Wednesday, 8 April 2020

संन्यासी , बिच्छू और कोरोना


एक सुबह एक संन्यासी नदी में नहा रहा था। पानी में एक बिच्छू डूबता मिला। संन्यासी ने उसे बचाने की गरज से निकाला और पानी के बाहर फेंक दिया। लेकिन बिच्छू ने जाते-जाते संन्यासी के हाथ में डंक मार दिया। अचानक बिच्छू फिर फिसल कर पानी में आ गिरा। संन्यासी ने फिर उसे पानी से निकाला। बिच्छू ने फिर डंक मारा। ऐसा जब तीन-चार बार हो गया तो नदी किनारे खड़े एक व्यक्ति ने संन्यासी से पूछा कि हर बार बिच्छू  आप को डंक मार रहा है फिर भी आप उसे लगातार बचा रहे हैं। ऐसा क्यों ? संन्यासी ने जवाब दिया कि मैं अपना काम कर रहा हूं , बिच्छू अपना काम कर रहा है। सब का अपना-अपना स्वभाव है। 

सचमुच नरेंद्र मोदी सरकार में धैर्य और बर्दाश्त बहुत है। देश भर में तबलीग जमात की आपराधिक हरकतों के मद्देनज़र यह किस्सा याद आ गया। तबलीग जमात ही क्यों पूरा मुस्लिम समाज जिस तरह कभी सी ए ए के बहाने , देश को जलाता रहा है , शहर-शहर आग लगाता रहा और अब देश के कोने-कोने में कोरोना जेहाद कर कोरोना फैला रहा है और सरकार जिस तरह उन से निरंतर मुलायमियत से पेश आ रही है , वह आसान नहीं है। सरकार लगातार सदाशयता और मनुष्यता दिखा रही है , यह आसान नहीं है। ऐसे हालात में बहुत आसान था मोदी के लिए , इंदिरा गांधी बन जाना। शी जिनपिंग बन जाना। मतलब तानाशाह बन जाना और इस्लाम की जहालत के समंदर में डूबे इन मनुष्यता विरोधी लोगों से कठोरता से पेश आना। सोवियत संघ की तरह एक साइबेरिया बना कर इन्हें उस में धकेल देना। चीन ने जिस  तरह 30 लाख उइगर मुसलामानों को नज़रबंद किया हुआ है , उसी तरह नज़रबंद कर देना। इंदिरा गांधी ने जिस तरह स्वर्ण मंदिर में सैनिक कार्रवाई की थी या फिर पाकिस्तान के जनरल मुशर्रफ ने लाल मस्जिद पर सैनिक कार्रवाई की थी , उसी तरह मनुष्यता के इन दुश्मनों के खिलाफ एक बड़ी सैनिक कार्रवाई कर देना। 

बहुत आसान था यह सब , इन हालात में। लेकिन सचमुच नरेंद्र मोदी सरकार ने इस कठिन घड़ी में भी निरंतर जिस धैर्य , जिस बर्दाश्त का परिचय दिया है , बहुत कठिन है किसी शासक के लिए। एक बार सोच कर देखिए कि नरेंद्र मोदी की जगह अगर योगी आदित्यनाथ प्रधान मंत्री होते तो आज की तारीख में क्या यह लोग अस्पताल के वार्ड में शौच करने की हिम्मत कर पाते ? थूक पाते डाक्टरों पर ? पत्थरबाजी कर पाते पुलिस पर ? निजामुद्दीन के मरकज में इस तरह इकट्ठा हो कर फिर यहां से देश भर में निकल कर कोरोना की आफत मचा सकने की सोच भी पाते। कह पाते कि इस्लाम पहले , मुल्क बाद में। या फिर यही नरेंद्र मोदी अगर गुजरात के मुख्य मंत्री वाले नरेंद्र मोदी होते तो ?

सच केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में बहुत धैर्य और बहुत बर्दाश्त है। सच यह है कि तबलीग जमात और इन की पैरोकारी करने वालों पर अब एक बड़ी सैनिक कार्रवाई की ज़रूरत है। बिना सेना के यह लोग कुछ समझ और जान नहीं पाते। अपने ही देश में कश्मीर इस का सर्वोत्तम उदाहरण है। बिना सेना के कश्मीरी आतंकी मनुष्य नहीं जानवर बन जाते थे। सेना देखते ही इन का सारा इस्लाम , सारी हेकड़ी फुर्र हो जाती थी। इन को लोकशाही की नहीं सेना की सख्त ज़रूरत है। नहीं आप सोचिए कि एकाध कनिका कपूर आदि के अलावा समूचे देश में कोरोना किस खूबी से काबू में था। तबलीग के कोरोना जेहाद के बाद ही कोरोना विस्फोट हुआ। जो अब काबू से बाहर होता जा रहा है। सोचिए कि मरकज से निकलने के बाद तमिलनाडु के दर्जनों तबलीगी लखनऊ क्या करने गए थे , इस लॉक डाऊन में भी। मज़दूरों के लिए लगाई बस में बैठ कर तमाम जमाती उत्तर प्रदेश की मस्जिदों में जा कर किस लिए छुपे ? मकसद साफ़ है। गनीमत है कि योगी , मोदी के नियंत्रण में हैं और कि सेना उन के हाथ में नहीं है। खुल्ल्मखुल्ला एक हाथ में माला , एक हाथ में भाला ले कर चलने के आदी योगी को छूट मिल जाए तो उत्तर प्रदेश में दो घंटे में सभी जमातियों को राइट टाइम कर दें। गोरखपुर का उन का इतिहास मैं जानता हूं। इतना ही नहीं , आदित्यनाथ के गुरु अवैद्यनाथ के गुरु दिग्विजयनाथ की गोरखपुर में कार्रवाइयों का इतिहास भी जानता हूं। जब वह सिर्फ सांसद थे। जानने वाले जानते हैं कि उन कार्रवाइयों की छाया गोरखपुर में आज भी उपस्थित है। निःसंदेह इस छाया में गोरखपुर आज भी काबू में रहता है। 

