एक फेसबुकिया विमर्श
मुकेश
जी , आप की यह टिप्पणी बहुत लाऊड है आप की हरामजादे कविता की तरह ही । आप
को क्या लगता है कि एम जे अकबर अगर भाजपा में गए हैं तो क्या वहां नमाज अदा
करने गए हैं ? निश्चित रूप से नहीं । वह गए हैं तो भाजपा और नरेंद्र मोदी
का सजदा करने के लिए ही गए हैं । वह अपनी आत्मकथा में अपने पूर्वजों को
हिंदू घोषित कर चुके हैं। एम जे अकबर तो खैर जो भी कुछ कर रहे हैं स्पष्ट
है कि सत्ता की मलाई चाटने के लिए ही कर रहे हैं। वह पहले भी ऐसा बहुत कुछ
कर चुके हैं । इतना कि एक बार कांशीराम उन्हें मेसेंजर ब्वाय तक कह चुके
हैं । फिर वह भाजपा के अधिकृत प्रवक्ता भी हैं ही। उन का कार्ड तो खुला हुआ
है । पर आप की यह कुतर्की और लाऊड टिप्पणी और हरामजादे जैसी लाउड कविता का
मकसद क्या है ? अपनी पालिटिक्स भी तो खुल कर बता दीजिए। हरामजादे कविता भी
है , स्वीकार करते हुए मुश्किल होती है । लेकिन हरामजादे कविता को अगर उदय
प्रकाश जैसे बड़े रचनाकार ने महान घोषित कर दिया है तो इस का मतलब यह हरगिज़
नहीं है कि ऐसी कविता महान हो ही जाए ! बहुत मुगालते में मत पड़िए। बड़े
लेखकों के ऐसे प्रमाण पत्र कई बार बेमानी साबित होते रहे हैं । भावुकता
में ऐसी भूल हो जाती हैं । खैर , अकबर का वह लेख मैं ने नहीं पढ़ा है। पर
जैसा कि आप ने लिखा है उस के मुताबिक आप को क्या लगता है कि अकबर भाजपा का
प्रवक्ता रहते हुए भी भाजपा के खिलाफ लिख रहे होते ? भाई बहुत नादान हैं
फिर तो आप । आलम तो यह है कि जो भाजपा के प्रवक्ता नहीं हैं वह तक तो मोदी
का गुणगान कर रहे हैं। बड़े-बड़े विरोधी भी मोदी महिमा में निपुण हो गए हैं ।
मोदी और भाजपा के परम निंदक रामचंद्र गुहा को ही आज पढ़ लीजिए । आज ही के
हिंदुस्तान में वह मोदी को आधुनिक ऊर्जावान और अच्छे प्रशासक के तौर पर लिख
गए हैं। तो रामचंद्र गुहा को अब क्या कहेंगे ? अकबर तो हैं ही भाजपा के
प्रवक्ता। पर मित्र आप की पालिटिक्स क्या है कि इतनी लाऊड टिप्पणी लिखनी पड़
गई? इतनी लाऊड कविता लिखनी पड़ गई? मोदी और भाजपा विरोध में कुछ बहुत अच्छी
और मार्मिक कविताएं भी लिखी गई हैं। जो लाऊड नहीं तार्किक भी हैं और कि
कविता भी हैं। बहुत मार्मिक कविता। इस बाबत विष्णु खरे और विष्णु नागर की
कविताएं यहां गौर तलब हैं ।
-एमजे अकबर के इस अधोपतन को कैसे देखा जाए-
एक अच्छा खासा पत्रकार और लेखक सिर्फ सत्ता प्रतिष्ठान का अंग बनने के प्रलोभन में किस तरह प्रतिक्रियावादी हो जाता है इसकी मिसाल हैं एमजे अकबर।
आज टाइम्स ऑफ इंडिया में उनका लेख इसे साबित करता है। उन्होंने इस्लामी पुनरुत्थानवाद को आटोमन और मुग़ल साम्राज्य से जोड़कर प्रस्तुत किया है, लेकिन कहीं भी ज़िक्र नहीं किया है कि तमाम पुनरूत्थानवादी शक्तियाँ दरअसल ऐसे ही कथित गौरवशाली अतीत को वर्तमान में तब्दील करने की कोशिश करके नफरत और हिंसा का अभियान चलाती हैं।
उनकी पार्टी और विशाल संघ परिवार भी जिस अखंड भारत, राम राज और सोने की चिड़िया की बात करता है, वह भी दरअसल, इसी सोच और भावना से प्रेरित है। आईएस के खलीफ़त की तरह वह भी पाकिस्तान तथा अफ़गानिस्तान तक दावा ठोंकता है और उसी हिसाब से विस्तार की कामना करते हुए अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करता है। यही हाल ईसाईयत का है और अन्य धर्मों तथा संस्कृति को मानने वालों के वर्ग का भी।
