सुलोचना वर्मा की फ़ोटो |
ग़ज़ल
देह में संगीत बजता है मनुहार का तुम कहां हो
फागुन धड़कता देह की हर पोर में तुम कहां हो
एक तितली है एक कोयल की आहट और एक मैं
आम्र मंजरियों में आ गई है सुगंध बहुत तुम कहां हो
एक पतंग उड़ती फिर रही है प्यार के आकाश में
बहकते वसंत के इस मादक प्रहर में तुम कहां हो
सरसों के पीले फूल खिलखिलाते हैं बाग़ वाले खेत में
ताल में तैरती कूदती उछलती मछलियां है तुम कहां हो
मन की दूब पर बिछी है ओस की चादर
सूखी नहरों में आ गया है पानी तुम कहां हो
सम्मत भी गड़ गई है गांव में हर बार की तरह
गांव की हर गली में फाग की आग है तुम कहां हो
डोलता मन है हवाओं में सिहरन महकती धरती
प्यार का सागर मचलता फिरता है तुम कहां हो
[ 1 फ़रवरी , 2017 ]
अतिसुन्दर
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