Wednesday, 12 May 2021

तो राज्य सरकारें सिर्फ पिंगिल छांटने के लिए हैं , नाखून कटवा कर शहीद बनने के लिए हैं

दयानंद पांडेय 

सारे इम्तहान , सारी मदद , सारा काम केंद्र सरकार करे। राज्य सरकारें सिर्फ पिंगिल छांटने के लिए हैं। मुफ्त में राणा प्रताप बनने के लिए हैं। नाखून कटवा कर शहीद बनने के लिए हैं। विज्ञापन दे-दे कर अपनी पीठ ठोंकने के लिए हैं। हम ने यह किया , हम ने वह किया , बताने के लिए हैं। मैं ने अपनी मां को बेचा , आप से मतलब सरीखा कुतर्क करने के लिए हैं। और जब कुछ करने का अवसर आए तो पैंट खोल कर खड़े हो जाने के लिए हैं। पैरासिटामाल की तरह वैक्सीन बनाने का कमीनापन झाड़ने के लिए हैं। मुकेश अंबानी सरीखों से उगाही करने के लिए हैं। 

हमारी भोजपुरी में एक अभद्र कहावत है , थोड़ा संशोधन कर कहूं तो पिछाड़ी में दम नहीं , बारी में डेरा ! वाली बात है। अरे जब आप को मालूम है कि भारत एक संघीय ढांचा वाला देश है तो काहे लपक-लपक कर अपनी पैंट गीली कर उतार कर खड़े होने का कायराना अंदाज़ दिखाते रहते हैं। प्रदेश के बिना देश नहीं , देश के बिना प्रदेश नहीं। कच्छा खरीदने की हैसियत नहीं , सूट-बूट का सपना। यह गुड बात नहीं है। यह वैश्विक महामारी है। मिल-जुल कर ही इस से लड़ा जा सकता है। बात-बेबात तलवार निकाल कर आपस में लड़ना मूर्खता है। निर्दोष और मासूम जनता की ज़िंदगी से खेलना है। 

समूची दुनिया मिल कर इस महामारी से लड़ रही है। सभी देश एक दूसरे की मदद कर रहे हैं। पर हमारी प्रदेश सरकारें , ख़ास कर विपक्ष की सरकारें इजराइल और फिलिस्तीन की तरह केंद्र सरकार से लड़ रही हैं। इन लड़ने वालों को जान लेना चाहिए कि बात-बेबात आग मूतने से चिराग नहीं जलते। बुझ जाते हैं। ज़रूरत और यह समय जनता की ज़िंदगी बचाने का है। इजराइल और फिलिस्तीन की तरह बमबारी वाली कबड्डी खेलने का नहीं। यह भी जान लेना ज़रूरी है कि केंद्र इजराइल की तरह ताकतवर है। सो फिलिस्तीन की तरह अपनी दादागिरी दिखाने का समय नहीं है। कंधे से कंधा मिला कर कोरोना जैसी महामारी से लड़ने का है। प्रदेश सरकारों के नेताओं के अहंकार भरी राजनीति में देश की मासूम और निर्दोष जनता भुगत रही है। कभी टेस्ट नहीं कराएंगे , कभी वैक्सीन नहीं लगवाएंगे , कभी आक्सीजन की कमी का विलाप , कभी यह , कभी वह के विरोध की बीमारी बहुत हो गई. बंद भी कीजिए यह ड्रामा।   

विरोध के मारे विपक्ष के लोगों को एक नृशंस हत्यारे पप्पू यादव की पैरवी में भी शर्म नहीं आ रही। वामपंथियों को भी नहीं आ रही। जिन दिनों बिहार में जंगलराज था , वामपंथी नेताओं तक को इसी पप्पू यादव ने दिन-दहाड़े मार गिराया था। पर नैरेटिव यह रचा जा रहा है कि पप्पू यादव सब की मदद बहुत कर रहा है। हत्यारे अकसर ऐसी मदद करते रहते हैं , सामजिक स्वीकृति पाने के लिए हत्यारे वेश बदलते रहते हैं। रावण भी भिखारी का वेश धर लेता है। अपना पाप छुपाने के लिए बाढ़-सूखा में , किसी भी आपदा में मदद की नाव ले कर यह अपराधी निकल लेते हैं। लोग उन का अपराध भूलने लगते हैं। 

क्या सचमुच ? 

पर आज के प्रतिपक्ष का राजनीतिक नैरेटिव ऐसा ही हो गया है। लोग महामारी भूल कर अपनी मानसिक बीमारी को सर्वोपरि मान बैठे हैं। यह कठिन दिन भी उन्हें आपदा में अवसर की तरह लग रहे हैं। जिन लोगों के परिवार से लोग विदा हो गए हैं , मित्र परिजन विदा हो गए हैं , उन से पूछिए न एक बार। फिर जो विदा होने की तैयारी में बैठे हैं , उन से ही पूछ लीजिए। सारी टुच्चई भूल जाएंगे। हम विकसित नहीं , विकासशील  देश हैं। जो भी आधी-अधूरी सुविधाएं हैं , इन्हीं के सहारे , इस महामारी से , असमय आई मौत से लड़ना ज़रूरी है। आपस में नहीं। यह बात जितनी जल्दी केंद्र , प्रदेश , पक्ष-विपक्ष समेत सभी लोग समझ जाएं , बेहतर है। 

सचमुच बहुत कठिन समय है। नहीं अंदाजा है तो मौत से , इस महामारी से लड़ कर आए लोगों से ही एक बार बात कर लें। सारा झगड़ा भूल जाएंगे। मिल कर लड़िए। और जो गुस्सा बहुत है तो दस बार चीन को गरिया लीजिए। निंदा कर लीजिए। क्यों कि इस महामारी कोरोना का माता-पिता वही है। पता नहीं कितना सच है , कितना गलत , लोग लेकिन कह रहे हैं कि चीन द्वारा छेड़ा गया यह तीसरा विश्वयुद्ध है। चीन का जैविक हमला है यह। सो यह समय अपने-अपने अहंकार को बचाने का नहीं , लोगों का जीवन , मनुष्यता , देश और दुनिया को बचाने का है। चिट्ठी-चिट्ठी खेलने का नहीं।  यह चिट्ठी-चिट्ठी का खेल जनता के बीच आप का चेहरा काला कर रहा है , साफ नहीं यह बात भी साफ-साफ समझ लेने की है।

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