Monday, 2 March 2020

नरेंद्र मोदी का हेलीकाप्टर शॉट है , सोशल मीडिया छोड़ने पर सोचने का ऐलान


लेकिन मैं न तो फेसबुक छोड़ने जा रहा हूं , न वाट्सअप। बोलने-बतियाने का बहुत बढ़िया और पावरफुल माध्यम है, सोशल मीडिया। यह भी छोड़ दूंगा तो कहां जाऊंगा भला। पेट्रोल बहुत महंगा हो चुका है , स्थानीय स्तर पर भी कहीं आना-जाना महंगा है। दूसरे शहर या दूसरे देश जाना तो बहुतै महंगा। यही एक सस्ता और सुलभ माध्यम है सब से संपर्क का। कम्यूनिकेशन का सोशल मीडिया सब से बड़ा माध्यम है। हां , यह ज़रूर है कि कुछ फर्जी , कुछ नफरती , कुछ एजेंडाधारी लोगों से मन दुखी होता है और माहौल भी ख़राब होता है पर यह सब तो असली ज़िंदगी में कहीं ज़्यादा है। फिर दिल्ली दंगा , महंगाई , बेरोजगारी , आर्थिक मोर्चे पर बढ़ती विफलता , पाकिस्तान से जीते पर मिनी पाकिस्तान से क्यों हारे , केंद्र में जीते पर प्रदेशों में निरंतर हार आदि पर मुझ से तो कोई सवाल पूछा नहीं जाना है। न जवाब देना है। फिर मैं क्यों छोडूं भला सोशल मीडिया। 

यह ज़रूर है कि फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर समय बहुत ख़राब होता है। और कई बार आई टी सेल के कारिंदे तर्क और तथ्य की जगह दीवार बन कर , एजेंडा बन कर , नफरत बन कर उपस्थित होते हैं तो मन बहुत खराब होता है। लगता है उन से संवाद कर दीवार में सिर मार रहा हूं। हो सकता है नरेंद्र मोदी को लोग चीन की दीवार बन कर , नफरत का सागर बन कर मिल रहे हों तो वह ज़्यादा आहत हुए हों। जैसे राहुल गांधी जैसा लतीफा प्रतिक्रिया देते हुए कह रहा है कि सोशल मीडिया नहीं , नफ़रत छोड़िए। अजब है। इस लिए भी कि इन दिनों सोनिया , राहुल समेत समूची कांग्रेस भाई चारा के नाम पर जितनी नफ़रत समाज में घोल रही है , उस का कोई हिसाब नहीं है। कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने नफरत की खेती को अफीम की खेती में तब्दील कर दिया है। सोशल मीडिया पर भी और सामान्य जनजीवन में भी। 

फिर भी नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया से पलायन करने से भरसक बचना चाहिए। लेकिन आखिरी सच यही है कि सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर नफरत के एजेंडा का पलड़ा बहुत भारी है। वैसे यह जानना भी ख़ासा दिलचस्प है कि एक समय पाकिस्तान के लोगों ने मुशर्रफ को फेसबुक पर हज़ारों की संख्या में इस तरह वेलकम कर दिया कि बिना ज़मीनी सचाई जाने वह लंदन इस्लामाबाद लैंड कर गए और गिरफ्तार हो गए। फेसबुक पर मुशर्रफ का वेलकम करने वाले लोगों में से कोई एक भी उन के पक्ष में ज़मीन पर खड़ा नहीं दिखा। ऐसा भी निरंतर देख रहा हूं कि किसी के निधन पर सोशल मीडिया पर तो शोक संदेश का समंदर उमड़ पड़ता है लेकिन श्मशान घाट पर दस लोग भी नहीं पहुंचते। ऐसी ही तमाम नंगे सच हैं और बहुत बड़ा फासला है सोशल मीडिया , न्यूज चैनल और असल जीवन में। तो ज़रूरत इस फासले को पाटने की है। पलायन की नहीं। 

बाकी वह लतीफा भले पुराना हो पर प्रासंगिक तो आज भी है। वह यह कि एक आदमी ने अगले से अपनी हनक जमाते हुआ बोला , मेरे पास फेसबुक है , इंस्टाग्राम है , ट्वीटर है , वाट्सअप है , तुम्हारे पास क्या है ? अगला बोला , मेरे पास काम-धाम है। 

ऐसे और भी तमाम किस्से हैं। नान सोशल मीडिया के भी। जैसे कि एक बार किसी जहाज में दिलीप कुमार जा रहे थे। उन्हों ने देखा कि टाटा भी उसी जहाज में थे। पर उन के बहुत कोशिश के बावजूद टाटा ने उन की नोटिस नहीं ली। तो उन्हों ने अपने सहायक को टाटा के सहायक के पास भेजा और सूचना परोसी कि दिलीप कुमार भी हैं इस जहाज में। लेकिन टाटा ने फिर भी उन की कोई नोटिस नहीं ली। अंतत: दिलीप कुमार खुद टाटा से मिलने के लिए उन के पास पहुंच गए। उन के पी ए ने उन का परिचय करवाते हुए कहा कि फ़िल्मी दुनिया के बहुत बड़े स्टार हैं दिलीप कुमार। टाटा ने हाथ जोड़ कर कहा कि , ' लेकिन मैं तो फिल्म ही नहीं देखता कभी। समय ही नहीं मिलता किसी और काम के लिए। 

