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Wednesday, 11 September 2013
तो इतिहास आप को कूड़ेदान में भी जगह देने को तैयार नहीं होगा मुलायम सिंह यादव !
चार दशक पुराना नीरज का एक गीत है :
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
तो क्या मु्ज़फ़्फ़र नगर के दंगों को नीरज के इस गीत के दर्पण में भी देखा जाना चाहिए? हालां कि मुलायम सिंह यादव से अब जब मुसलमान नाराज़ हो ही गए है तो मुलायम इसे सांप्रदायिक दंगा के बजाय जातिगत दंगा बता रहे हैं। तो क्या अब देश जातिगत दंगों के लिए भी मुफ़ीद हो गया है? हिंदू-मुस्लिम और हिंदू- सिख के दंगों की ज़मीन अब राजनीतिज्ञों को कम लगने लगी है? जो अब यह एक नया शोशा मुलायम ने छोड़ा है? सच अगर देश जातिगत दंगों की राह पर चल पड़ा तो प्राकृतिक आपदाएं इस आपदा से बहुत पीछे छूट जाएंगी। मुलायम के इस बयान को हमारे समाज-शास्त्री किस आलोक में पढ़ रहे हैं यह तो अभी जानना मुश्किल है पर हमारी सो काल्ड मीडिया ने मुलायम के इस बयान की ज़रा भी नोटिस नहीं ली है। यह और खतरनाक है। और इस से भी ज़्यादा खतरनाक है कि राजनीतिक पार्टियों और राजनीतिक टिप्पणीकारों ने भी मुलायम के इस बयान की अनदेखी की है। पर खुदा न खास्ता मुलायम का यह बयान जो ज़मीनी सच है तो यह देश के ऊपर एक गंभीर खतरे की बड़ी घंटी है।मुलायम के इस बयान की नोटिस ली जानी चाहिए। न सिर्फ़ नोटिस ली जानी चाहिए बल्कि इस खतरे से निपटने के लिए ज़रुरी उपाय भी किए जाने चाहिए। क्यों कि सांप्रदायिक दंगों से भी खतरनाक होंगे जातिगत दंगे। ठीक वैसे ही जैसे परमाणु हमले से भी ज़्यादा खतरनाक हैं रासायनिक हमले। अगर सांप्रदायिक दंगे परमाणु बम हैं तो जातिगत दंगे रासायनिक हथियार साबित होंगे। और दुर्भाग्य से देश इस समय सामाजिक न्याय और आरक्षण के नाम पर जातिगत टुकड़ों में इस कदर विभाजित है कि जातिगत दंगों की ज़मीन बिलकुल तैयार है। खास कर सरकारी नौकरियों और गांवों में इस आंच की इबारत साफ पढ़ने को मिलती है। गांवों में पहले सिर्फ़ छुआछूत थी जातियों और उप-जातियों के बीच। अब छुआछूत गांव से लगभग समाप्त है। उस के कुछ इक्का-दुक्का अवशेष ही मिलते हैं। लेकिन जाति-पाति सर चढ़ कर बोल रही है। सवर्णों में भी, पिछड़ों में भी और दलितों में भी। यह काम किया है राजनीतिक वोट और सामाजिक न्याय के अलंबरदारों ने। राजनीति पार्टियों ने जो ब्राह्मण, ठाकुर, भूमिहार, वैश्य, यादव, कुर्मी, दलित, अति दलित, अति पिछड़ा, मुस्लिम, पश्मांदा मुस्लिम आदि के खांचों में बांध कर जो नियमित रैलियां की हैं, तमाम प्रकोष्ठ बनाए हैं जातियों के नाम पर इन से उपजी बबूल की खेती अब अपने पूरे निखार पर है। इन को रोकने के लिए अदालती आदेश बहुत देर से आया। और अब यह सब जातियों का जाल इतना विस्तार पा चुका है कि इन से छुट्टी पा पाना भारतीय समाज के लिए बहुत जल्दी, बहुत मुश्किल काम है। हालत यह है कि सिर्फ़ नौकरियों में ही नहीं, ठेके पट्टे तक में भी जाति-पाति का खर- पतवार बड़ी तेज़ी से पनप गया है। अब यह किसी कीटनाशक दवा के छिड़काव से भी जल्दी जाता नहीं दिखता। लेकिन यह राजनीतिक जातिवाद दंगे की शक्ल में भी कभी हमारे सामने आ सकता है यह कभी सोचा नहीं गया था।