असहिष्णुता के पीछे अगर कुछ है तो सिर्फ़ तीन कारण हैं । अव्वल तो कांग्रेस । कांग्रेस की हताशा । दूसरे काला धन। तीसरे भाजपा और संघ से जुड़े लोगों के मूर्खतापूर्ण बयान। योगी , साक्षी , साध्वी जैसे गंवार और दुष्ट लोगों के बयान सचमुच बहुत आपत्तिजनक हैं। लेकिन जो आधारभूत तत्व है वह काला धन ही है। लेखकों में उपजी असहिष्णुता में एक तो फैशन है मोदी विरोध का दूसरे, कुछ एन जी ओ फंडिंग पर लगी रोक का उबाल है। अब नंबर आया है फ़िल्मी दुनिया के लोगों का । फ़िल्में बनती ही हैं काला धन से । अभी राजन पकड़ा गया है। दाऊद पर शिकंजा कस रहा है। दुनिया भर में फैली उस की संपत्ति पर लगाम लग रही है। तो वह कुछ तो करेगा ही। तय मानिए फ़िल्मी दुनिया से अभी और भी असहिष्णुता के पैरोकार आने वाले हैं। बस देखते जाईए। आप भी ज़रा ठहर कर सोचिएगा ज़रूर कि दो कौड़ी की फ़िल्में हफ़्ते दस दिन में सैकड़ो हज़ारों करोड़ रुपए कैसे कमा लेती हैं ? जान लीजिए कि नंबर दो का एक कर के। फ़िल्मी दुनिया में यह दो नंबर के कुबेर हैं कौन? यही राजन , यही दाऊद। यही आदि-आदि । पहले के दिनों में हाजी मस्तान आदि थे । बात हाजी मस्तान की आई है तो एक क़िस्सा फ़िल्मी दुनिया का सुनिए।
राज कपूर |
राज कपूर की मेरा नाम जोकर आ कर पिट चुकी थी । राज कपूर लुट चुके थे । उन दिनों का तस्कर और माफ़िया , दाऊद इब्राहिम के गुरु हाजी मस्तान को राज कपूर की मदद की सूझी । राज कपूर को डिनर पर बुलाया । दो-चार पेग पी लेने के बाद हाजी मस्तान ने को प्रस्ताव दिया कि राज भाई , आप फ़िल्म बनाईए। पैसा मैं दूंगा । फ़िल्म चल गई तो पैसे वापस कर दीजिएगा। नहीं चली तो भूल जाईएगा। राज कपूर ने हाजी मस्तान को शुक्रिया कहा । और कहा कि फ़िल्म तो मैं बनाऊंगा पर माफ़ कीजिए हाजी मस्तान
के पैसे से नहीं । यह कह कर राज कपूर उठ गए और अपनी कार में आ कर बैठ गए। हाजी मस्तान की गिरफ़्त में वह नहीं आए । उन कमज़ोर क्षण में भी वह अपने आत्म बल पर कायम रहे । जल्दी ही उन्हों ने फ़िल्म बनाई भी । बाबी । जो सुपर-डुपर हिट हुई । राज कपूर घाटे से उबर गए थे । पर हाजी मस्तान के नंबर दो के पैसे से नहीं । तस्करी और खून में डूबे पैसे से नहीं । पर अब ? अब तो मुंबई में नब्बे प्रतिशत फ़िल्में बिना नंबर दो के पैसे के नहीं बनती । राज कपूर की वह खुद्दारी , वह नंबर एक के पैसे से फ़िल्म बनाने की रवायत विदा हो चुकी है । यह नंबर दो का काला धन अब असहिष्णुता की धुन पर लोगों को नचाने में भी आगे आ गया है ।
हाजी मस्तान |
सत्यमेव जयते की याद है ?
आमिर ख़ान |
यही आमिर खान प्रस्तुत करते थे दूरदर्शन पर । एक एपिसोड प्रस्तुत करने का पांच करोड़ रुपए लेते थे । बहुत वाहवाही होती थी उन दिनों आमिर खान की इस सत्यमेव जयते खातिर । पर आमिर क्या सचमुच सत्यमेव जयते को सार्थक करते थे ? बताईए अंबानी के पैसे से आप सत्यमेव जयते बनाएंगे भी तो क्या खा कर बनाएंगे? मुमकिन है भला ? बहुत छेद और बहुत बेईमानियां सामने आई थीं तभी आमिर खान की इस कार्यक्रम में । एक ही उदाहरण काफी है । एक एपिसोड था जल प्रदूषण पर । तमाम जगहों और नदियों का प्रदूषण स्तर का दिल दहलाने वाला चार्ट पेश किया आमिर ने । एक्सपर्ट्स की तमाम राय भी । पर एक बार भी यह ज़िक्र नहीं किया कि जल प्रदूषण के लिए सब से ज़्यादा ज़िम्मेदार हमारी फैक्ट्रियां हैं । इन्हीं फैक्ट्रियों के कचरे ने नदियों से उन का जीवन छीन लिया है । इन में अंबानी की भी तमाम फैक्ट्रियां शामिल हैं । सो आमिर इस बिंदु पर सिरे से ख़ामोश रहे । अंबानी के ख़िलाफ़ कैसे बोलते भला ? यह वही आमिर ख़ान हैं जो मेधा पाटेकर के साथ नर्मदा बांध के खिलाफ धरने पर
भी बैठ जाते हैं और ठंडा यानी कोका कोला भी बेच सकते हैं । यानी कांख भी
छुपी रहे और मुट्ठी भी तनी रहे । सहिष्णु इतने हैं और बहादुर भी इतने कि