ऐसे ही दिल्ली में एक कार्यक्रम में एक बार जार्ज फर्नांडीज पहुंचे। तब वह मंत्री थे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में। राजेश खन्ना और राज बब्बर भी उस कार्यक्रम में उपस्थित थे। लेकिन जार्ज ने दोनों की कोई नोटिस नहीं ली। राजेश खन्ना परेशान हो गए। अंतत: आयोजक से उन्हों ने जार्ज से अपना परिचय करवाने के लिए कहा। आयोजक ने परिचय कराया कि यह राजेश खन्ना , हिंदी फिल्मों के सुपर स्टार। तो जार्ज मुस्कुराए और बोले , बंबई में रहा तो बहुत हूं पर कभी कोई पिक्चर देखने का समय ही नहीं मिला। 

राजकुमार तो फ़िल्मी दुनिया के ही मशहूर अभिनेता थे। पर एक बार किसी कार्यक्रम में वह राजकुमार के बगल में बैठे पर राजकुमार ने उन की बिलकुल नोटिस नहीं ली। तो अफना कर राजेश खन्ना ने अपना परिचय खुद ही देते हुए कहा , ' बाई द वे मुझे राजेश खन्ना कहते हैं। ' और यह बात जब राजेश खन्ना ने राजकुमार से तीन-चार बार दुहराई तो राजकुमार उन से मुखातिब होते हुए बोले , ' यह तो ठीक है बरखुरदार पर आप करते क्या हैं ?' राजेश खन्ना तब सुपर स्टार थे। तिलमिला कर रह गए। 

लेकिन होता है कई बार ऐसा भी। बहुत से लोग तमाम मशहूर वैज्ञानकों को नहीं जानते। मशहूर खिलाड़ियों को नहीं जानते। अर्थशास्त्रियों को नहीं जानते। बहुत से लोग बहुत सी बात नहीं जानते। मैं भी बहुत सारी बातें नहीं जानता। अधिकांश लोग आज भी नहीं जानते कि राष्ट्रपति , प्रधान मंत्री , मुख्य मंत्री क्या होता है या कि कौन है। अपने ज़िले के डी एम , एस पी को भी नहीं जानते लोग। ऐसे ही बहुत से लोग टी वी , सीरियल , न्यूज़ , फेसबुक आदि सोशल मीडिया भी बिलकुल नहीं जानते। संयोग से ऐसे लोगों की संख्या बेहिसाब है। सोशल मीडिया कम्यूनिकेशन का सब से बड़ा माध्यम भले हो पर भारत का अधिकांश जनगण मन सोशल मीडिया से अभी बहुत दूर है। लोग नहीं जानते कि आप फेसबुक पर हैं कि ट्यूटर पर। बने रहिए आप अपने आप में , अपनी नज़र में चैंपियन। 

हालां कि मेरा अनुमान है कि नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया से दूर नहीं होंगे। अपनी ताकत का सब से बड़ा अस्त्र-शस्त्र भला कोई क्यों छोड़ेगा ? सोशल मीडिया वैसे भी एक नशा है। अकेलेपन का साथी है। अकेलेपन , अवसाद और तनाव के संत्रास को तार-तार करने का औजार भी है सोशल मीडिया। आप लड़-झगड़ पर भी एक रहते हैं यहां। तो सोशल मीडिया एक मोहब्बत है। एक अफीम है। जो एक बार आ गया यहां , गया काम से। यह फ़ेसबुक भी ग़ज़ब चौराहा है । कोई एक औरत अपना खांसी-जुकाम रख देती है और लार टपकाते पुरुषों की खेप की खेप डाक्टर और वैद्य बन कर प्रस्तुत हो जाती है । उस का सारा दुःख दर्द ले लेना चाहते हैं यह पुरुष । गुड है यह मौखिकी , यह कमिश्नरी और बेशर्मी भरी लाईनबाज़ी भी। और इन मोहतरमाओं को भी क्या कहें ? फ़ेसबुक पर जाने क्या-क्या ढूंढ लेती हैं , इलाज भी । इन का भी कोई इलाज नहीं , उन का भी कोई इलाज नहीं । तो यह सोशल मीडिया एक मस्ती है। इस की मस्ती के मस्ताने हज़ारों की इबारत और रवायत तोड़ कर भारत में ही करोड़ो में हैं। इस की ताकत हाथी से भी बहुत ज़्यादा है। कांग्रेस आज भी रोती है कि 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी और भाजपा की तरह  क्यों नहीं उस ने भी तब सोशल मीडिया का सहारा लिया था। 

तो तय मानिए कि सिर्फ और सिर्फ केंद्रीय मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए सोशल मीडिया के बहाने ठहरे हुए जल में एक कंकड़ फेंका है नरेंद्र मोदी ने। बस ! और देखिए न लगभग सारे न्यूज़ चैनलों ने इसी विषय पर आज का अपना प्राइम टाइम न्यौछावर कर दिया। भूल गए दिल्ली दंगा , संसद का हंगामा , पश्चिम बंगाल आदि-इत्यादि। ट्रेड सेटर ने अपना काम बखूबी कर दिया है। क्रिकेट की भाषा में इसे हेलीकाप्टर शॉट कहते हैं। अब आप कैच करिए या चूकिए , यह आप जानिए। लेकिन सोशल मीडिया छोड़ने पर सोचने का ऐलान है नरेंद्र मोदी का हेलीकाप्टर शॉट है। इस बात को तस्लीम कर लीजिए।

6 comments:

  1. 100% सच यही है।इस स्पष्टवादिता के लिए साधुवाद।

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  2. मोदी जी फिरकी ले रहे

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  3. किस्से कहानी लिखने वाले का दिमाग इससे आगे सोच नहीं सकता :)

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  4. सरकारी् सोशल मीडिया चालू हो रहा है।

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  6. मोदी जी की बॉल पर छक्का

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