अफसोस कि अकबर ये भी देखने में चूक गए कि कट्टरपंथी इस्लाम के उभार में अमेेरिका, सऊदी अरब और उनके तमाम मित्र देशों की क्या भूमिका है। उन्हें सबसे पहले कट्टरपंथी विचारों, हथियारों और धन-धान्य से जिन्होंने लैस किया उन्हें कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। ये पूरा रायता सोवियत संघ को नेस्तनाबूद करने और पेट्रोलियम पदार्थों पर अपना नियंत्रण कायम करने के लिए किया गया। अगर अकबर इस अंतरराष्ट्रीय राजनीति (जिसमें अर्थनीति एवं सामरिक लक्ष्य भी शामिल हैं) पर ग़ौर किया होता तो इतनी हल्की टिप्पणी नहीं करते, लेकिन वे अब एक दूसरे नज़रिए से लैस हैं। हो सकता है ये लेख हमें आपको नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पढ़ाने के लिए लिखा गया हो, ताकि वे प्रसन्न होकर कुछ बख्शीश आदि बख्श दें।
अगर समग्रता में एमजे इसे देखते तो वे ऐसा तंग नज़रिया नहीं अपनाते। यदि उन्होंने ये लेख बीजेपी के प्रवक्ता तौर पर लिखा है तो उन्हें स्पष्ट रूप से पहले ही कह देना चाहिए था और इस आधार पर उन्हें माफ़ किया जा सकता था, क्योंकि वे तो पार्टी के कार्यकर्ता की ज़िम्मेदारी निभा रहे थे। लेकिन बतौर लेखक ये लेख उन्हें संदिग्ध बनाता है, उनकी समझ पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
एक अच्छा खासा पत्रकार और लेखक सिर्फ सत्ता प्रतिष्ठान का अंग बनने के प्रलोभन में किस तरह प्रतिक्रियावादी हो जाता है इसकी मिसाल हैं एमजे अकबर।
आज टाइम्स ऑफ इंडिया में उनका लेख इसे साबित करता है। उन्होंने इस्लामी पुनरुत्थानवाद को आटोमन और मुग़ल साम्राज्य से जोड़कर प्रस्तुत किया है, लेकिन कहीं भी ज़िक्र नहीं किया है कि तमाम पुनरूत्थानवादी शक्तियाँ दरअसल ऐसे ही कथित गौरवशाली अतीत को वर्तमान में तब्दील करने की कोशिश करके नफरत और हिंसा का अभियान चलाती हैं।
उनकी पार्टी और विशाल संघ परिवार भी जिस अखंड भारत, राम राज और सोने की चिड़िया की बात करता है, वह भी दरअसल, इसी सोच और भावना से प्रेरित है। आईएस के खलीफ़त की तरह वह भी पाकिस्तान तथा अफ़गानिस्तान तक दावा ठोंकता है और उसी हिसाब से विस्तार की कामना करते हुए अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करता है। यही हाल ईसाईयत का है और अन्य धर्मों तथा संस्कृति को मानने वालों के वर्ग का भी।
अफसोस कि अकबर ये भी देखने में चूक गए कि कट्टरपंथी इस्लाम के उभार में अमेेरिका, सऊदी अरब और उनके तमाम मित्र देशों की क्या भूमिका है। उन्हें सबसे पहले कट्टरपंथी विचारों, हथियारों और धन-धान्य से जिन्होंने लैस किया उन्हें कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। ये पूरा रायता सोवियत संघ को नेस्तनाबूद करने और पेट्रोलियम पदार्थों पर अपना नियंत्रण कायम करने के लिए किया गया। अगर अकबर इस अंतरराष्ट्रीय राजनीति (जिसमें अर्थनीति एवं सामरिक लक्ष्य भी शामिल हैं) पर ग़ौर किया होता तो इतनी हल्की टिप्पणी नहीं करते, लेकिन वे अब एक दूसरे नज़रिए से लैस हैं। हो सकता है ये लेख हमें आपको नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पढ़ाने के लिए लिखा गया हो, ताकि वे प्रसन्न होकर कुछ बख्शीश आदि बख्श दें।
