Tuesday, 17 June 2014

अखिलेश सरकार हाराकिरी की राह पर अग्रसर


अखिलेश सरकार की जैसे मति मारी गई है। पहले अखिलेश यादव ने ऐन चुनाव के पहले दैनिक जागरण के मालिकानों से मोर्चा खोल लिया। और अब अमर उजाला के मालिकानों से भी मोर्चा खोल लिया है आज। अफ़सर पहले ही से नाराज चल रहे हैं। और जिस सरकार से अफ़सरशाही और मीडिया दोनों ही नाराज हो जाएं उस सरकार की दुर्दशा पर सिर्फ़ अफ़सोस के कुछ नहीं किया जा सकता। कहा जाता है कि अफ़सरों को साधना शेर की सवारी जैसा है। जो मुख्य मंत्री इस शेर की सवारी को नहीं साध पाता, वह बरबाद हो जाता है। और फिर करेला और नीम चढ़ा ! आप मीडिया से भी मोर्चा खोल लें? यह नादानी ही नहीं हाराकिरी है। हाराकिरी मतलब आत्म हत्या। हाराकिरी आत्म हत्या की एक जापानी पद्धति है। जो अपने को तकलीफ़ देते हुए अपने पेट में छुरा मार-मार कर धीरे-धीरे की जाती है। अखिलेश सरकार अब इसी हाराकिरी की राह पर अग्रसर दीखती है। पहले अखिलेश यादव ने ऐन चुनाव के पहले दैनिक जागरण के मालिकानों से मोर्चा खोल लिया।  सरे आम यह तोहमत लगा दी कि राज्य सभा में नहीं भेजा तो मेरे खिलाफ़ खबरें छापने लगे। फिर तो जैसे दैनिक जागरण ने जैसे एक सूत्रीय कार्यक्रम चला दिया। अखिलेश सरकार के खिलाफ़ जैसे धावा बोल दिया।

अब आप दैनिक जागरण में सीधे अखिलेश सरकार पर चोट करती हुई खबरें रोज बांच सकते हैं।

एक एक्स्लूसिव खबर रोज। बाकी रुटीन खबरें भी सत्ता के पक्ष के खिलाफ़। अब आज अखिलेश यादव ने अमर उजाला को भी नाराज कर लिया। उत्तर प्रदेश में बेलगाम कानून व्यवस्था को थामने के लिए मुख्य सचिव को हटाने के बाद चार दिन पहले प्रमुख सचिव गृह के पद से अनिल गुप्ता को हटा कर दीपक सिंघल को प्रमुख सचिव बनाया था। आज दीपक सिंघल को भी हटा दिया। ज़िक्र ज़रुरी है कि दीपक सिंघल अमर उजाला परिवार के दामाद हैं। तो दामाद की इस बेइज़्ज़ती का हिसाब कल से अमर उजाला भी नहीं लेगा, इस की क्या गारंटी है? पूर्वी उत्तर प्रदेश में दैनिक जागरण और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अमर उजाला की तूती बोलती है। दोनों ही प्रमुख अखबार अब अखिलेश को निपटाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। यादव राज वैसे भी भभका मार रहा है। जगह-जगह पुलिस कर्मी तक मारे जा रहे हैं। डी आई जी तक सुरक्षित नहीं हैं। बलात्कार और हत्याओं की बाढ़ जैसे कम थी अखिलेश सरकार की नाक में दम करने को जो आए दिन नए-नए बयाने भी वह लेते जा रहे हैं। कुंडा में सी ओ  की हत्या और फिर आई ए एस अफ़सर दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन के बाद से अखिलेश सरकार की जो दुर्गति शुरु हुई है वह मुजफ़्फ़र नगर दंगे के बाद भारी चुनावी पराजय के बाद भी रुकती नहीं दिख रही। जातिवादी गुणा-भाग में पस्त अखिलेश सरकार अफ़सरों पर तो लगाम लगाने में असफल होने के बाद अब मीडिया घरानों से नया मोर्चा खोल कर नई आफ़त मोल ले बैठी है। बताइए कि आठवीं पास एक चार सौ बीस भी सपा के विधायकों को मंत्री बनवाने का सब्जबाग दिखा कर उन से ऐन लखनऊ में करोड़ों रुपए वसूल ले रहा है तो सरकार के इकबाल और धमक का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है। अखिलेश सरकार ने बहुत दिनों से इनामी बदमाशों की सूची तक नहीं जारी की है। कानून व्यवस्था धूल चाट रही है। पुलिस कर्मियों का मनोबल गिरा हुआ है।

दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव मंत्रियों पर बरस रहे हैं। वह जानते हैं कि कौन मंत्री दलाली कर रहा है, कौन मंत्री ठेकेदारी कर रहा है कौन मंत्री रंगदारी और कौन मंत्री खनन के धंधे में लगा है और कि उन के मंत्रियों की हैसियत चुनाव में अपने क्षेत्र का एक बूथ जितवाने भर की भी नहीं है। फिर भी मंत्रिमंडल बना हुआ है। यह हो क्या रहा है? यह तो वही हुआ कि मनमोहन सिंह को सब मालूम था कि ए राजा टू जी स्पेक्ट्रम में घपला कर रहे हैं, सुरेश कलमाड़ी कामनवेल्थ गेम में लूट रहे हैं, कोयला घोटाला भी उन्हें मालूम था ही। लेकिन वह यह सब लाचार हो कर देखते रहे। नतीज़ा सामने है कांग्रेस ने अपनी कब्र ही नहीं समूचा कब्रिस्तान खोद लिया और नेस्तनाबूद हो गई।

तो क्या मुलायम सिंह यादव भी मनमोहन सिंह की तरह लाचार हो गए हैं? अखिलेश यादव तो सही मायने में  मुख्य मंत्री नहीं वह घोड़ा हैं जिस की लगाम कभी मुलायम के हाथ होती है तो कभी शिवपाल, कभी आजम खान, कभी अनीता सिंह आदि के हाथ। वह करें भी तो क्या करें?

मुलायम सिंह और अखिलेश यादव को अपने यदुवंशी होने का गुमान भी बहुत है। यह गुमान सब कुछ लुटा लेने के बावजूद बिहार में लालू प्रसाद यादव को अभी भी है। शायद शरद यादव को भी है। तो यह सभी यदुवंशी होने का गुमान होने का भ्रम भूजने वाले लोग कभी गीता का ज्ञान लेने की भी क्यों नहीं सोचते भला?  कम से कम राज-काज में ही कृष्ण नीति से सीख ले लेते। वह कृष्ण जो बिना हथियार उठाए ही पांडवों की विजय का प्रतीक बन जाता है। गीता का ज्ञान भी देता है जो न सिर्फ़ राज-काज के काम आता रहा है बल्कि आज भी सुख-दुख में न सिर्फ़ सब का संबल है बल्कि अदालतों तक में गीता की हलफ़ चलती ही है अभी भी।

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