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में खाप पंचायतों का आधिपत्य और उन का तालिबानी रुख किसी से कभी छुपा नहीं रहा है। हिंदू हो, मुस्लिम हो सभी में यह तालिबानी तत्व खतरनाक रुप में उपस्थित मिला है। लेकिन अभी तक यह अमूमन शादी-व्याह, लड़की-लड़का के प्रेम और उन की जघन्य हत्या आदि तक ही सीमित रहा था। लेकिन अगर यह जातिगत वैमनस्य जैसा कि मुलायम कह रहे हैं दंगे की वज़ह बन गया तो निश्चित ही दहला देने वाला है। और ऐसा भी नहीं है कि मुलायम सिर्फ़ मुसलमान उन से नाराज़ है तो मुसलमानों को सिर्फ़ बहलाने या उन को सिर्फ़ झांसा देने के लिए कह रहे हैं। यह ठीक है कि मुलायम भी तमाम राजनीतिज्ञों की तरह तमाम तरह के वोट के भी तलबगार हैं , इस के लिए वह तमाम कलाबाज़ियां और चालाकियां भी आज़माते ही हैं। लेकिन गैर ज़िम्मेदार वह नहीं हैं यह बात तो उन के विरोधी भी मानते हैं। तो ऐसे में मुलायम का यह बयान एक खतरनाक घंटी है। इस को इस आलोक में भी देखा जाना चाहिए। और कि इस से निपटने के फ़ौरी तरीकों पर अमल भी ज़रुरी है।
हालत यह है कि मंडल राजनीति के पहले तक गांवों में या शहरों में भी जैसा कि मैं ने पहले भी बताया कि छुआछूत तो थी, भयानक रुप से थी। यहां तक कि दलित भी मुसलमानों का छुआ पानी नहीं पीते थे। बावजूद इस सब के आपसी सौहार्द्र और सदभाव में कोई दिक्कत नहीं आती थी। मेल-जोल और दुख सुख में एक दूसरे के साथ खड़ा रहना सिखाया नहीं जाता था यह सब अनायास था। जाति- पति सिर्फ़ उठने-बैठने, खाने-पीने तक ही सीमित था। और वह छुआछूत का बुखार भी पढ़ाई-लिखाई और जागरुकता के बाद धीरे-धीरे उतार पर था। और फिर जातीय दंगे आदि की तो बात कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था। लेकिन यह वोट बैंक का राक्षस जब से जातियों में राजा बेटा बन कर उपस्थित हुआ है वह हैरतंगेज़ है जो आज जातीय दंगों की सूरत में हमारे सामने मुलायम के बयान के रुप में ही सही उपस्थित तो है।
हालां कि मुलायम की मौलाना छवि ने अब उन का नुकसान करना शुरु कर दिया है। मुस्लिम और यादव उन के स्वाभाविक वोटर हैं पर यह देश भी उन का है उन्हें यह भी क्या याद दिलाने की ज़रुरत है? मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों की तर्ज़ पर मोदी और आडवाणी प्रधानमंत्री बनने के लिए क्या-क्या उछल कूद नहीं कर रहे हैं यह पूरी दुनिया देख रही है। और कि उन की भद पिट रही है। आशाराम बनाम झांसाराम फेल हैं उन की इस उछल-कूद के आगे। तो क्या मुलायम भी उसी तरह, उसी ज़िद की नाव पर सवार हो कर मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों गाते हुए प्रधानमंत्री पद के लिए सवार नहीं हो गए हैं काठ के घोड़े पर? जिस काठ के घोड़े का नाम तीसरा मोर्चा है। यह इस काठ के घोड़े पर सवारी का ही रोमांच है कि विहिप के साथ दुरभिसंधि कर चौरासी कोसी परिक्रमा की आग लगा कर बुझाने की पटकथा तैयार करते हैं। कामयाब भी हो जाते हैं। मुस्लिम वोट वह भी कांग्रेस के गढ़ में आप की विसात के हिसाब से आप के काबू में आ जाते हैं। ज़िक्र ज़रुरी है कि चौरासी कोसी परिक्रमा के तहत आने वाली सभी संसदीय सीटें कांग्रेस के पास हैं अभी। बस्ती, फ़ैज़ाबाद, बहराइच, गोंडा और बाराबंकी की सभी संसदीय सीटें कांग्रेस के पास हैं और यहां मुस्लिम वोटों की भी बहार है। तो मीडिया के नक्शे ही में सही हिंदू और मुस्लिम वोट यहां ध्रुवीकरण के नतीज़े में भाजपा और सपा में आ गए। और लीजिए मुलायम का वह काठ का घोड़ा सरपट दौड़ पड़ा। तीसरा मोर्चा का घोड़ा। प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर।
लेकिन अयोध्या से सरपट दौड़ कर दिल्ली पहुंचने के ठीक पहले बीच रास्ते में मुज़फ़्फ़र नगर में आ कर यह काठ का घोड़ा झुलस क्यों जाता है? कभी सोचा है मुलायम सिंह यादव आप ने?
