दयानंद पांडेय
नई धारा के राइटर्स रेजिडेंस में मदिरा की यह खुली हुई बोतल बीते जून की किसी तारीख़ की है। इस फ़ोटो ने ही फ़ेसबुक पर उपस्थित क्रांतिकारियों के क़ानूनी कार्रवाई की तरफ जाने के लिए हाथ और रास्ते बांध रखे हैं। सब जानते हैं कि बिहार में क़ानूनी रूप से शराब बंदी है। तीनों पक्ष फंस सकते हैं। नई धारा , कृष्ण कल्पित और शिवांगी गोयल। हालां कि कोई फांसी किसी को नहीं होगी। कुछ जुर्माना भर लगेगा। मामला रफा-दफा। लेकिन बात रिकार्ड में आ जाएगी। नज़ीर बन जाएगी। सो सारी क्रांति , सारी आग फेसबुक पर लगी हुई है। लोगबाग इस बहाने अपने-अपने को निपटाने में लगे हुए हैं।
आग सुलगी पटना से। दहकी दिल्ली में। फिर तो हर कोई हर-हर गंगे करने लगा। जिस को लिखने का शऊर नहीं है , वह भी , जिस को है वह भी। कृष्ण कल्पित , अशोक वाजपेयी के परम निंदक हैं। अशोक वाजपेयी के एक शिष्य प्रभात रंजन की भी वह जब-तब ऐसी-तैसी करते रहते हैं। गीताश्री की भी। कृष्ण कल्पित को निपटाने का इस से बढ़िया अवसर क्या हो सकता है। तो दिल्ली में पहली , दूसरी पोस्ट प्रभात रंजन और गीताश्री की ही फ़ेसबुक पर आई। फिर तो कृष्ण कल्पित की जैसे शामत ही आ गई। हम हुए तुम हुए कि मीर हुए / सब इसी ज़ुल्फ़ के असीर हुए। कृष्ण कल्पित वैसे ही बदनाम प्राणी , अब और बदनाम। सारी बोफ़ोर्स कृष्ण कल्पित की ओर तैनात हो गईं। क्या स्त्री , क्या पुरुष। बात ही ऐसी थी। बहुत कम लोग ख़ामोश रहे। कम लोग नहीं , बल्कि होशियार लोग। अपन मस्त हो के देखा , इस में मज़ा नहीं है / हुसियारी के बराबर कोई नशा नहीं है। कभी इस शेर को मजा ले कर सुनाने वाले उदय प्रकाश जैसे लोग भी कृष्ण कल्पित के पक्ष में कूद गए। इस आशंका के साथ कि कृष्ण कल्पित कहीं आत्महत्या न कर लें। अब बोफोर्स उदय प्रकाश की तरफ गरजने लगीं। राजस्थान का नमक अदा करने ओम थानवी भी कूदे , उदय प्रकाश को संबोधित करते हुए। थोड़ा इधर भी , थोड़ा उधर भी। असग़र वज़ाहत पहले ही बालिका के पक्ष में सर्टिफिकेट जारी कर चुके हैं। प्रलेस , जसम टाइप लोगों ने नाखून कटवा कर शहीद बनने की रस्म पूरी कर ली है। काठ की तलवारों को अब छुटभइये भांज रहे हैं। हुसियार लोग अभी भी प्रेक्षक दीर्घा में उनींदे उबासी ले रहे हैं। ऐसे जैसे तीतर-बटेर लड़ रहे हों। भगवती चरण वर्मा की कहानी दो बांके याद आ गई है और उस का एक सवाद भी :
मुला स्वांग ख़ूब भरयो !
