Friday, 7 July 2017

किसी मुस्लिम या दलित के साथ हादसा या हत्या होने पर पूरे देश में एक आंदोलन क्यों खड़ा हो जाता है ?

किसी भी के साथ कोई हादसा या किसी भी की हत्या सर्वदा दुखद ही होता है । वह चाहे किसी भी समाज का , किसी भी वर्ग का हो । लेकिन आप ने कभी गौर किया है कि किसी मुस्लिम या किसी दलित के साथ हादसा होने पर या हत्या होने पर देखते ही देखते पूरे देश में एक आंदोलन खड़ा हो जाता है तो क्यों और कैसे ? नहीं जानते हों तो अब से जान लीजिए । यह सब सिर्फ़ एन जी ओ फंडिंग का प्रताप है । उन एन जी ओ का , जिन को किश्चियन मिशनरी और गल्फ फंडिंग की बहार हासिल है । कहीं-कहीं सरकारी बहार भी । मीडिया से जुड़े कई लोग भी इस तरह के एन जी ओ चलाते हैं । कभी खुद तो कभी परिवारीजनों के मार्फ़त । एक नहीं कई , कई एन जी ओ । सो सामाजिक आंदोलन चलता रहता है ।
यही हाल बहुत सारे बुद्धिजीवियों , लेखकों और रंगकर्मियों का भी है । यह तमाम बुद्धिजीवी , लेखक और रंगकर्मी भी कई-कई एन जी ओ चलाते हैं या प्रकारांतर से जुड़े रहते हैं । सो तमाम मीडिया में खबरें चलने लगती हैं , बुद्धिजीवियों और लेखकों की बयान बहादुरी नफ़रत की सारी हदें पार करने लगती हैं । जगह-जगह नाच , गाने और नाटक होने लगते हैं । पूरे देश में एक खौफनाक मंज़र रच दिया जाता है । फिर इस खौफनाक मंज़र के मद्देनज़र तमाम लोग फैशनपरस्ती में भी उतर आते हैं । फ़ेसबुक पर सक्रिय एन जी ओ गिरोह के तमाम लोग कमर कस कर ऐसे उतर लेते हैं गोया पानीपत या गाजापट्टी की लड़ाई आन आ पड़ी हो । सो दिल्ली में जंतर मंतर सहित देश में तमाम ऐसी जगहें सज जाती हैं ।
आप गौर कीजिए कि अभी उत्तर प्रदेश के रायबरेली में एक साथ पांच लोग जला दिए गए । लेकिन कायदे से यह देशव्यापी खबर तो छोड़िए प्रदेश स्तर की भी खबर नहीं बन सकी। क्या यह घटना जघन्य नहीं थी कि मनुष्य विरोधी नहीं थी । पर फ़ेसबुक या ट्विटर पर भी यह घटना अभियान नहीं बनी । इस घटना के विरोध में नाटक , नाच , गाना और जलसा होना तो दूर की बात है । तो सिर्फ़ इस लिए कि यह सभी पांच के पांच लोग ब्राह्मण लोग थे । क्रिश्चियन मिशनरी या गल्फ फंडिंग प्रायोजित एन जी ओ को इस घटना पर यह सब करने से कोई भुगतान नहीं होता तो यह लोग कोई धरना , प्रदर्शन भी कैसे करते ? लेकिन एक मुख्यमंत्री को शैंपू , साबुन देने के लिए दुनिया भर का नाटक यह एन जी वाले कर लेते हैं । न्यूज की हाइक भी ले लेते हैं ।
इसी तरह बीते हफ़्ते बिहार में महादलित बावन मुसहर और मुरहू मुसहर की हत्या भीड़ ने मिल कर कर दी। इस की चर्चा भी किसी ने नहीं की । न न्यूज में , न फ़ेसबुक पर । किसी दलित गिरोह या सेक्यूलर गैंग ने भी इस की नोटिस नहीं ली । फेसबुक और ट्विटर पर भी सन्नाटा छाया रहा। घटना पिछले सप्ताह पटना से 170 किमी दूर रोहतास के कोचास थानान्तर्गत परसिया में घटी । दोनों महादलित युवकों पर चोरी का आरोप है, इन्हें कथित तौर पर शौकत अली के घर में घुसते हुए पकड़ा गया था लेकिन पुलिस ने अज्ञात लोगों पर हत्या का मामला दर्ज किया है। लेकिन चूंकि यहां दलित और मुस्लिम के बीच का पेच फंस गया तो इस बिना पर इन एन जी ओ के संचालकों का पेमेंट फंस जाता इस लिए ख़ामोश रहे ।
ठीक यही पेंच उत्तर प्रदेश के रामपुर में भी बीते दिनों फंसा था । रामपुर में दलित लड़कियों को आजम खान पोषित कुछ मुस्लिम लोगों ने न सिर्फ़ दिन दहाड़े उठा लिया , उन के साथ बदसलूकी की बल्कि इस सब की वीडियो बना कर फ़ेसबुक पर पोस्ट कर दिया । लेकिन इस घटना पर भी सिरे से चुप्पी बनी रही । देश भर में कोई धरना , कोई प्रदर्शन , कोई नाटक , कोई गाना , बजाना या कोई जंतर मंतर नहीं हुआ । तो सिर्फ़ इस लिए कि एन जी ओ वालों को यहां भी पेमेंट नहीं मिलना था । यह और ऐसी बहुतेरी घटनाएं हैं । जिन की तफ़सील में यह और ऐसे पेंच निरंतर सक्रिय हैं ।
आप गौर कीजिए कि कश्मीर में हो रही तमाम मुस्लिमों की हत्या पर भी , आए दिन आतंकवादी घटनाओं पर भी देश में कोई आंदोलन कहीं क्यों नहीं होता ? क्यों नहीं होता कोई धरना , कोई प्रदर्शन , नाच , गाना , नाटक , जलसा आदि नहीं होता । न जंतर मंतर , न कहीं और । तो सिर्फ़ इस लिए कि इस बाबत भी किसी एन जी ओ को कभी कोई पेमेंट नहीं मिल सकता । इस लिए भी कि एन जी ओ को क्रिश्चियन मिशनरी और गल्फ फंडिंग का मुख्य मकसद देश को गृह युद्ध में झोंकना ही है । और कश्मीर में उन का मकसद पहले ही से कामयाब है ।