इस की भी पटकथा आप ने ही लिखी यह भी क्या भूल गए?
आतंकवादियों के मुकदमे वापस लेने की चुनावी घोषणा पूरी करने पर अमल करने के अमल में आप की नौकरशाही छेद पर छेद छोड़ ही रही थी कि रेत माफ़िया को बचाने के फेर में आप ने दुर्गा शक्ति नागपाल पर जो सांप्रदायिक उन्माद फैलाने का बचकाना आरोप लगाया था वही आप के गले पड़ गया। मुज़फ़्फ़र नगर की नौकरशाही ने आप के 'साइलेंट निर्देशों' पर अमल किया और लड़की छेड़ने वाले मुस्लिम लड़कों पर कोई कार्रवाई करने से आंख मूंद गए। पंचायत पर पंचायत हुई अफ़सर आंख मूंदे रहे। आप के बेटे को केंद्र ने चेताया पर पिता की ख्वाहिशो के आगे बेटा बेबस था। बेटा भी आंख मूंदे रहा। और अब जब आप और आप के पूरे कुनबे के इस मंत्रोच्चार के लाख बार दुहराने के कि यू पी को गुजरात नहीं बनने देंगे, यू पी तो गुजरात बन गया है। मुसलमानों की हत्या की संख्या का ग्राफ़ जब बढ़ गया इस दंगे में, मुसलमान जब नाराज़ हो गए तो आप कह रहे हैं कि यह जातीय दंगा है, सांप्रदायिक नहीं। जब आप का घोड़ा, काठ का घोड़ा झुलस गया है तब?
मुस्लिम संगठन सहित जब कई राजनीति पार्टियां जब अखिलेश यादव की सरकार को बर्खास्त करने की केंद्र से मांग करने लगीं तब? अब आप जागे हैं? तब क्यों नहीं जागे जब एक साथ सभी पार्टियों के मुस्लिम नेता बीते जुमे के नमाज़ के बाद दंगा करने के लिए एक साथ उकसा रहे थे ३० अगस्त को मुज़फ़्फ़र नगर में हज़ारों की भीड़ को। दफ़ा १४४ के बावजूद ! सपा के सचिव राशिद सिद्दीकी, बसपा के कादिर राणा, नूर सलीम राणा और कांग्रेस के सईद-उज़्मा जैसे नेता पार्टीगत मतभेद भूल कर एक साथ हज़ारों की संख्या में उपस्थित मुस्लिम समुदाय को दंगा करने के लिए आह्वान कर रहे थे। दूसरी तरफ़ भाजपा की प्राची साध्वी मुसलमानों को देश छोड़ कर पाकिस्तान चले जाने की हुंकार भर रही थीं। अब जब इंडियन एक्सप्रेस ने एक साथ मुज़फ़्फ़र नगर में खुदी कई कब्रों की फ़ोटो छाप दी तब आप जगे हैं?
