Thursday, 12 March 2020

सोनिया अहंकार के बुलडोजर ने लोगों के आत्म-सम्मान को कुचल कर अपना ईगो मसाज किया है


गांधी परिवार से अपमानित हो कर दोस्तों का विदा होना अब एक परंपरा में तब्दील है। अभी-अभी तो राहुल गांधी के कालेज के समय के मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया विदा हुए हैं। राहुल गांधी ने आज किसी तरह इस प्रसंग पर सिला मुंह खोला तो है और सारा ठीकरा आर एस एस पर ही फोड़ा है। लेकिन राहुल मंडली के बाकी सदस्य तो खामोश हैं। यथा आर पी एन सिंह। लेकिन एक समय था कि राजीव गांधी के तो कई सारे दोस्त विदा हुए। बतर्ज बिछड़े सभी बारी-बारी। और लगभग सभी के विदा होने का मुख्य कारण सोनिया गांधी ही मानी गईं। खास कर सोनिया गांधी का अहंकार। सोनिया के अहंकार के बुलडोजर ने बहुतेरे लोगों के आत्म-सम्मान को कुचल कर अपना ईगो मसाज किया है। 

याद कीजिए अमिताभ बच्चन। राजीव गांधी और अमिताभ बचपन के गाढ़े मित्र थे। नेहरू , इंदिरा के समय से ही पारिवारिक मित्रता थी। सोनिया को ले कर जब पहली बार राजीव गांधी भारत आए तो इंदिरा गांधी समेत समूचा परिवार सोनिया के खिलाफ था। तो दिल्ली एयरपोर्ट पर राजीव और सोनिया को रिसीव करने एकमात्र अमिताभ बच्चन ही पहुंचे थे। और कि सोनिया गांधी को दिल्ली स्थित अपने पिता हरिवंश राय बच्चन के घर गुलमोहर एंक्लेव ले कर पहुंचे थे। जब तक इंदिरा गांधी ने सोनिया पर अपनी सहमति नहीं दी , राजीव से विवाह के लिए तब तक सोनिया अमिताभ के घर ही रहीं। यहां तक को सोनिया को भारतीय रीति-रिवाज , साड़ी पहनना आदि भी अमिताभ की मां तेजी बच्चन ने ही सिखाया। 

यहां तक कि बाद में सोनिया के बच्चे राहुल और प्रियंका भी बचपन में ज़्यादातर समय तेजी बच्चन के साथ ही रहे। प्रियंका आज भी स्वीकार करती हैं कि उन की हिंदी अच्छी इस लिए है कि उन्हें तेजी जी ने हिंदी सिखाई। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव की मदद के लिए वह राजनीती में भी आए। लेकिन बाद के समय में सोनिया गांधी ने अमिताभ बच्चन के साथ क्या-क्या नहीं किया। अमिताभ बच्चन को बरबाद करने के लिए सोनिया ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। चाहा कि घर दुआर सब बिक जाए। अमिताभ सड़क पर आ जाएं। वह तो अमर सिंह सामने आए। अपनी दलाली के दम पर अमिताभ को सड़क पर तब आने से बचा लिया। अब जिस ने अमिताभ का घर नीलाम होने से बचाया , सोनिया गांधी ने उसे भी बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

याद कीजिए अरुण नेहरू को। वह न सिर्फ राजीव गांधी के मित्र थे , परिवारीजन भी थे। राजीव के परम सलाहकार। लेकिन वह भी बहुत अपमानित हो कर गांधी परिवार से बाहर किए गए। याद कीजिए अरुण सिंह को। वह भी राजीव गांधी के दून स्कूल के सहपाठी थे। अभिन्न मित्र। वह भले राजीव मंत्रिमंडल में रक्षा राज्य मंत्री रहे थे पर राजीव ने प्रधानमंत्री निवास से सटे बंगले में ही अरुण सिंह को रखा। बीच की दीवार तोड़ कर भीतर से ही रास्ता बना लिया। जाने क्या-क्या बातें चलीं दोनों की इस दोस्ती को ले कर। लेकिन एक समय यह भी आया कि अरुण सिंह न सिर्फ राजनीति छोड़ दिए बल्कि दिल्ली छोड़ कर अल्मोड़ा के बिनसर में ऐसी पहाड़ी पर रहने चले गए जहां कोई सवारी नहीं जाती। बिजली नहीं है। अखबार भी तीन दिन बाद पहुंचता है। लगभग संन्यास। बाद में पता चला कि अरुण सिंह भी सोनिया गांधी के ही मारे हुए हैं। 

ज्योतिरादित्य सिंधिया के अभी कांग्रेस से जाने में भी सोनिया गांधी ही मुख्य कारण बनी हैं। किस्से और भी बहुतेरे हैं। मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा एक गीत है ; ज़माने ने मारे हैं जवां कैसे-कैसे ! तो सोनिया ने भी कैसे-कैसे लोगों को मारा है। फेहरिस्त बहुत लंबी नहीं तो छोटी भी नहीं है। हां , नरसिंहा राव , सीताराम केसरी जैसों को अगर जोड़ लीजिएगा तो यह फेहरिस्त कुछ लंबी ज़रूर हो सकती है। 

1 comment:

  1. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बहुत विलम्ब किया पुत्र-धर्म निभाने में....

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