Tuesday 14 January 2014

चंद्रशेखर की याद और राजनीति, सिनेमा और अभिनय की यह काकटेल !

कुछ गौरतलब टिप्पणियां

खबरिया चैनल आज तक पर आज कांग्रेस नेताओं का स्टिंग देख कर पूर्व प्रधान मंत्री चंद्रशेखर की याद आ गई। जिन्हों ने एक मामूली से आरोप पर कि वह राजीव गांधी की जासूसी करवा रहे हैं के बिना पर बगैर एक क्षण की देरी किए इ्स्तीफ़ा दे दिया था। राजीव गांधी कहते फिरे कि मेरा समर्थन जारी है और कि मैं ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा। लेकिन चंद्रेशेखर ने राजीव की सफाई पर बिलकुल गौर नहीं किया, न कान दिया। और कहा कि अब इस्तीफ़ा दे दिया है तो दे दिया है। बतर्ज़ जो कह दिया सो कह दिया ! पर कांग्रेसी नेताओं ने अब आप सरकार और केजरीवाल के विरुद्ध जो-जो नहीं कहना चाहिए, सब कह दिया है और फुल बेशर्मी से कह दिया है। केजरीवाल के सारे फ़ैसलों को गैर कानूनी भी कह दिया। भ्रष्ट भी कहा और सीधे-सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया।

आज तक की यह स्टिंग भी हालां कि कटघरे में है। कांग्रेस नेता लवली लगातार कह रहे हैं कि वह सारी बात आफ़ द रिकार्ड कह रहे हैं। मतलब यह कि वह आज तक के संवाददाता से जान-समझ कर बात कर रहे हैं। और आफ़ द रिकार्ड बात कर रहे हैं। तो फिर पत्रकारिता की नैतिकता या शुचिता जो भी कह लें उस के मुताबिक यह सब आज तक को भी दिखाना नहीं चाहिए था। तकाज़ा तो यही है। पर पत्रकारिता भी अब चूंकि एक दुकान है। तो जो वह पुराना मुहावरा है न कि प्यार और युद्ध में सब ज़ायज़ है। तो इस में अब भाई लोगों द्वारा शायद एक और शब्द जोड़ लिया गया है कि प्यार, युद्ध और दुकानदारी में सब ज़ायज़ है ! पत्रकारिता के बाबत शायद इसी अर्थ का विस्तार दलाली, लायजनिंग आदि शब्दों में भी है। पर अभी तो मुद्दा इस नैतिकता या शुचिता का नहीं, कांग्रेस और केजरीवाल सरकार का है।

लेकिन क्या कीजिएगा अरविंद केजरीवाल चंद्रशेखर नहीं हैं और न ही संसदीय मामलों के जानकार ! नैतिकता आदि शब्दों की तो खैर बिसात ही क्या ! कांग्रेस ने केजरीवाल को समर्थन दे कर अपने लिए तो गड्ढा खोद ही लिया है केजरीवाल भी कांग्रेस का समर्थन ले कर गले में फंदा डाले बैठे हैं। और भाजपा इन दोनों के बीच मज़ा ले रही है। दूसरी तरफ सलमान खान भी मोदी की पतंग अलग उड़ा गए हैं। बेस्ट मैन आफ़ द कंट्री कह कर ! अभी वह सैफई में समाजवाद के नाच में नाचे ही थे। धन्य है यह राजनीति भी ! राजनीति, सिनेमा और अभिनय की यह काकटेल भी !

  • यह शायद देश में पहली बार हो रहा है कि किसी एक प्रदेश में एक साथ दो मु्ख्य मंत्री रह रहे हैं। और यह सौभाग्य उत्तर प्रदेश को मिला है। एक मुख्य मंत्री लखनऊ में रहते हैं, जिन की चौतरफ़ा थू-थू हो रही है इन दिनों। लेकिन एक मुख्य मंत्री गाज़ियाबाद में रहते हैं, जिन की देश भर में जय-जयकार हो रही है इन दिनों। अजब है यह संयोग भी।

  • बाकी तो सब ठीक है। लेकिन यह जो आम आदमी होने का भी एक गुरुर है इस का क्या करें?