जब वहां पत्रकारों और फ़ोटोग्राफ़रों को पीटा जा रहा था तब क्यों नहीं जगे आप? और तो और एक पत्रकार और फ़ोटोग्राफ़र की हत्या हो गई तब भी नहीं जागे? जगना तो तभी चाहिए था। लेकिन आप एक आज़म खान को तो संभाल नहीं सकते? कैबिनेट बैठक से लगातार वह गायब हैं। आफ़िस आते हैं पर कैबिनेट मीटिंग में नहीं। मुख्यमंत्री अखिलेश की उपस्थिति में खुद बोलने लगते हैं मीडिया से। अखिलेश को बोलने ही नहेऎं देते। पार्टी की कार्यकारिणी में भी वह आने से इंकार कर देते हैं। उन के ज़िले रामपुर में कोई डाक्टर काम करने को तैयार नहीं होता। सामूहिक तबादला की मांग कर देते हैं यह डाक्टर। बाकी अधिकारी भी तलवार की धार पर हैं। रामपुर न हो गया हो सरकारी अमले के लिए काला पानी हो गया हो। हद है यह तो। खैर, उलटे मुज़फ़्फ़र नगर दंगे के बाद जिस तरह आप ने अधिकारियों को बुला कर सीधे कमान संभाल ली तो किस संवैधानिक हैसियत से भला? आप ने अपने साथ काजल की इस कोठरी में खड़ा कर अपने बेटे अखिलेश के चेहरे पर भी कालिख पुतवा दी है। अब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मतलब एक नाकारा और गैर ज़िम्मेदार मुख्यमंत्री हो गया है।
दुर्गा शक्ति नागपाल के साथ आप ने जो अन्याय किया यह उसी का प्रतिफल है मुज़फ़्फ़र नगर दंगा। नौकरशाही को आप ने और आप की तुष्टीकरण की नीति ने अपंग बना दिया है। नौकरशाही क्या है, एक शेर की सवारी है। जो मुख्यमंत्री इस सेर की सवारी को साध नहीं पाता वह बरबाद हो जाता है। अखिलेश इस शेर की सवारी को साध नहीं पाए अपने इस डेढ़ साल से अधिक के कार्यकाल में। तो मुलायम सिंह यादव सिर्फ़ आप ही के कारण।
लैपटाप की चमक और बेरोजगारी भत्ते की गमक को भी मुस्लिम तुष्टीकरण और जातीय फंदे में आप की लटकी राजनीति ने डस लिया है। नहीं याद कीजिए कि बीते दिनों आरक्षण नीति में बदलाव के बाद और फिर कोर्ट के डर से उस नीति को रद्द करने से उपजे विवाद को ले कर पिछड़ी जातियों के नाम पर सिर्फ़ यादव समाज के लोग ही क्यों आंदोलित हुए? क्या सिर्फ़ यादव जाति के लोगों का ही नफ़ा-नुकसान था उस नई आरक्षण नीति में? जो यादव नवयुवकों ने इतना हिंसक बना दिया इलाहाबाद जैसे शहर को? कि अपने भी नेता को नहीं बख्शा और उन के घर में भी तोड़-फोड़ कर दी?
ज़्यादातर थानों और तमाम प्राइज़ पोस्टिंग पर सिर्फ़ यादव जाति के लोगों की बहुतायत आखिर कैसे हो जाती है सपा राज में? ठीक वैसे ही जैसे मायावती राज में दलितों की? तिस पर आप कह रहे हैं कि मुज़फ़्फ़र नगर में सांप्रदायिक नहीं जातीय दंगे हुए हैं? नेताओं के भड़काऊ बयान फिर क्या झूठे हैं? अभी तक भड़काऊ भाषण देने वाले नेताओं की गिरफ़्तारी आखिर क्यों नहीं हुई? प्रशासन क्यों हाथ जोड़े खड़ा है उन सब के आगे? मायावती भले भ्रष्टाचार की महारानी हैं, दलित होने के नाम का हद से अधिक दुरुपयोग भी करती हैं यह सच है। पर एक सच यह भी है कि उन के राज में दंगे और अपराध तो काबू रहते ही हैं। यही नौकरशाही जो आप के बेटे के राज में निष्क्रिय दीखती है, बेपरवाह दीखती है, मायावती के राज में उतनी ही चाक-चौबंद क्यों हो जाती है? कभी गौर ज़रुर कीजिएगा बेटे अखिलेश के साथ बैठ कर। यह भी कि सब की रक्षा करने वाली पुलिस भी आप के सपा राज में निरंतर अपराधी पृष्ठभूमि के नेताओं से पिटने के लिए क्यों अभिशप्त हो जाती है और कि बार-बार। कि सी. ओ. रैक तक के पुलिस अफ़सर की हत्या हो जाती है, सिपाही से लगायत पुलिस अधिकारी तक पिटने लगते हैं। मुख्यमंत्री को बार-बार सार्वजनिक बयान देना पड़ता है कि अधिकारी उन की बात नहीं सुनते। और तो और आप के एक भाई रामगोपाल यादव कहते हैं कि केंद्र अपने आई.