Friday 28 January 2022

विभूति से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है लेकिन ममता कालिया अपने पति का बदला ले रही हैं : मैत्रेयी पुष्पा

दयानंद पांडेय 

अगर राजेंद्र यादव न होते तो हिंदी में मैं शायद कहीं नहीं होती 

होती हैं कुछ स्त्रियां जो अपने कृतित्व से ज़्यादा विवाद के लिए जानी जाती हैं। ऐसी ही विवाद प्रिय लेखिका हैं मैत्रेयी पुष्पा। हंस के संपादक और कथाकार राजेंद्र यादव को ले कर वह पहले भी चर्चा में थीं। अब जब राजेंद्र यादव नहीं हैं , तब भी उन को ले कर चर्चा में बनी हुई हैं। मैत्रेयी पुष्पा को लोग बोल्ड लेखिका मानते हैं। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास ‘चाक’ में एक स्त्री, एक पुरुष के भीतर पुंसत्व जगाने के लिए देह समर्पण करती है और दूसरे संदर्भ में एक स्त्री अपने संघर्ष के सहचर मित्र के घायल होने पर अचानक इस हद तक आसक्ति अनुभव करती है कि उस के प्रति समर्पित हो जाती है। यानी दोनों प्रसंग यौन शुचिता की बनी बनाई धारणा को तोड़ते हैं। ‘चाक’ में एक संवाद है कि ‘हम जाट स्त्री बिछुआ अपने जेब में रखती हैं। जब चाहती हैं पहन लेती हैं जब चाहती हैं उतार देती हैं।’ दरअसल इस संवाद के बहाने मैत्रेयी स्त्री में बगावत के बीज बोना चाहती हैं। नया ज्ञानोदय  में जब विभूति नारायन राय ने लेखिकाओं को छिनाल शब्द से नवाज़ा, तो मैत्रेयी ने विभूति नारायन राय समेत नया ज्ञानोदय के संपादक रवींद्र कालिया और उन की मंडली को जिस तरह अकेलेदम दौड़ा लिया, और बहुत दूर तक। वह भी हैरतंगेज़ था। मंज़र यह हो गया कि जैसे शिकारी ही शिकार से भागने लगा। मैत्रेयी स्वीकार करती हैं कि , मैं ईंट के बदले पत्थर मारना जानती हूं। राजेंद्र को क्लीन चिट नहीं देतीं वह पर कहती हैं कि मेरे लेखन में राजेंद्र यादव मील का पत्थर हैं। वह यह भी मानती हैं कि अगर राजेंद्र यादव न होते तो हिंदी में मैं शायद कहीं नहीं होती। पेश है मैत्रेयी पुष्पा से दयानंद पांडेय की बहस तलब बातचीत 


●   विवाद आप के चिर संघाती हैं। क्यों ?

- हां।  आप तो शुरु से देख रहे हैं। इदन्नम को छोड़ कर। चाक के साथ ही विवाद शुरु हुए। 

 ●  चाक तो आप के जीवन में भी बहुत है। 

- हां-हां बहुत है। पूरा चाक नहीं है पर 80 प्रतिशत है। क्यों कि जब-जब कोई चाक पड़ेगा , बात आएगी। 

● रचना से ज़्यादा मैत्रेयी पुष्पा की चर्चा होना ठीक लगता है ? 

- नहीं। लेकिन हो तो हो। मैं क्या कर सकती हूं। जो लिखना चाहते हैं विवाद , लिखें। 

● आप की , आप की रचनाओं की बात नहीं होती है। आप से जुड़े विवाद की बात ज़्यादा होती है । 

- ऐसा मान लेती हूं। 

● कोई ख़ास कारण ? 

