कुछ फुटकर फेसबुकिया नोट्स
- अस्ति और भवति
हिंदी के प्रतिष्ठित कवि , दस्तावेज के संपादक और साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की आत्मकथा अस्ति और भवति आज ही डाक से मिली है। 425 पृष्ठों की यह आत्मकथा नेशनल बुक ट्रस्ट ने छापी है। संगम की सी शालीनता वाले विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की इस आत्मकथा की पहली ही पंक्ति है, ' आत्मकथा लिखना एक प्रकार का अहंकार प्रदर्शन है ।' इसी पैरे की आख़िरी पंक्ति है , ' और मैं चला हूं आत्मकथा लिखने ! दो कौड़ी का आदमी और यह अहंकार !' मित्रों जल्दी ही इस आत्मकथा को पढ़ कर इस की पूरी पड़ताल प्रस्तुत करूंगा। फ़िलहाल तो 75 वें वर्ष में अगले साल प्रवेश करने जा रहे विश्वनाथ जी को इस आत्मकथा के लिए बहुत बधाई , कोटिश: बधाई !
- अमरीकी राष्ट्रपति बराक हुसेन ओबामा और भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी। दोनों ही मुस्लिम विरोध और उन की नफ़रत के अब संयुक्त प्रतिनिधि हैं।
- कभी साड़ी, कभी कंबल ! यह सब गरीबों को मारने के नए औजार बटोरे हैं नेताओं ने।
- अब लीजिए अब की बार अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत में २६ जनवरी मनाएंगे । आप नरेंद्र मोदी को गरियाते रहिए लेकिन विदेश नीति पर तो वह बीस दीख रहे।
- यकीन नहीं होता कि आज़म खान एक ज़िम्मेदार नेता और मंत्री हैं। तानाशाही और अहंकार उन के रोयें रोयें से टपकता है। आज रामपुर में वह मुलायम सिंह यादव का जन्म-दिन एक दिन पहले ही नवाबी शानो-शौकत के साथ मना रहे हैं । पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। समाजवाद का इतना अश्लील प्रदर्शन अभी तक मैं ने नहीं देखा । किसी ने नहीं देखा होगा। लोहिया और उन के समाजवादी विचार को जूता मारने का इस से नायाब तरीक़ा कुछ और नहीं हो सकता। लंदन से बग्घी तो मंगाने का शाही खर्च और शाह मिजाजी अपनी जगह है। इस खर्च-वर्च की चर्चा करते हुए पत्रकारों ने आज़म से पूछ लिया कि इस शाही खर्च के लिए पैसा कहां से आया। यह सुनना था कि आज़म भड़क गए। किसी शातिर माफ़िया की तरह गुरुर में भर कर बेअंदाज़ बोले कि जल गया बिका हुआ मीडिया ! मोदी करते तो ठीक था , हम करें तो गलत ! वह रुके नहीं , बोलते गए कुछ पैसा तालिबान ने दिया , कुछ दाऊद ने , कुछ अबू सलेम ने , कुछ मारे गए आतंकवादियों ने दिया। करेला और नीम चढ़ा शायद इसे ही कहते हैं ! मुलायम सिंह यादव धृतराष्ट्र मत बनिए। आंख खोलिए। यह शकुनी और दुर्योधन जैसे लोग आप को और आप की राजनीति को बिना पानी के डुबो देंगे। इन के लाक्षागृह से बचिए। पांडव तो उस से निकल गए थे। आप फंस गए हैं। मुस्लिम वोटरों के ठेकेदार न जामा मस्जिद के मौलाना बुखारी हैं न आजम खां। थोड़ा-बहुत मुसलमान वोटर अगर बचे रह गए हैं समाजवादी पार्टी के पास तो वह सिर्फ़ और सिर्फ़ मुलायम सिंह यादव के ही नाम से। किसी आज़म या बुखारी के नाम से नहीं। आंख खोलिए मुलायम सिंह यादव। अपनी वर्तमान प्राथमिकताएं बदलिए। पुरानी प्राथमिकताओं पर लौट आइए । मार डालेंगे आप को और आप की राजनीति को यह लोग।
- हिना भट्ट जम्मू कश्मीर की एक नई सम्भावना
कभी हम राज कपूर की मशहूर
फ़िल्म हिना को जानते थे । फिर पाकिस्तान में हिना रब्बानी खार को भी हम
जानने लगे । उन की सुंदरता की चर्चा भी खूब होती थी । कभी वह विदेश मंत्री
रहते हुए बेनज़ीर भुट्टो के बेटे बिलावल की मुहब्बत में भी पड़ीं , विवाहित
होने के बावजूद । और इस की मीडिया में चर्चा भी खूब हुई थी तब के दिनों ।
लेकिन आज अभी आज तक पर डल झील से कश्मीर चुनाव पर जो विमर्श हुआ विभिन्न
राजनीतिक पार्टियों के साथ विमर्श हुआ , उस में भाजपा की हिना भट्ट
सब पर भारी दिखीं। यह भारतीय हिना भी खूब सुंदर हैं , शार्प , बेबाक और
ज़हीन भी। बात और तबीयत की साफ भी। उन से पूछा गया कि क्या आप जम्मू कश्मीर
की मुख्य मंत्री बनेंगी? उन्हों ने वही रटा-रटाया जुमला उछाल दिया कि
पार्टी तय करेगी ।अब जम्मू कश्मीर में कौन चुनाव जीतता है , किस की सरकार
बनेगी यह समय बताएगा । पर हिना भट्ट जम्मू कश्मीर की एक नई सम्भावना हैं,
वादी का ताज़ी हवा, एक नया झोंका। इस में कोई दो राय नहीं ।
- लोग झूठ ही कहते हैं कि कविता के पाठक नहीं हैं । कोई पैतीस साल बाद मैं ने फिर से कविता लिखनी शुरू किया। दो दिन में ही दो कविताएं लिखीं और अपने ब्लॉग सरोकारनामा पर पोस्ट किया। ज़बरदस्त हिट मिली है इन दोनों कविताओं को। वैसी ही हिट जैसे मेरे किसी उपन्यास, कहानी या लेख , इंटरव्यू , संस्मरण या किसी विवादित टिप्पणी को मिलती है । इन कविताओं का पाठक संसार बल्कि इन से भी कहीं ज़्यादा मिला है । मित्रों यह देख कर मैं अब पछता रहा हूं कि हाय इतने दिनों तक मैं ने कविता क्यों नहीं लिखी ! क्यों इस सुख से वंचित रहा !
