दयानंद पांडेय
शिवांगी गोयल बच्ची , तुम सीधे-सीध एक एफ़ आई आर क्यों नहीं लिखवा देती ? कब तक लेखकों को कुत्तों की तरह आपस में लड़ाती रहोगी ? सोशल मीडिया पर चूहा-बिल्ली खेलने से कुछ नहीं होने वाला। सोशल मीडिया पर तुम्हारी तरफदारी करने वाले क्रांतिकारी लोग तुम्हारी बदनामी की इबारत लिख रहे हैं। तुम्हारा मजाक उड़ा रहे हैं। अफ़सोस कि तुम्हें इस का पता तक नहीं। कैसी कवयित्री हो ? ऐसे ही कविता लिखती हो ? सारे क़ानून तुम्हारे पक्ष में हैं। अदालतों में भी तुम्हारी जय-जय होगी l
POSH Act तक लगवा सकती हो। राजेंद्र यादव से ज़्यादा दुर्गति हो जाएगी कृष्ण कल्पित की। ज्योति कुमारी प्रसंग में तो विभूति नारायण राय ने राजेंद्र यादव को जेल जाने से बचा लिया था। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि सार्वजनिक स्थल पर यौन उत्पीड़न से निबटने के लिए 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में विशाखा गाइडलाइंस स्थापित की थीं। ये गाइडलाइंस 2013 में यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) लागू होने तक रही। अब POSH Act ने इसकी जगह ले ली है। इसमें विशाखा गाइडलाइंस की मूल भावना और सिद्धांत अब भी शामिल हैं। इस कारण राइटर्स रेज़िडेंसी की यह घटना POSH Act के तहत कार्यस्थल के रूप में गिनी जाएगी।
अलग बात है कि राजेंद्र यादव की इसी शॉक में सांस चली गई। उन की घाघरा पलटन बस मुंह बाए देखती रह गई। गौरतलब है कि एक समय बहुत आजिज आ कर यह घाघरा पलटन शब्द मन्नू भंडारी ने राजेंद्र यादव के लिए इस्तेमाल किया था। यहां भी यह उसी अर्थ में प्रयुक्त है। बहरहाल , विभूति नारायण राय भी राजेंद्र यादव को इस शॉक और मृत्यु से नहीं बचा पाए। पर क़ानूनी लाज से बचा ले गए। एफ आई आर में नामजद होने के बावजूद। सारा प्रोटोकाल , सारी वरिष्ठता भूल कर रात भर दरियागंज थाने में राजेंद्र यादव के साथ बैठे रहे कि पुलिस उन के साथ पुलिसियापन न करे। सुबह थाने से छुड़ा ले गए। जेल नहीं जाने दिया। जब की उन्हीं आरोप और धाराओं में उन का ड्राइवर उसी समय जेल भेजा गया। लंबे समय तक तिहाड़ी बना रहा।
कृष्ण कल्पित के पास तो कोई विभूति नारायण राय भी नहीं है। कानूनन जेल और सज़ा दोनों सुनिश्चित है। एफ आई आर लिखवाओ तो सही। लगभग अस्सी फीसदी लेखक समुदाय फ़ेसबुक पर तुम्हारे साथ , तुम्हारे पक्ष में खड़े हैं। तुम को ले कर वामपंथी लेखक दो नहीं , बीस फाड़ हो चुके हैं। उदय प्रकाश जैसे चुके हुए कुछ मुट्ठी भर लेखक कृष्ण कल्पित के पक्ष में आधे - अधूरे ढंग से खड़े दिखते हैं। अवसर आने पर पूरी तरह पलट जाएंगे। तुम्हारे साथ खड़े दिख रहे नब्बे प्रतिशत लेखक भी पक्का पलट जाएंगे। अदालत , पुलिस जाना हो तो एक प्रतिशत ही शायद खड़े मिलेंगे। यह लेखक क़ौम है ही इसी स्वाभाव की। ड्राइंग रूम में बैठ कर क्रांति की पिंगल छांटने वाले , सोशल मीडिया के क्रांतिकारी हैं। अवसरवादी हैं। अवसर पर साथ लेकिन नहीं देते। बहाना , ख़ामोशी और कायरता इन के स्थाई स्वभाव हैं।
नई धारा की ओर से संक्षिप्त सफाई और निर्णायक मंडल के एक सदस्य प्रियदर्शन की फ़ेसबुक टिप्पणी कम से कम तुम्हारे पक्ष में खड़ी नहीं दिखती। अपनी सफाई रखते हुए , अपना चेहरा साफ़ करने की क़वायद भर है। तुम्हारी अस्मिता , तुम्हारे अपमान की उन्हें कोई चिंता नहीं। चिंता है तो बस अपनी। अपने संस्थान और अपने चेहरे की। तुम को क्या लगता हैं राम ने रावण से युद्ध सीता के लिए लड़ा था ? ऐसा सोचती हो तो बिलकुल ग़लत सोचती हो। राम ने रावण से युद्ध अपनी प्रतिष्ठा के लिए लड़ा था। अपना चेहरा साफ़ करने के लिए लड़ा था। उन की चिंता थी कि बिना सीता अयोध्या लौट कर वह लोगों को क्या जवाब देंगे। तुलसी की रामायण में तो नहीं पर वाल्मीकि रामायण में राम की इस चिंता के इस के स्पष्ट विवरण उपस्थित हैं। यह कुछ लेखक जो तुम्हारे साथ सोशल मीडिया पर खड़े दिख रहे हैं राम की तरह अपनी उसी प्रतिष्ठा के तहत उपस्थित हैं। अपनी-अपनी अयोध्या को एड्रेस करने के लिए। तुम्हारे साथ कोई नहीं खड़ा है। सब की अपनी-अपनी अयोध्या है। और तुम जानती ही हो कि श्रीकांत वर्मा लिख गए हैं कि कोशल में विचारों की कमी है। अगर बात अभी नहीं समझ आई तो लो यह पूरी कविता पढ़ो। शायद बात पूरी समझ आए इस सेना की :
महाराज बधाई हो; महाराज की जय हो !
