Monday 28 May 2018

ओह , हरिकेश बाबू !


ओह हरिकेश बाबू !

बरसों बाद आज उन से अभी-अभी बात हुई । दिल्ली से उन का फोन आया । एक समय था कि गोरखपुर के इलाहीबाग़ मुहल्ले में हम लोग पड़ोसी थे । पड़ोसी क्या एक ही कैंपस में रहते थे । बतौर किरायेदार। वह उम्र में हम से कुछ साल बड़े थे । लेकिन साथ खेलते थे । बाद के दिनों में वह बी एच यू चले गए , बी ई करने । फिर बी एच यू से ही उन्हों ने एम ई टाप किया । इस के पहले बी एच यू छात्र संघ के अध्यक्ष हुए थे । बाद के दिनों में उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बने। हेमवतीनंदन बहुगुणा उन के गुरु । इमरजेंसी खत्म हुई तो 1977 के संसदीय चुनाव में वह गोरखपुर से जनता पार्टी के टिकट पर सांसद बने। दो बार सांसद रहे । मूल्यों और आदर्श की राजनीति करने के कारण वह जल्दी ही सक्रिय राजनीति से किनारे कर दिए गए । जब वे जो हारे हुए उपन्यास लिख रहा था तब अचानक हरिकेश बाबू भी उस उपन्यास में एक चरित्र बन कर उतर गए । एक आदर्शवादी राजनीतिज्ञ के रुप में । और खूब विस्तार से । 2011 में यह उपन्यास छपा था । हरिवंश जी अब तो राज्यसभा में हैं , तब के दिनों वह रांची में प्रभात खबर के संपादक थे । वे जो हारे हुए उपन्यास पढ़ कर एक रात उन्हों ने मुझे फोन किया और पूछा कि आप के उपन्यास में जो राकेश बाबू वाला चरित्र है , वह हरिकेश प्रताप बहादुर सिंह तो नहीं हैं ? मैं ने पूछा कि अरे , आप ने कैसे जान लिया ? तो बताया उन्हों ने कि मैं भी बी एच यू का पढ़ा हुआ हूं । सब कुछ इतना साफ है कि कोई भी पहचान लेगा । फिर उन्हों ने हरिकेश बाबू के बारे में कई बातें बताईं और बताया कि जब वह झारखंड के कांग्रेस प्रभारी थे तब भी एक पैसा नहीं छुआ । जब कि बाकी प्रभारी करोड़ो रुपए बटोर ले गए । बात बीत गई ।

आज यही वे जो हारे हुए उपन्यास पढ़ कर हरिकेश बाबू ने फोन किया । वह बहुत विह्वल और भावुक थे । उपन्यास में मेरा नंबर पा कर फोन किया था । हम लोगों ने अपना बचपन याद किया । उन को हमारे घर के सभी सदस्यों के नाम तक याद थे । सब का कुशल क्षेम पूछा । तब जब कि चालीस बरसों से भी अधिक समय बीत गया उन्हें वह मुहल्ला छोड़े । मैं ने कहा आप को तो सब याद है बाबू साहब ! उन्हों ने कहा , आप को अकेले ही सब याद रहेगा और हम भूल जाएंगे ? सच यही है कि बचपन की स्मृतियां सब को याद रहती हैं । वैसे ही जैसे आदर्शवादी राजनीतिज्ञ सब को याद रहते हैं । हरिकेश बाबू बहुत खुश थे कि मैं ने उपन्यास में उन के बारे में लिखा । वह बार-बार कृतज्ञता ज्ञापित करते रहे । मैं ने उन से सिर्फ इतना कहा कि मेरा सौभाग्य कि आप ने इतने बरस बाद सही उपन्यास पढ़ा और मुझे फोन किया । वह बोले , उपन्यास मुझे मिला आज ही और पढ़ा भी आज ही तो आप को फोन करने से रोक नहीं पाया। मैं ने कहा कि आप ने आज का दिन मेरा सुंदर कर दिया ।उपन्यास छपने के सात साल बाद भी पढ़ कर कोई बड़ा राजनीतिज्ञ और आदर्शवादी राजनीतिज्ञ फोन करे तो दिन तो सुंदर हो ही जाता है । नहीं लोग तो अब पढ़ना ही भूल गए हैं ।


कृपया यह लिंक भी पढ़ें :
1 वे जो हारे हुए 
2. जब नाबालिग हो कर भी मैं ने ढेर सारे वोट डाले 

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