दिलचस्प यह कि प्रभात रंजन और उदय प्रकाश दोनों ही अशोक वाजपेयी शिविर के शिष्य हैं। और दोनों आमने-सामने। प्रभात रंजन ने तो एक पुरस्कार के बाबत ऐलान कर दिया है कि चूंकि उदय प्रकाश निर्णायक मंडल में हैं सो मैं उस पुरस्कार से अपनी किताब ही वापस ले रहा हूं। अशोक वाजपेयी लेकिन अपने ही शिविर के शिष्यों के बीच लगी आग में कृष्ण कल्पित को जलते हुए देख कर आनंद की ख़ामोशी में टुन्न हैं। आनंद से बड़ी मदिरा भला कौन होती है।
क़िस्सा कोताह यह कि पटना में बालिका और कृष्ण कल्पित के बीच जो भी कुछ घटा , उसे उस ने फ़ोन पर एक मित्र के साथ साझा किया। उस मित्र ने मिर्च मसाला लपेट कर किसी और मित्र को परोसा। उस मित्र ने पटना की निवेदिता झा को बताया। निवेदिता झा ने मौखिक लंतरानी को लिखित बना कर रात में ही फ़ेसबुक पर पोस्ट कर दिया। कृष्ण कल्पित की ऐसी-तैसी की। फिर दूसरे दिन शालिनी श्रीनेत ने भी कृष्ण कल्पित की जय हिंद की। जंगल में आग लग चुकी थी। 26-27 जून को लपटें उठने लगीं। कृष्ण कल्पित जयपुर रवाना किए गए कि हुए , वही जानें।
इस बीच लेकिन वाम टोले ने जो सक्रियता दिखाई वह हैरतंगेज थी। पटना की गंगा में शायद इतना पानी नहीं होगा , जितना इस प्रसंग की नाव में पानी भरा गया है। पर परिणाम क्या है ?
ग़लत हुआ , जो भी उस बालिका के साथ घटा पर मामला किस विस , स्पर्श आदि तक का ही बताया जा रहा है। हालां कि यह भी अपराध है। निंदनीय है। कोलकाता में अभी लॉ स्टूडेंट के साथ रेप हुआ है। उस पर यह वाम टोला सिरे से ख़ामोश है। क्यों है ? बीते साल कोलकाता में ही एक डाक्टर के साथ रेप हुआ , हत्या भी हुई। संदेशखाली हुआ। मुर्शिदाबाद हुआ। बांग्लादेश हुआ। क्या वहां स्त्री , स्त्री नहीं थी ? पर सब के सब सब पर सिरे से ख़ामोश। शायद इस लिए कि वह स्त्रियां नहीं थीं। कि बांग्लादेश की स्त्रियां , स्त्रियां नहीं हैं। लेकिन ख़ामोशी का अजब मंज़र है। ऐसा कोहरा है , ऐसी धुंध है कि पूछिए मत। इन की इस सेलेक्टिव चुप्पी पर क्या किया जाए ?
वाम टोला हालां की इस पटना के राइटर्स रेजीडेंसी प्रसंग पर कई टुकड़ों में बंट गया। खंड-खंड हो गया पर इन का पाखंड नहीं गया।
और तो और महिलाओं को भी क्या कहें ?
मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना। कुछ स्त्रियों की पोस्ट में एक शब्द देखा डी डी। पहली बार पढ़ा तो लगा कि दीदी लिखना चाहती रही होंगी मोहतरमा। टाइप ग़लत हो गया होगा। लेकिन फिर जब कई जगह यह डी डी लिखा देखा तो पता किया कि डी डी है क्या बला ! मालूम हुआ कि फेमिनिस्ट स्त्रियों को डी डी कहने का चलन है। एक नया ज्ञान मिला। ख़ैर , यह डी डी टाइप कुछ स्त्रियां मेरी पोस्ट पर भी भड़कती हुई आई-गईं। पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी वाले आशुतोष आए। मुझे धमकाने लगे कि विक्टिम की आइडेंटिटी आप ने बता दी है। आप के ख़िलाफ़ कार्रवाई हो सकती है। इतना ही नहीं , आशुतोष ने लिखा कि आप की पोस्ट पर लाइक और कमेंट करने वालों पर भी नज़र है। अजब धमकी थी। भरपेट रिप्लाई दिया उन्हें , फिर वह पलटे नहीं। कोई रिद्धि श्री आईं। अंग्रेजी बूकती हुई। अपनी प्रोफ़ाइल लॉक कर अंग्रेजी में सूक्तियां भाखती और धमकाती हुई। भरपेट भोजन के बाद सारे कमेंट मिटाती हुई , ब्लॉक कर चंपत हो गईं। और भी कई डी डी आईं। इस पूरे प्रसंग में सब से दिलचस्प आमद निवेदिता झा की रही। गौर तलब है कि पटना राइटर्स रेजीडेंसी की सूर्पणखा निवेदिता झा ही हैं। ख़ैर आईं वह वह मुझे बलात्कारी का पक्षकार बता कर हुरपेटने लगीं। किसी भैंस की तरह। मैं उन्हें राशन , पानी देता रहा। पर अचानक वह मुझे ब्लॉक कर चंपत हो गईं। उन को एक रिप्लाई दे रहा था , नहीं पोस्ट हुई तब यह समझ आया। फिर उन को अलग से कमेंट लिख कर यह रिप्लाई लिखी :
मित्रों , Nivedita Jha नाम की एक अराजक औरत अनर्गल टिप्पणियां कर के मुझे ब्लॉक कर के भाग गई। इस अराजक महिला की कुंडली बांचना ही चाहता था , जवाब लिख ही रहा था कि ब्लॉक कर के भाग गई। इस लिए उस को रिप्लाई नामुमकिन हो गई है। आप मित्रों में से कोई उस Nivedita Jha की मित्र सूची में हो तो मेरी यह रिप्लाई उस तक पहुंचा दे। बता दीजिए कि बिना तथ्य और तर्क के कुछ नहीं लिखता।
अच्छा ?
