Tuesday, 17 July 2018

सिमी की ही तरह मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड पर भी बैन लगाने का यही माकूल समय है


ज़ी हिंदुस्तान पर लाइव डिसकसन में मुस्लिम स्त्रियों के साथ अभद्र भाषा के साथ मार-पीट करने वाले मौलाना कासिम के साथ आई पी सी के मुताबिक तो पूरी सज़ा नहीं मिल पाएगी । गिरफ्तार भले हो गए हैं वह पर अंततः ज़मानत पा जाएंगे । इन का इलाज तो इस्लामी क़ानून के मुताबिक ही मुमकिन है । चौराहे पर पत्थर मार-मार कर मार ही देना ही गुड है । और मौलाना कासमी ही क्यों ऐसे सारे जहरीले मौलानाओं के साथ यही सुलूक करना ज़रूरी है । जितने भी शरिया अदालत के पैरोकार हैं उन सभी के साथ । पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी जैसों के साथ भी । पर यह हो नहीं पाएगा । यह तो खयाली पुलाव भर है । जो भी हो , भारत का पूरा माहौल ख़राब कर रखा है इन बेहूदे लोगों ने । इस्लाम के नाम पर आतंक , हिंसा , अभद्रता ही इन की अंतरराष्ट्रीय पहचान हो चली है । जाने कब यह लोग सभ्य शहरी बनना मंज़ूर करेंगे ।

फिर यह जाहिल मौलाना कासिम ही क्यों पूरा पूरे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड है कटघरे में है । सिमी की ही तरह मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड पर भी बैन लगाने का यही माकूल समय है । लेकिन आज खामोश दिखने वाली सेक्यूलर फोर्सेज के हिप्पोक्रेट कल को फिर इन की पैरवी में खड़े दिखेंगे । बताएंगे कि यह देश मुसलमानों के लिए असुरक्षित है । असहिष्णुता बहुत है । आदि-इत्यादि । नीम पर करेला यह कि गाय खाना भी इन का जन्म-सिद्ध अधिकार है । कुरान के मुताबिक औरतें इन की खेती हैं । तिहरा तलाक़ , हलाला और औरतों को यतीम बनाना इन का पेशा । मदरसा की पढ़ाई सदियों से इन को यही सब सिखा रही है । तिस पर सेक्यूलरिज्म के पाखंड ने इस्लामिक हिंसा को इस कदर संरक्षण दे रखा है कि यह अल्पसंख्यक की बीन बजा कर , अल्पसंख्यक प्रिविलेज के नशे से छुट्टी ही नहीं पाना चाहते । सेक्यूलरिज्म की आड़ में मीडिया ने भी इस इस्लामिक हिंसा को खूब घी पिलाया है ।

जिस तरह पूरी सख्ती से चीन अपने यहां इन कट्टरपंथी मुसलमानों से पेश आ रहा है , उस से ज़्यादा सख्ती इन से भारत में ज़रुरी हो गई हैं ।समान नागरिक संहिता भी पूरी सख्ती से लागू किया जाना बहुत ज़रूरी है। क्यों कि इस्लाम की रौशनी में तो यह सुधरने से रहे । इस लिए भी कि सेक्यूलरिज्म की हिप्पोक्रेसी ने इन्हें बिगाड़ बहुत दिया है । सोचिए कि जो मौलवी खुलेआम लाइव इस तरह तीन-तीन स्त्रियों से मार-पीट करता है , गाली देता है वह अपने घर में क्या करता होगा , अपने समाज में क्या करता होगा । गनीमत यह थी कि इस डिवेट में एंकर सहित सभी लोग मुस्लिम थे । दो स्त्रियां और , दो पुरुष । कोई भाजपाई , संघी या हिंदूवादी नहीं था । खुदा न खास्ता अगर होता तो इस स्त्री हिंसा की ख़बर और चर्चा कुछ और रंग में होती । भगवा कलर का जहरीला कलर पहना कर मौलाना और सेक्यूलर पाखंडी नया जहर उगल रहे होते । नया रंग दे रहे होते । अभी तो यह लोग या तो खामोश हैं या फेस सेविंग वाले बयान दे कर कतरा रहे हैं ।

खैर , निदा खान तो निदा खान , बरेली की एक औरत को तो एक आदमी बार-बार तलाक देता है और कभी अपने बाप से तो कभी अपने भाई से हलाला करने के लिए विवश करता है । यह कौन सा समाज है भला कि सोलह साल की नाबालिग लड़की , तीन बच्चों की मां बन कर तलाक़ का नरक भुगतने को अभिशप्त हो जाती है । आंबेडकर ने ठीक ही लिखा है कि इस्लाम और मुसलमान अभिशाप हैं इस समाज के लिए । दुनिया बदल गई है , चांद पर चली गई है लेकिन यह तो शरिया अदालत , और मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड में उलझे हैं । तलाक़ , हलाला और आतंक से इन्हें फुर्सत ही नहीं मिल रही। अब सरकार को संसद में लंबित तलाक़ के क़ानून को इस आसन्न सत्र में हर हाल में पारित कर सख्ती से लागू कर ही देना चाहिए ।

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