सेक्यूलर चोले में लीगी पाठ पढ़ते - पढ़ाते लोग फ़ेसबुक पर बुरी तरह सक्रिय हैं । इन में  ही से एक हैं ओबैद नासिर । मुस्लिम हैं सो सेक्यूलरिज्म पर इन का कॉपीराइट है । गोया कोई और सेक्यूलर हो ही नहीं सकता ।इन की एक जानी-पहचानी अदा है कि जब तर्क और तथ्य से हार जाते हैं तो हर किसी असहमत को भक्त , संघी , भाजपाई कह कर निकल लेते हैं । संघी , भाजपाई की ढाल  थाम  कर कुतर्क का इनका और इन जैसों का मियादी बुखार उतरता ही नहीं । कोई दवा काम नहीं करती । हकीम लुकमान भी फेल । इन के जैसे और भी तमाम लोग फेसबुक पर सक्रिय हैं । लेकिन कोई  चलती हुई बात हो तो नज़रअंदाज़ करना ठीक है , करते भी हैं पर जब यह लीगी चश्मे  इतिहास भी परिभाषित करने लगें , इतिहास से मनमाफिक छेड़छाड़ करने लगें , औरंगजेब जैसे खून खराबा करने वाले अत्याचारी , निरंकुश  और निर्दयी शासक का झूठा गुणगान गाने लगें तो इन का प्रतिवाद ज़रूरी हो जाता है । लीजिए पहले इन्हीं ओबैद नासिर की एक पोस्ट पढ़िए फिर इस के नीचे मेरा प्रतिवाद : 


५- हुमायूं को एक दुसरे मुस्लिम सरदार शेर शाह सूरी ने हराया था
६- बाद में हुमायूं ने ईरानियों और राजपूतों की मदद से अपना राज्य वापस लिया
 ७- अकबर राजपूतों के किले उमरकोट में पैदा हुआ था
८- उसका विवाह आम्बेर के राजा भारमल की बेटी से हुआ था लेकिन अकबर ने अपनी पत्नी का धर्म परिवर्तन नहीं कराया बल्कि पत्नी के धर्म का आदर करते हुए सदैव् उसके अनुष्ठानों में श्रद्धापूर्वक हिस्सा लिया Iअकबर के सेनापति का नाम राजा मान सिंह था Iअकबर की कभी महाराणा प्रताप से सीधी लड़ाई नही हुई बल्कि उसके सेनापति ही महाराणा से लड़ते थे I महाराणा प्रताप की सेना में अफगान योधा बड़ी संख्या में थे और शेर खान सूरी उनकी सेना का मुख्य तोपची था जो मरते दम तक महाराणा प्रताप के साथ रहा I संघी इतिहास कर महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का तो वर्णन करते हैं मगर भूल से भी शेर खान सूरी का नाम नहीं लेते I
९- शाहजहाँ इसी हिन्दू महारानी के पेट से पैदा हुआ था जो बाद में भारत का शहेंशा बना और ताजमहल जैसा नगीना देश को दे गया
१०-शाहजहाँ का बेटा औरंगजेब यद्यप की धार्मिक और कुछ हद तक कट्टर था लेकिन उसको इतिहास में दांनव बना के पेश किया गया जिसमें ९०% झूट है
उसने कई मंदिरों मठों को लाखों की माफ़ी ज़मीन दी,बनारस के एक पंडित की बेटी की इज्ज़त बचाने के लिए खुद दिल्ली से बनारस आया और अपने मुस्लिम सिपहसलार को दो हाथियों से बंधवा के दोनों पैरों को चिरवा दिया था जो उस पंडित की बेटी पर बुरी नजर रखे था I
११- औरंगजेब के सेनापति का नाम मिर्ज़ा राजा जय सिंह था औरंगजेब उनकी बहादुरी और वफादारी से इतना प्रभावित था की उस समय के चलन के अनुसार उन्हें सात थान कपड़ा (खिलत फाखिरा ) पेश किया था और मिर्ज़ा की उपाधि दी थी(औरंगजेब पर पंडित विशम्भर नाथ शर्मा की किताब पूरी रौशनी डालती है )


