Saturday 26 December 2020

जनता जानती है किसान आंदोलन के दलाल दुर्योधनों और उस के मामा शकुनि को भी

किसान आंदोलन की कलई बस उतरना ही चाहती है। किसान अपना आंदोलन वापस लें , न लें यह किसान आंदोलन के दुकानदार जानें। पर सरकार की तरफ से नरेंद्र मोदी ने इधर तीन-चार दिन के भाषणों में रोज ही तीनों कृषि बिल की पैरवी में तर्क और तथ्य तो रखे ही हैं। बता दिया है कि तीनों कृषि बिल गंगा जल की तरह पवित्र हैं। साथ ही यह स्पष्ट कह दिया है कि कृषि बिल तो वापस नहीं होने वाले। दूसरी तरफ किसान आंदोलन में जनता जनार्दन की भागीदारी जैसे कि अन्ना आंदोलन में दिखी थी नहीं दिखी अभी तक। किसान आंदोलन को समर्थन करने के लिए सिविल सोसाइटी के लोगों की भागीदारी भी नहीं है। जिन मुट्ठी भर लोगों ने आंदोलन शुरू किया था , वही लोग अपनी-अपनी पीठ ठोंकते हुए उपस्थित हैं। नए लोग नहीं जुड़े हैं। खाने-पीने की सर्वोत्तम व्यवस्था , पैरों का मसाज , काजू बादाम आदि का ही प्रदर्शन होता दिखा है। बढ़िया कंबल , बिस्तर , टेंट आदि ही दीखता है। जोश और जूनून नहीं। आंदोलन की लपट और जीतने की भूख भी नदारद है। 

फिर बढ़िया सुविधाओं के साथ आंदोलन देखने की आदत अभी भारत के लोगों में नहीं है। दलाल और किसान का फर्क लोग जानते हैं। इंकलाब ज़िंदाबाद का मर्म लोग जाजान्ते हैं। गांधी , जे पी , अन्ना जैसी तपस्या रहित है यह आंदोलन। शुचिता और नैतिकता की जगह हिप्पोक्रेसी की बू आती है इस किसान आंदोलन से। चलिए माना कि गोदी मीडिया है। नहीं दिखाता कुछ आंदोलन के हक में। माना। हज़ार बार माना। पर एन डी टी वी तो गोदी मीडिया में शुमार नहीं है न। यह कारवां , यह वायर , यह क्विंट आदि-इत्यादि भी तो गोदी मीडिया में शुमार नहीं हैं न। यह लोग तो मोदी विरोध के लिए ही पैदा हुए हैं। किसान आंदोलन के आग की लपट क्यों नहीं दिखा और बता रहे। क्यों सिर्फ लफ्फाजी हांकने में ही निसार हैं। जनता को क्यों नहीं जगा पा रहे कि यह किसान आंदोलन जन आंदोलन बन जाए। फिर सोशल मीडिया तो सब ही के लिए सामान है। राफेल में फर्जीवाड़े की आग बहुत जलाई थी। बहुत चीख-पुकार मचाई थी। राफेल में झूठ की खेती को जनता ने , सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया था। फिर भी किसान आंदोलन में भी चीख-पुकार क्यों नहीं मचा रहे। इस किसान आंदोलन में क्यों लकवा मार गया है। सिर्फ लफ्फाजी हांकने से कोई आंदोलन होता है भला ! नहीं होता। लेकिन लफ्फाजी और हिप्पोक्रेसी की इस किसान आंदोलन में बहार है। 

इसी लिए जन भागीदारी या जोश इस आंदोलन से लापता है। जन आंदोलन की शक्ल नहीं ले पाया है यह किसान आंदोलन। कम से कम कांग्रेस ने जिन दो करोड़ लोगों के दस्तखत राष्ट्रपति को सौंपने का दावा किया है , उन में से दो लाख लोग भी काश कि इस आंदोलन से जुड़े दीखते। रही बात कम्युनिस्टों की तो वह आयोजक बहुत अच्छे हैं। माहौल बहुत बढ़िया बना लेते हैं। डफली बजा कर गाना भी अच्छा गा लेते हैं। पर जनभागीदारी से वह वंचित हैं। बरसों से जनता उन के साथ नहीं है। जनता जनार्दन के बीच अनुपस्थित हैं कम्युनिस्ट लोग । उन की विचारधारा। इसी लिए संसदीय राजनीति से वह खारिज हैं। कांग्रेस का भी यही हाल है। 