युद्ध नहीं हुआ –
लौट गये शत्रु ।
वैसे हमारी तैयारी पूरी थी !
चार अक्षौहिणी थीं सेनाएं
दस सहस्र अश्व
लगभग इतने ही हाथी ।
कोई कसर न थी ।
युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता ।
न उनके पास अस्त्र थे
न अश्व
न हाथी
युद्ध हो भी कैसे सकता था !
निहत्थे थे वे ।
उनमें से हरेक अकेला था
और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला होता है !
जो भी हो
जय यह आपकी है ।
बधाई हो !
राजसूय पूरा हुआ
आप चक्रवर्ती हुए –
वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गये हैं
जैसे कि यह –
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता
कोसल में विचारों की कमी है ।
तो कोशल की तरह यह सभी भी अधिक दिन तक नहीं टिक सकते। इस लिए भी कि सब के अपने-अपने राजसूय हैं , सब के सब चक्रवर्ती हैं। पर तुम भाग्यशाली हो कि त्रेता नहीं , कलयुग में हो। कोशल न सही , क़ानून सौ फीसद तुम्हारे पक्ष में है। तुम सच कहो , झूठ कहो , यह तुम्हारी मर्जी है। पर तुम्हारा हर कहा , क़ानून के लिए सच है। ऐसे सभी प्रसंग में हर स्त्री का कुछ भी कहा , क़ानून के लिए सच है। क़ानून के पन्ने बताते हैं कि राइटर्स रेजिडेंस भी कार्यस्थल है और कार्यस्थल पर कृष्ण कल्पित के ख़िलाफ़ तुम्हारा कहा POSH Act के क़ाबिल है। बहुत कड़ा क़ानून है यह। ज़मानत दूभर है। बस एक ही समस्या है कि मायके पक्ष से तुम भले व्यवसायी हो पर ससुराल पक्ष से ब्राह्मण हो। और भारतीय राजनीति और वामपंथी लेखकों के गलियारे में जाति बहुत बड़ा फैक्टर है। तथ्य और तर्क से पहले जाति और धर्म पर विचार होता है। फिर किधर खड़ा होना है , तय होता है। ब्राह्मण हो जाना तो ख़ैर हर दृष्टि से अपराध है। वह सर्वदा का दोषी है। रहेगा। स्थापित सत्य है। नो इफ , नो बट। बहुत मुमकिन है कि उदय प्रकाश तुम्हारे इसी ब्राह्मण पक्ष से विचलित हो कर कृष्ण कल्पित के पक्ष में उपस्थित हो गए हों।
इस लिए भी कि अभी कल तक कुछ लेखक लोग कृष्ण कल्पित को ब्राह्मण समझ कर पूरी ताक़त से प्रहार कर रहे थे , यह जानते ही कि वह बढ़ई हैं या कोई ओ बी सी हैं , उन के प्रहार क्षीड़ होते गए हैं। वैसे भी तुम वामपंथ खेमे के प्लस-माइनस भी ख़ूब जानती होगी। एक सांसद चंद्रशेखर दुराचारी होने के बाद भी सिर्फ़ इस लिए सुरक्षित है कि वह दलित है। गो कि दुराचार भी दलित के साथ ही संपन्न हुआ है। और निरंतर। नियमित। पर इस ख़बर पर सारे के सारे सिरे से ख़ामोश हैं। एक पत्ता भी नहीं खड़का है।
बहुत समय नहीं बीते एक दुराचारी खुर्शीद अनवर को बचाने के लिए यही वामपंथी लेखक समुदाय पूरे प्राण से लगा हुआ था। उसे शहीद और महान बताने में बड़े-बड़े लेखक और संपादक खर्च हो गए थे। एक आंदोलन में शामिल होने के लिए दिल्ली आई हुई नार्थ ईस्ट की उस लड़की के साथ यह लेखक बहादुर लोग नहीं खड़े हुए। दुराचारी खुर्शीद अनवर को बचाने में लग गए। वह तो जब वह क़ानूनी रूप से घिर गया तो बालकनी से छलांग मार कर मर गया। यह कमज़र्फ फिर उसे शहीद बताने लगे। खुर्शीद अनवर भी शराब के नशे में उस नार्थ ईस्ट की बेटी के साथ बलात्कारी बन गया था।