ए.एस. अफ़सरों को वापस बुला ले ! यह आप किस लोकतंत्र और गणतंत्र में जी रहे हैं? ऐसे ही गणतंत्र कायम रह पाएगा भला? किस को चुनौती दे रहे हैं आप और आप के भाई? क्या यह वही देश है जिस के प्रधानमंत्री होने की आप की चाहत है? फिर तो भाई मुलायम सिंह यादव जी बहुत गड़बड़ है। ऐसे तो न देश चल सकता है न प्रदेश। यह अराजकता तो रोकनी ही पड़ेगी। यह पारिवारिक दंगा भी पहले आप ज़रुर रोकिए। क्यों कि ऐसे तो कोई मुख्यमंत्री नौकरशाही को न तो काबू कर पाएगा, न काम ले पाएगा, न काम कर पाएगा।
बशीर बद्र का एक शेर याद आता है:
चाबुक देखते ही झुक कर सलाम करते हैं
शेर हम भी हैं, सर्कस में काम करते हैं।
मायावती के राज में उत्तर प्रदेश के आई.ए.एस. और आई. पी.एस. अफ़सरों पर यह शेर बिलकुल फ़िट बैठता है। इन अफ़सरों पर काबू कीजिए बिना भेद भाव के तभी शासन कर पाइएगा। लेकिन अगर सर्कस के इन शेरों के कई रिंग मास्टर हो जाएंगे तो यह शेर जंगल के शेर साबित हो जाएंगे और आप खुद मुंह की खाएंगे। आप के प्रधानमंत्री पद की लालसा पूरी करने वाला घोड़ा, काठ का घोड़ा अभी तो मुज़फ़्फ़र नगर के दंगों में झुलस गया है। और ३२ दंगों का सेहरा भी डेढ़ बरस में बांध दिया है आप ने बेटे अखिलेश के सर।प्रधानमंत्री बनने का सपना बुनना बुरी बात नहीं है। लेकिन यह यादव और मुस्लिम की बैसाखी छोड़ कर जो आप चलेंगे तभी यह पूरा हो सकता है। नहीं मुज़फ़्फ़र नगर झुलसते रहेंगे, लाशें जलती रहेंगी, कब्रें खुदती रहेंगी और इतिहास आप को कूड़ेदान में भी जगह देने को तैयार नहीं होगा मुलायम सिंह यादव, यह बड़े-बड़े अक्षरों में कहीं दर्ज कर लीजिए। और कि यह भी कि दंगे दुर्गा शक्ति नागपाल जैसी नौकरशाह नहीं आप के गाज़ियाबाद में आप के उम्मीदवार नरेंद्र भाटी का रवैया, उन का बड़बोलापन, मुज़फ़्फ़र नगर में आप के नेता राशिद सिद्दीकी जैसे नेताओं की महत्वाकांक्षाएं करवाती हैं। दंगे आप की मुस्लिम तुष्टीकरण की बीमारी से उपजते हैं। और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को आप गुजरात की राह पर ढकेल देते हैं। और आप का बेटा अखिलेश इतना नादान है कि दंगे के बाबत बयान देने मुसलमानों की गोल टोपी लगा कर मीडिया के सामने खड़ा हो जाता है। यह कौन सा संदेश है और किस के लिए है? तब और जब आप की कुछ उदार फ़ोटुएं मोदी के साथ खिलखिलाती हुई सब के सामने हैं। यह आखिर है क्या? कांग्रेस के नेता प्रमोद तिवारी एक समय भाषण देते थे कि रात के अंधेरे में मुलायम और कल्याण सिंह मिलते हैं और तय कर लेते हैं कि कितने हिंदू मारने हैं, कितने मुसलमान ! यह नब्बे के दशक की बात है। स्थितियां इतने बरसों बाद भी बदली नहीं हैं।आप के कभी दोस्त कभी दुश्मन की भूमिका वाले यदुवंशी लालू प्रसाद यादव की याद आ गई। वह तब बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। और आप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री। तभी १९८९ में लालकृष्ण आडवाणी का रथ बिहार में उन्हों ने रोक कर तब मुलायम सिंह यादव आप की बड़ी मदद की थी। आडवाणी को अयोध्या नहीं आने दिया था। बिहार में आडवाणी को गिरफ़्तार कर लिया। नतीज़े में पूरे देश में दंगा हो गया। उत्तर प्रदेश में भी। पर बिहर जहां आडवाणी गिरफ़्तार हुए थे बिलकुल दंगा नहीं हुआ। तब के दिनों दूरदर्शन ही था। दूरदर्शन के एक इंटरव्यू में लालू से पूछा गया था कि जब पूरे देश में दंगे हो रहे थे , बिहार कैसे अछूता रह गया? बिहार में दंगे क्यों नहीं हुए? लालू ने तब छूटते ही कहा था कि इस लिए बिहार में दंगे नहीं हुए क्यों कि मैं नहीं चाहता था कि बिहार में दंगे हों। उन्हों ने जैसे दुहराया कि लालू यादव नहीं चाहता था कि बिहार में दंगे हों, इस लिए बिहार में दंगे नहीं हुए। लालू ने साथ में यह बात भी जोड़ी कि जिस दिन बिहार में दंगे हों समझ लेना कि लालू यादव दंगे करवा रहा है।