- जो सवाल अपने ऊपर ले लेती हूं। मैं समग्र में ले लेती हूं। अपने ऊपर ओढ़ लेती हूं। मैं पहले जवाब देती थी। अब नहीं देती। एक लिमिट के बाद चुप हो गई। 

●  चाक की कलावती और सारंग की तरह कब तक बागी बनी रहेंगी। 

- अब मैं  तो बनी नहीं। बनाई गई। जब-जब कोई चाक पड़ेगा , बात आएगी। विवाद होगा। जब चाक उपन्यास छपा था तब अलीगढ़ से एक किताब आई। बहुत ही अश्लील। 

● आप के साथ विवाद और अश्लीलता चोली-दामन की तरह चस्पा हैं। 

- हां , कुछ ज़्यादा ही। अभी तक पुरुष ही विवाद उठाते थे। अब स्त्रियां विवाद उठाने लगी हैं , मुझे ले कर। स्त्रियों के लिए लिखती हूं ,अब स्त्रियां ही विरोध में खड़ी हैं तो अजीब लगता है। यह तो ठीक नहीं है। उदाहरण देती हूं। जो स्त्रियां सर्विस करती हैं। घर से जल्दी चली जाती हैं। जो घर में रहती हैं , खटती रहती हैं वह भी घर में। फुर्सत नहीं रहती उन को भी। मैं एम्स में रहती थी तो बहुत मेहमान हमारे घर में रहते थे। बहुत रिश्तेदार आते रहते थे , इलाज के लिए। देखना पड़ता था उन्हें भी। जो स्त्रियां घर में रहती हैं , उन का भी मन करता है बाहर जाने का। 

●  अगर नया ज्ञानोदय में विभूति नारायण राय ने अपने इंटरव्यू में छिनाल प्रसंग का ज़िक्र न किया  होता और कि रवींद्र कालिया ने उस पर संपादकीय न लिखी तो भी आप क्या ऐसे ही विवाद में रहतीं। 

- कोई भी लिखता तो भी यह विवाद होता। छिनाल , कुतिया क्या-क्या नहीं लिखा। विरोध करते हम तब भी। 

● एक समय वर्धा में विभूति नारायण राय से बचने के लिए आप ने उन के भाई विकास को कवच बनाया था , याद है ? 

- बिलकुल याद है। 2009 का साल था। मैं विभूति नारायण राय की नज़रों को पहचानती थी। तो वर्धा जाने के लिए विभूति से कहा कि अगर विकास साथ आएंगे तो आऊंगी। मैं करनाल के मधुबन में रही तो देखा विकास को। विकास मेरा सारा इंतज़ाम कर देते थे। विकास , विभूति दोनों की आंखों को जानती हूं। तो विकास गए थे मेरे साथ। मेरे कवच बने। लेकिन रात में तो अकेले सोऊंगी न। तो विभूति की गारंटी नहीं ले सकती। तो विकास से कहा , अब चलो। दोनों भाई पुलिस में थे पर दोनों भाइयों में बहुत फ़र्क़ है। करनाल में भी लड़कियां थीं। तो विकास लड़कियों के मामले में सज्जन हैं। पर विभूति अपोजिट हैं। लेकिन विभूति से भी मेरी कोई दुश्मनी नहीं है। 

● राजेंद्र यादव आप के कवच कुंडल सर्वदा ही थे। अब कौन है , जो आप को बचाए। 

- बिलकुल-बिलकुल। राजेंद्र यादव मेरे कवच-कुंडल थे। क्यों इंकार करुंगी। वो तो थे। लेकिन विभूति प्रसंग में राजेंद्र मेरे साथ नहीं थे। कहते रहते छोड़ो ! उस की जान लोगी ? उस की नौकरी खाओगी ? इस पर मैं ने उन से कहा , स्त्री विमर्श तो बहुत उठाते हो। 

● आप कुछ भी कहें पर मैं जानता हूं राजेंद्र यादव इस प्रसंग में भी आप के साथ थे। आप के समर्थन में थे। 

- हां। पर मेरे साथ उस तरह नहीं आए , जैसे मैं चाहती थी। विभूति को लगातार बचा रहे थे। धरना-प्रदर्शन के लिए भी मुझे मना करते रहे। पर मैं नहीं मानी। 

● अच्छा अगर राजेंद्र यादव ही इस तरह का कुछ लिखते तो ? 

- अगर राजेंद्र यादव ऐसी कोई हरकत करते तो उन के ख़िलाफ़ भी मैं खड़ी हो जाती। 

● तब आप को कौन बचाता ?