अपने बारे में भी कुछ जानती हैं ? जानती हैं कि आप किस के पक्ष में हैं ?
बताऊं ?
इस प्रसंग में जो आप की भूमिका है , उस का गुणगान शुरू कर दूं ?
फिर कैसा लगेगा ?
सो , अपनी औक़ात और हैसियत में रहिए !
समय आने पार आप की कुंडली बांच दूंगा। यह जो गिरगिट वाला चेहरा है न आप का , इधर भी , उधर भी उस की कलई उतर जाएगी। रंगा सियार हो !
असल में होती हैं कुछ अराजक स्त्रियां , जो अपने स्त्री होने के गुमान में बदतमीजी का लाइसेंस लिए घूमती हैं। स्त्री होने के लोकलाज में लोग बर्दाश्त कर लेते हैं। तो यह अपनी इस बदतमीजी को अपना अराजकता का हथियार बना लेती हैं। हर किसी पर आजमाती फिरती हैं।
-------------------------
और यह निवेदिता झा ?
राइटर्स रेजीडेंसी , पटना की इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर सब से पहली पोस्ट निवेदिता झा की थी। कई पोस्ट लिखी निवेदिता झा ने। लेकिन इतनी डरपोक है निवेदिता झा कि कृष्ण कल्पित के एक कल्पित शो काज नोटिस को देखते ही सब कुछ मिटा डाला। निवेदिता झा की वाल पर अब राइटर्स रेजीडेंसी , पटना से संबंधित एक भी पोस्ट नहीं है। पर 6 दिन पहले एक पोस्ट है शालिनी श्रीनेत की जिसे शालिनी ने निवेदिता झा को टैग करते हुआ लिखा है कि कल निवेदिता ने पोस्ट लिखी थी।
अब कुछ लोगों ने मुझे लगातार धमकी दी , आरोप लगाया कि मैं ने विक्टिम की आइडेंटिटी क्यों डिस्क्लोज की ? बारंबार वामी टोले के लोगों और डी डी लोगों ने मुझ पर यह आक्षेप लगाए हैं। इन मतिमंदों को अब कौन बताए कि विक्टिम , अगर कोई है , तो उस की आइडेंटिटी मैं ने नहीं , नई धारा ने पोस्टर बना कर डिस्क्लोज कर रखी है। पहले ही से कृष्ण कल्पित और शिवांगी गोयल की फ़ोटो सहित दोनों का नाम लिखा हुआ है। मुझे किसी की आइडेंटिटी को डिस्क्लोज करने की ज़रूरत भी क्यों थी ? दिन को बताना पड़ता है क्या कि मैं दिन हूं ? या कि रात हूं ? सुबह , शाम , दोपहर हूं।
अरे मतिमंदों , स्त्रियों का सम्मान करता हूं। बहुत करता हूं तो इस लिए कि एक स्त्री मेरी मां है , एक पत्नी है , बहन है , बेटी है। स्त्री है तो मैं हूं। हम सब है। स्त्री और धरती न हो , तो हम हैं कहां ?
