Tuesday 14 November 2023

विपश्यना में प्रेम : एक-एक पृष्ठ में बहती रसधार

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

मूलतः पत्रकार रहे आदरणीय दयानंद पांडेय जी ने अपने विशद साहित्यिक लेखन से अपने विशुद्ध पाठकों को अपना प्रशंसक तो बनाया ही है, लेकिन विशुद्ध साहित्यकार का चोला ओढ़े अनेक स्वनामधन्य लेखकों के पेट में दर्द भी पैदा कर दिया है। बेखटक और बेलाग लेखन ही इन की पूंजी है। इस की चोट किसी को पहुंचती हो तो वह जाने। 'अपने-अपने युद्ध' से मची खलबली तो बहुतों को याद होगी। 

कोई नंगा सच जो इन्हें अपनी आंखों से दिखता है उसे वैसे का वैसा अपनी कलम से चित्रलिखित कर देना इन्हें बखूबी आता है। मन के भीतर विचारों व भावनाओं की श्रृंखला जैसी पैदा होती है उसे वैसे ही नैसर्गिक रूप में कागज पर उतार देना इन की फितरत है। जिस सच्चाई को ये महसूस करते हैं उसे ऐसा शब्द देते हैं कि पढ़ने वाला भी सहज ही उस सच्चाई को खुद महसूस करने लगता है। न केवल भौतिक घटनाओं का विवरण बल्कि किसी चरित्र के मन में उमड़ते - घुमड़ते भाव विचार भी इन की लेखनी से निकल कर पाठक के मन पर हुबहू वही छाप छोड़ देते हैं। इन की बातें पानी की धार जैसी बहती हैं। मन को तर करती जाती हैं। किस्सागोई ऐसी कि बैठ कर सुनने वाला आगे झुकता जाय। जिज्ञासा की धार टूटने का नाम न ले। 

सहज लेखन की ऐसी ही शैली में पगा उपन्यास 'विपश्यना में प्रेम' पढ़ते हुए मन बार-बार मुस्करा देता है। एक विपश्यना केंद्र जिसे लेखक चुप की राजधानी कहता है वहां नायक विनय के साथ कुछ ऐसा घटित होता है जिस की उसने कल्पना भी नहीं की होगी। शांति की तलाश में मौन साधना का अभ्यास करने की राह में कुछ ऐसा क्षेपक आता है जिस का शोर उसे मतवाला कर देता है। लेखक के शब्दों में - विपश्यना शिविर में विनय भी अपने मौन के शोर को अब संभाल नहीं पा रहा था। मौन का बांध जैसे रिस-रिस कर टूटना चाहता था। शोर की नदी का प्रवाह तेज़ और तेज़ होता जाता था। देह का दर्द अब बर्दाश्त होने लगा था। ध्यान का कुछ आनंद भी आने लगा था। पर शोर का सुर ? 

एक बानगी यह भी - लोग कहते हैं , मौन में बड़ी शक्ति होती है। तो मौन , मन के शोर को क्यों नहीं शांत कर पाता। किसी चट्टान से सागर की लहरों की तरह पछाड़ खाता यह शोर बढ़ता ही जाता है। विपश्यना के वश का भी नहीं लगता यह शोर।

उपन्यास की जो विषय वस्तु है वह आप को चकित कर सकती है। मुझे तो यह उपमा भी चकित करती है - जैसे किसी युवा होती लड़की के लिए उस का वक्ष ही भार हो जाता है, ठीक वैसे ही विनय के लिए यह साधना भी भार हो चली थी।

उपन्यास में किसी वातावरण का चित्रण पढ़ कर लगता है जैसे पाठक स्वयं वहां पहुंच गया हो। साधना स्थल का माहौल महसूस कराती ये पंक्तियां देखिए - आचार्य के टेप की आवाज़ में वह डूब गया है। अजब आनंद है इस आवाज़ में भी। इतनी सतर्क, इतनी स्पष्ट और इतने व्यौरे में सनी, किसी नाव की तरह थपेड़े खाती, बलखाती आवाज़ से इस से पहले वह कभी नहीं मिला था। आरोह-अवरोह और श्रद्धा का ऐसा मेल, जैसे कानों में जलतरंग बज जाए, जैसे कोई मीठी सी हवा कानों में चुपके से स्पर्श कर जाए। 

चुप की राजधानी में मन को आध्यात्मिक शांति के लिए एकाग्र करने में लगे विनय को चुपके से चिकोटी काटती मल्लिका की पूरी योजना का पता तो उपन्यास के अंत में चलता है, लेकिन पाठक को वहाँ तक पहुंचने की कोई जल्दी नहीं है। वह तो एक-एक पृष्ठ में बहती रसधार से सिक्त होता चलता है। कथा के बीच अचानक कोई अदभुत दृश्य उपस्थित हो जाय, कोई मनभावन दृष्टांत आ पड़े, कोई मन को छू जाने वाली खूबसूरत उक्ति मिल जाय, अकस्मात रोम-रोम पुलकित करने वाली कोई टिप्पणी मिल जाय या देह - संगीत का कोई नया टुकड़ा आ पड़े, इस संभावना से यह पूरा उपन्यास इस तरह लबरेज है कि आप इसे कूद-फांद कर नहीं पढ़ना चाहेंगे। 

यहां तो प्रत्येक पृष्ठ आप को बांध कर रखता है। बिल्कुल जैसे गुलज़ार की कोई नज़्म हो। दुबारा तिबारा सोचना भी अच्छा लगता है। बुद्ध और यशोधरा के बिलगाव का संदर्भ है तो मांसलता और कामुकता का चरम भी है। इसे सारंगी, गिटार और वीणा के मधुर संगीत सा पेश किया गया है। यहां माउथऑर्गन की धुन पर थिरकता नृत्य भी है और तबले की थाप पर उचकता जिस्म भी है। यह सब ऐसा दृश्य उपस्थित करता है और ऐसी अनुभूति देकर जाता है कि इसे केवल 'वयस्कों के लिए' उपयुक्त ठहराने का मन होता है। लेकिन यह इस उपन्यास की सीमा नहीं है बल्कि दयानंद जी की एक विलक्षण उपलब्धि है। 

[ www.satyarthmitra.com से साभार ]


विपश्यना में प्रेम उपन्यास पढ़ने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए 


विपश्यना में विलाप 


समीक्ष्य पुस्तक :



विपश्यना में प्रेम 

लेखक : दयानंद पांडेय 

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन 

4695 , 21 - ए , दरियागंज , नई दिल्ली - 110002 

आवरण पेंटिंग : अवधेश मिश्र 

हार्ड बाऊंड : 499 रुपए 

पेपरबैक : 299 रुपए 

पृष्ठ : 106 

अमेज़न (भारत)
हार्डकवर : https://amzn.eu/d/g20hNDl


     

     

               


1 comment:

  1. सुन्दर समीक्षा। बेबाक और बेलाग लेखन।

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