Sunday 21 November 2021

कुत्तों और भक्तों का रिश्ता ऐसा ही कहलाता है।

दयानंद पांडेय 

एक बात तो है कि कृषि क़ानून की वापसी पर भक्तों ने जिस तरह नरेंद्र मोदी का डट कर और खुल कर विरोध किया है , वह अदभुत है। साफ़ कह दिया है कि इस से अच्छा होता कि आप इस्तीफ़ा दे कर झोला उठा कर चल दिए होते। संसद का इस तरह अपमान तो नहीं होता। और जाने क्या-क्या। पर एजेंडे पर चलने वाले विभिन्न कुत्ते कभी भी अपने-अपने हाईकमान , पोलित ब्यूरो या परिवार मुखिया के ख़िलाफ़ ऐसा बोलना और विरोध करना सपने में भी नहीं सोच सकते। अगर हाईकमान , पोलित ब्यूरो , सपा आदि-इत्यादि परिवार का मुखिया कह दे कि तुम लोग अपने बाप के नहीं , हमारे ही पैदा किए हुए हो। तब भी इन के बीच कभी कोई जुंबिश नहीं होगी। 

अनेक बार ऐसी घटनाएं घटी हैं। हाईकमान , पोलित ब्यूरो और परिवारों में। पर कभी किसी ने लब नहीं खोले। बोल कि लब आज़ाद हैं , गाने वालों ने लब सिले रखे। ले कर रहेंगे आज़ादी ! का ढोल बजाने वालों ने ग़ुलाम बने रहने में ही भलाई समझी। कुत्तागिरी असल में हाईकमान , पोलित ब्यूरो , परिवारवाद के पक्ष में इतना वफ़ादार बना देती है , एजेंडा सीमेंट बन कर ऐसा जकड़ लेता है कि वह स्वामी भक्ति से इतर कुछ सोच नहीं पाते। एक बार अगर बोल गए कि भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला , इंशा अल्ला ! तो फिर उसी पर क़ायम रहेंगे। डिगेंगे नहीं। सूत भर भी नहीं। 

अगर किसी ने कुछ टोक दिया तो भक्त-भक्त कह कर भौंकने लगेंगे। दौड़ा लेंगे। भूल से अगर उन के इलाक़े में चले गए तो फिर तो आप की ऐसी ख़ातिरदारी करेंगे कि पूछिए मत। बिलो द बेल्ट भी। फिर भौंकने वाले कुत्तों से सभी बचते हैं। और मैं तो बहुत ही ज़्यादा। यह बात कुत्ते भी बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि भक्त उन से बहुत डरते हैं। इस लिए वह तर्क और तथ्य भूल कर भक्त-भक्त भौंकते हैं।

दिलचस्प यह कि यह कुत्ते संगठित तौर पर और एक ही सुर में भौंकते हैं। बिलकुल मिले सुर मेरा तुम्हारा को फेल करते हुए। इन में एका और इन का माइंड सेट देखते बनता है। इन के विचार , स्टैंड और एजेंडा एक ही सांचे में ढले मिलते हैं। अगर एक ने ग़लती से भी कह दिया कि मेरे पृष्ठ भाग पर तो बहुत कस के लात पड़ी है ! तो सभी एक साथ बोलेंगे , मेरे भी , मेरे भी ! फिर पूछेंगे कि किसी भक्त ने मारी है क्या ? अगला बोलेगा हां ! तो फिर सभी एक सुर में भौंकेंगे , मुझे भी , मुझे भी ! क्या कीजिएगा कुत्तों और भक्तों का रिश्ता ऐसा ही कहलाता है।

इस लिए भी कि कुत्तागिरी किसी को कुछ समझने कहां देती है भला। न कोई तथ्य , न कोई तर्क। सौ सवाल को पी कर जवाब में सिर्फ़ भक्त-भक्त भौंकना ही सिखाती है। भक्तों और कुत्तों का अभी तक का रिश्ता यही है। आगे की राम जानें।

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