लेकिन मतिमंदों को , वाम टोले के लोगों को , डी डी लोगों को आज तक कोई समझा पाया है भला , जो मैं अब इन्हें समझाऊंगा ?
क्यों समझाऊंगा , इन एजेंडाधारियों को ? इच्छाधारी नाग से भी ज़्यादा ख़तरनाक़ हैं यह लोग।
कल पटना के एक मित्र से बात हो रही थी , इसी राइटर्स रेजीडेंसी प्रसंग पर। तो वह अचानक बोले , शराबी के तो सौ गुनाह यहां माफ़ कर देते हैं लोग लेकिन चरित्र से गिरे लोगों के एक भी नहीं।
इस प्रसंग में जो सब से दुःखद बात हुई है , वह यह कि शिवांगी चाहे जैसी हो , हर किसी ने उस की बदनामी की इबारत लिखी है। चाहे पक्ष में लिखा हो या प्रतिपक्ष में। बदनाम तो वही हुई है। कालिख तो उसी पर लगी है। कृष्ण कल्पित का क्या है , वह तो अपनी बदनामी की कालिख लिए फिरते हैं। उस कालिख को बेचते फिरते रहते हैं। हर किसी को लिख-लिख कर बताते फिरते हैं। निवेदिता झा , गीताश्री , प्रभात रंजन , आशुतोष आदि तमाम लोगों ने कृष्ण कल्पित का क्या बिगाड़ लिया ? बताएं तो सही ! एक बदनाम आदमी की बदनामी का ग्राफ थोड़ा और बढ़ा दिया। बस !
पर शिवांगी का ?
जाने सच है कि झूठ , नहीं जानता पर पटना के कुछ लोगों का कहना है कि कुछ लोग शिवांगी को ले कर महिला आयोग गए थे। वहां दस्तख़त और शराब के प्रश्न पर यह लोग उलटे पांव लौट आए। सवाल है कि शिवांगी गोयल और उन के जो भी साथी , शुभ चिंतक हैं , अभी तक पुलिस में एफ आई आर दर्ज करवाने क्यों नहीं गए ? बिहार में चुनाव का मौसम है , फौरन कार्रवाई होगी। कृष्ण कल्पित ने कभी लिखा है कि नीतीश कुमार कवि भी हैं और कि उन के पुराने मित्र। अपने फ़ोटो भंडार से वह नीतीश के साथ अपनी एक बुलंद फोटो भी जब-तब फेसबुक पर चिपकाते रहते हैं।
तो क्या नीतीश कुमार कृष्ण कल्पित ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई रोक देंगे ?
नीतीश की जगह अगर जंगल राज के नरेश लालू यादव होते तो हो सकता है , वह रोक देते। पर नीतीश से यह उम्मीद नहीं होती। बाक़ी राजनीति है , लेखकों की राजनीति है।
लेकिन शिवांगी को जान लेना चाहिए कि लेखक या लेखिका बड़े होते हैं , अपनी रचना से। विवाद से नहीं। विवाद से होते तो आज की तारीख़ में इसी पटना की ज्योति कुमारी आज बहुत बड़ी लेखिका होतीं। ज्योति कुमारी का भी ऐसे ही कुछ लोगों ने इस्तेमाल किया और राजेंद्र यादव के ख़िलाफ़ खड़ा कर एफ आई आर दर्ज करवा दिया। राजेंद्र यादव भी औरतों के मामले में बहुत बदनाम थे पर उन से ज़्यादा बदनाम ज्योति कुमारी हुई। ज्योति कुमारी को लोग लेखन के लिए नहीं , राजेंद्र यादव के साथ और विवाद के लिए जानते हैं। राजेंद्र यादव को लोग पहले भी जानते थे , आगे भी जानते रहेंगे। पर ज्योति कुमारी को लोग आहिस्ता-आहिस्ता भूल जाएंगे। शिवांगी गोयल को भी लोग जानेंगे तो अगर उस के पास कोई रचना होगी तभी। अभी तो नहीं है शिवांगी के पास ऐसी कोई रचना। आगे की राम जाने। सभी लेखिकाएं महादेवी वर्मा जैसा सम्मान चाहती हैं। पर यह नहीं समझतीं का महादेवी जैसी रचना भी चाहिए होती है। वह गरिमा भी। महादेवी वर्मा का दांपत्य खटाई में था। अकेली रहती थीं। पर कभी कोई एक अंगुली उन पर कभी नहीं उठी। निराला जैसे अराजक व्यक्ति को भी वह अपने स्नेह की डोरी में बांध कर शांत रखती थीं। निराला शराब बहुत पीते थे। पर महादेवी उन के साथ बैठ कर शराब नहीं पीती थीं। राष्ट्रपति से लगायत प्रधान मंत्री तक महादेवी के सम्मुख नत रहते थे। विनत रहते थे।
मैं नीर भरी दुख की बदली!
