फ़ोटो : गौतम चटर्जी |
ग़ज़ल
मन में फुदक फुदक फुदकने वाली चिरई भाग गई
अब की आई ऐसी गरमी कि बालम चिरई भाग गई
जाती रहती थी पहले भी इस आंगन से उस आंगन
लेकिन अब की आंगन छोड़ कर जंगल भाग गई
शिमला मसूरी वह गई नहीं सीधे पहुंची जंगल में
जंगल में वह ऐसा झगड़ी डर कर हथिनी भाग गई
जंगल ज़मीन से लड़ती वह सब से आगे निकल गई
निभी नहीं कहीं किसी से तो वह बादल में भाग गई
वह घूम रही थी मन में जैसे शहर घूमने आया हो शेर
और शेर से डर कर दिल के गांव से बिजली भाग गई
ख़बर एक दिलचस्प चली न्यूज़ चैनल के बाज़ार में
कल एक देवदास के गांव से उस की पारो भाग गई
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 11 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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