ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
मां की ग़ज़ल सुनाते मुनव्वर राना बेईमान आए हैं
इस्लाम की बंदूक़ ले कर राजा तालिबान आए हैं
बहुत ज़ोर था संविधान पर उन का शाहीन बाग़ में
संविधान की आड़ में वह शरिया का शैतान लाए हैं
दुशासन एक ही था द्रौपदी की चीर हरण के वास्ते
अब लाज लूटने इस्लामी कल्चर के लाखों हैवान आए हैं
चार सौ मर्द एक औरत को नंगा करते सरे बाज़ार
इस नई सदी में हम एक ऐसा पाकिस्तान पाए हैं
बतियाते-बतियाते रोती है औरत जार-जार बेजार
गो पुराने ज़ख्मों को हरा करने अब नए कद्रदान आए हैं
कि बेटी की , उस की लाज बचेगी कैसे पूछती है औरत
रूस अमरीका के झगड़े में ऐसा अफगानिस्तान लाए हैं
इस्लामी आतंक में लुटा है कश्मीर भी कभी ऐसे ही
कश्मीरी पंडित यह किस्सा दबी जुबान लाए हैं
सेक्यूलरों ने सर्वदा हैवानियत के शोलों को हवा दी है
बचा कर इन की दोजख से अपनी जान लाए हैं
क़िस्से बहुत हैं दुनिया में इन की हैवानियत के
मनुष्यता बची रहे किसी तरह हम यह पैग़ाम लाए हैं
खरी खरी सुना दी आपने. शानदार.
ReplyDeleteसटीक 👌👌👌👌
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