Tuesday, 27 February 2018

श्रीदेवी यानी विश्वासघात के आंच की चांदनी में सिसकती सुंदरता


भइया को सइयां बना लेने वाली श्रीदेवी की चर्चा सुंदरता , सफलता और अभिनय के लिए तो होगी ही , विश्वासघात के लिए भी होगी । एक पर एक सफल फिल्मों की तरह ही एक पर एक विश्वासघात भी श्रीदेवी ने लगातार किए हैं । यह विश्वासघात और उस से उपजा अवसाद ही है जो उन्हें मदिरापान की इस हद तक ले गया कि बाथटब में भी वह अपने आप को संभाल नहीं सकीं और एक प्रतिष्ठित मौत पाने से वंचित रह गईं । उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल जब पचहत्तर वर्ष के हो गए तो दो चार पेग लगाने के बाद बड़े हर्ष के साथ कहते थे कि अब प्रतिष्ठित मौत मिलेगी । नहीं इस के पहले मर जाता तो लोग कहते अरे , शराबी था , मर गया । अब ऐसा नहीं होगा । यह कहते हुए ही झूमते हुए वह अगला पैग बनाने लगते । श्रीदेवी के साथ दुर्भाग्य से यह हो गया है । बाज़ार में टिकने और बिकने के लिए फ़िल्मी दुनिया के लोग नैतिकता से भरी फ़िल्में भले ही कभी बनाते और बेचते रहे हों लेकिन नैतिकता फ़िल्मी लोगों के जूते की नोक पर सर्वदा ही रही है । छल-कपट , सेक्स और पैसों की नकली दुनिया में खेलती फ़िल्मी दुनिया की फिल्मों में भी अब नैतिकता का पाठ समाप्त हो चला है । सो श्रीदेवी से किसी नैतिक पाठ की उम्मीद करना वैसे भी बेमानी है । सार्वजनिक जीवन जीने की कोई मर्यादा भी होती है , यह लोग नहीं जानते हैं । श्रीदेवी वैसे भी मगरूर और अहंकार प्रवृत्ति से लैस महिला थीं । रूप का दर्प और सफलता का अहंकार उन्हें सहज जीवन से दूर किए हुए था । अपनी फिल्मों के अभिनय में खिलखिलाहट और चुलबुलापन परोसने वाली श्रीदेवी अपने व्यक्तिगत जीवन में इस से वंचित थीं  । श्रीदेवी से मैं मिला हूं । इंटरव्यू किया है । जैसा कि अमूमन होता है कि परदे के जीवन और निजी जीवन की सुंदरता में भी तमाम हीरोइनें उलट होती हैं , मैं ने पाया कि श्रीदेवी भी इन में से ही थीं । आप निजी तौर पर मिलते तो शायद श्रीदेवी को यकबयक पहचान भी नहीं पाते । ऐसा बहुत सी सुंदर अभिनेत्रियों के साथ होता है । एक बार तो एक अभिनेत्री से मिलने गया तो मैं उसी अभिनेत्री से मैं उस को पूछ रहा था कि वह कहां हैं ? वह अभिनेत्री खिसियाती हुई बोली , मैं ही हूं ।

मैं जब श्रीदेवी से मिला था तब वह अपनी सफलता के शिखर पर थीं । उन की सुंदरता और सफलता का जादू सिर चढ़ कर बोलता था । सोचिए कि जब उन से मिलने जा रहा था तब हमारे अख़बार के एक फोटोग्राफर भी साथ थे । हम लिफ्ट के लिए खड़े थे । लिफ्ट आई और हम लिफ्ट में घुसे तो पाया कि हमारे फोटोग्राफर तो गायब हैं । फोटोग्राफर दो दिन बाद मिले तो पूछा उन से कि कहां गायब हो गए थे अचानक ? वह फिर घबरा गए । बोले , सर श्रीदेवी की फोटो मैं नहीं खींच पाता । नर्वस हो गया था मैं । डर गया था मैं । मुझे लैट्रिन आ गई थी सो मैं सीढ़ी से चुपचाप उतर गया था । यह श्रीदेवी की सुंदरता और सफलता का जादू था । सुनते हैं कि एक समय क्लियोपेट्रा की खूबसूरती का इतना डंका बजा था कि क्लियोपेट्रा के मरने के बाद उस का शव कब्र से निकाल कर एक दो नहीं , सैकड़ों लोगों ने उस के शव के साथ संभोग किया था । स्पष्ट है कि यह बीमार लोग थे । स्त्रियों की सुंदरता लोगों को बीमार बना ही देती है ।

अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी 

तो बात श्रीदेवी के विश्वासघात की हो रही थी । बहुत लोग कयास लगाते हैं कि रेखा और अमिताभ बच्चन की दोस्ती और संबंध को अंतत:  जया भादुड़ी ने तुड़वाया । लोग गलत सोचते हैं । रेखा और अमिताभ बच्चन के बीच गांठ बनीं यही श्रीदेवी । रेखा और श्रीदेवी दोनों में मद्रासी होने की भावना काम आई और रेखा ने श्रीदेवी को अपना राजदार बना लिया । श्रीदेवी के फ़्लैट पर ही वह अमिताभ बच्चन से मिलने लगीं । आहिस्ता-आहिस्ता श्रीदेवी ही दोनों को फोन पर मिलने का समय तय करने लगीं । रेखा की उपस्थिति में ही अमिताभ बच्चन श्रीदेवी के हुस्न की तारीफ़ करने लगे । नतीज़ा यह हुआ कि बाद के दिनों में श्रीदेवी अमिताभ को तो फोन कर बुला लेतीं लेकिन रेखा को बुलाना भूल जातीं । अमिताभ बच्चन पुराने बेवफ़ा थे । याद कीजिए , ज़ीनत अमान , परवीन बॉबी आदि-इत्यादि । सो धीरे-धीरे अमिताभ रेखा की बजाय श्रीदेवी के औचक सौंदर्य में नहाने लगे , डूबने लगे। रेखा को बिसराने लगे । अमिताभ फिल्मों में अब श्रीदेवी को अपनी हीरोइन बनवाने लगे । अपनी मेहनत , रूप और अभिनय के दम पर , अमिताभ बच्चन के संयोग का कमाल देखिए कि श्रीदेवी एक करोड़ रुपए लेने वाली हिंदी फिल्मों की पहली हीरोइन बन गईं । लेडी अमिताभ बच्चन कहलाने लग गईं । जयाप्रदा को पछाड़ कर नंबर वन बन गईं । आखिरी रास्ता , और खुदा गवाह आदि का यह ज़माना था । और अब यह देखिए कि अमिताभ बच्चन की फ़िल्में पिटने लगीं तो यही श्रीदेवी अब अमिताभ बच्चन से किनारा करने लगीं । अमिताभ बच्चन की फ़िल्में मना करने लगीं । क्या तो रोल छोटा है आदि-इत्यादि । बहुत समय बाद अमिताभ बच्चन ही श्रीदेवी की एक फिल्म में गेस्ट आर्टिस्ट बन कर उन के साथ आए । इंग्लिश-विंग्लिश फिल्म में जहाज में उन्हें अंग्रेजी की मुश्किल से छुट्टी दिलाते , डबल मीनिंग डायलॉग के साथ । एक आह भर कर श्रीदेवी को संबोधित वह डबल मीनिंग डायलॉग मुझे भूलता नहीं कि , कमर हिलाए बहुत दिन हो गए !

तो क्या अमिताभ बच्चन अभी भी श्रीदेवी से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे ? इतना कि श्रीदेवी के निधन से पहले ही वह आहट पा गए थे ? कि ट्यूटर पर अपनी बेचैनी बयान करने बैठ गए थे , ना जाने क्यों, अजीब सी घबराहट हो रही है !

क्या पता ?

