पांडवों ने तो सिर्फ़ पांच गांव मांगे थे। अगर धॄतराष्ट्र और दुर्योधन ने दे दिए होते पांडवों को पांच गांव तो शायद महाभारत नहीं हुआ होता। तो क्या केंद्र की कांग्रेस सरकार धृतराष्ट्र बन गई है? अगर दो चार पुलिस अफ़सरों का सस्पेंशन या तबादला मान गई होती केंद्र सरकार तो एक मुख्य मंत्री सड़क पर उतरने या रात सड़क पर सोने से रुक तो गया ही होता। अब अलग बात है कि दुर्योधन की यह बात कहीं से भी नाजायज नहीं थी कि अगर मेरा पिता अंधा था तो इस में मेरा क्या कसूर ! पर दुर्योधन के तरीके नाजायज थे। जुआ में द्रौपदी को जीतना या लाक्षागृह का निर्माण आदि नाजायज था। तो क्या अरविंद केजरीवाल दुर्योधन हैं? कि मांगें जायज हैं और तरीके नाज़ायज़ ! तो इन का शकुनी कौन है?
जानते तो वह भी हैं कि देश में एक संविधान है, एक कानून है, एक संसद है। अच्छा-बुरा जैसा भी है। तो इस व्यवस्था को बदलने के लिए, दिल्ली पुलिस को दिल्ली प्रदेश सरकार के अधीन करने के लिए दिल्ली को पहले पूर्णकालिक राज्य बनना होगा। तब ही दिल्ली पुलिस, दिल्ली प्रदेश सरकार के अधीन हो सकेगी। तो मांग जायज होते हुए भी अरविंद केजरीवाल ने तरीके नाजायज अख्तियार कर लिए हैं इस में कोई दो राय नहीं। कायदे से उन्हें दिल्ली विधान सभा बुला कर दिल्ली को पूर्णकालिक राज्य बनाने के बाबत एक प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजना चाहिए। लोकसभा की मंजूरी के बाद ही दिल्ली को पूर्णकालिक राज्य का दर्जा मिलेगा, तब ही दिल्ली पुलिस दिल्ली प्रदेश सरकार के अधीन हो सकेगी। अरविंद केजरीवाल और उन के सहयोगी सब के सब पढ़े-लिखे लोग हैं। सब लोग यह बात जानते भी हैं। पर यह राजनीति का रोग बहुत बड़ा रोग है। अरविंद केजरीवाल अब इसी राजनीति रोग के मारे हुए हैं। वह जानते हैं कि प्रस्ताव आदि पास करने कराने में लंबा समय लगेगा। इस सब में २०१५ तक का समय लग जाएगा। सब कुछ के बावजूद। और दिल्ली के बाद देश में भी उन को अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने की उन की महत्वाकांक्षा, उन की उतावली ने उन्हें इस डगर पर ला खड़ा किया है। सो २०१५ तक का इंतज़ार और प्रक्रिया अपनाने का समय उन के पास है नहीं। क्यों कि लोक सभा चुनाव तो इस २०१४ में ही है। सो वह मैया मैं तो चद्र खिलौना लइहों ! की तर्ज़ पर आ गए हैं। अब उन का यह चंद्र खिलौना देश, संविधान और संसदीय परंपराओं पर कितना भारी पड़ेगा इस की उन्हें कतई परवाह नहीं है। वह तो बस इतना जानते हैं कि कांग्रेस और भाजपा को उन्हों ने छठी का दूध याद दिला दिया है। और सच यही है कि आप उन्हें भले नौटंकीबाज़ कह लें लेकिन अब वह लोकसभा चुनाव के परिदृष्य पर कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ते हुए भाजपा के नरेंद्र मोदी से सीधे मुकाबले में आ गए हैं। जो लोग अरविंद केजरीवाल को राजनीतिज्ञ मानने से परहेज़ करते रहे हैं, अब