मेरा प्रतिवाद 


इतिहास में बाबर आक्रमणकारी के रुप में आज तक दर्ज है , वह कभी शासक नहीं रहा । हूमायू भी उस का आक्रमणकारी वारिस ही है । सो कृपया ऐसा भ्रम नहीं फैलाएं कि वह यहां शासक था । फ़ेसबुक पर सिर्फ़ जाहिल , लंठ , गंवार , लंपट आदि ही नहीं उपस्थित हैं । पढ़े-लिखे , समझदार और जानकार लोग भी थोड़े से ही सही उपस्थित हैं यहां । सो बरगलाइए नहीं । दूसरे , शेर खान सूरी नहीं शेरशाह सूरी है जिस का मूल नाम फ़रीद खान है और कि यह फ़रीद खान उर्फ शेरशाह सूरी मुगल नहीं , अफगानी है । अफगानी और मुगल का फर्क तो समझते ही होंगे । कि इतनी बात भी नहीं समझते । यह शेरशाह सूरी पहले हुमायू की सेना की एक कमान ज़रूर संभालता था लेकिन बाद में उस ने हुमायू को भारत से खदेड़ कर इरान भगा दिया । शेरशाह सूरी न सिर्फ़ शासक बना बल्कि शेरशाह सूरी ही वह पहला शासक है जिस ने भारत को पहला इंफ्रास्ट्रक्चर दिया । सड़क , सड़क किनारे पेड़ की छाया , धर्मशाला , डाक व्यवस्था आदि । उस का दुर्भाग्य था कि अपने ही बारूदखाने की आग में झुलस कर मर गया । तब जब कि बारूदखाने का वह मास्टर था । ओवर कांफिडेंस में मारा गया । बहरहाल उस के मरने के बाद हुमायू भारत लौटा , ज़्यादा जिया नहीं मर गया और बालक अकबर ने कामकाज संभाल लिया । अकबर ने उदारता दिखाई पिता के दुश्मन शेरशाह सूरी के न सिर्फ़ सारे काम कायम रखे बल्कि उस में शान और रफ्तार दी । शेरशाह सूरी की जीवनी लिखवाई ।

रही बात अकबर और महाराणा प्रताप की तो यह भी बताएं न कि महाराणा प्रताप ने अकबर को हरा कर पूरा मेवाड़ ले लिया था । इतना कि महाराणा प्रताप से ही डर कर अकबर अपनी राजधानी लाहौर ले गया । महाराणा प्रताप के निधन के बाद ही वह अपनी राजधानी आगरा ले आया । और हां , शेरशाह सूरी तो तब तक मर चुका था सो शेरशाह सूरी नहीं महाराणा प्रताप का मुस्लिम सरदार हकीम खां सूरी था , जिस ने हल्दीघाटी की लड़ाई लड़ी थी , पूरी बहादुरी से । और कि इस हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास संघियों ने नहीं लिखा , इस युद्ध का आंखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने लिखा है । इतिहास सब के सामने है इस लिए तोड़-मरोड़ कर मत परोसिए । यह एक बात जान लीजिए कि साम्राज्यवाद के खिलाफ पहला बिगुल बजाने वाला दुनिया में कोई  पहला व्यक्ति और शासक है तो वह महाराणा प्रताप हैं जिन्हों ने अकबर के साम्राज्यवाद के खिलाफ न सिर्फ बिगुल बजाया बल्कि निर्णायक मोड़ तक ले गए और जीत हासिल की । महात्मा गांधी  दूसरे  व्यक्ति हैं जिन्हों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ बिगुल बजाया और निर्णायक मोड़ तक जा कर जीत हासिल की । इतिहास को ठीक से पढ़ने की समझ विकसित कीजिए ।

जहांगीर को भूल गए हैं आप , पर चलिए मुहब्बत के बादशाह शाहजहां को तो याद रखा है , यह बहुत है । लेकिन इसी शाहजहां का कुपुत्र औरंगजेब न सिर्फ़ एक अत्याचारी था , जिसे आप महिमामंडित कर रहे हैं उस का सारा इतिहास नफ़रत और खून खराबे से भरा हुआ है । उस ने अपने बाप को कैद किया , भाई दाराशिकोह का कत्ल किया , बहन का कत्ल किया जैसी बातें तो आप छुपा ही गए हैं , उस का जजिया भी नहीं बता रहे । औरंगजेब द्वारा असंख्य हिंदुओं का कत्ल भी आप भूल गए हैं । औरंगजेब का काशी इतिहास भी आप गलत परोस रहे हैं । बताईए न कि काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ कर उस ने ही मस्जिद बनाई थी । जैसे बाबर के कहने पर मीर बांकी ने अयोध्या में राम जन्म भूमि मंदिर तोड़ कर बाबरी मस्जिद बनाई थी । ऐसे विषयों पर संघी इतिहास की ढाल ले कर इतिहास को लीगी एंगिल देना गुड बात नहीं । जैसे कि आप का ज़्यादा जोर मुगलों की हिंदू बेगमों पर है । लेकिन इस का ज़िक्र नहीं कि हिंदू बेगम ही क्यों । इस का भी ज़िक्र नहीं कि हिंदुओं को कैसे तो जबरिया कत्लोगारत कर मुसलमान बनाया जाता रहा । जिस के परिणाम में आप भी मुसलमान हुए पड़े हैं । बल्कि प्याज भी खूब खाते जा रहे हैं । नहीं ? अगर नहीं तो बताईए भी भला कि आप के पुरखे अगर हिंदू नहीं थे तो क्या अरब से आए हुए थे , बाबर के साथ कि हुमायू के साथ ? इस लिए राख उतनी ही उड़ाईए जितने में चिंगारी न दिखे , न सुलगे । बल्कि राख न उड़ाईए तो ज़्यादा बेहतर ।

