Thursday, 13 July 2017

तो क्या कुमार विश्वास के परोसने से बच्चन की कविताओं का स्टारडम गड्ढे में जाता रहा था


मुझे लगता है कि कुमार विश्वास द्वारा यू ट्यूब पर हरिवंश राय बच्चन की कविता परोसने से हरिवंश राय बच्चन की कविताओं का स्टारडम गड्ढे में जाता रहा था , इसी लिए अमिताभ बच्चन ने ऐतराज जताया होगा । ऐसा उन को लगा होगा । लेकिन क्या कविता का भी क्या कोई स्टारडम होता है भला ? अगर होता है तो फिर कबीर और तुलसी जैसे कवि का क्या स्टारडम है ।  इन कवियों को तो हर कोई गाता , बजाता और पढ़ता मिलता है । जन-जन के मन में हैं वह । कवि या कोई भी रचनाकार जन-जन का होता भी है । पर अगर स्टारडम तौलें भी तो तुलसी , कबीर के स्टारडम के आगे बच्चन की क्या बिसात ? 

खैर कोई यह तो बताए कि अगर हरिवंश राय बच्चन की ज़िंदगी में मधुशाला , तेजी बच्चन और अमिताभ बच्चन नाम के तीन तत्व न होते तो हरिवंश राय बच्चन को कोई क्या आज भी याद रखता ऐसे और इस तरह ही ? शुरु में लोगों ने बच्चन को मधुशाला के नाते जाना और याद रखा । फिर उन के जीवन में तेजी आ गईं तो उन की कविता पीछे हो गई , तेजी बच्चन के नाते लोग उन्हें जानने लगे । नेहरु और नेहरु परिवार से उन के रिश्तों के लिए जानने लगे । तेजी बच्चन का तूफ़ान और लावण्य विदा हुआ तो अमिताभ बच्चन के हिंसक अभिनय का तूफ़ान आ गया । लोग अमिताभ बच्चन के पिता के रुप में उन की कविता को जानने लगे । कहूं कि अपने अभिनय की दुकान में अमिताभ अपने पिता के कवि को बेचने लगे । ठीक वैसे ही जैसे किसी सफल व्यक्ति की गरीबी भी गर्वीली हो जाती है , बिकने लग जाती है । हरिवंश राय बच्चन का जब निधन हुआ तो टी वी चैनलों पर अमरीश पुरी , सुभाष घई जैसे तमाम फ़िल्मी लोग श्रद्धांजलि के बयान देते दिखे थे , कोई कवि , लेखक या आलोचक नहीं । गरज यह कि यह श्रद्धांजलि अमिताभ के पिता के लिए थी , कवि हरिवंश राय बच्चन को नहीं ।

हो सकता है बच्चन जी की मधुशाला गा कर अमिताभ बच्चन को अच्छा पैसा मिलता हो ।  तो उन को लगा होगा कि कुमार विश्वास कैसे हरिवंश राय बच्चन की कविता को बेच कर कमाई कर सकते हैं । दुकानदार दोनों ही हैं । सो अमिताभ ने आनन फानन कुमार विश्वास को न सिर्फ़ लीगल नोटिस थमा दी बल्कि बच्चन की कविता से हुई कमाई को भी मांग लिया । अमिताभ बच्चन ने यहीं गलती कर दी और गेद कुमार विश्वास ने लपक लिया । कुमार विश्वास ने न सिर्फ़ यू ट्यूब से बच्चन की परोसी कविता को डिलीट कर दिया बल्कि बच्चन की कविता से कमाए बत्तीस रुपए भी उन्हें लौटा दिए , ऐलानिया । अमिताभ बच्चन ने यह कर के न सिर्फ़ अपना , अपने पिता का बल्कि अपने पिता की कविता का भी अपमान कर दिया । अमिताभ बच्चन को यह जानना चाहिए कि यह निर्मम और हिंसक समय किसी कविता या कवि का नहीं है । बाज़ार का है और इस बाज़ार में न तो किसी कविता के लिए जगह है , न अभिनय के लिए । हां , अगर कविता में हिंसक बाजारुपन है , आप के अभिनय में हिंसक अभिनय है तो इस बाज़ार में इस के लिए पर्याप्त जगह है । दुर्भाग्य से बच्चन की कविता में यह हिंसक बाजारुपन नहीं है । तो उसे कुमार विश्वास क्या अमिताभ बच्चन के पिता जी , हरिवंश राय बच्चन भी जो आ जाएं तो नहीं बेच सकते । अमिताभ बच्चन से अगर लोग पुलक कर बच्चन की मधुशाला या कोई कविता सुन लेते हैं , विह्वल हो कर तो वह अमिताभ बच्चन को सुन रहे होते हैं , हरिवंश राय बच्चन की कविता नहीं । अमिताभ फिल्मों में हैं तो क्या वह फ़िल्मी लेखकों की दुर्दशा और अपमान क्या नहीं देखते हैं ? आंख मूंद लेते हैं ?