बीवी बच्चों को अचानक छोड़ कर बेसहारा कर देते हैं । बहरहाल एक दिन की ही असहिष्णुता झेल लेने के बाद आमिर खान ने किसी घाघ राजनीतिज्ञ की तरह पलटी मार कर देशभक्त बन गए हैं । बता रहे हैं कि मैं ने ऐसा कुछ नहीं कहा । यह कहा और वह कहा । सवाल है कि आप इतने बड़े अभिनेता हैं , अपने को परफेक्टनिस्ट भी घोषित करते करवाते रहे हैं । सेलिब्रेटी होने का एक छल भी आप के साथ नत्थी है । ऐसे में आप अगर यह जानते हैं कि आप को क्या कहना चाहिए तो आप को निश्चित रूप से यह बात भी ज़रूर जाननी चाहिए कि आप को क्या नहीं कहना चाहिए । ग़लती यहीं हो गई । लेकिन आमिर खान को चूंकि अपना फ़िल्मी व्यवसाय भी चलाना है तो व्यावसायिक चतुराई में उन्हें देशभक्त रहना ही पड़ेगा । वक़्त का तक़ाज़ा भी यही है । तो भी अपनी ज़रा से मूर्खता में अपना बहुत कुछ गंवा चुके हैं आमिर ख़ान । यह बात इस असहिष्णुता के ज्वार के उतरने के बाद उन्हें महसूस होगी । अपनी फ़िल्मोग्राफ़ी में मंगल पांडे , सरफ़रोश , लगान और रंग दे बसंती जैसी फिल्मों के लिए सैल्यूट पाने वाले आमिर ख़ान अब अपने राजा हिंदुस्तानी पर कुछ तो खरोंच लगा ही बैठे हैं । इस खरोच की खुश्की बहुत जल्दी नहीं जाने वाली । न उन की ज़िंदगी से , न उन की फ़िल्मोग्राफ़ी से । उन का दिल माने न माने , अब वह उस प्यार के राही नहीं रह गए हैं, जिस के लिए देश उन्हें जानता रहा है । काले धन की आंच , लपट और सनक में झुलसती असहिष्णुता इतनी जल्दी फ़ना नहीं होने वाली उन के प्रशंसकों के दिल से , यह बात तो उन्हें जान ही लेनी चाहिए ।
खैर , जो भी हो यह सब कर के कांग्रेस और भाजपा दोनों ही जनता के हितों पर निरंतर पानी फेर रहे हैं । महंगाई अपने पूरे शबाब पर है । बेरोजगारी सुरसा बन गई है । सूखा देश की अर्थ व्यवस्था को झिंझोड़ कर उस की नींव हिला चुका है । एफ़ डी आई के मार्फ़त देश गिरवी होता जा रहा है । दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की ओर बड़ी तेज़ी से बढ़ चली है । पर इन कायर और दृष्टिहीन लेखकों को , इन चैनलों में बैठे साक्षर पत्रकारों को यह सब नहीं दिख रहा । असहिष्णुता की एक नकली बहस में पूरे देश को उलझा रखा है । हालात यहां तक बिगड़ चुकी है कि आज अभी अनवर जमाल नाम का एक गुमनाम फिल्म निर्माता एक चैनल पर बैठा बड़े गुमान से कह रहा था कि इतने किसान आत्म हत्या कर रहे हैं लेकिन यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना किसी लेखक का पुरस्कार लौटाना है । यह पुरस्कार लौटाना बड़ी बात है । बताईए भला यह अनवर जमाल नाम का यह मूर्ख इतनी अश्लील बात कह रहा था इतनी शांति से कह रहा था जैसे कोई प्रवचन करने वाला दुकानदार बोलता है । और हम जैसे लोग यह सब सुनने के लिए अभिशप्त हैं । पर अफसोसनाक यह था कि राजेश जोशी नाम के एक कवि भी इस पैनल में उपस्थित थे । और अनवर जमाल की इस अश्लील और अपमान जनक बात पर एक बार भी ऐतराज नहीं जता सके । कि जनाब किसी किसान की जान भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है । अब तो कल से असहिष्णुता की नौटंकी संसद में भी देखने को मिलेगी । मोदी सरकार यही चाहती है । चाहती है कि देश खोखले विमर्श में फंसा रहे । असली चुनौतियों , असली विमर्श से लोग अनजान रहें । कांग्रेस और विपक्ष को भी यही शूट करता है । नाखून कटवा कर शहीद बनने का मज़ा ही कुछ और है । हुंह असहिष्णुता ! हाय असहिष्णुता !
अरे हां एक बात यह भी कि इन तमाम चैनलों में भी काले धन की ही खाद मिली हुई है । यह बात भी बताने की है भला ? सो असहिष्णुता की बहस चालू आहे !
अरे हां एक बात यह भी कि इन तमाम चैनलों में भी काले धन की ही खाद मिली हुई है । यह बात भी बताने की है भला ? सो असहिष्णुता की बहस चालू आहे !
लाजवाब !
ReplyDeleteलाजवाब !
ReplyDeleteएक शानदार लेख और बिना अनुमति फेसबुक पर शेयर किया गया
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