इतिहास में जो स्थापित सत्य हैं उन्हें हम या आप या कोई भी कैसे झुठला सकता है , कैसे पानी डाल सकता है । पानी डालना ही है तो नफ़रत पर पानी डालिए । योगी आप का पढ़ाया इतिहास क्यों पढ़ेंगे ? किस को बरगला रहे हैं , किस के लिए निरंतर नफरत की खेती कर रहे हैं यहां फ़ेसबुक पर । योगी पढ़े-पढ़ाए हैं । क्यों पढ़ा रहे हैं उन को यहां । उन का भी इतिहास का अपना पाठ्यक्रम है , जैसे आप का अपना पाठ्यक्रम । जैसे आप का लीगी पाठ्यक्रम है , उन का हिंदू महासभाई , संघी । पढ़िए , पढ़ाईए पर सही इतिहास । अपना-अपना इतिहास नहीं , नफ़रत का पाठ नहीं , जैसे कि आप यहां पढ़ा रहे हैं ।

यहां इस बाबत एक टिप्पणी देवेंद्र सिकरवार की भी गौरतलब है :


देवेन्द्र सिकरवार आपके आलेख में भी बहुत कमियां हैं मसलन शेरशाह सूरी को पहला इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने वाला शासक , अकबर को दयालु बताना या शाहजहां को मुहब्बत का प्रतीक बताना ।

  शेरशाह के तीन सुधार सबसे ज्यादा प्रचारित हैं
1-- ग्रांड ट्रंक रोड --- अशोक के समय से चली आ रही थी ।
2-- मुद्रा सुधार --- भारतीय मुद्रा मानक इतना श्रेष्ठ था कि रौप्य , द्रखम आदि शब्द पूरे विश्व में मुद्राओं के नाम बने शेरशाह ने क्या नया किया ।
3-- कर व्यवस्था --- हिंदू भारत में हमेशा से ही 1/6 से ज्यादा कर लेने वाले राजा को राक्षस कहा गया है । धननंद का तख्ता इसी वजह से पलटा गया । क्या शेरशाह 1/6 कर लेता था ।

अकबर :-- केवल चित्तौड़ में इस नरपशु ने स्त्रियों के जौहर के बाद बचे 30000 बूढ़े और बच्चों को खीज में कत्ल करवाया और एकलिंगजी को तुडवाकर मीम्बर बनवाया । ( आईन ए अकबरी )

जहांगीर ने कांगड़ा में ज्वालादेवी के मंदिर में गायों को कटवाकर उनके खून का छिड़काव करवाया । ( तुजुक ए जहांगीरी )

शाशजहाँ :-- मथुरा में कृष्ण मूर्ति को जसमा मस्जिद की सीढ़ियों में चुनवाया और आज भी मुस्लिम उसपर पैर पोंछकर अंदर जाते हैं

अपनी सगी बेटी जहां आरा से यौन संबंध बनाए। ---- टैवर्नियर

औरंगजेब के बारे में लिखना ही बेकार है ।

ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं जो सिद्ध करते हैं कि ये सिर्फ वहशी लुटेरे थे

मैंने सारे प्रमाण इन मुस्लिम बादशाहों द्वारा खुद लिखी गयी या उनके आदेश से दरबारी इतिहासकारों द्वारा लिखे गये रिकॉर्ड्स और जीवनियों से उद्धृत की हैं । दम है तो इन्हें गलत सिद्ध करो ।

उदाहरण के लिये चित्तौड़ हत्याकांड का वर्णन अबुल फजल ने किया है जो अकबर का सबसे खासमखास था ।