Tuesday, 11 July 2017

अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता

जिस कश्मीर में मानवाधिकार के नाम पर ज्यूडिशियली खुद संज्ञान ले कर एक पत्थरबाज आतंकी को दस लाख का मुआवजा देने की सरकार को सिफ़ारिश करती हो उस कश्मीर में अगर अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता । जिस देश में गल्फ फंडिंग और क्रिश्चियन मिशनरी फंडिंग पर पल रहे एन जी ओ बात बेबात देश को गृह युद्ध में धकेलने को लगातार युद्धरत हों तो अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता ।
जिस देश में लेखक और पत्रकार अपना जमीर बेच कर विचारधारा के नाम पर कश्मीरी पंडितों के विस्थापित होने पर बरसों से चुप्पी साध कर सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम सांप्रदायिकता के पालन - पोषण में दिलोजान से लगे हों तो अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता । जिस देश के राजनीतिज्ञ सिर्फ़ वोट बैंक के लिए देश और समाज बांटने के लिए हर क्षण तैयार खड़े मिलते हों तो अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता ।
जिस देश में किसी भ्रष्ट राजनीतिज्ञ को सेक्यूलरिज्म के नाम पर तमाम सारे लोग सेफगार्ड बन कर , दीवार बन कर रक्षा में खड़े हों तो अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता । जिस देश में लोग सिर्फ़ हिंदू मुसलमान , आरक्षण की राजनीति को ही प्रोग्रसिव होना मान लेते हों तो तो अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता ।
जिस देश में कुछ लोग गाय का मांस खाने के लिए ही पैदा होते हों , जान दे कर भी गाय का मांस खाने का ज़ज्बा रखते हों , गाय बचाने के नाम पर इंसान की जान ले लेना ही धर्म समझते हों तो अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता । जिस देश में केरल , बंगाल हों , बशीर हाट और मालदा की सांप्रदायिकता पर फैशन और पैशन की हद तक ख़ामोशी हो तो अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता । कश्मीर के पत्थरबाज आतंकियों को जो लोग नादान बच्चा कह कर सीना फुला कर बैठते हों तो अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला कर कुछ लोगों को मार डालते हैं तो कम से कम मुझे आश्चर्य नहीं होता ।
आश्चर्य हो भी भला क्यों । अब तो इन घटनाओं पर मुझे दुःख भी नहीं होता । संवेदनहीनता की नाव में बैठ गया हूं मैं । आप क्या कर लेंगे मेरा ?
जम्मू कश्मीर की समस्या अगर सचमुच सुलझानी है तो अब जितनी जल्दी हो सके वहां राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए । और कि अजीत डोभाल जैसे व्यक्ति को राज्यपाल बना कर पूरी कमान सेना को सौंप देनी चाहिए । सारे मानवाधिकार आदि ताक पर रख कर जितने भी अलगाववादी कश्मीरी नेता हैं लाइन से खड़ा कर गोली मार देनी चाहिए । या टैंक के नीचे लिटा कर कुचल दिया जाना चाहिए । अगर फसल बचाने के लिए नीलगाय को गोली मार सकते हैं तो देश और मनुष्यता को बचाने के लिए इन अलगाववादी , अराजक और आतंकवादियों को गोली मारने में क्यों परहेज ? पाकिस्तानी दूतावास भी कुछ समय के लिए ही सही बंद कर पाकिस्तान से सारे राजनयिक और वाणिज्यिक संबंध भी मुल्तवी कर दिया जाना चाहिए । वहां चल रहे टेररिस्ट कैंपों को हवाई हमला कर नेस्तनाबूद कर देना चाहिए । हाफिज , लशकर आदि सभी को इस की जद में ले कर समाप्त कर देना चाहिए । एक घंटे में सब हो जाएगा । बहुत हो गया यह संवाद और कूटनीति वगैरह । संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी नख दंत विहीन और नपुंसक संस्थाओं की शरण में जाने का भी कोई मतलब नहीं है । इस सब को फ़िलहाल गोली मार दीजिए । तय मानिए साल दो साल में कश्मीर समस्या निपट जाएगी।
कश्मीर घाटी में सरकारें बेमतलब होम्योपैथी दवा की मीठी गोलियां दे रही हैं । जब कि कश्मीर घाटी को अब किसी बड़ी सर्जरी की दरकार है । भाई वहां कोई रहा नहीं और यह लोग भाई चारा का चूरन खिला रहे हैं । बरसों पहले से कश्मीरी पंडित वहां रहे नहीं । बीते महीनों में बाहर से पढ़ने गए विद्यार्थी सारे भगा दिए गए हैं तिरंगा लहराने के जुर्म में । बाहरी सरकारी कर्मचारी तक वहां गिनती के हैं , हथेली पर जान ले कर । बस वहां सेना है , अर्द्ध सैनिक बल हैं और पाकिस्तान परस्त लोग हैं । जो हर जुमे को मस्जिदों से निकल कर पाकिस्तानी झंडा ज़रूर लहराते हैं और पुलिस पर पत्थर बरसाते हैं । पाकिस्तान के समर्थन में नारा लगाते हैं । बम चलाते हैं । तो काहे का भाई चारा का चूर्ण चटा रहे हो मूर्खों ! कश्मीर को सीरिया मत बनाओ , कड़ा फ़ैसला ले कर जहन्नुम को मिटा कर उसे उस की ज़न्नत बख्श दो । उन को तो बहत्तर हूरें ऐसे भी मिलेंगी और वैसे भी । तो उन की फिकर किस बात की ? देश और कश्मीर ज़रूरी है । कश्मीर का देश में रहना ज़रूरी है । मुकुट है हमारे देश का यह कश्मीर ।
कश्मीर को इस कदर और बरसों से जलते हुए देख कर बार-बार इंदिरा गांधी याद आ जाती हैं । पंजाब में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ब्लू स्टार जैसा उन का कड़ा फ़ैसला याद आ जाता है । कश्मीर को आज ऐसे ही किसी कड़े फ़ैसले की ज़रुरत है । आतंकियों और पाकिस्तान का फन कुचलने का फन तो वह ही जानती थीं । काश कि वह होतीं तो शायद कश्मीर इस तरह नहीं जलता ।

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