हिमांशु जोशी से मैं पहली बार मई,१९७९ में साप्ताहिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली के दफ़्तर में मिला था। प्रेमचंद पर एक परिचर्चा ले कर। उन्हों ने उसे खूब फैला कर कई पन्नों में छापा भी जुलाई,१९७९ के अंक में। फिर मिला उन से मई,१९८१ में। साप्ताहिक हिंदुस्तान के दफ़्तर में ही। वह बहुत प्यार से मिलते हैं । हमेशा। और प्रोत्साहित भी खूब करते हैं। परिजनों , मित्रों का हालचाल पूछते हुए। क्या नया लिख रहे हो पूछते हुए। उन्हों ने ही मुझे अरविंद कुमार के पास भेजा। हिंदुस्तान टाइम्स बिल्डिंग के सामने ही सूर्य किरन बिल्डिंग में उन दिनों सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट का दफ़्तर था। मैं मिला अरविंद जी से। उन्हों ने मुझे सर्वोत्तम में नौकरी दे दी। फिर तो जब तक दिल्ली में रहा हिमांशु जी से भेंट होती रही। मनोहर श्याम जोशी से भी उन्हों ने ही मिलवाया था। एक बार मैं ने उन से कहा कि फ़िल्म अभिनेता जाय मुखर्जी और आप की शकल एक जैसी है। तो वह मुसकुरा पड़े । लखनऊ में साहित्य अकादमी ने कहानी पाठ का आयोजन किया दिसंबर,२००९ में। तब उन के साथ मैं ने कहानी पढ़ी। मैं ने उन से अपनी खुशी का इज़हार किया तो वह मुझ से भी ज़्यादा खुश दिखे। फिर अप्रैल,२०१० में उन से फिर भेंट हुई हरिद्वार में। साहित्य अकादमी अकादमी द्वारा ही आयोजित कहानी पाठ में। कहानी सत्र की अध्यक्षता उन्हों ने ही की। दो दिन उन के साथ रहना हुआ। फिर उन से मिला बीते २४ जून,२०११ को दिल्ली सरकार के सचिवालय भवन में। अरविंद कुमार को जब हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से नवाज़ा तब। यह विरल संयोग था। उस समारोह में ही। वह फिर पहले ही जैसी ताजगी और खुले मन से मिले। उसी सौम्य मुसकान के साथ। मैं ने उन्हें फिर बताया कि आप की शकल जाय मुखर्जी से बहुत मिलती है तो वह फिर हंस पड़े। मैं ने यह बात अरविंद जी से भी कही तो वह भी हंस पड़े । हिमांशु जी के साथ मेरी एक फ़ोटो। अरविंद जी के शलाका सम्मान समारोह के मौके पर खिंची हुई। उन का उपन्यास तुम्हारे लिए जब पढ़ा था तब विद्यार्थी था । तब से ही मैं उन का मुरीद हूं । यह बात जब-जब उन्हें बताई है वह खुश होने के साथ ही लजा-लजा गए हैं । और सर झुका लिया है । अपनी तारीफ़ सुन कर लजा जाने वाले मेरी जानकारी में वह पहले रचनाकार हैं । उन की यह सरलता और सहजता ही उन की रचनाओं में भी टपकती मिलती है। उन की मुसकुराहट की ही तरह उन की रचनाएँ और उन के पात्र भी जैसे खिलखिला पड़ते हैं ।
No Copy
!->
Monday, 30 June 2014
अपनी तारीफ़ सुन कर लजा जाने वाले हिमांशु जोशी
हिमांशु जोशी से मैं पहली बार मई,१९७९ में साप्ताहिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली के दफ़्तर में मिला था। प्रेमचंद पर एक परिचर्चा ले कर। उन्हों ने उसे खूब फैला कर कई पन्नों में छापा भी जुलाई,१९७९ के अंक में। फिर मिला उन से मई,१९८१ में। साप्ताहिक हिंदुस्तान के दफ़्तर में ही। वह बहुत प्यार से मिलते हैं । हमेशा। और प्रोत्साहित भी खूब करते हैं। परिजनों , मित्रों का हालचाल पूछते हुए। क्या नया लिख रहे हो पूछते हुए। उन्हों ने ही मुझे अरविंद कुमार के पास भेजा। हिंदुस्तान टाइम्स बिल्डिंग के सामने ही सूर्य किरन बिल्डिंग में उन दिनों सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट का दफ़्तर था। मैं मिला अरविंद जी से। उन्हों ने मुझे सर्वोत्तम में नौकरी दे दी। फिर तो जब तक दिल्ली में रहा हिमांशु जी से भेंट होती रही। मनोहर श्याम जोशी से भी उन्हों ने ही मिलवाया था। एक बार मैं ने उन से कहा कि फ़िल्म अभिनेता जाय मुखर्जी और आप की शकल एक जैसी है। तो वह मुसकुरा पड़े । लखनऊ में साहित्य अकादमी ने कहानी पाठ का आयोजन किया दिसंबर,२००९ में। तब उन के साथ मैं ने कहानी पढ़ी। मैं ने उन से अपनी खुशी का इज़हार किया तो वह मुझ से भी ज़्यादा खुश दिखे। फिर अप्रैल,२०१० में उन से फिर भेंट हुई हरिद्वार में। साहित्य अकादमी अकादमी द्वारा ही आयोजित कहानी पाठ में। कहानी सत्र की अध्यक्षता उन्हों ने ही की। दो दिन उन के साथ रहना हुआ। फिर उन से मिला बीते २४ जून,२०११ को दिल्ली सरकार के सचिवालय भवन में। अरविंद कुमार को जब हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से नवाज़ा तब। यह विरल संयोग था। उस समारोह में ही। वह फिर पहले ही जैसी ताजगी और खुले मन से मिले। उसी सौम्य मुसकान के साथ। मैं ने उन्हें फिर बताया कि आप की शकल जाय मुखर्जी से बहुत मिलती है तो वह फिर हंस पड़े। मैं ने यह बात अरविंद जी से भी कही तो वह भी हंस पड़े । हिमांशु जी के साथ मेरी एक फ़ोटो। अरविंद जी के शलाका सम्मान समारोह के मौके पर खिंची हुई। उन का उपन्यास तुम्हारे लिए जब पढ़ा था तब विद्यार्थी था । तब से ही मैं उन का मुरीद हूं । यह बात जब-जब उन्हें बताई है वह खुश होने के साथ ही लजा-लजा गए हैं । और सर झुका लिया है । अपनी तारीफ़ सुन कर लजा जाने वाले मेरी जानकारी में वह पहले रचनाकार हैं । उन की यह सरलता और सहजता ही उन की रचनाओं में भी टपकती मिलती है। उन की मुसकुराहट की ही तरह उन की रचनाएँ और उन के पात्र भी जैसे खिलखिला पड़ते हैं ।
Labels:
टिप्पणी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment