दयानंद पांडेय से प्रदीप श्रीवास्तव की बातचीत
लेखक की आवाज़ को नक्कारखाने में तूती की आवाज़ मानने वाले दयानन्द पांडेय बावजूद इसके लिखते ही रहते हैं। वह अब तक हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं,विषयों में पिचहत्तर से अधिक किताबें लिख चुके हैं। शीघ्र ही उन की कुछ और पुस्तकें भी प्रकाशित होने वाली हैं। वह एक सजग तेज़ तर्रार निर्भीक पत्रकार रहे हैं, उनके लम्बे पत्रकारीय जीवन,अनुभव की छाया स्वाभाविकता उनके साहित्य पर भी खूब पड़ती रहती है। बिना लागलपेट सीधे-सीधे बात कहने की प्रवृत्ति है इस लिए विवाद भी उनके साथ-साथ चलता है। हाईकोर्ट में कंटेम्प्ट का मुकदमा भी झेल चुके हैं। कोर्ट में माफ़ी नहीं मांगी। बेरोजगारी,भूख तमाम दुश्वारियों का सामना किया लेकिन अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया , आगे बढ़ते रहे और अब तक हिंदी साहित्य के अनेक महत्वपूर्ण पुरस्कारों से पुरस्कृत , सम्मानित हो चुके हैं। बीते दिनों उन से उनके समग्र व्यक्तित्व कृतित्व एवं अन्य विभिन्न बिंदुओं पर जो विस्तृत बातचीत की, वह प्रस्तुत है। जिस में संभवतः आप यह ध्वनि भी सुन लें कि कुछ बिंदु ऐसे हैं जिस पर वह भी कुछ लिखने बोलने कि अपेक्षा किनारे से निकल लेना श्रेयस्कर समझते हैं। आखिर सबकी अपनी-अपनी एक सीमा होती ही है, उनकी भी है।