Monday, 2 June 2014

आखिर नरेंद्र मोदी के सचिव नृपेंद्र मिश्र कैसे बन गए सी आई ए एजेंट ?


आखिर नृपेंद्र मिश्र कैसे बन गए सी आई ए एजेंट ? कहानी बड़ी दिलचस्प है यह भी। और इस से भी ज़्यादा दिलचस्प यह कि उन्हें सी आई ए एजेंट भी किसी अन्य ने नहीं भाजपा के ही एक पूर्व राज्य सभा सदस्य ने अपनी दलाली न चल पाने के फ़ितूर में घोषित किया था। यह जनाब पत्रकार भी रहे हैं और भाजपाई भी। लेकिन इस सब के ऊपर यह दलाल रहे हैं। नाम है राजनाथ सिंह सूर्य ।  हालां कि इन की पृष्ठभूमि भी राष्ट्रीय स्वंयं सेवक संघ के प्रचारक की है। और कि उद्योग मंत्री कलराज मिश्र से भी वरिष्ठ हैं यह  संघ की सीनियारिटी में। लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सभी प्रचारक नरेंद्र मोदी की तरह नहीं होते, न उन की किस्मत ऐसी होती है। और कि जैसे राजनीति में नरेंद्र मोदी जैसे  सभी नहीं होते वैसे ही नृपेंद्र मिश्र जैसे आई ए  एस अफसर भी सभी नहीं होते ।

खैर  बात उन दिनों की है जब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। और  नृपेंद्र मिश्र उन के सचिव थे। राजनाथ सिंह सूर्य की तब के दिनों न  कल्याण सिंह सुनते थे न नृपेंद्र मिश्र। सो उन की दलाली ठंडी पड़ी जा रही थी। उन दिनों पुलिस महानिदेशक थे प्रकाश सिंह। किसी काम से ठाकुरवाद के वशीभूत राजनाथ सिंह सूर्य  उन के पास बैठे थे। कि तभी उन को एक ट्रिप मिल गई। हुआ यह कि बनारस के एस एस पी को प्रकाश सिंह ने किसी काम से फ़ोन किया तो वह नहीं मिले। तब मोबाइल का ज़माना था नहीं। बाद में प्रकाश सिंह को बताया गया कि एस एस पी तो नृपेंद्र मिश्र के कहे पर किसी अमेरिकी को ले कर भदोही गए हुए हैं। बस क्या था कि राजनाथ के पत्रकार ने दिमाग लगा दिया। वह जानते थे कि सीधे किसी और अखबार में इस तरह की खबर नहीं छप सकती। उर्दू अखबार कौमी आवाज़ में खबर छपवाई कि मुख्यमंत्री के सचिव के सी आई ए से संबंध। राजनाथ जानते थे कि एल आई यू उर्दू अखबारों पर कड़ी नज़र रखती है। नज़र पड़ी भी। जांच शुरु हो गई। अब यह खबर उन्हों ने पांचजन्य में प्लांट की। और फिर एक न्यूज़ एजेंसी से खबर जारी करवाई कि संघ के अखबार ने लिखा है कि मुख्यमंत्री का सचिव का संबंध सी आई ए से। अब यह खबर बड़ी हो गई। और चर्चा भी ज़बर्दस्त। लेकिन नृपेंद्र मिश्र की गिनती ईमानदार अधिकारियों में होती रही है। सो कोई मामला बना भी नहीं।

वैसे भी उन्हों ने जिस अमरीकी के साथ एस एस पी को भेजा था, वह राजनयिक की पत्नी थी और प्रोटोकाल में भेजा था, केंद्र सरकार के कहने पर भेजा था। मुख्यमंत्री की जानकारी में। वह बीच में कहीं थे भी नहीं। लेकिन जब मामला खुला तब राजनाथ सिंह सूर्य  का नाम सामने आ गया। लेकिन तब तक नृपेंद्र  मिश्र सी आई इ एजेंट का दाग  अपने ऊपर लगवा  बैठे थे । अब राजनाथ सिंह सूर्य का दलाल फिर जागा है । वह देख रहे हैं की वर्षों की तपस्या के बाद केंद्र में भाजपा की अपने बूते सरकार बनी है सो उन के भी दिन फिर सकते हैं । लेकिन नृपेंद्र  मिश्र के सचिव रहते उन की कोई दाल तो गल नहीं सकती । सो उन्हों ने गड़ा  मुर्दा एक बार फिर से उखड़वा दिया है एक पिद्दी भर के अखबार के मार्फत । वह प्रतिदिन अखबार जो ब्लैक मेलिंग और अपने  तमाम बकाया के लिए जाना जाता है । क्यों कि  बाकी अखबार तो  इस बे-सर-पैर की खबर को  छापने से रहे । और चर्चा चल पडी है की क्या नृपेंद्र मिश्र आई ए एजेंट हैं ? अब इन दलालों को कोई यह समझाने वाला नहीं है कि  देश में यह पहली बार हुआ है कि किसी रिटायर आई ए  एस  अफसर को प्रधान मंत्री का सचिव नियुक्त करने के लिए किसी सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा है । बल्कि नरेंद्र मोदी सरकार का पहला अध्यादेश  ही नृपेंद्र  मिश्र की नियुक्ति का था ।