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झारिणी मचली!
मेरा पग-पग संगीत भरा
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा
नभ के नव रंग बुनते दुकूल
छाया में मलय-बयार पली।
मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल
चिन्ता का भार बनी अविरल
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना
पथ-चिह्न न दे जाता जाना;
सुधि मेरे आगन की जग में
सुख की सिहरन हो अन्त खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उमड़ी कल थी, मिट आज चली!
ऐसा सरल लेकिन सर्वकालिक गीत लिखने के लिए बड़ी साधना चाहिए होती है। फेसबुकिया विवाद की फंफूद से किसी को कोई प्रसिद्धि नहीं मिलती।
स्त्रियों का सर्वदा सम्मान है। पर यह प्रश्न तो बनता ही है कि आख़िर सहमति से बनाए गए संबंध स्वार्थ के संकट में आते ही बलात्कार में कैसे और क्यों कनवर्ट हो जाते हैं ? ऐसे अनेक उदाहरण हैं। इसी पटना की ज्योति कुमारी , दिल्ली में राजेंद्र यादव के साथ उन के घर रहती थी। उन के साथ रोज हंस के दफ़्तर आती थी। स्वस्थ आदमी के बीमार विचार पुस्तक में सहयोगी लेखिका बनी। पर अक्षर ट्रस्ट पर काबिज नहीं हो सकी तो राजेंद्र यादव और उन के ड्राइवर को अचानक बलात्कारी घोषित कर दिया। कमलेश जैन के सहयोग से एफ आई आर हो गई। और जो-जो नहीं होना था , सब हो गया। हालां कि उम्र के उस मोड़ पर राजेंद्र यादव क्या ही बलात्कार कर पाए होंगे , वही जानते होंगे। तभी के दिनों अनिल यादव से एक अनौपचारिक बातचीत में राजेंद्र यादव ने स्वीकार किया था कि इस उम्र में छूने , टटोलने वगैरह के अलावा क्या ही हो सकता है। अलग बात है किसी अन्य अवसर मन्नू भंडारी ने लिखा था कि राजेंद्र यादव किसी से बलात्कार नहीं कर सकते। हां , छलात्कार अवश्य कर सकते हैं। उसी पटना में आलोक धन्वा ने असीमा भट्ट से बेमेल विवाह कर लिया। बाद के दिनों में असीमा भट्ट आलोक धन्वा पर किसिम - किसिम के आरोप लगा कर अलग हो गईं। मुंबई में रहती हैं अब। अज्ञेय की पहली पत्नी को जब तलाक़ लेना हुआ तो उन्हों ने अदालत में अज्ञेय पर नपुंसक होने का आरोप लगा दिया। अज्ञेय ने इस आरोप को सहर्ष स्वीकार कर लिया। तलाक़ हो गया। अगर ऐसा ही कुछ आरोप अज्ञेय ने भी लगा दिया होता तो ? स्त्री अस्मिता ख़तरे में आ गई होती।
अज्ञेय की आई ए एस पत्नी और विदुषी कपिला वात्स्यायन ने तो कभी ऐसा आरोप उन पर नहीं लगाया। इला डालमिया ने भी नहीं। जिन के साथ अज्ञेय आखिर तक दिल्ली के केवेंटर लेन के विशाल बंगले में रहते रहे। अज्ञेय से और भी स्त्रियां जुड़ी रहीं। अज्ञेय के लिए लोग कहते थे कि जिस को भी गहा , बांहों में गहा। पर किसी भी अन्य स्त्री ने अज्ञेय पर ऐसा लांछन नहीं लगाया। इतना ही नहीं अज्ञेय का जब निधन हुआ तो कपिला वात्स्यायन और इला डालमिया आपस में अंकवार भर कर , गले मिल कर रोईं। दोनों साथ ही उन के शव के पास बैठीं और उन को सम्मान पूर्वक मिल कर अंतिम विदाई दी। ऐसे क्षण की यह फोटुएं देख कर मन श्रद्धा से भर जाता है। अनेक लेखकों के जीवन में अनेक स्त्रियां रही हैं , रहती रहेंगी। अच्छा लेखिकाओं के जीवन में क्या अतिरिक्त पुरुष नहीं हैं ? अनेक पुरुष नहीं हैं ? पढ़िए कभी कमलेश्वर की आत्मकथा। राजेंद्र यादव की मुड़-मुड़ कर देखता हूं। कई स्त्रियों ने अपनी आत्मकथा में अपने पुरुष मित्रों का अजब - गजब वर्णन किया है। कि अज्ञेय की कविता कितनी नावों में कितनी बार याद आ जाती हैं।
