नारायण
दत्त जी सचमुच बहुत ही विनम्र व्यक्ति थे। विनम्र और सहृदय ! मेरे लिए उन
के लिखे पोस्ट कार्ड मन में जैसे अभी भी टटका हैं। जब वह पी टी आई फ़ीचर
एजेंसी में संपादक थे, कई सारे लेख मुझ से लिखवाए। नूतन के निधन पर जब मैं
ने लिखा तो उन का एक विशेष पत्र भी आया था मुझे बधाई देते हुए। उन्हों ने
बताया था कि नूतन पर आप का लिखा मुझे तो पसंद आया ही, देश भर में उसे
प्रशंसा मिली है। अब ऐसे नेक और सहृदय संपादक
विलुप्त हो चुके हैं। जो किसी नए लेखक को ऐसी चिट्ठियां लिखने की भी
सोचें। नारायण दत्त जी हमारी धरोहर रहेंगे सर्वदा। उन की सादगी देख कर लगता
ही नहीं था कि वह इतने बड़े विद्वान हैं। इंदिरा गांधी जब प्रधान मंत्री
थीं तब उन के बड़े भाई एच वाई शारदा प्रसाद प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार
थे। लेकिन यह बात कम लोग जानते थे। ज़्यादातर लोग उन्हें नवनीत हिंदी
डाइजेस्ट के संपादक के नाते जानते थे। हालां कि उन्हों ने स्क्रीन में भी
काम किया था। अविवाहित और कन्नड़ भाषी नारायण दत्त जी की हिंदी सेवा को भुला
पाना हिंदी जगत के लिए मुमकिन नहीं है। आज जब बेंगलूर से सुबह उन के निधन
की खबर मिली तो मन बहुत उदास हो गया। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !
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