- आप। आप जैसे जैसे लोग भी बचाएंगे। बचाने को तो राजेंद्र जी भी नहीं बचाते थे। मैं ईंट के बदले पत्थर मारना जानती हूं। मैं बचपन में 18 बरस तक अकेले रही हूं। एक बार तो प्रिंसिपल के ख़िलाफ़ खड़ी हो गई। लड़के मेरे साथ खड़े हुए। हड़ताल हो गई। 

● मन्नू भंडारी एक समय आप को राजेंद्र यादव के घाघरा पलटन में गिनती थीं। 

- नहीं-नहीं। मन्नू जी ने कभी ऐसा नहीं कहा। मैं बिलकुल नहीं मानती कि ऐसा कभी मन्नू जी ने कहा। ममता कालिया ने यह चलाया। 

● पर ममता जी ने जब भी कहा , मन्नू जी को कोट करते हुए यह कहा। और मन्नू जी ने कभी इस का प्रतिवाद भी नहीं किया। 

- मन्नू जी ने ऐसा कभी कहा नहीं। लिखा भी नहीं। लिखा हो तो दिखा दीजिए। मेरे विरोध में भी मन्नू जी ने कभी कुछ नहीं कहा। 

● मन्नू जी के निधन पर श्रद्धांजलि में भी कुछ लेखिकाओं ने आप को निशाने पर लिया। क्या कहेंगी ?

- बिलकुल-बिलकुल। यह सुधा अरोड़ा , ममता कालिया ही थीं। एक कार्यक्रम में तो सुधा अरोड़ा ने कहा कि मैं आई ही इसी लिए हूं कि मैत्रेयी पुष्पा का विरोध करुं। जब कि ममता कालिया ने कहा कि मैत्रेयी पुष्पाआएंगी तो मैं नहीं आऊंगी। और वह नहीं आईं। 

● कहा गया कि आप ने राजेंद्र यादव का घर तोड़ दिया। दांपत्य तोड़ दिया। 

- ग़लत आरोप है यह।  बल्कि दूसरे लोगों ने मन्नू जी के कान भर-भर कर राजेंद्र जी से उन्हें अलग किया। मैं ने तो मन्नू जी से कहा , आप ने कुछ देखा ?  राजेंद्र यादव हौज ख़ास से जा रहे थे। मन्नू जी का घर खाली कर रहे थे। तो मैं ने कहा , कुछ ले जा रहे हो ? तो उन के ड्राइवर किशन ने कहा , एक कटोरी भी नहीं। तो मैं ने पुरानी बाल्टी वगैरह दिए। डाक्टर साहब घर पर नहीं होते तो राजेंद्र कभी मेरे घर भी नहीं आते थे। बाद में जब पता चला तो डाक्टर साहब मयूर विहार गए , राजेंद्र के पास। राजेंद्र से कहा , कुछ भी चाहिए तो मुझे कहिए। राजेंद्र की भरपूर मदद की डाक्टर साहब ने। राजेंद्र की मदद अगर मन्नू जी को बुरी लगी तो बात और है। 

● राजेंद्र यादव की द्रौपदी अपने को आप बताती रही हैं।  

- द्रौपदी उन्हों ने ही कहा था मुझे। 

● आप जानती हैं , महाभारत में द्रौपदी कृष्ण की प्रेयसी भी हैं। 

- कहा न , द्रौपदी उन्हों ने ही कहा था मुझे। मैं किसी की द्रौपदी नहीं हूं। एक बार मैं ने रोते-रोते पूछा था राजेंद्र से तो उन्हों ने ख़ुद कहा था , तुम्हारे ऊपर जब कोई संकट खड़ा होता है तो मैं खड़ा होता हूं तुम्हारे साथ। तो तुम मेरी द्रौपदी हो। मुझे प्रेयसी प्रसंग नहीं पता। 

● जैनेंद्र कुमार ने एक बार यह चर्चा चलाई थी कि लेखक के लिए पत्नी के अतिरिक्त एक प्रेयसी भी ज़रुरी है । बहुत से लेखकों ने जैनेंद्र जी से सहमति जताई थी। धर्मयुग में यह चर्चा चली थी। फिर सारिका ने भी इस चर्चा को आगे बढ़ाया था । तो उस चर्चा को जारी रखते हुए आप से पूछूं कि क्या लेखिका के लिए भी पति के अलावा एक प्रेमी  ज़रुरी है ? 

