Tuesday 29 May 2018

तो क्या प्रणव मुखर्जी भारत रत्न की राह पर हैं ?

प्रणव मुखर्जी 

प्रणव मुखर्जी अगर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में जा रहे हैं तो कांग्रेसियों को इतनी हाय-तौबा नहीं करनी चाहिए । अब वह कांग्रेस के ही नहीं , राष्ट्रीय धरोहर हैं । कहीं भी आ जा सकते हैं । सब को कैद में रखने और डिक्टेशन पर रखने की आदत छोड़ देनी चाहिए । प्रणव मुखर्जी के 48 साल के संसदीय अनुभव पर भरोसा किया जाना चाहिए । किसी के कहीं आने-जाने से विचारधारा प्रभावित होती है , यह कहना नितांत बचपना है । हमारे भारत में वामपंथी साथियों की यही छुआछूत उन्हें ले डूबी है । आखिर संसद में सभी विचारधारा के लोग एक साथ बैठते हैं । अपनी-अपनी बात कहते हैं । कहीं भी जा कर कोई बात कहे । वैचारिक आवाजाही तो हर जगह बनी रहनी चाहिए । किसी भी बागीचे में हर तरह के पेड़ , किसी भी पार्क में हर तरह के फूल रहें तो हर्ज क्या है । खतरा किस बात का है भला । कहीं न आना-जाना , किसी की बात न सुनना ही फासिज्म है । हर दीवार में खिड़की रहनी चाहिए । ताज़ी हवा , ताज़ी रौशनी के लिए । वैचारिक आवाजाही के लिए भी ।

नाना जी देशमुख और यशपाल के बीच की एक घटना याद आती है जो कभी कहीं पढ़ी थी । नाना जी देशमुख एक बार लखनऊ आए तो यशपाल जी से मिलने उन के घर गए और कहा कि आप पांचजन्य के लिए लिखिए । यशपाल ने कहा कि मेरा लिखा वहां कैसे छप सकता है भला ? नाना जी देशमुख ने यशपाल जी से कहा कि , आप जो भी लिखेंगे वही छपेगा । एक शब्द नहीं बदला जाएगा। और यशपाल जी पांचजन्य के लिए लिखने लगे । बता दें कि यशपाल जी बड़े लेखक तो थे ही , घोषित कम्युनिस्ट थे । जाति से ब्राह्मण ज़रूर थे यशपाल जी पर जनेऊ वगैरह तोड़ कर फेंक चुके थे । अब प्रणव मुखर्जी जा रहे हैं संघ के कार्यक्रम में । दिक्कत क्या है । संघ का कार्यक्रम कोई संसद में राष्ट्रपति का अभिभाषण तो है नहीं जो सरकार का लिखा ही पढ़ना होगा । प्रणव मुखर्जी जो चाहे बोल सकते हैं । क्या पता इस बहाने नरेंद्र मोदी सरकार प्रणव मुखर्जी के लिए भारत रत्न की भूमिका बना रही हो । क्यों कि प्रणव मुखर्जी बतौर राष्ट्रपति मोदी सरकार के लिए कभी भी कोई बाधा ले कर नहीं खड़े हुए । सर्वदा सहयोगी भाव रखा । आधी रात जी एस टी सेशन तक वह सहयोगी ही रहे । अभी सिर्फ़ संघ के कार्यक्रम में जाने पर कांग्रेस भड़की हुई है ।

क्या पता इस चुनावी साल में प्रणव मुखर्जी को भारत-रत्न दे कर मोदी सरकार कांग्रेस को और चिढ़ाए , और भड़काए । तो कांग्रेस को बात-बेबात भड़कना और चिढ़ना बंद कर शांत बैठना चाहिए । कांग्रेस के एक गलत फैसले से इमरजेंसी में समाजवादी जय प्रकाश नारायण संघ के साथ कदम से कदम मिला कर न सिर्फ चले थे बल्कि और तमाम लोगों को भी साथ चलने के लिए खड़ा कर दिया था । संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य बता ही रहे हैं कि महात्मा गांधी भी संघ के कार्यक्रमों में जा चुके हैं । कांग्रेस को अपना घर फ़िलहाल ठीक करना चाहिए । अपनी हालिया विजय कर्नाटक संभालने पर ध्यान देना चाहिए । मुख्य मंत्री कुमारस्वामी के इस कहे में कि हम कांग्रेस की कृपा पर हैं , बगावत के बारूद की गंध है । इस की पड़ताल करनी चाहिए । प्रणव मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में जाने पर विधवा विलाप नहीं । यह बेमकसद और बेमानी है , कांग्रेस का बचपना परिलक्षित होता है । भाजपा ने 2019 के चुनाव के लिए बिसात बिछानी शुरू कर दी है , कांग्रेस को इस बात को गंभीरता से सोचना चाहिए । बहुत हो गया , संघी-संघी का भेड़िया कहना । अब जनता संघी भेड़िए के डर के झांसे से निकल आई है । भाजपा के खिलाफ कोई और हथियार खोजना चाहिए कांग्रेस और समूचे प्रतिपक्ष को । संघी जुमला जंग खा चुका है ।

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