अगर समग्रता में एमजे इसे देखते तो वे ऐसा तंग नज़रिया नहीं अपनाते। यदि उन्होंने ये लेख बीजेपी के प्रवक्ता तौर पर लिखा है तो उन्हें स्पष्ट रूप से पहले ही कह देना चाहिए था और इस आधार पर उन्हें माफ़ किया जा सकता था, क्योंकि वे तो पार्टी के कार्यकर्ता की ज़िम्मेदारी निभा रहे थे। लेकिन बतौर लेखक ये लेख उन्हें संदिग्ध बनाता है, उनकी समझ पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
- Surendra Trivedi, Ghumakkar Desi, नीतीश मिश्र and 20 others like this.
- Mukesh Kumar मित्रवर मेरी पॉलिटिक्स जानने से पहले ये बताएं कि आप इस कदर बौखलाए हुए क्यों हैं? क्या मेरी टिप्पणी इतनी चुभने वाली लगी है कि उसमें दिए गए तर्कों पर गौर करना तक आपने गँवारा नहीं किया? मैंने जो कुछ कहा है लेख पढ़कर और उसमें जो एकतरफापन है उसके बरक्स तर्क देकर कहा है। इसमें अगर आपको लाउडनेस दिखलाई दे रही है तो ये आपके कानों और मस्तिष्क का दोष भी हो सकता है, क्योंकि बहुत से लोगों को वह कम लाउड लग रही है। वे उससे कहीं आगे जाकर टिप्पणियाँ कर रहे हैं, जबकि मैं उनके पत्रकारीय बैकग्राउंड को ध्यान में रखकर और उसका लाभ देकर ही बात कर रहा हूँ। कविता के लाउड लगने का मामला भी कुछ ऐसा ही है। न तो मैं भावनाओं में बहने वाला हूँ और न किसी तरह की खामखयाली पालनेवाला। अलबत्ता आपके द्वारा दी सीखों को ज़रूर ध्यान में रखूँगा, क्योंकि मैं मानता हूँ कि निंदकों को आँगन में कुटी छवाय के रखना चाहिए। लेकिन मुझे हैरत इस बात की हो रही है कि आपके हिसाब से इतनी लाउड टिप्पणी और इतनी लाउड कविता पढ़कर भी आपको मेरी प़़ॉलिटिक्स समझ में नहीं आई और बिना समझे ही अपने विचार व्यक्त कर दिए। कोई अनपढ़ भी ये दो चीज़ें पढ़कर बता देगा कि मेरी पॉलिटिक्स क्या है। लेकिन ज़रा आप भी तो बता दीजिए कि किस प़ॉलिटिक्स के वशीभूत होकर आपने मुझे अपना कोपभाजन बनाया है? मुझे और पाठकों को भी तो समझ में आए कि आपकी प़ॉलिक्स क्या है और ये किस ओर से आ रही है?उदयप्रकाश जी या अरूण माहेश्वरी जी आपको क्या नाराज़गी है, ये भी स्पष्ट कर देंगे तो और अच्छा होगा और उन लोगों से भी जिन्होंने इसे सराहा, पसंद किया और सकारात्मक टिप्पणियाँ कीं.। अगर कोई दिक्कत है तो साफ-साफ कहिए, घुमा-फिराकर कहने से बातें छिपती नहीं हैं और उघड़ती चली जाती हैं।
- Anil Singh Maan gaye Mukeshji aapki Antarashtriya Rajneeti ke pakad ki, Shabdo ke sath behayai kerna lekhko ka dharm ho gaya hai esme aapka dosh nahi hai. Shabdo ko kaise apne anuroop gadhna hai kaise apne fayde ke liye use kerna hai bahut se lekhako, vicharko aur buddhijiviyo ko dekh liya, Unko esme maharat hasil hai. Vartman pariprekshya me agar aap apne shabdo ki bajigari Manishanker Aiyar, Bheem Afzal, Abu Aazmi aur Yakub Kuraishi ke liye karte to jyada rochak hota.