क्या फ़ेसबुक की लोकप्रियता भुनाते हुए इस का इस्तेमाल देश को गृह युद्ध के मुहाने पर बैठाने की कुछ लोग कोशिश नहीं कर रहे ? मेरा मानना है कि हां । एन जी ओ बनाना , विदेशी फंडिंग बटोरना और फिर सामाजिक विषमता का झंडा ले कर , सेक्यूलरिज्म शब्द का दुरूपयोग करते हुए उस के कंधे पर बैठ कर , मनुवाद , ब्राह्मण आदि का नाम लेते हुए दलित और पिछड़े होने की जातीय अस्मिता के नाम पर जहर उगलना , आग मूतना, अल्सेशियन बन कर लगातार भौकना कहां तक गुड है ? यह देश को गृह युद्ध की तरफ धकेलने की विदेशी चंदे के दम पर एक क्रूर साजिश है । इस बात को समझना बहुत ज़रुरी है । मित्रों , फ़ेसबुक पर बहुत सारे लोग भी इसी जाल में आप को लपेट कर एक्सपर्ट बने हुए हैं ।
अपनी आई डी से भी , पचास ठो फर्जी आई डी बना कर भी। चाहें तो आप चेक कर लें कि जो कुछ लोग इस काम पर लगे हुए हैं उन की पोस्ट पर टिप्पणियां करने वाले भी कौन लोग हैं ? अनाम पहचान वाले लोग उन्हीं की भाषा और तेवर में बोलते हुए पचासियों लोग कौन लोग हैं ? बॉस ने छींका नहीं कि मिजाज पुर्सी में तुरंत पांच , दस मिनट में सैकड़ो लाइक , धकाधक पचासियो कमेंट आख़िर कैसे आ जाते हैं ? फिर सैकड़ो , हजारों पर आते देर नहीं लगती। और अगर गलती से कोई एक व्यक्ति भी घुस गया उस जमात में अपना निर्दोष प्रतिवाद जताने , विरोध जताने तो कुत्तों की तरह काटने के लिए यही अनाम पहचान वाले लोग कुतर्क लिए , लगभग गालियां देते हुए , अबे-तबे करते हुए टूट पड़ते हैं। जैसे किसी गली के कुत्ते किसी अनजान व्यक्ति पर टूट पड़ते हैं । अंतत: कटहे कुत्तों की इस खौफनाक गली में झांकना भी लोग बंद कर देते हैं। यही यह लोग चाहते भी हैं। इन के जनमत संग्रह का कारोबार बढ़ता जाता है । देश को गृह युद्ध की तरफ धकेलने का कारोबार दिन दूना , रात चौगुना बढ़ने लगता है ।
वैसे ही जैसे कश्मीर में अलगाववादियों की ढिठाई और जनमत संग्रह की बात होती है , पाकिस्तान के समर्थन में । और इस तरह इन के एन जी ओ की बल्ले-बल्ले होने लगती है। इन की फंडिंग बढ़ती जाती है । यह लोग इसी बिना पर दूसरी पोस्टों पर भी यह जहर उगलना , आग मूतना पूरी बेशर्मी से बेधड़क जारी रखते हैं । कुतर्क की चाशनी लगा कर । अच्छा यह बताईए कि आप मित्र लोग भी पोस्ट लिखते हैं । पर कुछ सेलिब्रेटी को छोड़ कर कितने ऐसे मित्र हैं जिन की पोस्ट पर दस पांच मिनट में सैकड़ो लाइक और कमेंट ऐसे गिर जाते हैं जैसे बरसात में शाम को लाईट जलते ही उस पर बेशुमार पतंगे गिर-गिर पड़ते हैं । यह सब विदेशी फंडिंग से चलने वाले एन जी ओ का कमाल है , देश को गृह युद्ध की ओर धकेलने की कोशिश है , कुछ और नहीं । इन से सतर्क रहना , इन को नंगा करना और इन की साज़िश को नाकाम करना हम सभी का दायित्व है।