संसदीय राजनीति में जो इन की कोई हैसियत होती तो मोदी के पास प्रचंड बहुमत न होता और कि इस कृषि बिल को यह लोग संसद में ही रोक लिए होते। पास ही नहीं होने दिए होते। इस तरह गाल न बजा रहे होते। मोदी विरोध गुड बात है। लेकिन किसी आंदोलन को सफल बनाने के लिए , अंजाम तक लाने के लिए तर्क और तथ्य की कसौटी भी लाजिम होती है। बात में दम भी एक चीज़ होती है। सिर्फ तानाशाह कह देने से कोई तानाशाह नहीं हो जाता। तानाशाह बनने के तानशाह होना भी पड़ता है। तानाशाह बनने के लिए इंदिरा गांधी की तरह इमरजेंसी भी लगानी पड़ती है। मोदी तानाशाह है , गोदी मीडिया उस के साथ है , सिर्फ कहते रहने से ही बात नहीं बनती। नक्कारखाने में तूती बजाने से किसी भी आंदोलन का नुकसान होता है। बहुत नुकसान। जो कि इस किसान आंदोलन का हो चुका है। बिखर चुका है यह आंदोलन। 

शाहीन बाग़ का अंधेरा बुनने से रौशनी नहीं आती। जामिया मिलिया में हिंसा का छल रचने से रौशनी नहीं आती। जे  एन यू में बैठ कर कुतर्क रचने से रौशनी नहीं आती। रोशनी आती है सूर्य से। सूर्य की तरह जनता के मन में चमकने से रौशनी आती है। किसानों की दलाली से चमक नहीं आती। छल-कपट भरी बातों से चमक नहीं आती। वह एक पुराना गाना है न : यह पब्लिक है सब जानती है। किसान को भी , किसान के दुःख को भी। जनता जानती है। किसान आंदोलन के दलाल दुर्योधनों और उस के मामा शकुनि को भी। नहीं जानती होती तो अब तक रणभेरी बज गई होती। ईंट से ईंट बजा दी होती मोदी सरकार और गोदी मीडिया की। झुकती है , संसद झुकाने वाला चाहिए। तो अन्नदाता के आगे यह मोदी सरकार क्या चीज़ है। मोदी सरकार को झुकाने के लिए कूवत तो रखिए। 

लफ्फाजी और हिप्पोक्रेसी से कोई मच्छर नहीं मार सकता , मोदी सरकार तो बहुत दूर की कौड़ी है। किसान हो या मज़दूर , व्यापारी हो या उपभोक्ता , हर कोई अपना हित जानता है। लेकिन एक विपक्ष है भारत में जो अपना हित बिलकुल नहीं जानता। राहुल गांधी जैसे लतीफ़ा और नशेड़ी आदमी को आगे रख कर , अपना सेनापति बना कर विपक्ष नरेंद्र मोदी को घेरना चाहता है , मोदी की सरकार गिराना चाहता है। तरस आता है , ऐसे नाकारा विपक्ष पर। कभी शाहीन बाग़ में मुस्लिम औरतों का कंधा ढूंढता है तो कभी दंगा। तो कभी दिल्ली की सरहदों पर किसानों का कंधा। एक लतीफा याद आता है। संता एक दिन घर से निकला तो केले के छिलके पर पैर पड़ गया और वह फिसल कर गिर गया। दूसरे दिन वह घर से निकला तो फिर केले का छिलका दिख गया। संता दुःख से भर कर बोला , ओह आज फिर फिसल कर गिरना पड़ेगा। जय हो !


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