- यह ज़रुरी नहीं है। पर चर्चा जारी रहे। मुझे कोई दिक़्क़त नहीं। मुझे ख़ुशी होगी। आप उस संबंध को भी प्रेम कह लीजिए। 43 बरस की उम्र से लगन हुई लिखने की। तो अपने गांव की कहानी लिखी। उन्हें बताती रही। राजेंद्र यादव के प्रति इतनी श्रद्धा रखी कि अपने कमरे में राजेंद्र यादव की तस्वीर टांग दी। तो डाक्टर साहब को गुस्सा आ गया और राजेंद्र की तस्वीर उतार कर फोड़ दी। राजेंद्र को यह बात बताई तो वह कहने लगे , तोड़ने दो। बड़े भाई की तरह , पिता की तरह समझाते रहे राजेंद्र जी। उन का मेरा संबंध उन के संपादक से ही था। बहुत यात्राएं की उन के साथ। पर उन्हों ने मेरे साथ कभी कोई ओछी हरकत नहीं की। 

●  लेकिन राजेंद्र यादव के जीवन में स्त्रियां बहुत हैं। दर्जनों। लेकिन विवाद सिर्फ तीन के ही नाम नत्थी क्यों है ? एक मीता , दूसरे आप। तीसरे ज्योति कुमारी। तिस पर इन दिनों भी आप ही सब से ज़्यादा केंद्र में हैं। मुसलसल। 

- मीता अब भूली-बिसरी चीज़ हैं। मीता साहित्य में नहीं हैं। मैं साहित्य में हूं। इस लिए मेरी चर्चा है। ज्योति को कभी देखा नहीं। ज्योति ने सेवा की राजेंद्र की , सुनते हैं। 

● एफ आई आर भी किया था राजेंद्र यादव के ख़िलाफ़। ड्राइवर किशन के ख़िलाफ़ भी। 

- सुना था। 

● ड्राइवर जेल गया था। राजेंद्र यादव जाते-जाते बचे थे। मृत्यु नहीं हुई होती तो शायद जाते। 

- डिटेल में नहीं पता। मुझे ज्योति के बारे में भी ज़्यादा नहीं पता। एक किताब लिखी थी उस ने। 

● राजेंद्र यादव की विवादित किताब स्वस्थ व्यक्ति के बीमार विचार की सहयोगी लेखिका हैं ज्योति । इस में कुछ स्त्रियों से अपने संबंध खुल कर बताए हैं राजेंद्र यादव ने। 

- जी। 

● अभी एक कार्यक्रम में आप के उपस्थित होने से ममता कालिया अनुपस्थित हो गईं। क्या नया ज्ञानोदय में छिनाल  विवाद का पटाक्षेप अभी शेष है ? 

- अब सारा विवाद ममता कालिया का खड़ा किया हुआ है। ममता का खेत उजाड़ा है क्या ? बैल मारे क्या ? पता नहीं चला। ममता तो अभी तक गालियां दे रहीं। अपने पति का बदला ले रहीं। उन को तो अफवाहों का मुद्दा मिलना चाहिए। घाघरा पलटन का शब्द उन्हों ने शुरु किया। मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं कहा। 

● आख़िर विभूति नारायण राय और रवींद्र कालिया ने सार्वजनिक रुप से क्षमा मांग ली थी। लिखित। 

- इस लिए माफ़ी मांग ली कि मामला कपिल सिब्बल तक ले गई मैं। कपिल सिब्बल ने विभूति को बुला लिया। कपिल सिब्बल न बुलाते तो विभूति माफी न मांगते। कपिल सिब्बल प्रभावशाली मिनिस्टर थे तब। विभूति की वाइस चांसलरी ख़तरे में पड़ गई थी। ज्ञानपीठ पर प्रदर्शन किया था तो पुलिस बुला ली थी। बाद में ज्ञानपीठ के मालिक आलोक जैन का फ़ोन आया। उन्हों ने अपनी तरफ से माफी मांगी। रवींद्र कालिया को वह अंक बाज़ार से वापस मंगाने पड़े थे। 

● वह सफ़र था कि मुकाम था को ले कर आप फिर राजेंद्र यादव को ले कर चर्चा में आ गई हैं। 

- मैं राजेंद्र को क्लीन चिट नहीं दे रही। पर जितना मैं ने देखा , किस स्त्री के साथ कहां तक गए , जाना। निर्दोष नहीं थे राजेंद्र यादव। लेकिन मुझे राजेंद्र जी ने शिक्षित किया है। तो यह सफ़र चलेगा। 

●  अगर राजेंद्र यादव न होते तो हिंदी में आप होतीं ? होतीं तो कहां होतीं।

- शायद कहीं नहीं होती। वह मुझे टिकाए रहे। 

● आज भी ? 