उन को मान लेना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल अब विशुद्ध राजनीतिज्ञ के चोले में हमारे सामने उपस्थित हैं। किसी खांटी राजनीतिज्ञ की तरह नरेंद्र मोदी को ताल ठोंक कर ललकारते हुए। जो काम नरेंद्र मोदी से निपटने का राहुल गांधी को करना था, वह काम अब अरविंद केजरीवाल ने संभाल लिया है। राहुल गांधी अब रेस से बाहर हैं। और जो मणिशंकर की ही बात का आधार ले कर कहें तो राहुल को अब कांग्रेस दफ़्तर या मीटिंग्स में चाय पीने-पिलाने में ही वक्त गुज़ारना चाहिए। अब उन के लिए यही मुफ़ीद है।
सोमनाथ भारती ने या अरविंद के किसी मंत्री ने कब क्या कहा, क्या किया, क्या संसदीय है और क्या असंसदीय है, क्या नियम से है और क्या नियम के विपरीत यह सब अब भूल जाइए। अब तो अरविंद केजरीवाल कांग्रेस और भाजपा की छाती पर दाल मूंग रहे हैं। अब वह भाजपा के नरेंद्र मोदी के बाद दूसरी बड़ी राजनीतिक ताकत के रुप में भारतीय टेलीविजन राजनीति के परदे पर उपस्थित हैं। जैसे सब कुछ गंवा कर कांग्रेस और भाजपा ने जैसा भी सही लोकपाल बिल संसद से पास किया, वैसे इन पुलिस कर्मियों को भी केंद्र सरकार को हटाना ही पड़ेगा पर सारी शुचिता और मर्यादा को तार-तार करने के बाद ही। कांग्रेस जाने कब अपने मूर्ख सलाहकारों से छुट्टी लेगी और कोई फ़ैसला तुरंत लेना सीखेगी। देश तो एक गैर राजनीतिक व्यक्ति मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्री होने की कीमत अब बहुत ज़्यादा अदा कर चुका है। यह देश अब अरविंद केजरीवाल जैसे महत्वाकांक्षी और अतिवादी राजनीतिज्ञ को बर्दाश्त करने के लिए तैयार हो जाए। जो लीक से थोड़ा नहीं, पूरा हट कर है। इस टेलीविजन राजनीति के दौर में अरविंद केजरीवाल का सूरज कब तक चमकता मिलता है यह देखना भी दिलचस्प ही होगा। हालां कि इस पूरे परिदृष्य पर यह भी कहने को जी चाहता है, बिलकुल वैसे ही जैसे वह गाना है न निगाहें मिलाने को जी चाहता है ! कि अरविंद केजरीवाल यह कौन सी संसदीय परंपरा है? मोदी का रथ रोकते-रोकते यह तो आप मोदी के लिए लाल कालीन बिछा बैठे हैं ! और अपने हाथ में उस्तरा। जो दिल्ली की जनता ने आप को थमा दिया है अति उत्साह और अति उम्मीद में। जो भी है यह सब गुड बात नहीं है। और जानिए कि राजनीति या समाज किसी की ज़िद से तो नहीं ही चलते। अच्छे लोग, ईमानदार लोग राजनीति में होने चाहिए, इस उम्मीद और इस धारणा को इस तरह मिट्टी में भी न मिलाइए हुजूर ! अब बस भी कीजिए !
पाण्डेय जी अक्षरशः सत्य है ,केजरीवालजी की सोच को वह ही जानते हैं या ईश्वर जानता है। हम लोग तो उनके आगे निरक्षर हैं।
ReplyDeleteपाण्डेय जी अक्षरशः सत्य है ,केजरीवालजी की सोच को वह ही जानते हैं या ईश्वर जानता है। हम लोग तो उनके आगे निरक्षर हैं।
ReplyDeleteEkdam sahi hai
ReplyDeleteEkdam sahi hai
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