कश्मीर और केरल की घटनाओं पर तो हमारे एन जी ओ धारी आंदोलनकारी चुप रहते ही थे , पश्चिम बंगाल की घटनाओं पर भी चुप रहना सीख गए हैं । वह चाहे मालदा हो , गोरखालैंड आंदोलन का मामला हो या चौबीस परगना । क्यों कि इन मुद्दों पर भी गल्फ फंडिंग या क्रिश्चियन फंडिंग वाले पेमेंट नहीं मिलते । फिर यहां मनुष्यता की चीख में सेक्यूलरिज्म का तड़का भी नहीं है । सो फ़ेसबुक से लगायत जंतर मंतर तक नो नाच गाना , नो जलसा , नो सेमिनार आदि-इत्यादि ।


पट्टीदार और पड़ोसी जैसे भी हों , कोई भी हों , चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश-भूटान-नेपाल आदि-इत्यादि सरीखे ही होते हैं। चुभते हुए और चिढ़ते हुए । चिकोटी काटते , पिन चुभोते , लड़ते-झगड़ते हुए । आप उन के लिए शीश कटा दें लेकिन उन को मज़ा नहीं आता तो नहीं आता । इन से दोस्ती कभी नहीं हो सकती । दोस्ती के लिए अमरीका , रूस , इजराइल , जापान , जर्मनी आदि दूर के लोग ही गुड रहते हैं । पड़ोसी या पट्टीदार नहीं । इन से सर्वदा सतर्कता और सावधानी बरतना ही गुड रहता है । शिष्टाचार वाली नमस्ते तक ही रहना गुड रहता है ।

1 comment:

  1. पर इनके कुतर्कों पर तर्क करना अभी आम इंसान के लिए मुश्किल होता है, जबकि इनके ढोंग को वो समझता है, इसलिए आप जैसे लोगो को लिखते रहना चाहिए ।

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