- मेरे लेखन में राजेंद्र यादव मील का पत्थर हैं। उन के पास आने पर मुझे लेखन समझ में आया। 

● आप ने अभी लिखा था कि , काम तो आसान नहीं है मगर किताब लिखना चाहती हूँ ‘ हिंदी साहित्य में लेखिकाएँ ‘ (जैसा मैंने देखा)।  इस बाबत कुछ तफ़सील से बताएं। 

- हां।  मेरा मन हुआ कि लिखूं। जो लेखिकाएं हैं , मुख्य-मुख्य , वो कैसी हैं। पर अभी टाल रही हूं। थोड़ा अध्यययन हो जाने दीजिए। क्यों कि काफी अच्छी लेखिकाएं भी हैं , काफी दुष्ट भी। लेकिन जब लिखूंगी तो विचार कर लिखूंगी। 

● इस किताब में जो लेखिकाएं विषय बनने वाली हैं , कुछ के नाम बताएं। 

- अभी नहीं बताऊंगी। 

● फिर भी। 

- किसी का नाम नहीं। 

●  इतनी डरपोक कब से हो गईं आप। 

- डरपोक नहीं हुई हूं। 

● फिर ? 

- जैसे उषा किरन  ख़ान। ममता कालिया। सुधा अरोड़ा। 

● बस तीन नाम ?

-और भी हैं। 

● मन्नू जी ?

- मन्नू जी ने मुझे कभी कुछ नहीं कहा। 

●  चित्रा मुद्गल ?

-  चित्रा जी से पहले थोड़ा-बहुत विरोध था पर अब बिलकुल विरोध नहीं है। 

● मृदुला गर्ग ?

- मृदुला जी से कोई कड़वा अनुभव नहीं रहा। 

● उषा किरन खान ? 

- उषा की बेटी ने मेरी कहानी पर फ़िल्म कनुप्रिया में काम किया है। अच्छी हैं। 

●  इस परिधि में और कौन-कौन है ?

- सूर्यबाला , अनामिका , उर्मिला शुक्ल। बहुत हैं। लंबा विषय है। 

● इन में पॉजिटिव शेड में कौन हैं , निगेटिव शेड में कौन ? 

- निगेटिव शेड में ममता कालिया। सुधा अरोड़ा। मैं ने पूछा इन लोगों से , मेरी ग़लती तो बता दो। पर नहीं बताया। 

● अब और नहीं बताऊंगी। फिर कभी बात होगी। आज इतना ही। 

● नमस्ते समथर के बारे में बताएं। 

- समथर एक रियासत है। मेरे गांव के पास है। चिरगांव सुना होगा। उस से आगे चल कर। वहीं की कथा है इस उपन्यास में। 


.इस लिंक को भी पढ़ सकते हैं :

1 . पौराणिक संविधान औरतों की गुलामी का संविधान है: मैत्रेयी पुष्पा

2 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया साक्षात्कार किया है आपने बधाई। लेकिन मैत्रेयी जी ने राजेन्द्र यादव जी को क्लीन चिट दिया है, वह मेरी समझ से परे है। मैत्रेयी जी ने किसी पत्रिका में खुद स्वीकारा है कि 'मैं राजेन्द्र यादव से मिलने सज-धजकर जाया करती थी।' मतलब उनको अपनी आकर्षित करने के लिए ही सजना-संवरना होता था फिर क्लीन चिट क्यों?

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  2. जबरदस्त साक्षात्कार लिया है आपने। पर मैत्रेयी जी द्वारा राजेन्द्र यादव जी को क्लीन चिट दिया जाना समझ से परे है। किसी पत्रिका में मैत्रेयी जी खुद कहा है कि 'मैं राजेन्द्र यादव से मिलने सज-धजकर जाया करती थी।' मतलब उनको अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ही सजना-संवरना होता था फिर क्लीन चिट क्यों?

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