लालू की यह बात सभी मुख्यमंत्रियों को जान लेनी चाहिए। अखिलेश यादव आप को भी और आप के पिता मुलायम सिंह यादव को भी। कि सचमुच अगर कहीं भी दंगा होता है तो बिना मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की मर्जी के नहीं होता। १९८४ में यही काम राजीव गांधी ने किया था और समूचा देश दंगे की आग में तबाह हो गया था। बाद में यही इतिहास नरेंद्र मोदी ने गुजरात में दुहराया। और अब उत्तर प्रदेश में अखिलेश भी उसी कलंकित इतिहास की राह पर हैं। पिता मुलायम को क्या इसी तरह दिल्ली के राजपथ पर भेजेंगे आप अखिलेश यादव? और आप ऐसे ही जाएंगे मुलायम सिंह यादव राजपथ पर? कि दंगा इतना बढ़ जाए कि सेना बुलानी पड़े? मुज़फ़्फ़र नगर में तो अब सेना आई है १९८४ में यह प्रयोग राजीव गांधी ने किया था। कि जब सिखों का भरपूर सफाया हो गया उन की धरती ठीक से हिल गई तभी सेना बुलाई उन्हों ने। अखिलेश ने भी सेना बुलाई ज़रुर पर तब जब मुज़फ़्फ़र नगर जल गया तब। बुलानी थी सेना तो पहले ही क्यों नहीं बुलाई? और यह नौबत भी भला क्यों आने दी? वैसे ठीक यही रहता है और कि शोभा भी यही देता है कि सेना बैरकों में रहे, सड़कों पर नहीं। नीरज को फिर दुहरा दूं मुलायम सिह यादव के लिए:
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
तो मुलायम सिंह जी ज़रा संभल कर। आप की राजनीति को डुबोने के लिए आप के कारपोरेट जगत के मित्र ही काफी हैं। दंगों की आंच में वोट की रोटी मत सेंकिए। नहीं कारवां गुज़र जाएगा और आप के हाथ सिर्फ़ गुबार ही रह जाएगा। नीरज इसी गीत में आखिर में कहते हैं:
माँग भर चली कि एक जब नई नई किरन
ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन
पर तभी ज़हर भरी गाज एक वह गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी
और हम अजान से दूर के मकान से
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
यह नौबत किसी के लिए न ही आए तो ही अच्छा। मुलायम सिंह यादव आप के लिए भी। कि पालकी लिए हुए कहारों को गुज़रता देखना आप के नसीब में भी न हो। मत खेलिए निर्दोषों की जान से। वह दंगा चाहे सांप्रदायिक हो या जातीय, दंगा, दंगा ही होता है। आप लाशों पर चढ़ कर मोदी की राह पर मत चलिए। प्रधानमंत्री बनने की और भी तरकीबें हैं। हताश मत होइए। बशीर बद्र का एक शेर नज़्र है आप की खिदमत में :
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
क्या करें एक संकट यह भी है कि देश में आज एक गांधी नहीं है जो नोआखली जैसा भयानक दंगा उपवास कर के खत्म करवाने का साहस और क्षमता रखता हो ! अब तो बिना कमांडो के कोई नेता चलने में भी डरता है। आखिर मुज़फ़्फ़र नगर में अभी तक प्रतिपक्ष और पक्ष क्यों अनुपस्थित है? उपस्थित है तो सिर्फ़ दंगा कराने एकजुट हुए सभी पार्टियों के नेता । बशीर बद्र फिर याद आते हैं:
यहां एक बच्चे के खून से जो लिखा गया है उसे पढ़ें
अभी कीर्तन तेरा पाप है, अभी मेरा सज़दा हराम है ।
है कोई सोचने वाला ऐसा भी, अभी भी?