पर स्त्रियों का यह जो डी डी अवतार हुआ है , अद्भुत है। उदय प्रकाश और मंगलेश डबराल जैसे लोगों पर भी कुछ स्त्रियों ने अनौपचारिक रूप से ऐसे आरोप लगाए हैं। नीलाभ पर भी उन की दूसरी पत्नी ने सेक्स की दवा खाने पर भी क़ामयाब न रहने की बातें लिखीं। शायद असीमा भट्ट ने भी आलोक धन्वा पर इस तरह के आरोप लगाए थे। कथादेश में धारावाहिक लिख कर। और अब तो कुछ स्त्रियां ऐसी हो गई हैं कि लोग उन्हें देखते ही कतरा जाते हैं। इस भय से कि जाने कब , क्या आरोप लगा दें। स्त्रियों के साथ परिचय अब काजल की कोठरी बन गया है कुछ मुट्ठी भर स्त्रियों के कारण। सामान्य जन को भी नीला ड्रम से शिलांग इत्यादि का भय भयानक रूप से भयाक्रांत किए हुए है। सब के पास हनुमान जैसी शुचिता , नैतिकता , बुद्धि और बल नहीं है कि सुरसा राह रोके तो लघु रूप धर मुंह में प्रवेश कर , कान से निकल जाएं। काजल की कोठरी से कालिख मुंह पर लगा कर ही निकल रहे हैं।
लखनऊ में फ़िल्म निर्देशक मुजफ्फर अली रहते हैं। उन की चार पत्नियां हैं। चारों हिंदू हैं। अभी वह कैसरबाग़ की अपनी हवेली में राधा सलूजा के साथ रहते हैं। एक बार उन से बात चली तो कहने लगे बाकी सभी से भी मिलता रहता हूं। उन का ख़याल रखता हूं। बच्चों का भी। एक बड़े संपादक रहे हैं , विनोद मेहता। लखनऊ के ही रहने वाले थे। उन की आत्म कथा भी है लखनऊ ब्वाय नाम से। अब नहीं रहे। पर उन की भी तीन पत्नियां थीं। एक बार बाक़ी की बात चली तो हंसे और बोले , हम दोस्त हैं अब भी। मिलते रहते हैं। सोते रहते हैं।
मोहन राकेश की चौथी पत्नी अनीता राकेश की आत्मकथा है चंद सतरें और। आज की लेखिकाओं को उसे ज़रूर पढ़ना चाहिए। जानना चाहिए कि असहमति की भी एक सभ्यता होती है। चंद्रकिरण सोनरिक्सा की पिंजरे की मैना , प्रभा खेतान की अन्या से अनन्या और अजित कौर की खानाबदोश भी। बहुत यातना जी है , इन लेखिकाओं ने अपने प्रेमियों से जो बाद में पति भी बने। मन्नू भंडारी की आत्मकथा भी कम नहीं है। महादेवी वर्मा का दांपत्य भी सर्वदा खटाई में रहा। अभिव्यक्ति की आज़ादी तो उन के पास भी थी। लेकिन लगता है आज की स्त्रियां सत्तर के दशक में आई मलयाली लेखिका कमला दास की आत्मकथा माई स्टोरी की मारी हुई हैं। रमणिका गुप्ता , कृष्णा अग्निहोत्री आदि की आत्मकथा की मारी हुई हैं। स्वछंदता में पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हैं। फिर चाहती हैं कि स्त्री वाली सुरक्षा और सम्मान भी मिले। मनुस्मृति में वर्णित : यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।/ यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। वाला सम्मान भी मिले। ज़िक्र ज़रूरी है कि सम्मान स्वार्थ से , देह से या पैसे ख़रीदने की वस्तु नहीं है। इसी लिए मातृत्व का सम्मान है। पूरी दुनिया में है। यह स्त्री का सम्मान है।