ज़िक्र ज़रूरी है कि 69 साल के  नृपेंद्र मिश्रा यूपी कैडर के 1967 बैच के आई ए  एस अधिकारी रहे हैं और 2009 में रिटायर हो चुके हैं। 2006 से 2009 के नृपेंद्र टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानि ट्राई ट्राई के चेयरमैन रहे। इसी समय टू जी घोटाले की बात सामने आई। टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन में धांधली की वजह से इन का नाम विवादों में भी रहा। नृपेंद्र की एक बड़ी उपलब्धि ये भी रही की ये अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में दूरसंचार सचिव का काम भी संभाल चुके हैं।  नृपेंद्र अपने राष्ट्रवादी विचारों के लिए भी जाने जाते हैं। इन्हें केंद्र में विभिन्न मंत्रालयों और विदेशों में भी काम करने का लंबा प्रशासनिक अनुभव हासिल है। आम तौर पर नृपेंद्र की छवि एक सख्त अधिकारी के तौर पर देखी जाती रही है। नृपेंद्र कर्मचारियों की लापरवाही पर सख्त कार्रवाई करने के लिए जाने जाते हैं। नृपेंद्र मिश्रा टेलीकॉम सचिव भी रह चुके हैं। साथ ही वित्त मंत्रालय में भी बड़ी जिम्मेदारियां निभाई हैं।

तो क्या ऐसे अधिकारी के बारे में नरेंद्र मोदी ने बाकी छानबीन किए बिना ही अपना सचिव नियुक्त कर दिया होगा ? लेकिन खबरें प्लांट करने और दलाली के शौक़ीन लोग अपनी आदत से भला बाज कहां आते हैं ?

चाहे  जो हो  ऐसे एक नहीं अनेक खबरों की प्लांटिंग, योजना आदि में राजनाथ सिंह सूर्य  का नाम वैसे ही सना पड़ा है जैसे आटे में पानी। हालत तो यह थी कि स्वतंत्र भारत में संपादक उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने बनवाया था। वह भी विज्ञापन के मद में सूचना विभाग से ३६ लाख एडवांस दिला कर।

राजनाथ सिंह सूर्य  की यह अदा है खबरों की मार कर लोगों को निपटाना । लोगों को ऐसे ही या वैसे ही निपटाते रहने की । १९८९ में जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे तब एक आईपीएस अफ़सर थे राम आसरे प्रसाद। मुलायम के मुंहलगे। मुलायम सिंह ने उन्हें उपकृत करने के लिए एडीजी का पद सृजित किया। उन्हीं दिनों अयोध्या में कार सेवकों का मामला गरमाया था।

मुलायम ने अयोध्या की नाकेबंदी कर कहा कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता। इसे कार सेवकों को भड़काने वाला बयान माना गया। वह भड़के भी। कार सेवकों ने मस्जिद के गुंबद पर चढ़ कर झंडा फहरा दिया। तोड़-फोड़ की। कार सेवकों पर गोली चली। और तमाम बातें हुईं। दंगे फ़साद हुए। राजनाथ सिंह सूर्य तब स्वतंत्र भारत के संपादक थे। एक अच्छे खासे अखबार को उन्हों ने अयोध्या प्रसंग में हिंदू अखबार बना दिया। इतना ही नहीं जिन पहले अखबारों में वह काम कर चुके थे, आज और दैनिक जागरण को भी अपने प्रभाव में लिया और उन्हें भी हिंदू बना दिया। लखनऊ से तब छपने वाले अखबारों में एक नवभारत टाइम्स को छोड़ कर सभी अखबार हिंदू अखबार में तब्दील हो गए थे। तो यह राजनाथ सिंह सूर्य  का प्रताप था। कुछ और नहीं। और यह सब कुछ वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यकर्ता होने के नाते कर रहे थे। सो  स्वतंत्र भारत में एक खबर खुद लिखी और एक मुस्लिम संवाददाता के नाम से खबर छापी कि अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाने का आदेश देने वाले पुलिस अफ़सर से भगवान राम इतने कुपित हुए कि उस पुलिस अफ़सर की आंख बह गई। यह पुलिस अफ़सर थे राम आसरे प्रसाद। ए डी जी।

हुआ यह था कि उन दिनों राम आसरे प्रसाद ने मोतियाबिंद का आपरेशन करवाया था। और आंख पर पट्टी बांध कर घूम रहे थे। उन दिनों राम आसरे प्रसाद का वही जलवा था मुलायम राज में, जो जलवा अभी बीते मायावती राज में बृजलाल का रहा था, विधान सभा चुनाव के पहले तक। और राम आसरे प्रसाद ने राजनाथ की कोई सिफ़ारिश नहीं मानी थी। सो खबरों में उन की आंख बह गई थी। वह बहुत दिनों तक सफाई देते फिरे कि उन की कहीं कोई आंख नहीं बही है। लेकिन खबर को विश्वसनीय बनाने के लिए उन्हों ने एक मुस्लिम संवाददाता के नाम का सहारा लिया।   बाद में भी लोगों को ऐसे ही या वैसे ही निपटाते रहे। तो  नृपेंद्र मिश्रा  का सी आई ए  एजेंट बनना  भी खबरों की प्लांटिंग के सिवाय कुछ नहीं है ।

2 comments:

  1. Nice revelation Pande ji. Congratulations. Such selfish people can do any thing for their interests.Anil Rastogi

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  2. भाई ,बहुत जबरदस्त है । राजनाथ जी मेरे समय में `आज ' अख़बार में सिटी रिपोर्टर थे । वहां से लखनऊ आये ब्यूरो चीफ बनाकर । बाकी बातें आपकी जुबान से ही सुन रहा हूँ । बुद्धिनाथ मिश्र

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