- Anil Singh Aap meri pareshani samajh rahe hai aur mai aapki majboori samajh raha hun sir, Kab Baba marenge aur kab Bail bikenge. M J Akbar ka Lekh aapko adhopatan najar aata hai aur Mahan Aiyar sahab jaise nastik ki baat se aap ektefaq rakhte hai shayad aapki najar me Akabar ka samay aa gaya hai aur Aiyar ka nahi uchit hoga. देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना करीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से - Dayanand Pandey Mukesh Kumar आप जानते हैं कि अकबर भाजपा के प्रवक्ता हैं। फिर भी उन का मोदी को खुश करना आप को उन का अधोपतन लगता है। और मेरा तार्किक सवाल आप को मेरी बौखलाहट लगती है। गनीमत है कि आप ने मुझे भाजपाई घोषित नहीं किया है अभी। मुमकिन है कि आगे की टिप्पणियों में आप ऐसा करें भी। मैं निंदक भी नहीं हूं आप का या किसी भी का । किसी बात पर किसी से असहमत होना , तार्किक बात करना न निंदक होना होता है , न बौखलाना। आप अगर चाहते हैं कि अकबर भी जीतनराम माझी की तरह बात करने लगें तो आप की इस विद्वता और इच्छा का मैं क्या कोई भी क्या कर सकता है ? आप सिर्फ एम जे अकबर को देख रहे हैं , मैंने तो कमलापति त्रिपाठी और श्रीकांत वर्मा से लगायत कुलदीप नैय्यर और एच वाई शारदा प्रसाद और बी जी वर्गीज , चन्दूलाल चन्द्राकर , प्रेमशंकर झा , उदयन शर्मा, संतोष भारतीय , राजीव शुक्ल, सुधीश पचौरी आदि तमाम पत्रकारों की सजदा और चुनौती वगैरह सब कुछ बार-बार देखी है। आगे और भी देखना ही है। हां, मेरी एक ही पालिटिक्स है सच को सच कहना निरपेक्ष भाव से ! और कि आप को कोपभाजन नहीं बनाया है , न ऐसा इरादा है। आप की बात तार्किक नहीं लगी बस इस लिए कहना पड़ा।
- Mukesh Kumar निवेदन है कि अकबर साहब का लेख एक बार पढ़ लें। आपने बहुतों को देखा होगा और मैंने भी देखा है, इसका मतलब ये तो नहीं है कि हम आज की घटनाओं और उनके किरदारों पर चर्चा ही न करें। ये संदर्भ तो बार-बार आएंगे और हमें उन पर बात भी करनी होगी पांडे जी। ये बहाने भी हो सकते हैं उन सवालों को उठाने केजो ख़बरों और दूसरे तरह के शोर में दब जाते हैं। आज से दस-बीस साल बाद भी इन सवालों पर बात होगी, अगर परिस्थिितियाँ ऐसी ही रहीं तो।
- Anil Singh Sir Akbar Sahab ke lekh bhi padha hai, Aur Manishanker Aiyar ka, Bheem Afzal aur Abu Aazmi ki debate bhi dekhi hai tv channelo par Aur Yakub Kuraishi ki ghoshna bhi suni hai, Agar aapne kal es vishay par kuchh apne bhi shabd rakhe hote to aaj mai bilkul aapse ye sawal nahi kerta. Aalochana nahi hai bas chuki aapse baat kerne ka awasar mil raha hai to ek jigyasa matra hai.