  • समाजवादी पार्टी का समाजवाद तो खैर अमर सिंह की आमद के साथ ही जल कर राख हो गया था। और जब अमर सिंह विदा हुए तो समाजवाद की यह राख भी वह अपने साथ ही बहा ले गए थे। अब रह गया था, सेक्यूलर होने की खाल। अब की मुज़फ़्फ़र नगर की आह में सैफ़ई के समाजवादी नाच-गाने में वह भी साफ हो गया है। सलमान-माधुरी के ठुमकों की गमक ही कुछ ऐसी है। कोई करे तो क्या करे भला? अभी तो मंत्रियों और विधायकों का प्रतिनिधिमंडल गया है यूरोप दौरे पर लोकतंत्र समझने। अध्ययन करने। जो इस पार्टी के परिवारवाद की आग में शुरु ही से जय हिंद हो चुका है।

  • राम गोपाल यादव, नरेश अग्रवाल और बुक्कल नवाब खबरिया चैनलों के दर्शकों के लिए तो सर दर्द हैं ही, समाजवादी पार्टी के लिए भी भारी बोझ हैं। ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेस में दिग्विजय सिंह, शकील अहमद और संजय निरुपम। लगता है यह सब कुतर्क की चक्की का पिसा हुआ बहुत मोटा आटा खाते हैं। इसी लिए तर्क और विवेक से इन की सारी रिश्तेदारी टूट चुकी है। हाजमा बिगड़ गया है। सो इस 'दस्त' में कुतर्क और चीखना-चिल्लाना ही इन के लिए शेष रह गया है। मुलायम के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी में वैसे ही भूसा भर रखा है अखिलेश यादव के नाकारापन ने। तिस पर मुज़्फ़्फ़र नगर ने अलग फ़िज़ा बिगाड़ रखी है। दूसरे यह तीनो राम गोपाल यादव, नरेश अग्रवाल और बुक्कल नवाब ने भी इस भूसे में आग लगा रखी है। जैसे उपरोक्त तीनो कांग्रेसियों दिग्विजय सिंह, शकील अहमद और संजय निरुपम ने राहुल गांधी का पायजामा फाड़ रखा है। शायद यहां सोने पर सुहागा नहीं चलेगा, न करेला, तिस पर नीम चढ़ा भी नहीं चलेगा। तो क्या आप पार्टी में जैसे आशुतोष गए हैं, वह चलेगा? हां, देखिए याद आ गया ! कोढ़ में खाज चलेगा। चलेगा क्या दोड़ेगा ! जय हो !

  • खबरिया चैनलों पर सपा के राम गोपाल यादव, नरेश अग्रवाल और बुक्कल नवाब या कांग्रेस में दिग्विजय सिंह, शकील अहमद और संजय निरुपम के टक्कर का भाजपा या किसी और पार्टी में हो तो कोई मित्र बताएं। हम सब के ज्ञान में वृद्धि ही होगी। और मित्र का नाम होगा ! नहीं?

  • मुझे राहुल गांधी पर इस लिए भी गुस्सा आता है कि यह नरेंद्र मोदी का एक इंच भी विरोध नहीं कर पाता। सिर्फ़ मनमोहन सिंह की पगड़ी पर बैठा मूत्र आदि विसर्जित करता रहता है। कागज आदि फाड़ने की नाटकीयता में चाटुकारों की फ़ौज की सलामी लेता मम्मी-मम्मी गुहारता रहता है ! इस लिए भी गुस्सा आता है। रही-सही कसर ये फ़ेसबुकिया चमचे पूरी कर देते हैं तो गुस्से का ग्राफ़ और गाढ़ा हो जाता है। और अब जब पांच सौ करोड़ सोशल मीडिया पर खर्च करने जा रहे हैं अपनी छवि को गढ़ने के लिए तो सोच रहा हूं कि यह गुस्सा अब कहां पड़ाव डालेगा?

  • यह क्या हुआ कि अरविंद केजरीवाल के चक्कर में काग्रेसियों से ज़्यादा भाजपाइयों के चेहरे कांतिहीन हो चले हैं। और कि फ़्रस्ट्रेशन के बुलबुले लगातार बजबजा रहे हैं? तो क्या नरेंद्र मोदी केविजय रथ को इस सर्दी में भी लू लग गया है? यह कैसी उलटी हवा चल रही है? कि मौसम ही उलटा हो गया है?

  • तो क्या लूट-पाट की राजनीति के दिन अब विदा हो जाएंगे?

  • कांग्रेस की हेकड़ी और मनमोहन सिंह के आर्थिक उदारीकरण की हवा जिस तरह अरविंद केजरीवाल ने चंद दिनों में निकाल दी है वह सैल्यूटिंग है। सिर्फ़ एक पानी और बिजली बिल की कटौती से साबित हो गया है मनमोहन सिंह कारपोरेट कंपनियों की रखैल या दलाल से ज़्यादा कुछ नहीं हैं। लेकिन सवाल है कि क्या मनमोहन सिंह ने जो अमीरी और गरीबी की चौड़ी खाई आर्थिक उदारीकरण की आड़ में खोदी है, कि अमीर और अमीर, और गरीब और गरीब होता गया है, यह खाई कब कम होगी। और कि कितनी कम होगी?










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