दयानंद पांडेय
जाने यह लोकतंत्र की ख़ूबसूरती है या वामपंथियों की थेथरई कि पश्चिम बंगाल में अपनी हाहाकारी हार को ममता बनर्जी की जीत में धो रहे हैं। केरल में अपनी जीत की भी खुशी नहीं दिख रही है वामपंथियों को। उन की सारी खुशी इसी में है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा नहीं जीती। रतौंधी के मारे इन वामपंथियों को भाजपा का तीन सीट से डबल डिजिट में आना नहीं दिख रहा। आसाम और पांडिचेरी में भाजपा की जीत भी नहीं दिख रही। अजीब बीमारी है। लोकतंत्र में जैसे यकीन ही नहीं है।
भाजपा भी इन से कंधे से कंधा मिला कर खुश है कि भले खुद सत्ता में नहीं आए तो क्या पश्चिम बंगाल में वाम और कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया है। कांग्रेस तो कोई नृप होइ हमें का हानि के आध्यात्म में लीन हो गई है। गोया उस को जीत-हार से कोई लेना-देना ही नहीं। जैसे देह से आत्मा मुक्त होती है , भारत से कांग्रेस मुक्त हो रही है। होती ही जा रही है। अलग बात है पश्चिम बंगाल में इस जीत के बाद ममता बनर्जी पहली चुनौती कांग्रेस को ही देने जा रही हैं। विपक्ष के नेतृत्व की कमान अब ममता बनर्जी कांग्रेस से छीन कर अपने हाथ में लेने की कोशिश करेंगी। शायद ले भी लेंगी। कांग्रेस और कमज़ोर होगी।
जो भी हो 2024 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी , नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए सब से बड़ी बैरियर भी बनने जा रही हैं। आश्चर्य नहीं होगा अगर बनारस में वह नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव भी लड़ जाएं। राजनीति है , कुछ भी सम्भव संभव है। तब तक गंगा का बहुत सा पानी गंगा सागर में बह चुका होगा। कहना न होगा कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार से नरेंद्र मोदी की जिताऊ छवि फिर चकनाचूर हुई है। पश्चिम बंगाल में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सब से बड़ी ग़लती यह थी कि वह मछली की आंख नहीं , मछली देखते रहे। जब कि पश्चिम बंगाल का चुनाव नरेंद्र मोदी के लिए मछली की आंख ही थी। सत्ता की द्रौपदी का रास्ता। और यह देखिए कि ह्वील चेयर पर ही बैठ कर नरेंद्र मोदी की जीत का धनुष तोड़ दिया। वाण चलाते भी तो भला कैसे ? ममता को मिली सहानुभूति के आगे सारी रणनीति , साइलेंट वोटर स्वाहा हो गए। चंडी पाठ के आगे जय श्री राम चुप हो गए। साबित हुआ कि पश्चिम बंगाल देवियों का ही है।
फिलहाल ममता बनर्जी की इस जीत से ममता बनर्जी के साथ-साथ दो और लोग सर्वाधिक खुश हुए हैं। एक वामपंथी दूसरे , मुस्लिम समाज। मोदी वार्ड के तमाम मरीजों को तो जैसे स्वर्ग मिल गया है। ममता बनर्जी की जीत इन सब के लिए आक्सीजन बन कर उपस्थित है। अंतत: देखना यह भी दिलचस्प होगा कि यह चुनावी थकान मिटाने के लिए राहुल गांधी छुट्टियां मनाने विदेश कब निकलते हैं।
रोचक
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