Sunday 31 December 2023

जैसे कैकेयी राम का पुन: वनवास मांग रही हो !

दयानंद पांडेय 

मस्जिदों और मजारों पर जाना शुरु कीजिए। क्यों कि आप की राय में वह अतिक्रमण कर के नहीं बनाए गए हैं। नाम भले अल्ला है , आख़िर वहां भी तो ईश्वर का ही वास है।


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अयोध्या में राम की जगह गिद्ध देखना , तो अमृत वर्षा करना है l है , न ? कौन विद्वान किस तरह सिद्ध करेगा , यह गिद्ध अयोध्या भूमि पर ही उपस्थित हैं ? विष वमन करने वाले लोग , एकतरफ़ा बात करने वाले लोग , बहुत ऊंचा , बहुत ज़ोर से बोलते हैं l गिद्ध देखने वाले इन गिद्धों को मेरी बात कैसे सुहा सकती है भला , यह तो हम भी जानते हैं l और यह सो काल्ड ज्योतिषी तो घोषित पिट्ठू है , कांग्रेस का l अभी बीते विधान सभा चुनावों में हर जगह कांग्रेस की सरकार बनवाने की घोषणा , अपनी वाल पर किए बैठा है। 


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कहते हैं , नया मुल्ला , प्याज़ ज़्यादा खाने लगता है l जाइए कभी लखनऊ के चारबाग़ में बड़ी लाइन वाले स्टेशन पर l बीच रेल लाइन खम्मन पीर बाबा की मज़ार पर मत्था टेकिए l मैं तो टेक आया हूं कई बार l राणा प्रताप मार्ग पर दैनिक जागरण के सामने मज़ार पर चादर चढ़ाता रहता हूं l सड़क संकरी हो गई है तो क्या ? गोमती नगर , मिठाई वाले चौराहे से गुज़रते हुए फ़्लाई ओवर , के नीचे भी मज़ार के नीचे की मजार को सिर झुकाता हुआ निकलता हूं l अजमेर शरीफ़ में भी चादर चढ़ा आया हूं l दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की मज़ार पर भी चादर चढ़ा कर सिर झुका आया हूं l दिल्ली में ही कई जगह नए-नए फ़्लाई ओवर पर मज़ार देख आया हूं l कोयंबतूर में तो फ़्लाई ओवर का चौराहा और उस पर मज़ार देखा है। 


आप ने नहीं देखा होगा , मैं ने अयोध्या में राम परिवार के परिसर में ही बाबरी ढांचा देखा है l सीता रसोई , कनक भवन के बीच बाबरी ढांचा ? यह अतिक्रमण नहीं , श्रद्धा थी ? वह तो विराजमान राम लला , सुप्रीम कोर्ट से मुक़दमा जीत कर आए हैं l फिर भी संविधान का बारंबार नगाड़ा बजाने वाले कुछ बुद्धि पिशाच हज़म नहीं कर पा रहे इसे l कभी गिद्ध दिखा रहे , कभी अतिक्रमण वाले मंदिर l

काशी में ज्ञानवापी अतिक्रमण नहीं , श्रद्धा है ? मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म-भूमि और मस्जिद की दीवार एक है l यह अतिक्रमण नहीं , श्रद्धा है ? अनेक उदाहरण हैं l लेकिन वैचारिक हठ इन तथ्यों को देखने नहीं देता l सत्य , तथ्य और तर्क दिखाने वाले लोग विष-वमन करने वाले बता दिए जाते हैं l विष के कुएं में बैठे हुए लोग अमृत वर्षा करने के ठेकेदार l अजब तमाशा है l ग़ज़ब दोगलापन है। 


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वही ईश्वर , जो कण-कण में है l नाम आप चाहे जो ले लीजिए l न भी लीजिए तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता l केदार नाथ सिंह ने लिखा ही है -


तुम ने जहां लिखा है प्यार

वहां लिख दो सड़क

कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता

यहां कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। 


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हर पुलिस लाइन में , क्या आज श्रीकृष्ण मंदिर बने हैं ? लखनऊ में पुराने हाईकोर्ट परिसर में ब्रिटिश पीरियड से बड़ा सा मंदिर है। उत्तर प्रदेश विधान सभा , सचिवालय और राजभवन के बीच वाली सड़क पर दोनों तरफ मस्जिद ही है न ! वह भी बड़ी-बड़ी। जिन में दुकानें खुली हुई हैं। मंदिर क्यों नहीं है ? पुराना सही , क्या यह अतिक्रमण नहीं है ? मैं कोई बात तोड़-मरोड़ कर नहीं , तथ्य और तर्क के आलोक में कहता हूं। काशी , अयोध्या , मथुरा की बात बता कर बताया है कि आक्रमणकारी सर्वदा अतिक्रमण करते हैं। रही बात इन दस बरसों की तो योगी राज के उत्तर प्रदेश में तो मेरी जानकारी में धार्मिक अतिक्रमण नहीं हुए हैं। धार्मिक ? अरे बड़े-बड़े माफियाओं के अतिक्रमण ध्वस्त किए गए हैं। यथा अतीक़ अहमद , मुख़्तार अंसारी , विजय मिश्रा , कानपुर का वह दुबे आदि तमाम के अवैध कब्जे , ध्वस्त हो गए हैं। पुराने अतिक्रमण ध्वस्त किए गए हैं। मजारों के भी , मंदिरों के भी। गोरखपुर में भी सड़कों पर कई मंदिर तोड़े गए। और तो और सड़क चौड़ी करने के लिए योगी ने गोरखनाथ मंदिर परिसर की बाउंड्री तक तोड़ कर ज़मीन दे दी है। यह तथ्य है। लफ्फाजी नहीं। प्रायोजित फ़ोटो वाले गिद्ध नहीं। इन गिद्धों को भी प्रणाम करता हूं। क्यों कि त्रेता में इन्हों ने जटायु नाम से मनुष्यता के पक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज की थी , अत्याचारी और अपहरणकर्ता रावण के ख़िलाफ़।