पर मोदी ने सचमुच बहुत सब्र का परिचय दिया है। इसी लिए संन्यासी और बिच्छू की कथा याद आई। नहीं देखिए कि इन दिनों सरकार ने जो जनधन खातों में पैसे डाले हैं , उन्हें निकालने के लिए बैंकों के आगे लगी लंबी-लंबी लाइनों में बुरके वाली स्त्रियां और दाढ़ी वाले लोग ही ज़्यादा हैं। इतना ही नहीं आप देश भर के आंकड़े उठा कर देख लीजिए तो पाएंगे कि मुफ्त गैस , मुफ्त आवास और मुफ्त शौचालय का लाभ पाने वालों की सूची में भी मुस्लिम समाज के लोग ही ज़्यादा हैं। एक हाथ में कुरआन , एक हाथ में कंप्यूटर का नारा भी नरेंद्र मोदी का है ही नहीं , बल्कि इसे उन्हों ने पूरा भी किया है। इतना कि मोदी पर आरोप लग गया है कि मुस्लिम तुष्टिकरण में मोदी कांग्रेस से कहीं आगे निकल गए हैं। मनमोहन सिंह तो सिर्फ कहते भर थे कि देश के सभी संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। लेकिन तमाम आंकड़े उठा कर देख लीजिए , मोदी सरकार ने सभी संसाधन मुसलमानों के हवाले कर दिए हैं इन छ बरसों में। ज़रा पता भी कीजिए कि मदरसों को कितना पैसा दिया है मोदी सरकार ने और संस्कृत के स्कूलों को क्या दिया है ? स्थिति तो यह है कि संस्कृत स्कूल भारत के नक्शे से समाप्ति की कगार पर हैं। खैर , यह भी पता कीजिए कि मदरसों में पढ़ने और पढ़ाने वालों ने देश को क्या दिया है ? मस्जिद , जेहाद , उपद्रव , पी एफ आई , दंगे , शहर-शहर शाहीन बाग़ , दंगे और तबलीग जमात। यानी देश को मुश्किल में डालने , देश को पीछे ले जाने में जो योगदान दिया है मुस्लिम समाज ने यह कहते हुए भी कि किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े है , वह अदभुत है। सरकार के सब्र की पराकाष्ठा है। वह खुलेआम कहते फिरते हैं , मजहब हमारे लिए पहले है , देश क्या होता है। हम हुक्मरान हैं , गुलाम नहीं। फिर भी कुछ सेक्यूलर दुकानदार अकसर कहते फिरते हैं कि मोदी राज में मुसलमान बहुत डरा हुआ है।  हामिद अंसारी , आमिर खान , शाहरुख़ खान , नासिरुद्दीन शाह आदि-इत्यादि भी। तो क्या सचमुच ? जो भी कुछ बीते कुछ महीनों से देश नरक की हद तक भुगत रहा है , यह डरे हुओं का कारनामा है ?

सचमुच देखना दिलचस्प होगा संन्यासी कब तक बिच्छू को पानी में डूब कर मरने से फिर-फिर बचाता रहता है और बिच्छू संन्यासी को डंक मारता रहता है। क्यों कि कोरोना से बड़ा इम्तहान तो फिर कभी आने से रहा। पूरी दुनिया कोरोना के इम्तहान को पास करने के लिए जी जान से लगी पड़ी है। पर भारत एकमात्र ऐसी जगह है जहां कोरोना से ज़्यादा , लोग तबलीग जमात से निपटने में अपना श्रम , संसाधन , धैर्य और समय गंवा रहे हैं। मस्जिद-मस्जिद उन्हें मछली की तरह छान रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि चीन ने कोरोना के इस इम्तहान में ऐसे बहुत से सवालों को गोली मार दी है। ताकि न रहे बांस , न बजे बांसुरी। भारत के पास ऐसा साहस नहीं है। होना भी नहीं चाहिए। यहां तो बांस भी रहेगा और बांसुरी भी बजेगी। यह लोग डरे भी रहेंगे और डराते भी रहेंगे। 

कब तक ? 

राम जाने। 

1 comment:

  1. तब्लीगी प्रकरण ने देश मे कोरोना महामारी को नियंत्रल में लाने के मोदी सरकार के 21 दिन के सुनियोजित व चरणबद्ध संघर्ष पर पलीता लगा दिया। जिसका हर्जाना देश की जनता,सरकार-प्रशासन, विकास, अर्थव्यवस्था आदि नहीं, मनुजता को भी भुगतना पड़ रहा है।

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