मिथुन चक्रवर्ती और श्रीदेवी 
खैर , मिथुन चक्रवर्ती जिन दिनों श्रीदेवी के श्री बने हुए थे , बोनी कपूर भी कुर्बान हो रहे थे श्रीदेवी पर । मिथुन को श्रीदेवी पर तो भरोसा नहीं ही था , अपने आप पर भी नहीं था सो उन्हों ने श्रीदेवी को वश में करने के लिए बोनी कपूर को भइया बोलने के लिए मजबूर किया । श्रीदेवी से बोनी कपूर को भइया बोलने भर से संतोष नहीं हुआ मिथुन चक्रवर्ती को सो बोनी को राखी भी बंधवा दिया श्रीदेवी से । मिथुन चक्रवर्ती भूल गए कि किसी औरत को कभी बांधा नहीं जा सकता । राखी से भी नहीं , न ही किसी और चीज़ से । भोजपुरी में इस बाबत एक अभद्र और भदेस कहावत बहुत मशहूर है । कि बांध कर औरत की रखवाली नहीं होती । जो मर्द ऐसा करते हैं , वह मूर्ख होते हैं । ऐसे मर्दों को अपनी मर्दानियत और अपने प्रेम पर भरोसा नहीं होता । सो ऐसे लोग अंतत: मारे जाते हैं । औरत इस बंधन का पिंजरा तोड़ कर अंतत: उड़ जाती है । औरत जैसी भी हो , जो भी हो , किसी के पास रूकती है प्रेम , विश्वास और मर्दानियत के भरोसे । फालतू के इस या उस बंधन से नहीं । श्रीदेवी भी यह फालतू का बंधन तोड़ कर भइया बोनी कपूर को अंतत: सइयां बना बैठीं । दुनिया को ठेंगे पर रख कर विवाह कर लिया बोनी कपूर से । तब के समय कभी राखी की लाज रखने वाला हुमायूं भी लजा गया होगा । गांव में कही जाने वाली कहावत दिन में भइया , रात में सइयां चरितार्थ हो गई थी । इस एक विवाह से श्रीदेवी ने खुद को तो  श्री विहीन किया ही , मिथुन चक्रवर्ती का श्री भी भस्म कर दिया । भस्म किया अपने तमाम चाहने वालों का चाहना और बोनी कपूर की पहली पत्नी मोना का संसार भी उजाड़ दिया । श्रीदेवी कोई पहली अभिनेत्री नहीं हैं जो किसी का घर संसार उजाड़ रही थीं , ऐसी और भी ढेरों अभिनेत्रियां हैं वालीवुड में । पर मोना की खासियत यह थी कि मोना ने ही बोनी कपूर को श्रीदेवी से मिलवाया था । यह मिस्टर इण्डिया का समय था । मोना ने ही तैयार किया था श्रीदेवी को मिस्टर इण्डिया के लिए । मोना ने बोनी कपूर से तब कहा था , तुम मेरी तरफ देखो और श्रीदेवी से बात करो । शेखर कपूर निर्देशित मिस्टर इण्डिया ने अमरीशपुरी को बड़े खलनायक के रूप में तो स्थापित किया ही , श्रीदेवी को भी आसमान पर बिठा दिया था । हवा-हवाई बन कर आई लव यू गाती हुई करोड़ो लोगों के दिलों में वह समा गई थीं । इस फिल्म के एक गाने आई लव यू को देख कर ही यश चोपड़ा ने श्रीदेवी को चांदनी बना दिया । चांदनी श्रीदेवी की श्रेष्ठ फिल्म बन गई । लम्हे उस से भी खूबसूरत बनी । फिर तो श्रीदेवी सुंदरता , सफलता और अभिनय का एक नया प्रतिमान बन कर उपस्थित हो गईं । लेकिन जैसे मिस्टर इण्डिया में मिस्टर इण्डिया अदृश्य रहता है , बोनी कपूर की ज़िंदगी से मोना को श्रीदेवी ने अनुपस्थित कर दिया । अंतत: श्रीदेवी के विश्वासघात की फांस ले कर सौत की चुभन लिए मोना कैंसर के कांटे में फंस कर विदा हो गईं । श्रीदेवी खुद भी अपने सौतेले भाई बहनों की डाह भुगत चुकी थीं पर यह सब भूल कर अपने स्वार्थ में डूब कर अपने और मोना के बच्चों को भी सौतेला होने की आग में झोंक दिया। सौतिया डाह , सौतेलापन और विश्वासघात की आग ने उन्हें इस कदर अकेला किया कि वह अवसाद में घिर कर शराबनोशी में फंस कर रह गईं । अवसाद , शराब और अकेलापन उन्हें अप्रतिष्ठित मृत्यु के द्वार पर ले गया । अकेलेपन और शराब के कारण मीना कुमारी भी मरी थीं । मीना कुमारी भी कमाल अमरोही की दूसरी पत्नी थीं । मधुबाला का आलम यह था कि अशोक कुमार को चाहती थीं । अशोक कुमार से छूटीं तो दिलीप कुमार के प्यार में पड़ीं और अंतत: अशोक कुमार के छोटे भाई किशोर कुमार से विवाह कर कम उम्र में कैंसर से मरीं । नूतन भी बीमारी से कम उम्र में मरी थीं । लेकिन उन सब की मृत्यु प्रतिष्ठित मृत्यु थी । रुप की रानी श्रीदेवी की मृत्यु लेकिन दुःखदायी और लांछित मृत्यु बन कर उपस्थित हुई है । सदमा की तरह ।

एक सवाल अकसर मेरे मन में हिलोर मारता रहता है कि हिंदी फिल्मों की सुंदर स्त्रियों जिन पर करोड़ो लोग जां निसार रहते हैं , का जीवन अकसर इतना दुःखदायी क्यों होता है ? क्यों अपने से बहुत ज़्यादा उम्र के पुरुष इन के पल्ले पड़ते हैं और कि यह किसी न किसी की सौत या रखैल बनना ही क्यों क़ुबूल करती हैं । सब कुछ के बावजूद अपमानजनक जीवन जीना ही इन के हिस्से क्यों आता है । यह कौन सा कठिन संयोग है भला । सफलता और सुंदरता की यह कौन सी इबारत है । रुप की रानी के रुप के दर्प की यह कौन सी यातना है ।

श्रीदेवी और बोनी कपूर 


6 comments:

  1. अभिनेत्री नूतन की मृत्यु कम उम्र में नहीं हुई थी

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    1. 53-54 वर्ष की उम्र क्या बहुत ज़्यादा होती है ?

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  2. बहुत अच्‍छा लिखा आपने, फैन्‍स के दबाव में हम इन जैसे नकली चेहरों का सच जान ही नहीं पाते...

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  3. ऐसा तथ्य परक और निरपेक्ष लेख दुर्लभ है। श्री देवी के बहाने फिल्मी सितारों के जीवन की असलियत प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।

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