Thursday, 2 February 2017

फागुन धड़कता देह की हर पोर में तुम कहां हो

सुलोचना वर्मा की फ़ोटो
ग़ज़ल 

देह में संगीत बजता है मनुहार का तुम कहां हो
फागुन धड़कता देह की हर पोर में तुम कहां हो

एक तितली है एक कोयल की आहट और एक मैं
आम्र मंजरियों में आ गई है सुगंध बहुत तुम कहां हो

एक पतंग उड़ती फिर रही है प्यार के आकाश में 
बहकते वसंत के इस मादक प्रहर में तुम कहां हो

सरसों के पीले फूल खिलखिलाते हैं बाग़ वाले खेत में
ताल में तैरती कूदती उछलती मछलियां है तुम कहां हो

मन की दूब पर बिछी है ओस की चादर
सूखी नहरों में आ गया है पानी तुम कहां हो

सम्मत भी गड़ गई है गांव में हर बार की तरह
गांव की हर गली में फाग की आग है तुम कहां हो 

डोलता मन है हवाओं में सिहरन महकती धरती 
प्यार का सागर मचलता फिरता है तुम कहां हो

[ 1 फ़रवरी , 2017 ]

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