आप की कालोनी बहुत पुरानी है। कम से कम चालीस बरस पुरानी। फिर भी आप को जहां कहीं भी अतिक्रमण लगता है , प्रामाणिक रुप से तथ्य पेश करें। मैं ज़िम्मेदारी लेता हूं , पक्का ध्वस्त हो जाएंगे। मंदिर भी। अगर सरकारी भूमि पर बने हैं। क़ानून अब ऐसा ही है। बस प्रमाण , पुष्ट होने चाहिए। आरोप नहीं , प्रमाण। नहीं रामपुर में जौहर विश्वविद्यालय के नाम पर भी आज़म खान ने सपा कार्यकाल में जाने कितने किसानों , गरीबों की ज़मीनों पर ज़बरदस्ती कब्ज़ा किया , सारे दोगले सेक्यूलर , आज भी ख़ामोश हैं। जब उस जबरिया कब्ज़े को छुड़ाया गया , ध्वस्त किया गया तो इन दोगले सेक्यूलरों ने दबी जुबान , अत्याचार बताना शुरू कर दिया है। अतिक्रमण , अतिक्रमण होता है , अत्याचारी , अत्यचारी। नया-पुराना नहीं। लेकिन अब तो ऐसे-ऐसे कवि हो गए हैं , जो आक्रमणकारी , बर्बर बाबर में अपना आदर्श खोजते हैं। बाबर जैसा पिता बनना चाहते हैं। ऐसी दोगली लालसा भरी कविता लिखते हैं।


आप के मूल प्रश्न से या किसी के मूल प्रश्न से क्यों कतराऊंगा ? आप कतरा रहे हैं। मैं तो सवालों से टकराने वाला आदमी हूं। भागने वाला नहीं। फिर कहा न , नया मुल्ला प्याज़ बहुत खाता है। आप वही नए मुल्ले हैं। तथ्य और तर्क की रोशनी में बात करने का हामीदार हूं। वैचारिक हठ और पूर्वाग्रह के तहत कोई बात नहीं करता। दिन को दिन कहने का अभ्यस्त हूं। रात को रात। हठ और पूर्वाग्रह के तहत दिन को रात कहने की कुलत नहीं है। बाक़ी दिन को रात कहने के अभ्यस्त हो चले स्वप्निल जी ने आप को मशविरा दे ही दिया है , लुत्फ उठाइए। तो लुत्फ उठाइए। मैं तो भरपूर उठा रहा हूं। मौज में रहिए , टेंशन में नहीं। निजी तौर पर ज्योतिष में शायद यक़ीन न करने वाले स्वप्निल जी ने इस पोस्ट में एक साथ दो काज किए हैं। एक तो इन गिद्धों के मार्फ़त अपने दुःख का इजहार किया है। दूसरे , अपने समानधर्मा दोस्तों का ईगो मसाज भी। कि मुट्ठी ताने , कांख छुपाए सही हम भी अभियान में हैं। पर हम जैसों को लुत्फ उठाने का बहाना भी अनजाने ही दे गए हैं। यह भी गुड है !


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आलम यह है कि कुछ तो अपनी अतिशय बौद्धिकता प्रमाणित करने के फेर में साइकेट्रिक वार्ड में भर्ती होने लगे हैं। यह मूर्ख नहीं जानते कि यह सारे गिद्ध असल में अयोध्या के राम मंदिर पर बुरी नज़र लगाने वाले कलयुगी रावणों को चोंच मार-मार कर नष्ट करने के लिए इकट्ठा हो रहे हैं।


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चौदह बरस वनवास के बावजूद राम आजिज नहीं हुए इस अयोध्या से। जिस अयोध्या ने वनवास दिया , लौट कर आए , उस अयोध्या ही। कवि कुंवर नारायण भी इसी अयोध्या के हैं। यतींद्र मिश्र भी यहीं रहते हैं। और भी तमाम लोग। इतना कुछ बदल गया पर स्वप्निल जी की यातना नहीं बदली। हमारा हौसला देखिए कि हम अयोध्या में हैं , ऐसे कह रहे हैं , गोया नरक भोग रहे हों। ध्वनि ऐसी , जैसे कैकेयी राम का पुन: वनवास मांग रही हो। राम का भव्य मंदिर में लौटना , भा नहीं रहा , स्वप्निल जी को। अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा , रेलवे स्टेशन , भव्य बस स्टेशन , दुनिया भर से अयोध्या का कनेक्ट होना , अयोध्या का चतुर्दिक विकास सब स्वाहा है , स्वप्निल जी के इस दुःख के आगे। भगवान ऐसा दुःख भी किसी को न दें। किसी कवि को तो हरगिज़ नहीं।


[ एक मित्र की पोस्ट पर विभिन्न मित्रों से वाद-विवाद-संवाद का लुत्फ़।  ]


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