लेकिन आजकल की स्त्री लेखिकाएं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की इतनी मारी हुई हैं कि अपने मातृत्व को भी , गाली दे रही हैं। अपनी मातृ सत्ता को भूल गई हैं। भूल गई हैं कि मां ही पुरुषों का कुम्हार होती हैं। जैसा गढ़ती हैं , पुरुष , वही हमारे सामने आता है। ऐसे असभ्य पुरुष का निर्माण करने वाली स्त्रियों को इस बिंदु पर भी अवश्य विचार करना चाहिए। विचार करना चाहिए कि प्रकृति ने छुरा और खरबूजा का उदाहरण ऐसे ही नहीं बना रखा है। पर क्या कीजिएगा कुछ शातिर पुरुषों ने औरतों को भोगने के लिए एक बड़ा जुमला चला दिया मृदुला गर्ग के चितकोबरा पीरियड में कि स्त्रियों की देह उन की अपनी है , जैसे चाहें इस्तेमाल करें। मूर्ख स्त्रियां इस बहकावे में दौड़ गईं। अभी भी दौड़ती जा रही हैं। रुकने वाली नहीं हैं।
यह भी सही है कि पुरुष , स्त्रियों को सभ्य और सुरक्षित समाज देने में अभी तक असफल रहे हैं। लेकिन स्त्रियां भी पितृ सत्ता की गालियां दे कर अपना समाज भी बदरंग करने में बहुत पीछे नहीं हैं। दोनों को मिलजुल कर अपने समाज को ख़ास कर लेखक समाज को सभ्य और बेहतर बनाना चाहिए। भारतीय जनमानस राजनीति , फिल्म , क़ानून आदि समाज की अपेक्षा लेखक समाज को ज़्यादा सम्मान से देखता है और लेखक समाज से नैतिकता , शुचिता और आदर्श की सर्वदा अपेक्षा रखता है।
स्त्रियों का खुले कपड़े पहनना , शराब , सिगरेट पीना , इन के , उन के साथ घूमना अब सामान्य बात हो चली है। यह कोई टैबू नहीं रहा अब। फिर भी ऐसी स्त्रियों का प्रतिशत अभी भी बहुत कम है। ऐसी अनेक लेखिकाओं और पत्रकार स्त्रियों को जानता हूं जो ख़ूब धूम-धड़ाके से शराब , सिगरेट पीती हैं। कुछ तो डट कर पीती हैं। लेकिन इस का मतलब यह हरगिज नहीं है कि वह इस बांह से उस बांह में जाने वाली भी होती हैं। फिर होती भी हैं तो ऐसी स्त्रियों की संख्या मुट्ठी भर ही है। कुछ स्त्रियां मदिरा गोष्ठी में साथ तो बैठ जाती हैं , पर मदिरा नहीं सॉफ्ट ड्रिंक ले लेती हैं। कुछ सॉफ्ट ड्रिंक में मिला कर भी ले लेती हैं। पर यह सब मिला कर भी ऐसी स्त्रियां कोई दस-पंद्रह प्रतिशत ही हैं। नब्बे प्रतिशत स्त्रियां इन चीज़ों से बहुत दूर हैं। फिर किसी स्त्री को , उस के लेखन और व्यक्तित्व को मापने के अनेक पैमाने हैं। सब को इन पैमानों पर खरा उतरने की बाध्यता नहीं होती। मैं बस इतना ही जानता हूं कि रचा ही बचा रह जाता है। और कि जो रचनाकार स्त्री हो या पुरुष अच्छा इंसान नहीं हो सकता , अच्छा लेखक भी क्या ख़ाक होगा ? होगा तो होता रहे।
यह टिप्पणी लिखते समय ही नई धारा की आज की यह दूसरी लिबलिब पोस्ट भी दिख गई है। पढ़िए और बताइए नई धारा के कर्ताधर्ताओं को कि अपने इस कब्ज की बीमारी को दूर करें। खुल कर सामने आएं। बताइए कि उन के राइटर्स रेजीडेंसी के कार्यक्रम ने हिंदी समाज के लेखकों का बहुत नुक़सान किया है। ख़ास कर स्त्री समाज का। जो संस्था किसी स्त्री की शुचिता की रक्षा करने में असमर्थ हो , वह संस्था कैसे किसी दोषी को , यौन अपराधी के आरोपी को मुक्त कर जाने की इजाजत दे देती है। पुलिस नहीं , न सही , पटना के लेखक समाज को सही तुरंत बुला कर विचार विमर्श कर सकती थी। क्यों नहीं किया। फिर जब बिहार में शराब बंदी है तो राइटर्स रेजीडेंसी में यह शराब की बोतल कैसे आ गई भला। सुनते हैं रोज ही मदिरा गोष्ठी होती थी। क्या अब भी होती है ?