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राजनीति
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पर उपदेश कुशल बहुतेरे...इन्ही मुलायम सिंह जी ने कभी कहा था कि किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री यदि चाहे तो एक घंटे में दंगों पर काबू पा सकता है। इनको तीस से अधिक मौके मिले इसे साबित करने के लेकिन नाकाम रहे, क्योंकि दूसरो पर उंगली उठाते समय ये महाशय ये भूल गये कि बाकी तीन उंगलियां इनकी ओर थी...खैर इतिहास तो इतिहास ही है, वर्तमान के खलनायक तो साबित हो गी गये।
ReplyDeleteपाण्डेय जी,
ReplyDeleteपढ़ा और बखूबी पढ़ा. आप भी मीडिया की उसी जमात में शामिल हो गये हैं जो हर दंगा, हर गुनाह के साथ मोदी का नाम चस्पा किए बगैर नहीं रहता. पर आपकी चिन्ता जायज है, बाकी भँड़ुआ बन बैठे मीडिया वालों से अलग जिनको सिर्फ अपनी दुकानदारी की चिन्ता रहती है. पर यह भी सोचता हूँ कि आप बेकार में चिंतित हैं. मुलायम सुधरने वाले नहीं. सत्ता सुन्दरी की अकट अभिलाषा उनको अंधा कर चुकी है. याद आती है एक भोजपुरी कवि हरेन्द्र हिमकर की कुछ पंक्तियाँ
झलके जब काम कलश तन में
सिमटे दुनिया अँगूठी नग में.
आँखिन के जोत बढ़ल होला,
नहतर पर घाव चढ़ल होला.
जब लगे रोग ई ना छूटे,
चाहे कतनो गोला फूटे.
पल के बिछोह लागे पहाड़,
चिंता में सूखे हाड़ हाड़.
मुलायम को प्रधानमंत्री की कुर्सी नजर आ रही है और वह कुछ भी सुनने को तइयार नहीं.
काश, सत्ता में बैठे हर राजनीतिज्ञ को आपके इस लेख से कुछ सीखने की प्रेरणा मिले.
आपका,
ओमप्रकाश
mai om prakash ji aapkey mat say sahmat hoon.janey kyun pratyak sandarbh mein MODI ka samput jaroor lag jata hai?kya bharat ki azadi kay bad gujrat kay atirikt Danga nahi huwa? yeh leaders ki lalach aur rugna mansikta hi hai aaj tak SAMPRADIEKTA ki koi paribhasa nahi tai ho saki.yehana minority ka dhruvikaran PANTHnirpekshta hota hai aur majority ka dhruvikaran sampradikta hota hai akhir kab tak leather coin chalega ? kursi GOSWAMI kay peechay bhagti hai beggers kay aagay nahi..,...yad rakhey Kal balwan hota hai.....jo tatasth hotey hai unka bhi itihas likhta hai......Mahendra pathak Faizabad
ReplyDeleteBhai Pandey Ji Sundar lekh ke liye badhai. Mulayam Sinh to communal politics ke sabse bade neta hain aur hamesha se rahe hain, Vishesh Jatiyon aur dharm vishes ke logon ko out of the way madad karna unki fitrat haai.
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