- Dayanand Pandey Mukesh Kumar अकबर ने क्या लिखा है यह आप की टिप्पणी से पता चला रहा है। तो ऐसे लेख क्या पढ़ना ? वक्त ही ख़राब करना है। लेकिन हमारी मुश्किल अकबर का सजदा नहीं है भाजपा के आगे , हमारी मुश्किल तो आप की यह इच्छा है मुकेश जी कि, ' मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों !' आप अकबर का फिसलना कैसे रोक लेना चाहते हैं ? जो अकबर एक समय वी पी सिंह के साथ थे , मन्दिर मुद्दे के मद्देनज़र , वही आज नरेंद्र मोदी के साथ हैं तो इस में अचरज कैसा ? राजनीति सिद्धांतों से नहीं ,अवसरवादिता से चलती है। इतना भी नहीं जानते आप ? ग़ालिब क्या वैसे ही लिख गए हैं, हम को उन से वफा की है उम्मीद , जो नहीं जानते वफा क्या है ! भाई इतना नादान होना भी बहुत गुड बात नहीं है।
- Dayanand Pandey Mukesh Kumar खुशवंत सिंह के बारे में हम सभी जानते हैं। इंदिरा गांधी और संजय गांधी के कैसे-कैसे तो कसीदे लिखे हैं उन्हों ने। तो क्या पत्रकारिता और लेखन में उन का जो योगदान है वह भूल जाएंगे लोग ? यही खुशवंत सिंह एक समय जब इंदिरा गांधी से नाराज हुए ब्लू स्टार आपरेशन के मद्देनज़र तो उस समय राज्य सभा में कांग्रेस के सदस्य थे । फिर क्या-क्या नहीं लिखा इंदिरा गांधी खातिर । और जब राज्य सभा में कार्यकाल खत्म होने लगा तो उस राज्य सभा में दुबारा बने रहने के लिए जब कांग्रेस नहीं मानी तो वह अकाली दल और भाजपा में आडवाणी तक की अगुवानी में लगे, सजदे किए। अलग बात है कि किसी ने खुशवंत सिंह को तब घास नहीं डाली । आप यह भी जानते ही होंगे कि एम जे अकबर उन्हीं खुशवंत सिंह के शिष्य हैं। और कि अंग्रेजी ही नहीं हिंदी पत्रकारिता में भी एम जे अकबर के अवदान को भुला पाना किसी के वश का नहीं है । पर अब अकबर पत्रकार नहीं भाजपा के प्रवक्ता हैं , उन को उसी तरह देखिए । और कि भारतीय राजनीति में सिद्धांत , लोक लाज आदि अप्रासंगिक बातें हैं , क्या आप यह भी नहीं जानते हैं ? रावण से उम्मीद करते हैं कि वह सीता से राखी बंधवा ले ? दुर्भाग्य से कभी आप भी जाइएगा राजनीति में तब पता चलेगा आटे-दाल का भाव। अभी तो एक पत्रकारिता में नौकरी संभालने में कितने रंग देखने पड़ जाते हैं , लोग क्या क्या कर गुज़र जा रहे हैं , किसी से कुछ छुपा है क्या ?
- Girish Mishra Pandeyji, most of these turncoats come from my own state Bihar. S.S. Ahluwalia, Dr. C. P. Thakur, Paswan, Akbar, and so on. Please do not forget that even before Haryana, a party was formed by B.P.Mandal, which consisted only of defectors!
- Mohammed Mobin सत्ता की मलाई के आगे सब नतमस्तक है . एम जे अकबर को रस में डूबे रहने दे . बहुत अधिक मीठा खाने वाला एक दिन जरुर शर्करा से पीड़ित होगा .
* * *हिंदुस्तान 'हरामज़ादों' का देश है : मुकेश कुमार
(पिछले महीने, दिल्ली में, केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति ने 'रामज़ादे' बनाम 'हरामज़ादे' वाला चर्चित घोर सांप्रदायिक वक्तव्य अपने एक भाषण में दिया था, उससे कितनों की 'भावनाएं आहत हुईं' इसका हिसाब कौन रखेगा? लेकिन भाजपा की इस मंत्री के इस वक्तव्य से विचलित हो कर चर्चित कवि-लेखक-पत्रकार और मीडियाकर्मी मुकेश कुमार ने जो कविता लिखी, उसे आप दोस्तों से साझा करते हुए खुशी हो रही है. मुकेश कुमार को आप में से बहुत से दोस्त जानते हैं. 'परख', 'सहारा समय', 'न्यूज़ एक्स्प्रेस', 'मौर्या टीवी' के अलावा वे हिंदी की 'हंस', 'कथादेश' आदि प्रमुख पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं. अभी कुछ ही समय पहले, मीडिया उद्योग के भीतरी और बाहरी आयामों को प्रामाणिकता के साथ जांचने-परखने की उनकी संजीदा कोशिश -'कसौटी पर मीडिया' पुस्तक के रूप में राजकमल प्रकाशन से आयी है.