नई धारा की आज की पोस्ट :
‘नई धारा राइटर्स रेजीडेन्सी’ के बारे सोशल मीडिया में हो रही चर्चा पर ‘नई धारा’ ने अब तक बहुत कुछ नहीं कहा, क्योंकि जाँच की शुरुआत में ही शिकायतकर्ता ने उनकी निजता बनाये रखने का अनुरोध किया था, और कानूनी तौर पर निजता उनका हक भी है। अब जबकि शिकायतकर्ता ने स्वयं अपने सोशल मीडिया पेज पर सार्वजनिक रूप से इस विषय में बात की है, हम कुछ और बातें आपके साथ साझा करना चाहते हैं। उनकी पोस्ट में ही साफ है कि हमने वही कदम उठाए, जिनका उन्होंने अनुरोध किया था।
सबसे पहले, तो हम ‘राइटर्स रेज़िडेंसी’ में हुई इस घटना, उसके सार्वजनिक होने और सोशल मीडिया में शिकायतकर्ता की पहचान को उजागर करने, उनका चरित्र हनन करने की भर्त्सना करते हैं। हम अपने प्रतिभागियों की निजता, सुरक्षा और सम्मान के प्रति प्रतिबद्ध हैं और शुरुआत से ही शिकायतकर्ता के साथ खड़े रहे हैं तथा अब भी खड़े हैं। शिकायतकर्ता ने मांग की थी कि या तो कृष्ण कल्पित लिखित तौर पर माफ़ी मांगें, या फिर उन्हें कार्यक्रम से हटा दिया जाए। जांच के दौरान कृष्ण कल्पित ने आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए माफ़ी मांगने से इनकार कर दिया। इसके बाद तत्काल प्रभाव से उनकी ‘रेज़िडेंसी’ समाप्त कर दी गई और उन्हें वापस जाने के लिए कह दिया गया। अगले दिन वे रेजीडेन्सी से जा चुके थे।
शिवांगी गोयल ने रेज़िडेंसी जारी रखनी चाही और वे आज भी हमारी अतिथि हैं। वे रेज़िडेंसी की पहले से निर्धारित अंतिम तिथि तक यहां रहेंगी। वे ‘नई धारा’ द्वारा इस मामले पर कार्यवाई से पूर्णतः संतुष्ट हैं। चौतरफा दबावों के बीच भी इस नीति पर कायम रहने के लिए हमारी सम्मानित अतिथि ने लिखित तौर पर हमारे इस रुख की सराहना की है।
हमें उम्मीद है कि यह वक्तव्य चली आ रही तमाम अटकलों पर पूर्ण विराम लगाएगा।
नोट : जानना यह भी दिलचस्प है कि यह फोटुएं , कौन खींच रहा है , कौन प्रसारित कर रहा है। कोई पर्दाफाश करे , इस का भी।
बहुत सुंदर तार्किक एंव तथ्यपूर्ण लेख
ReplyDeleteVery interesting and informative article.
ReplyDelete