- कथाक्रम , लखनऊ के कुछ रंग
कथाक्रम में अब की बार भी देश भर के लेखक बटुरे। बहस-तलब विमर्श तो हुआ ही ,
दो दिन तक सब लोग मिले-जुले , बतियाए-गपियाए। बिलकुल होली , दीवाली मन
जाती है लेखकों की कथाक्रम में । कुछ फ़ोटो हाजिर हैं। निवेदिता श्रीवास्तव
, उषा राय , दिव्या शुक्ला और प्रज्ञा पांडेय के सौजन्य से । इन सभी
फोटुओं में मैं तो हूं ही , मुद्राराक्षस , वीरेंद्र यादव , शैलेंद्र सागर,
रवींद्र वर्मा , अखिलेश , सुशील सिद्धार्थ , अखिलेश श्रीवास्तव चमन ,
दिव्या शुक्ला , प्रज्ञा पांडेय, किरन सिंह , उषा राय , शीला पांडेय,
निवेदिता श्रीवास्तव ,रजनी गुप्त ,अरुण सिंह की भी उपस्थिति गौरतलब है।
- हिंदी लेखक एक कायर कौम है और हिंदी का प्रकाशक एक बेईमान कौम ! दुनिया भर में प्रतिरोध का डंका बजाने वाला हिंदी का लेखक हिप्पोक्रेट भी बहुत बड़ा है । पुरस्कारों , फेलोशिप और विदेश यात्राओं के जुगाड़ में नित अपमानित होता यह हिंदी लेखक शोषक और शोषित की बात भी बहुत करता है लेकिन अपने ही शोषण के खिलाफ बोल नहीं सकता । इस बाबत उकसाने पर भी कतरा कर आंख मूंद कर निकल जाता है । दुनिया भर के मजदूरों की बात बघारने वाला यह हिंदी लेखक अपनी ही मजदूरी की बात करना भूल जाता है । प्रकाशक से रायल्टी की बात तो छोड़िए उलटे प्रकाशक को पैसे दे कर किताब छपवाने की जुगत भी करता है । हिंदी का यह लेखक अकसर पाठक का रोना भी बहुत रोता है पर अपने बच्चों को वह पढ़ाता इंग्लिश मीडियम से ही है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का विरोध भी यह हिंदी लेखक बहुत ज़ोर-शोर से करता है लेकिन उस के बच्चे लाखों के पैकेज पर इन्हीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नौकरियां करते हैं। आलम यह है कि अगर कोई बहुत बड़ा फन्ने खां हिंदी लेखक अगर रायल्टी मिलने की बड़ी हुंकार भरता मिले तो उस की हुंकार सुन लीजिए लेकिन यह बात तो जान ही लीजिए कि सिर्फ़ लेखन के दम पर यह हिंदी लेखक अपना और अपने घर के लोगों की चाय का खर्च भी नहीं उठा सकता है । बाक़ी कविता , कहानी , लेख आदि और सेमिनारों, गोष्ठियों-संगोष्ठियों वगैरह में तो अवमूल्यन , पतन और हेन-तेन आदि-आदि की जलेबी छानने और अति बघारने के लिए वह पैदा हुआ ही है । आप तो बस प्रणाम कीजिए हिंदी लेखक नाम के इस जीव को यह सोच कर कि अब तक यह ज़िंदा कैसे है ? बल्कि जिंदा क्यों है ? यह बात भी आप शौक से पूछ सकते हैं। यकीन मानिए वह कतई बुरा नहीं मानेगा । हां यह ज़रूर हो सकता है कि यह सवाल सुन कर वह बहरा हो जाए , इस बात को अनसुना कर दे , कोई झूठ बोल दे , कतरा कर निकल जाए या शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर घुसा ले ! यह अब उसी पर मुन:सर है। आप बस आज़मा कर देखिए।
- संत भिंडरावाला को दुहरा रहा है संत रामपाल ! वैसे न रामपाल संत है , न भिंडरावाला संत था। भिंडरावाला आतंकवादी था , रामपाल लुच्चा और गुंडा है । जैसे भिंडरावाला वाला और उस के गैंग को सेना ने ब्लू स्टार आपरेशन कर मार गिराया था , रामपाल के साथ भी यही सुलूक होना चाहिए । दोनों ही देशद्रोही हैं । किसी भी रियायत की दरकार नहीं होनी चाहिए।
- अब तो इंडिया टी वी ही नहीं , आज तक और ज़ी आदि ही नहीं , एन डी टी वी इंडिया भी नरेंद्र मोदी की आरती गाने लगा है । और ऐसा कौन चैनल है जो मोदी के भजन नहीं गा रहा ? अगर है तो यह बता दे कोई !
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