मुकेश कुमार न सिर्फ़ मेरे अच्छे, पुराने दोस्त और साथी हैं, बल्कि वे उसी जगह से आते हैं, जहां का मैं हूं.
उम्मीद है, इस कविता को आप पसंद करेंगे.)
हाँ, हम सब हरामज़ादे हैं.....
पुरखों की कसम खाकर कहता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे हैं
आर्य, शक, हूण, मंगोल, मुगल, अंग्रेज,
द्रविड़, आदिवासी, गिरिजन, सुर-असुर
जाने किस-किस का रक्त
प्रवाहित हो रहा है हमारी शिराओं में
उसी मिश्रित रक्त से संचरित है हमारी काया
हाँ हम सब वर्णसंकर हैं।
पंच तत्वों को साक्षी मानकर कहता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे हैं!
गंगा, यमुना, ब्रम्हपुत्र, कावेरी से लेकर
वोल्गा, नील, दजला, फरात और थेम्स तक
असंख्य नदियों का पानी हिलोरें मारता है हमारी कोशिकाओं में
उन्हीं से बने हैं हम कर्मठ, सतत् संघर्षशील
सत्यनिष्ठा की शपथ लेकर कहता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे हैं!
जाने कितनी संस्कृतियों को हमने आत्मसात किया है
कितनी सभ्यताओं ने हमारे ह्रदय को सींचा है
हज़ारों वर्षों की लंबी यात्रा में
जाने कितनों ने छिड़के हैं बीज हमारी देह में
हमें बनाए रखा है निरंतर उर्वरा
इस देश की थाती सिर-माथे रखते हुए कहता हूँ
कि हम सब हरामज़ादे हैं!
बुद्ध, महावीर, चार्वाक, आर्यभट्ट, कालिदास
कबीर, ग़ालिब, मार्क्स, गाँधी, अंबेडकर
हम सबके मानस-पुत्र हैं
तुम सबसे अधिक स्वस्थ एवं पवित्र हैं
इस देश की आत्मा की सौगंध खाकर कहता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे हैं!
हम एक बाप की संतान नहीं
हममें शुद्ध रक्त नहीं मिलेगा
हमारे नाक-नक्श, कद-काठी, बात-बोली,
रहन-सहन, खान-पान, गान-ज्ञान
सबके सब गवाही देंगे
हमारा डीएन परीक्षण करवाकर देख लो
गुणसूत्रों में मिलेंगे अकाट्य प्रमाण
रख दोगे तुम कुतर्कों के धनुष-बाण
मैं एतद् द्वारा घोषणा करता हूँ-
कि हम सब हरामज़ादे हैं
हम जन्मे हैं कई बार कई कोख से
हमें नहीं पता हम किसकी संतान हैं
इतना जानते हैं पर
जिसके होने का कोई प्रमाण नहीं
हम उस राम के वंशज नहीं
माफ़ करना रामभक्तों
हम रामज़ादे नहीं!
हे शुद्ध रक्तवादियों,
हे पवित्र संस्कृतिवादियों
हे ज्ञानियों-अज्ञानियों
हे साधु-साध्वियों
सुनो, सुनो, सुनो!
हर आम ओ ख़ास सुनो!
नर, मुनि, देवी, देवता
सब सुनो!
हम अनंत प्रसवों से गुज़रे
इस महादेश की जारज़ औलाद हैं
इसलिए डंके की चोट पर कहता हूँ
हम सब हरामज़ादे हैं।
हाँ, हम सब हरामज़ादे हैं।
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