कम से कम अपनी सफाई में खुर्शीद अनवर ने यही बताया था कि आंदोलन की थकान उतारने के लिए शराब पी और शराब का नशा उतारने में बलात्कार हो गया। जनसत्ता के तत्कालीन संपादक ओम थानवी ने खुर्शीद अनवर की ताजपोशी और उस की मासूमियत के बखान में लेख लिखे। गो कि ओम थानवी वामपंथी नहीं हैं। पर कंधे से कंधा मिला कर चलने की बीमारी उन्हें है , तो है। लेखक तो लेखक , लेखिकाएं और आगे हैं। कोसो आगे।
नया ज्ञानोदय में जब विभूति नारायण राय ने कुछ छिनार लेखिकाओं को संकेतों में इंगित कर दिया तो विभूति के पक्ष में बहुत से लेखक ही नहीं , लेखिकाओं ने भी शहर-शहर विभूति के पक्ष में हस्ताक्षर अभियान चलाए। जुलूस निकाले। हालां कि भले अप्रिय और अभद्र बात विभूति ने कही थी पर सच कही थी। फिर भी अपनी वाइस चांसलरी बचाने के लिए तुरत-फुरत माफ़ी मांग ली थी। रवींद्र कालिया ने भी।
तो सर्वदा इनाम-इकराम , मुफ्त की यात्रा की लालसा-अभिलाषा में सांस लेने वाले यह हिंदी के बेरीढ़ लेखक कितना तुम्हारे साथ खड़े होंगे और लड़ेंगे , वह भी नहीं जानते। इधर-उधर होने में तनिक देर नहीं लगती इन्हें। लेकिन भारतीय क़ानून तुम्हारे पक्ष में पूरी तरह शत-प्रतिशत खड़ा है। तुम कैसी कविता लिखती हो , नहीं जानता। तुम्हारा जीवन , तुम्हारी अभिलाषा क्या है नहीं जानता। कुछ लोग कह रहे हैं कि इस बहाने तुम्हें बहुत प्रसिद्धि मिल गई है। तुम ने प्रसिद्धि के लिए ही यह सारा तानाबाना बुना है। मैं ऐसी बातों और ऐसी प्रसिद्धि से सहमत नहीं होना चाहता। दुहराता हूं वह सवाल फिर से कि : शिवांगी गोयल बच्ची , तुम सीधे-सीध एक एफ़ आई आर क्यों नहीं लिखवा देती ? कब तक लेखकों को कुत्तों की तरह आपस में लड़ाती रहोगी ?
देवेंद्र कुमार की एक लंबी कविता है बहस ज़रूरी है। उस के दो छोटे अंश है :
समन्वय, समझौता, कुल मिला कर
अक्षमता का दुष्परिणाम है
जौहर का किस्सा सुना होगा
काश! महारानी पद्मिनी, चिता में जलने के बजाए
सोलह हजार रानियों के साथ लैस हो कर
चित्तौड़ के किले की रक्षा करते हुए
मरी नहीं, मारी गई होती
तब शायद तुम्हारा और तुम्हारे देश का भविष्य
कुछ और होता!
यही आज का तकाजा है
वरना कौन प्रजा, कौन राजा है?
(बहस जरूरी है)
दिक्कत है कि तुम सोचते भी नहीं
सिर्फ दुम दबा कर भूंकते हो
और लीक पर चलते-चलते एक दिन खुद
लीक बन जाते हो
दोपहर को धूप में जब ऊपर का चमड़ा चलता है
तो सारा गुस्सा बैल की पीठ पर उतरता है
कुदाल,
मिट्टी के बजाय ईंट-पत्थर पर पड़ती है
और एकाएक छटकती है
तो अपना ही पैर लहुलुहान कर बैठते हो
मिलजुल कर उसे खेत से हटा नहीं सकते?
(बहस जरूरी है)
तो बच्ची , सोशल मीडिया पर ही नहीं , क़ानूनी रूप से लड़ो। सोशल मीडिया के जौहर से निकलो। माता - पिता ने इतना सुंदर नाम दिया है तो अपने शिवांगी नाम के अर्थ को भी तनिक समझो और इसे जियो।
No comments:
Post a Comment