया था कि इस बिल को पास नहीं होने देना है ।
उन्होंने कहा अनुसूचित जाति संसदीय फोरम में कुल 145 मेम्बर हैं जिसके वे अध्यक्ष और बी.जे.पी.के सांसद अर्जुन मेघवाल सचिव थे। विगत लोकसभा के अंतिम सत्र में प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में अति सक्रिय मेघवाल साहेब अचानक अत्यंत शिथिल पड़ गये ,ज्ञात हुआ की प्रोन्नति में आरक्षण बिल के प्रकरण में मेघवाल की तेजी, पार्टी को रास नहीं आई और उन्हें साफ तौर पर बता दिया गया कि पार्टी प्रोन्नति में आरक्षण संसोधन बिल के पक्ष में नहीं है । पुनिया का यह भी कहना था कि संविधान संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत जरूरी था जो बी.जे.पी. के विरोध के कारण संभव नहीं था । और अजब यह कि दलितों की सभा ने पुनिया के इस धूर्त बयान को सहर्ष मान लिया । वाह ! जो कांग्रेस परमाणु समझौते को ले कर सरकार कुर्बान करने को तैयार हो गई और समझौता सारा रिस्क ले कर किया वह सरकार ऐसे बहाने बनाए और दलितों की सभा नादान बन कर खुश हो जाएं यही तो चाहिए कांग्रेस और पुनिया को । पुनिया बहुत बड़े मदारी हैं , खुद मलाई काटते हुए दलितों को बहुत समय से नचा रहे हैं , हर्ज़ क्या है ? दलित नेताओं को अगर भाजपा को एक्सपोज करना ही है तो कोई कारगर मुद्दा उठाएं । ऐसे बेदम मुद्दों और मासूम बहानों से ही इन दलित नेताओं ने भाजपा को ताकत दे दी है । यह दलित नेता राजनीति कर रहे हैं कि छुप्पम - छुपाई का खेल खेल रहे हैं ? पुनिया के घड़ियाली आंसू यहीं नहीं रुके । .पुनिया कहने लगे कि पहले लोग सिर्फ अनुसूचित जाति जान कर संतुष्ट हो जाते थे किन्तु अब वे जानना चाहते हैं कि अनुसूचित जाति में किस जाति से हैं । उन्होंने कहा कि कुछ लोग दलितों में भी जातीय बोध पैदा कर रहे हैं, इससे दलित एकता खंडित होगी । लेकिन अब पुनिया से कोई यह कहने वाला नहीं है कि यह जातीय राजनीति बंद कीजिए । यह जातीय राजनीति समाज को ही नहीं देश को भी बांटती है । और मानवता का क्षरण करती है । इस का अंत सिर्फ और सिर्फ घृणा है । जातीय राजनीति समाज का बहुत कुछ बिगाड़ चुकी है , अभी और बिगाड़ेगी । चुनावी राजनीति के गर्भ से निकली इस जातीय राजनीति के विष ने दलितों का जितना नुकसान किया है, किसी और का नहीं ।
उन्होंने कहा अनुसूचित जाति संसदीय फोरम में कुल 145 मेम्बर हैं जिसके वे अध्यक्ष और बी.जे.पी.के सांसद अर्जुन मेघवाल सचिव थे। विगत लोकसभा के अंतिम सत्र में प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में अति सक्रिय मेघवाल साहेब अचानक अत्यंत शिथिल पड़ गये ,ज्ञात हुआ की प्रोन्नति में आरक्षण बिल के प्रकरण में मेघवाल की तेजी, पार्टी को रास नहीं आई और उन्हें साफ तौर पर बता दिया गया कि पार्टी प्रोन्नति में आरक्षण संसोधन बिल के पक्ष में नहीं है । पुनिया का यह भी कहना था कि संविधान संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत जरूरी था जो बी.जे.पी. के विरोध के कारण संभव नहीं था । और अजब यह कि दलितों की सभा ने पुनिया के इस धूर्त बयान को सहर्ष मान लिया । वाह ! जो कांग्रेस परमाणु समझौते को ले कर सरकार कुर्बान करने को तैयार हो गई और समझौता सारा रिस्क ले कर किया वह सरकार ऐसे बहाने बनाए और दलितों की सभा नादान बन कर खुश हो जाएं यही तो चाहिए कांग्रेस और पुनिया को । पुनिया बहुत बड़े मदारी हैं , खुद मलाई काटते हुए दलितों को बहुत समय से नचा रहे हैं , हर्ज़ क्या है ? दलित नेताओं को अगर भाजपा को एक्सपोज करना ही है तो कोई कारगर मुद्दा उठाएं । ऐसे बेदम मुद्दों और मासूम बहानों से ही इन दलित नेताओं ने भाजपा को ताकत दे दी है । यह दलित नेता राजनीति कर रहे हैं कि छुप्पम - छुपाई का खेल खेल रहे हैं ? पुनिया के घड़ियाली आंसू यहीं नहीं रुके । .पुनिया कहने लगे कि पहले लोग सिर्फ अनुसूचित जाति जान कर संतुष्ट हो जाते थे किन्तु अब वे जानना चाहते हैं कि अनुसूचित जाति में किस जाति से हैं । उन्होंने कहा कि कुछ लोग दलितों में भी जातीय बोध पैदा कर रहे हैं, इससे दलित एकता खंडित होगी । लेकिन अब पुनिया से कोई यह कहने वाला नहीं है कि यह जातीय राजनीति बंद कीजिए । यह जातीय राजनीति समाज को ही नहीं देश को भी बांटती है । और मानवता का क्षरण करती है । इस का अंत सिर्फ और सिर्फ घृणा है । जातीय राजनीति समाज का बहुत कुछ बिगाड़ चुकी है , अभी और बिगाड़ेगी । चुनावी राजनीति के गर्भ से निकली इस जातीय राजनीति के विष ने दलितों का जितना नुकसान किया है, किसी और का नहीं ।
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