निदा फाजली ने एक जगह लिखा है कि मुंबई में साहिर लुधियानवी , मुहम्मद रफ़ी और मधुबाला की कब्र एक ही कब्रिस्तान में है । अगर साहिर लुधियानवी की कब्र खोजेंगे तो जल्दी नहीं दिखेगी । हो सकता है आप को न भी मिले । लेकिन मुहम्मद रफ़ी की कब्र खोजेंगे तो जल्दी ही मिल जाएगी । पर मधुबाला की कब्र दूर से ही चमचमाती हुई दिख जाएगी । निदा ने जाने किस तकलीफ़ में आ कर यह बात लिखी होगी , मैं नहीं जानता । लेकिन उन का यह लिखा अपने भारतीय समाज में लिखने पढ़ने वालों की हैसियत तो बता ही देता है । साहिर लुधियानवी न सिर्फ़ हिंदी फ़िल्मों के सरताज़ गीतकार थे बल्कि उर्दू के मकबूल शायर भी हैं । पर समाज और कब्रिस्तान में जो कदर मधुबाला और मुहम्मद रफ़ी की है , उन की बिलकुल नहीं है । और साहिर ही क्यों भारतीय भाषाओँ के कमोवेश सभी लेखकों और कवियों की भारतीय समाज में यही दयनीय स्थिति है । हरिवंश राय बच्चन भी इसी दयनीयता में शुमार हैं । यह बात अमिताभ बच्चन की मूर्खता में एक बार फिर साबित हो गई है कि उन की कविता को यू ट्यूब पर सिर्फ़ बत्तीस रुपए ही मिले । इस लिए भी कि बाज़ार और समाज में नाम बिकता है , काबिलियत नहीं । यह बात बार-बार साबित हुई है । सानू निगम का भिखारी बन कर मुंबई में एक बार दिन भर गाना गा कर भीख मांग कर दो सौ रुपए का कमाना याद आता है । सोचिए कि अगर यही सोनू निगम बजाय भिखारी के मेकअप के सीधे सोनू निगम बन कर गा कर भीख मांगे होते तो करोड़ो नहीं तो लाखो तो कमा ही लिए होते । पर गायक वही था , गाना वही था , बस पहचान भिखारी की थी सो सिर्फ़ दो सौ मिले , भीख में ।

इसी तरह जब अमिताभ जब अपने पिता की कविता का पाठ करते हैं , मधुशाला का गायन करते हैं तो भारी पैसा और नाम पा जाते हैं क्यों कि बाज़ार में कविता नहीं , अमिताभ का अभिनेता खड़ा होता है । 

हम सभी जानते हैं और देखते भी हैं कि अमिताभ बच्चन अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की कविताओं का पाठ बडे़ मन और जतन से करते हैं। खास कर मधुशाला का सस्वर पाठ कर तो वह लहालोट हो जाते हैं। अपने अशोक वाजपेयी भी अमिताभ के इस बच्चन कविता पाठ के भंवर में जैसे डूबे ही नहीं लहालोट भी हो गए।

अज्ञेय, शमशेर, नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल की जन्मशती पर उन्हों ने योजना बनाई कि इन कवियों की कविताओं का पाठ क्यों न अमिताभ बच्चन से ही करवा लिया जाए। उन्हों ने अमिताभ बच्चन को चिट्ठी लिखी इस बारे में। और सीधा प्रस्ताव रखा कि वह इन कवियों की कविताओं का पाठ करना कुबूल करें। और कि अगर वह चाहें तो कविताओं का चयन उन की सुविधा से वह खुद कर देंगे। बस वह काव्यपाठ करना मंजूर कर लें। जगह और प्रायोजक भी वह अपनी सुविधा से तय कर लें। सुविधा के लिए अशोक वाजपेयी ने हरिवंश राय बच्चन से अपने संबंधों का हवाला भी दिया। साथ ही उन के ससुर और पत्रकार रहे तरुण कुमार भादुडी से भी अपने याराना होने का वास्ता भी दिया। पर अमिताभ बच्चन ने सांस नहीं ली तो नहीं ली।

अशोक वाजपेयी ने कुछ दिन इंतज़ार के बाद फिर एक चिट्ठी भेजी अमिताभ को। पर वह फिर भी निरुत्तर रहे। जवाब या हां की कौन कहे पत्र की पावती तक नहीं मिली अशोक वाजपेयी को। पर उन की नादानी यहीं खत्म नहीं हुई। उन्हों ने जनसत्ता में अपने कालम कभी कभार विस्तार से इस बारे में लिखा भी। फिर भी अमिताभ बच्चन नहीं पसीजे। न उन की विनम्रता जागी। इस लिए कि कवितापाठ में उन के पिता की कविता की बात नहीं थी, उन की मार्केटिंग नहीं थी, उन को पैसा नहीं मिल रहा था।

अशोक वाजपेयी आईएएस अफ़सर रहे हैं, विद्वान आलोचक और संवेदनशील कवि हैं, बावजूद इस सब के वह भी अमिताभ बच्चन के विनम्रता के टूल में फंस गए। विनम्रता के मार्केटिंग टूल में। तो हम आप क्या चीज़ हैं? पता नहीं क्यों मुझे कई बार लगता है कि अमिताभ उतने ही विनम्र है जितने कि वह किसान हैं। बाराबंकी में उन की बहू ऐश्वर्या के नाम पर बनने वाला स्कूल उन के किसान बनने की पहली विसात थी। किसान नहीं बन पाए तो स्कूल की बछिया दान में दे दी। स्कूल नहीं बना तो उन की बला से। वह तो फिर से लखनऊ में किसान बन गए। और विनम्रता की बेल ऐसी फैली कि यह देखिए वह अपने खेत में ट्रैक्टर चला कर फ़ोटो भी खिंचवा कर अखबारों में छपवा बैठे। अब जो संतुष्टि उन्हें अपने पिता की कविताओं का पाठ कर के या अपने खेत में ट्रैक्टर चला कर मिलेगी, उन की विनम्रता को जो खाद मिलेगी वह अज्ञेय, शमशेर, नागार्जुन या केदार की कविताओं के पाठ से तो मिलने से रही। ठीक इसी तरह कुमार विश्वास द्वारा परोसी गई उन के पिता की कविता का स्टारडम भी जाता रहता है , यही बात अमिताभ बच्चन ने जान ली , कुमार विश्वास नहीं जान पाए ।

5 comments:

  1. मूल बात ही चुके गए आप। कुमार विश्वाश आपिये हैं। एक आपिया कैसे एक भजपिये की कविता गा सकता है? वो भी जब सरकार मोदी की है। अगर और किसी ने गाई होती तो ये प्रतिक्रिया नहीं होती। ध्यान दीजिए उन्होंने सार्वजनिक रूप से कारवाई की धमकी दी थी!
    कॉपीराइट या कमाई का मामला होता तो चुपचाप नोटिस भेजा जा सकता था

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  2. मूल बात ही चुके गए आप। कुमार विश्वाश आपिये हैं। एक आपिया कैसे एक भजपिये की कविता गा सकता है? वो भी जब सरकार मोदी की है। अगर और किसी ने गाई होती तो ये प्रतिक्रिया नहीं होती। ध्यान दीजिए उन्होंने सार्वजनिक रूप से कारवाई की धमकी दी थी!
    कॉपीराइट या कमाई का मामला होता तो चुपचाप नोटिस भेजा जा सकता था

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-07-2017) को "धुँधली सी रोशनी है" (चर्चा अंक-2667) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. कुमार विश्वास एक चिटर हैं कई बार दुसरो की कविता सुनाई और धिरे-धिरे कविता इनकी हो गई, कविता कुमार की हो गई मुल लेखक ओझल हो गया । कोई दिवाना कहता है यह भी किसी और का लिखा है जो अब इनके नाम से जाना जाता है । कुमार की अपनी रचना कौन सी है कोई बताए ?
    अमीताभ बच्चन ने ठिक किया चोरों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर ।

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  5. वो कविता ही क्या जिसे हर कोई नहीं गा सके, अमिताभ एक कलाकार हो सकता है परन्तु इंसानियत के नाम पर धब्बा है वह कलाकार कितना ही महान क्यों ना हो अगर वह देश का नहीं है अमिताभ का पनामा पेपर में नाम आया, अमिताभ का पैराडाइज खुलासे में नाम आया कि इस नाटकबाज ने देश में कमाई भारी राशि को विदेशी बैंकों में जमा करवा रखा है, अपने बाप की कविताओं पर शर्पकुण्डली मार कर बैठा हुआ है, इससे पूछा जाए अगर कखगघ इसके बापने रचे होते तो क्या यह किसी को अक्षर ग्यान भी नहीं होने देता, देश का करोड़ों रुपये आयकर दबा कर बैठा व्यक्ति और करभी क्या सकता है, कुमार विश्वास द्वारा हरवंश राय बच्चन की कविता का पाठ करने से कविता का ही मान बढ रहा था ना कि विश्वास का क्योंकि जो आवाज कविता पाठ के लिए भगवान ने कुमार विश्वास को दी है अमिताभ सौ जन्मों में प्राप्त नहीं कर सकता

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